Arunima Thakur

Inspirational

4.9  

Arunima Thakur

Inspirational

कलयुग की मंथरा

कलयुग की मंथरा

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उस दिन मानसी कैंटीन में एक महिला को देखकर चौंक गई । चेहरा बहुत ज्यादा पहचाना लग रहा था। शायद यही हाल उस अजनबी महिला का भी था। अचानक से मानसी को याद आया और वह उसके पास जाकर बोली, "हाय क्या आप.... आपका नाम शीतल है"?


वह महिला उसे देखते हुए बोली, "और तुम मानसी ना"?


वे दोनों बचपन की सहपाठिन थी। शीतल मानसी को देखती हुई बोली, "पर तू यहाँ ? इस ऑफिस में ? तेरे तो बहुत बड़े बड़े ख्वाब थे ना ? तू तो आईएएस बनने का सोचती थी" ?


मानसी थोड़ा सकुचा कर बोली, "हाँ सपनों में और हकीकत में अंतर होता है। पिताजी को बेटियों के हाथ पीले करने की जल्दी थी तो उन्होंने मेरी पढ़ाई को महत्त्व ही नहीं दिया। शुक्रगुजार हूँ अपनी सासू माँ की कि उन्होंने शादी के बाद पढ़ने और नौकरी करने की अनुमति दी"।


"अरे अनुमति क्या देना ? कमा रही हो तो उनके घर को ही भर रही हो ना। कौन सा खुद के पर्स में रख लेती हो", शीतल बालों को पीछे झटकते हुए बोली। 


"नहीं नहीं मेरी सासु माँ ऐसी नहीं है । वह मेरी कमाई का एक पैसा भी नहीं लेती है। अच्छा चल अब तू भी यहीं पर नौकरी कर रही है तो किसी दिन मिलकर बैठते हैं और बहुत सारी बातें करते हैं", ऐसा कह मानसी कैंटीन से अपने डिपार्टमेंट में वापस आ गयी।


 दो-तीन दिन के बाद एक दिन लंच टाइम में शीतल मानसी को ढूंढती हुई उसके डिपार्टमेंट में आई और बोली, "चल न कैंटीन में जाकर खाना खाते हैं"। 


शीतल को देखकर मानसी खुश हो गयी। बचपन मे भले ही वे दोस्त नही थे पर साथ पढ़ने वालों को देखकर, उनसे आने वाली अपने शहर, स्कूल, बचपन की सोंधी खुशबू से अपनेपन का एहसास तो होता ही है। मानसी बोली, "मैं तो टिफिन लाई हूँ। आजा तू भी, साथ में ही खा लेते हैं"।

टिफिन में रखे गरमा-गरम उत्तपम, चटनी, सांभर को देखकर तो शीतल बोल पड़ी,"हे भगवान ! यह सब बनाने के लिए तुझे कितनी सुबह उठना पड़ा होगा ? मुझसे तो यह सब होता ही नही है। कितने दिन हो गए हैं ऐसा घर का गर्म नाश्ता किये हुए। मैं तो कुछ बनाती ही नहीं हूँ। सुबह काम करके आओ। शाम को जाकर फिर काम करो। ना बाबा मुझसे तो नही हो पाता । तू कैसे सुबह सुबह इतना सब गर्म नाश्ता बना लेती है"? 


मानसी ने बोला, "मैंने नहीं मेरी सासू माँ ने बनाया है। सुबह का नाश्ता मुझे वही बना कर देती है"।


 यह सुन कर शीतल की तो आँखे चौड़ी हो गई पर फिर मुँह बना कर बोली, "अरे बिचारी ! तुम सासु के साथ रहती हो ? तब तो तुम्हें बहुत काम करना पड़ता होगा ? और अपने मन का कुछ कर भी नहीं पाती होगी। ना अपने मन का खाना, ना पहनना। हर वक्त सास से दबकर रहना"।


