Archana Thakur

Drama Romance

4  

Archana Thakur

Drama Romance

तेरा साथ मेरे हमसफर

तेरा साथ मेरे हमसफर

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चौड़ा लॉन पार कर लेफ्टिनेंट मोहित मेजर के घर के अहाते तक आ पहुंचा। एक बारगी चारों ओर देख लेने और किसी की मौजूदगी के न होने के सुकून होने पर उसने दरवाज़े पर लगी कॉल बेल बजाने के बजाए दरवाज़े पर दस्तक दी। जैसे दरवाज़ा दस्तक का ही इंतजार कर रहा था। दरवाज़ा खुल गया और वो किसी परिचित सा अन्दर समा गया। उसकी निगाहें अब अपने सामने की ओर उठ गई। उसकी निगाहों ने देखा सामने नीली साड़ी में खड़ी नीता आज गज़ब की दिख रही है। उनकी निगाहें मिली तो उनके चेहरे की मुस्कान इंच भर हो गई और वो लगभग दौड़ती हुई उसके चौड़े सीने से लग गई। उसके सीने में वह अपना सर यूँ छुपा लेती है मानो जन्मो की थकान को सुकून के दो पल मिल गए हो। उसके अनायास उसकी बांहों में सिमट आने पर भी वो धीरे धीरे उसके बालों पर उंगलिया फिराता रहा। उस पल दोनों मौन थे सिर्फ उनकी धड़कनें बोल रही थी। उसे अपनी बाँहों में समेटे वह अपने होंठ उसके रेशमी बालों में फिराता रहा और वो उसी उपक्रम में उसके सीने से लिपटी अपनी उंगलियों से उसकी नेम प्लेट की किनारी की कुछ उभरी परत पर बार बार उँगलियाँ फिराती रही। कुछ तल्ख़ मौसम से उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आयी थी। वो उसका चेहरा थोड़ा सा उठाता है उन बूंदों को अपनी उँगलियों से हौले से पोंछते उसके चेहरे पर अब अपनी उँगलियाँ फिराता है। नीता का हाथ उसकी नेम प्लेट से सरक कर उसके बाज़ुओं को कस कर थाम लेता है। इस उपक्रम में वो गौर से उसका चेहरा देखता है मानो कोई खुली किताब पढ़ रहा हो। उसमें प्रेम की अस्फ़ुटित ढेरों धाराएं सी उमड़ रही थी वहां, जो उमड़ उमड़ कर जैसे उसे अपने में समा लेने को अपनी बाहें पसार रही हो। उसका मन हुआ डूब जाए और सब कुछ वार दे इन पर। न वक़्त न हालात कुछ भी उसे अब ऐसा करने से नहीं रोक सकते थे। इस लम्हे की कसक उसके सम्पूर्ण अस्तित्व पर हावी हो रही थी वो उसे और कसकर अपनी बाँहों में भींच लेता है। उनके बीच पसरा मौन अब होंठों की गर्म नदी सा दिलों की सूखी ज़मीं पर अमृत सा बरस रहा था। बंज़र ज़मीं मानो वर्षों की प्यास से तृप्त हुई जा रही थी। तेज़ चली हवा अब मानिंद घने वन से गुज़र रही थी किसी पुरवाई सी।


एक दम से मोहित का ध्यान दीवार घड़ी की ओर जाता है। घड़ी मानो मुंह चिढ़ाती दौड़े जा रही थी। नीता ने पल भर को घड़ी की ओर देखा मानो सेकण्ड की सुई सरीखी घंटे की सुई भी भागी जा रही थी। कब घंटा भर बीत गया पता ही न चला। नीता को उसकी बाँहों से जुदा होना किसी वर्षों की तन्हाई सा लगा। अभी भी वो उसकी बांहें थामे थी। बार बार उसकी निगाहें जो बोल रही थी आखिर वो शब्दों में मुखर हो कर उसको अपनी ही पैरों की बेड़ियों सा महसूस हुआ।


मत जाओ

उसने मुस्कराते उसकी बाहें थाम ली

वक़्त की जरूरत है

और मेरी?

इसलिए तो आया

कुछ पल और ठहरो..

ड्यूटी पर हूँ

मेरे प्रति क्या ड्यूटी है, वो उसकी बाँहों में इतरा उठी..

सर आ रहे है!


जैसे लिजलिजा कीड़ा नमक पड़ते अलग हो गया। वो उसकी गहरी आँखों में देखने लगा, जहाँ का भाव अब कुछ और कह रहा था।

नीता उसकी नज़र से विलग देखती है।

उदास हो या खुश !

क्या हर बार बताना होगा मुझे !

वो उसके और नज़दीक आ जाता है

सुना है कल के सेना दिवस के लिए ही बुलाया गया है। फिर शायद अगले दिन चले जाएँगे।


वो उसकी ओर झटके से नज़र उठा कर उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती है अक्सर ही वो जब जाने को कहता तो वो सिर्फ उसके शब्द ही नहीं बल्कि उसके हाव-भाव भी पढ़ने की कोशिशें करती कि क्या सच में वो उससे विलग होने को व्यग्र है या उसकी मजबूरी उसे ऐसा करने को मजबूर कर रही है। दूसरी बात का सुकून उसके दिल को अगली बार तक के इंतजार तक के लिए राहत देता। अबकी भी दूसरा सच वो उसके चेहरे पर ढूंढ रही थी।


