sonu santosh bhatt

Tragedy

4.5  

sonu santosh bhatt

Tragedy

मेरी मौत के बाद

मेरी मौत के बाद

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एक जोरदार प्रहार के साथ घर के आईने को तोड़ते हुए मैं जोर से चिल्लाते हुए बोला- "पागल हो गया है तू…. कम से कम तू तो मुझे देख, एक आइना ही तो होता है जो कभी झूठ नही बोलता। और तेरे भी नखरे हो रहे है।"

पूजा भागते हुए आई और टूटे हुए शीशे को हैरानी से देखते हुए मम्मी को आवाज लगाते हुए बोली- "माँ…. कोई भी नही है कमरे में, और ये शीशा पता नही कैसे टूट गया।"

"बिल्ली होगी कोई, बेड के नीचे छिप गई होगी ध्यान से देख" मम्मी ने अंदर से आवाज दी।

पूजा ने बिल्ली का नाम सुना तो ऐसे डर के भागी की मुझके हंसी ही आने लगी, मैं उसके पीछे भागते हुए गया- "अरे नही है बिल्ली, कहाँ भाग रही है"

पूजा भागते भागते रुक गयी और अजीब सहूलियत के साथ पीछे मुड़कर देखा, जैसे सब कुछ सुन लिया होगा।

मैं खुश हो गया, मुझे लगा कोई तो मुझे सुन पा रहा है।

"पूजा…! मैं हूँ, तुम्हारा ध्रुव। हाँ पूजा मैं तुम्हारा ध्रुव।" कहते हुए में पूजा की तरफ गया ।

पूजा मेरे लिए नही रुकी थी, दरवाजे पर उसकी चुनरी फंस गई थी। वो अब वापस दरवाजे के पास आने में आलस करते हुए कुंडे में फंसे दुपट्टे को दूर से ही झटका देकर निकालने की कोशिश करने लगी।

मैंने दरवाजे के पास जाकर धीरे से उस दुपट्टे को दरवाजे से निकाला और धीरे धीरे उसके पास ले जाने लगा। लेकिन उसने मेरे पास पहुँचने का इंतजार बिना किये किचन की तरफ दौड़ लगा ली, मैं भी दुपट्टे का दूसरा छोर पकड़े उसके पीछे पीछे भागने लगा ।

पूजा और उसकी लहराती चुनरी किचन में माँ के पास पहुंची। तेज भागने की वजह से किचन में भी ब्रेक नही लगा और मां से जा टकराई।

मैंने अपना माथा ठनका- "अब तो खाएगी ये डाँट। बावली लड़की है ये तो, भला बिल्ली से इतना कौन डरता है"

"क्या हो गया तुझे, एक क्या भाग रही है? बिल्ली ही होगी कोई बाघ तो है नही।" माँ ने कहा और अपनी बहू को संभालते हुए हंसने लगी।

"पूरा शीशा टूट गया है, पता नही कैसे, जरूरी थोड़ी बिल्ली ही होगी" पूजा बोली।

"तू फौजी की बीवी होकर इतनी डरपोक क्यो है, छिपकली, कॉकरोच और चूहे तो जैसे कोई आतंकवादी है तेरे लिए, और कारतूस लेकर तेरे पीछे भाग रहे होंगे…. हहहह…. आज आएगा ध्रुव तो बोल देना की पहले घर के आतंकवादियों का सफाया करो, बॉर्डर के तो करते ही रहते हो।" माँ बोली।

पूजा भी हल्की मुस्कराहट के साथ चूल्हे में चढ़ाई खीर को चम्मच से हिलाने लगी।

कितनी खुशी है दोनो में मेरे आने की, और मैं सुबह से थक गया दोनो को ये बताते बताते की मैं आ गया हूँ, कब से तो आगे पीछे घूम रहा इनके, लेकिन नही…. इनको मुझसे कोई मतलब नही है, मेरे लिए पकवान बनाने से मतलब है।

