कहानीकार
Share with friendsवैदेही गोबर घोलकर चबूतरे पर फैलाने लगी। उफ़ ! फिर से चिलक गई उसकी कमर।
Submitted on 25 Oct, 2019 at 12:56 PM
ट्रेन जब ‘विश्वनाथ गंज’ स्टेशन पर रुकी तो दीनानाथ ने अपना झोला कंधे पर टांगा और सूटकेस उठाकर नीचे उतर गए |...
Submitted on 09 Jul, 2018 at 11:07 AM
आज अम्मा बेहद खुश हैं । उनके बेटे की चिट्ठी आई है कि वह दादी बनने वाली हैं । कितने वर्षो से ये सुनने के लिए...
Submitted on 07 Jul, 2018 at 02:58 AM
हरे-पीले, पके-अधपके आमों से लदे पेड़ों का बगीचा । बीच से निकली है सड़क । बगीचे को पार करती हुई मेरी कार एक घने आम के पेड...
Submitted on 07 Jul, 2018 at 02:56 AM