Navya Agrawal

Action Inspirational Thriller

4  

Navya Agrawal

Action Inspirational Thriller

ऑपरेशन कैप 🔫

ऑपरेशन कैप 🔫

31 mins
343


 "गौरव मुझे बहुत दर्द हो रहा है! प्लीज जल्दी चलिए!" दर्द में तड़पती अरुणिता ने अपने पति गौरव से कहा। अरुणिता एक 26 वर्षीय महिला, जो कि एक गृहिणी है, आज गर्भवती है और अब उन्हें लेबर पेन शुरू हो गए है।

गौरव - तुम चिंता मत करो अरु! हम समय से अस्पताल पहुंच जाएंगे! तुम्हारी डॉक्टर से मैंने बात कर ली है! बस थोड़ी देर और!

अरुणिता ने गाड़ी से बाहर का नजारा देखा, तो हर ओर पुलिस और सुरक्षा दलों के वाहन नजर आ रहे थे।

अरुणिता - आज का दिन कितना मनहूस है गौरव! देखो ना एक ओर हमारा बेबी आने वाला है और सड़कों पर कितना खौफ पसरा हुआ है!

गौरव - क्या कर सकते है? बस जल्दी से वो सभी आतंकी पकड़े जाए और हम लोग भी सुकून से रह सके!

            अरुणिता को धीरे धीरे दर्द बढ़ने लगा। गौरव उसे लंबी सांस लेने को कहते रहे। कुछ ही देर में उनकी गाड़ी अस्पताल के बाहर थी। गौरव ने जल्दी से अरुणिता को गाड़ी से निकाला और हॉस्पिटल के अंदर की ओर भागा। "डॉक्टर... डॉक्टर...!" गौरव ने चिल्लाकर कहा। नर्स डॉक्टर को लेकर आई और अरुणिता को एडमिट कराया।

            

            अरुणिता की नॉर्मल डिलीवरी भी हो सकती थी मगर प्रेगनेंसी में पहले से ही समस्याएं थी और डॉक्टर ने उसे ऑपरेशन बोला हुआ था। डॉक्टर ने ऑपरेशन थिएटर तैयार कराया और अरुणिता को वहां ले जाने की तैयारी की गई। गौरव बाहर ही खड़े इंतजार कर रहे थे।

            

            "मैम आपको अब एनेस्थीसिया दिया जाएगा! तो क्या आप तैयार है?" डॉक्टर ने पूछा। तो उसने हां में सिर हिला दिया। अरुणिता को ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाने लगा। वहीं हॉस्पिटल में दूसरी ओर रिसेप्शन के पास वेटिंग एरिया में एक बड़ा सा टीवी लगा था। जिस पर आज के ही खौफनाक समाचार चल रहे थे।

          "सूत्रों से पता लगा है दिल्ली में आतंकियों ने घुसपैठ की है!"

         "देश की राजधानी दिल्ली में कुछ स्लीपर सेल्स के होने की आशंका जताई जा रही है!

         "पूरे दिल्ली को सीज कर दिया गया है!"

         "दिल्ली में हुआ रेड अलर्ट जारी!"

         "देश पर आई इस मुसीबत की घड़ी में सभी देशवासियों से अनुरोध कृपया संयम और सावधानी बनाएं रखे! आपके आसपास यदि आपको कोई संदिग्ध व्यक्ति या वस्तु दिखती है तो तुरंत पुलिस से संपर्क करे!"

         "दिल्ली में पूरा सुरक्षा बल तैनात किया गया!"

         "देश के प्रधानमंत्री ने दिल्ली के चीफ मिनिस्टर से की सीधी बात!"

         "जवानों को शूट एट साइट के ऑर्डर्स दिए गए!"

         

              चारों ओर हर न्यूज चैनल पर यही खबरें प्रसारित हो रही थी। डॉक्टर ने गौरव को कुछ इंजेक्शन और दवाइयां लाने के लिए भेजा, तो गौरव की नजर भी दिल्ली के बिगड़ते हालातों पर पड़ी। वह जैसे ही ओटी की ओर बढ़ने लगा, हॉस्पिटल में एक तेज धमाका हुआ और सब कुछ सुन्न हो गया।

              

              हॉस्पिटल के आसपास भगदड़ मच गई। एक ही पल में हॉस्पिटल का मुख्य द्वार शमशान में बदल गया। हर ओर धुएं के बादल और लाशों के ढेर नजर आ रहे थे। लोगों के दिलों में दहशत फैली गई थी। सभी अपनी जान बचाने के लिए यहां से वहां भागने लगे। कुछ लोग हॉस्पिटल से बाहर निकलने में कामयाब रहे और जो रह गए, वो सभी आतंकियों के निशाने पर थे। पुलिस और बीएसएफ के जवानों ने पूरे हॉस्पिटल को चारों ओर से घेर लिया। उन्होंने अपना पूरा इंटरनेट और सिक्योरिटी सेटअप वहां लगा दिया, ताकि हॉस्पिटल की पल पल की खबर मिल सके।

              

              हॉस्पिटल के पिछले हिस्से को हाईजैक कर लिया। पांच आतंकियों ने मिलकर धीरे धीरे एक एक कर सभी लोगो को अपने गन प्वाइंट पर लेना शुरू किया। सभी इधर उधर कोनों में छिपकर खुद को बचाने की कोशिश में लगे थे। लेकिन आतंकियों ने हरेक वार्ड में जाकर लोगों को ढूंढ ढूंढकर हॉल में बिठाना शुरू कर दिया। तीन आतंकी वहां लोगों पर नजर बनाए हुए थे और बाकि दो वार्ड से सबको इकट्ठा करने में लगे थे।

              

               धमाके की वजह से हॉस्पिटल में बिजली चली गई और वहां दाखिल सभी मरीज छटपटाने लगे। ओटी में दर्द से तड़पती अरुणिता को भी डॉक्टर अपनी जान बचाने खातिर अकेला छोड़ आए। अरुणिता डॉक्टर डॉक्टर चीखती रह गई, मगर उसकी आवाज ओटी में दबकर रह गई। तभी एक आतंकी ओटी से मरीजों को लाने के लिए बढ़ा, तो दूसरे ने उसे रोकते हुए कहा "छोड़ रहने दे! इस चीरफाड़ के कमरे में तो जो भी होगा, वो कुछ ही देर में अल्लाह को वैसे ही प्यारा हो जाएगा! वो हमारा क्या ही बिगाड़ पाएंगे? जो खुद इस बखत मरने की हालत में होगा!"

