तपस्या और प्रकाश की बात
तपस्या और प्रकाश की बात
तपस्या अखबार पढ़ते-पढ़ते झुंझला उठी और अखबार को एक तरफ फेंकते हुए बोली-"कितना बेकार समय आ गया है? अखबार में जो पेज पलट कर देखो उसमें हत्या ,लड़ाई - झगड़ा ,धोखा ,चालाकी बलात्कार और सब एक से बढ़कर एक नकारात्मक खबरें ही है । क्या अखबार वालों लिए अच्छी खबरों का अकाल पड़ गया है? बड़े बुजुर्गों की बात सुनें जो कहते हैं कि हमारा जमाना कितना अच्छा था? आज दुनिया कितनी बदल गई है । भाई- भाई का ,बेटा बाप का ,बाप बेटे का सब एक दूसरे के दुश्मन , दोस्त के रूप में दोस्ती के नाम पर कलंक और सब एक दूसरे के खून के प्यासे दिखाई देते हैं।"
प्रकाश हंसते हुए बोला-" बहन तपस्या, क्यों दुखी हो रही हो? यह दुनिया और इस दुनिया की हर चीज अच्छाई और बुराई का मिश्रण है। किसी चीज को बिल्कुल ही अच्छा या बिल्कुल नहीं बुरा नहीं कहा जा सकता। यह दुनिया हमेशा से लगभग ऐसी ही थी और आगे भी ऐसी ही रहेगी । अच्छे बुरे लोग हमेशा से ही इस दुनिया में रहे हैं और आगे भी रहेंगे।यह बात दूसरी है कि पहले समय में कुछ ही लोगों को ही वह भी कुछ ही चीजें पता लगती थीं ।अब तुम अखबार पढ़ रही हो तो तुम्हें इसमें छपे समाचारों का पता चल रहा है। ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोगों के पास न अखबार है इसलिए इनमें से कोई खबर उन्हें पता लग पाती है। वहां के लोग इन खबरों के झंझटों से दूर अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त और मस्त हैं । अखबार टेलीविजन रेडियो या दूसरे भी संचार के माध्यम जनता के हितों का ध्यान न रख कर अधिकतर अपने ही हित की बात सोचते हैं । यह भी एक उपभोक्ता संस्कृति है। जितने चटपटे मसालेदार सनसनीखेज समाचार जो अखबार या जो टीवी चैनल प्रस्तुत करेगा उनसे ही उसकी लोकप्रियता और लोकप्रियता से विज्ञापनों की बाढ़ आती है जिससे आमदनी बढ़ती है। इस अखबार में भी सारी की सारी खबरें मन:स्थिति को खराब करने वाली नहीं है। इसमें भी बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जो हमें सकारात्मक चिंतन के लिए प्रेरित करती हैं। हम इस समाज इस अखबार , इस समाज,इस दुनिया या युग को बदलने की बजाय अपना दृष्टिकोण बदलें । परिवर्तन तो इस संसार का शाश्वत सत्य है तो अब अपना मूड परिवर्तन करो। चिंता छोड़ कर मन में प्रसन्नता के भाव जगाओ। तपस्या को चाहिए कि वह शांति प्राप्ति हेतु तपस्या में लीन हो जाए।"
" केवल कह देने से शांति नहीं मिलती अगर हम शांत होना भी चाहें तो मन में एक के बाद नये- नये विचार उमड़ने - घुमड़ने लगते हैं विचारों की श्रंखला प्रारंभ होती है तो वह थमने का नाम नहीं लेती ।जब मन में नकारात्मक भाव आते हैं तो हर अच्छी चीज में भी कमियां नजर आने लगती हैं।"
प्रकाश ने तपस्या को समझाने का प्रयास करते हुए कहा-"अखबार में छपी खबर सच ही हो ऐसा कोई जरूरी नहीं होता।कितनी बार कोई समाचार प्रकाशित होता है। कुछ दिनों के बाद उसी अखबार में उसी खबर के बारे पता चलता
है कि वह तो एक झूठी खबर थी जो बदला लेने या बदनाम करने हेतु रचे षड्यंत्र का हिस्सा थी।यह तो लघु अवधि का परिवर्तन हुआ कितने सारे शोधकार्य नया शोध होने पर गलत प्रमाणित होते हैं।हम भूत या भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान का चिंतन करते हुए, वर्तमान स्थिति के प्रति सजग,सचेत और संवेदनशील रहते हुए सर्वश्रेष्ठ आचरण व व्यवहार अपनाएं।डर और अति विश्वास या किसी पूर्वाग्रह से पूर्णतया मुक्त रहें।
तपस्या ने प्रकाश से कहा-" ये साइबर अपराध,ठगी के मामले पढ़कर तो भय लगता है कि हम भी इसके शिकार हो गए तो क्या होगा?