 मानसी उसे नकारते हुए बोली, "नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मेरी सासूमाँ तो मुझे शाम को भी रसोई में जाने नही देती है। कहतीं है थक कर आई हो जाओ पहले थोड़ा समय मानवी (बेटी) के साथ खेलो। थोड़ा समय मानस (पति) के साथ बिताओ। अभी मेरे हाथ पैर चल रहे है और तुम्हारी खेलने खाने की उम्र है । काम करने को ज़िन्दगी पड़ी है। सच में मेरी सासू माँ तो बहुत अच्छी है। सच कहूँ तो मम्मी से भी अच्छी। यहाँ तक कि उन्होंने तो शादी में दहेज भी नहीं लिया था"।


"हे भगवान मानसी तू कहां फंस गयी ? तेरी शादी को कितना समय हुआ है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि तेरे पति में, खानदान में कुछ खोट हो?", शीतल चिंतित होते हुए बोली।


 मानसी थोड़ा झुंझला कर बोली, "कैसा खोट ? इतने सालों से साथ में हूँ। मानव तो इतने अच्छे है कि सिगरेट, शराब तो दूर एक लौंग तक का व्यसन नही करते है। मालूम है , मेरे ससुराल में कोई भी माँस नही खाता है। मम्मी पापा ने भी शादी से पहले जब मैंने एतराज़ किया तो बोला, "तो क्या हुआ, माँस खाना कौन बड़ी अच्छी बात है। तुम भी मत खाना"। पर सासु माँ ने कहा, "तुम्हे माँस पसन्द है तो बाहर जाकर खा सकती हो। घर पर ही बनाना हो तो ऊपर छत वाले चौके में मैं सारा इंतज़ाम करवा दूँगी"।


"हाँ, तो इसे अच्छी नही समझदार सास कहते है। उन्हें मालूम था कि को मना करेंगी तो शायद तुम नही मानोगी । ऐसे उनके एहसान के नीचे दब कर शायद खाना छोड़ दोगी। सच कह रही हूँ ना मैं। अब तुनें खाना छोड़ दिया है न", शीतल ने गंभीरता से कहा।


मानसी विचार में पड़ गयी। क्या ऐसा हो सकता है ? 


मानसी को विचारों में खोया देख कर शीतल फिर बोली,"तू आज भी बहुत भोली है। ससुराल में सब तेरे भोलेपन का फायदा उठाते होंगे। अच्छा बता जीजू की सैलरी वो किसे देते है"। 


मानसी सोचते हुए बोली, "खुद रखते होंगे या माँ को देते होंगे, क्या पता, मैंने कभी जानने की कोशिश ही नही की। वैसे भी सारा घर माँ सम्भालती है और मानव घर के बड़े बेटे है तो उनकी तो ज़िम्मेदारी बनती है"।


मेरी भोली सखी अच्छा हुआ मैं तुझसे मिली। नही तो सब तुझे लूट लेते। अरे पागल इसीलिए तेरी सासूमाँ तुझे रसोई में जाने नही देती। नही तो सोच ऐसी कौन सी सास होगी जो बहु के होते हुए भी काम करना चाहेगी। मैंने तो शादी के दो महीने बाद से संजय की सैलरी का हिसाब रखना शुरू कर दिया था। अरे भाई इसमें शर्म कैसी पति है मेरा। और छह महीने बाद ही बोल दिया था कि मेरे घर मे तुम्हारे माता पिता की कोई जगह नही है"।


मानसी आश्चर्य से शीतल को देखते हुए,"तुम्हारे घर..? अरे वह घर उनके बेटे का भी तो था"।


शीतल बोली, "हुँह , शादी के पहले तक, शादी के बाद नही। मालूम है बहुत इमोशनल ब्लैक मेल कर रहे थे संजय को। तो मैंने एक दिन अपने सास ससुर से बोल दिया, "या तो मुझे चैन से अकेले रहने दो। नही तो तैयार हो जाओ जेल जाने के लिए। जहाँ एक बार दहेज उत्पीड़न का केस किया फिर तुम्हारी और तुम्हारे बेटे की ज़िंदगी अदालत का चक्कर काटते ही बीतेगी"। 


