Navya Agrawal

Inspirational

4.6  

Navya Agrawal

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किसान का सपना

किसान का सपना

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रेखा देखना एक दिन हमारा बेटा बड़ा होकर कृषि विभाग में बड़ा अफसर बनेगा! (बिरजू ने अपनी पत्नी रेखा से कहा)

सही कह रहे हो आप हमारा छोरा है ही इतना होनहार! हर साल परीक्षा में पहले नंबर पर आता है! इस बार भी चौखे नंबर से पास होगा ये क्यू नंदू सही कह रही हूं ना मै? (रेखा ने अपने बेटे नमन उर्फ नंदू से कहा)

नंदू 14 वर्षीय लड़का जो आठवीं कक्षा मे पढ़ता है। वह पढ़ाई के साथ-साथ हर काम मे काफी तेज है। नंदू का एक ही सपना है पढ़ लिखकर अपने देश के किसानों के हित मे काम करना। यही सपना दिखाकर बिरजू ने उसे बड़ा किया है। अपने पिता का सपना ही अब उसका सपना बन चुका है।

बिरजू एक खेतीहर परिवार से है और राजस्थान के एक गांव में रहता है। पीढ़ियों से चले आ रहे खेती के काम को ही बिरजू ने भी अपनाया। लेकिन बदलते समय में किसानों की हालत बेहद नाजुक होती गई। बिरजू के परिवार का पेट पालन खेती से होने वाली आमदनी से होता है। लेकिन आज के महंगाई के इस दौर में किसानों के लिए खेती पर पूर्ण रूप से निर्भर रह जीवन यापन करना दुर्भर हो गया है।

हालांकि बिरजू के पास अपना खुद का एक छोटा सा खेत है और वह जो भी फसल उगाता, उसे सीधे मंडी में बेचता। ज्यादा आमदनी नहीं होने की वजह से नंदू का एडमिशन भी एक सरकारी स्कूल में कराया हुआ है। 

बिरजू का खेत ऐसी जगह पर है, जिसकी कीमत पहले से चार गुणा बढ़ गई है। उस जमीन के बहुत खरीददार है लेकिन बिरजू के परिवार का तो पेट पालने का जरिया ही वो खेत है तो कैसे उस जमीन को बेच दे।

गांव के साहूकार हरिकिशन महाजन ने बहुत बार बिरजू से उस खेत को बेचने को कहा, लेकिन हर बार बिरजू उन्हें मना कर देता। इस बात से हरिकिशन के अभिमान को काफी ठेस पहुंची। वह बिरजू पर बहुत क्रोधित भी हुआ। उसने साम दाम-दण्ड-भेद अपना कर वो जमीन हथियाने की ठान ली।

एक दिन बिरजू अपनी फसल बेचने गांव से शहर को गया और रास्ते मे उसका बहुत भयानक एक्सिडेंट हो गया या कहे कि हरिकिशन ने कराया। वह जख्मी हालत मे वही सड़क पर बहुत देर तक पड़ा रहा लेकिन कोई भी मदद को आगे नहीं आया। उसकी सारी फसल भी वहां सड़क पर गिर गई। 

गरीब किसान समझ कोई मदद नहीं करना चाहता है क्योंकि सबको बस इसी बात का डर कही वो उसकी मदद कर खुद कानून के शिकंजे में ना फंस जाए। बिरजू का खून लगातार बहता रहा। लोगो की भीड़ मे किसी को तो तरस आया उसपर और पुलिस को कॉल किया। पुलिस और एंबुलेंस वहां पहुंचे और बिरजू को सरकारी अस्पताल में एडमिट कराया।

उसके बारे में पता कर उसके घरवालों को हॉस्पिटल बुलाया गया। रेखा और नंदू फटाफट हॉस्पिटल पहुंचे और बिरजू की हालत देख दोनो का बुरा हाल हो गया। बिरजू का खून बहुत ज्यादा बह चुका था और उसके सिर पर गहरी चोट आईं थीं। 

डॉक्टर ने रेखा से कहा - "देखिए इनके सिर पर बहुत गहरी चोट आईं है और जल्द से जल्द उसका ऑपरेशन करना होगा! ऑपरेशन के लिए हमारे पास यहां गांव मे तो इतनी मशीनें उपलब्ध नहीं है! इसके लिए आपको इन्हे शहर के अस्पताल में ही लेकर जाना होगा!"