वो जानती है कि अगले कुछ लम्हे बाद दोनों अपने अपने तय स्थान पर सेट हो जाएँगे। उसके आने तक का इंतज़ार वो उसकी यादों में लिपटी खुशबू के सगं ही काटेगी।


घर का जैसे हर कोना किसी कर्फ्यू के बाद के मौन में शांत खड़ा था। नीता अपनी तय सीमा पर खड़ी चाय केतली से अपने पति मेज़र हर्षवर्धन के कप में डाल रही थी बिना उसकी ओर ये देखे कि वे उसकी ओर ही देख रहे है।

बड़ी चुप हो, ठीक तो हो

जी! वो चौंकी पर सामने वाले ने इसे स्वीकृति मान कर अपना ध्यान उसकी ओर से हटा लिया।

अब दोनों अपनी अपनी चाय सुड़कने लगते है।

प्लेट का कुछ खाया कुछ छोड़ा छोड़कर वे उठ जाते है और दरवाज़े की तरफ बढ़ते है कि एकाएक जैसे कुछ याद आता है तो वे ठिठक कर पलटते है।

नीता शाम को रम पंच है प्लीज रेडी टू माय ड्रेस।

ओके शब्दों से न बोल कर सर हिला कर वह कहती है और दोनों अपने अपने तय कार्यों की ओर जल्दी से बढ़ जाते है।

मुझे कल ही लौटना है।

रात को लौटने पर उसने कहा और नीता की ओर देखा जो बेड के एक सिरे पर अधलेटी टेबल लैंप की रौशनी में कोई मैगज़ीन पढ़ रही थी।

जी सब तैयारी कर दी है। नीता ने बिना किताब हटाए हुए कहा।


मेज़र जैसे कुछ और कहना चाहता था पर शब्द जैसे होंठों के अन्दर ही टूट फूट गए। वो एक बारगी नीता की ओर देखता है जो लगातार किताब पर अपना ध्यान लगाए थी। दो पल रुककर वो उसे एक टक देख रहा था फिर जैसे जैसे नशा दिमाग पर अपनी पकड़ मज़बूत करता गया फिर उसे कुछ याद नहीं रहा कि कब वो बिस्तर पर गया और कब तपाक से नींद की आगोश में खो गया।


मेज़र अपना बैग खुद ठीक कर रहा था। अपना सामान चेक करने के बाद अपनी वर्दी के नेम प्लेट से लेकर सारी पॉकेट के तय सामान की नियत सतह के दुरुस्त होने पर वो एक सुकून का उच्छवास छोड़ता है अब वह अपने सामने देखता है वहां जहाँ नीता खड़ी थी।

इस तीन महीने की तत्काल ड्यूटी से अबकी छुट्टी तो मिलना मुश्किल है। हो सके तो तृषा के पास हो आना या उसकी छुट्टी हो तो उसे ही बुला लेना।

अबकी बार की छुट्टियों में बता रही थी एक्स्ट्रा क्लास होगी। फिर शायद कैम्पिंग को ले जाएँगे। मैंने कहाँ जो उसे ठीक लगे।

वो एक पल नीता का चेहरा देखता रहा।


क्या इतना मन लग गया उसका वहां फिर जैसे खुद से ही बातें करने लगा। एक दिन था जब इस अरुणाचल के बीहड़ में पोस्टिंग आने पर अपनी इकलौती बेटी को दिल्ली के होस्टल में पढ़ने को मजबूरी वश छोड़ने पर उसे कितना बुरा लगा था। एक पल लगा कि मैं कुछ गलत तो नहीं कर रहा। पर अब सब ठीक ही हो गया। तृषा वहां सेट हो ही गई। चलो ये छह महीने से दो महीने तो कट गए अब बाकी भी कट जाएँगे। वैसे भी अक्सर अपनी स्पेशल जॉब के कारण नीता तक के साथ नहीं रह पाता पर इस चीज़ का उसे मलाल नहीं होता क्योंकी नीता भी कितनी सहजता से सब संभाल लेती है वो उसके चेहरे की ओर देखता रहा, कभी शिकायत नहीं की हाँ मैंने भी कभी तस्सली नहीं दी, आखिर कैसा अज़ब अनुबंधन है हमारे बीच पर अब सोच रहा हूँ कि इन चार महीनों बाद जरूर उसके संग समय बिताऊंगा।


सोचते सोचते वो नीता की ओर से अपनी आंख हटाते हुए जैसे अंतिम बार उसे देखता है जो अपने अभ्यस्त चेहरे के साथ सामने खड़ी थी ये देख उसका मन अन्दर ही अन्दर उसे कचोट उठता है उसकी इस नीरवता का कहीं वो ही जिम्मेदार तो नहीं ?


वो जवाब में सिर्फ गहरा उच्छवास छोड़ता है।


फिर गाड़ी की आहट पाकर मेज़र बाहर निकल जाता है और नीता दरवाज़े की दहलीज़ तक उसे विदा करने आती है। सुबह अभी पूरी तरह से हुई भी नहीं थी पर इस सर्दी के शुरुआती मौसम में भी नीता अपने आस पास मानो तीक्ष्ण गर्माहट सी महसूस कर रही थी। जैसे तन्हाई के ब्लैक होल में वो समाती जा रही हो। इससे उसे तेज़ घबराहट सी महसूस होने लगती है। अब अपने आँचल से चेहरा पोंछती वो अन्दर आ कर सीधे बेड रूम की ओर चल देती है जहाँ अपनी अधूरी नींद वो छोड़कर आई थी जो अभी भी उसकी वहां बांट जोह रही थी। फिर बिना किसी प्रयास के वो सो जाती है।


