Navya Agrawal

Abstract Inspirational

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Navya Agrawal

Abstract Inspirational

मेरा भारत, मेरा है

मेरा भारत, मेरा है

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जय हिंद मित्रों


आज स्वाधीनता दिवस है। तो सबसे पहले आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। सभी ने अपने अपने विचार रखे, तो सोचा कुछ अपने विचार भी रखे जाए।


ये सच है कि हम अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से आजाद हो चुके है लेकिन हम खुद में कैद होकर रह गए है - अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण।


आज देश में आपराधिक घटनाएं दिन ब दिन अपने पांव पसारती जा रही है। जिसके लिए जिम्मेदार कौन - केवल हम।


हॉलीडे : A Soldier Never Off Duty फिल्म में एक बात कही गई थी हम दूसरों को दोष देते है कि उन्होंने ये नहीं किया, वो नहीं किया, ऐसा करना चाहिए था लेकिन जब बात खुद कुछ करने की आती है, तो हम दुनिया भर की बातें बना देते है।


हकीकत तो ये है कि हम दूसरों की होड़ में अच्छा इंसान बनना ही भूल गए है। जब बात दूसरों की मदद करने की आती है, तब हम यही सोचते है कि हमें क्या करना, छोड़ो और जब खुद को मदद चाहिए और मदद ना मिले, तो हम दूसरों को उलाहना देने से पीछे नहीं हटते।


एक ओर हम चाहते है कि हमारा देश उन्नति करे, आए बढ़े और दूसरी ओर हम स्वयं उसके लिए कोई प्रयास करना नही चाहते। केवल कुर्सी पर बैठे सत्ताधारी लोगों से उम्मीद रखते है कि वो हमारे देश का विकास करें। क्या ये सिर्फ उनका राष्ट्र है? क्या ये सिर्फ उनकी जिम्मेदारी है? क्यों देश के विकास के लिए केवल वही प्रयास करें? क्या सिर्फ कानून बनाने से सब सुधर जाएगा? क्या सिर्फ नेताओं के ईमानदार होने से देश की स्थिति सुधर जाएगी?


सभी सवालों का जवाब है - नहीं...!!!!


किसी लड़की का रेप होता है, तो उसके लिए जिम्मेदार सिर्फ वो बलात्कारी नहीं होता, उसके जिम्मेदार हम सब है। बेशक आज पहले से कुछ सुधार हुए है कि माता पिता अपनी बेटियों को सहना नहीं लड़ना सिखाते है। लेकिन 100 में से 98 लड़कियां आज भी ऐसी होती है जिन्हें सिर्फ डरकर, दबकर, झुक कर रहना सिखाया जाता है। यह फर्क बचपन में भाई बहनों में, शादी के बाद पति पत्नी में, उम्र के हर पहलू पर यही होता है - सहना, सहना और सिर्फ सहना। 


हजारों लाखों पेरेंट्स में से कुछ ऐसे होते होंगे जो लड़कों को बचपन से लड़कियों की इज्जत करना सिखाते है। अगर बचपन में ही उनके भीतर सही मानसिकता का विकास किया जाए, बच्चों को अच्छा माहौल दिया जाए, समाज में लोगों की सोच बदली जाए, तभी बलात्कार कम हो सकते है। सिर्फ कानून बदलने से कुछ नहीं होने वाला। पहल हमें स्वयं को करनी होगी।


आज लोग अंग्रेजी के चार अक्षर बोलना सीख जाते है तो खुद को बहुत शिक्षित समझने लगते है। एक टीवी सीरियल में बिल्कुल सही कहा अंग्रेजी केवल एक भाषा है। यही सच भी है। लेकिन आज हमने अंग्रेजी बोलने को ही शिक्षित होना समझ लिया। फिर चाहे सोच आपकी कितनी भी छोटी हो, बस अंग्रेजी बोल दी तो आपके बराबर कोई नहीं।


कड़वा है पर सच यही है कि हम सिर्फ बातें करते है कि दुनिया में हमारे राष्ट्र का नाम सबसे ऊंचा हो। लेकिन राष्ट्र के लिए कुछ करने की बात हो तो जीरो। हिंदी बोलना तो गंवार लोगों की श्रेणी में आने लगा है। आज भी आप देखोगे ना तो ऑनलाइन हिंदी उपन्यास से ज्यादा अंग्रेजी उपन्यासों को तवज्जो दी जाती है। हम अपने देश के विकास की कल्पना करते है और अपनी ही मातृ भाषा को बोलने से कतराते है।