शहर के नाम से ही रेखा और नंदू डर गए। उन्हे लगा कि मोहन की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है, तभी डॉक्टर उन्हें शहर ले जाने की कह रहे है। रेखा ने कंपकंपाते हुए पूछा - "शहर जाने का खर्चा कितना आएगा डॉक्टर साहब?"

डॉक्टर - ऑपरेशन में कम से कम 50-60 हजार का खर्चा तो आएगा!

रेखा - (बडबडाते हुए) इतने पैसे?

डॉक्टर - क्या हुआ? आपके पास पैसे नहीं है?

रेखा - (रोते हुए) नहीं डॉक्टर साहब! हम ठहरे गरीब किसान इतनी नगदी हमारे पास कहां से आई? मेरे पति तो शहर फसल ही बेचने जा रहे थे लेकिन उससे पहले ही! 

रेखा बिलख - बिलखकर रोने लगी और उन्हें देख नंदू भी रोने लगा। डॉक्टर ने कहा आप पहले पैसों का बंदोबस्त कीजिए जल्द से जल्द। रेखा और नंदू को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? इतने पैसे कहां से लाए? 

पुलिस द्वारा उनकी सारी फसल भी जब्त कर ली गई। आखिर पुलिस वाले भी ठहरे पैसे और पॉवर के गुलाम। साहूकार के दबाव में पुलिस ने बिरजू के परिवार को फसल नहीं दी। जिससे मजबूरन उन्हे साहूकार से मदद लेनी ही पड़ी।

नंदू को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो वह साहूकार के घर गया। हरिकिशन के कदमों में झुककर मदद के लिए भीख मांगने लगा। साहूकार उसे इस तरह हंसते देख अपनी मूछो पर हाथ फेरते हुए बोला - "पैसे तो मिल जाएंगे छोरे लेकिन बदले मे कुछ तो गिरवी रखना पड़ेगा तुझे!"

रेखा रोते हुए बोली कि हमारे पास तो देने को कुछ है भी नहीं सेठ जी! हम क्या गिरवी रखेंगे? कृपा करके हमारी मदद कर दो सेठ जी! हम जल्द ही आपका सारा पैसा सूत समेत चुका देंगे! हमारी मदद कर दो सेठ जी! मेरे पति की जान बच जाएगी हमारी दुआ लगेगी आपको! कृपा करो हमारे पे!

साहूकार हंसते हुए बोला - "देख ये तो धंधे का उसूल होता है! पैसे के बदले कुछ तो गिरवी रखना ही पड़ेगा, नहीं तो पैसे ना मिलेंगे तुझे!"

नंदू रोते हुए बोला - "आप मुझे काम पर रखलो सेठ जी! मै जिंदगीभर आपका नौकर बनकर सेवा करूंगा और पगार भी नहीं लूंगा! पर अभी पैसे दे दो हमें, नहीं तो मेरे पापा मर जाएंगे सेठ जी!" नंदू उनके सामने हाथ जोड़े रोते गिड़गिड़ाते बैठा रहा।

साहूकार ने उसे उठाया और कहने लगे - "ऐसे दु:खभरी बातें ना कर तू मेरा तो दिल ही पसीज गया! वैसे एक काम तो हो सकता है!" नंदू और रेखा सवालिया निगाहों से उसे देखने लगे। तब साहूकार कहने लगा - "तुम्हारी वो खेत वाली जमीन उसे गिरवी रख सकते हो मेरे पास! उसके बदले मै पैसे भी दे दूंगा और तुझे काम भी नहीं करना पड़ेगा मेरे पास! बोलो मंजूर है तुम लोगो को तो?"

थोड़ी देर सोचने के बाद नंदू ने साहूकार को खेत गिरवी रखने के लिए हां कह दिया। रेखा उसे मना भी करने लगी कि वो उसके पापा की पूंजी है। लेकिन नंदू नहीं माना। इस वक्त उसके लिए अपने पापा की जिंदगी से बढ़कर और कुछ नहीं था।

नंदू रेखा से कहने लगा - "मां अभी पापा की जान बचाना सबसे जरूरी है! आपने सुना था ना डॉक्टर ने क्या कहा था हमें जल्दी पैसे जमा करने होंगे नहीं तो पापा की जान भी जा सकती है! पापा की जान से बढ़कर तो वो जमीन नहीं है ना मां!"

