Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

3  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

हमारे पुरास्थल-सांस्कृतिक एवं आर्थिक केंद्र

हमारे पुरास्थल-सांस्कृतिक एवं आर्थिक केंद्र

5 mins
395


किसी समाज के बारे में जानने के जो स्रोत होते हैं उनमें साहित्य और और उनसे संबंधित स्थलों का अपना-अपना होता है । आज कक्षा में चर्चा के लिए विद्यार्थियों ने यही विषय चुना था चर्चा की शुरुआत करते हुए सुबोध ने अपने विचार रखे- "साहित्य समाज का दर्पण होता है। किसी भी कालखण्ड की सामाजिक व्यवस्था, रीति-रिवाजों, तत्कालीन स्थितियों और परिस्थितियां उस समय के साहित्य में स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होती हैं ।ऐसा साहित्य जिसे राजाओं-महाराजाओं के संरक्षण में लिखा गया है उसमें आश्रय दाता की प्रशंसा का भाग अधिक देता था जो वास्तविकता से दूर भी होता है क्योंकि लिखने वाला आश्रय दाता को पसंद को ध्यान में रख करके ही आपके लेखन की विषयवस्तु को या अपने जीविकोपार्जन या उपहार प्राप्त करने के लिए अपने आशाएं दाता पर निर्भर रहता था। यदि साहित्य का सृजन आश्रय दाता के स्थान पर सामान्य लोगों के द्वारा स्वप्रेरणा द्वारा सृजित किया गया हो वह वास्तविक सामाजिक व्यवस्था की सटीक जानकारी देता है।हर काल की तरह वर्तमान समय में साहित्यकार पूर्ववर्ती साहित्य का अध्ययन करते हैं। पूर्वकालीन साहित्य से प्राप्त जानकारी और अनुभव के आधुनिक परिस्थितियों का अवलोकन करते हुए दोनों समयों की घटनाओं का सम्मिश्रण प्रस्तुत कर प्राचीन और आधुनिक समय की विचारधाराओं में समानता के साथ-साथ परिवर्तित नवीनतम अवधारणाओं को भी प्रदर्शित करते हैं।यह प्रस्तुतीकरण समाज को उसकी अपनी मूलभूत संस्कृति से जोड़े रखते हुए नवाचार के माध्यम से उत्तरोत्तर विकास को गति प्रदान करता है।"

थोड़ा सा रुककर सुबोध ने आगे अपनी बात जारी रखी-" जिस प्रकार साहित्य किसी समाज संस्कृति की जानकारी देते हैं ठीक उसी प्रकार पुरास्थल तत्कालीन समाज और संस्कृति के बारे में हमें जानकारी देते हैं यह स्थल पौराणिक ऐतिहासिक रूप से प्रसिद् होते हैं ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी अधिकांश इतिहास में उपलब्ध साइड से प्रमाणित हो जाती है लेकिन चोरों ने किस सन में जनश्रुति के आधार पर मान्यताएं लोगों में उस क्षेत्र में प्रचलित होती है कभी एक ही पौराणिक महापुरुष से संबंधित स्थल अलग-अलग क्षेत्रों में प्रसिद्ध होते हैं। निशिथ एस. पारिख की कृति " साइनबोर्ड ऐट धोलावीरा "ऐसा ही एक उत्कृष्ट साहित्यिक और पुरा स्थल का प्रस्तुतीकरण है।यह महाभारत के समय को आधुनिक समय के साथ हमें बड़ी ही सुंदरता से जोड़े रहती है।कई अन्य क्षेत्रों में पाए जाने वाले कुछ स्थल हमें हमारे प्राचीन गौरव से जोड़े रहते हैं।यह जुड़ाव पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहे इसलिए कुछ परंपराओं का निर्वहन एक निश्चित समयावधि के अंतराल पर निर्धारित तिथि को किया जाता है। इसकी निर्धारित तिथि पर एक निश्चित समयांतराल के बाद कुछ सामाजिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं जिससे ऐसे कार्यक्रमों की पुनरावृत्ति से समाज के लोगों में नियमित रूप से जानकारी का स्थानांतरण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक होता रहता है। सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं।भगवान विष्णु के अवतार परशुराम के जन्मस्थान के बारे में विविध मत हैं । इनमें से एक मान्यता के अनुसार उत्तर प्रदेश राज्य के शाहजहांपुर जिले के कस्बे जलालाबाद को परशुरामपुरी को भगवान परशुराम के जन्मस्थान रूप में सामाजिक मान्यता प्राप्त है। प्रशासनिक स्तर पर यह तहसील स्तर का तेजी से विकसित होता हुआ एक अति महत्त्वपूर्ण कस्बा है। भगवान परशुराम का मंदिर इस क्षेत्र का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। विविध तीर्थ स्थलों की भांति दूरदराज के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु धार्मिक भ्रमण के लिए आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहां श्रद्धा भाव से प्रार्थना -उपासना करने के साथ लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इन मनोकामनाओं के पूर्ण होने पर श्रद्धालु अपने इष्टदेव के प्रति आभार व्यक्त करने हेतु मनोकामना पूरी होने के बाद कम से कम एक बार फिर आते हैं। भगवान परशुराम के मंदिर के साथ ही एक पवित्र तालाब है जिसे राम ताल कहा जाता है। मंदिर के प्रांगण में विविध धार्मिक अनुष्ठान पूरे वर्ष अनवरत पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ चलते रहते हैं। दशहरे के शुभ अवसर पर रामलीला आयोजित की जाती है अपनी एक विशेषता रखने के कारण रामलीला के दर्शनार्थ आसपास के क्षेत्रों से भारी भीड़ उमड़ती है।"