अभी प्रतिलिपि पर लेखिका सरोज जी का लेख पढ़ा। उन्होंने बहुत सुंदर बात लिखी - "विदेशी लोग हमारे हिंदी गानों को, डांस को देखकर इतना खुश हो रहे थे। उन्होंने तिरंगे रंग की साड़ी पहनी हुई थी और हमारे यहां क्या होता है कपड़े छोटे पहनना शान समझते है।"


मैं ये नहीं कहती कि छोटे कपड़े पहनना गलत है। कपड़े आपके कम्फर्ट के हिसाब से होने चाहिए। जिनमें आप कंफर्टेबल रह सको। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि छोटे और मॉडर्न कपड़े पहनने वाली लड़की किसी सूट सलवार वाली को बहनजी, आंटी इस टाइप के वर्ड बोलकर उसे इंसल्ट करे। हम पाश्चात्य संस्कृति को अपनाते जा रहे है और अपनी संस्कृति को निभाना तो दूर की बात उसका अपमान करते है।


क्या ऐसे देश का विकास होता है??? जब हम स्वयं अपनी संस्कृति की कीमत नहीं समझते, तो दूसरे से क्या उम्मीद करेंगे कि वो हमारी वैल्यू करे? कपड़ों को आधुनिकता का पैमाना बनाना बंद करो। 


कोई कहता है सिर्फ लड़कियों के साथ यही सब होता है कि लोग उनकी बोली, उनके कपड़े के आधार पर उन्हें कैरेक्टर सर्टिफिकेट थमाते है, तो आप बिल्कुल गलत सोचते है। ये सब लड़कियों के साथ ही नहीं बल्कि लड़कों के भी साथ होता है। 


कोई लड़का अगर फॉर्मल कपड़े पहनता है, तो हमारी सोच कहती है अच्छा लड़का होगा, सिंसेयर होगा। फिर चाहे दिल और दिमाग में कितना भी गंद भरा हो। अगर लड़का कूल ड्यूड टाइप बनकर रहता है, तो सब उसे आवारा का ठप्पा लगाते है। फिर वो चाहे कितना भी केयरिंग, ईमानदार क्यों न हो। 


किसी के कपड़ों से किसी को जज करना, उन्हें कैरेक्टर सर्टिफिकेट देना और रेप का मुख्य कारण मानना बंद करना होगा क्योंकि ये सब मात्र हमारी सोच है।


हम ये तो कहते है कि हमारे देश में इतने गरीब लोग है। ना जाने कितने फुटपाथ पर सोते है। कितनी गरीबी है। सरकार कुछ करती नहीं। तो आप खुद अपने दिल से पूछिए कि आप उनके लिए क्या करते है? आप कब उनका हाल चाल पूछने जाते है? उनसे घड़ी भर बातें करते है? उनके साथ हंसकर बातें करते है? 


वो लोग प्यार के भूखे होते है क्योंकि लोग उन्हें देखकर छी....... जैसे शब्द बोलते है। जो उनके स्वाभिमान को चोट पहुंचाते है। वो पैसे से तो गरीब होते ही है और हमारी ऐसी छोटी हरकतें उन्हें छोटा महसूस भी करा देती है। अक्सर लोगों की नजर उनके गंदे कपड़ों पर तो जाती है लेकिन कभी उनके चेहरे पर छाई बेबसी पर नहीं जाती।


सभी नहीं लेकिन जो सक्षम लोग है, वो भी कभी गरीबों की मदद करने आगे नहीं आते। अगर हम सब मिलकर कोशिश करे, तो काफी हद तक गरीबी को दूर कर सकते है। पेटभर लोगों को खाना मिल सकता है। सरकार जिन गरीबों के लिए खाना, रोजगार स्कीम निकालती है, बीच में ही लोग उनके फंड के पैसे खा जाते है और फिर कहते है सरकार कुछ नहीं करती।