दिन भर सन्नाटा पीती सड़कें कभी कभार किसी गाड़ी की आवाज़ से बार बार चौंक जाती और नीता बालकनी में बैठी एक बारगी नज़र भर उठाकर सामने देख लेती। सर्दियों की शुरुआत के दिन बड़े रूखे और बेजान से प्रतीत हो रहे थे। शाल में खुद को समेटे वो अनंत आकाश की ओर निहार रही थी। साफ़ खुला आसमान जैसे खामोश किसी सज़ाराफ्ता की तरह कोने में पसरा बैठा था। मानो जरा भी भंगिमा बदली तो सजा मिलेगी। कैसी नीरवता सी छाई थी चारों ओर इसमें न चाह कर भी उसे मोहित का ख्याल उमड़ ही आता। उसे इंतजार था कि अपने वादे के अनुसार मोहित आएगा ही पर काफी देर से खुद को बहलाते उसका इंतजार खिंचता ही जा रहा था और उसी क्रम में उसका मन बेचैनी से भरता गया। एक तरफ मौसम रुखा फिर उस पर ये पल भी कितना रुखा सा बीत रहा है। सोचते सोचते वो कुर्सी की पुश्त से अपना सर टिका लेती है। नींद से कोसो दूर उसकी बंद आंखें जैसे किसी जागते स्वप्न में जी रही थी जिससे वह धीरे से मुस्कराई।


वाह! बिना आहट भी मेरी मौजूदगी का अहसास

वो पल भर में चौंक कर आंखें खोलती है सामने मोहित था उसके होंठों के किनारे फ़ैल जाते है। उस पल के तन्हा पल की प्यासी बाँहों को लगा की उसे खींच ले अपनी ओर पर वे अनुपयुक्त स्थान पर संयत हो गई।


वो तुरंत उठ गई और अन्दर की ओर चल दी पीछे पीछे मोहित भी उसके चलते अन्दर आ गया। दरवाज़ा बंद कर वो मुड़ भी न पाया की देह की गर्माहट उसकी देह पर आवंटित हो गई।


एक ही दिन जैसे सदी सा बीता

वो उसे बाँहों में समेटते हुए बोला

तभी तो देखो आज छुट्टी ली है

वो अपनी चमकती आँखों से उसकी ओर ताकती है

सच

हाँ कह कर वो और कस कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लेता है

नीता भी मोम सी उसकी गर्मी में पिघलती रहती है।

अब सर कब आएँगे

क्यों शब्दों में तल्खी सी झलक आती है, वो उसकी ओर नज़र उठाकर देखती है

वो हौले से मुस्करा देता है और एक चुम्बन उसके माथे पर अंकित करते हुए कहता है

अपनी सज़ा की मियाद जानने का भी हक़ नहीं क्या?


सज़ा क्या तुम्हारी ही होती है वो कहते कहते उदास हो चली मेरे लिए तो पहाड़ों पर बिना आक्सीजन के चढ़ने जैसा होता है क्या बताऊँ कुछ पल रुक कर वो बोली जी में आता है कि भाग जाउं....


कहाँ ? वो चौंकने का अभिनय करता है

तुम्हारे पास और कहाँ

हाँ मैडम फिर दोनों जेल में चक्की पिसेंगे

वो हौले से मुस्कराई

अगर ऐसा हुआ तो क्या करोगे?

हम फौजी है मैडम सिर्फ आज का पता है कल किसने देखा


उस एक ही पल में नीला किनारे को तड़प उठी। उसका मन घुमड़ने लगा मानो ढेरों नदियाँ एक साथ मन में उफन आई हो जिससे उसकी विचारों की नाव हिचकोले मारने लगी। क्या उसके इस आज का कोई भविष्य नहीं! आखिर किस ओर उसका बेचैन मन उसे लिए जा रहा है। एक मौन प्रेम जिसने अपना होना न दिखाते हुए भी सुनिश्चित कर रखा है या वो प्रेम जिसके पीछे वह कस्तूरी मृग की तरह भागी जा रही है?


जाने किस प्रेम की मजबूरी ने मुझे तुम से बांध दिया जिसे मैं खुद भी नही जान पाई कि अब कुछ भी गलत सही नहीं लगता, आखिर ये कैसी मृगतृष्णा है जो हर पल मुझपर हावी सी रहती है। ऐसा सच जिसे न दिखा सकूँ और न जता सकूँ सिर्फ हर पल खुद में महसूसती रहती हूँ जितने पल भी तुमसे जुदा रहती हूँ उस पल यही यादों की घड़ियाँ जैसे अमृत बूँद सी पल पल मुझे जिन्दा रखती है।


आगे क्या होगा? वो खुद से भी एक प्रश्न करती है

पता नहीं पर ये पल सिर्फ और सिर्फ हमारा है बस इतना पता है

वो चुप होकर सर उठा कर उसकी ओर देखती है वो जो उसके चेहरे पर ही अपनी निगाहें गढ़ाए था।

वो बढ़कर उसे अपने सीने में छुपा लेता है


पलकें बंद करते अंतरस कुछ खुल जाता है उस दहलीज़ पर दिखते है कुछ जाने पहचाने चेहरे उस पल उन चेहरों के उठते सवाल से उसकी भंगिमा बदल जाती है जिसे मोहित की आंखें नहीं देख पाती, वो चिहुँक कर अब मन की भी आंखें मूंद लेती है।


