सच्ची दौलत
सच्ची दौलत
"क्या हुआ आंटी, लगता है आप की तबीयत ठीक नहीं है ?"-मेरी बेटी स्नेहा ने दौड़कर हमारे पड़ोस वाले घर की मिसेज चौधरी को गिरने से बचाने के लिए पकड़ते हुए कहा।वे अस्वस्थ सी लग रहीं थीं और शायद सिर चकराने के कारण वे असंतुलित होकर गिरने वाली थीं।
मिसेज चौधरी कुछ बोलतीं इससे पहले ही बेटी ने कहा -"आंटी, आपको तो तेज बुखार है।चौधरी अंकल कहां हैं ? चलिए हम आपको अस्पताल ले जाकर डॉक्टर को दिखाते हैं। "
मिसेज चौधरी कुछ बोल ना सकीं। उन्होंने अपने घर की ओर इशारा किया। इतने में ही चौधरी जी स्नेहा की आवाज सुनते ही अपने घर से तेजी से दौड़ते हुए आए। उन्होंने घबराई हुई मुद्रा में पूछा -" क्या हुआ ? मैं तो तुम्हें इस चबूतरे पर बैठा कर गाड़ी निकालने गया था।"
स्नेहा बोली-"अंकल, आंटी को काफी तेज बुखार है इसी वजह से शायद इन्हें चक्कर आ गया और यह गिरने ही वाली थी कि मैंने इन्हें पकड़ लिया। इन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। मैं पापा को बुलाती हूं। हम अभी डॉक्टर के पास चलते हैं।"
स्नेहा ने आवाज देकर मुझे बुलाया। बाहर आने पर मैं सारी स्थिति की जानकारी हुई। मैंने स्नेहा से हमारे अपने घर से पानी की बोतल ,गिलास, ग्लूकोज लाकर मिसेज चौधरी को पिलाने को कहा। मैंने चौधरी जी से कहा-"जब तक पानी लेकर आती है और मैं गाड़ी निकालता हूं तब तक आप भाभीजी का ध्यान रखिए।"
मैंने गाड़ी निकाली। चौधरी जी और स्नेहा मिसेज चौधरी को बीच में बैठाकर सहारा देते हुए पीछे वाली सीट पर बैठे।हम चारों गाड़ी से अस्पताल के आपातकालीन विभाग में पहुंचे।
डॉक्टर ने मिसेज चौधरी का चेकअप किया और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी कब और क्या समस्या है? इसकी जानकारी दी। इसके पश्चात उनके उपचार में उनको कुछ इंजेक्शन देकर इंट्रावेनस ग्लूकोज देने के लिए बोतल चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। डॉक्टर के अनुसार मिसेज चौधरी को डिहाइड्रेशन हो गया था इसलिए रिहाइड्रेट करने के लिए चिकित्सीय देखरेख में उन्हें अस्पताल में रोकना अनिवार्य था। डाक्टर के अनुसार उन्हें पहले ही आ जाना चाहिए था कभी-कभी देरी होना घातक हो जाता है। डाक्टर ने उन्हें आपातकालीन विभाग से वार्ड में में भेजने के साथ ही आवश्यक दवाइयां लेकर आने को कहा। मैंने चौधरी जी और स्नेहा को उनके साथ वार्ड में चलने को कहा और स्वयं दवाइयां लेने के लिए मेडिकल स्टोर चला गया।
डॉक्टर के द्वारा लिखी गई सभी दवाइयां मैं मेडिकल स्टोर से लेकर आ गया। स्नेहा मिसेज चौधरी के बेड के पास स्टूल पर बैठ गई। स्टाफ नर्स ने इशारे से मरीज के पास सिर्फ एक व्यक्ति को छोड़कर बाकी लोगों को बाहर जाकर बैठने को कहा ताकि वार्ड में भीड़-भाड़ न हो।
चौधरी साहब हमारे पड़ोसी थे। उनको और उनकी पत्नी को अपनी अमीरी पर बड़ा ही गर्व था। हमारे साथ वाले परिवारों से वे बातचीत करने में अपना अपमान समझते थे। बातचीत और व्यवहार से प्रायः वे लोग यही प्रदर्शित करते थे कि उनके पास सब कुछ है और उन्हें कभी भी किसी की मदद की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। वे पैसा फेंको -तमाशा देखो वाले सिद्धांत को मानने वाले व्यक्ति थे। मिसेज चौधरी भी गली में अपनी चर्चा के दौरान कहती थीं कि इस गली में हमारे पतिदेव की सैलरी के बराबर किसी की भी सैलरी नहीं है। गांव में भी हमारे पास जितनी प्रॉपर्टी है उतनी प्रॉपर्टी हमारी इस गली में तो क्या पूरे मोहल्ले में भी किसी के पास नहीं होगी। उनके अनुसार उनके स्टैंडर्ड के हिसाब से यह गली है ही नहीं है।वे बतातीं हम तो बड़ी वाली गाड़ी लेने को हैं लेकिन यहां गलियां इतनी पतली है कि गाड़ी इन गलियों में कैसे निकलेगी इसलिए वे ही नहीं रहे हैं।
