sonu santosh bhatt

Romance Tragedy Inspirational

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sonu santosh bhatt

Romance Tragedy Inspirational

प्यार अधूरा तो ना था

प्यार अधूरा तो ना था

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शॉपिंग मॉल में अनजाने में हुई मुलाकात से कई गड़े मुर्दे उखड़ आये, क्योकि शिवम और राधा आज फिर अचानक ही मिल गए , जो जिंदगी में एक बार मिलकर वापस बिछड़ चुके थे, उनका प्यार भी दोतरफा था, उनका प्यार अधूरा नहीं था। किस्मत में साथ अधूरा लिखा था।

शिवम- मैं निकाल देता हूँ

(कहते हुए दीवार से कसी गयी एक कील पर अटके राधा की चुनरी को निकालने लगता है, लेकिन राधा चुनरी के फटने की फिक्र किये बिना ही एक झटके से चुनरी को खींचकर आगे बढ़ गयी।)

शिवम- (राधा को जाते हुए देखकर मन ही मन सोचता है) - जिंदगी मैं सबकुछ बदल गया, लेकिन तुम…. राधा तुम कब बदलोगी……कौन कहेगा कि हमारी लव मैरिज हुई थी और पांच महीने बाद ही शादी टूट गयी और दोनो अपना अपना रास्ता नापने लगे है। तलाक के बाद आज तीसरी मुलाकात है हमारी जो कुछ सेकण्डों की होती है, ना मैं तुम्हे कुछ बता पाता हूँ, ना ही तुमसे कितना प्यार है इस दिल मे, जता पाता हूँ, मगर शुकुन बहुत मिलता है, जब तुम्हे देखता हूँ तो मेरी आँखों की प्यास थोड़ी सी ही सही लेकिन बुझ जाती है।

शिवम दूसरी तरफ के शोरूम का रास्ता पकड़ लेता है क्योकि वो नहीं चाहता कि राधा को लगे कि शिवम उसका पीछा कर रहा है।

थोड़ी आगे जाकर लिफ्ट से नीचे उतरने लगा तो लिफ्ट में उसके जाने से अलार्म बज गया, इसलिए भार हल्का करने के लिए वो वापस अपने कदम खींचकर सीढ़ियों से जाने लगा।

शिवम- इतना बड़ा मॉल है, पांच पांच फ्लोर है, लेकिन वो मुझे फिर भी मिल ही जाती है, पहली बार भी हम इसी मॉल में मिले थे, मैं सीढ़िया चढ़ रहा था और वो उतर रही थी, जब मैंने उसे सीढियां उतरते देखा तो मानो वो सीढियां नहीं मेरे दिल मे उतर रही हो, पहली नजर में ही मेरे दिल को छलनी करने वाली राधा ने मेरे दिल को चलनी ही बना दिया, जैसे चलनी में पानी नहीं अटक पाता, मेरे दिल मे भी राधा के अलावा कोई नहीं टिक पाया। ऐसा नहीं है कि उसे देखने के बाद मैने अपनी तलाश खत्म कर दी थी, मैं हमेशा से एक प्यारी सी गर्लफ्रैंड, एक सुंदर सी घरवालो के लिए बहु और अपने लिए जीवनसाथी की तलाश में रहता था। लेकिन जब से राधा को देखा तो किसी और में वो बात कभी नजर आई ही नहीं।

शिवम पुरानी पुरानी बातों में खोए हुए ही सीढ़िया उतरा और एक जूते के शोरूम में जा पहुंचा,

जूते लेते हुए भी उसे उसी की याद आयी……

राधा- ये जम नहीं रहे है, थोड़े स्टाइलिस पहनो… व्हाइट कलर मस्त लगेंगे।

शिवम- व्हाइट जल्दी गंदे हो जाते है, और जल्दी साफ भी नहीं होते, महीने बाद ही ऐसे लगते है जैसे दो तीन साल से इन्हीं को रगड़ रहे है।

राधा- एक महीने से ज्यादा एक ही जोड़े जूते पहनता भी कौन है। मेरे साथ रहोगे तो ऐसा नहीं चलेगा।