रेखा कुछ बोलती उससे वह साइकिल लेकर घर की ओर भागा और घर से जमीन के कागज लाकर साहूकार के हाथों में थमा दिए। साहूकार ने अपने नौकर को पैसे लाने का इशारा किया। साहूकार नंदू के कंधे पर हाथ रख कहने लगा - "तू बड़ा ही समझदार है छोरा खूब आगे जाएगा तू!"

साहूकार के आदमी ने उन्हें पैसे लाकर दिए। वो पैसे नंदू के हाथ में थमाते हुए बोला - "ले छोरा ये रहा तेरे बाप के इलाज के लिए पैसा, पूरा 60 हजार है! लेकिन तेरे को इसपर 3 रुपया सैकड़ा हर माह के हिसाब से ब्याज देना होगा!"

नंदू छोटा है और उसने बिना सोचे समझे उन्हें हां कह दिया। उसे समझ नहीं आया कि कितना ज्यादा ब्याज बनेगा। साहूकार ने उनकी मजबूरी का फायदा उठाया और जमीन हथियाने की अच्छी चाल चली।

नंदू और रेखा पैसे लेकर बिरजू को शहर के हॉस्पिटल में लेकर गए। वहां उसके सिर का ऑपरेशन कामयाब हुआ और बिरजू की जान बच गई। कुछ दिन अस्पताल में रुकने के बाद बिरजू को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज तो कर दिया गया, लेकिन उसे डॉक्टर ने दो से तीन महीने का बेड रेस्ट बता दिया।

नवम्बर का महीना आ गया और खेत में बुवाई का यह अंतिम समय होता है। बिरजू की हालत ऐसी नहीं थी कि वह खेत पर जाकर काम कर सके। रेखा के लिए अकेले सब कुछ करना मुमकिन नहीं था। बिरजू को दिन रात यही चिंता सताने लगी कि वह इतनी बड़ी रकम चुकाकर कैसे अपनी जमीन साहूकार से वापस लेगा!

नंदू छोटा लेकिन बेहद समझदार और तीव्र बुद्धि वाला है। अपने पापा को परेशान देख वह कहने लगा - "पापा आप फिक्र मत कीजिए मै खेत पर जाकर काम करूंगा!"

बिरजू - लेकिन तू अभी बहुत छोटा है बेटा और तेरा स्कूल भी तो है ना अभी!

नंदू - आप ही कहते है ना अगर ठान लो तो कुछ भी मुमकिन है है ना पापा? मै सब कर लूंगा पापा और मां भी तो है मेरी मदद के लिए!

बिरजू - वो सब तो ठीक है बेटा लेकिन!

नंदू - लेकिन वेकिन कुछ नहीं पापा! आप मुझे बताते जाना क्या करना है, मै सब कर लूंगा! थोड़ा बहुत तो अनाज पैदा होगा!

बिरजू खुश होकर उसे आशीष देने लगा।

नंदू सुबह सूरज उगने से भी पहले उठता। अपनी मां के साथ दिन भर खेतो मे बुवाई का काम करता। वह खाना भी वहीं पर ही खाता। सुबह घर से निकलता और रात को ही घर में घुसता। दिन कब बीत जाता उसे पता भी नहीं चलता। नंदू का स्कूल जाना भी छूट गया। 

बिरजू को इस बात को बहुत मलाल रहता। वह खुद को बहुत बेबस और लाचार महसूस करने लगा। नंदू ने जल्द ही बुवाई का काम खत्म किया। उनकी बस यही दुआ थी कि फसल अच्छी हो जाए तो साहूकार का कर्ज जल्दी चुका पाएंगे, वरना कर्ज बढ़ता जाएगा।

दिसंबर मे नंदू के स्कूल की अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं भी शुरू होने वाली थी। एक तरफ खेत का काम और दूसरी ओर उसकी पढ़ाई।

दिसंबर की कड़कती ठंड, चारो ओर घना कोहरा और अन्धकार तथा शरीर को कंपित कर देने वाली ठंडी हवाएं, जिसमे किसी के लिए भी बिस्तर से निकलना आसान नहीं होता। एक बच्चा सुबह 3 बजे उठकर खेत पर जाता और खेतों में पानी देता। कभी कभी बिजली ना आने की वजह से उसे सिंचाई के लिए पानी कुएं से खींचना पड़ता।

खेतों में पानी देकर वह वहीं नहा - धोकर स्कूल के लिए निकल जाता। परीक्षा देने के बाद स्कूल से सीधे खेत पर पहुंचता और वही रहकर ही वह फसल का पूरा ध्यान रखता। बीच बीच में थोड़ा बहुत समय निकाल कर वह थोड़ी पढ़ाई भी कर लेता। रात को घर जाकर खाना खा फिर पढ़ने बैठ जाता। दिनभर काम के बाद इतनी थकान हो जाती कि वह ज्यादा देर पढ़ भी नहीं पाता और सो जाता।

रात को सबके सोने के बाद नंदू सोता और सबके उठने से पहले उठ जाता। छोटू ने सोचा था कि आठवीं मे अच्छे से पढ़ाई कर वह नवोदय की परीक्षा देगा। अगर वह उस परीक्षा मे पास हुआ तो उसका एडमिशन अच्छे स्कूल में हो जाएगा और स्कॉलरशिप भी मिलेगी, जिससे उसे आगे की पढ़ाई में मदद मिलेगी। इसलिए नंदू कड़ी मेहनत करता

जनवरी के अंत मे बहुत तेज बारिश हुई। बेमौसम की बारिश और ओलावृष्टि देख सभी का मन बहुत दुखी हुआ क्योंकि अधिक बारिश फसल को बहुत नुकसान पहुंचा सकती है। बिरजू ने नंदू को फसल पर कीटनाशक छिड़कने की भी सलाह दी। बिरजू जो भी कहता नंदू बिल्कुल वैसा ही करता। वह अपने स्कूल में भी विज्ञान विषय के अध्यापक से खेती की आधुनिक तकनीकों के विषय पर जानकारी लेते रहता।

फसल के साथ खरपतवार के रूप में उगने वाले पालक, बथुआ, मैथी आदि को नंदू घर - घर जाकर बेचता, ताकि पाई - पाई पैसे जमा कर सके।

मार्च में नंदू की आठवीं बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो गई। मार्च के मध्य से ही फसल की कटाई का समय शुरू हो जाता है। नंदू खेत और परीक्षाएं दोनो मे तालमेल बिठा समय से परीक्षा भी देता। लेकिन वह पढ़ाई को उचित समय नहीं दे पाता है। जैसे तैसे करके उसने परीक्षाएं तो दी। 

नंदू ने बुवाई देरी से की इस कारण फसल काटने मे थोड़ा विलम्ब हो गया। फसल कटती उससे पहले ही भगवान इंद्र का कहर बरस पड़ा। मार्च के अंतिम दिनों में मूसलाधार वर्षा और साथ में मोटे मोटे ओले फसल को चौपट कर गए। 

गेहूं बालियो में से झड़ कर नीचे गिर गया। आलू बारिश की वजह से गलने लग गए। बिरजू तो अपना माथा पकड़ बैठ गया। नंदू का कोमल मन बेहद निराश हो गया। उसने पहली बार खेती का काम संभाला और पहली बार में ही बारिश ने सब कुछ खराब कर दिया।

बिरजू ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत खेत पर मदद कराने लगा। उन्होंने सारे गेहूं को इकठ्ठा किया और जब अंत में फसल का हाल देखा तो आधे से ज्यादा गेहूं सड़कर काला पड़ गया। आलू की खुदाई की तो उसमे भी सिर्फ नुकसान ही हाथ लगा। खीरा, टमाटर आदि भी गलने लगे और इनमे कीड़े भी लगने लगे।

बिरजू की मदद से नंदू ने सारे अनाज और सब्जियों को अलग - अलग बोरो मे भरकर बेचने के लिए तैयार किया। बिरजू शहर जाकर मंडी में फसल बेचने की हालत में अभी नहीं है और ना ही वह नंदू को इस काम के लिए शहर भेजना चाहता है। नंदू ने उसे बहुत समझाया कि पापा मंडी में हमें सही दाम मिल जाएगा। लेकिन बिरजू उस एक्सिडेंट के कारण इतना डरा हुआ है कि वह नंदू को भेजने से साफ इंकार कर देता है।