वे तो जब बोलना शुरू करतीं तो ऐसा लगता था कि उन्हें केवल बोलना ही है । बोलते समय ज्यादा सोच विचार में भी अपना वक्त बर्बाद नहीं करती थीं। अपनी अमीरी का यशगान करने में शायद उन्हें बड़े ही आत्मिक सुख की अनुभूति होती थी। एक बार वे अपने शाही खर्च का बखान करते हुए बता रही थीं कि हमारा बेटा एक महीने में तीन हजार रुपए से ज्यादा के तो कोल्ड ड्रिंक ही पी जाता है।तब स्नेहा ने उनसे कहा था-"आंटी, दस रुपया प्रति बोतल के हिसाब से तीन हजार की तीन सौ बोतलें हुईं। एक महीने में तीस दिन होते हैं। इस हिसाब से एक दिन में दस बोतलें उसके हिस्से में आती हैं। अब आपका बेटा एक दिन में ये दस बोतलें कैसे पीता है ? चौबीस घंटे में कितने घंटे सोता है ? कितने घंटे जागता है ? दस बोतल रोज खत्म करने के लिए उसने अपना क्या रूटीन तय किया हुआ है ? अगर वह इतना कोल्ड ड्रिंक पी लेता है तो यह उसके स्वास्थ्य के लिए भी यह बहुत ही नुकसानदायक है । योगगुरु स्वामी रामदेव जी तो कहते हैं कि ठंडा मतलब टॉयलेट क्लीनर।"
मिसेज चौधरी ने झूठ पकड़े पर भी झेंपना तो सीखा ही नहीं था। ऐसे मौकों पर भी मुस्कुराते हुए अपने घर के अंदर घुस जाती थीं। वैसे वे तो आसपास लोगों से बात करना भी अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझती थीं सामान्यतया किसी से बात भी तभी करतीं जब उन्हें शेखी बघारनी होती थी।आसपास के लोग उनकी इस आदत से भलीभांति परिचित थे तभी तो जब वहअपनी हांक रही होती थीं तब उनकी बात को कोई गंभीरता से नहीं सुनता था।
मिस्टर चौधरी उनसे भी चार कदम बढ़ाकर थे। वे शायद ही कभी किसी से बात करते थे। किसी के सुख-दुख उन्हें कुछ लेना-देना नहीं था।अपने घर से बाहर निकलते समय या बाहर से आते हुए घर में प्रवेश करते समय वह किसी की तरफ आंख उठाकर भी देखना नहीं पसंद करते थे। किसी से मेलजोल का तो कोई सवाल ही नहीं।
चौधरी दंपत्ति का शायद यही विचार था कि उनके पास बहुत सारा पैसा है। आज के समय पैसे की मदद से कुछ भी किया जा सकता है। अगर आपके पास पैसा है उससे आप दुनिया की कोई भी सेवा प्राप्त कर सकते है। सीधा सा सिद्धांत है कि पैसा फेंको- तमाशा देखो। शायद इसीलिए वे किसी से कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे। उनका ऐसा मानना था कि लोग अमीरों से संबंध अपने लाभ के लिए ही बनाते हैं।हर किसी को अपने संबंध अपने समान स्तर वाले लोगों से ही बनाने चाहिए।
उनके पास पैसा चाहे जितना हो लेकिन वे रिक्शेवाले से ,सब्जी वाले से ,फल वाले से या अन्य जिस किसी की सेवा लेते उससे दो- चार रुपए के लिए भी लंबी बहस करने पर उतर आते थे। और इस बहस में वह अपनी अमीरी को बढ़ा चढ़ाकर वर्णन करके पूरे मोहल्ले को जानकारी करवा देते थे।बहस करते-करते वे गाली-गलौज और झगड़े पर उतर आते थे और इस क्रम में एक नहीं बल्कि अनेक बार उनकी पिटाई भी हो चुकी थी। मोहल्ले का कोई भी आदमी उनके झगड़े के बीच कोई समझौते की बात या उनका पक्ष लेने की जहमत नहीं उठाताथा क्योंकि उनके व्यवहार सभी सभी लोग भली भांति परिचित हो चुके थे।
अपने बच्चों के साथ भी उनके संबंध मधुर नहीं थे। बेटी शादी के बाद दूसरे शहर अपने ससुराल चली गई और उनका इकलौता बेटा शहर में कहीं दूर किराए पर रहता था। बच्चे केवल त्यौहार आदि पर आ जाते थे। शायद उन्हें अकेले रहने में ही ज्यादा शांति और संतुष्टि का अनुभव होता था। पहले जब बच्चे साथ रहते थे तो बच्चों को डांटने-फटकारने की उनकी आवाज अक्सर सुनाई देती रहती थी।
बच्चों के जाने के बाद उनके घर पर काम करने के लिए जो बाई आती थी। उसके काम में मीन-मेख निकालना उनकी आदत थी अक्सर वे उसे डांटने के बहाने ही तो अपनी अमीरी का यशगान करके संतुष्टि का अनुभव करते थे क्योंकि लोगों से उनकी बातचीत न के बराबर होती थी और आसपास के लोगों को उन्हें अपनी यशगाथा गाने का सामान्यतः अवसर ही प्राप्त नहीं होता था।
