अगर तुम साथ हो
अगर तुम साथ हो
पिछले सात दिनों से चल रही बारिश ने जेष्ठ माह के हाहाकारी सूर्य के ताप से जलते तन को तो शांति दे दी थी पर कभी यह दिल को सबसे ज्यादा सुकून देने वाली बारिश आज मनीष के घर के कलह के ताप को शांत करने में असफल थी।
तेज बारिश के चलते सब तरफ पानी भरने से पिछले तीन दिनों से ऑफिस ना जा पाने का खामियाजा मनीष ने रह रह कर हो रहे गृह युद्ध से भुगता था। यह पहली बार की बात नहीं थी कि नंदिनी उससे इस प्रकार झगड़ रही थी परंतु इस बार यह झगड़ा लगातार तीन दिन तक चलते रहने से घर का माहौल पूरी तरह से खराब हो चुका था।
तेज बारिश के बीच झगड़ा करती नंदिनी का वीभत्स चेहरा देखकर मनीष को यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही नंदनी थी जो बादल की गड़गड़ाहट सुनते ही डरकर उसके अंक में आकर छुप जाया करती थी और दोनों घंटों बारिश की बूंदों के साथ अठखेलियां करते एक दूसरे की आंखों और बातों में मगन रहते।
कितना कुछ बदल गया था इन पाँच सालों में... कभी एक घंटे भी फोन ना करने पर रुआंसी होकर शिकायत करने वाली नंदिनी को आज जैसे उसकी शक्ल देखना भी गवारा नहीं था। संतान हीनता के दंश ने नंदिनी के तन को ही नहीं मन को भी डस लिया था। खासकर बारिश के दिनों में तो वह इतनी चिड़चिड़ी हो जाती थी कि मनीष की कहीं छोटी से छोटी बात उसे कांटों से चुभती थी।
वह उन छोटी-छोटी बातों में झगड़ा करने का कोई न कोई कारण ढूँढ़ ही लेती थी आज भी ऐसा ही था खाना बहुत कड़वा होने के कारण मनीष ने बस इतना कहा था कि ,"दाल में नमक थोड़ा चख लिया करो", यह सुनते ही नंदिनी ने अपना आपा खो दिया था और दाल समेत कुकर और बनी हुई रोटियां अब रसोई से निकलकर आंगन में पड़ी भीगती हुई जैसे मनीष को मुंह चिढ़ा रही थी। नंदनी रोए जा रही थी और गुस्से में नंदिनी को रोता छोड़ कर मनीष घर से बाहर निकल आया था।
आज उसने सोच लिया था कि वह घर के बड़े लोगों से बात कर जल्दी तलाक लेने के विषय में विचार करेगा ।अब उसमें नंदिनी का यह खराब बर्ताव सहन करने की क्षमता नहीं बची थी।
बाहर अब भी बहुत तेज बारिश हो रही थी इसलिए वह अपने फ्लैट से उतर कर सोसायटी के मेन हॉल में बैठकर बाहर की बारिश को सूनी आंखों से देखने लगा। ऐसे ही तो तेज बारिश हो रही थी उस दिन भी जिस दिन ने उसकी जिंदगी बदल दी थी।
कितनी खुश थी नंदिनी तीन साल पहले जब वह पांच माह की गर्भवती थी। आने वाली संतान के लिए उसकी व्याकुलता और प्रसन्नता छुपाए नहीं छुपती थी। ऑफिस से घर आते मनीष को देखते ही उसके गुलाबी गालों की आभा और बढ़ जाती थी और वह आने वाली संतान की भावी योजनाएं बताते हुए कभी-कभी भाव विभोर हो उसके सीने से लग जाती थी। मनीष को तो सारे जहां का सुख मिल जाता।
उस दिन सुबह से हल्की हल्की बारिश हो रही थी। मौसम बहुत खुशगवार था।
आज नंदिनी का मन चटपटा भुट्टा खाने का कर रहा था। वह मनीष से बालकों की तरह जिद कर रही थी कि वह उसे भुट्टा लाकर दे और मनीष चाहता था कि नंदिनी उसके साथ बारिश में बाइक पर सड़कों का एक चक्कर लगा कर आए इसलिए उसने नंदिनी से कहा ,"नंदिनी थोड़ी देर बाहर चलते हैं... बहुत दिन हो गए हम लोगों ने आउटिंग भी नहीं की है... तुम्हारे साथ घूमने का आज मेरा बहुत मन है ...घर लाते लाते भुट्टा ठंडा हो जाएगा इसलिए बाहर चलो मैं वहीं पर गरम-गरम भुट्टा खिलाऊंगा।"
पता नहीं क्यों नंदिनी का मन आज बाइक पर बैठने का नहीं कर रहा था परंतु वह मनीष को इनकार नहीं कर पाई और फिर वह हो गया जिसने ना सिर्फ उसका जीवन बदल दिया था बल्कि नंदनी को भी पूरी तरह परिवर्तित कर दिया था।
सड़क के मोड़ पर सामने से एक तेज आती कार से बचाने के चक्कर में मनीष की बाइक क्या फिसली मानो उसके हाथ से खुशियां फिसल गई थीं... आने वाली संतान को खो दिया था उन्होंने और साथ में खो दिया था वह प्यारा प्यार भी जिस पर उनकी गृहस्थी टिकी थी।
तबसे दो वर्ष और बीत गए थे परंतु नंदनी गर्भवती नहीं हो पा रही थी। वह अपने हाथ से जीवन की सबसे बड़ी खुशी के चले जाने में मनीष का हाथ मानती थी और अब आए दिन झगड़ा करने लगती थी।
चिकित्सकों का कहना था कि दोनों की सारी रिपोर्ट सही थीं बस थोड़े धैर्य और आपसी प्रेम के चलते ही उन्हें यह खुशी दोबारा मिल सकती थी परंतु नंदिनी तो अवसाद के ऐसे गिरे में चली गई थी कि उससे निकलने का उसे रास्ता ही नहीं दिखाई दे रहा था। संतान प्राप्ति की सारे प्रयास और इलाज अकारण ही विफल हुए जा रहे थे।
झमाझम बारिश के बीच एक प्रेमी युगल को ठिठोली करते देख मनीष की आंखें भीग गई थीं कभी इस प्रेमी युगल की जगह वह और नंदिनी हुआ करते थे। वह कुछ देर नहीं बैठा रहा और फिर कुछ सोचते ही मनीष उठा और वापस अपने फ्लैट की ओर चलने लगा।
वह जब घर में पहुंचा तो नंदिनी अभी भी तकिए में मुंह दिये रो रही थी। मनीष ने उसे गौर से देखा दूध से उजला उसका रंग कुछ पीला कुछ काला सा हो गया था। वह अब पहले से ही बहुत कमजोर हो गई थी और घने काले बाल भी पतले कमजोर हो चुके थे, यह देख कर मनीष का मन भर आया।
वह सोचने लगा अवसाद में तो नंदनी गयी थी वह नहीं तो फिर वह क्यों नहीं नंदिनी को बिखरने से बचा पाया। उसने आगे बढ़कर नंदिनी को सीने से लगा लिया था ।
मनीष का यह रूप देख कर नंदिनी एक क्षण के लिए कसमसाई फिर मनीष की पकड़ ढीली ना होते देखकर वह अब उसके अंक लगे रो रही थी।
मनीष साफ देख पा रहा था नंदिनी की चेहरे पर कुछ समय पहले आई विद्रूपता कोमलता में बदल चुकी थी। नंदनी को अंक लगाए लगाए अब उसकी आंखों से भी आंसू बह रहे थे पिछले दिनों की कटुता, मन का मैल बाहर बारिश द्वारा पेड़ पौधे और फूलों पर जमी धूल की गर्द को बहाने की तरह बह चुका था।
बारिश की बूंदों में दोनों ने आज अपने तन मन खूब भिगोये थे जिसका सुख उन्हें साल भर पीछे प्यारी बिटिया के चेहरे को देखकर मिल गया था। मनीष के साथ ने नंदिनी के जीवन को बिखरने से रोक दिया था और स्वयं मनीष भी गृहस्थ जीवन के सच्चे सुख को समझ गया था।