Archana Thakur

Action Inspirational Thriller

2.8  

Archana Thakur

Action Inspirational Thriller

तुझपर कुर्बान

तुझपर कुर्बान

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“प्लीज़ डैड डोन्ट स्टार्ट डूइंग एनी इमोशनल ड्रामा अगेन – मैंने आपको सब बता दिया है न कि मैं यूएसए जाने का अपना पूरा मन बना चुका हूँ फिर बार बार एक ही बात आप क्यों दोहरा रहे है !”

“शायद कोई उम्मीद बची हो मेरे मन में कि तुम अपने देश में रुक जाओ।”

“प्लीज़ प्लीज अब पैटीओटिक सीन मत क्रिएट करने लग जाइएगा डैड – मैं आपको पहले भी क्लियर कर चुका हूँ कि मेरे जॉब प्रोफाइल में जहाँ ज्यादा ऑपट्‌यूनटि होगी वही का प्लेस मैं सलेक्ट करूँगा और यूएसए में मेरा बैटर फ्यूचर है फिर मैं यहाँ बस लाख तीन लाख के पैकेज पर क्यों रुक जाऊं – जब मैं डॉलर के लिए डिज़र्व करता हूँ।”

“बेटा क्या अपने कैरियर की बैटर ऑपट्‌यूनटिज ही देखोगे और कोई जिम्मेदारी नही बनती तुम्हारी – और इस वक़्त सच में मैं अपनी बात नहीं कर रहा – बल्कि मैं सच में चाहता हूँ कि तुम अपने देश को वो सब कुछ दो जो तुम कुछ डॉलर के लिए दूसरे देश में देने जा रहे हो -।”

“कुछ डॉलर डैड – व्हाट आर यू सेईग डैड – यू नो डैड इसी तरह के इमोशनल ड्रामा के कारण हम इंडियंस अपनी तरक्की का खुद ही रोड़ा बन जाते है – देश देश – क्या रखा है इस देश वाले फुलिश ड्रामा में – दे रहा हूँ न टैक्स – बस जिनका काम देश को सँभालने का है मिल जाती है न उन्हें पेमेंट – फिर मैं क्यों इस नोंसेंस के लिए अपना पूरा कैरियर बर्बाद करूँ –।”

“इसी तरह अगर सारी नई जनरेशन सोचती रही तो अपने देश की तरक्की के लिए कौन खड़ा होगा – सभी पैसो के लिए दूसरे देश का मलबा उठाएंगे और अपने देश का भार कौन उठाएगा – प्रतीक मैंने तुम्हें अच्छी से अच्छी एडुकेशन इसलिए नही दी की तुम एक दिन जब मौका आए तो दूसरे देश में बस जाओ – क्या अपने देश समाज के प्रति कोई नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती तुम्हारी – ये देश जितना देश की रक्षा करने वालों का है उतना तुम्हारा नहीं है क्या – क्या तुम्हारी कोई रिस्पोंसबेलटी नहीं है !!”

“ओह डैड – तो क्या आप चाहते है मैं भी फौजी बनकर बोर्डर पर बन्दूक लेकर खड़ा हो जाऊं !! ऑल डीज नोंसेन्स – आप ही बताए आप कौन सा फ़ौज में थे – एक सिम्पल बैंक की नौकरी की फिर आपसे ऊपर उठकर मैं कुछ बैटर करना चाहता हूँ तब आप मुझे क्यों रोकना चाह रहे है – मैं फौजी तो नहीं !”

