Arunima Thakur

Romance

5.0  

Arunima Thakur

Romance

अ गर्ल विथ नो नेम

अ गर्ल विथ नो नेम

9 mins
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"मम्मा ये देखिए कितना अजीब सा कैप्शन दिया है, "वन्स आई मेट ए बुयूटीफुल गर्ल विथ नो नेम" इज एनिवन नोज हर ? ("एक बार मैं मिला था बिना नाम की सुंदर लड़की से" क्या आपमें से कोई उसे जानता है ?)। यह सुन कर कुछ पुरानी यादें कुलबुलाई तो...। फिर जैसे बहुत सारी यादों को सिर को झटक कर दूर कर देती हूँ, वैसे ही सिर को झटक दिया और बोली, "तो मुझे क्यो बता रही हो ? तुम्हारे पास सारा दिन मोबाईल पर सर्फिंग करने का बहुत समय है।"


बहू मुस्कुरा दी ।" मम्मा मेरा काम ही वही है। वैसे इसमें जो तस्वीर डाली गई है वो आपकी पुरानी तस्वीरों से मिलती है। जैसे लगता है आपकी बचपन की तस्वीर हो।" 


"और तुनें तो मुझे बचपन मे देख रखा है ना।"


"अरे मम्मा! उस दिन जब आप अपनी अलमारी सहेज रही थी, ये सारे पुराने एलबम उठा ले गए थे। तभी हमने वो सारी फोटो देखी थी।" 


"हमारे समय मे फ़ोटो खींचना आज जितना आसान थोड़ी था। सौ रुपये की रील आती थी ढाई सौ की धुलवाई। बड़े जतन से सोच विचार कर ही फ़ोटो खींचते थे", मैं यादों में खोते हुए बोली। 


"बस सौ रुपये की", बहू की आवाज मुझे यादों में जाने से पहले ही लौटा लायी। 


"बेटा तब सौ रुपये बस नही होते थे। सौ रुपये सौ रुपये होते थे। मैंने आवाज में उतार चढ़ाव लाकर कहा। फिर उदासीनता से कहा, "ला दिखा तो, कहते है एक जैसे सात चेहरे होते है।" 


यादों को सिर से झटकने के बाद भी वह याद छोटी बच्ची सा ज़िद्दीया गयी थी कि तुम ही हो , तुम ही हो और मन भी कह रहा था देखूँ इतने सालों बाद वह कैसा दिखता है। हाँ भाई उसने आखिर अपने एकाउंट से ही फोटो अपलोड की होगी। उसकी भी बहुत सारी फोटो होंगी।


मैं बहू के हाथ से मोबाइल लेकर देखने लगी। हाँ वही फोटो थी। मैं ही थी सुबह उगते सूरज की रोशनी में अपने खुले गीले बालों के हल्का सूखने के बाद दोनों हाथों से समेटने की कोशिश कर रही थी। 


क्या जरूरत थी इस तरह से सोशल मीडिया पर फोटो अपलोड करने की । भले ही कोई न जानता हो पर ...। मैं ना चाहते हुए भी पुरानी यादों में खोने लगी। 


पहला प्यार एक अजीब अहसास होता है । जब होता है तब तो पता ही नही चलता है। जब तक पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है। हम सब ग्यारहवीं में थे। स्कूल की पिकनिक पर पाँच दिन के लिए उदयपुर, जयपुर जाने का कार्यक्रम बना । हम सब बहुत उत्साहित थे । हम सब बच्चे बचपन से साथ ही पढ़े थे इसीलिए हम सब में कोई गलत भावनाएं नहीं थी। भाई बहन तो नहीं बस सिर्फ अच्छे दोस्तों की तरह हम साथ थे। वहाँ होटल के अंदर घुसते ही देखा दरवाजे से लगभग छः साढ़े छः फुट के पाँच सात लड़के जिनके लंबे घुंघराले बाल, गोरा गुलाबी रंग, चले आ रहे हैं। हम लड़कियां तो लड़कियां लड़के भी उन्हें देखने लगे। शायद रशियन थे । यह हमारी अटकलें थी जो भी हो अमेरिकन नहीं थे, क्योंकि इंग्लिश नहीं बोल रहे थे। हम सबको अपनी और देखता पाकर उन्होंने हम सबको हाथ हिला कर हाय किया। हमारे साथ की लड़कियां तो दीवानी हो गई।


 चूँकि पाँच दिन की ही ट्रिप थी तो समय का दुरुपयोग ना करके, हम सब थोड़ी देर रुक कर नाश्ता करके घूमने निकल गये। वह झील के किनारे भी हमें मिले। हम बारी बारी से बोटिंग कर रहे थे । हमारी बारी आने तक हमारे पास पर्याप्त समय था तो वहीं भुट्टा खरीद कर खाने लगे । वह भी घूमते हुए हमारी ओर बढ़े और टूटी फूटी इंग्लिश में बोले, "तुम लोग ही सुबह होटल में मिले थे ना।" मेरे साथ की लड़कियां तो खुश होकर उनसे बातें करने लगी, फोटो खिंचवाने लगी। मैं इन सब से दूर बाकी लोगों को बोटिंग करते हुए देख रही थी। 