आज से ही नहीं बल्कि कई वर्षों से तनहा थी उसकी ज़िन्दगी पर एक रात ने उसकी ज़िन्दगी ही बदल दी। उसे ख्वाब देखना आ गया, उसने खुली आँखों से वो देखा , महसूस किया जिसे उसने कभी सपनों में भी न सोचा था।


मोहित के जाने के बाद की तन्हाई एक बार फिर नीता पर हावी हो उठती है और मन किसी तेज़ तूफान में फिर हिचकोले खाने लगता है। मोहित क्या अब लत की तरह उस पर हावी है या कुछ प्रेम जैसा है, प्रेम जो डर से लबरेज़ है और जिसकी परिणिति में एक कसक सी रह जाती है इससे वो और उदास हो उठती है। उसे याद नहीं आखिर इतने वर्षों की नीरवता में मोहित ने उसे चुना या वक़्त उन्हें करीब ले आया।


उस वक़्त पार्टी में आखिर इतनी अफसर की वाइफ्स में से क्यों मोहित उसी को निहार रहा था, क्यों उसने डांस के लिए उसे ही प्रपोज़ किया। वो नहीं जाना चाहती थी उसे तो पार्टीज़ भी पसंद नहीं थी पर क्यों उसके पति ने उसे नहीं रोका ? क्यों जाने को प्रोत्साहित किया? अनजाने ही औपचारिकता की ओर बढ़ाया कदम उसकी ज़िन्दगी का ख़ास पल बन गया। क्यों उसे ख्याल नहीं रहता कि इस अनाम रिश्ते का कोई भविष्य नहीं। वो न मोहित से विलग हो पा रही थी और न अपने सामाजिक रिश्ते से ही। किसके साथ वफ़ादार है खुद को कैसे जताए। क्या वक़्त पर छोड़ दे सब कि अब वक़्त ही तय करे कि इन रिश्तों के झंझावात से वो कैसे उबरे !


अपने रोजाना की आदत में नीता जाती हुई सुबह में हमेशा की तरह अपनी बालकनी में बैठी बंद आँखों से आकाश निहार रही थी। उसका चेहरा आकाश की ओर उठा था और बंद पलकें किसी घाटी सी धूप छांव में लिपटी दिख रही थी। अचानक किसी आहट से उसने धीरे से आंख खोली कुर्सी की पुश्त में जमी गर्दन और आकाश की ओर उठी आँखों ने दो सायों को देखा एक पहचाना और दूसरा अनजाना।


वो उठ गई

मोहित के आगे खड़ा वर्दीधारी जो कह रहा था उसे सुनते मानो उसके पैरो तले ज़मी ही सरक गई। किसी बलुई ज़मीं पर खड़ी एकाएक वो डगमगा गई। मोहित जल्दी से आगे आया उसे सँभालने पर वक़्त की नज़ाकत देख संयत हो गया।


मैडम आर यू ओके!


वो गौर से मोहित को देखती है जो अवाक उसकी ओर देख रहा था फिर अब उसकी पीठ की तरफ खड़े शख्स को देखती है जो अलर्ट मुद्रा में खड़ा जैसे किसी हुक्म का इंतजार कर रहा था।


नीता जैसे होश में वापस आई फिर सब सिलसिलेवार उसने याद किया कि किस तरह वो आसमानी जादू में खोई हुई थी कि अकस्मात् मोहित आया पर हर बार की तरह छुपते हुए नहीं और अकेले भी नहीं। साथ में कोई था जो आगे बढ़कर उससे कह रहा था कि मैडम हम कब से आपको फोन कर रहे है आप का फोन नहीं उठा इसलिए आपको सूचना देने आया हूँ कि अभी ए पी ओ से सूचना प्राप्त हुई है कि मेज़र हर्षवर्धन जी का अचानक वहां पर मौसम बदलने और हाइट पर होने से दिल का दौरा पड़ा है और उन्हें तत्काल यहाँ लाया जा रहा है।


उसका दिल जाने किस कसक से भर उठा और आंखें नम हो चली।


ये क्या हो गया ? सोच उसने मन ही मन खुद को कोसा और दुआ मांगी की उसकी बेटी के पिता को कुछ न हो नहीं तो क्या जवाब देगी वो अपनी बेटी को। दोनों जा चुके थे वो संयत खड़ी गाड़ी के पहियों से उठते गुबार को देख रही थी। उस गुबार की छूटी धुंध में ढेरों आकृतियों को बनता बिगड़ता देखती रही अपने क्लान्त मन से। उस पल जैसे वो वही जड़वत सी हो गई थी।


मिलिट्री हॉस्पिटल के इमरजेंसी रूम के कांच से अभी अभी वो अपने पति के अवचेतन देह को निहार कर आई थी। एक कोने में खड़ी अब वो जानी पहचानी जगह फोन कर सूचना दे रही थी। फिर फोन रख कर पलटती है तो उसे अपने आस पास महसूस होती है जैसे मोहित की आंखें उससे कोई प्रश्न कर रही है। पर जान कर अनदेखा कर वो आगे बढ़ जाती है।


ऑफिसर वेटिंग रूम में बैठी नीता पुकार पर अपने सामने देखती है। अब मोहित उसके सामने खड़ा था। वो निगाहें उठाकर उसकी ओर देखती है

कॉफ़ी

वो उसकी ओर देखती है पर हाथ बढ़ा कर वो उससे कॉफ़ी का कप न ले सकी

वो उसकी गहरी आँखों में झांक रहा था जैसे आज कोई और नीता वहां मौजूद है वहां जिसे पुकारने उसे कहना ही पड़ा

