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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

रिश्ता-शिक्षक,विद्यार्थी और वे

रिश्ता-शिक्षक,विद्यार्थी और वे

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विद्यालय के ' स्टाफ रूम ' में दो शिक्षक एवं दो शिक्षिकाएं मौजूदा समय में गुरु-शिष्य परंपरा और उनके आपसी संबंधों एवं विद्यार्थियों के अभिभावकों की भूमिका पर चर्चा में व्यस्त थे।कुछ अन्य टीचर्स भी वहां श्रेष्ठ श्रोता के रूप में वहां विराजमान थे। सुबोध सर,गौरव सर, नीलिमा मैडम और प्रतिभा मैडम अपने अपने-अपने शिक्षण - काल की बीती अवधि के स्वयं के अनुभवों को साझा करते हुए इस चर्चा को जीवन्त बना रहे थे।


सुबोध ने विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच बढ़ती संवाद हीनता पर अपने विचार रखते हुए कहा-" अधिकांश विद्यार्थियों और हमारे शिक्षक साथियों के बीच अपनेपन का अहसास लगभग न के बराबर ही है। कक्षा में पिछले दिन अनुपस्थित विद्यार्थियों की अनुपस्थिति के कारण की जानकारी विद्यार्थियों द्वारा जिस प्रकार दी जाती है वह वास्तविकता से दूर एक गढ़ी गई कहानी ज्यादा लगती है। कभी-कभी यदि किसी विद्यार्थी की अनुपस्थिति के कारण की जानकारी उनके माता -पिता से ली जाती है तो विद्यार्थी द्वारा दी गई जानकारी और माता-पिता द्वारा दी गई जानकारी में विरोधाभास मिलता है।कई ऐसे मामले भी देखने को मिलते हैं कि माता-पिता इस बात से अनभिज्ञ थे कि पिछले दिन उनका बच्चा विद्यालय में अनुपस्थित भी था।"


गौरव सर ने सुबोध से पूर्णतया सहमति जताते हुए कहा-" पिछले एक दिन ही क्यों? पिछले वर्ष एक बच्चा पंद्रह दिन तक विद्यालय के लिए नियमित समय पर अपने घर से निकलता था और विद्यालय से वापसी के नियत समय पर ही घर पहुंचता था लेकिन विद्यालय नहीं आता था।वह तो विद्यालय से उसका नाम काटने की अंतिम चेतावनी का पत्र लेकर अपने विद्यालय का चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उसके घर पर पहुंचा तब यह जानकारी हुई कि अपने अभिभावकों को वह किस प्रकार धोखा दे रहा था।


प्रतिभा मैडम ने याद दिलाया-" नीलिमा जी वह बच्चा आपकी कक्षा का ही तो था। मैं सही हूं न, नीलिमा जी।"


नीलिमा मैडम ने प्रतिभा मैडम से सहमति जताई। नीलिमा मैडम ने कहा-" प्रतिभा मैडम जब आप मुझे नीलिमा जी कहकर बुलाती हैं तो लगता है कि आप मुझे नीली मांजी कह रही हैं।"


प्रतिभा मैडम मुस्कुराते हुए बोलीं-" मैडम आप ये नीली मांजी और पीली मांजी का मुद्दा छेड़कर चर्चा की मुख्य धारा को बदलने की कोशिश कर रही हैं ताकि हम सब उस कुशाग्रबुद्धि विद्यार्थी द्वारा अपनी बुद्धि के दुरुपयोग के बारे में न जाने सकें।"


नीलिमा मैडम बोलीं-" ऐसा कुछ भी नहीं। ऐसी विलक्षण प्रतिभा वाली प्रतिभा मैडम किसी को भी बदनाम लोगों की पंक्ति में खड़ा कर सकती है। इसमें कोई विशेष बात नहीं है।"