नंदू भी अपने पिता की जिद्द के आगे झुक गया। बिरजू ने उसे फसल हरिकिशन साहूकार को ही बेचने को कहा ताकि थोड़ा कर्ज का पैसा भी चुकता ही जाए।

साहूकार ने जब उसकी फसल देखी तो झिड़कते हुए बोला - "अरे ओ बिरजू ! ये भी कोई अनाज पैदा किया है तूने? सारा सडा गला अनाज है और ये सब्जियां भी देख कैसे नरम पड़ गई है। इनका क्या दाम दु तेरे को मै, कूड़े बराबर है ये तो!"

बिरजू - नहीं सेठ जी, ऐसा मत बोलो ! मेरे बेटे की मेहनत का फल है ये कुछ दाम तो लगाना होगा आपको! सारा अनाज खराब ना है सेठ जी! मैंने बढ़िया और खराब अनाज अलग अलग बोरो मे भरा है! आप उसी हिसाब से उनके दाम लगा लो सेठ जी!

साहूकार - चल 1000 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से सौदा पक्का करते है!

बिरजू - सेठ जी ये तो बहुत कम दाम है! मंडी में तो इसका दाम 1900 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से मिलता है!

साहूकार - (गुस्से में) मंडी में ज्यादा ही अच्छा दाम मिल रहा है तो जा फिर मंडी में ही बेच अपना धान!

बिरजू - मै मंडी में जाने की हालत में ना हूं सेठजी थोड़ी तो दया करो हमारे पे!

साहूकार - (मुंह बनाते हुए) चल फिर 1100 के हिसाब से सौदा कर लेते है!

बिरजू - सेठ जी ये तो बहुत कम दाम है, इसमें तो मेरी लागत भी ना निकलेगी! सही सही दाम लगा लो सेठजी!

साहूकार - (थोड़े गुस्से में) सही दाम लगा लू! (अनाज हाथ में लेकर) ये तेरा माल बहुत चौखा है ना! सडा गला नाज लेके एक तो मेरे पास आ गया और ऊपर से नखरे और दिखा रहा है! मंडी में बेचने जाएगा ना तो कोई खरीदेगा भी ना इसे! 1200 रुपए इस सही अनाज के और 700 रुपए क्विंटल इस सडे हुए के लास्ट इससे ज्यादा मै ना दे सकता तेरे को इसके लिए! लेना है तो ले ना लेना तो जा यहां से!

बिरजू ने मन मसोस कर हामी भर दी। जब अनाज को तौला गया तो साहूकार ने हर क्विंटल मे से एक किलो वजन बोरो का, एक से दो किलो मिट्टी और कूड़े आदि के नाम का काट दिया।

साहूकार ने कम दाम पर अनाज खरीद अच्छा मुनाफा कमा लिया। बिरजू को जो भी आमदनी हुई उसका कुछ हिस्सा उसने कर्ज उतारने के लिए साहूकार को ही दे दिया। बिरजू के हाथ ना फसल रही और ना ही पैसा। 

नंदू अपने पापा से इस बात के लिए काफी नाराज़ भी हुआ। कुछ ही दिनों में उसकी नवोदय की परीक्षा होनी है। लेकिन वह अच्छे से पढ़ाई नहीं कर पाया, जिसके कारण उसकी परीक्षा भी अच्छी नहीं हुई। नंदू उदास हो गया क्योंकि उसे अपना सपना टूटता हुआ नजर आ रहा है।

हर तरफ से केवल हार ही उनके हाथ लगी जिससे वो हतोत्साहित हो गए। मई - जून में फिर से बाजरे की बुवाई का काम शुरू हो गया। इस बार नंदू अकेला नहीं, बिरजू भी उसके साथ काम करता। 

बाजरे की फसल मुख्य रूप से बारिश पर निर्भर होती लेकिन कम बारिश के कारण उन्हें खुद ही सिंचाई के लिए खेत में पानी देना पड़ता। नंदू पढ़ाई के साथ खेत भी संभलता रहा और कृषि विभाग अधिकारी बनने का भी ख्वाब उसकी आंखो मे पलता रहा।