मानसी ने कुछ आश्चर्य कुछ अनमनेपन से अपना टिफिन खत्म किया। आज उसे टिफिन के खाने में वो अपनेपन प्यार का स्वाद नही आ रहा था। क्योंकि शीतल कटुता का नमक जो मिला गयी थी।


आफिस खत्म होने पर मानसी घर पहुँची तो रोज की तरह सासूमाँ ने मुस्कुरा कर दरवाजा खोलते हुए हाल चाल पूछा। आज मानसी को वह मुस्कुराहट बनावटी लग रही थी। पर उसने तुरंत अपने मन में आये नकारात्मक विचारों को झटक दिया। पर आज उसने मानवी को गले से नही लगाया, उसकी दिनभर की बातें नही सुनी। वह हाथ मुँह धोकर सीधा रसोई में गयी। माँ चाय बनाने जा रही थी। मानसी बोली, "रहने दीजिए माँ, चाय मैं बनाती हूँ। क्योकि मानसी के दिमाग मे शीतल की बातें गूँज रही थी। 


एक ही ऑफिस में होने कारण शीतल अक्सर मानसी से मिलती रहती और हमेशा ससुराल वालों के बारे में उल्टी-सीधी बातें कर मानसी के मन को उनके खिलाफ भरने की कोशिश करती। जिसमें कि वह सफल भी हो रही थी। अब मानसी भी सोचने लगी थी कि हाँ साथ में रहने पर कितना मुश्किल है। सारा पैसा खर्च हो जाता है, सासूमाँ पर, उनकी दवाइयों पर, रिश्तेदारों पर। अब जाने अनजाने मानसी की आँखों मे एक छोटा सा ख्वाब पलने लगा था, एक छोटे से घर का। जहां पर सिर्फ मानसी, मानव और मानवी होंगे और कोई नहीं।


पर प्रकृति को उसका यह सपना मंजूर नही था । इसलिए आँखों मे घर के सपने के साथ साथ, उसकी कोख में भी एक सपना पलने लगा था। शीतल की बातों के प्रभाव में आकर मानसी अब बहुत अलग व्यवहार करने लगी थी। वह कई बार दबी जुबान से अलग रहने की बात भी मानव से कर चुकी थी। मानव उसे प्यार से समझता। पर उसे सबका प्यार दिखावा लगता। सब उसके व्यवहार का परिवर्तन महसूस कर रहे थे पर सबको लगता कि यह चिड़चिड़ापन उसकी गर्भावस्था के कारण है। 


एक दिन मानव की माँ मानव से बोली, "देख उसका आफिस है। उसे छुट्टी नही मिल सकती । नही तो मैं उसे मन बदलने के लिए मायके भेज देती"। 


मानव बोला, "हाँ माँ आप ठीक कह रही हो। वह बहुत चिड़चिड़ी हो गयी है। मैं उसके आफिस में बात करूँ क्या" ? 


"नही बेटा ! यह निर्णय उसको ही लेने दो। अगर वह अभी छुट्टी ले लेगी तो बाद में ...। ऐसा करते है उसके मम्मी पापा या बहन को कुछ दिनों के लिए यहाँ बुला लेते है। शायद उसे अच्छा लगे"।


"हाँ माँ , यह भी ठीक रहेगा। मैं अभी मम्मी जी बात करता हूँ" ।


कुछ दिन बाद मानसी के मम्मी पापा तो नहीं आ पाए पर छोटी बहन तापसी आ गयी। अब दोनों बहनें आपस में गप्पे मारती, कभी कभी सासुमाँ भी उनके ठहाकों में सम्मिलित हो जाती। एक दिन तापसी बोली, "मानना पड़ेगा, दीदी तुम बहुत भाग्यशाली हो जो इतनी अच्छी सासूमाँ मिली है"।


मानसी मुँह बनाकर बोली, "तू भी ना इनके बहकावे में आ गयी। कोई अच्छी वच्छी नही है। सब नाटक है। बेटे को काबू में करके रखने के लिए। इसीलिए तो दहेज नही लिया कि बहु एहसान तले दबी रहे"।


इतना कह कर मानसी तो वहॉं से हट गई। पर तापसी सोचने लगी इतने सालों से सासूमाँ की, ससुराल की, जीजू की इतनी तारीफे करने वाली मेरी दीदी को यह क्या हो गया ? यह सारी बाते जो उसने कही वह उसकी नही लगती है। तापसी ने मन मे कुछ सोचा। वह छोटी जरूर थी पर समझदार (चालाक) थी। उसने सोचा अभी अगर वह मानसी को कुछ समझाने गयी तो मानसी उसे भी अपना दुश्मन समझ बैठेगी। पहले पता लगाना पड़ेगा कि मानसी को ससुराल वालों के खिलाफ भड़का कौन रहा है।


रात तो जब तीनों मतलब मानसी तापसी और मानवी सोने जा रहे थे (हाँ भाई साली साहिबा आयीं हैं तो मानव दूसरे कमरे में सोता है) तो मानवी के कहानी सुनाने की ज़िद पर तापसी बोली, "चलो आज मैं तुम्हे कहानी सुनाती हूँ"। फिर मानसी को देखते हुए पूछा, "दीदू क्या आपने मानवी को वो धान और सत्तू वाली कहानी सुनाई है, जो हमें मासी सुनाती थी"। 


मानसी किंचित रोष से बोली,"मैंने कोई कहानी नही सुनाई। ये तो इसकी दादी ने ही कहानी सुना सुना कर इसकी आदते खराब की है"।


तापसी बहुत कुछ कहना चाहती थी पर चुप रह गयी। गर्म तवे पर पानी डालने से फायदा नही पहले आग बुझानी पड़ेगी। वो मानवी को अपनी तरफ खींच कर बाँहो में समेट कर कहानी सुनाने लगी।


मालूम है गुड़िया बहुत समय पहले की बात है। तब ना तो यातायात के साधन थे ना ही आजकल की तरह दुकानें और होटल। तब लोग पैदल ही यात्रा करते थे क्योकि घोड़ा आदि जानवर भी सिर्फ अमीरों के पास होते थे। तो लोग यात्रा पर जाते समय थोड़ा खाना या दूर की यात्रा के लिए सत्तू बाँध लेते थे। मासी सत्तू मुझे अच्छा लगता है दादी गुड़ में घोल कर देती है आम के अचार के साथ, मानवी सत्तू की मिठास में खो गयी।


हाँ गुड़िया सत्तू नमक के साथ भी खा सकते है और गुड़ के साथ भी और यह पौष्टिक भी होता है। 


"और बनाना भी आसान होता है , है ना मासी"


तापसी ने मानवी को चूमते हुए कहा अरे वाह ! मेरी गुड़िया तो बहुत समझदार है। 


हाँ तो ऐसे ही किसी सफर पर दो मुसाफिर एक कुएँ पर मिलें। एक के पास सत्तू था एक के पास धान। 


मासी धान मतलब जिसको कूट कर चावल निकलते है वह, मानवी आँखे बड़ी करते हुए बोली।


तापसी बोली, "हा वही मेरी गुड़िया"। अब मानसी भी करवट बदल कर उन लोगों की बातों और कहानी का आनन्द ले रही थी। भाई जो भी हो बचपन की कहानियां हर उम्र में मन को गुदगुदा जाती है।


तापसी ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए बोला, 

जिस राहगीर के पास धान था उसने देखा सामने वाले के पास तो सत्तू है। उसने चालाकी करते हुए कहा, "सत्तू .....लपे...ट्टू.....कब ....साना..... कब ....खा य......कब ....चला।

धान बिचारा कूटा खाय चला"।

ऐसा उसने तीन चार बार कहा। तो जिसके पास सत्तू था वो उसके कहने में आ गया। उसको भी लगा 