“देश सिर्फ फौजी से नहीं चलता बेटा – देश हम सबसे चलता है – हाँ तुमने सही कहा मैं फ़ौज में नहीं था और इस बात का मुझे जीवन भर अफ़सोस रहेगा कि देश की सेवा मैं सीधे तौर पर नहीं कर पाया लेकिन अपने देश के प्रति अपनी देशभक्ति दिखाने के लिए मुझे फौजी होने का इंतजार नहीं करना था – मैं जहाँ रहा अपने देश के लिए बेस्ट करता रहा – वैसे सोचा तो था कि मैं न जा सका तो तुम्हें फ़ौज में भेजता पर तुमने आईटी चुना – मैंने इसका विरोध भी नही किया पर अब देश से बाहर तुम्हारी नौकरी मुझे मंजूर नहीं।”

“ओह डैड नॉट अगेन – लगता है जैसे आप सच के सामने आंख बंद किए है – आप बस बेकार की कोई बात साबित करना चाहते है जबकि सच आपके सामने है कि ये देश फोर्थ वर्ल्ड है और रहेगा ये कभी अमेरिका जैसे देश की तुलना में खड़ा नही हो सकता।”

“हाँ बेटा कैसे खड़ा होगा जब तक तुम्हारे जैसे भारतीय दूसरे देश की तरक्की में अपनी मेहनत जोड़ते रहेंगे।”

“आखिर आप चाहते क्या है – मैं इस फोर्थ वर्ड में घुटनों के बल गिरा अपनी जिंदगी काट दूँ – ये देश भुखमरी और गरीबी का है – यहाँ का आम आदमी हर दिन रोज का खाना कहाँ से आएगा और कैसे बनेगा इसी में अपनी आधी से ज्यादा उम्र काट देता है पर मैं ऐसा बिलकुल नही करने वाला – मुझे बेस्ट लाइफ चाहिए – फिर चाहे जो सेक्रिफाइज करना पड़े और बस बात यही खत्म करिए मैं न फौजी हूँ और न मेरे जाने से ये देश रुकने वाला है सो प्लीज़ लेट मी गो।”

प्रतीक अपनी बात खत्म करता अब दो पल भी अपने डैड के सामने नहीं रुका और वे भी हताशा से उसे जाता हुआ देखते रहे। ये आज की जेनरेशन के सामने उनकी उम्र की हताशा थी जिसे आखिर वह किसके आगे व्यक्त करते पर सच यही था कि आज की जेनरेशन तरक्की के लिए इतनी तेज भाग रही थी कि उसे पता ही नहीं चलता कि कौन कौन उसके पीछे छूटता जा रहा है। यहाँ तक कि अपना देश भी उसके बहुत पीछे छूटता जा रहा है। वे बेबस से अपने इकलौते बेटे को विदा करने का मन बनाने लगे। अब यही सच था जिसका उन्हें हर हाल में सामना करना था।

प्रतीक कल ही अपनी नई जॉब के लिए यूएसए निकलने वाला था इसलिए उसके दोस्त उससे एक पार्टी की डिमांड कर रहे थे आखिर प्रतीक भी यही चाहता था कि वह सबको बताए कि वह अपनी लाइफ में क्या बेस्ट करने जा रहा है।

उसके सारे दोस्त शाम के सात बजे लियोपोल्ड कैफे कोलाबा में इक्कठे हो कर उसका इंतज़ार कर रहे थे। शाम का वक़्त सब जगह भीड़ से गुलजार थी। उसके सारे दोस्त पार्टी के लिए व्यग्र थे पर प्रतीक अभी तक आया नहीं था। वह अपना ट्रैफिक में फसा होना बता चुका था इसलिए सभी अपनी पूरी तैयारी के साथ उसका बेसब्र होकर इंतजार कर रहे थे।

“ओह गॉड अब तो बस आठ भी बजने वाले है – कही ये हमें उल्लू बनाकर यूएसए तो नहीं निकल गया।” एक दोस्त की बात पर बाकी कसकर ठहाका मारकर हँस पड़ते है।

प्रतीक जल्दी से ट्रैफिक से निकलता हुआ कोलाबा पहुँच गया। एक तो रास्ते में वह फंसा हुआ था ऊपर से बार बार उसके डैड का फोन पर फोन आया जा रहा था। उसने बहुत सी रिंग जाने दी फिर कार पार्किंग पर लगाकर ही फोन कान से लगाए लगाए ही कैफे की ओर बढ़ने लगा।

“क्या हुआ डैड क्यों इतना कॉल कर रहे है ?”