शिवम- ओके बाबा! ओके, जैसा तुम कहो।

वर्तमान_______________

"ये व्हाइट कलर के रेड लेसेस वाले कैसे दिए" शिवम ने आवाज सुनी तो वो यादों से बाहर आया, टेबल के पीछे बैठकर जूता चेक कर रहा शिवम हल्के से सिर उचकाकर काउंटर की तरफ देखता है तो राधा को देखकर वापस झूक गया। वो एक बार फिर उसके सामने नहीं आना चाहता था। तभी बायीं तरफ देखने पर उसे शीशा नजर आया, जिसमे राधा नजर आ रही थी। और अगर राधा शिवम को नजर आ रही थी तो ये तो तय था कि शिवम भी राधा को नजर आ ही जायेगा,

 

शिवम- (मन ही मन में) राधा के साथ कोई लड़का भी है क्या….वो जूते किसके लिए ले रही।

राधा ने जूते पसंद किए और वहां से चले गई, शिवम की किस्मत अच्छी रही जो उसे वो नजर नहीं आया।

शिवम ने उसके जाने के बाद जैसे जूते वो ले गयी थी, हु ब हु वैसे जुते मांगे। क्योकि राधा की पसंद उसे भी पसंद थी, और ना भी थी तो भी उसे खुशी होगी कि तलाक के बाद भी वो कुछ तो राधा की पसंद का पहनेगा।

दुकानदार- ये लो….

शिवम- कितने हुए।

दुकानदार- नौ हजार दो सौ नब्बे।

शिवम ने रेट सुना और अपने पर्स को जेब से बिना निकाले ही मना कर दिया।

शिवम- ये तो बहुत महंगे है, अभी मेरे पास इतने पैसे नहीं है, मैं कार्ड लाना भी भूल गया , मैं फिर कभी आऊँगा।

शिवम सोचते हुए चले गया कि जेब मे इतने पैसे तो छोड़ो मेरे बैंक में भी नहीं है अभी इतने पैसे, हालात ऐसी है कि पांच सौ वाले सेल पर लगे जूते खरीदने पड़ेंगे, फालतू मैं इतने बड़े मॉल में घुस आया हूँ। राधा तो अपने पापा की इकलौती लड़की है, और उसके पापा करोड़पति है, उसे क्या कमी, वो चाहे पच्चीस हजार के जूते खरीद ले, मुझे तो सोच समझकर खर्च करना पड़ेगा ना, ना कही ढंग की नौकरी लग पा रही, ना मेरे पास कोई पुश्तैनी जायजाद है,

शिवम मॉल से बाहर उतरा, बहुत ही उदास था, ये वही मॉल था जहां उसने राधा का दिल जीता था। और राधा ने उसका, राधा और वो हमेशा शॉपिंग करने यहां आया करते थे। लेकिन राधा कोई ना तो पैसो का लालच था और ना ही पैसो का घमंड, दोनो अपने अपने पैसो से खरीददारी करते थे। तब शिवम को उसके पापा के एक्सिडेंटली डेथ के कारण एलआईसी से क्लेम के तौर पर दस लाख रुपये मिले थे, बस शिवम को थोड़ा ज्यादा पैसे होंने पर घमंड था। मतलब घमंड भी नहीं था इतना! बस ये था कि थोड़ा ऐश सी हो रही थी उन दिनों, राधा को भी कभी कुछ कभी कुछ गिफ्ट देते रहता था क्योकि राधा कभी उसके पैसो का शॉपिंग नहीं करती थी, और ना खुद उसपर पैसे लुटाती थी। लेकिन गिफ्ट को स्वीकार करना मजबूरी थी उसकी, हालांकि कभी कभी वो उस चीज पर भी टोकती थी, क्योकि उसके पास सबकुछ था, कोई कमी तो थी नहीं, फिर भी गिफ्ट देना मतलब था पैसो की बर्बादी करना।