गौरव सर ने अपना विचार प्रस्तुत करते हुए कहा-" ऐसी स्थिति के लिए बच्चे,शिक्षक या अभिभावक में से किसी एक को उत्तरदाई नहीं ठहरा सकते।इन तीनों के बीच तालमेल बनाए रखते हुए अपनेपन की भावना से युक्त लेकिन पूरी तरह अहंकार से मुक्त एक मधुर रिश्ता बनाए रखा जाय तो ऐसे प्रकरणों की संख्या न के बराबर रह जाएगी। ऐसी घटनाएं आपसी समझबूझ और पारस्परिक विश्वास की कमी का परिणाम होती हैं। यदि बच्चे के मन शिक्षा के प्रति ललक जगा दी जाय और वह अपनी समस्याएं अपने माता -पिता,शिक्षक के सामने इस विश्वास के साथ रख पाए कि उनका समाधान उसकी परिस्थितियों को पूरी तरह ध्यान में रखकर किया जाएगा तो वह कोई बहानेबाजी नहीं करेगा। बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण को ध्यान में रखते हुए शिक्षक और अभिभावकों के बीच एक मधुर रिश्ता हो ताकि वे बच्चे की प्रशंसा, शिकायत या समस्याओं पर खुले मन से बात कर सकें। उन्हें समाज के भावी नागरिकों को संस्कारित शिक्षा देने के लिए पूरी तरह समर्पित होना ही चाहिए। तीनों की क्या समस्याएं हैं उनका समाधान बच्चे को केन्द्र बिन्दु मानकर पारस्परिक सहमति और एक दूसरे की मर्यादा, सम्मान और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए खोजा जाना चाहिए।मेरा ऐसा मानना है कि इससे काफी कुछ समस्याओं का समाधान खुद ही हो जाएगा। यहां पर तीनों के मन एक दूसरे के प्रति अपनेपन का भाव शुद्ध रूप से अंत:करण में होना परमावश्यक है।"


नीलिमा मैडम ने गौरव सर के विचारों से पूर्णतः सहमति जताते हुए कहा-" बिल्कुल सही कह रहे हैं गौरव सर, एक समस्या आती है विद्यार्थियों को दिए जाने वाले गृह कार्य और उसको पूरा करने से संबंधित समस्याएं। शिक्षक विद्यार्थियों को गृह कार्य देते हैं। वास्तव में दिए जाने वाले गृह कार्य का मूल उद्देश्य यह होता है कि कक्षा में सिखाया गए प्रकरण को बच्चे ने आत्मसात कर पाया है या नहीं यदि उसने आत्मसात कर लिया होगा तब वह गृह कार्य अपने आप कर सकेगा अन्यथा नहीं। विद्यार्थी शिक्षक द्वारा दिए गए गृह कार्य को पूरा करके शिक्षक को दिखा देना ही गृह कार्य पूरा हो गया मानते हैं । हम सब शिक्षकों की ओर से भी कमोबेश यही स्थिति है । शिक्षक को विद्यार्थी गृह कार्य पूरा करके दिखा दे। अब गृह कार्य उसने यदि स्वयं किया है तब जो गृह कार्य देना, उसे करना और उससे विद्यार्थी के सीख जाने का विश्वास सार्थक होगा। कितने सारे विद्यार्थी गृह कार्य स्वयं न करके किसी दूसरे विद्यार्थी की अभ्यास पुस्तिका से केवल नकल करके अध्यापक के सामने प्रस्तुत कर देते हैं ।शिक्षक विद्यार्थी की अभ्यास उसका में इस कार्य को लेकर पूरा लिखा होने को गृहकार्य का पूरा होना मान लेते हैं। इस स्थिति के कारण ही शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। विद्यार्थियों के कक्षा से और विद्यालय से पलायन के पीछे भी यह एक प्रमुख कारण है गृह कार्य देने के बाद उसे देखने के लिए जब अध्यापक दबाव बनाते हैं तब विद्यार्थी कक्षा या विद्यालय से भागने की कोशिश करते हैं। यदि अध्यापक गृह कार्य देखने में शिथिलता बरतते हैं तो कुछ बच्चे अपना गृह कार्य पूरा ही नहीं करते।"