“बस यही पूछने के लिए कि तुम वापस कब आ रहे हो ?”

“ओह डैड अभी तो पहुंचा ही हूँ मैं – वैसे भी यहाँ के इडियट ट्रैफिक के मैं एग्जोस्ट हो चुका हूँ – मैं आपको बाद में कॉल करता हूँ।”

उनकी बाकी की बात सुने बिना ही वह कॉल कट करके मोबाइल अपनी पॉकेट में डालने लगता है। उसकी नज़रों के सामने अब कैफे था और उसके शीशे के पास उसे अपने दोस्तों की मौजूदगी दिख रही थी जिससे उसके चेहरे पर कुछ हलकी सुकून भरी मुस्कान आ गई। वह चारों ओर की कुछ ज्यादा ही भीड़ से उबता हुआ उसे देखता आगे बढ़ रहा था। वही से टीवी का बड़ा सा स्क्रीन भी दिख रहा था जिसमें इंडिया वर्सेज इंग्लैण्ड का मैच चल रहा था शायद इस कारण भी कुछ ज्यादा ही भीड़ वहां मौजूद थी।

उसकी नजरों के सामने उसके दोस्त और उसके बीच दो लोग आपस में मोबाइल से बात करते हँसते हुए दिखते है जैसे उन्हें भी किसी का इंतजार हो और तभी पल में सारा नज़ारा बदल गया और पल में चहल पहल शोर में बदल गई। प्रतीक पल भर को समझ भी नहीं पाया कि अचानक पलक झपकाने भर के समय में क्या हो गया। वे दो अनजान इंसान किसी वहशी की तरह कैफे की ओर अपनी बन्दूक से दनादन गोलियां बरसा रहे थे। लोग बदहवास से भाग रहे थे। जाने कितने वही तुरंत कटे पेड़ की भांति गिर गए। बहुतेरे तो आखिरी बार पलक भी नहीं झपका सके। एक ही पल में वहां का नज़ारा इतना वीभत्स हो गया कि जिसे जहाँ जगह मिला वही भागकर अपनी जान बचाने की कोशिश करने लगा। पूरे दस मिनट तक मौत वहां अपना नंगा नाच दिखाती रही। वहशीपने का ऐसा क्रूर नज़ारा किसी की भी कल्पना से परे था। प्रतीक पल भर को समझ ही नहीं पाया कि उसकी नज़रों के सामने क्या हो रहा है। वह भी जान बचाने भीड़ के साथ भागने लगा। लोग बस बेतहाशा भागे जा रहे थे जाने कितनों पर गोलियां बरसती रही और वे बेदम से वही गिरते रहे।

प्रतीक भी किसी तरह से खुद को बचाता हुआ भीड़ के साथ भागता हुआ कही जा रहा था। भीड़ का एक बड़ा हिस्सा किसी बड़े होटल की शरण में जा रहा था। वह नज़र घुमाकर देखता है कि वह ताज होटल के कोरिडोर में था। सब तरफ आवाजों का बेइंतहा शोर उमड़ रहा था। जमीं पल में सुर्ख लाल हो गई थी। जहाँ नज़र जाती बस बेबस इंसानी देह पड़ी नज़र आती। ऐसे में उन गोलियों से बचने के लिए जिसे जहाँ जगह मिलती वही खुद को छुपाने की कोशिश करने लगता।

प्रतीक भी अंधी भीड़ के साथ ताज के कोरिडोर में आता किसी खम्बे में पीछे खुद को छिपा भी नहीं पाया था कि फिर वही दहशत वही निर्मम गोलियों की आवाज के साथ लोगों की आखिरी चीखे उसके कानों में पड़ने लगी। वह घबराहट में सर उठाकर देख भी नहीं सका कि वह कौन है जो इंसानियत के इतने बड़े दुश्मन हो गए !! वह बस डर, दहशत, घबराहट और वेदना की चीख पुकार ही सुन रहा था। वे बेरहम गोलियां न बच्चों को छोड़ रही थी न औरतों , वृद्धों को ही बख्श रही थी।