               

               "बात तो तूने सही कही एकदम! बत्ती जाने से मरीज तो वैसे ही तड़प कर अल्लाह से मौत की ख्वाहिश कर रहे होंगे!" कहते हुए वो हंसने लगा। दोनों हंसने हुए वहां से चले गए और वहां उनके पीछे छुपकर खड़ी एक महिला ने उनकी ये बातें सुन ली। "ये लोग ओटी में नहीं गए! मतलब मैं वहां छिप सकती हूं और कोई रिस्क भी नही होगा!" वह ओटी की तरफ जाने लगी।

               

             अंदर ओटी से आती अरुणिता की चीखें उस महिला ने सुनी और वह दबे पांव ओटी के अंदर आई। वहां दर्द से छटपटाते हुए एक महिला को देखकर वह भागते हुए उसके पास आई और बोली - "अपना मुंह बंद रखो! इस हॉस्पिटल को आतंकवादियों द्वारा अपने कब्जे में ले लिया गया है! अगर उन्होंने तुम्हारी आवाज सुनी तो वो यहां भी आ जाएंगे और हम दोनों मारे जाएंगे!"

अरुणिता - क....कौन हो तुम? तुम अंदर कैसे आई? तुम डॉक्टर हो क्या?

महिला - मेरा नाम इंदू है और मैं कोई डॉक्टर नही हूं! मैं भी इसी अस्पताल में चेक अप के लिए आई थी और तुम्हारी ही तरह मैं भी यहां फंस गई हूं! तुम प्लीज ये चीखना चिल्लाना बंद करो, वरना उन्होंने तुम्हारी आवाज सुनी तो यहां आ जाएंगे और फिर....!

अरुणिता - (रोते हुए) मेरा बच्चा..! मेरा बच्चा कभी भी बाहर आ सकता है! मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा है! प्लीज डॉक्टर को बुला दो! प्लीज मेरे पति को बुला दो!

इंदू - तुम पागल हो गई हो! इस वक्त यहां कोई भी हमारी मदद के लिए नहीं आने वाला! सभी लोग बस अपनी जान बचाने में लगे है! तुम्हारे पति को कहां ढूंढूं मैं? मुझे क्या पता कौन है तुम्हारा पति?

अरुणिता - वो बा...बाहर दवाई...दवाई लेने गए थे! मेरा सिजेरियन होने वाला था! डॉक्टर मुझे बेहोश करती उससे पहले ही ये ब्लास्ट हो गया और वो लोग मुझे अकेला छोड़कर भाग गए! प्लीज मेरे पति को बुला दो!

इंदू - दवाई लेने....! मतलब तुम्हारे पति हॉस्पिटल के बाहर केमिस्ट शॉप तक गए थे?

अरुणिता ने हां में सिर हिलाया।

इंदू - फिर तो वो नहीं बचे होंगे क्योंकि ये ब्लास्ट हॉस्पिटल के आगे के हिस्से में ही किया गया है ताकि आने जाने के सारे रास्ते बंद हो सके!

                यह सुनकर अरुणिता को बहुत गहरा धक्का लगा। "नहीं...! नहीं ये नहीं..नहीं हो सकता! गौरव को.. गौरव को कुछ नहीं हो सकता!" अरुणिता दर्द से तड़प उठी। सदमे के करना अचानक से इसके लेबर पेन बहुत ज्यादा बढ़ गए और अरुणिता की चीखें निकलने लगी। लाख कोशिश के बाद भी वह प्रसव पीड़ा में अपनी चीखें नही रोक पा रही थी।

इंदू - प्लीज चुप हो जाओ तुम! कहां फंस गई मैं? बचने के लिए यहां छिपी थी पर गलत कमरे में आ गई!

अरुणिता उसका डर भी समझ रही थी।

अरुणिता - त..तुम में..मेरी मदद कर सकती हो में..मेरे बच्चे को बाहर लाने में?

इंदू - (घबराते हुए) मैं...? मैं कैसे? मुझे प्रसव कराना नहीं आता!

अरुणिता - त... तुम्हें ज्यादा कुछ नहीं करना! बस में..मेरी मदद का..कर दो!

इंदू ने डरते हुए हामी भरी क्योंकि उसके पास कोई और रास्ता भी नहीं था।

अरुणिता - देखो यहां आसपास कोई कपड़ा हो, तो उ..उससे मेरा म..मुंह बांध दो तुम! ता..ताकि मेरी ची.. चीखें यहां से बाहर ना जा सके! जल्दी करो!

              अरुणिता को दर्द एकदम चरम पर थे। इंदू ने जल्दी से वहां से एक कपड़ा लेकर अरुणिता के मुंह पर बांधा। अरुणिता के मुंह पर कपड़ा बांधने के कारण उसकी चीख इंदू तक को सुनाई नहीं दी और उसने अपनी पूरी जान लगाकर अपने बच्चे को जन्म दिया। प्रसव होते के साथ ही अरुणिता को बेहोशी होने लगी। इंदू ने बच्चे को बाहर निकाला।

              

              यह चमत्कार था या भगवान की कोई लीला कहे कि बच्चा बाहर आते ही रोने के बजाय हंसने लगा। इंदू को इसी बात की चिंता थी कि बच्चा रोएगा और उसे तो चुप कराना भी आसान नहीं होगा, मगर उसकी मुस्कुराहट देखकर इंदू का सारा डर हवा हो गया। वह बच्चे को लेकर अरुणिता के पास आई, तो देखा उसकी तबियत बहुत खराब थी।

              

              "मेरे बच्चे को संभाल लेना प्लीज! उसकी जिम्मेदारी तुम पर है अब!" अरुणिता ने टूटती सांसें लेते हुए कहा। "सुनो! आंखें बंद मत करना तुम! तुम्हे कुछ नही होगा! अपनी आंखें बंद मत करना!" इंदू ने उसके गालों को थपेड़ते हुए कहा। उसने वहा रखी दवाइयों को देखा, मगर कौनसी दवाई उसे दे, वह खुद भी नहीं जानती थी।

              

               "फोन..फोन..! फोन से मिलेगा कुछ ना कुछ!" इंदू ने बच्चे को अरुणिता के पास लिटाया और अपने फोन में वहां रखी सभी दवाइयों के बारी बारी से उपयोग गूगल पर देखने लगी। उसकी चतुराई काम कर गई। उसने अरुणिता को दर्द कम होने का इंजेक्शन दे दिया। जिसके कारण वह डबडबाती आंखों से कुछ ही पल में सो गई।

               

               इंदू ने राहत की सांस ली। उसने जल्दी से बच्चे को उठाया और वहां रखी कॉटन से उसे साफ किया। इंदू ने उसे अरुणिता का दूध पिलाया जिसके कारण वह बच्चा भी सो गया और अब उसके रोने का भी डर नहीं रहा। इंदू ने बच्चे को इसके पास ही बेड पर सुला दिया और खुद भी जमीन पर बैठकर हांफने लगी। डर और घबराहट के कारण इंदू की भी जान निकलने को थी।

                          

             "ये दोनों तो अभी सो गए, मै यहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता ढूंढती हूं!" इंदू ने खुद से कहा और धीरे से ओटी का दरवाजा खोलकर बाहर की ओर झांकने लगी। उसे ओटी के पास के गलियारे में ही किसी के कदमों की आहट महसूस हुई और उसने डरकर तुरंत दरवाजा बंद कर दिया।

               

               "पुलिस...पुलिस को कॉल करती हूं! शायद उन्हें हमारी कोई मदद मिल सके!" उसने अपने फोन से पुलिस को फोन लगा दिया। "हेलो...हेलो...! पुलिस..! हेल्प लाइन..हेलो..!" इंदू ने कंपकपाते हुए कहा।

               

पुलिस - हेलो मैम! हम आपकी क्या सहायता कर सकते है?

इंदू - हेलो..! सर मै गेट वैल हॉस्पिटल से बोल रही हूं, जहां अभी कुछ देर पहले ब्लास्ट हुआ था!

              यह सुनते ही पूरा पुलिस डिपार्टमेंट एक्टिव हो गया और उन्होंने इंदू का कॉल अपने सीनियर कैप्टन अभिनव को ट्रांसफर कर दिया, जो इस वक्त हॉस्पिटल के बाहर थे।

कैप्टन - इंदू देखो पैनिक मत करो और हमें बताओ वहां अंदर क्या चल रहा है? तुमने हमें कॉन्टैक्ट कैसे किया? अंदर कितने लोग, कितने आतंकी है? सब कुछ बताओ हमें!

इंदू - सर मैं यहां एक ऑपरेशन थिएटर में बंद हूं! इन लोगों ने ओटी चेक करना जरूरी नही समझा, तो मै वहां छिप गई! मेरे साथ यहां एक औरत और उसका बच्चा है जिसकी अभी डिलीवरी हुई है!

कैप्टन - और कितने लोग है हॉस्पिटल में?

इंदू - सर यहां 4 5 आतंकवादी है और इनके हाथों में बंदूकें है! इन्होंने बहुत सारे लोगो को बंदी बनाया हुआ है!

कैप्टन - कितने लोग है?

इंदू - सर तकरीबन सौ से ज्यादा लोग होंगे यहां!

कैप्टन - अभी कहां पर है वो लोग और ये बताओ ओटी में या उस के आसपास कोई रास्ता है अंदर घुसने का?

इंदू - सर मैं नही जानती वो आतंकवादी उन्हें कहां लेकर गए है! ओटी में तो कोई रास्ता नही है सिवाय मैन डोर के!

कैप्टन - और आसपास??

इंदू - सर मुझे नही पता कुछ भी! मैं बस इतना बता सकती हूं आपको कि ये ओटी हॉस्पिटल के सबसे पिछले हिस्से में है! सर ये लोग बहुत खतरनाक है! प्लीज हम सबको बचा लीजिए!"

कैप्टन - ओके थैंक यूं मैम! वहां जो भी हो प्लीज हमें अपडेट करते रहना और हां एक जरूरी बात! आप अपना फोन साइलेंट मोड पर रखिएगा! हम नही चाहते एक भी आदमी मारा जाए!

इंदू - ओके सर!

कैप्टन - मैम अगर पॉसिबल हो तो कोशिश कीजिए कि आप हमें हॉस्पिटल के भीतर की कुछ तस्वीरें भेजे ताकि हमें अंदर आने में आसानी हो सके! हॉस्पिटल का कोई नक्शा भी नही है जिसकी मदद से हमें वहां के रास्तों का पता लग सके! मैं आपको एक नंबर भेजता हूं! आप उस पर मुझे तस्वीरें भेजिए!

इंदू - ओके सर! आई विल ट्राय!

कैप्टन - ऑपरेशन कैप इज ऑन! जय हिंद!

इंदू - जय हिंद सर!

               

               बाहर जितने भी लोगों को बंदी बनाया गया था, आतंकियों ने उन्हें डराना धमकाना शुरू कर दिया। "प्लीज बंदूक वाले अंकल हमें घर जाने दो! मैने कोई शैतानी नही की है! प्लीज मुझे मम्मी के पास जाने दो!" एक छोटे बच्चे ने रोते हुए कहा। तो उसके पापा उसे चुप कराने लगे। आतंकी उसके पास आकर बैठा, तो उसके पापा ने डरते हुए हाथ जोड़कर कहा "प्लीज मेरे बच्चे को कुछ मत करना! वो नादान है, नासमझ है! प्लीज मेरे बच्चे को छोड़ दो!"

               

               "अबे मुंह बंद कर अपना" कहते हुए उसने एक गोली सीधी उस आदमी के भेजे में उतार दी और वह वही मौत की नींद सो गया। बच्चा अपने पापा को देखकर रोने लगा, तो उन्होंने एक गोली उस मासूम के सीने में उतार दी। उसे देखकर सभी सिर से पैर तक कांप गए। सभी की हालत ऐसी थी कि ना सांसे आ रही थी और ना छूट रही थी। "तुम में से वो वाला फोन किस किसके पास है जिसमें तस्वीर ली जाती है?" उनमें से एक ने पूछा, तो डर के कारण किसी ने जवाब नही दिया।

               

               "सांप सूंघ गया क्या सबको या तुम लोगों को भी इस बच्चे और इसके वालिद की तरह अल्लाह के दर जाना है? फोन किस किसके पास है?" उन्होंने दांतों को पीसते हुए पूछा। सभी ने अपने अपने फोन निकालकर आगे कर दिए। "अब तुम सब लोग इन दोनों की तस्वीर लो और उसे इंटरनेट पर डालो! उसके साथ वो लिखो जो हम तुम्हें लिखने को कहे!" आतंकी ने उन्हें आदेश देते हुए कहा।

               

               एक आदमी हिम्मत करके बोल पड़ा "लेकिन तुम हमसे करवाना क्या चाहते है? हम किसी मरे हुए आदमी की फोटो क्यों ले? हम तुम्हारी तरह इतने गिरे हुए और कायर नहीं है कि किसी की मौत का तमाशा बनाए! हम कोई फोटो नहीं लेंगे!" उसको देखकर सभी मना करने लगे। तो उन्होंने गुस्से में सभी पर लात घुसे बरसा दिए। "तुम लोगों को अपनी जान प्यारी नहीं है ना?" उन्होंने गुस्से में चिंघाड़ते हुए कहा।

औरत - तुम लोगों को इतनी ही तस्वीरें निकालने का शौक है तो अपने फोन का इस्तेमाल क्यों नहीं करते? अपने फोन में लो तस्वीरें!

आतंकी - अगर हमें अपने फोन से ही सारे काम करने थे, तो हम अपना फोन साथ लाते ना और अगर हम अपना फोन लाते, तो हमारे फोन से ये बाहर खड़े तुम्हारे नौजवान हमारे आका की सारी जानकारियां निकाल लेते!

औरत - मौत का इतना ही खौफ है तो क्यों मर्द बनकर यहां चले आए! तुम्हें क्या लगता है तुम यहां से बचकर निकल जाओगे? तुम आर्मी की पावर को जानते नही हो!

आतंकी - (बालों को खींचकर) जितना कहा जाए उतना कर! ज्यादा जबान चलाई तो तुझे भी इन्हीं के साथ अल्लाह के पास भेज दूंगा!

                

               वह औरत फिर भी नहीं मानी, तो उन्होंने बंदूक का पिछला हिस्सा उसके सिर पर दे मारा और वह बेहोश हो गई। सभी लोग डर से सहम उठे और कांपते हाथों से सबने उस व्यक्ति और उसके बेटे की तस्वीर ली। उन्हें देख देखकर आतंकी जोर जोर से हंसने लगे। इंदू भी जैसे तैसे करके हिम्मत कर ओटी से बाहर निकली और चारों ओर नजर घुमाकर देखने लगी। उसे कोई नजर नहीं आया। उसने ओटी के आसपास की हर जगह की तस्वीरें ली और कैप्टन को भेज दी।

               

               फोटोज मिलते ही कैप्टन ने अपने साथियों को इकट्ठा किया और उन सभी को जोड़कर हॉस्पिटल का नक्शा समझने की कोशिश कर अंदर घुसने की स्ट्रेटजी बनाने लगे। वहीं इंदू को लोगों के हंसने की आवाज सुनाई दी, तो वह भयभीत होकर उल्टे पांव ओटी में भाग गई। अरुणिता को भी धीरे धीरे होश आने लगा। इंदू उसके पास आई और बोली "कैसी हो तुम? देखो तुम्हारा बेबी कितने अच्छे से सो रहा है!"

अरुणिता - (हाथ जोड़कर) तुम्हारा बहुत बहुत आभार! आज तुम नहीं होती तो पता नहीं मेरा क्या होता! मेरा बच्चा ठीक है ना?

इंदू - हां वो एकदम ठीक है! अच्छा एक बात बताओ तुम इस हॉस्पिटल में पहले कभी आई हो?

अरुणिता - हां! मेरा ट्रीटमेंट यही से चला था! तो मेरा यहां आना जाना लगा रहता था!

इंदू - तो फिर तुम्हें यहां के रास्तों के बारे में भी पता होगा?

अरुणिता - हां थोड़ा बहुत!

इंदू - गुड! मैं अभी कैप्टन को फोन लगाती हूं और तुम उन्हें यहां के बारे में जानकारी दोगी ताकि उन्हें अंदर आने में मदद मिल सके!

                  इंदू ने कैप्टन को फोन लगाया और अरुणिता ने कैप्टन के साथ सभी जानकारियां साझा की। "मैं बाहर के हालात के बारे में कैप्टन को अपडेट करती हूं! बाहर जाकर देखती हूं क्या चल रहा है!" इंदू उठकर जाने लगी, तो अरुणिता ने कहा "अभी थोड़ी देर पहले तो तुम्हें मरने से डर लग रहा था और अब तुम बाहर जाकर जानकारी लाओगी! डर नहीं लगेगा अब मरने से?"

इंदू - मरना तो वैसे भी है इन हैवानों के बीच! तो सोच रही हूं कुछ करके ही मर जाऊं! सच कहूं डर तो बहुत लग रहा है!

अरुणिता - (बेड से उठकर) तो फिर चलो साथ में चलते है!

इंदू - देखो अभी तुम्हारी डिलीवरी हुए एक घंटा भी नही हुआ है! तुम बहुत कमजोर हो और अभी तुम ठीक से खड़े होने की भी हालत में नहीं हो! ये नन्ही सी जान की भी जिम्मेदारी है तुम पर! तो तुम यही रहो चुपचाप!

अरुणिता - मै ठीक हूं! तुम मेरी चिंता मत करो! इन राक्षसों ने मेरे पति को मार डाला! ना जाने कितने परिवारों को तबाह कर डाला और अभी और ना जाने क्या क्या बुरे इरादे लेकर आए होंगे ये हमारे देश में! देश की सुरक्षा का दायित्व सिर्फ पुलिस, आर्मी, नेवी इनका नही है! हर भारतवासी का है! जब वो लोग हमारी जान के लिए अपनी जान जोखिम में डालकर हमे बचाने आ सकते है, तो हमें तो फिर भी सबके साथ अपनी भी जान बचानी है!

इंदू उसकी ऐसी हालत में भी उसकी देशभक्ति और उसके जज्बे को देखकर बहुत प्रभावित हुई।

इंदू - एक भारतीय होने के नाते मैं तुम्हारी सारी बातें समझती हूं पर मैं एक औरत भी हूं और एक औरत होने के नाते इस वक्त मैं तुम्हारी हालत भी समझ रही हूं! तुम अभी प्रसव पीड़ा से गुजरी हो, जिसमें शरीर की सभी हड्डियों टूटने जितना दर्द होता है! प्रसव के बाद उठा भी नहीं जाता और तुम उन लोगों से भिड़ने चली हो! कुछ तो अपनी हालत देखो!

अरुणिता - मरना तो वैसे भी इन हैवानों के बीच! तो सोच रही हूं कुछ करके ही मर जाऊं! एक औरत जब अपने पर आती है तो वो कुछ भी कर सकती है और यहां तो बात मेरे देश की है!

                   अरुणिता ने इंदू की बात दोहराई और दोनों हंसने लगी। अरुणिता ने अपने बालों को बांधकर जूडा बनाया। बेड पर बिछी चादर उठाकर उससे अपने बच्चे को अपनी कमर पर बांध लिया। ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले जितने भी औजार वहां रखे हुए थे, उन दोनों ने वो सभी ब्लेड, चाकू, कैंची तथा अन्य आवश्यक वस्तुएं अपने पास छिपा ली।

                   

                   अरुणिता ने इंदू की ओर हाथ बढ़ाकर कहा "चले???" इंदू ने उसका हाथ थामकर कहा "ऑपरेशन कैप इज ऑन! लेट्स गो!"

                   

अरुणिता - ऑपरेशन कैप??? ये क्या है?

इंदू - पता नहीं! कैप्टन ने बोला ऑपरेशन कैप, तो मैंने भी बोल दिया!

                 दोनों सावधानी पूर्वक ओटी से बाहर निकली और छिपते छिपाते हुए हॉल के पास आ गई, जहां सभी लोगो को बंदी बनाया गया था। ओटी से हॉल तक जितनी भी खिड़कियां उन्हें मिली, अरुणिता होले से उन सब खिड़कियों को अनलॉक कर आई। उन्होंने खड़े होने के लिए ऐसी जगह चुनी जहां साइड में खिड़की थी। अरुणिता ने खिड़की पर लगे कांच में से झांककर देखा, तो उसे नीचे फोर्स खड़ी दिखी। अरुणिता ने खिड़की को बाहर की तरफ खोल दिया। खिड़की खुली देखते ही बाहर खड़े जवानों ने बंदूकें उसी दिशा में तान दी।

जवान - सर हॉस्पिटल की एक खिड़की खुली है अभी!

कैप्टन - कोई शूट नही करेगा! पता नहीं खिड़की पर कौन है!

                उन्होंने दूरबीन की सहायता से देखने की कोशिश की, तो उन्हें बस एक औरत खड़ी दिख रही थी। उन्होंने एक जवान को दूरबीन थमाते हुए हर पल नजर रखने को कहा। एक आदमी को इशारा किया और वह वहां से चला गया। अरुणिता क्या करना चाह रही थी, इंदू को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

                                 

इंदू - तुमने ये खिड़की क्यों खोल दी?

अरुणिता - ताकि हमारे जवान भी अंदर का नजारा देख सके!

इंदू - मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा तुम करना क्या चाहती हो और

ये लोग इस तरह से भीड़ लगाकर क्यों खड़े है?

इंदू ने उनकी ओर झांकते हुए कहा।

अरुणिता - पता नहीं! तुम जल्दी से अपना फोन निकालो और रिकॉर्डिंग चालू करो!

                  आतंकियों ने सबको उस फोटो को सोशल मीडिया पर डालने को कहा और उसके नीचे लिखा था "हम सरकार से दरख्वास्त करते हैं कि अस्पताल के बाहर से सेना हटा दी जाए और जितने भी आतंकवादी इस अस्पताल में है, उन्हें बॉर्डर पार उनके वतन वापस भेज दिया जाए! यदि ऐसा नहीं हुआ, तो एक एक कर ये लोग हम सभी को मौत के घाट उतार देंगे!"

                  

                 फोटो अपलोड होने के बाद उन्होंने सभी के फोन जब्त कर लिए। सोशल मीडिया पर ऐसी आपत्तिजनक तस्वीरें देखते ही कैप्टन गुस्से में चीखते हुए बोले "ये तस्वीरें किसने डाली इंटरनेट पर?"

जवान - सर ये एक नहीं बहुत सारे लोगों ने पोस्ट डाली है और सभी में एक ही बात लिखी है उसमे!

कैप्टन - सभी लोगों की लिस्ट तैयार करो ताकि हमें पता लग सके कि अंदर कौन कौन फंसा है!

जवान - ओके सर!

                कैप्टन ने मिनिस्टर को कॉल करके सोशल मीडिया से वो सभी तस्वीरें हटवाने का आदेश दिया अन्यथा लोगों में आक्रोश जागता और हालातों को काबू में करना मुश्किल हो जाता। तुरंत सभी तस्वीरें हटवा दी। अंदर इंदू अपने फोन में सारी रिकॉर्डिंग करने में लगी थी। एक आदमी ने डरते हुए कहा "तुमने जैसा कहा हमने कर दिया! प्लीज हमें जाने दो!"

                

                आतंकी उसके मुंह में बंदूक की नली डालते हुए गुस्से में दांत पीसकर बोला "अपना मुंह बंद रख वरना सारी की सारी गोलियां तेरे जिस्म में उतार दूंगा!" सभी लोग चुपचाप बैठ गए। लोगों के चेहरे पर डर देखकर उन्हें बहुत मजा आ रहा था। वो जानबूझकर लोगों को उकसाते और उन्हें जबरन हिंदुस्तान मुर्दाबाद बोलने को मजबूर करते। ना कहने पर वो लोगों को मारते पीटते।

                

                "तुम्हें अपना वतन बहुत प्यारा है ना? अब हम तुम्हारे इसी वतन के चिथड़े उड़ा देंगे और तुम्हारी ये सरकार कुछ नहीं कर पाएगी! भारत की आन की तो हम ऐसी धज्जियां उड़ाएंगे कि तुम्हारे महलों में बैठा राजा भी चीख उठेगा! जिस्म से निकलकर जब लाल लहू जमीन पर बिखरेगा तो खून की नदियां बहेगी! जो जितना ऊंचा उठेगा, वो उतनी ही बुरी तरह मुंह की खाएगा! मौत का तांडव होगा आज दिल्ली में! आने जाने के सारे रास्ते बंद हो जाएंगे! सारे सपने टूटकर बिखर जाएंगे! कोई जादू टोना भी तुम्हारे सपनों को पूरा नही कर पाएगा! फिर होगा चांदनी रात में हमारा जश्न! हाहहहहह.....!"

                

                सभी जोर जोर से हंसने लगे और उनकी कही बातें सभी के ऊपर से चली गई। "ये क्या बातें कर रहे है? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा!" इंदू ने झुंझलाते हुए कहा। तो अरुणिता ने कहा "तुमने सब रिकॉर्ड कर लिया ना? तुम हर पल की रिकोडिंग बनाती रहो! क्या पता कब क्या काम आ जाए!" इंदू ने हां में सिर हिलाया। वो कैप्टन को वीडियो भेजने ही वाली थी कि अरुणिता का बच्चा रोने लगा।

                

                बच्चे के रोने की आवाज सुनते ही सभी आतंकी लावा के जैसे उफन पड़े। "कौन है वहां? हमने पूछा कौन है? किसने हमसे गद्दारी करने की कोशिश की?" उनकी नजर ओट में खड़ी अरुणिता और इंदू पर गई। इंदू के हाथ में फोन देखकर वो उससे फोन मांगने लगे। "देखो हमारे पास भी मत आना! इस फोन में मैने सारी रिकॉर्डिंग कर ली है और मैं इसे बाहर आर्मी को दे दूंगी! एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाना नहीं तो मैं फोन नीचे फेंक दूंगी!" इंदू फोन को खिड़की से बाहर लटकाए खड़ी थी।

                

                "सर...सर! खिड़की से किसी का हाथ दिख रहा है! हाथ में कुछ पकड़ा है!" जवान ने कैप्टन को कहा, तो कैप्टन ने देखा खिड़की से बाहर किसी का हाथ है, जिसमें एक मोबाइल पकड़ा हुआ है। "फोन हमें दे! खबरदार जो नीचे फोन फेंका! यहां बैठे सभी के सीने में गोलियां उतार दूंगा! ला फोन हमें वापस दे!" एक आतंकी उनकी ओर बढ़ने लगा और एक चुपके से उनके पीछे आ गया।

                

                अरुणिता ने आसपास रखी चीजे उठा उठाकर उनकी ओर फेंकी। उसने ट्रे फेंकने के लिए जैसे ही हाथ उठाया, ट्रे में उसे अपने पीछे एक आदमी खड़ा दिख गया। वह आदमी इंदू की ओर बढ़ रहा था। उसने एक दो कदम पीछे लिए और इंदू को खिड़की से बाहर धक्का देते हुए वो ट्रे उस आदमी के सिर पर दे मारी। इंदू के गिरते ही नीचे खड़े सेना के जवानों ने हाथों को बांधकर उसे तुरंत लपक लिया।

                

                वह आतंकी खिड़की पर आया और अंधाधुंध नीचे इंदू पर गोलियां चलाने लगा और एक गोली इंदू के हाथ में लग गई। "सर वीडियो! वीडियो रिकॉर्ड.. रिकॉर्डिंग! वीडियो..! इनफॉर्मेशन...!" कहते कहते वह बेहोश हो गई। कैप्टन ने इंदू का फोन लिया और उसे दूसरे हॉस्पिटल में भेज दिया। क्रोध में आए जवानों ने नीचे से फायरिंग शुरू कर दी। आतंकी का सारा ध्यान नीचे था और कैप्टन के भेजे स्नाइपर ने, जो ठीक सामने वाली बिल्डिंग में था, एक गोली सीधी उसके सिर में उतार दी। गोली लगने के साथ ही वह आतंकी ढेर हो गया।

                

                इन सबके बीच अरुणिता से भी उनका ध्यान चूक गया। उसने मरे हुए आदमी की बंदूक उठाई और वह एक बार फिर उन्हें चकमा देकर पार हुई। दूसरा आतंकी वहां आया और जैसे ही गोली चलाने को हुआ, उसने इंदू की बात सुन ली "सर सारी खिड़कियां खुली है ऊपर और कोई नही है वहां! आप प्लीज जल्दी वहां जाइए!" इंदू की बात सुनते ही जवानों ने पलक झपकते ही खिड़कियों पर रस्से डाल कर चढ़ना शुरू किया।

                

                "सारी खिडकियां बंद करो! जल्दी!" उसने भागते हुए कहा और बाकि सभी उसके साथ साथ खिड़कियां बंद करने दौड़ पड़े। उन्होंने खिड़की पर लगे रस्से काटे और खिड़कियों को अंदर से बंद कर दिया। जवानों ने उस पर फायरिंग भी की लेकिन अंदर आतंकी अभी सुरक्षित थे। उन्होंने सभी खिड़कियों पर लोगों को खड़ा कर दिया ताकि फोर्स उनपर गोलीबारी ना कर पाए।

                

                "हमें यहां से सुरक्षित बाहर निकल जाने दो वरना हम यहां कैद एक एक आदमी को कब्र तक पहुंचा देंगे! खिड़की पर गोली चलाने की कोशिश भी की, तो तुम्हारे ही आदमी मारे जाएंगे!" आतंकी ने माइक में बोला और उस आदमी और बच्चे की लाश को खिड़की से नीचे फेंक दिया। जिन्हें देखकर सभी चीख पड़े। "कोई गोली नहीं चलाएगा!" कैप्टन ने सख्ती से कहा। "खिड़की पर इन्होंने लोगों को खड़ा किया है! हम गोली नहीं चला सकते!"

कैप्टन - हम तुम्हारी सारी बातें मानने को तैयार है! तुम्हें यहां से बाहर भेज देंगे तुम्हारे मुल्क लेकिन उससे पहले तुम्हें इन सभी लोगों को रिहा करना होगा!

आतंकी - तुम हमारे जाने का बंदोबस्त करो! फिर हम तुम्हारे लोगों को एक एक कर छोड़ देंगे!

कैप्टन - पहले तुम अंदर कैद किए लोगों में से 10 लोगों को सही सलामत बाहर भेज दो! तभी हम तुम्हारी बात पर विश्वास करेंगे!

आतंकी - हम तुम्हारे 10 लोगों को बाहर भेज रहे है! अगले एक घंटे का समय है तुम्हारे पास! यदि तुमने हमारे साथ धोखा किया तो लाशों के ढेर लग जाएंगे! हर पांच मिनिट में एक लाश इसी खिड़की से नीचे गिरेगी! कोई होशियारी नहीं!

कैप्टन - हां ठीक है! जैसा तुम कहोगे हम वैसा ही करेंगे! तुम किसी की जान मत लेना बस! हम अभी तुम्हारे यहां से निकलने का इंतजाम करते है!

                "तुम इन्हें बातों में उलझा कर रखो! मैं अभी आता हूं!" कहकर कैप्टन वहां से अपनी टीम के पास चले गए। उन्होंने इंदू के फोन में रिकॉर्ड सभी रिकॉर्डिंग को बारी बारी से प्ले करना शुरू किया। उसके बाद सबसे आखिर में उन्हें वो वीडियो मिला, जिसमें आतंकी खुश होकर चांदनी रात में जश्न मनाने की बात कर रहे थे। उसे देखकर एक जवान बोला "सर ये वीडियो हमारे किस काम की? इन विडियोज से तो हमें कोई जानकारी नहीं मिली!"

कैप्टन - नो नो नो...! कुछ तो ऐसा है जिससे हम चूक रहे है!

जवान - लेकिन वो क्या हो सकता है सर?

कैप्टन - थिंक थिंक....!

जवान - सर इन स्लीपर सेल्स की एक खासियत होती है कि ये सीरियल ब्लास्ट करने में माहिर होते है! अक्सर इन स्लीपर सेल्स को इसी काम के लिए इस्तेमाल किया जाता है जब एक साथ कई जगह ब्लास्ट करने हो!

दूसरा - और एक बात सर! ये कोई कोड लैंग्वेज भी हो सकती है उनकी!

कैप्टन - ही इज राइट! दिल्ली का नक्शा चालू करो!

              जवान ने प्रोजेक्टर पर दिल्ली का नक्शा दिखाया और फोन में आतंकियों की वीडियो चलाई गई।

              

कैप्टन - भारत की आन.......! आन.....!

जवान - सर भारत की आन तो संसद भवन ही हो सकता है! हमारा प्यार देश वही से चलता है!

कैप्टन ने संसद भवन को मार्क किया और आगे वीडियो प्ले किया।

               "महलों में बैठा राजा.....!"

जवान - सर हमारे यहां राजा तो होता ही नही!

कैप्टन - राजा मतलब मुखिया और हमारे देश का मुखिया है राष्ट्रपति! मतलब राष्ट्रपति भवन...!

                "लाल लहू.....!"

जवान - सर लाल लहू.... मतलब लाल किला हो सकता है!

कैप्टन ने हां में सिर हिलाया और उसे भी मार्क किया।

                "खून की नदियां....!"

जवान - खून लाल होता है! लाल किला तो चुका है! और क्या हो सकता है?

दूसरा जवान - (नक्शे में देखकर) सर वो देखिए खूनी दरवाजा...! वो हो सकता है!

                "जो जितना ऊंचा....!

कैप्टन - कुतुब मीनार!

                 "मौत का तांडव....!"

जवान - तांडव तो महादेव करते है! मतलब कोई शिव मंदिर...!

कैप्टन - गौरी शंकर मंदिर या छतरपुर मंदिर! कोई भी हो सकता है!

                 "सारे रास्ते बंद हो जाएंगे.....!"

कैप्टन ने इंडिया गेट को मार्क किया।

                 "सारे सपने टूटकर....!"

कैप्टन - सपने....????

जवान - सपने क्या हो सकते है?

दूसरा - कोई स्कूल, कॉलेज या कोई जॉब! यही तो सपने होते है ना लोगो के!

तीसरा - लेकिन यहां तो दुनियाभर के स्कूल, कॉलेजेस है!

कैप्टन - (नक्शा देखकर) स्कूल और कॉलेज नहीं ये... किंगडम ऑफ ड्रीम्स! सपनों का शहर!

                   "जादू टोना.....!"

जवान - सर जंतर मंतर हो सकता है! नाम भी ऐसा ही है इसका जादू टोने वाला! आई थिंक यही है!

                   "चांदनी रात में जश्न.....!"

कैप्टन - मतलब सबसे आखिरी धमाका होगा चांदनी चौक पर! सबसे भीड़भाड़ वाली जगह जहां शाम के समय सबसे ज्यादा भीड़ होती है!

                 "इन सालों ने एक नहीं 10 बॉम्ब प्लांट किए है! पूरे दिल्ली का नक्शा ही बदल जाता! हमें तुरंत सरकार को कॉन्टैक्ट करना होगा!" कैप्टन ने इतना कहकर सीएम के साथ वीडियो कॉलिंग शुरू की।

कैप्टन - जय हिंद सर!

सीएम - जय हिंद कैप्टन! अभी तक आप लोग सिचुएशन को कंट्रोल क्यों नहीं कर पाए! लोग सवाल उठा रहे है!

कैप्टन - सर दिल्ली में एक नहीं 10 बॉम्ब्स प्लांट किए गए है! हम सही और सारी इनफॉर्मेशन हाथ लगने तक कुछ ज्यादा एक्शन नहीं कर सकते थे और सबसे बड़ी बात सर, सैकड़ों लोग उस हॉस्पिटल में कैद है! हम जल्दबाजी में एक की भी जान को दांव पर नहीं लगा सकते सर!

सीएम - तो क्या प्लान है आपका?

              कैप्टन ने उनके साथ अपनी योजना डिस्कस की और उनसे मदद की भी अपील की। कैप्टन ने लिस्ट में शामिल सभी जगहों पर बॉम्ब स्क्वाड टीम भेजी और वक्त रहते सभी बॉम्स को ढूंढकर डिफ्यूज करने का आदेश दिया। इधर अरुणिता हॉस्पिटल में कही छिपी थी और अब उन आतंकियों का ध्यान उसकी गैर मौजूदगी पर गया। "वो औरत कहां गई, जिसके पास बच्चा था?" एक आतंकी ने चीखते हुए कहा।

              

              "अभी थोड़ी देर पहले तक तो यहीं थी! अब किधर गई!" दूसरे ने चारों ओर नजर दौड़कर देखा। "खड़े खड़े मेरी शक्ल क्या देख रहे हो? जाओ और जाकर ढूंढो उसे!" वो लोग हर जगह उसे ढूंढने लगे लेकिन इस बार भी अरुणिता उनके हाथ नही आई। प्रसव के कारण उसे बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही थी और कमजोरी के कारण वह चल पाने में भी असक्षम थी। इसी बीच एक घंटा बीत गया और ना कोई अंदर आ सका और न ही कोई बाहर जा सका। आतंकियों ने बाहर जाने के हर दरवाजे खिड़की पर लोगो को खड़ा किया था, इसलिए जवान उनकी जान को भी खतरे में नहीं डाल सकते थे।

              

              "हमारी शर्त के मुताबिक एक घंटा पूरा हो गया कैप्टन! लेकिन आपने अभी तक हमारे यहां से जाने का कोई बंदोबस्त नहीं किया! अब जो होगा उसके जिम्मेदार तुम खुद होगे! अल्लाह के बंदों को निराश करने का अंजाम बहुत खतरनाक होता है कैप्टन! अब देखो तुम!" इतना कहकर उन्होंने एक आदमी का शरीर गोलियों से भून दिया और उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया। यह देखकर सभी लोगों की चीखें निकल गई।

              

              लाश देखकर कैप्टन भी चिल्ला पड़े "नो........!" आतंकी लोगो में दहशत देखकर हंसने लगे। "हमारी बात न मानने के लिए अब तुम ही जिम्मेदार हो कैप्टन! इन लोगों की मौत की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है!" उसने लोगों को सरकार और सेना के खिलाफ भड़काने का प्रयास किया। जब गोली की आवाज अरूणिता के कानों में पड़ी तो वह भी सहम उठी। उसने उठने की कोशिश की, मगर नहीं उठ पाई। उसके सारे कपड़े खून से सन चुके थे।

              

              पांच मिनट बाद ही उन्होंने एक और आदमी को मार के नीचे फेंक दिया। डर के कारण लोगो का कलेजा फटने लगा। सभी लोग लगातार रोते बिलखते रहे और उन्हें देख आतंकी हंसते रहे। "हम सरकार से बात की है! तुम्हारे जाने का इंतजाम किया जा रहा है! प्लीज हमें थोड़ा समय और दे दो!" कैप्टन ने कहा। गोलियों की आवाज सुन सुनकर अरुणिता के भीतर क्रोध बढ़ता गया लेकिन बेबसी में वह उठ नही पा रही थी।

              

              कैप्टन के पास अब रिस्क लेने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने दीवार तोड़कर अंदर जाने का मन बना लिया। कैप्टन ने जवानों को सब समझाया और अंदर जाने की तैयारी करने लगे। उधर अरुणिता के पास बंदूक होते हुए भी वह कोई मदद नहीं कर पा रही थी।

              

              उसने अपनी आंखें बंद की और याद करने लगी कैसे उन्होंने उसके पति को मार दिया। उसके बच्चे की भी जान खतरे में है। अरुणिता ने अपने दर्द को भूलकर हिम्मत करके खुद को लड़ने के लिए तैयार किया। उसने एक लंबी सांस ली और बंदूक लेकर उठ खड़ी हुई। "अरु तू कर सकती है! तुझे करना ही होगा! ये तेरे देश और इन सभी मासूमों की जिंदगी का सवाल है! तुझे हिम्मत करनी ही होगी! या तो मरना है या मारना है! अब और कोई रास्ता नही है तेरे पास! यू हैव टू डू दिस अरु! दिखा दे आज इन लोगों को भी कि भारत के सिर्फ जवान ही नही हर औरत, हर बच्चे के जिस्म में देशप्रेम लहू बनकर दौड़ता है! जब बात देश की आए तो यहां का हर नागरिक योद्धा होता है! एक गृहिणी के हाथों की ताकत का आज उन्हें एहसास तुझे कराना है अरु! बच्चे को जन्म देने जितना दर्द सह लिया तो अब हाथों से बंदूक चलाने जितनी हिम्मत भी तुझे करनी है! बी स्ट्रॉन्ग अरु!"