"सत्तू .....लपे...ट्टू.....कब ....साना..... कब ....खा य......कब ....चला।

धान बिचारा कूटा खाय चला"।

उसने विनती करते हुए धान वाले राहगीर से उसका धान ले लिया और अपना सत्तू दे दिया।

धान वाले ने भी खूब एहसान जताते हुए अपना धान उसके सत्तू से बदल लिया। और अपनी चालाकी पर मुस्कुराते हुए वहाँ से चला गया। थोड़ी दूर जाकर उसने सत्तू साना खाया और अपनी मंजिल की ओर बढ़ गया। वही धान पकड़े दूसरा राहगीर अभी तक समझ नही पाया था कि दूसरा राहगीर उसे ठग कर चला गया है।


मानवी बोली, मासी वह सत्तू वाला राहगीर बिल्कुल बुद्धू था क्या ? वह धान को कूट कर कब चावल निकलेगा, कब पकाएगा तो कब खायेगा ?


तापसी बोली, "बुद्धू तो नही था। पर बुद्धू ही कहलायेगा अगर कोई ऐसे किसी की बातों में आ जायेगा।


मानवी बोली, "मासी ऐसा नही होता है। कोई भी इतना बुद्धू नही होता कि बिना सोचे विचारें किसी की बातों में आ जाएं।


तापसी बोली,"गुड़िया अभी आप छोटे हो। दुनियाँ ऐसे लोगों से भरी पड़ी है। आप समझ भी नही पाते कब ये अपनी मीठी मीठी बातों से आपके दिमाग पर काबू कर लेते है"। फिर मानवी की ओर देखकर बोली, "दीदू जग रहे हो या सो गये हो। वो गाना याद है जो मम्मी बचपन मे सुनाती थी। इतना कह कर वो गाने लगी, "मीठी मीठी बातों से बचना जरा। दुनियाँ के लोगों में है जादू भरा"।


मानवी भी साथ में गाने लगी। मासी पूरा गाना सुनाओ न। नही गुड़िया, अभी सो जाओ, सुबह स्कूल जाना है ना। पूरा गाना कल स्कूल से आकर नानी से फ़ोन पर सुन लेना।


तापसी और मानवी तो सो गयीं पर मानसी की आँखों में नींद नही थी। वह मानो बचपन मे पहुँच गयी थी उसके कानों में बार बार सिर्फ यही गाना गूँज रहा था, मीठी मीठी बातों से बचना जरा, दुनिया के लोगों में है जादू भरा।


दूसरे दिन शाम को जब मानसी आफिस से घर आई तो चाय वगैरह पीने के बाद तापसी बोली,"दीदी आप मुझे कही घूमने नही ले गए इस बार"। 


मानसी बोली,"इतने सालों से तो हर बार घूमती है। अब कुछ बचा भी है तेरे लिए। ठीक है कल छूट्टी है कल मॉल चलेंगे" । 


क्या दीदू , मॉल तो मैं वहाँ पर भी घूम लेती हूँ। आपने बताया था न आपकी बचपन की कोई दोस्त यहाँ आपको मिली है। वो कई बार यहाँ घर पर भी आ चुकी है। चलो न मुझे उससे मिलवाओ ना", तापसी ठुनकते हुए लाड़ से बोली।


"ठीक है तो उसे कल घर पर बुला लेती हूँ", मानसी खुशी से बोली।


तापसी बोली, "दीदू मुझे घूमना है। आप उनको क्यो बुलाओगी ? चलो न हम जाकर उनको सरप्राइज देते हैं"।


मानसी बोली, "हाँ यह भी ठीक रहेगा । वैसे भी वह कई बार मुझे अपने घर आने के लिए कह चुकी है। उसे अच्छा लगेगा"।


वास्तव में तापसी ने कुछ दिनों में विचार करके यही निष्कर्ष निकाला था कि जबसे दीदू ने अपनी सहेली के बारे में बताया था उसके बाद से दीदू का व्यवहार बदल रहा है।


दूसरे दिन दोपहर को खाना खाने के बाद मानवी मानसी और तापसी तीनों ही कार से शीतल के घर के लिये निकल गए। रास्ते मे उन्होंने शीतल की बेटी के लिए उपहार और चॉकलेट भी ली थी। शीतल के घर पहुँचते उन्हें लगभग तीन बजे गए थे। मानसी थोड़ा नाराज़ हो रही थी कि मुझे शीतल को फ़ोन करके बताने तो दे कि हम आ रहें है। कहीं वो घर पर नहीं हुई तो ?


