कैसे बोलें- कैसे सुनें ?
कैसे बोलें- कैसे सुनें ?
आज जिज्ञासा ने कक्षा के सामने यह जानने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा-"आज टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर किसी मुद्दे पर चर्चा या वाद- विवाद होते हुए देखते हैं तो बड़ा ही अजीब लगता है कि राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ता मुद्दे को भटकाने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं ।वे चर्चा के मुख्य विषय पर ध्यान न देकर केवल अपनी बात बोलते रहते हैं । वे पूछे गए प्रश्न पर ध्यान नहीं देते । ऐसा लगता है कि वह यह सोचकर ही आते हैं कि उन्होंने अपनी जो बात सोच रखी है उसे टेलीविजन के माध्यम से जनता को सुनानी है । कोई तर्कसंगत बात बड़ी मुश्किल से ही कहता है। कई बार कार्यक्रम के संचालक के रोकने पर भी वे भी रुकते और मजबूरी में संचालक को उनकी आवाज बंद करवानी पड़ती है। मैं यह जानना चाहती हूं कि जब हम किसी के सामने बोल रहे हों तो और कोई दूसरा व्यक्ति जो हमारे सामने बोल रहा है तो हमें विशेष रुप से क्या ध्यान रखना चाहिए ?"
सुबोध ने जिज्ञासा के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा -"बहन जिज्ञासा 'जब भी कोई बोले तो वह सोच समझकर बोले। सदैव ही इस बात का ध्यान रखे कि जो भी बोला जा रहा है वह समय अनुकूल हो और सार्थक हो । ऐसी सोच समझकर बोली गई बात को सभी ध्यान से सुनते हैं। कभी मन में यह भाव नहीं लाना चाहिए कि मेरे बोलते समय किसी का ध्यान मेरी बात पर न जा सके वह तो व्यक्ति ऊंची आवाज में बोलने लगता है ।तब भी लोग उसे सुना - अनसुना कर देते हैं। हमेशा इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि यदि आप अर्थ पूर्ण बोल रहे हैं और आपकी आवाज धीमी रहती है तो सभी लोग बड़े ध्यान से आपको सुनने की कोशिश करेंगे क्योंकि उन्हें इस बात का एहसास होगा कि यह इतनी महत्वपूर्ण बात कही मेरे सुनने से छूट न जाए । आपकी बात पर ज्यादा ध्यान दे करके उसे सुनेंगे और आपका बोलना अर्थ पूर्ण होगा। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए की हम अपनी बात उन लोगों के बीच में ही रखें जो उसे समझ सके और यह बात सुनने वालों की रुचि और आवश्यकता के अनुसार होने पर ही वे इसे ध्यान पूर्वक सुनेंगे। हिंदी पाठ ऐसे लोगों के बीच में भूल ही गई है जो उसे समझ ही नहीं सकते या वह बात उनके लिए अनावश्यक है या अरुचिकर है तब भी वे इस बात को ध्यान से नहीं सुनेंगे। बोलते समय हम सदा सचेत रहें जैसा कि कहा गया है-
बोली एक अमोल है ,जो कोई बोले जानि।
हिये तराजू तौलि के ,तब मुख बाहर आनि।।"
सुबोध थोड़ा सा रुका और बोला -"हमारे साथियों में कोई भी साथी जिज्ञासा बहन के प्रश्न के दूसरे हिस्से का उत्तर दे तो बेहतर होगा क्योंकि जब भी किसी को बोलने का अवसर मिलता है तो उसे इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उसके साथ में दूसरे लोग भी हैं। उन्हें भी अपने विचार रखने का समय दिया जाना चाहिए। । वैसे भी कहा जाता है कि आज हर व्यक्ति बकता है और अच्छे श्रोताओं का अभाव है जबकि हम सब यह भी जानते हैं कि ईश्वर ने हमें मुख केवल एक दिया है और कान दो ताकि हम भूलने की तुलना में अधिक सुनें। अधिकाधिक विचार सुनने से हमारी समझ विस्तृत होती है।"
सुबोध के थोड़ा रुकते ही प्रकाश ने कहा -"सुबोध भैया, यदि आप की सहमति हो तो मैं जिज्ञासा बहन के प्रश्न के दूसरे भाग का उत्तर देना चाहता हूं।"
"आपका स्वागत है ,प्रकाश भैया "- सुबोध ने कहा
प्रकाश ने अपनी बात सबके समक्ष रखते हुए कहा-"हर बोलने वाला अपनी समझ से सर्वश्रेष्ठ ही बोलता है ।सुनने वाले व्यक्ति को सदैव ही यह समझकर वक्ता की बात को पूरे सम्मान और ध्यान के साथ सुने कि जिस समय वह अपनी बात सबके सामने रख रहा होता है उस समय सुनने वालों से उसकी क्या अपेक्षा होती है। वही वक्ता की अपेक्षा अपने हर श्रोता से होती है । एक अच्छे श्रोता होने का गुण यह है कि हम वक्ता की बात को बड़े ध्यान से सुनें। किसी के बोलते समय उसकी बात को बीच में रोकने या बाधित करने का प्रयास न करें । जब तक वक्ता अपनी बात पूरी न कर पाए तब तक उसे रोकना या टोकना नहीं चाहिए । बोलते समय कोई ऐसी बात भी कही जा रही है जिससे आप असहमत हैं या उसमें कुछ और बढ़ाना चाहते हैं। आप ध्यान रखें कि आप अपनी बात उसकी अपनी बात पूरी तरह रखे जाने के बाद ही पूरी विनम्रता के साथ रखें और अपने विचार रखते समय किसी स्थिति में दूसरे को कमतर दिखाने का प्रयास कभी न करें। ऐसा करने से बातचीत का क्रम सुचारू रूप से चलता रहता है यदि अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन या दूसरे को कमतर दिखाने का प्रयास किया जाता है तो यह वार्ता वाद - विवाद का रूप ले लेती है। जिससे पारस्परिक वैमनस्य जन्म ले सकता है और वार्ता निरर्थक हो जाती है इसका अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता।"
जिज्ञासा ने अपनी जिज्ञासा का समाधान करने के लिए सुबोध और प्रकाश का धन्यवाद करते हुए कहा -" सुबोध भैया और प्रकाश भैया का मेरे मन में जागृत हुई इस उत्कंठा का समाधान करने के लिए हार्दिक आभार और बहुत-बहुत धन्यवाद।"