              

              अरुणिता भारत माता की जय का नारा लगाते हुए वहां आई और चिल्लाते हुए बोली "एवरीबॉडी सीट डाउन!" उसने बिना प्रैक्टिस के लड़खड़ाते, कंपकपाते, कोमल हाथों से गोलियां बरसानी शुरू कर दी। उसके बोलते ही सभी लोग नीचे बैठ गए ताकि गोलियां उनके ऊपर से गुजर जाए और देखते ही देखते गोली लगने से सभी खिड़कियों के कांच टूटकर बिखर गए। "सर लगता है लोगों पर फायरिंग की गई है! खिड़कियों के कांच टूट गए सर!" जवान ने कैप्टन को कहा। दो आतंकी जो अचानक इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे, अरु ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया। बाकि दो ने बदले में अरुणिता पर गोलियां बरसानी शुरू कर दी।

              

              अरुणिता खुद को बचाने के लिए नीचे झुकी और सामने बैठे आदमी को इशारा किया। सामने बैठे लोगों में से दो तीन आदमियों ने उन आतंकियों के पैरो पर टूटे कांच से वार कर उन्हें मुंह के बल नीचे पटक दिया। ट्रिगर पर हाथ होने की वजह से उन्होंने गिरते वक्त भी गोली चला दी और आखिर अरूणिता को दो गोलियां लग गई। अरुणिता दर्द से चीख पड़ी और वह भी मुंह के बल जमीन पर गिर पड़ी। अंदर से आती गोलियों और चीखों की आवाज सुनकर सेना के जवानों से नही रुका गया। "सर खिड़की पर कोई दिखाई नहीं दे रहा! बस अंधाधुंध गोलियां चलने की आवाजें आ रही है! पता नहीं अंदर क्या हो रहा है?" जवान ने कैप्टन को आवाज लगाते हुए कहा।

              

              कैप्टन ने तुरंत एक रस्सा खिड़की पर फेंका और उसके सहारे ऊपर चढ़ने लगे। जमीन पर पड़ी अरुणिता को देख उन्हें लगा कि वह मर चुकी है। अरुणिता के गिरने से बाकि लोग भी खौफ में आ गए। दोनों आतंकी उठकर अरुणिता के पास आए और गुस्से में चीखते हुए उसके पेट में खींचकर लात मारी। लेकिन अरूणिता ने मरने का नाटक जारी रखा और अपने दर्द को अंदर ही अंदर पी गई। उन्होंने अरुणिता पर जैसे ही गोली चलाने की कोशिश की, उसने झट से पलटकर उन्हीं पर गोली दाग दी।

              

              आतंकियों के हाथ से भी गोली चली, जो पलटने के कारण निशाना चूकने से अरुणिता के सिर्फ हाथ में लगकर रह गई। इतने में ही खिड़की से कैप्टन अभिनव और अन्य जवान हॉस्पिटल में घुस आए। उन्होंने तुरंत उन दोनों घायल आतंकियों को हिरासत में ले लिया और अरुणिता को संभाला। जो कि गोली लगने और प्रसव के कारण सिर से पांव तक खून से लथपथ हो चुकी थी।

              

              कैप्टन ने अरूणिता की कमर से चादर खोलकर उसके बच्चे को उससे अलग किया, तो देखा अरुणिता के साथ साथ गोली उसके रूई से बच्चे के जिस्म से भी पार हो चुकी थी, जो अभी इस दुनिया में आया और अभी मर भी गया। कैप्टन ने अपनी कैप उतारकर नीचे रख दी। अरुणिता की सांसे अभी चल रही थी। कैप्टन ने उसे और बाकी घायलों को अस्पताल पहुंचाया। बाकि सभी जगह जाकर भी उन्होंने स्वयं निरीक्षण किया तत्पश्चात वह पुनः हॉस्पिटल आए।

              

              अरुणिता ने जैसे ही अपनी आंखें खोली, सबसे पहला सवाल यही था "मेरा बच्चा???" कैप्टन ने सिर झुका लिया और अरुणिता ने भी अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर ली। उसके बाद कैप्टन पहली बार मीडिया के सामने आए। "सर आपने इस मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया! अन्य जगहों पर लगे बॉम्ब को भी बड़ी चालाकी से डिफ्यूज कराया! आप जनता और दुश्मनों से क्या कहना चाहेंगे इस मिशन के बारे में?" मीडिया वालों ने उनसे सवाल पूछे।

              

              कैप्टन ने कहा "यह ऑपरेशन कैप मैने या मेरी टीम ने नही बल्कि किसी और ने पूरा किया है!" मीडिया ने फिर से सवाल दाग दिया "ऑपरेशन कैप क्या है सर और आपने नही तो किसने इस खतरनाक मिशन को अंजाम दिया?" सभी के चेहरे पर अचरज के भाव झलक रहे थे।

              

              कैप्टन ने मुस्कुराते हुए कहा "हमारे देश की दो बहादुर महिलाओं ने, जिन्होंने आज साबित कर दिया कि जरूर पड़ने पर औरत दुर्गा और काली का रूप भी धर सकती है!" कैप्टन ने पूरे मिशन के बारे में बताया और सभी हैरानी से उनकी बातें सुनने लगे।

              

              कैप्टन ने आगे कहा "मिस इंदू अभी सही सलामत है लेकिन मिसेज अरुणिता और उनके बच्चे ने इस ऑपरेशन को पूरा करने में अपनी जान लगा दी। उन्होंने साबित कर दिया कि दिल में अगर देशप्रेम, सीने में आग, हिम्मत, हौसला और जज्बा हो तो एक आम नागरिक भी किसी योद्धा से कम नहीं! उन्होंने पहले अपने पति को खो दिया! वो स्वयं प्रसव के बाद की पीड़ा में थी! वो पीड़ा जब औरत स्वयं उठ पाने में सक्षम नहीं होती, उन्होंने न केवल बंदूक बल्कि देश की सुरक्षा का भी जिम्मा भी खुद पर उठाया! जहां उन्हें सबसे ज्यादा आराम की जरूरत थी, उन्होंने दुश्मन को मौत की नींद सुला दिया! सलाम है भारत की इस बहादुर महिला को, जिसने सच में भारत मां बनकर अपना दामन खून से रंगकर अपने बच्चों को बचा लिया! ऑपरेशन कैप यानि कि ऑपरेशन कैपिटल (राजधानी) के पूरा होने का पूरा क्रेडिट जाता है मिसेज अरुणिता को! साथ ही उस मासूम बच्चे को जो अपनी मां की ही तरह वीर, बहादुर निकला! जिसकी जिंदगी शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई! सलाम है उस मां और उस बेटे को! जय हिंद!"

              

              अरुणिता की बहादुरी सुनकर सभी की आंखें नम हो चली और सीना गर्व से चौड़ा हो गया। पूरा देश संवेदनाओं में डूब गया क्योंकि उसने एक बहादुर बेटी को खो दिया।


समाप्त


जय हिंद, जय भारत

              

              



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