रात को हम सब कैंप फायर के लिए इकट्ठा हुए। एक बड़े से लॉन में एक तरफ आग जला दी गयी थी । हम सब संगीत लगा कर नाच रहे थे। काफी देर तक जब हम सब नाच गाकर थक गए और अब सोने ही जा रहे थे कि तभी वायलिन या गिटार या पता नहीं कौन सा वाद्ययंत्र था उसमें उन्होंने बहुत ही प्यारी सी धुन बजानी शुरू कर दी, "तुमको देखा तो यह ख्याल आया जिंदगी धूप तुम घना साया"। हम सब मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। हमारे टीचर (शिक्षक) गाना खत्म होने पर उन लोगों के पास जाकर अंग्रेजी में बोले, "आपने बहुत अच्छा गाना गाया"। वह अपनी टूटी फूटी अंग्रेजी में बोला, "उसे हिंदी समझ तो आती पर बोल नही पाता है। उसे हिंदी गानों को गाने का शौक है।" थोड़ी देर बाद वह हमारे समूह के साथ बैठकर गाने गा रहे थे। सभी लोग अंताक्षरी खेल रहे थे । मुझे तो गाना गाना नही आता था तो मैं आलस से लेटी आकाश में तारे देख रही थी । कितना सुकून मिलता है ना असीम अनंत आकाश के साथ। मुझे नही मालूम था कि कोई मुझे देख रहा है। वह तो मेरी सहेली ने मुझे बोला, तो मैने उसे डाँट दिया।


दूसरे दिन सुबह हम एक मंदिर का दर्शन करने गए। मैं तो दर्शन करके बाहर आ गयी पर साथ के कुछ लोग रह गए थे। तभी शायद भोग लगाने के लिए कुछ समय के लिए मंदिर के पट बंद हो गए । मैं मंदिर घूम घूम कर थक गई थी तो एक छतरी के नीचे बैठ गई । बच्चे जिनको दर्शन करना था वह लाइन में लग गए। मैं तो यह सोच कर क्या यार भगवान तो एक ही है। क्या बार-बार दर्शन करना ? 


वह सारे भी वहीं थे और मंदिर की फोटो खींच रहे थे। तभी मुझे लगा कि उनमें से एक मेरी फोटो ले रहा है। मेरे मन ने कहा, 'पागल कुछ भी सोच लेती हो। शक्ल देखी है अपनी ? वह और तुम्हारी फोटो ..? तुम उसके कमर तक की लंबाई की भी नहीं हो।" मैं वहाँ से हटकर मंदिर के दूसरी तरफ आ गई।


 मंदिर के उस तरफ दृश्य बहुत सुंदर था । बड़े बड़े पेड़ थे पेड़ो के बीच से झाँकता सूरज हल्की हल्की हवा, मंदिर की घण्टियों की आवाजें, पक्षियों का कलरव, सब कुछ अविस्मरणीय, मैं वहीं ठिठक कर खड़ी हो गयी। मैंने सुबह बाल धोए थे। लगा अभी भी बाल गीले है तो खोलकर वही सुखाने लगी। हवा से बाल उड़ रहे थे, कुछ मुँह पर आ रहे थे। जब बालों से परेशान होने लगी तो उन्हें पीछे हाथ करके बांधने लगी। तभी पीछे से किसी की आवाज आयी, "ब्यूटीफुल"।


 मैंने वैसे ही बालों को पकड़े पकड़े बाँधते हुए पीछे मुड़कर देखा तो उसने मेरी फोटो खींच ली, "ग्रेट मूव! वाओ ! व्हाट अ पोज़। हे व्हाई यू नॉट क्लिकड फ़ोटो विथ अस ?"(वाह, बहुत बढ़िया मुद्रा । तुमने हमारे साथ फोटो क्यों नही खिंचवाई?)

क्योंकि मुझे अपरिचितों से बात करना पसंद नही।


हे, वी आर नॉट स्ट्रेंजर। वी आर विथ यू गाइस फ्रॉम लास्ट टू डेज़ । (हम अपरिचित नही है। हम दो दिनों से तुम्हारे साथ है)

 मैं मुस्कुरा दी, "तो भी अपरिचित ही हो। मेरी फोटो क्यों खींची ?"

