मेरी उच्छृंखलता
मेरी उच्छृंखलता
कक्षा की मॉनिटर जिज्ञासा ने आज अपनी जिज्ञासा मेरे बारे में कुछ विशिष्ट जानने की रखी-"सर आप प्रायः अपने और दूसरे अनेक लोगों के जीवन से जुड़े ऐसे प्रसंग सुनाते हैं कि हम सब भी उनके अनुसार ही उन्हें अपने आचरण और व्यवहार में लाकर सकारात्मक दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं। इन सबसे अलग आज आप किसी दूसरे के नहीं बल्कि अपने जीवन से जुड़ा कोई ऐसा प्रसंग हम सब को सुनाइए जिसे सुनकर हम उसे ना दोहराएं बल्कि आप भी हम सबसे यही अपेक्षा करें कि जो आपने किया था उसे हम अपने जीवन में न दोहराएं।"
मैंने कक्षा को संबोधित करते हुए कहा-"आज जिज्ञासा तुम सबके सामने मेरे जीवन का कुछ ऐसा रहस्य उगलवाने चाहती है जिसमें मेरी उच्छृंखलता शामिल रही हो यानी मेरी जीवन की ऐसी गलती जिसमें मैंने किसी एक चीज की प्राप्ति के लिए उससे कहीं अधिक मूल्यवान चीज का बलिदान किया हो।"
आकांक्षा अपनी सीट से खड़ी हुई और बोली-" सर, जैसा कि आप प्रायः कहते हैं कि हम सब विद्यार्थी के साथ-साथ आपके अपने पुत्र पुत्रियों के समान हैं तो आप की पुत्री आकांक्षा की आपसे यही आकांक्षा है कि आप जिज्ञासा की इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए हमारी कक्षा में अपने जीवन का कोई ऐसा प्रसंग अवश्य सुनाएं। जहां तक आप का हम सब बच्चों के प्रति जो आत्मीय संबंध है उसके अनुसार मैं यह पूरे आत्मविश्वासविश्वास के साथ कह सकती हूं कि आप हमें ऐसा प्रसंग अवश्य सुनाएंगे।"
मैंने कहा-" हम सब इतिहास का अध्ययन करते हैं बहुत सारे किस्से- कहानियां सुनते हैं। हर किस्से कहानी में नायक और खलनायक होता है कहानी में नायक भले ही सामाजिक,आर्थिक , शारीरिक या अन्य दृष्टिकोण से खलनायक से कमजोर भी हो लेकिन उसका चरित्र अनुकरणीय होता है। कहानी की शुरुआत से एक लंबे अंतराल तक खलनायक अधिक संपन्न, शक्तिशाली और दबंग किस्मका दिखाया जाता है। किंतु उसका आचरण व्यवहार कुछ इस प्रकार दिखाया जाता है कि हम उसके उन अवगुणों से दूर रहने के लिए प्रेरित होते हैं। इसी प्रकार इतिहास में भी कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो अनुकरणीय होती है उनसे हम सीखते हैं कि हमें भी ऐसा करना चाहिए। इतिहास में भी कुछ ऐसे व्यक्ति या कुछ एक ऐसे निर्णय भी होते हैं कि उनसे हम यही सीखते हैं कि इन्हें भविष्य में नहीं दोहराया जाना चाहिए बल्कि इनसे बच के रहना चाहिए ।जन सामान्य के व्यावहारिक जीवन में भी बहुत सी प्रेरणादायक घटनाएं होती हैं ।इसके साथ ही कुछ घटनाएं ऐसी भी होती हैं जिनसे हमें सदैव बचकर रहना होता है।कोई व्यक्ति ऐसा कार्य कर हो रहा है कि दूसरे व्यक्ति उसे देख कर कभी भी जीवन में ऐसी स्थिति आने पर उससे दूर रहने की सीख ग्रहण करें।"
प्रकाश बोला -"यदि एक घटना आपके विद्यार्थी जीवन से जुड़ी हो फिर तो और भी अच्छा रहेगा।"
