Shubhra Varshney

Inspirational

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Shubhra Varshney

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हिन्दी की पीपनी

हिन्दी की पीपनी

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सुबह की अति व्यस्तता मेरी अनिवार्य दिनचर्या पर सदैव हावी रहती है। मैं जितना चाहूं सुघड़ता से जल्दी जल्दी कार्य करूं घड़ी मुझसे दौड़ लगाने पर आमादा रहती है मानो मुझे पछाड़ ही देगी और मेरी बस छुड़वा देगी।

आज भी दिन कुछ ऐसा ही था... बच्चों के लंच पैक करने के साथ अपना और मिलिंद का लंच बॉक्स बाहर टेबल पर लाकर रखा ही था कि बच्चों के कमरे से रोज की तरह प्रातः कालीन शोर आने लगा।

मैं ड्रेसिंग टेबल के सामने अपनी साड़ी को अंतिम टच देते हैंड पर्स उठाकर रोज का जरूरी सामान चेक करने लगी कि कहीं कुछ जरूरी सामान छूट न जाए.... घड़ी देखी बस आने में पन्द्रह मिनट बाकी थी।

मिलिंद बाय करते हुए बाहर आयी अपनी कैब से ऑफिस चले गए और मैं बच्चों को साथ लेकर स्कूल जाने की तैयारी करने लगी ...बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते हैं जहां मैं शिक्षण कार्य करती हूं।

" आज जब मुझे तैयारी में देर नहीं हुई है तो ये दोनों अवश्य आज बस छुड़वा देंगे" बड़बड़ाते हुए मैं बच्चों के कमरे की तरफ बढ़ी।

मेरा छोटा बेटा तनिष्क रुआंसा खड़ा था और बेटी पूर्वी एक टीचर की भांति उसे डांटे जा रही थी... बच्चे दोनों तैयार थे स्कूल जाने के लिए लेकिन न जाने किसी बात पर बहुत देर से उलझे हुए थे।

"क्या हुआ बेटा??... देखो क्या टाइम हो गया है ??..बाहर आओ अभी तुम लोगों को नाश्ता भी करना है", मैंने भरसक अपने आपको संयत रखते हुए बात कही जिससे मुझे गुस्सा ना आ जाए क्योंकि एक बार सुबह सुबह गुस्सा आ जाने से मेरा पूरा दिन सिर दर्द में बीतता था।

"मम्मा ही इज ए सुपर इडियट बॉय... जब देखो 'हिंदी की पीपनी' बजाए रहता है....कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ रहा है फिर भी इसे 'डेसपरेट' का मीनिंग नहीं पता" पूर्वी ने तमक कर कहा ही था कि मैंने परेशान तनिष्क को देखा वह एकदम से बोल पड़ा," मम्मा आप परेशान ना हो मैं अपनी वोकैबलरी सुधार लूंगा"

"नहीं बेटा डोन्ट वरी तुम जैसा चाहो वैसा बोलो बस बात सही होनी चाहिए", मेरा कहना ही था कि तनिष्क रिलैक्स हो गया और पूर्वी बेहद नाराज।

"मम्मा आप इसे कुछ सीखने नहीं देंगी... यह डफर मेरे फ्रैन्डस के सामने पटापट हिंदी में बोलता है बिल्कुल भी इंग्लिश यूज़ नहीं करता... मुझे क्या करना जब आप ही नहीं चाहती यह सिविलाइज्ड बने तो मैं क्या कर सकती हूं....मैं और पापा आप लोगों को कितना भी समझाए ,आप नही समझोगे", कहती हुई पूर्वी पैर पटकती हुई बैग उठाकर बाहर निकल गई थी।

मैंने तनिष्क की ओर देखा वह बेहद मायूस खड़ा था... मैं उसके गाल थपथपाकर उसे समझाना चाहती थी उससे पहले ही वह हल्के कदमों से कमरे से बाहर निकल गया।

मेरे पति मिलिंद साफ्टवेयर प्रोफशनल इंजीनियर होने के साथ बहुत पहले से ही 'अंग्रेजी' को अपनी दिनचर्या में ढाल चुके थे।मेरे साथ मेरे बेटे का शुद्ध हिन्दी में बोलना उन्हें भी उसी तरह से किरकता था जिस प्रकार आज पूर्वी अपने व्यवहार से प्रदर्शित कर रही थी।

मैं आज के समय में जानती हूं अंग्रेजी की अनिवार्यता लेकिन स्वयं 'संस्कृत' की शिक्षिका होने के बाद हिन्दी का यह अपमान असहनीय था। मेरा मानना है अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है हमारी बुद्धिमानी का पर्याय नहीं... मैंने सोच लिया था कि आज मैं लौटते पर पूर्वी को समझाने की कोशिश करूंगी।

बस में आज तनिष्क थोड़ा उदास बैठा था... मैं साफ देख पा रही थी कि दीदी के बराबर बैठा वह आज उसकी फ्रेंड से बात नहीं कर रहा था। उसको देखते ही मेरे आंखों में झुमकी का चेहरा घूम गया।

झुमकी, हमारे विद्यालय में नई आई सहायिका जो ना सिर्फ एक सीधी-सादी कम उम्र महिला थी, बेहद कार्य कुशल भी थी।

प्रिंसिपल मैडम के घर खाना बनाने वाली इमरती की बेटी झुमकी को उसके पति ने दो वर्ष बच्चे ना होने पर मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया था तब इमरती को बेहद परेशान देख प्रिंसिपल मैडम ने झुमकी स्कूल में बतौर सहायिका नियुक्त कर लिया था।

सांवल -सलोनी, बड़ी बड़ी आंखों वाली झुमकी अपनी कार्यकुशलता से सभी कार्य समय पर पूरे कर लेती थी चाहे वह क्लास रूम की सीटें साफ करना हो या फिर स्कूल के ब्लैक बोर्ड को सुबह साफ करना.... शिक्षकों की एक पुकार पर वह तुरंत प्रकट हो जाती थी और उनके बताए कार्य को तत्परता से पूर्ण करने की कोशिश करती थी।

जब वह अपनी स्थानीय बोली बोलती तो लगता कानों में मिश्री सी घुल जाती थी... छोटे-छोटे बच्चों को देखती उसकी सूनी आंखें उसका दर्द बताने को काफी थी... उसको देख कर मुझे उसके पति पर बहुत क्रोध आता कि वह बदनसीब ही रहा होगा जो इतनी गुणी और प्यारी लड़की को अपने जीवन से निकाल बैठा।

सुबह ब्लैक बोर्ड साफ करके उसका दिनांक डाल देना मुझे बहुत भाता... थोड़ा बहुत अक्षर ज्ञान ही था उसे ...एक बार पूछने पर उसने बताया था कि वह पाँचवीं तक ही पढ़ पाई थी तब उसका ब्याह कर दिया गया था।

कई बार अन्य शिक्षक उसकी स्थानीय बोली न समझ पाने पर उस पर झल्ला जाते और यहां तक कह देते, "पता नहीं उसे यहां पर रख किसने लिया" तो वह सहम कर चुप हो जाती थी।

धीरे-धीरे अब वह खड़ी हिंदी बोलना भी सीख रही थी। मुझे उसके सीखने के जज्बे ने बहुत प्रभावित किया था । उसने अपने मृदु व्यवहार से मेरे हृदय में एक अलग स्थान बना लिया था।

आज मुझे तनिष्क का उदास चेहरा बता रहा था कि झुमकी के मन में क्या बीतती होगी।

बस से उतरते ही मैंने एक बार फिर तनिष्का के गाल थपथपाकर उससे कहा ,"बेटा परेशान होने की जरूरत नहीं है" फिर मैं घड़ी देखने लगी । आज विद्यालय समय पर आना बेहद आवश्यक था क्योंकि आज मासिक 'पेरेंट्स टीचर मीटिंग' भी थी... संस्कृत की शिक्षिका होने के साथ मैं जिस कक्षा की कक्षाध्यापिका थी उस कक्षा के बच्चों के अभिभावकों से मिलकर मुझे उनकी मासिक रिपोर्ट देनी थी और बच्चों की समस्याओं पर चर्चा करनी थी। साथ ही साथ उन्हें आने वाले गणतंत्र दिवस की तैयारियां के विषय में भी बताना था।

अभिभावकों के साथ मेरी मीटिंग अच्छी चल ही रही थी कि अचानक मुझे अपनी क्लास के दरवाजे से कुछ शोर की आवाज आने लगी। मैंने तुरंत जाकर देखा एक भद्र महिला बुरी तरह से झुमकी को डांट रही थी और झुमकी हाथ में चाय की ट्रे पकड़े सिर झुकाए चुपचाप सुन रही थी।

महिला के बोलने के तरीके से साफ पता चलता था कि महिला धाराप्रवाह अंग्रेजी में झुमकी को काफी बुरा भला कह रही थी ।

जब मैंने बात जानने की कोशिश करी तो मुझे पता चला कि वह झुमकी से अपने बच्चे की क्लासरूम पूछने की डिटेल्स ले रही थीं और झुमकी के ना बताए जाने पर वह गुस्सा हो उठी थीं।

जब मैंने झुमकी से पूछा तो वह धीरे से बोल पड़ी," मैडम दीदी मैं आपकी क्लास में चाय ले आवत रही पर ई दीदी का बोली हमको कुछ समझ में नाही आया" झुमकी घबराहट में अपनी स्थानीय भाषा बोल रही थी।

मैं समझ गई थी कि इन भद्र महिला ने झुमकी से धारा प्रवाह अंग्रेजी में ही सारी जानकारी लेनी चाही थी जिसे समझने में झुमकी असफल रही थी और इस कारण महिला का गुस्सा चरम पर था।

मैंने महिला को शांत कराते हुए कहा," आप को समझना चाहिए कि जब यह अंग्रेजी नहीं बोल पा रही है तो इसे अंग्रेजी नहीं आती होगी... आपको इससे हिंदी में बात करनी चाहिए थी... इसे इंग्लिश समझ नहीं आती"

" अगर इसे इंग्लिश समझ में नहीं आती यह इसकी प्रॉब्लम है और क्यों ना बोलूं मैं इंग्लिश... यह मेरे बोलने का तरीका है और क्यों नहीं आती इस आया को इंग्लिश...इफ शी डोन्ट नो इंग्लिश दैन व्हाट इस शी डूइंग हियर??...बीइंग ए रेपुटेटड स्कूल दिस स्कूल शुडन्ट हैव सच टाइप ऑफ लेबर्स... आपने देखा नहीं किस तरह से बात कर रही है ,हमारे बच्चे जब यह लैंग्वेज सुनेंगे तो उन पर क्या इंपैक्ट पड़ेगा... मैं इसकी कंप्लेंट प्रिंसीपल मैडम से करूंगी" वह महिला गुस्से में पैर पटकती वहां से चली गई थी।

उन महिला का बच्चा मेरी कक्षा का विद्यार्थी था लेकिन उन्होंने अपने बच्चे की जानकारी लेने की बजाय झुमकी की शिकायत करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाई।

झुमकी आंखों में आंसू लिए मुझे एक कप चाय देकर सिर झुका कर वहां से चली गई थी... बाद में मुझे पता चला कि उसे प्रिंसिपल ऑफिस बुलाया गया था और एक वार्निंग देकर छोड़ दिया गया था।

मैं चुप थी... मैंने सोच लिया था मुझे क्या करना था।

रात्रि में घर सुबह की घटना के लिए एक बार फिर मुझे मिलिंद की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। उनका कहना था ,"हिन्दी की पीपनी बजाने पर तुम्हारा बेटा कोई मेडल नहीं पा लेगा...समय रहते यह जितनी जल्दी अपनी ल्वगैज़ संभाल ले उतना ज्यादा यह जीवन में प्रोगैस कर पाएगा।"

