प्रथम लिखित रचना ' साँझ सवेरे तुझको ही देखें' जिसके साक्ष्य मेरे पास मौजूद हैं, मेरे द्वारा २००६ में लिखी गयी थी, तब तक यह सोचा भी न था कि भावी समय में हिंदी साहित्य की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। न जाने कब धीरे-२ लेखन एक जुनून बनता चला गया, पता ही नहीं चला। लेकिन असल मायने में मुझे उस... Read more
प्रथम लिखित रचना ' साँझ सवेरे तुझको ही देखें' जिसके साक्ष्य मेरे पास मौजूद हैं, मेरे द्वारा २००६ में लिखी गयी थी, तब तक यह सोचा भी न था कि भावी समय में हिंदी साहित्य की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। न जाने कब धीरे-२ लेखन एक जुनून बनता चला गया, पता ही नहीं चला। लेकिन असल मायने में मुझे उस दिन एक लेखक होने का आभास हुआ जब जाड़े की एक सर्द और ऑंख फोड़ती सहर में एक नन्हे कातिब को फटी- पुरानी किताबों में अपना भविष्य तलाशते देखा। मन भावुक हो उठा और फिर जो भी भाव उस पल मुख से निकले, काव्यरूपी अलंकार से सृजित थे।
' वो बचपन जिसने अभी ठीक से.. आखर न सीखा था,
मेरे मन के कहीं कोने पर, एक पोथी सी लिख गया।।
मैंने सोच लिया कि काव्य ही एक मात्र ऐसा माध्यम है, जिसकी सहायता से कुछ एवज अर्जित किया जा सकता है , लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है और उन्हें जागरूक किया जा सकता है। ताकि गरीबी से जूझते कई अँधेरे दीपकों का भविष्य अन्धकार में न गुजरे, उन्हें असल मायने में प्रज्वलित किया जा सके, ताकि वह समाज को भविष्य में प्रकाशमयी कर सकें।
(पथिक)
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