कॉफ़ी लो नीता


ये किसी हुक्म सा उसपर गुज़रा और उसने कॉफ़ी का कप ले लिया

उसके कप लेते मोहित तुरंत वहां से निकल गया


वो उसे फिर जाता हुआ मानो गुम होता हुआ देखती रही। उसी उपक्रम में मन भी विचारों के बवंडर में घूमता रहा। रह रह कर तृषा की बातें उसके ज़ेहन में अभी तक गूंज रही थी। उसने खुद से पूछा आखिर तृषा ने सुनते ही पहले ये क्यों पूछा कि कैसे हो गया ये? क्या मैंने उनका दिल इतना बंज़र कर दिया कि उसकी प्रवाहित रक्त धमनियां भी अवरुद्ध हो गई। उसका मन टीस से भर उठा कोई गुनाह का बोध उसके अस्तित्व पर हावी हो उठा , जिससे उस पल उसकी आंखें खारे पानी से भर उठी। एक भारी पत्थर उसकी पलकों पर महसूस हुआ और बंद होती पलकों से दर्द नदी की धारा सा प्रवाहित होने लगा।


कॉफ़ी का कप काफी देर तक उसके हाथों में फिर साइड की टेबल में पड़ा रहा। नीता फिर उठी और बाहर जाने को हुई की सामने किसी को आता देख ठिठक गई। वे कमांडर थे जो उसी की ओर आ रहे थे।


औपचारिकता के बाद वे साफ़ शब्दों में बोले


आप उम्मीद न खोए डॉक्टर अपना बेस्ट कर रहे है


वे औपचारिकता निभा कर चल दिए। नीता वही ठिठकी खड़ी रही। उसे पता था कि उनके परिवार से कोई जल्दी नहीं आने वाला उसे ही हौसला रखकर सब संभालना होगा। मन अपने उतार चढ़ाव पर था और नीता इसी घबराहट में कुछ पल चहल कदमी करती और फिर थक कर वही बैठ जाती है। करते करते कई घंटे बीत गए तब तक उसे डॉक्टरों के आश्वासन के सिवा कुछ उम्मीद नज़र नहीं आई। शाम के चार पर सुई जाते उसने देखा कोई था जो कुछ दूर खड़ा उसे निहार रहा था।


मोहित !


वो जैसे नींद से जागी

उसकी नीरवता का साथी था मोहित। अपने पति और बेटी द्वारा दिए एकांतवास का हमसफ़र था वो। उसका मन हुआ कि दौड़ कर मोहित के चौड़े सीने में छुप जाए और जार जार कर रो कर मन का सारा गुबार हल्का कर ले आखिर इस पल वही तो था जो उसके आंसू देख पा रहा था पर किसी भी तरह ये कैसे संभव था वो जानती थी एक तो परिस्थिति दूसरे मोहित का प्रेमी मन इस पल को कैसे जब्त कर रहा होगा इसका वो अंदाज़ा भी नहीं लगाना चाह रही थी इसलिए उससे नज़र छुपाती वो वही डटी बैठी रही तब तक जब तक पुनः कमांडर वहां नहीं आ गए।


अब नीता के सामने कमांडर और उनके पीछे मोहित खड़ा था


वे तफ़सील से सब कह रहे थे और साथ ही साथ ताकीद करते हुए तसल्ली भी देते जा रहे थे


स्थिति ऐसी है कि कुछ निर्णय हमें अन ऑफिसियल लेने पड़ रहे है मेज़र हर्षवर्धन की स्थिति आवश्यक इलाज की कमी के कारण अस्थिर बनी है पर आप धैर्य रखे हालात खतरे से फिफ्टी परसेंट बाहर है पर जल्दी ही उन्हें बेस हॉस्पिटल पहुँचाना होगा पर ..


पर सुन वो चौंक कर उनके चेहरे पर अपनी निगाहें गड़ा देती है।


अभी के मौसम के मद्देनजर कोई भी हेलिकोप्टर उड़ान भरने लायक स्थिति में नहीं है हमें उन्हें वैन से वहां भेजना पड़ रहा है वैसे सिर्फ पचास किलोमीटर ही है पर यही रास्ता बहुत मुश्किल है नक्सलवादियों से भरा हुआ। हम उनकी सुरक्षा के कारण उन्हें सिविल एम्बुलेंस से भेज रहे है सिर्फ एक डेढ़ घंटे में वो बेस हॉस्पिटल पहुँच जाएगी उनके साथ हमारे दो जवान सादी वर्दी में जाएँगे क्योंकि नक्सलवादी सेना की गाड़ी के अलावा सिविल गाड़ी को टारगेट नहीं करते।


वो सोचती रही कुछ मन ही मन गुनती रही। उसने पूछा ‘मैं’

आप कैसे जाएँगी

क्या मैं साथ जा सकती हूँ?

वैसे जैसा आप चाहे फिर एक जवान आपके साथ जाएगा, हम सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा लोग नहीं भेज सकते

मुझे जरूरत नहीं है

ये कहते हुए उसे नहीं पता कि आखिर क्यों उसने मोहित की ओर देखा और उसकी आंख और नम हो उठी।


ओके एज़ यू विश

फिर वे मोहित की ओर मुड़ते हुए

यू मे गो विथ हर

एस सर

वो सैलूट मारता हुआ कहता है


सब व्यवस्था हो गई। एक सिविल एम्बुलेंस में ड्राइवर के साथ मोहित सिविल ड्रेस में अपनी सर्विस रिवोल्वर जेकेट मे डाल आगे बैठ जाता है और नीता पीछे इस्ट्रेचर में लेटे मेज़र के साथ मौजूद रहती है। निकलने से काफी देर तक उनके बीच निशब्दता पसरी रहती है वो बीच बीच में मध्य के डिवाइड के कांच के झरोंखे से एक दूसरे को निहार लेते और फिर किसी लम्बे मौन में खो जाते। लगभग एक घंटा बीत चुका था। अब वे बीहड़ जंगल से निकलते बस बेस हॉस्पिटल पहुँचने ही वाले थे कि मोहित ने ड्राइवर को रुकने का इशारा किया।


ड्राइवर ने अचानक ब्रेक मारी और नीता एकाएक आगे की ओर झुक जाती है। अचानक ब्रेक के लगते नीता का सर आगे की कांच की दीवार से टकरा जाता है जिससे सर पर हलकी ठोकर से उसका मन टीस उठता है फिर एक पल अवचेतन पड़े अपने पति की ओर देखती है क्या ठीक है! तसल्ली होते उसका ध्यान जाता है कि मोहित की नज़र अब उसी पर टिकी थी। दोनों की नज़रे मिली और मौन वार्ता समाप्त कर मोहित आखिर पूछ लेता है


आर यू ओके

गाड़ी क्यों रोकी?

आगे पेड़ गिरा है कह कर ड्राइवर की ओर मुड़ते हुए कहता है

जरूर रास्ता रोकने के लिए ऐसा किया गया होगा देखो उस पेड़ में एक भी पत्ता नहीं है।

यस सर लगता तो ऐसा ही है खैर ये तो सिविल एम्बुलेंस है

पर कुछ नहीं कह सकते तुम हड़बड़ाना नहीं मैं उतर कर देखता हूँ

फिर पीछे की ओर बिन मुड़े ही कहता है मैडम डोंट वोर्री मैं रास्ता बनवाता हूँ

नीता का जी एकाएक घबरा उठा मानो हलक मन की कोठारी से बाहर निकलने को तड़प उठा हो।


मोहित उतर जाता है और नीता की निगाहें भी जैसे उसकी बांह पकड़ें उसके साथ साथ उतर जाती है लेकिन देह मानो सहमी चुप बैठी रहती है।


मोहित के आगे बढ़ते एक दम सुनसान सी दिखती सड़क पर अचानक दस बीस लोगों से भर जाती है। अब तो उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा था मानो हलक को चीर कर बाहर ही निकल आएगा। सांसों से एक एक पल गिनती वो देखती है कि मोहित सही सलामत लौट रहा है और धीरे से ड्राइवर के कान में कुछ कहता है। उसका मन किसी अनजान घटना से घबरा उठा।


वो देखती है कि एम्बुलेंस वही खड़ी कर ड्राइवर उतर गया और एक किनारे जाकर खड़ा हुआ सड़क की ओर देख रहा था अब मोहित को ढूंढती निगाहें उसकी ओर देखती है और कुछ पल वही बैठी रहने के बाद उस पल से ऊब कर नीता भी नीचे उतर आती है और मोहित की ओर बढ़ जाती है।


क्या हो रहा है? हम कब तक यहाँ खड़े रहेंगे?

जब तक ये पेड़ नहीं हट जाता। बेहद शुष्क स्वर में मोहित ने कहा

नीता का चेहरा जैसे खून निचुड़ा हो चला

तो क्या मरीज़ के अंत का इंतज़ार कर रहे हो।

वो तल्ख़ आँखों से उसकी ओर देखती है

उसके निःशब्द भी पढ़ लेने वाली नीता एक दम जड़ हो गई मोहित के बिन कहे शब्द जैसे कह रहे थे कि मैं क्यों फ़िक्र करूँ आखिर?

आई एम् इन ड्यूटी ओनली कहकर मोहित उसके चेहरे के सामने से हट गया। पर मूक नीता उस ओर अवाक् देखती रह गई।

नीता जो अब उस सड़क की ओर ताकने लगी थी।


नीता की अनबूझ आंखें जैसे वहां होती सब परिणिति होती देखना चाहती थी। वह अब देख रही थी कि लोग पेड़ हटाने का प्रयास कर रहे थे। वहां मौजूद दस बीस लोग अपने तरीके से पेड़ हटाने की कोशिश कर रहे थे। पर उसी पल उसे लगा जैसे उस भीड़ में से कोई एक आंख छुप कर उन्हें निहार रही थी। फिर धीरे धीरे वो आंख उसकी ओर बढ़ती आती गई।


अब वो दो निगाहें उसके सामने खड़ी थी।

कहाँ से आ रही है मैडम

वो देखती है वो गाँव का व्यक्ति होते हुए भी बड़ी स्पष्ट हिंदी बोल रहा था और पहनावे में साधारण जरूर था पर उसका चेहरा किसी सधे व्यक्ति था स्पष्ट था।

मोहित जल्दी से आगे आ कर कहता है सोंबरी से

यहाँ कैसे फंस गए

अबकी फिर मोहित ही जवाब देता है

यहाँ घूमने आए थे।

वो व्यक्ति एक पल मोहित को फिर नीता को देखता है।

नीता धीरे धीरे गहराते ठण्ड के मौसम से या फिर मौजूदा हालात से वह हल्के हल्के कांप रही थी।

ये मैडम बीमार है क्या

नहीं बीमार व्यक्ति अन्दर है जरा जल्दी करो हमें जल्दी पहुंचना है। अबकी नीता की ओर देखते उसने आखिरी शब्द खत्म किया।