लेकिन किस्मत को तो जैसे कुछ और ही मंजूर था। एक के बाद एक मुसीबतें उनके सिर आती रही। कम बारिश के कारण इस बार फिर उत्पादन में थोड़ी गिरावट आईं। मगर नंदू ने इस बार फसल साहूकार को ना बेचकर मंडी में ही बेची। जहां उन्हें फसल का सही दाम मिला।

साहूकार से पैसे उधार लिए साल भर पूरा होने को है, लेकिन वो अभी तक एक साल का ब्याज भी पूरा नहीं चुका पाए। साहूकार ने उनके बचे हुए ब्याज पर भी ब्याज चढ़ाना शुरू कर दिया। बिरजू के लिए पहले का ब्याज चुकाना तो मुश्किल हो रहा था, अब ब्याज पर भी ब्याज लगने लगा।

नंदू, रेखा और बिरजू जी तोड़ मेहनत कर भूख प्यास सब छोड़ दिन रात खेती के कामों में लगे रहते। वह अच्छे से अच्छा उत्पादन करने की कोशिश करते जिससे आमदनी अच्छी हो। उत्पादन तो अच्छा हुआ मगर कर्ज पर ब्याज की दर उनकी आय से कही ज्यादा है।

जिसके कारण बढ़ते समय के साथ साथ उनका कर्ज भी बढ़ता चला गया और वो पूरी तरह से कर्ज मे डूब गए। साहूकार उन्हें कर्ज चुकाने के लिए तंग करने लगा। नंदू ने जैसे तैसे करके 12वी कक्षा तो पास कर ली, लेकिन इससे आगे पढ़ना उसके लिए नामुमकिन सा हो गया।

एक तरफ उसकी परिवार की जिम्मेदारी, जो पूरी तरह से साहूकार के बुने जाल में फांस चुके है और दूसरी ओर उसका अधिकारी बनने का सपना। नंदू ने इनमे से अपने परिवार को चुना और पढ़ाई से मुंह मोड़ वह अपने परिवार की देखरेख में लग गया।

साहूकार हर रोज अपने आदमियों को बिरजू के घर भेज उसे डराने धमकाने लगा। बिरजू और उसका परिवार एक खौफ के साए में जीने लगे कि ना जाने साहूकार कब क्या कर दे! 

एक दिन साहूकार खुद बिरजू के घर जाकर बैठ गया और बिरजू, नंदू और रेखा उनके सामने घुटनों के बल हाथ जोड़े बैठे रहे। साहूकार बिरजू से बोला - "कितनी बार मोहलत दी है तुझे पर तेरे से पैसे नहीं दिए जाते ना! देख (खाट पर पसरते हुए) इतने पैसे चुकाना तेरे बस्का तो है नहीं तू एक काम कर ये खेत वाली जमीन मेरे नाम करदे चल!"

बिरजू हड़बड़ा गया और बोला - "सेठजी एक वही जमीन का टुकड़ा तो है जिससे हमारी थोड़ी बहुत आमदनी होती है। आप उसे भी हमसे ले लेंगे तो हम क्या कमाएंगे, खाएंगे!"

साहूकार - (कुटिल बुद्धि से) तेरे को कमाने खाने से थोड़ी रोक रहा हूं मै! मै तो बस इतना चाहता हूं कि तू वो जमीन मेरे नाम कर दे, मै तेरा सारा कर्जा माफ कर दूंगा! 

नंदू - लेकिन सेठजी उस जमीन का दाम तो आपके कर्ज से ज्यादा है!

साहूकार - (गुस्से में) चुप कर छोरे! जब बड़े बात कर रहे हो तो छोटो को बीच में ना बोलना चाहिए समझा!

नंदू चुपचाप सिर झुकाए बैठ गया।

साहूकार - हां तो बिरजू बता तू वो जमीन मेरे नाम करेगा कि नहीं? तेरे ही फायदे का सौदा है ये! तेरा सारा कर्ज भी उतर जाएगा और तू उस जमीन पर आराम से अपनी खेती भी कर सकता है! लेकिन लेकिन वो जमीन मेरी होगी! तू बस एक मजदूर होगा वहा!