तो क्या हम इंतजार कर लेंगे। पर सोचो उनको आपका सरप्राइज कितना अच्छा लगेगा।


इस बात पर मानसी मुस्कुरा दी।


शीतल के फ्लेट के बाहर पहुँच कर जब उन्होंने घंटी बजाई तो अंदर से आवाज आई, "श्वेता दरवाजे पर देख कौन है" ?


"मम्मा मैं टी वी देख रही हूँ। आप खुद देख लो ना"। (मानसी का मन किया कि वह मानवी के कान ढक दे।)


बड़बड़ करती हुई शीतल की आवाज बाहर तक आ रही थी। दरवाजा खोलते हुए भी वह कुछ बोलने जा रही थी पर मानसी को देख कर जबरन मुस्कुराते हुए बोली,"अरे तुम, फ़ोन कर दिया होता तो मैं आ जाती। ऐसी हालत में तुम क्यो परेशान हुईं"।

उसकी बातों से खुश होकर, मानसी बोली, तू मेरा कितना ख्याल रखती है। पर ये तापसी मेरी छोटी बहन आयी हुई है ना। यह तुमसे मिलना चाहती थी। तो बस तुम्हे सरप्राइज करने के लिए फ़ोन नही किया।


तापसी बोली, शीतल दी, डॉक्टर ने दीदी को घूमने फिरने को बोला है। वैसे क्या आप हमें अंदर नही बुलायेगी ?


शीतल अचकचा कर एक ओर हटते हुए बोली, आओ न, अंदर आओ न। फिर अपने अव्यवस्थित घर पर नज़र डालते हुए बोली, "क्या करूँ, कामकाजी हूँ न तो घर को समय ही नही दे पाती। रविवार का एक दिन मिलता है पति और बेटी के साथ बिताने के लिए उनमे भी घर की साफ सफाई करो तो यह नाराज होते है कि तुम्हारे पास तो मेरे लिए समय ही नही है"।


"पर मम्मा पापा तो सुबह गुस्सा में कह रहे थे कि ना जाने कैसी सुअर से पाला पड़ा है। मुझे इस गटर में नही रहना"।


चुप कर, पता नही क्या बेकार की टीवी की बाते सुन कर बोलती रहती है। चल आँटी को हेलो बोल और अपने कमरे में जा। सुन मानवी को भी ले जा इसके साथ खेल"।


मानसी बोली, "अरे तो कोई बात नही । हम तुझसे मिलने आये है तेरे घर से नही"।


तब से मानवी ने आगे बढ़कर शीतल के पैर छू लिए। शीतल फिर नाक सिकोड़ती हुई बोली, हमारी श्वेता तो इंग्लिश मीडियम से पढ़ी है उसे यह सब मैंने नही सिखाया।


"श्वेता से हेलो टू आँटी"(श्वेता आँटी को हेलो बोलो)। पर श्वेता टस से मस ना हुई। 


आखिर मानसी बोली, "हेलो श्वेता मैं तुम्हारी मम्मा की दोस्त हूँ । ये देखो तुम्हारे लिए गिफ्ट (उपहार) लायी हूँ। 


एकदम से बंदर की तरह उछलते हुए। मानसी के हाथों से उपहार खींच कर वह अंदर भाग गई। शीतल चिल्लाती रह गयी, "से थैंक यू टू आँटी (आँटी को धन्यवाद बोलो)। टेक दिस गर्ल विथ यू। शो हर योर टॉयज (इस लड़की को अपने साथ ले जाओ, अपने खिलौने दिखाओ)


"नो, आई डोन्ट वांट टू शेयर "(नही मुझे साझा नही करने)।


शीतल बहुत घमंड से बोली,"अकेली है ना बहुत लाड़ प्यार से पाला है। इसलिए किसी की बात सुनती ही नही"। 