नीता दोनों की वार्ता से ऊब कर एम्बुलेंस की ओर बढ़ जाती है वह अन्दर बैठने जा रही थी कि उसने देखा वो व्यक्ति अभी भी उसके पीछे आ रहा था। उसका दिल धक् से रह जाता है। वो देखती है कि मोहित भी वही आ रहा है।

देखे.. फिर खुले एम्बुलेंस के दरवाज़े के अन्दर लेटे मरीज़ को आँखों से निरिक्षण कर वो कहता है

हूँ ज्यादा बीमार है फिर दो पल रुक कर इधर उधर देख वापस मुड़ जाता है

उसके वापस जाते नीता राहत की साँस लेती है और मोहित की ओर देखती है जो अब सड़क की हलचल की ओर निहार रहा था।

कुछ देर में रास्ता थोड़ा साफ़ कर एम्बुलेंस के निकलने भर को ठीक कर दिया जाता है और ड्राइवर मोहित के इशारे पर तुरंत ड्राइविंग सीट संभाल लेता है।


एम्बुलेंस सड़क के उस पेड़ को पार कर ही रही थी कि वही शख्स हाथ दे कर उन्हें रुकने का इशारा करता है।

अब क्या है मोहित रुखाई से खिड़की से सर निकाल कर पूछता है।

जरा आगे तक हमको छोड़ दो।

मोहित के लिए ये गोली न निगलने की रही और न उगलने की

क्या करता पर निर्णय तो उसी को लेना था। आखिर मना भी किस आधार पर करता आखिर थोड़ा सरक कर उसके लिए जगह बना देता है।

एम्बुलेंस थोड़ा आगे बढ़ी ही थी ड्राइवर ने पुनः एक दम से रोक दी। सबकी निगाह में एक सा सवाल कौंध उठा

लगता है कोई टायर पंचर हो गया है।

एम्बुलेंस खड़ी कर ड्राइवर एक नज़र में चारों पहियों का मुयाना कर जल्दी से बोला –‘ आप चिंता न करे एक टायर पंचर हुआ है, मैं बस तुरंत बदलता हूँ।’

ड्राइवर बिन देखे ही सबके मन की स्थिति समझ रहा था।

नीता की ओर देखकर मोहित एम्बुलेंस से उतर जाता है।

उसके उतरते वो अनजान शख्स भी उसके पीछे से ही उतर जाता है।


नीता अन्दर ही अन्दर तड़प रही थी। जंगल भयावह उस पर हालात उससे भी कहीं ज्यादा भयावह थे। नीता अपने पति की ओर देखती है उसे लगता है जैसे आंखें मूंदे किसी योगी सा वे ध्यान मुद्रा में खोए थे और वो इस दुनिया के जंजाल में त्रस्त बेबस सी नज़र आ रही थी। ऐसे हालात में जब एक एक पल कीमती था तब आधा घंटा यूँही बर्बाद हो चुका था और अभी भी कब पहुंचेंगे कुछ समझ नहीं आ रहा था। नीता अब बाहर नहीं निकलना चाहती थी पर ड्राइवर के कहने पर वो भी उतर जाती है।

अब ड्राइवर एक पहिए की ओर झुका था पर नीता को देख कहता है


चिंता न करे मैडम मैं यहीं हूँ।


नीता अब बाहर निकलते पहले मोहित को तलाशती है जो कुछ दूरी पर किसी पेड़ की निचली शाखा पर बैठा उसके विपरीत दिशा की ओर देख रहा था।


नीता कशमकश में वहीं खड़ी रही। आज कितना कुछ कहना चाहती है पर एक शब्द नहीं फूट रहा। एक पल उसके जी में आया की दौड़ कर उसके शाने तक पहुँच जाए और उसे कहे की ये हालात उनके बस में नहीं है। मोहित तो कम से कम अपने प्रेम के प्रति एक धुरी पर तो है पर उसकी ज़िन्दगी दो धारी तलवार पर चल रही थी। उसे तो हर हाल में बेवफा कहा जाएगा। खुद के साथ वफ़ा करते वो सबसे बेवफा हो गई। खुद में घुमड़ते घुमड़ते उसे ख्याल ही न रहा की मोहित कब उठकर उसके सामने आकर खड़ा हो गया।


वो चौंक कर उसकी ओर देखती है।

मोहित की बेचैन नज़र उसकी ओर उठती है, जिसका बेजुबान मन कह उठता है..नीता भाग चलो मेरे साथ इन सारे जंजालों से दूर भाग चलो....जरूरत प्रेम की है और ऐसे हालात में सब जायज़ है..कोई कुछ नहीं समझ पाएगा..

बहुत देर हो रही है और उनके जीवन के लिए ये अच्छे संकेत नहीं!

नीता सच कहूँ कहीं वक़्त की यही मंशा तो नहीं?