जिज्ञासा को कक्षा के प्रमुख जिज्ञासु के रूप में जाना जाता है। जिज्ञासा ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की-" अधिकांश पुरास्थल एक न होकर उनसे संबंधित अन्य व्यक्तियों या घटनाओं का वर्णन करते हुए एक से अधिक स्थल होते हैं।इन सभी स्थलों की समान रूप से सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यता होती है।तो भगवान परशुराम जी के जन्मस्थान के पास भी कुछ महत्त्वपूर्ण स्थल अवश्य ही होंगे।"

सुबोध ने जिज्ञासा के तार्किक विचार से पूरी तरह असहमति जताते हुए बताया-" बिल्कुल सही कहा जिज्ञासा बहन भगवान परशुराम जी के मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर उनके पिता महर्षि जमदग्नि का मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को इस मंदिर क्षेत्र में मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं । शाहजहांपुर जनपद का यह तीर्थ स्थल अपने घर में आस्था का केंद्र होने के कारण एक उत्कृष्ट पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। प्रशासनिक रूप से राज्य सरकार की इस पर्यटन स्थल को विकसित करने में अपना सहयोग दे रही है। प्राचीन महत्व के ऐसे पर्यटन और तीर्थ स्थल हमारी सनातन भारतीय संस्कृति के दृढ़ स्तंभ हैं। ऐसे सभी पर्यटन स्थल हमारे देश के धार्मिक सांस्कृतिक और आर्थिक विकास केंद्र के रूप में विकसित होकर समाज में जागरूकता समरसता अपनी संस्कृति और देश से प्रेम करने के लिए जनमानस को प्रेरित करते हैं। इनका अपना विशिष्ट पौराणिक महत्व है।आधुनिक समय में लोगों के सामाजिक ,सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास के ऐसे केंद्र-बिंदु सामाजिक व्यवस्था को शक्तिशाली बनाकर गतिशील बनाए रखते हैं।ऐसे तीर्थ स्थलों का भारतीय संस्कृति को जीवन्त बनाने एवं उसके रक्षण- पोषण में अपनी महत्वपूर्ण योगदान है।

प्रकाश ने अपना तार्किक पक्ष रखते हुए कहा-"प्राचीन काल से ही धार्मिक या सांस्कृतिक केंद्र रूप में विकसित होने वाले केंद्र उस क्षेत्र के निवासियों के लिए रोजगार उपलब्ध करवाकर आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने में सहायक होते हैं। ऐसे स्थलों के क्षेत्र में भ्रमण करने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बहुत सारी सेवाओं की जरूरत होती है । क्षेत्र के लोग भ्रमण करने के लिए आने वाले लोगों के लिए सेवाएं उपलब्ध करवाकर उन्हें सुविधाएं प्रदान करते हैं । इन सुविधाओं के प्रदान करने से रोजगार का सृजन होता है जो लोगों के जीविकोपार्जन का साधन बनता है। इस प्रखर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास सरकार के स्तर पर भी होते हैं सरकार को इन सभी आर्थिक क्रियाकलापों से राजस्व की भी प्राप्ति होती है। इसका ऐसे सभी स्थल समाज के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract