मालिनी एक संघर्ष गाथा भाग 2
मालिनी एक संघर्ष गाथा भाग 2
जरूरी सूचना - मालिनी एक संघर्ष गाथा कहानी अब पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुकी है। मै एक नई लेखिका हूं और यह मेरी पहली किताब है। इस किताब के जरिए मैने महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय, घरेलू हिंसा, धोखा, बलात्कार, सामाजिक अपमान इत्यादि के विरुद्ध एक आवाज उठाने का प्रयास किया है और कोशिश की है समाज में महिलाओं के प्रति हमारे विचार और दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने की, ताकि किसी भी स्त्री को अपमान न सहना पड़े। एक महिला के जीवन से जुड़े संघर्षों और उन सबका वह कैसे डटकर सामना करती है, इसका विस्तृत रूप इस कहानी के जरिए दिखाया गया है। जो कि वास्तविक घटनाओं का सम्मिलित रूप है। अमेजन, फ्लिपकार्ट अथवा नोशन प्रेस से आप किताब खरीदकर एक लेखक के प्रयासों को सफल बनाने में मेरी सहायता करे। ऑनलाइन बुक ना मिलने पर आप मुझे इंस्टाग्राम पर भी मैसेज कर सकते है। मेरी इंस्टाग्राम id है agrawal_navi23 । कृपया अपना समय और सहयोग प्रदान करे।
अब तक आपने सरिता और मालिनी के बारे में एक छोटा सा परिचय पढ़ा..। जहां मालिनी सरिता के घर साफ सफाई का काम करती है.. और सरिता भी उसे अपने परिवार के एक सदस्य की भांति ही रखती है..। सुधा से सरिता को पता लगता है कि मालिनी को इसके पति ने खाने को भी नहीं दिया.. और उसका किसी और औरत के साथ संबंध है..। सरिता मालिनी के लिए खाना बनाती है.. और खुद उसे अपने हाथो से परोसती है..।
अब आगे :-
मालिनी ने सरिता को आवाज दी -"मैम साहेब आप जानती थी ना कि मैंने कल से कुछ नहीं खाया है..! इसलिए ही आपने ये सब बनाया ना..?" मालिनी की बाते सुनकर सरिता हलका सा मुस्कुरा दी.. और बिना कुछ कहे किचन में आ गई..। किचन में आकर सरिता ने एक टिफिन लिया और थोड़ा इडली सांभर पैक करके किचन से बाहर अाई..।
सरिता मालिनी को टिफिन पकड़ाते हुए बोली - "हां, मै जानती हूं तूने कल से कुछ नहीं खाया है..!" मालिनी सरिता की ओर सवालिया नजरों से देखते हुए बोली - "पर आपको कैसे पता लगा मैम साहेब..?" तब सरिता ने मालिनी को सुधा के वहां आने के बारे में बताया..। सरिता मुस्कुराते हुए कहने लगी - "वाकई सुधा तेरी बहुत अच्छी सहेली है..! तू बहुत लकी है मालिनी जो इतनी फिक्र करने वाली दोस्त है तेरी..!!"
सरिता के मुंह से सुधा के बारे में सुनकर मालिनी का चेहरा गुस्से में तमतमा गया.. और आंखो से आंसू बहने लगे..। वो बिना कुछ बोले टिफिन लेकर वहां से जाने लगी..। सरिता ने उसे रोका और पूछा - "क्या हुआ तुझे..? सुधा का नाम सुनकर ऐसे परेशान सी क्यों हो गई तू..?" मालिनी कुछ नहीं हुआ कहकर वहां से निकल गई..! सरिता को भी मालिनी का ऐसा व्यवहार कुछ समझ नहीं आया..। वो बस खड़ी यही सोचती रह गई कि सुधा का नाम सुनते ही इसे क्या हुआ जो इतने गुस्से में यहां से चली गई..। कुछ तो बात जरूर है.. जो मुझे पता नहीं है..।
मालिनी सभी घरों का काम खत्म करके जल्दी से घर पहुंचती है..। घर जाकर देखा तो मोहन अपने कुछ दोस्तों के साथ जुआ खेलने में लगा है.. और उसका बेटा भूख से वहा बैठा रो रहा है..। मोहन ने अपने बेटे को संभालने के बजाए जुआ खेलने में ही ध्यान लगाए रखा..। वह एक हाथ में बीड़ी लेकर कश भरते हुए हवा में धुआं उड़ा रहा था.. और मालिनी के ही पैसों को जुए में हार रहा था..। जिससे मालिनी बिल्कुल अनजान थी..। मालिनी ने घर के दरवाजे पर खड़े होकर ही मोहन की ऐसी हरकते देखी..। उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था.. मगर अपने गुस्से पर काबू करते हुए वह घर के अंदर अाई..।
मालिनी जल्दी से भागकर अपने बेटे के पास गई और उसे गोद में उठाकर अपने सीने से लगाकर चुप कराने लगी..। मालिनी के घर में एक ही कमरा था जिसमें रसोई और बेडरूम सब उसे ही बनाया हुआ था..। वह छोटू को उस कमरे के रसोई वाले हिस्से में लेकर गई.. और उसके खाने के लिए कुछ बनाने लगी..। पर तेज भूख के कारण छोटू बहुत जोर - जोर से रोने लगा..।
मालिनी ने सोचा क्या बनाऊं ऐसा जो जल्दी से पक जाए..! अगर अब रोटी सब्जी बनाने बैठी.. तो बहुत वक्त लग जाएगा..! तभी उसे सरिता द्वारा दिए गए टिफिन के बारे में याद आया..। उसने तुरंत सरिता के दिए हुए टिफिन को खोला और छोटू को खाना खिलाने लगी..। तेज भूख के कारण छोटू बहुत जोर से रोने लगा..। तभी मोहन के चिल्लाने की आवाज अाई - "तेरे से एक बच्चे को चुप नहीं कराया जा रहा..? इसका मुंह बंद करा अभी के अभी..! इतनी देर से रो रो कर मेरे सिर में दर्द कर दिया इसने..!"
मालिनी ने छोटू को अपनी गोद में बिठाया हुआ था.. और पैर हिलाकर उसे झुलाती हुई खाना खिला रही थी..। वह मोहन पर बरसते हुए कहने लगी - "ना जाने कब से छोटू भूख से तड़प रहा है..! तू घर पर था इसको कुछ खिला भी नहीं सकता क्या..? या अब ये काम भी सिर्फ मेरे ही मत्थे है..? मै करूंगी तभी होगा..!" मोहन उठकर मालिनी की तरफ जाने के लिए गुस्से में उठा ही था..। तभी उसके दोस्तो ने उसे शराब दिखाते हुए उसे वापस अपने पास बिठा लिया..।
मालिनी मोहन को सुनाने के साथ साथ छोटू को खाना भी खिलाती जा रही थी..। धीरे धीरे छोटू की भूख कम होती गई और उसका रोना भी लगभग बन्द सा हो गया..। जब छोटू का पेट भर गया तो वह मालिनी की गोद में ही लेट गया..। मालिनी छोटू को थपकी देकर सुलाने लगी.. और थोड़ी ही देर में उसे नींद भी आ गई..।
मालिनी छोटू को पास में पड़े पलंग पर सुलाने के लिए उठी..। वहीं पर मोहन अपने दोस्तो के साथ जुआ खेलने में व्यस्त था..। जैसे ही मालिनी ने गोद से पलंग पर छोटू को सुलाया.. वो जाग गया..। बच्चे मां की गोद से उतरकर रोते ही है.. छोटू भी थोड़ा रोने लगा..। मालिनी जल्दी से उसे थपकियां देकर सुलाने लगी..। उसके रोने की आवाज सुनकर मोहन को गुस्सा आ गया..। उसने हाथ में लिए ताश के पत्ते वही फेके.. और मालिनी के मुंह पर जोरदार तमाचा जड़ दिया..। मालिनी थप्पड़ लगते ही नीचे जमीन पर गिर पड़ी..। वहां बैठे मोहन के दोस्त मुन्ना, नीरज और सोनू उसे देखकर हंसने लगे..।
मोहन चिल्लाते हुए मालिनी से बोला - "साली तुझसे कितनी बार कहा है चुप करा ले इसको.. तेरे भेजे में बात घुसती नहीं है क्या..? उपर से मेरे ही सिर पर और सुला दे इसको..। निकल जा अभी के अभी यहां से अपने इस रोंधू बेटे को लेकर समझी..।" मालिनी रोते रोते उठी.. और उसका हाथ अभी भी उसके गाल पर ही था..। जिस पर मोहन के हाथ की उंगलियों के निशान छपे हुए थे..। मोहन अभी भी मालिनी को गुस्से से घूर रहा था.. और उस पर चिल्लाते हुए बोलता जा रहा था - "गवार कही की.. आ जाती है मुंह उठाकर..! साला सारे दिमाग का दही कर दिया..! काम धाम तो है नहीं..! बस मेरी ही जिंदगी नरक बनानी है तेरे को तो..!!"
तभी मोहन का दोस्त सोनू बीच में बोला - " अरे बस करो मोहन भाई !! शांत हो जाओ.. यहां बैठो आकर..! हम फिर से खेल शुरू करते है..!!''
नीरज - "और क्या तो..! क्यों तू इसके चक्कर में अपना बीपी बढ़ा रहा है..!!"
मुन्ना - (उसकी तरफ ग्लास बढ़ाते हुए) "ले एक घूंट मार तू भी.. तेरा सारा गुस्सा अभी चला जाएगा..!!"
नीरज -" हां भाई..! आ चल बैठ तू हमारे पास..!!"
सोनू -" इसका तो काम ही है नाटक करने का..! छोड़ तू उसे..!!"
सभी तरह तरह की घटिया बाते मालिनी को सुनाने लगे..। पर मोहन ने किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया..। वो अब भी गुस्से में बस मालिनी को ही घूर रहा था..। मालिनी सभी की बेहूदा बाते सुनती रही.. और यही सोचती रह गई कि मोहन ने एक बार भी उसका साथ नहीं दिया..। कैसा पति है.. जो सबके सामने अपनी बीवी को इज्जत भी नहीं देता..! जब देखो तब बाहर वालो के सामने फटकारते रहता है..! इसके लिए इतना मरती पचती हूं और इसे कुछ नहीं पड़ी मेरी...!
मोहन के चिल्लाने की वजह से छोटू भी नींद से जाग खड़ा हुआ.. और डर कर पलंग से नीचे कूद गया..। वह भागकर मालिनी के पास गया और उसके पीछे जाकर पैरो से लिपटकर चुपके से मोहन को देखने लगा..। मोहन को देखकर वह सुबक सुबक कर रो रहा था..। मालिनी की भी आंखो से आंसू बह रहे थे..। छोटू डर से मालिनी के साड़ी के पल्लू को अपने मुंह पर ढककर खड़ा रहा..। पतला होने के कारण उस पल्लू में से उसे मोहन दिखाई दे रहा था..। लेकिन एक बच्चो को ये सब करके लगता है कि उसे कोई नहीं देख रहा..।
पर कहते है ना कि एक मां अपने बच्चे के दुख के आगे अपना सारा दुख दर्द भूल जाती है..। अपने बच्चे की तकलीफ़ से बढ़कर उसके लिए कोई दर्द नहीं होता..। मालिनी को छोटू की सिसकियां सुनाई दी..। तब उसने महसूस किया कि मोहन के गुस्से से छोटू बहुत डर रहा है..। उसने छोटू को अपनी गोदी में उठाया.. और लेकर उसे घर से बाहर आ गई..। उसने छोटू का माथा चूमा.. और अपने सीने से लगा लिया..।
छोटू ने मालिनी को कसकर जकड़ा हुआ था..। इसी वजह से मालिनी को एहसास हुआ कि छोटू बेहद डर रहा है..। मालिनी छोटू के मन से डर निकालने के लिए कहने लगी - क्या" हुआ बेटा..? पापा से डर लग रहा है..?" छोटू ने गले लगे हुए ही हां में सिर हिला दिया..। मालिनी उसके बालो में हाथ फेरते हुए कहने लगी - "बेटा पापा ना तुझसे बहुत प्यार करते है..! इसलिए पापा से नहीं डरते..! बता पापा ने आज तक कभी मारा तुझे..?" छोटू ने ना में सिर हिलाते हुए कहा - "तो क्या पापा आप से प्यार नहीं करते मम्मी..? जो वो आपको से रुलाते है..?"
छोटू की बात सुनकर मालिनी एक पल के लिए तो बिल्कुल खामोश हो गई..। थोड़ी देर सोचने के बाद कहने लगी - "किसने कहा पापा मम्मी से प्यार नहीं करते..? पापा मम्मी से भी बहुत प्यार करते है..! पर मम्मी ने गलती की ना..? पापा का खेल बिगाड़ दिया..! बस इसलिए पापा को गुस्सा आ गया.. और उन्होंने मुझे डांट दिया..!" मालिनी छोटू के गाल खींचते हुए बोली इतनी बाते आती कहा से है तुझे शैतान..! छोटू हंसकर कहता है मैंने टीवी में देखा था एक बार पापा जब मम्मी को ऐसे मारते है तो मम्मी सोचती है कि पापा प्यार नहीं करते..! मालिनी को छोटू की बातो पर बहुत हंसी आती है.. और उसे वापस अपने सीने से लगाकर मुस्कुराते हुए कहती है मेरा बच्चा कितना सोचता है अपनी मां के लिए..!!