पुराने दिन__________

राधा- तुम करते क्या हो शिवम।

शिवम- मैंने इंजीनियरिंग कर रखी है, लेकिन फिलहाल कही कोई पोस्ट नहीं मिलने की वजह से किसी कंपनी मैं एरिया मैनेजर की नौकरी कर रहा हूँ, सेल्स मार्किट में….लेकिन जल्द ही कही अच्छी कम्पनी में नौकरी मिक जाएगी, मैंने बहुत जगह अप्लाय किया हुआ है

राधा- सेल्स मार्किट में मैनेजर… फिर तो यहां भी अच्छे चांसेज है, पता है मेरे पापा ने भी यही काम किया था शुरुआत में, आज वो हेड ऑफिस में मैनेजर है, मैंनेजर नहीं बॉस ही समझ लो, उनका बस एक ही सीनियर है, जबकि उनके नीचे हजरो इम्प्लॉइज काम करते है।

शिवम- अच्छा। ये तो खुशी की बात है।

राधा- हां, और सैलरी??

शिवम- कितनी है??

राधा- मैं पूछ रही हूँ तुमसे, शादी की बात कर ली, और अब तक कुछ पूछा नहीं, अगर पापा से बात करोगे तो वो तो सैलरी ही नहीं , काम कैसे करते हो प्रोसेसिंग भी पूछेंगे।

शिवम- हहहह, मुझे लगा तुम अपने पापा की सैलरी बता रही हो।

राधा- उनकी इनकम तो हर महीने डिफ्रेंट्स रहती है, क्योकि वो कंपनी को हुए प्रॉफिट और लॉस को देखकर अपने सैलरी लेते है, लगभग पच्चीस से तीस लाख हर महीने हो ही जाती है।

शिवम- लेकिन मेरी तो अभी बस पचास साथ हजार ही है।

राधा- शुरुआत में बहुत है, वैसे भी पैसे तो लिमिट के अच्छे होते है, पापा तो चलो दो तीन जगह से बिजनेस पर लगाते रहते है पैसे, उनके हाथ मे तो पांच छह लाख ही आती है।

शिवम- ह्म्म्म बात तो सही है।

वर्तमान, शिवम बाहर मॉल से बाहर चलते चलते एक पेड़ के नीचे बेंच पर बैठ गया। कुछ सूखे पत्ते बार बार टूट के उसके ऊपर उड़कर आ रहे थे, कभी फूलों की सफेद पंखुड़ियां आकर उसके कंधे में अटक रही थी, सूखे पत्तों को तो अपने हाथों से मसलते हुए चुरा बनाते हुए शिवम गिरा देता, लेकिन पंखुड़ियों को ज्यो का त्यों रहने देता और बगल में रख लेता। ये कोई सिद्धांत नहीं था बस खाली दिमाग शैतान का घर, बस कुछ शैतानी सी कर रहा था। उसे खुद नहीं पता था वो क्या और क्यो कर रहा था।क्योकि वो तो खोया था उस हसीन यादों में……

राधा- मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा कि पापा शादी के लिए मान गये है,

शिवम- मुझे भी यकीन नहीं हो रहा कि अब हमारी शादी होने वाली है, एक वो दिन था जब हम छिप छिप के मिला करते थे, लेकिन अब तो हम घरवालो से पूछकर मिलेंगे।

राधा- घरवाले महीने में ज्यादा से ज्यादा दो बार मिलने देंगे, आगे पीछे तो छिपकर ही आना पड़ेगा।

शिवम- महीने ही कितने रह गये , सिर्फ दो महीने ही तो रह गए है।

राधा- हां, लेकिन हम तो हर वीक मिलते है ना। अब हर सण्डे पापा भेजेंगे थोड़ी मिलने, उन्हें बताकर तो महीने में एक बार आ सकते है,