"तू इसको मत हिला…. जा जाकर फोन कर ध्रुव को। कल रात को हुई थी बात तो बोल रहा था सुबह आठ बजे तक आ जाऊंगा, नाश्ता तैयार रखना, पौने नौ बजे गए है" माँ ने कहा।

"सुबह से चार बार कर लिया फोन, लेकिन वो नही उठा रहे है, मेरे तो गुड मॉर्निंग का भी जवाब नही दिया। आने दो उनको आज, मैं तो बात भी नही करूंगी। " पूजा ने कहा।

"सोया होगा गाड़ी में, जाम लगा होगा, जानबूझकर थोड़ी इग्नोर करेगा, तू एक बार और कर फोन, जा मेरे फोन से कर ले।" माँ ने कहा।

पूजा ने फ्रिज के ऊपर से माँ का फोन उठाया और मेरा नम्बर डायल करते हुए मिलाने लगी।

मैं मुस्कराते हुए सोचने लगा कि पूजा को मेरा नम्बर याद रहता है, वो अपने फोन से भी मुझे नम्बर डायल करके फोन करती है,जबकि नम्बर सेव रहता है, और कॉल हिस्ट्री में भी पहले या दूसरे नम्बर पर रहता है, फिर भी आदत से मजबूर।

"घंटी जा रही है, लेकिन उठा नही रहे"

घंटी की आवाज सुनकर मैंने जेब को टटोला तो मेरे जेब मे फोन नही था।

संदेशे आते है वाले गाने की सिटी मुझे इतनी पसंद थी कि मैंने रिंगटोन पर वही लगाया था। शायद मेरे फौजी होना भी एक कारण था ,और उस गाने से मुझे बहुत लगाव था

फोन की रिंगटोन की आवाज गूंज रही थी एक सुनसान जंगल मे, मोबाइल जमीन पर हल्की दूब-घास से ओस की बूंदों को ओढ़े हुए वाईब्रेट कर रहा था, और उसके थोड़ी ही दूर एक गाड़ी का एक दरवाजा अधजला हुआ था और कांच के काले टुकड़े थे। और पास ही एक गाड़ी के पहिये में अब तक आग लग रही थी।

रिंगटोन की आवाज कानो में गूंज रही थी क्योकि मैं अभी मोबाइल के पास जा चुका था, मोबाइल के पास जलती हुई गाड़ी और झाड़ियों में फंसी कुछ लाशों को देखकर मैं हैरान था। मोबाइल को पास जाकर देखा तो मेरी माँ का फोन आ रहा था। और मैं जानता था कि मेरी पत्नी पूजा कर रही है।

उन्ही लाशों में खुद को देखकर मैं जयर से चिल्लाया- "नही!"

मेरी "नही" बोलने की आवाज पूरे इलाके में गूंजी थी,वो भी सिर्फ मेरे लिए।

मैं चारो तरफ गर्दन घुमाते हुए धीरे से खुद की लाश के पास गया और उसे उठाने लगा। उसके सीने को मलने लगा ताकि श्वास वापस आ सके। लेकिन ये असंभव कार्य था।

मैं हिम्मतहार हो चुका था। एक तरफ पूजा और माँ दोनो को मेरा इंतजार था और दूसरी तरफ मेरी गाड़ी का ब्लास्ट हो चुका था, मेरी तो नही लेकिन सरकारी गाड़ी थी जिसमे मैं और मेरे पांच छ और साथी थे। शायद गाड़ी सड़क से नीचे गिर गयी थी।

मैं रात के उस वक्त को याद करने लगा जब हम एक साथ बॉर्डर के पास लगे कैम्प से अपनी छुट्टी अप्रूव करके लौट रहे थे। सारे भाई लोग भी उतने ही खुश थे जितने हम सात लोग जिन्हे छुट्टी मिली थी।

"ध्रुव यार हमारा मन नही लगेगा तेरे बिना, रात को कम्बल कुटाई किसकी करेंगे" राहुल ने शरारती अंदाज में कहा।

राहुल मेरा सबसे बेस्ट फ्रेंड था। और परेशान भी सबसे ज्यादा मुझे करता था, जब वो परेशान करता था तब मुझे ऐसा लगता था जैसे वो दोस्ती के नाम पर बस मजाक उड़ाता है मेरा। मैं बहुत बार उससे हमेशा के लिए झगड़कर दोस्ती से छुट्टी लेने की सोच लेता था तंग आकर, उसकी बात बात पर छेड़ना और बाकी लोगो के साथ मेरी खिल्ली उड़ाना मुझे पसंद नही था। लेकिन हर मुशीबत में जब वो मेरा साथ देता था तो मुझे यकीन हो गया कि वो बस मजाक करके सबको हंसाता है, दोस्ती भी तो निभाता है। उस दिन जब चार आतंकवादियों ने कैम्प पर हमला किया तो बाकी सब लड़ते लड़ते वहां से निकल कर दूसरी तरफ भाग चुके थे, लेकिन राहुल तब तक दीवार लांघकर नही गया जब तक मैं फंसा हुआ था। जबकि वो ही सबसे फुर्तीला था। उसने पहले मुझे दीवार लंघवाया उसके बाद खुद लंबी छलांग लगायी। उस दिन मुझे एहसास हुए कि राहुल ही मेरा अच्छा दोस्त है।

कल शाम को हंसते हँसन्ते राहुल ने मुझे विदा किया और खिल्ली उड़ाते हुए कहा- "अब तो कुछ दिन अपनी बीबी के पल्लू में बंधे रहना, जिसे परसो मैंने आई लव यू बोला था"

सब लोग हैरानी से राहुल की तरफ देखने लगे तो मैंने हँसते हुए सारी बात बताई- "मेरे फोन से मैसेज भेजा था, पूजा से मेरा झगड़ा हुआ था, मैंने इसे बताया था तो पता नही कब इसने ऐसी हरकत कर दी, कमीना है ये, दोस्त नही है"

सब लोग हंसने लगे।

हम गाड़ी से थोड़ी दूर ही गए थे कि राहुल का सेड इमोजी के साथ मैसेज आ गया- आई मिस यू आर।

मैंने स्माइली फेस भेजते हुए उसका मजाक उड़ाया, क्योकि मुझे पता था वो यहाँ भी कोई गेम खेलेगा।

गाड़ी निकल पड़ी पिंजौर की तरफ, पंजाब बॉर्डर से होते हिमांचल की तरफ जाना था, क्योकि सब लोगो को छोड़ते हुए जाना था।

मैंने गाड़ी के लास्ट वाले सबसे बड़े शीट पर कब्जा किया और पेट के बल लेटकर कोहनी पर सारा भार देते हुए मोबाइल हाथ मे ले लिया, पूजा को मैसेज करते हुए लिखा- "अब तो खुश हो ना, मैं छुट्टी लेकर आ रहा हूँ वो भी पूरे महीने की।"

साथ मे मैंने लास्ट सीट पर लेटे हुए एक सेल्फी ली और पूजा को सेंड कर दिया।

तब भी पूजा को यकीन नही आया, क्योकि उसके साथ अक्सर में ऐसी ठिठोली करता रहता था, पुरानी पुरानी फ़ोटो भेजकर। उसने तुरंत वीडियोकॉल कर दिया, तब मेरे पास हेडफोन नही था तो मैंने फोन काटते हुए पहले बैग से हेडफोन निकाला और उसके बाद दोबारा कॉल लगाने लगा तो पूजा का मैसेज आ गया- "मुझे पता है आप आ रहे हो, विडिओकॉल कर रही थी लेकिन अब माँ के साथ मार्किट जाने लगे गयी, शाम को कर लुंगी टाइम लगेगा तो, नही भी किया तो भी कल तो आप आ ही जाओगे"

पूजा का मैसेज देखने के बाद मैंने कॉल बैक नही किया, मां को कॉल कर लिया - "हेलो , प्रणाम माँ"

"बैठ गया तू गाड़ी में, थोड़ा ध्यान से आना, ठीक है…. " माँ ने कहा।

"लेकिन…… लेकिन आपको कैसे… " मैं कुछ कहता कि माँ दोबारा बोलने लगी- "मुझे बहुत दिनों से ऐसा लग रहा था कि तेरे से मुलाकात होने वाली है, और जब बहु ने खुश होकर बताया कि ध्रुव आ रहा तो मैं समझ गयी कि मेरा उस दिन का सपना जरूर पूरा होगा, दो चार दिन पहले ही सपने में तू आया था घर।"

"सपने तो मुझे भी आते है मम्मी, लेकिन बहुत अजीब अजीब। ऐसे सपने की मैं किसी को बताऊं भी तो कैसे, अजीब तरह से शुरू होते है अजीब तरह से खत्म" मैने कहा ।

"तू तो बचपन से अजीब सपने देखता है, तेरे सपनो पर तो किताब भी लिखी जा सकती है, अभी वो सब छोड़ तू ये बता की नाश्ता क्या करेगा कल सुबह" माँ ने कहा।

"ऐसे मत पूछो, आप जो पकाते हो वो स्पेशल होता है, कुछ भी पका लेना, मैं आठ बजे तक पहुंच जाऊँगा"

मैंने कहा, माँ ने मार्किट जाना था तो जल्दी फोन काट दिया।

रास्तों में नेटवर्क प्रॉब्लम बहुत आती है, नेट भी नही चल रहा था, मैंने मोबाइल में गाने चलाकर सोना ही बेहतर समझा, मेरी एक और खास बात थी जिसके कारण मेरा मजाक भी बनाते थे दोस्त, वो खास बात ये थी कि मुझे जहां आंखे बंद करके पांच मिनट रह लिया वही नींद आ जाती थी, कभी कुर्सी में, कभी किसी पत्थर में, कभी कभी कैम्प के अंदर चटाई बिछाकर ही सो जाता था। इतनी प्यारी नींद थी कि इंतजार करती आंखे मुंदने का।

गाना सुनते सुनते ही मुझे गाड़ी में नींद आ गयी। उस नींद के बाद का मुझे कुछ याद नही, मैं घर चला गया तो मुझे कोई देख नही पा रहा था, मैंने घर का शीशा तक इसलिए तोड़ दिया क्योकि उसमे मेरी परछाई भी नही दिख रही थी।

पूजा ने भी नही देखा ना ही माँ ने, जब पूजा ने माँ के फोन पर फोन किया तो मैंने पाया कि मैं तो किसी जंगल मे ही बेसुध पड़ा हूँ।

फोन पर फोन आ रहे थे और मैं अपने चारो तरफ जल रहे गाड़ी के पुर्जो और साथियों की लाश को देख रहा था। एक अजीब सा डर मेरे मन मे था, क्योकि मुझे अभी अभी पता लगा कि वो शीशे में मेरे नही दिखने की वजह क्या थी, पूजा ने क्यो मुझे नही देखा, क्यो माँ को मैं महसूस नही हुआ, मुझे सब मालूम हो चुका था, इस सबका कारण था कि मैं मर चुका था, लेकिन मेरी आत्मा को सिर्फ घर जाने की बैचेनी थी इसलिए वो शरीर को छोड़कर घर चले गई।

अब मैं घुटने के बल अपने गिरे पड़े मोबाइल की तरफ गया, झाड़ियां इतनी थी कि कोई ठीक से तनकर चल भी नही सकता, जैसे ही मैं मोबाइल को पकड़े लगा तो मोबाइल के पास किसी का पैर नजर आया, मैंने पैर को देखते हुए उपर की तरफ गर्दन उठायी तो एक लड़खड़ाता हुआ फौजी को अपने सामने पाया जिसने वो मोबाइल उठाया और आने वाली कॉल को डिस्कनेक्ट करके एक हेल्पलाइन नम्बर डायल कर लिया।

"हेलो…. गाड़ी नम्बर 136A/2 अमृतसर टू हिमांचल पलट गई है, और गाड़ी के सारे जवान मौत के घाट उतर गए है, मैं ही बच गया क्योकि जब गाड़ी पर आतंकवादियों का हमला हुआ था तब मैं गाड़ी में नही था, गाड़ी पर इलेक्ट्रिक कारतूस से हमला करके उसका बेलेंस बिगाड़ दिया और पलटते हुए गाड़ी पर गोलियां चलाई गई। मैं बहुत मुश्किल से सभी फौजी भाइयों की लाश तक पहुंचा हूँ।"

"ओके, हम करते है कुछ" कहते हुए कॉल डिस्कनेक्ट हो गया।

"अरे ये तो रघु है…" मैंने खुद से कहा और झाड़ी को हटाते हुए रघु के पास गया,

रघु से मैं कुछ कहता कि एक बार फिर पूजा का कॉल आया , रघु ने नाम पड़ा और कहा- "क्या कहूँ मैं पूजा भाभी को, कैसे उठाउँ फोन"

"अरे उठा ले ना, प्लीज उठा ले, और बोल दे कि ध्रुव आ रहा है, उसे बोल दे ना। " मैंने कहा हि था की रघु भी बोल पड़ा- "मुझमें नही हीम्मत, लेकिन ध्रुव जाएगा, ध्रुव घर तो जाएगा वो भी पूरे शान से, तिरंगा उसका कफन होगा, तिरंगा में लिपटकर ध्रुव घर पहुंचेगा उससे पहले पहुंच चुकी होगी उसकी कहानी, जिस तरह उसने इन आठ साल में आतंकीयो का जीना हराम किया था, घुसपैठियों को उनके कैम्प में घुसकर मारने का खिताब भी तो ध्रुव को हासिल है। यही नही ध्रुव ने अकेले आठ आतंकवादियों से लड़कर सुपरहीरो की उपाधि जो हासिल की है, उस दिन को कैसे देश भूल जाएंगे जब चार जवानों को शहीद करने वाले आतंकवादियो ने ध्रुव को कीटनेप करके पूरे देश को चुनौती दे दी थी और अपनी शर्त मंजूर करने के लिए धमकियां दी रहे थे, ध्रुव ने ही उस शर्त को ना मानने को कहा था, लेकिन सरकार ने अपने जवान के लिए शर्त मंजूर कर ली थी तो ध्रुव ने उन सभी आतंकियों के साथ उनके शर्तो का भी नामो निशान मिटा दिया था। " रघु अकेले अकेले आंखों में पानी लिए मेरी तारीफ किये जा रहा था।

"अरे बस कर मेरे भाई, रो मत, तुम मेरे लिए रोते हो और मुझे फिक्र उस माँ की है जिसने कल शाम को भी ठीक से खाना नही खाया होगा ये सोचकर कि कल सुबह अपने बेटे के साथ खाऊँगी, और मेरी बीवी पूजा…. कितनी बदनसीब है वो , उसे तो प्यार से गले भी साल में एक बार लगाता हूँ, वो भी इंतजार कर रही होगी कि मैं आऊंगा तो पहले ढेर सारी शिकायत करेगी और उसके बाद अपने दिल की बात बताएगी, मैं फिर से उसका हाथ पकड़कर उंगली से उसे घुमाते हुए किसी हिंदी पुराने जमाने के गाने में झूमुंगा। जैसे हर बार झूमते थे, आखिर उसे भी गर्व होता है कि उसका फौजी पति छुट्टी लेकर आया है जिसे वो सुबह शाम याद करती है।

बहुत सारे अरमानों पर पानी फिर चुका था, मैं भी ठहर गया और रघु भी अभी वही रुका था। उसने फोन तो नही उठाया लेकिन अब वो अपने ही मोबाइल पर फोन करने लगा क्योकि उसका मोबाइल खो चुका था, उसे उम्मीद थी कि यही कहीं गिरा होगा।

सूरज की शुरुआती किरण अब झाड़ियों से छनते हुए हमारी तरफ आने लगी और झाड़ियों की ओस भी कोहरा बनकर उड़ने लगी। रघु हमारी लाशों के पास ही बैठ गया और इंतजार करने लगा कि उनकी मदद के लिए टीम आये।

मैं अब जान चुका था कि मैं मर गया, इसलिए अभी इन झाड़ियों से ज्यादा जरूरी था घर जाकर ये देखना की कहीं उनतक खबर तो नही पहुंच गई।

घर गया तो अभी भी वहां कुछ नही पता था। वो लोग टेंशन में जरूर थे कि सवा नौ बज गए लेकिन मैं घर नही आया। ना ही फोन उठा रहा था।

"तेरे पास उसके दोस्तों का नम्बर होगा, किसी को फोन करके पूछ" माँ ने पूजा से कहा।

"एक ही का नम्बर है, राहुल का, लेकिन वो साथ नही आया, मैंने किया था उसको फोन" पूजा ने कहा।

"एक बार और करके पूछ लें, वो ध्रुव के अलावा किसी और को फोन करके पूछ लेगा" माँ बोली।

माँ की जिद को देखते हुए पूजा ने फिर से राहुल को फोन किया, इस बीच राहुल की रघु से बात हो चुकी थी मेरे फोन से, इसलिए राहुल सब जानता था।

एक झिझक के साथ राहुल ने फोन उठाया।

"हेलो, भैया…. आपकी हुई बात उनसे" पूजा ने कहा।

राहुल के पास कहने को कोई शब्द नही थे, उसने कांपती रोती सी आवाज में कहा- "भाभी, आप टीवी खोल लो" कहते ही राहुल ने फोन काट दिया।

टीवी खोल लो सुनते ही पूजा सुन्न पढ़ गयी, एक तरफ राहुल की दर्द भरी आवाज , और उपर से उसने कुछ बताया भी नही। पूजा की हीम्मत ही नही हुई टीवी खोलने की फिर भी वो आगे गयी और टीवी खोलते हुए सोफे में बैठ गयी।

पूजा को शांत देखकर माँ की चीख निकल आयी, सुबह सुबह शीशे के टूटना, पहले ही अपशगुन हुआ था, उपर से उसकी दाई आंख सुबह से फड़क रछी थी जिसे वो सिर्फ इसलिए इग्नोर कर रही थी क्योकि हमेशा अच्छा और पॉजिटिव सोचना चाहिए।

टीवी में समाचार इस प्रकार थे-

◆- "सुपर हीरो ध्रुव और और उसके साथी हुए आतंकवादीयो के धोके का शिकार।"

◆- कुछ दिन पहले ध्रुव के दिखाए कारनामे से डरे हुए आतंकवादियों ने रात के अंधेरे का फायदा उठाकर किया पलटवार।

◆- देश को फिर से हुआ छह जवानों को खोने का नुकसान, फिर से भारत माता के छह पुत्र अब हमेशा के लिए सो गए है अपनी माँ के गोद में।

◆ छह शहीद जवानों को पूरा देश देगा भावभीनी श्रद्धांजलि।

◆ शहिद जवान ध्रुव की जगह उनकी माँ निर्जला देवी को किया जाएगा सम्मानित।

समाचार देखते देखते पूजा बेहोश हो गयी, और माँ भी आंखों से आँसू बहाते हुए टीवी पर नजर गढ़ाए ना कुछ देख रही थी ना कुछ सुन रही थी, क्योकि जो उसने सुना था उसके अलावा उसके सुनने लायक कोई बात नही थी दुनिया में।

समाचार के शौकीन पड़ोसी लोग भी खबर सुनकर हमारे घर आने लगे थे।

"पिप….पिप……टिटिट…." एक गाड़ी हॉर्न दे दे कर लगातार चल रही थी, और एक मोबाइल जो बार बार रिंग हो रहा था, बस की सीट के नीचे की तरफ लटका हेडफोन और बैग के उपर रखा हुआ सिर… सब बस के स्लोमोशन चलने से उत्पन्न कम्पन्न से काँप रहे थे। और पसीने से भरा हुआ ध्रुव आंखों से आंसू बहा रहा था। फिर अचानक एक तेज ब्रेक से ध्रुव शीट से नीचे फिसल गया, बेइजती के डर से एक दम उठा और देखने लगा कि किसी ने उसे गिरते हुए देखा तो नही वरना फिर से खिल्ली उड़ाने लगेंगे। शुक्र है सब मजे से सो रहे थे, बस ड्राइवर जागा हुआ था। खिड़की से बाहर झांकते हुए उबासी लेकर ध्रुव झट से बैठ गया।

"हे प्रभु…. ये सुपरहीरो बनने के सपने क्यो इतने तँग करते है मुझे, अपने फौजी साथी तो मुझे पेल के रखते है, फिर इतने सारे आतंकवादियों को उनके केम्प में जाकर कैसे मारा मैंने…. और मैं खुद भी तो मरा…. बेकार…. आज वाला सपना तो बिल्कुल ही बेकार था" कहते हुए ध्रुव ने हेडफोन कान में डालते हुए पूजा को फोन किया- "हेलो.… उठ गई या सोई हो अभी"

"नींद ही किसे आयी, पता नही जब आपने आना होता है तो नींद कहाँ गायब हो जाती है" पूजा ने कहा।

"अरे लेकिन अभी तो सुबह के 5 बज रहे है, पूरे तीन घंटे है मेरे आने में और बस की रफ्तार जैसी है उस हिसाब से तो चार भी लग सकते है।" ध्रुव ने कहा।

"आपके लिए नाश्ता भी तो पकाना है, मम्मी तो सुबह से ही किचन में खटबट करने लगी है, शायद कुछ स्पेशल बनाएंगे आज" पूजा ने कहा।

"चलो आराम से बनाओ, मैं भी आराम से आ रहा, और हाँ… घर आकर तुम्हे आज वाला सपना बताऊंगा, आज तो सपना मेरा इतना खतरनाक था कि जब उठा तो पूरी आंखे भीग गयी थी।" ध्रुव ने कहा।

"ऐसा भी क्या देख लिया, चलो घर आकर बताना, मैं भी कुछ काम कर लेती हूँ" पूजा ने कहा।

"ओके बाय" ध्रुव ने कहा और फोन काट के आंखे बंद कर ली। बाकी सारे साथी सोये हुए थे, अब ध्रुव को नींद नही आ रही थी, वो उस अजीब सपने के बारे में सोच रहा था,

"माँ सही कहती है, मेरे सपनों पर बुक लिखी जा सकती है, एक बार फौजी से रिटायर्ड हो जाऊं, फिर लिखूंगा अपने सारे सपनो को" कहते हुए ध्रुव सोने की कोशिश करने लगा।

बस के झटके और सफर, साथ मे फिर एक नया सपना…. ध्रुव की लाइफ तो नींद और सपनों में ही उलझ गयी थी, अभी तक के सपने में वो एक सुपरहीरो था। अगर नींद में देखेगा तो वो हमेशा सुपरहीरो सपने में ही रहेगा, असल जिंदगी में सुपरहीरो बनने के लिए खुली आँखों से सपने देखने पड़ते है और मेहनत करनी पड़ती है। खैर ध्रुव को मेहनत करना पसंद था लेकिन सिर्फ सपनो में…. इसलिए तो वो बिना मेहनत के जहां आंखे बंद करता वही सो जाता था।



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