थोड़ी देर वहाँ बैठने के बाद ना जाने क्यों मानसी का मन उचटने लगा। वह शीतल से बहाना बना कर कि उन्हें डॉक्टर के पास भी जाना है रेगुलर चेकअप के लिए वह वहाँ से बगैर कुछ चाय काफी , पानी के उठ गई। शीतल ने रोकने की कोशिश भी नही की।


कार तापसी ने एक पार्क के आगे रोक दी। मानसी ने कुछ भी सवाल नही पूछा। वह अपने भीतर के सवालों से जूझ रही थी। मानवी तो पार्क में आ कर खुश हो गई। तापसी ने ठंडे पानी की एक बोतल और तीन आइसक्रीम ली। वह दोनों वही पड़ी बेंच पर बैठ कर खाने लगी। मानवी खा कर झूला झूलने चली गयी।


मानसी ने दूर क्षितिज को देखते हुए बोला,"तू जानबूझकर मुझे शीतल के घर ले गयी थी न"।


तापसी आइसक्रीम खाते हुए हैरानी से उसे देखती हुई बोली, "हाँ तो मैं ही तो आपको आने के लिए बोली थी। क्या हुआ..क्या आपको उनके घर आना अच्छा नही लगा"।


"नही" मानसी सिर हिलाते हुए बोली। शीतल ने मुझे जो तस्वीर दिखाई थी अकेले घर की, मौज मस्ती की, वह तस्वीर इस घर से बिल्कुल अलग है"। 


दीदू यह आपकी दोस्त नही कलयुग की मंथरा है। यह ना इतनी महीन काटते हैं कि सामने वाला सम्भल भी नही पाता। अभी कैसे वह रोना रो रही थी अकेले रहने का और सारा काम खुद ना कर पाने का। और कैसे आपको सिखाना शुरू कर दिया था कि संयुक्त परिवार में कितनी मुश्किलें हैं ।


हाँ तापसी मैं उसके बहकावे में आ गयी थी। यह मेरा घर जहाँ मेरी सासूमाँ ने मुझे राजकुमारी का दर्जा दिया। तेरे जीजू जिन्होंने मुझे रानी बनाकर रखा। यह मेरा खुशियों से भरा हँसता खेलता साम्राज्य जिसको मैं उसके बहकावे में आकर अपने हाथों से आग लगाने जा रही थी।


मानसी रोते हुए बोली, "छोटी क्या मिल जाता उस शीतल को मेरा, साम्राज्य नष्ट करके। मंथरा को तो फिर भी लालच था कि वह राजमाता की नौकरानी कहलाएगी। पर शीतल उसे किस बात का लालच था । मैंने तो कभी उसका बुरा नही चाहा। भगवान का शुक्र है कि तू आ गयी और तुनें मुझे उसके चंगुल से निकाल लिया"। 


दीदू मैंने कुछ नही किया। आपको खुद से इस बात का एहसास हुआ। और अब वचन दो अब किसी की मीठी बनावटी बातों में नही आओगी।


थोड़ी देर बाद मानसी अपनी सासूमाँ के गले से लगकर रो रही थी। उसने सारी बातें अपनी सासूमाँ को बता दी थी। मानसी ने मानव से भी अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगी। वह रोते हुए उन दोनों से बोली अब आप दोनों मुझसे उतना प्यार नही करोगे न। सासूमाँ उसे गले लगाते हुए बोली तू हमेशा मेरी बेटी थी और रहेगी। मानव बोला, "और मैं...

"तुम दोनों मेरे कलेजे का टुकड़ा हो"।


"और मैं दादी" ?


"तुम तीनों मेरे कलेजे का टुकड़ा हो"।


"और मैं" तापसी ने पूछा।


"तू तो परी है जिसने एक दुष्ट चुड़ैल के हाथों से मेरी खुशियों का साम्राज्य उजडने से बचा लिया"।


आपके आस पास भी यह मंथराये होंगी। आप भी अपने खुशियों के साम्राज्य की पहरेदारी ध्यान से करना और गुनगुनाते रहिएगा, मीठी मीठी बातों से बचना जरा...


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