इमरजेंसी के बाहर मेरे साथ बैठे हुए चौधरी साहब आज बेहद गंभीर और गमगीन लग रहे थे। शायद उनको आत्मग्लानि का अनुभव हो रहा था। उनके चेहरे की भावना से स्पष्ट था कि वे बेहद परेशान हैं। उनके कंधे पर मैंने ज्यों ही हाथ रखा तो वे फफक -फफक कर रो पड़े।
मैंने उन्हें धैर्य बंधाते हुए कहा-"चौधरी साहब ,आप बिल्कुल चिंता न करें। हम सब तन -मन-धन सहित आपके साथ हैं। आपको किसी भी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। भाभी जी जल्दी ही ठीक हो जाएंगी जैसा कि डॉक्टर भी कह रहे थे कि हम लोग उन्हें सही वक्त पर ले आए। देर हो जाना घातक हो सकता था।"
इतना सुनते ही तो वह फूट-फूटकर रोते हुए कहने लगे-"हम दोनों का व्यवहार आप लोगों के साथ मधुर नहीं रहा लेकिन फिर भी आपने हमारी उन गलतियों की तरफ ध्यान न देकर हमारी मदद की है। इस समय आप लोग देवताओं की तरह हमारे रूखे व्यवहार को ध्यान में दिए बिना हमारी सहायता में लग गए। हम आपके आजीवन शुक्रगुजार रहेंगे।"
मैंने सांत्वना देते हुए उनसे कहा-"आप नाहक ही अपराध बोध लिए बैठे हैं।हम लोग तो ऐसा कभी नहीं सोचते आजकल सभी का समय बहुत ही कीमती है। हर आदमी अपने काम में व्यस्त है। आखिर हम एक दूसरे के पड़ोसी हैं हमारा - आपका सबसे निकट का संबंध है। हमारे पड़ोसी एक-दूसरे के सुख-दुख में जितनी जल्दी भागीदारी निभा सकते हैं इतना जल्दी कोई दूसरा नहीं निभा सकता। हमारा या आपका कोई निकट संबंधी जब जानेगा तभी तो आ पाएगा और जानने के बाद भी उसे हमारे पास कितना समय लगेगा यह भी परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है।"
"आज हमारी समझ में आ चुका है कि आदमी का काम आदमी से ही होता है। अगर इस समय आप लोगों ने मदद न की होती तो मैं अकेले इसे कैसे लाता ? और अगर देर हो जाती तो न जाने क्या हो जाता ? इंसान की जान अमूल्य होती है। इसकी पैसे से तुलना नहीं की जा सकती है। मानवीय मूल्यों की कभी भी पैसे से तुलना नहीं की जा सकती।"-चौधरी जी के मन से पश्चाताप की ज्वाला शांत नहीं हो रही थी।
मैंने उन्हें इस विषय से पूरी तरह निश्चिंत और शांतिपूर्कवक धैर्य धारण कर पूरा ध्यान भाभी जी के स्वास्थ्य की ओर लगाने के लिए कहा। जब मैंने उनसे यह जानने की कोशिश की कि इतनी गंभीर समस्या अचानक तो नहीं आ सकती। तबीयत कई दिनों से खराब रही होगी। तब उन्होंने बताया कि पिछले एक हफ्ते से इसने काम वाली बाई को डांट कर भगा दिया। तबीयत खराब होने के बावजूद यह काम करती रही। मेरे पास भी इसे डॉक्टर को दिखाने का समय नहीं था। आजकल बेटे से बातचीत बंद है इसलिए उसे भी खबर नहीं की गई। पिछले तीन -चार दिन से लूज मोशन आ रहे था कल सुबह से हल्का और बाद में बुखार तेज हो गया। शाम को भी तबीयत खराब लग रही थी पर बहुत ज्यादा नहीं। रात में करीब दो बजे तबीयत कुछ ज्यादा खराब होने लगी थी लेकिन इतनी रात में ले जाना संभव नहीं लगता था।सवेरे तक जो हाल हुआ उसके हिसाब से इसे मैं अकेले कैसे लाता। स्नेहा ने जिस समय इसे पकड़ा उस उस समय की हालत को देखकर तो मेरे हाथ पांव ही फूल गए थे। आज मैं यह जान चुका हूं कि सच्ची दौलत आपसी सहयोग संबंध ही है बाकी ये धन सम्पत्ति सब गौण है।"
मैंने उन्हें अपराध बोध से पूर्णतया मुक्त कराने के उद्देश्य से कहा-"आप इन सब चीजों को भूल जाएं और "बीती ताहि बिसारि के आगे की सुधि लेहु " क्योंकि वे क्षण जो दुख दें उन्हें भूल जाना ही श्रेयस्कर है। देखिए! वार्ड ब्याय शायद हमें बुला रहा है।"
चौधरी साहब मेरे साथ साथ वार्ड ब्वॉय की ओर बढ़ चले।