वो हैरत से उसकी आँखों में झांकती है

वो एक पिता भी है

दोनों आमने सामने खड़े एक दूसरे को प्रश्नात्मक मुद्रा में ताक रहे थे।

दोनों की मिलती निगाहों की वार्ता ड्राइवर की एक आवाज़ से अवरुद्ध हो जाती है।

लगता है ठीक हो गया, तुम चलो मैं आता हूँ। मोहित पेड़ से अपना जैकेट उतारने पीछे जाता है।

नीता तेज़ क़दमों से आगे बढ़ गई।

नीता अपने स्थान पर आकर बैठ जाती है। तो क्या मोहित जानबूझ कर देर कर रहा है। उसी पल वो अजनबी आता है वहां।


ड्राइवर हाथ धो रहा था। अजनबी धीरे से ड्राइवर की ओर झुकता हुआ कुछ पूछता है। इस फुसफुसाहट को नीता देख पाती है पर कुछ सुन नहीं पाती। उसका मन फिर किसी बेचैनी से भर उठता है।

थोड़ी ही देर में अज़नबी अपने नियत स्थान पर बैठ जाता है।

तभी ड्राइवर और मोहित आकर अपने स्थान में जम जाते है। दोनों की निगाहें नीता के उड़े होशोहवास पर नहीं जाती। नीता देखती है सब शांत अपने नियत स्थान पर बैठे है।


वो देखती है मोहित लापरवाही से अपनी सीट की पीठ पर जैकेट डाल सामने की ओर देखता बैठ जाता है। गाड़ी चल देती है।


अगले की चंद क्षण बाद मोहित ड्राइवर को रुकने का इशारा करता है। फिर इशारे में खिज़ा हुआ सा कहता हुआ लगता है कि तबसे वहां खड़ा था पर अभी ही उसे लघु शंका आनी थी। वो झट से उतर जाता है। वो आगे बढ़ने ही वाला था कि नीता उसे आवाज़ देती है..ये जैकेट ले ले आप ,ठण्ड बढ़ गई है। मोहित बिना उसकी ओर देखे अपना जैकेट लेकर आगे झाड़ियों की ओर बढ़ जाता है।


तभी मरीज़ की गहरी सांसों की ओर एकाएक सबका ध्यान जाता है।

नीता बेचैनी से अपने पति की ओर देखती है। नीता के लिए हर अगला क्षण भयावह होता जा रहा था। क्यों मोहित देर लगा रहा है। एक पल खिड़की से बाहर के कूप अंधेरों की तरफ देखती है।


रात बहुत गहरी है और अपनी गहराइयों में इतना कुछ अपने अन्दर समा लेती है कि दिन को खबर तक नहीं होती। अजनबी की आवाज़ सुन घबरा कर वो उसकी ओर देखती है।


अभी बस जंगल से निकलते नक्सलियों का एक आखरी गॉंव है अगर रात में रास्ता पार नही किया तो दिन नहीं देख पाओगे। वो ड्राइवर की ओर देख रहा था। ड्राईवर स्टेरिंग थामे खामोश था पर नीता के दिलोदिमाग में विचारों का बवंडर सा उमड़ रहा था।

उस के मन का असमंजस समय के साथ बढ़ता जा रहा था।

वो शख्स दो पल के मौन में अब नीता की ओर मुड़ता है

मिलिट्री हॉस्पिटल से आए है।

ये सुनते नीता का दिल धक् से रह जाता है।

वो सोच ही रही थी कि आखिर उसे कैसे पता? तब वो खुद ही बोला मिलट्री हॉस्पिटल की फाइल देख ली मैंने।

ये सुनते वो चौंक कर उस ओर देखती है।

वो ध्यान से देखती है कि उसकी आँखों के कोरों में जैसे लहू उतर आया था जिससे वो ठण्ड में भी पसीने से साराबोर हो उठी।

नीता नज़र छुपाकर उसके हाथों की ओर देख रही थी। एक दम सख्त से नज़र आते हाथ हथियार रहित होने पर भी धारधार से नज़र आ रहे थे।


कौन है फौज में?


नीता कांप उठी उसके चेहरे के सामने एक साथ कई चेहरे एक साथ घूमने लगे। उसके अन्दर एक स्त्री ,एक प्रेमिका, एक पत्नी और एक माँ के बीच अंतरद्वन्द सा छिड़ गया। नीता को जवाब देना था और वो जानती थी की उसके जवाब में ही सारा भविष्य तय है। वो दो आंखें अग्नि सी दहकती उसे घूर रही थी। वो कुछ तय नहीं कर पा रही थी पर मौन रहना और भी घातक हो जाता वो डर गई उसे नहीं पता कि वो क्या कहे पर अनायास वह वो कह गई जो उसका न मन मान रहा था न दिमाग। आज उसे लगा कि दो धारी तलवार पर चलना कितना घातक होता है। हर हाल में घायल होना तय होता है।

वो जवाब की मुद्रा में उसकी ओर ताक रहा था।

खुद को सयंत कर वो धीरे से कहती है जो नीचे उतरे लेफ्टिनेंट मोहित मेरे पति है और ये उनके भाई है यहाँ घूमने आए थे बीमार हो गए।


इस उत्तर का क्या क्या अर्थ लगाया जा सकता था उसने नहीं सोचा पर उस शख्स ने इसका जो अर्थ लगाया उसने वो उसका मन मानने को मंजूर नहीं कर रहा था।


उस शख्स की सख्त आँखों ने मरीज़ को देखा फिर शायद वो उसकी बात मान बैठा और जल्दी से उतरता हुआ बोला ‘जाओ रास्ता खतरे से भरा है यहाँ जो बच जाए उसी में सुकून मानो, जाओ निकल जाओ।’ नीता भी न रोक सकी और न ड्राइवर रुका। एम्बुलेंस तेज़ी से जंगल पार करती अपने पीछे धूल उड़ाती गुज़र गई। नीता की भीगी पलकें फिर उठकर पीछे मुड़कर रास्ता भी न निहार सकी जैसा की हमेशा वो मोहित के जाने पर करती थी।


समाप्त...... 


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