इस संबंध में प्रतिभा मैडम ने अपने विचार रखते हुए कहा-"कभी-कभी हम बच्चों को अंग्रेजी के पीरियड में गणित का , गणित के पीरियड में हिंदी का, हिंदी के पीरियड में विज्ञान का और फिर विज्ञान के पीरियड में अंग्रेजी का काम करते हुए पाते हैं ।पूछने पर पता लगता है कि मेरा यह गृहकार्य अधूरा रह गया था इसलिए अब मैं पूरा कर रहा हूं क्योंकि मुझे इस कार्य की अभ्यास पुस्तिका टीचर को दिखानी है। जबकि सभी इस बात को भलीभांति समझते हैं यह काम तो घर पर किया जाना चाहिए न कि कक्षा में बैठकर। वे इस काम को स्वयं न करके किसी दूसरे की कापी से नकल कर रहे होते हैं । इस स्थिति में गृहकार्य देना, उसे करना और उसको जांचना, तीनों ही निरर्थक हैं क्योंकि इससे वह मूल उद्देश्य जिसे पाने के लिए गृहकार्य दिया जाता है वह तो पूरा ही नहीं हो पाया है। यहां मैं गौरव सर के विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावकों के पूरी ईमानदारी के साथ समर्पण भाव के रिश्ते के प्रगाढ़ होने को शिक्षा व्यवस्था के और अधिक उज्ज्वल होने के रूप में रेखांकित करना चाहूंगी। तीनों के बीच अपनत्व के साथ जुड़ाव होने पर कोई भी केवल औपचारिकता पूरी करने में ही विश्वास न रखते हुए मूल उद्देश्य को प्राप्त करने की दिशा में ही काम करेगा। यहां विद्यार्थियों के आपसी रिश्तों की प्रगाढ़ता भी काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि किसी कारणवश कोई विद्यार्थी अपना काम पूरा करने के लिए अपने किसी साथी की सहायता लेता है तो अच्छा होगा कि वह ऐसे साथी विषयगत अवधारणा समझकर स्वयं ही कार्य पूरा करे। ऐसी स्थिति में पूरी तरह सीख भी लेगा और जो साथी उसे समझाएगा उसका रिवीजन होगा , साथ उसका आत्मविश्वास और अधिक जाग्रत होगा।"


सुबोध ने अभिभावकों और शिक्षकों के मध्य पारस्परिक संपर्क एवं एक दूसरे के साथ विश्वसनीय संबंध विद्यार्थियों की उत्तरोत्तर प्रगति को ध्यान में रखते हुए प्रगाढ़ बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा-"साथियों,आप सभी के ये सुझाव शिक्षा व्यवस्था के उत्कर्ष हेतु सराहनीय और अनुकरणीय हैं। गौरव सर ने विद्यार्थियों के बीच आपसी रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।ठीक वैसे ही अभिभावकों और शिक्षकों के आपसी संबंध पूरी तरह से अपनेपन की भावना से युक्त और अहंकार की भावना से पूर्णतया मुक्त होंगे। वास्तव में हर रिश्ते में नि:स्वार्थ त्याग, समर्पण और सर्व कल्याण की भावना उसे उत्तरोत्तर प्रगाढ़ता की ओर ले जाती है। रिश्तों की यह प्रगाढ़ता लोककल्याण के लिए सार्थक सिद्ध होती है। सनातन धर्म की यही आर्य परंपरा लोककल्याण की उत्कृष्ट भावना ही तो विश्वगुरु भारत की 'वसुधैव कुटुंबकम्' की भावना है जिसमें हम ' सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:' का संदेश पूरे ब्रह्मांड को देते हैं।"


सुबोध सर ने नीलिमा मैडम की ओर मुखातिब होते हुए कहा-"क्या मैं ठीक कह रहा हूं? नीलिमा जी..."


प्रतिभा मैडम ने सुबोध की बात बीच में ही काटते हुए कहा-" नीलिमा जी या नीली मां जी?"


प्रतिभा मैडम के इस व्यंग्य से पूरा स्टाफ रूम हंसी के ठहाकों से गूंज उठा।


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