कथात्मक कविता-सदा एकता में बल
कथात्मक कविता-सदा एकता में बल
आज गौरव जी की कक्षा के विद्यार्थी प्रकाश ने आज सवेरे हैप्पीनेस की कक्षा में नीतू मैडम के साथ
हुई चर्चा का विवरण उनके साझा करते हुए कहा- " सर आज नीतू मैडम ने हम सबको किसी कहानी को एक कविता के रूप में प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया इस प्रकार की कविता को कथात्मक कविता कहा जाता है। मैडम ने हम सब बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए बताया कि यदि हम बच्चों की कल्पना शक्ति को यदि स्वतन्त्र रूप से विकसित होने समय दिया जाए और हमें इसके लिए प्रेरित किया जाए तो हम बच्चों की सृजनात्मक क्षमता कई बार कल्पनाओं से भी परे देखने को मिलती है। बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार किस्से कहानी सुनने-सुनाने , साहित्य पढ़ने , हस्तकला से सम्बन्धित कार्य करने, लोगों के साथ चर्चा करने का अवसर दिया जाए तो हम सब भी अपनी क्षमता का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकते हैं। कथात्मक कविता में एक छोटी कहानी की तरह कथानक ,पात्रों की एक तारक मेहता होती है जिसमें कविता की तकनीक का उपयोग करते हुए घटनाओं की एक श्रंखला प्रस्तुत की जाती है जिसमें अभिनय,भाव, संवाद आदि का समावेश होता है। कविता को लयात्मकता, कुछ पंक्तियों की पुनरावृति का प्रयोग करके इसे रोचक और स्मृत रखने का उद्देश्य की पूरा किया जाता है। बदलते समय में इसमें कुछ प्रतिबंधों से मुक्त भी रखा जा सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य युगों- युगों से चली आ रही दंत कथाओं को समाज पुनर्जीवित रखना , नैतिक मूल्य को जन-जन तक पहुंचाना और कुछ नए भागों को समाज में रुचिकर ढंग से पहुंचाना है।"
प्रकाश के रुकते ही आकांक्षा बोली-" सर ,प्रकाश भैया ने एक कथात्मक कविता स्वयं लिखी भी है।हम सब इनसे वह कविता सुनाने का आग्रह कर रहे थे। इन्होंने कहा था कि जब गौरव सर कक्षा में आ जाएंगे तब ही उनके सामने ही मैं यह अपनी कविता पूरी कक्षा को सुनाऊंगा।अब मैं पूरी कक्षा की ओर से आग्रह करती हूं कि प्रकाश भैया अपनी स्वरचित इस तथ्यात्मक कविता को हम सबके सामने प्रस्तुत करें।
गौरव सर से अनुमति प्राप्त कर प्रकाश ने एक किसान और उसके चार बेटों की कहानी पूरी कक्षा के लिए काव्य रूप में प्रस्तुत की-
यह सत्य है हर काल में
चाहे आज हो या कल।
मिल जुलकर ही रहें हम
होता सदा एकता में बल।
एक बहुत छोटे से गांव में,
था किसान का एक परिवार।
उस सुखी-समृद्ध किसान के,
थे बड़े सुन्दर से बेटे चार।
चारों भाई आपस लड़ते थे,
प्रायः होती थी उनमें तकरार।
बेचारा किसान था परेशान,
उसे सूझता था न कोई हल।
यह सत्य है हर काल में
चाहे आज हो या कल।
मिल जुलकर ही रहें हम
होता सदा एकता में बल।
किसान थक गया समझाते,
एक दिन वह पड़ गया बीमार।
खाट पर पड़े-पड़े उसके मन में,
एक दिन कौंधा था एक विचार।
संसार छोड़ने से पहले ही वह,
बेटों को सिखाना चाहा एक पाठ।
चारों बेटों में दो हर एक बेटे से,
कुल लकड़ियां मंगवाईं थी आठ।
अपनी एक-एक लकड़ी तोड़ने को,
आदेश देकर लगवाया उसने बल।
यह सत्य है हर काल में
चाहे आज हो या कल।
मिल जुलकर ही रहें हम
होता सदा एकता में बल।
आसानी से टूट गई उनकी लकड़ी,
क्योंकि हर एक को तोड़नी थी एक।
अपनी टूटी लकड़ी सबने दी फेंक।
अब तो उस बुद्धिमान किसान ने
बचीं चारों लकड़ियों को बांध लिया।
एक साथ बंधी लकड़ियों को तोड़ने का,
बारी-बारी से चारों को ही मौका दिया।
लाख जतन करके भी उनमें से कोई भी,
न तोड़ पाया था लकड़ियों का वह बंडल।
यह सत्य है हर काल में
चाहे आज हो या कल।
मिल जुलकर ही रहें हम
होता सदा एकता में बल।
बड़े प्यार से किसान चारों बेटों को,
एक साथ बिठाया फिर अपने पास।
मेरे जिगर के टुकड़े तुम सब ही हो,
बतानी थी यही बात तुमको यह खास।
जो लड़ते-झगड़ते रहोगे अकेले-अकेले,
एक-एक टूट जाएगा ऐसे जग के झमेले।
एक जो रहोगे तो रहोगे परम शक्तिशाली ,
रहोगे अजेय और हर समस्या होगी हल।
यह सत्य है हर काल में
चाहे आज हो या कल।
मिल जुलकर ही रहें हम
होता सदा एकता में बल।
अपने पिता की सीख चारों भाइयों ने,
ली थी अपने भविष्य के लिए मान।
मिल जुलकर रहे थे फिर वे सारे भाई,
आजीवन माना था जनक का अहसान।
उनकी इस एकता से अति संतुष्ट और,
अत्यंत प्रसन्न हुआ वह बुद्धिमान किसान।
उसकी इस चतुर सीख से हो गया था,
उसकी समस्या का सकारात्मक ही हल।
यह सत्य है हर काल में
चाहे आज हो या कल।
मिल जुलकर ही रहें हम
होता सदा एकता में बल।"