मैंने उस समय उनसे बहस करना उचित नहीं समझा...हिन्दी को अपना स्थान, अपनी अनिवार्यता बताने की कोई आवश्यकता ही नहीं समय स्वयं हिन्दी का महत्व बता ही देगा।

अगले दिन मुझे प्रिंसीपल ऑफिस बुलाया गया...मैं मुस्कुरा उठी..सुबह से मैं इसी बात का तो इंतजार कर रही थी।

मैं तत्काल आफिस की ओर चल दी।

प्रिंसीपल मैम के ठीक सामने वही कल बहस करने वाली भद्र महिला बैठी थीं। मुझे देखते ही उनकी त्योरियां चढ़ गयीं।

उनके हाथ में डायरी और उस पर मेरा हस्तलिखित नोटिस एक बार फिर मेरे होंठों पर मुस्कान ले आए थे।

मेरे सामने वह प्रिंसिपल मैडम के आगे वह डायरी रखकर बोली,"जस्ट सी दिस नोटिस मैम...इज़ इट द वे टू सैन्ड नोटिस...संस्कृत में ... संस्कृत में नोटिस लिख कर भेजा है इन्होंने"

"मैम क्या गलत है ....यह मेरा तरीका है बात करने का...संस्कृत असंवैधानिक नहीं है इसे भी आफिशियल दर्जा मिला है और तभी तो यह हमारे विद्यालय में भी पढ़ाई जाती है... जब संस्कृत की अध्यापिका हूं तो नोटिस भी संस्कृत में ही भेजूंगी" मैंने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा।

"लेकिन मुझे संस्कृत समझ नहीं आती" उस महिला ने कंधे उचकाते हुए कहा।

"तो फिर यह आपकी प्रॉब्लम है इसमें मैं क्या कर सकती हूं" मेरे कहने के साथ अब प्रिसिंपल मैडम के होठों पर भी हंसी आ गई थी।

मेरे कहते ही उस महिला को अपनी गलती का एहसास हो गया था जो उसने कल करी थी...वह मानने लगीं कि अगर किसी व्यक्ति को कोई भाषा नहीं आती तो उसका मतलब यह नहीं कि वह योग्य नहीं।

मैंने उनसे कहा, "अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है किसी के विद्वान होने का प्रमाण नहीं है....आशा है आप भविष्य में यह बात ध्यान रखेंगी। "

इस बार महिला जाते-जाते झुमकी से मिलकर गईं... एक तरह से उन्होंने अपने कल के व्यवहार के लिए उससे क्षमा भी मांगी थी...मैंने देखा शर्माती झुमकी का चेहरा प्रसन्नता की आद्रता से नम था।

हफ्ते भर बात गणतन्त्र दिवस आया...आज जिलाधिकारी भी इस प्रोग्राम में बतौर चीफ गेस्ट बुलाए गए थे ...मिलिंद भी आज अन्य अभिभावकों की भांति विद्यालय के रंगारंग कार्यक्रम में शामिल होने आए थे...उनके आज आने का कारण यह भी था कि तनिष्क आज स्वयं एक इवेंट में भाग लेने वाला था।

तनिष्क द्वारा बहुत मधुर स्वर में गाया राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्'

पूरे कार्यक्रम की रौनक चुरा ले गया...तनिष्क के गीत की समाप्ति पर पांच मिनट बजती तालियां और जिलाधिकारी महोदय द्वारा तनिष्क की पीठ थपथपा कर की गयी प्रशंसा मिलिंद का सीना गर्व से चौड़ा करा गयी थी।

घर लौटते हुए पूरे रास्ते मिलिंद तनिष्क की प्रशंसा करते रहे और पूर्वी उनका साथ देती रही और मैं ...मैं तो मुस्कुरा रही थी हिन्दी की पीपनी जो बज गयी थी।



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