 "फाइंड योर फेस सो फोटोजनिक।" (तुम्हारा चेहरा बहुत ही अच्छा है, फ़ोटो खींचने के दृष्टिकोण से)


"तो भी किसी से पूछे बगैर फोटो खींचना गलत है।"


" पर तुम जब उगते सूरज की, प्रकृति की, पंक्षियों की फोटो खींचते हो तो किससे पूछते हो ? सुंदरता को कैमरे में कैद करना गलत नहीं है।"


 मैं उसके उत्तर पर मुस्कुरा दी। वैसे भी जिंदगी में पहली बार किसी ने मुझे सुंदर कहा था। 


"हे व्हाट योर गुड नेम ?"


"नाम जानकर क्या करोगे ? अब तो कभी मिलोगे नहीं ।


"गिव मी योर ऐड्रेस। आई विल राइट यू लेटर।"


तब मोबाइल तो क्या फोन भी हर घर में नहीं होते थे । ना ही लड़कियों में इतनी हिम्मत कि वह अपना नाम पता किसी भी अनजान को बता दें। तब से मेरी टीचर ने हमें पुकारा और मैं वहां से चली तो वह बोला, "आई विल ऑलवेज रिमेंबर यू 'अ ब्यूटीफुल गर्ल विद नो नेम'।" 


बस इतनी सी कहानी है। अगर यह प्यार नहीं था तो वह आज भी याद क्यों है ? उससे मिलने की कसक क्यों है ? दिल क्यों सोचता है कि क्या आज भी मेरी फोटो उसकी किताबों में रखी होगी ? 


तभी मम्मी मम्मी की आवाज से यादों से बाहर आयी। बहू पूछ रही थी, "क्या लगता है आपको ? यह आपकी फोटो ही है ना ? देखो ना सूट भी वही है जो आपने एक फोटो में पहन रखा है।"


"अरे पागल इतनी पुरानी फोटो है । कितनी धुंधली सी दिख रही है। क्या पता किसकी होंगी और सूट का क्या है ऐसा सूट तो बहुतों के पास रहा होगा उस जमाने में।" इतना कहकर मैं सोचने लगी, मैं आज भी नहीं कह सकती हूँ कि यह मैं हूँ। समाज है, परिवार है, किस किस को सफाई दूँगी कि मेरी फोटो उसके पास कैसे और क्यों है ? पर दिल का क्या करें ? एक हिस्सा आज खुश तो बहुत है । वह सच्चा था, उसने झूठ नहीं कहा था कि मुझे हमेशा तुम्हारी तलाश रहेगी।


तबसे बहू को बेटे ने कुछ काम से पुकारा । वह अपना मोबाइल मेरे हाथ में छोड़ कर चली गयी। मैं वह पोस्ट देखने लगी। बहुत से लोगों ने पूछा था कि क्यों ढूंढ रहे हैं आप ? एक जगह एक लंबा चौड़ा सा जवाब था । "यह सालों पहले भारत आए थे। उसके बाद वापस गए ही नहीं। क्या पता किसकी तलाश थी, भारत में ही भटकते रहे। अंत में वृंदावन में रहने लगे। हमेशा कृष्ण भक्ति में लीन रहते थे। बहुत अच्छा गाते थे। जब भजन गाते तो समां बन जाता। श्रद्धालु बहुत सारे पैसे देकर जाते। उनका गुजारा चलता था। मैं एक दुखियारी माँ का अनाथ बेटा था। माँ के जाने के बाद इन्होंने मेरा पालन पोषण किया, जिम्मेदारी उठाई। अभी कुछ दिन पहले पता नहीं क्यों, पुरानी यादों की बात करने लगे। बातें करते करते अपने सिरहाने रखी कुछ धुंधली फोटो मुझे दिखायी और बोले, "कभी मिली थी । बस उसके बाद कोई अच्छी नहीं लगी । बिल्कुल राधा रानी सी थी। यहाँ आया तो राधा रानी की कि सूरत में उसकी सूरत दिखती थी। पर राधारानी तो माँ है । तो बस चाहत भी खत्म हो गई और तलाश भी।"

 कितनी अजीब बात है, मैं बरसों से मथुरा में रहती हूँ। कितनी बार वृंदावन गयी हूँ। कभी उसे देखा ही नही। बहुत देख लेती तो क्या कर लेती ? मन ने पूछा।


 मोबाइल बंद करके वहीं बैठ गई । थोड़ी देर बाद बहू मोबाइल लेने आयी। मैं बोली, "चलो वृंदावन जाकर आते हैं। बड़ी तारीफ़ लिखी है इनके भजन की। एक बार सुनकर भी आएंगे।"


 बहू भी एक नारी ही है। बिना कहे ही बहुत सारी बातें समझ गयी। दूसरे दिन ही हम दोनों निकल गए वृंदावन के लिए। मुझे नहीं मालूम है कि मैं क्यों जा रही हूँ ? उससे मिल कर क्या कहूँगी ? मन की बहुत सारी बातें समझ में नहीं आती है। बस मुझे इतना मालूम है उसे मेरे नाम का इंतजार है । जा रही हूँ कि उसे जाकर के कम से कम अपना नाम तो बता ही दूँ।


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