उसके घर के बाहर एक टूटी सी बेंच पड़ी थी..। मालिनी छोटू को लेकर वहां बैठ गई..। मालिनी ने उसे तरह तरह की आवाजे निकालकर हंसाने की कोशिश की..। छोटू मालिनी की ऊटपटांग हरकतें देख कर खिलखिला कर हंस पड़ा..। पर उसे नींद भी आ रही थी जिसकी वजह से वो बार बार अपनी आंखे मसलता..। मालिनी ने उसे अपनी गोद में लिटाया..। वह एक हाथ से उसे पीठ पर थपकियां देने लगी.. और दूसरे हाथ से उसका सिर सहलाने लगी..। चंद पलों में छोटू गहरी नींद में सो गया..। छोटू को इस तरह सुकून से सोता देखकर मालिनी को राहत मिली..।
मालिनी वही दीवार से सिर टिकाकर आंखे बंद करके बैठ गई..। वह अपनी किस्मत को कोसने लगी.. और उसकी आंखे नम हो गई..। वह मन ही मन सोचने लगी कि कैसी किस्मत है उसकी..। सारा दिन काम में मरने के बाद थोड़े से पैसे मिलते है.. और वो भी मोहन जुए और शराब में उड़ा देता है..। पैसे ना दू तो लड़ाई करता है, मारता है..करे तो आखिर करे क्या..? इतना भी काफी नहीं था जो अब मोहन किसी और औरत के साथ संबंध बनाने लगा..। मालिनी को डर लगने लगा कि उसका बसा बसाया घर उजड़ रहा है.. और वो कुछ नहीं कर पा रही..। मालिनी की आंखो से आंसू बहने लगे..।
उसने आंखे खोलकर अपने बेटे को देखा..। वह उसके सिर पर हाथ फेरते हुए सोचने लगी कि एक बेटा है उसका भी भविष्य बनाना है अभी..। लेकिन मोहन की इन हरकतों से मेरे बच्चे के दिल पर क्या गुजरती होगी..। आज भी कितना सहम गया था वो..। सोचा था घर में कुछ पैसे आएंगे.. उन्हें बचाकर रखूंगी.. ताकि अपने बेटे का अच्छे स्कूल में दाखिला करा सकूं..। पर यही सब चलता रहा तो स्कूल भेजना तो दूर घर में खाने के भी लाले पड़ जाएंगे..।
मालिनी सोच ही रही थी कि वह ऐसा क्या करे.. जिससे सब ठीक हो सके..। उसी समय सुधा मालिनी के घर के सामने से गुजर रही थी..। उसने मालिनी को छोटू के साथ घर के बाहर बैठे देखा.. तो उसके पास चली गई..। उसे मालिनी का यूं घर से बाहर बैठे रहना.. वो भी छोटू के साथ.. कुछ अजीब लगा..। मालिनी को तो सुधा के होने का एहसास ही नहीं था क्योंकि वह आंखे बन्द किए अपनी ही सोच में डूबा थी..।
सुधा - (मालिनी को हिलाते हुए)" मालिनी.. मालिनी.. तू यहां ऐसे क्यों बैठी है..? क्या हुआ..?"
सुधा को अपने सामने खड़ा देखकर मालिनी की आंखे सूख जाती है ..। थोड़ी देर पहले तक जिन आंखो में दुख और तकलीफ़ के आंसू थे.. अब उनमें गुस्सा उतर आया..।
मालिनी - (सुधा का हाथ झटकते हुए) "दूर हट मुझसे..! तेरी हिम्मत कैसे हुए मेरे पास भी आने की..!!"
सुधा - "मालिनी एक बार मेरी बात.....!"
(मालिनी उसकी बात को बीच में ही काट देती है)
मालिनी - (गुस्से में तमतमाते हुए) "अब भी कुछ कहने सुनने को बचा है क्या..?"
सुधा - "अरे सुन तो सही एक बार......!!"
मालिनी - "जो तूने किया है ना................!!!"
(क्रमशः)