शिवम- मिलने मिलाने की बात छोड़ो, अब तो हम हमेशा के लिए एक होने वाले है ना।

राधा- ह्म्म्म……

दिन दिन बीतते गए, और शादी की शहनाई बजी……

ढम ढम ढम ढोल बजा,

दुल्हन सजी , दूल्हा सज़ा,

आ गए दूल्हे वाले बजाकर बैंड बाजा

स्वागत किया उनका भोजन कराया ताजा,

फिर होनी थी जयमाला

दोनो ने पहनाई माला,

दूल्हे दुल्हन के भोजन का वक्त हुआ

बुलाने आई दुल्हन की बुआ

दुल्हन ने खाया दुल्हे ने खाया।

मेहमान पहले ही खा चुके।

बारातियों ने पहले ही खा लिया।

वो जो कैसे रहते भूखे।

फिर होने थे फेरे सात

दोनो के हाथों में रख दिये हाथ।

अभी रश्में बहुत है बाकी,

दूल्हे से बोली उसकी काकी

मंगलसूत्र पहनाना,

सिंदूर लगाना,

सारे कसमो को अपनाना

सारे वादों को निभाना

सब हुआ तो मिलने लगी बधाई

अब थोड़ी देर में होने वाली है विदाई,

रुआंसी होकर दुल्हन से बोली उसकी ताई

हो गया समय विदाई का

माँ बहनों की खूब रुलाई का।

सोच में डूबे डुबे ही बहुत सारी पंखुड़ियों को इकठ्ठा कर चुका शिवम अब तक खोया हुआ था, उसके दूसरी ओर एक बुजुर्ग आदमी बैठकर उसकी हरकते ना जाने कब से देख रहा था। लेकिन शिवम ने अभी तक उसे नहीं देखा था।

"कितना बज रहा है बेटा" उसके ध्यान को भटकाने की कोशिश करते हुए बुजुर्ग ने सवाल किया।

शिवम ने आवाज की तरफ देखा तो एक बिना दांत का सुखी हड्डी से आदमी मोटे गोल चश्मे को अपने लंबे लंगोटदार धोती से साफ कर रहा था,

शिवम ने जेब मे हाथ डाला और मोबाइल में देखते हुए कहा- "बाबूजी साढ़े तीन बजे है"

बुजुर्ग- "चेहरे में तो बारह बजे है, यहां भी कुछ अच्छा बजाओ, हमारी उम्र का इंतजार कर रहे हो क्या खुश रहने के लिए"

शिवम- मुस्कराने की सारी वजह बेवजह सी लगने लगी है बाबूजी, जिंदगी बेझिल सी हो गयी, और खुशिया दूर से टाटा बाय बोलने लगती है।

बुजुर्ग- तुम्हारे लिए खुशियों के मायने अलग है बेटा, जहां तक मैं समझ पा रहा हूँ तुम प्यार में खोए हो,

शिवम- (मन ही मन) ये तो मजे लेने की कोशिश कर रहा है, अब इसकी जवानी के दिन तो गए, अब इससे कोई प्यार मोहब्बत की बात तो करता नहीं है। लेकिन ये मुझसे ऐसी बाते पूछेगा, और वैसे भी हर परेशानी की वजह प्यार तो नहीं होता।

बुजुर्ग- क्या सोच रहे हो, छोड़ के चले गई क्या।

शिवम- बाबूजी मैं शादीशुदा हूँ, और मेरी शादी भी मेरी पसंद से ही हुई है, ऐसी कोई बात नहीं है, बस नौकरी नहीं लग रही कहीं।

बुजुर्ग- नौकरी के लिए परेशान होते तो इन फूलों की पंखुड़ियों को जमा नहीं करते, दर दर भटकते, और अखबार के आर्टिकल, नौकरी के विज्ञापन एकत्रित करते।

शिवम- वो जमाना गया बाबूजी, आज के दौर पर विज्ञापन पर भरोसा करना मतलब बेवकूफी है, लोग लुटेरे बनकर बैठे है, नौकरी दिलाने के लालच में लूट लेते है।