जिनके पास अच्छी धन सम्पदा है, जो खुद पर, अपने कपड़े पर, खाने पर, दिखावे पर हजारों लाखों खर्च कर देते है, कभी किसी गरीब के बच्चे को पढ़ाने पर लगाए, तो शायद देश को अच्छा भविष्य मिले। क्योंकि कोयले की खान में ही हीरे निकलते है। देश में जितना टैलेंट गरीबी में दब जाता है, अगर मदद के हाथ हम सब मिलकर भी बढ़ाए तो शायद समूल विकास हो।


दूसरे देशों से अपने देश की हम तुलना तो करते है लेकिन सिर्फ हमारी खामियों की तुलना। जो हमारे देश की खासियत है, जिनके होने से हमारे देश की अलग पहचान है, उसे हम भूल जाते है। जो प्यार, अपनापन भारत की हवाओं में है, वो आपको किसी और जगह जाकर नहीं मिल सकता। हमें ये तो दिखाई देता है कि विदेशों में साफ सुथरी सड़कें है लेकिन ये भूल जाते है कि हमारी सड़कों को गंदा करने वाले हम खुद होते है। सरकार सड़क पर झाड़ू लगाने नहीं आएगी। ये हमारी जिम्मेदारी है अपनी गलियों सड़कों को साफ स्वच्छ रखना।


हमे ये तो दिखता है कि विदेशों में इतनी उन्नति, विकास, आधुनिकता है लेकिन हम ये भूल जाते है कि जब हमारे यहां कोई आगे बढ़ने की कोशिश करता है, तो उसके पंखों को काट दिया जाता है कभी लोग क्या कहेंगे, तो कभी आवश्यक साधन, अवसर, सुविधा न मिलने पर उनके सपने तोड़ दिए जाते है। इतना धन तो हर स्कूल, कोचिंग वगैरह में होता ही है कि यदि कोई टैलेंटेड है और धन के अभाव में है तो उसे मुफ्त में शिक्षा दे सके। लेकिन उसकी मदद के लिए एक हाथ आगे नहीं बढ़ता।


लड़कियों को आज भी इतना दबाकर रखा जाता है। कुछ हद तक वो लोगों की संकीर्ण मानसिकता होती है और कुछ हद तक माता पिता का बेटियों के लिए उनकी परवाह होता है। क्योंकि आज का माहौल लड़कियों के लिए बहुत असुरक्षित हो चला है। लड़कियों को मजबूत बनाना चाहिए लेकिन उससे ज्यादा जरूरी लड़कों को सही संस्कार देना है और हम सबको भी जागरूक होने की जरूरत है।


आज भारत के चमकते सितारे तो सभी को दिखते है लेकिन उनके पीछे उनका संघर्ष शायद किसी ने जानने की कोशिश की होगी। सच कहूं मैंने भी नहीं पढ़ा। हमें वो जीत तो दिखी लेकिन एक पल के लिए भी ये ख्याल हमारे मन में नहीं आया कि क्यों हुनर को निखरने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ता है? ऐसे ही न जाने कितनी हुनर संघर्षों की धूप में जलकर खाक हो जाते है। क्यों न हम सब मिलकर ऐसे हुनर को निखारने में मदद करे, ताकि आज एक गोल्ड मेडल हमारे नाम हुआ, आगे चलकर इनकी संख्या बढ़ती जाए और साथ में भारत वर्ष भी।


हक की बात करने से पहले फर्ज निभाना सीखें।


माना अनेकों खामियां है मेरे देश में, लेकिन फिर भी गर्व होता है कि मैं भारत की वासी हूं। भारत मेरा है और मैं भारत की। परफेक्ट कुछ नही होता, बस बनाना पड़ता है। जैसे अपने घरों को साफ सुथरा बनाने की जिम्मेदारी हमारी होती है। ठीक वैसे ही ये देश भी हमारा है, तो इसे स्वतंत्र बनाने की जिम्मेदारी भी हमारी है। आओ मिलकर एक सच्ची कोशिश करें अपने देश को आगे बढ़ाने की। एक वादा खुद से करें अपने देश को वास्तविकता में आजादी दिलाने के लिए। आओ मिलकर कदम उठाए हिंदुस्तान की आजादी में बाधक बनी इन कुरीतियों को मिटाने की। आओ मिलकर अपनी सोच को बदले अपनी भारत मां को आजाद और खुशहाल करने के लिए।


जय हिंद जय भारत



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