बिरजू ये सुन खुद पर ही लज्जित होने लगा कि अपनी ही जमीन पर मजदूरों को तरह काम करना होगा अब। बिरजू ने उन्हें हां बोल दिया ताकि घर का गुजारा चलाने के लिए कुछ तो आय हो। साहूकार बिरजू की मजबूरियों का बस फायदा उठाने में लगा है।

बिरजू ने खेत की जमीन साहूकार के नाम कर दी और साहूकार जमीन के कागज ले हंसता हुआ वहां से चला गया। बिरजू अपना सिर पकड़ फूट - फूटकर रोने लगा कि मेरे पुरखो की अमानत बेच डाली मैने आज। उसे खुद पर ही शर्म महसूस होने लगी।

रेखा उसे समझाते हुए बोली - "आपने ये सब अपनी खुशी से तो नहीं किया ना! मज़बूरी में आपको वो जमीन बेचने पड़ी! आप अपना मन छोटा मत कीजिए! इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं था हमारे पास!"

नंदू बिरजू का हाथ पकड़ते हुए कहने लगा पापा आप चिंता मत कीजिए, हम खूब खेती बाड़ी कर एक - एक पैसा जोड़कर बड़ी रकम जमा करेंगे और सेठजी से अपनी जमीन भी वापस ले लेंगे!

बिरजू थोड़ा झुंझलाते हुए बोला कहां से ले लेंगे? कर्जा चुकाने के लिए तो पैसे जमा भी ना कर पाए हम, जमीन क्या खाक खरीदेंगे! अब हमें हमारी जमीन कभी वापस नहीं मिलेगी कभी नहीं! बिरजू आत्मग्लानि मे सुलगते मन से चारपाही पर जाकर लेट गया और किसी सोच मे डूब गया।

नंदू ने अपनी पढ़ाई छोड़ खेती मजदूरी को ही अपना लिया। बिरजू ने जब उससे पढ़ाई छोड़ने का कारण पूछा तो वह कहने लगा पापा मेरे लिए आपसे और मां से पढ़कर मेरी पढ़ाई नहीं है! अभी हमारे पास इतने पैसे भी नहीं है कि मै बाहर जाकर पढ़ सकू! एक जमीन थी, वो भी चली गई! बैंक भी अब हमें लॉन देने से रहा! इससे अच्छा तो यही है कि मै यहां रहकर आपकी और मां की सहायता करूं!

बिरजू के मन पर एक और घात लगा कि उसकी ही वजह से उसके बेटे का सपना टूट गया, उसकी पढ़ाई लिखाई सब छिन गई। बिरजू यह शर्मिंदगी का भार नहीं उठा सका और वह स्वर्ग सिधार गया। नंदू और उसकी मां शोक में डूब गए। 

नंदू ने संकल्प लिया कि भले ही उसके सपने टूट गए हो लेकिन वह ऐसा फिर किसी और किसान के साथ नहीं होने देगा। नंदू ने जी तोड़ मेहनत कर खेती का काम किया। खुद भूखा रहता, मगर पैसे जोड़ने में लगा रहा। कुछ समय साहूकार के यहां काम कर पैसा जमा करके नंदू ने सेठ की गुलामी को ठोकर मार दी और उसके खेत पर काम बन्द कर दिया।

नंदू ने अपने एक दोस्त की मदद से किसानों के लिए जागरुकता अभियान चलाया। नंदू के पास फोन नहीं है इसलिए वह अपने दोस्त के फोन से और अपने स्कूल में अध्यापकों की मदद से कृषि की नई नई तकनीकों, उत्तम किस्म के उर्वरकों, कम लागत पर अधिक से अधिक उत्पादन कैसे किया जाए, इन सबके विषय में जानकारी लेता।

नंदू ने किराए पर एक दुकान ले वहां कृषि प्रशिक्षण केंद्र बनाया। वह वहां किसानों को फसल की अच्छी गुणवत्ता, अधिक उत्पादन, कम लागत, उत्पादन तकनीकें, खेती के तरीके, नए नए उपकरणों से कम मेहनत मे अधिक फसल, बुवाई, कटाई, सिंचाई आदि के सही तरीके आदि के बारे में बताता, उन्हें उचित शिक्षा देता, जिससे फसलों की उत्पादकता बढ़े।

नंदू किसानों को अपनी फसल साहूकारों को ना बेचकर सीधे मंडी में सही दाम पर विक्रय करने के लिए प्रोत्साहित करता। किसानों को समझाने के लिए नंदू हर महीने में अंत में किसानों के लिए एक सभा रखने लगा। जहां गांव के सभी किसान इकठ्ठा होते।

नंदू ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा - मै स्वर्गवासी बिरजू का बेटा नमन आप सभी को यहां एकत्रित होने के लिए धन्यवाद कहता हूं! आप सभी तो जानते ही है मेरे पिता की मृत्यु किन हालातो में हुई! मैंने एक साहूकार से कर्ज लिया और आप सभी तो जानते ही है साहूकार ब्याज कितना ज्यादा वसूलता है! वो कर्ज दिन ब दिन बस बढ़ता ही गया और मजबूरन हमें हमारा खेत बेचना पड़ गया!

मै चाहता हूं ऐसा आप मे से किसी के भी साथ ऐसा ना हो जो हमारे साथ हुआ! मै नहीं चाहता कि आप लोग किसी साहूकार की कुटिलता का शिकार बने! ये साहूकार लोग क्या करते है, जानते है आप लोग? (लोगो ने ना में सिर हिलाया) ये जो साहूकार होते है, वो हमसे बहुत कम दाम पर हमारी फसल खरीदते है और मंडी में जाकर उसे अधिकतम निर्धारित मूल्य पर बेच आते है! 

हम दिन रात मेहनत कर फसल खड़ी करते है, अपने खून पसीने से अपने खेतों को सींचते है और अंत में फल कोई और ही ले जाता है! मेहनत हम करे और मज़े वो लूटे, ये तो गलत है ना! (सभी हां में हां मिलाते हुए हां गलत हैं बिल्कुल गलत कहने लगे) क्यों हम अपनी मेहनत की कमाई किसी और को ले जाने दे? हमें हमारा हक लेना चाहिए! 

जब सरकार हमें सही मूल्य देती है, तो हम क्यों इन साहूकारों की जेब भरे! इसका नतीजा क्या होता है, हम लोग गरीबी की मार झेलते जाते है और इन पैसों वालो की जेबे भरते रहे! हमें इस कदर मजबूर बना देते है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी गरीब बनते चले जाते है! हमें खुद सावधान और जागरूक होने की जरूरत है अन्यथा दूसरे तो सदा से फायदा उठाते आए है और उठाते रहेंगे।

तो आज आप सभी ये कदम लीजिए कि अपनी फसल को मंडी में बेचेंगे किसी साहूकार या ठेकेदार को नहीं! पहले सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पता करेंगे, उसके बाद ही अपनी फसल का विक्रय करेंगे! अगर किसी को पैसों की जरूरत पड़ती है तो बैंक से लॉन लेंगे, किसी साहूकार के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे! 

अगर किसी को भी किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तो मै सदैव आप सभी के साथ खड़ा रहूंगा! मेरा सपना था कृषि अधिकारी बन किसान भाइयों के लिए विकास करना, जो पूरा नहीं हो सका। लेकिन कुछ नहीं करने से बेहतर है हम कुछ तो करे! 

जो काम मै powers के साथ करने के सपने देखता था, अब वही काम मै बिना किसी सरकारी पद और पॉवर के भी करूंगा! जिस सेवा भाव को अपने मन में लेकर मै बड़ा हुआ हूं, उसी भाव से मै अपने किसानों और गांव की स्थिति में सुधार करूंगा! 

सभी लोग तालियां बजाने लगे। देखते ही देखते नंदू सबका चहेता बन गया। अब लोगो ने साहूकार के पास जाना बन्द कर दिया और साहूकार का धंधा चौपट होता चला गया। साहूकार को इससे भारी नुकसान होने लगा। उसके लिए यह बात सहन करना आसान नहीं था। मगर करता भी क्या, उसका वजूद जो मिट गया।

नंदू भले अपने सपने पूरे नहीं कर पाया लेकिन उसकी हिम्मत और जज्बा नहीं टूटा। उसने किसानों के विकास के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया। उसका सपना टूटा तो क्या हुआ, उद्देश्य तो फिर भी पूरा हुआ। लूजर बनकर भी वह विनर बन गया।

नंदू अपने पापा की तस्वीर के सामने खड़ा हो पूरे गर्व के साथ बोला - पापा मै किसानों के विकास के लिए आपकी दिखाई राह पर चला हूं और ना मैंने कभी हिम्मत हारी है और ना कभी हारुंगा!


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