प्रकाश ने समझाया-" हमें डर-डर कर अपना न तो ब्लडप्रेशर बढ़ाना है और न ही अपना वजन घटाकर दुबले होना है। किसी आपराधिक घटना से हम सचेत हो जाएं कि हम किसी अपराधी के बनाए जाल में न फंसें। हम तो देश के नेताओं से विषम परिस्थितियों में हरदम प्रसन्न रहने का रहस्य सीख सकते हैं। किसी नेता के बारे में हम यह सोचते हैं कि अमुक स्थिति के बाद उन्हें एक चुल्लू भर पानी की शरण ले लेनी चाहिए लेकिन वे तो बेशर्मी का ओडोमास लगाए बड़े ही अकड़े घूमते रहते हैं। अखबार के संपादकीय पेज पर प्रकाशित व्यंग्य को पढ़कर मन बहलाइए।अब यह तो हमारी अपनी विषय चयन की रुचि है कि हम कौन सा समाचार या लेख पढ़ते हैं।"
"प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन और जानलेवा प्रदूषण के विरुद्ध हम क्या कर सकते हैं?"- तपस्या कुछ संयत होती हुई बोली।
प्रकाश ने कहा-" न तो ये समस्याएं एक दिन में पैदा हुईं और ना ही एक दिन में समाप्त होंगी । इन समस्याओं को उत्पन्न करने में किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि सब का सामूहिक हाथ है।भले किसी की भागीदारी कम रही हो और किसी ज्यादा। अब तो इनके समाधान हेतु हम वैश्विक स्तर पर सामूहिक रूप से विचार कर रहे हैं। हम सबको व्यक्तिगत रूप से अपनी अपनी भागीदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभानी होगी क्योंकि यह किसी एक व्यक्ति के लाभ या हानि का विषय नहीं रहा समस्त मानवता के लिए खतरनाक है । हम सभी को अपने अपने स्तर पर यथासंभव सभी संभावित कदम उठाने चाहिए। बूंद बूंद से जो पाप का घड़ा भरा है उसे छोटे-छोटे मगर अनवरत प्रयासों से इसका समाधान करना होगा। हम सब समस्या का समाधान तो चाहते हैं लेकिन खुद की सुख-सुविधा में कोई कटौती करना नहीं चाहते हैं। हम यह चाहते हैं कि इस समस्या का समाधान कहीं आसमान से आ टपके पर हम अपनी सुख-सुविधा में कोई कोर कमी न आने पाए।जीवन में सुख-सुविधा शामिल करना आसान लेकिन मिलों हुई सुख - सुविधा को त्यागना यदि असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य होता है। यही कारण है की समस्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है।"
"ठीक है, प्रकाश भैया। मुझे सचेत करने हेतु आपका हृदय से आभार और कोटि-कोटि धन्यवाद।"- तपस्या ने कहा और वह अखबार के संपादकीय पेज को पढ़ने में व्यस्त हो गई।