"ठीक है मैं ऐसा ही करूंगा"- मैंने कहा-"यह घटना तब की है जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ता था ।उस समय मेरी अर्धवार्षिक परीक्षाएं चल रही थीं। मेरा स्कूल तहसील स्तर के कस्बे में था और उसी कस्बे में एक टूरिंग टॉकीज अर्थात तंबू में चलने वाला सिनेमा घर था।इसमें सिनेमा हॉल की बजाय तंबू की मदद से उस परिसर में अंधेरा कर दिया जाता था ताकि फिल्म को देखा जा सके । मेरी ग्यारहवीं और बारहवीं दोनों कक्षाओं में बोर्ड परीक्षाएं ही होती थी क्योंकि मेरे सीनियर सेकेंडरी के पाठ्यक्रम में ग्यारह विषय थे जिनमें छह विषय ग्यारहवीं कक्षा में और पांच विषय बारहवीं कक्षा में पढ़ने होते थे। दोनों ही कक्षाओं में बोर्ड की परीक्षाएं होती थी । उस दिन मेरा भौतिक विज्ञान विषय की परीक्षा थी। और उस दिन टूरिंग टॉकीज में शोले फिल्म दिखाई जानी थी ।उस टूरिंग टॉकीज में प्रायः हर रोज नई फिल्म ही दिखाई जाती थी क्योंकि कस्बे की आबादी बहुत अधिक नहीं थी और एक फिल्म के केवल दो शो ही दिखाए जाते थे। कश्मीर की कम जनसंख्या के हिसाब से एक फिल्म दूसरी बार मुश्किल से ही दिखाई जाती थी क्योंकि दूसरे दिन दर्शक न के बराबर ही मिलने की संभावना रहती थी।अब मेरे सामने प्रश्न यह था कि मैं भौतिक शास्त्र की परीक्षा और अपनी पसंदीदा फिल्म में एक का चुनाव करूं । विभिन्न पक्षों पर तार्किक विश्लेषण के बाद मन में विचार आया कि इस अर्धवार्षिक परीक्षा के अंक बोर्ड की वार्षिक परीक्षा में तो जोड़े नहीं जाने हैं और फिल्म पता नहीं कब देखने का अवसर मिलेगा ।तो मैंने यह तय किया कि मैं परीक्षा देने की बजाय फिल्म देखना अधिक पसंद करूंगा ।परीक्षा का समय और फिल्म के पहले शो का समय एक ही था ।परीक्षा देकर दूसरा शो इसलिए नहीं देख सकता था कि घर देर से पहुंचूंगा ।तो पता नहीं घर पर किन-किन झूठों का सहारा लेकर इस सच को छिपाने के झूठ बोलना पड़ेगा और कई एक झूठ बोलकर उस एक एक झूठ को छिपाने कोशिश करूंगा । फिर यह सच्चाई तो तब भी आज नहीं तो कल सामने आ ही जाएगी। यह संसार का नियम है कि एक झूठ को छुपाने के लिए व्यक्ति हजारों झूठ भी बोले लेकिन सच सामने आकर ही रहता है । सबसे बड़ी बात यह है कि रहस्योद्घाटन तो हमारे झूठ हमारे भरोसे का कत्ल कर देते हैं तो बड़ी ही शर्मिंदगी होती है।"
हरीश ने पूछा-" तो फिर आपने घर जाकर घर वालों को सच बताया या झूठ बोला।घर वालों को कब और कैसे पता लगा और पता लगने पर घर वालों की ओर से क्या प्रतिक्रिया रही थी?"
मैंने कक्षा को बताया-" मैं बड़ी दुविधा में था। बार-बार मन में आता था कि मैं झूठ बोलकर इससे मुक्ति पा लूं पर अगले ही क्षण हिम्मत जवाब दे जाती थी। गांव कस्बे सात किलोमीटर था।शाम को चार बजे घर पहुंच गया। विद्यालय में परीक्षा देने के बाद घर पहुंचने का यही समय था इसलिए किसी के द्वारा किसी पूछताछ का तो प्रश्न ही नहीं उठता था।पर अपने आप ही मन में अन्तर्द्वन्द चल रहा था।घर पहुंचकर सूक्ष्म जलपान लेकर मैं खेतों की ओर चला गया।पर मन में शांति नहीं आ पा रही थी।बड़ी अजीब सी स्थिति हो रही थी। मैं अपने नाना-नानी के पास रहा करता था।नानी की अनुभवी आंखों ने मेरे मन की ऊहापोह पढ़ ली। उन्होंने बड़े स्नेह से मन की बात प्रकट करने को कहा और मैंने उन्हें सच बताकर मानसिक बोझ उतार कर शांति का अनुभव किया।"
प्रकाश ने कहा-" हम तो इस प्रसंग से यही सीखेंगे कि सच बोलने से सारी समस्याएं हल जाती हैं।"
इसके साथ कक्षा के अलग-अलग विद्यार्थियों के इस प्रसंग के विश्लेषण से संबंधित विचार आगे प्रारंभ हो गए।