इतना निर्दयी समय उनकी कल्पना से भी परे था। वह कारीडोर से होता होटल के अंदरूनी हिस्से में एक बड़ी भीड़ के संग भागा। वह घायल था। पर जिंदगी की उम्मीद का दामन कोई अंत तक नहीं छोड़ना चाहता था। सभी इधर उधर भागने लगे तभी फिर वही तड़तड़ की आवाज गूंजने लगी साथ ही कई लोग फिर कटे वृक्ष से फर्श पर गिर गए। प्रतीक को पता भी नहीं चला कब वह उन्हीं घायलों के बीच वही गिर पड़ा।

वह घायल खम्बे के पीछे पड़ा था इसलिए उन नरपिशाचो की फर्श पर पड़े लोगो पर गोली बरसाने से वह बच गया। उसकी साँसे हलक में घुटी जा रही थी। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके जीवन का ऐसा अंत होगा। उसे बस अहसास भर था कि उसके चारो ओर बस लाश ही लाश है। हवाओ में बारूद की गंध समां गई थी।

उसे पता भी नही चला कि कितना समय वह बेहोश रहा। उसकी तन्द्रा तो फिर किसी तेज धमाके की आवाज से टूटी। वह लगातार कई धमाकों की आवाज सुन रहा था। साथ ही कई शोर और बीप जैसी आवाज। वह चाहकर कर भी खुद को हिला नही पा रहा था बस अपनी अर्धचेतना में उन आवाजों को सुनते अंदाजे ही लगा पाया कि वह आवाज निश्चित रूप से ग्रेनेड की होगी। काले धुंए का गुबार और इसके पीछे भागते बेदम लोगों की चीख पुकार वह साफ़ साफ़ सुन पा रहा था पर उसका निस्तेज पड़ा शरीर इसके प्रति कोई हरकत नही कर पाया।

शायद आर्मी आ चुकी थी। अब जवाबी गोलाबारी की मिलीजुली आवाज थी। लाशों को वहां से हटाया जा रहा था पर बचाव के कार्य के साथ अभी भी किनारे पड़ी लाशों पर किसी का ध्यान नहीं था उन्हीं के बीच अपनी अर्धचेतना में पड़ा प्रतीक अपनी साँसों की मध्यम पड़ती आवाजो को साफ़ सुन पा रहा था साथ ही अपने परिदृश्य के टुकड़े में कई कमांडोज को भारी भारी लबादो और गन के साथ अपने आस पास मंडराते हुए उसने महसूस किया। उस पल उनकी मौजूदगी से उसके मन को कितना सुकून मिला ये उस पल शायद वही समझ पा रहा था।

उसका चेतना खोता हुआ मस्तिष्क अचानक चेतन अवस्था में आ गया और वह साफ़ साफ़ उनकी मौजूदगी देख रहा था। अपनी जान पर खेलकर वे कितने घायलों को अपने कंधे पर ढोते सुरक्षित पहुंचा रहे थे। कितने खुद भी घायल थे पर अपनी परवाह किए बिना वे लोगों को बचा रहे थे क्या ये सिर्फ ड्यूटी भर था या उससे भी कही अधिक !! प्रतीक सब देखता महसूस करता हुआ मन की परतें कुरेदने लगा। वे वाकई कोई फ़रिश्ते थे जो अपनी जान पर खेलकर देश की सुरक्षा के लिए दुश्मन के आगे मजबूत दीवार बनकर खड़े थे जिसके पीछे हम आम लोग कितना सुरक्षित महसूस कर पा रहे थे।

क्या उनके कोई सपने नहीं होंगे उनके परिवार उनकी उड़ान सब बस देश के लिए कैसे सिमट गई। प्रतीक के घायल शरीर के अन्दर कुछ बदल रहा था जो मृत सपनों की जमी पर उम्मीद बनकर उगा था।

तभी कुछ काले लिबास में लोगों को कुरेदकर उन्हें जिन्दा है या नहीं देखने लगे। प्रतीक को खुद को बचाने का यही अवसर दिखा और वह अपनी भरसक कोशिश में अपने शरीर में हरकत करता है जिससे उनका ध्यान उसकी ओर जाता है। वे पल में प्रतीक को अपनी ओर खींच लेते है।

अगले ही पल साफ़ हो गया कि उसने जिंदगी को नहीं मौत की आहट सुनी है। वे काले लिबास में आतंकी थे जो जिन्दा लोगों को होस्टेज करके अपनी ढाल बना रहे थे। अब मौत पक्की थी। प्रतीक की सांसे उसके शरीर में घुटने लगी। वे उसे गर्दन से पकड़कर घसीटते हुए ऊपर कही ले जा रहे थे कि पल में गोली चली और वह बेजान वस्तु की तरह नीचे गिर पड़ा। पर ये क्या वह जिन्दा था। वह धक्के से गिरा था न कि गोली से। उसने किसी तरह खुद को उठाते हुए देखा पर किसी ने उसे पीछे की ओर धक्का देकर पीछे किया और जब तक क्या हो रहा है वह समझता वह पीछे की ओर गिर पड़ा।

अगले ही पल वह कई लोगों द्वारा किसी तरह बाहर निकाला जा रहा था पर अपनी वापस आई चेतना से वह सारा माजरा समझ चुका था। जब आतंकी उसे चारा बनाकर ऊपर की ओर लिए जा रहे थे तभी एक कमांडो ने उसे कवर करके बचा लिया पर खुद घायल हो गया। अब उन दोनों को बचाव टीम बाहर सुरक्षित लिए जा रही थी। उन लाशों के ताबूत से बाहर का नज़ारा कुछ अलग था। लोग अपनो के जिन्दा बचे होने की उम्मीद भरी नज़र से उस जगह को देख रहे थे। इसी पल प्रतीक को अपने डैड की याद हो आई। उस दिन अचानक क्यों उन्होंने कॉल किया क्या उनका मन अपनों के प्रति डर महसूस कर रहा था !!

सोचता हुआ प्रतीक एक आखिरी नज़र उस जवान पर डालता है और जो दृश्य उसकी आंखें देखती है उससे उसका रोम रोम जडवत हो कर रह जाता है। प्रतीक को एम्बुलेंस में तो जवान को ढकी चादर से दूसरी वैन में ले जाया जा रहा था। अचानक उसकी सारी तन्द्रा वही उस पल में सिमट कर रह गई।

अब उसके कान बस टीवी शो का कोई पुराना क्लिप याद कर रहा था जिसमें एक छोटी बच्ची जवान से पूछ रही होती है – ‘आपको ये ड्रेस पहनकर कैसा फील होता है ?’

तब जवान मुस्कराते हुए कहता है – ‘बच्चा पता है जब ये ड्रेस पहन लेते है तो कुछ फीलिंग नांम की चीज नहीं होती बस देश ही दिखाई देता है और देश ही परिवार है जिसके लिए हम कुछ भी कर सकते है।’

प्रतीक दर्द भिंचते हुए अपनी आँखें कसकर बंद कर लेता है जिससे अंतरस दर्द की कोई बूंद उसकी आँखों के कोरों से लुढ़क जाती है।

न आसमान ही रोया

न जमी ही थर्रायी

न जाने किस घड़ी मौत चली आई

बस निशां बाकि दिलों पर रह गया

यादों में कोई ताबूत में सिमट गया

बस सुकून की नींद सोया

वह सुकून से मुस्करा दिया

ऐ देश तुझपर कोई मिट गया

ऐ देश तुझपर तेरा सपूत मिट गया

होकर तुझपर कुर्बान....।।

......................समाप्त..जय हिन्द.......



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