बुजुर्ग- खुद पर इतना भरोसा भी बेवकूफी है कि तुम बेंच पर बैठे रहो और लोग खुद आये और कहें कि आओ मेरे दफ्तर और नौकरी करो, जरूरत तुम्हे है, तुम्हारे जैसे हजारो लोगो को है, लेकिन उन हजारों में से कुछ लोग ही खुद नौकरी की तलाश में मेहनत करते है, और उन्हें फल मिलता भी है।

शिवम- मैं कर लिया बाबूजी! बहुत कोशिश कर लिया, नौकरी नहीं मिलने की वजह से ही मेरा तलाक हुआ है, मेरी बीवी ने मुझे छोड़ दिया।

उस दिन बहस ज्यादा बढ़ गयी तो दोनो का पारा हाइ हो गया था।

राधा- मैं नहीं और पाल सकती तुम्हे, क्या कहकर मांगू पापा से पैसे, मेरे पास जितने थे खर्च हो गए है। अगर जल्दी ही नौकरी नहीं ढूंढ पाए तो सोच लो क्या करना है।

शिवम- मैं कोशिश कर रहा हूँ राधा, लेकिन कहीं ढंग की नौकरी मिल नहीं रही है।

राधा- जैसी मिल रही वैसी कर लो, लेकिन इतना तो कमाओ की हम तीन लोगों का पेट भर सके, अपनी मां और बीबी को खिला नहीं सकते तो खाक हो मर्द।

शिवम- (गुस्से में) राधा! सोच समझकर बात करो, खिला तो रहा था ना, शादी में कर्जा हो गया था थोड़ा इसलिए बैलेंस नहीं बन पाया, वरना…….

(शिवम के वरना कहने के बाद ही राधा ने अपनी तरफ से बोलना शुरू कर दिया)

राधा- ओहो….शादी का कर्जा……बस गाड़ी के किराए में शादी हो गयी समझ लो, सारा ख़र्च तो मेरे पापा ने किया। और यहां आने के बाद काम से कम ढाई लाख रुपये इन पांच महीनों में मैंने भर दिए, गाड़ी लेने की औकात नहीं थी तो ली क्यो।

शिवम- राधा…… देखो अब कुछ ज्यादा हो रहा तुम्हारा।

राधा- हद से ज्यादा तो तुम्हारा हो रहा है। पहले झूठ बोला की तुम नौकरी करते हो, फिर गाड़ी लोन पर ले ली, ऊपर से भरने के लिए किश्त नहीं है, नौकरी कही करनी नहीं है।

शिवम- तुम्हारे पापा अगर थोड़ी मदद कर देंगे तो क्या हो जाएगा, नौकरी मिल तो रही है, वो दो लाख रुपये माँग रहे है। वैसे भी तुम इकलौती हो उनकी, उन्होंने कौन सा छाती पर लेकर ले जाना है।

राधा- (गुस्से में) शट-अप, मैं इकलौती हूँ तो मेरे ऊपर बर्बाद करेंगे वो, मेरे तो शौक भी नहीं बड़े, मेरे सारे शौक पूरे कर रखे है घर वालो ने, बस इतना कमा लो कि तुम और तुम्हारी माँ खा सके, शर्म तो है नहीं तुम्हे, पापा के मरे मिले कुछ लाख रुपयों से जिंदगी नहीं गुजर जाती, उड़ाना सीखा है तो कमाना भी सीखो, और घर पर कोई नहीं आएगा नौकरी देने। इधर उधर भटकना पड़ेगा, दिन भर घर पर बैठे रहने से नौकरी मिलती तो लोग सभी नौकरी वाले होते।

शिवम- इतना ही शौक है तो पापाजी को बोल दो, उनके ऑफिस में कोई काम दे दो,

राधा- जो उन्होंने परसो बुलाया था, तब तो बड़ी नाक ऊंची करके मना कर आये थे,

शिवम- उनके जूनियर से भी जूनियर के पास हेल्पर का काम दे रहे थे, मेरे पास नौकरी नहीं है इसका मतलब ये थोड़ी की हर किसी की गुलामिकरने लग जाउँ,

राधा- तो क्या हुआ, जब काम सिख जाओगे तो पोस्ट बड़ा देंगे, कौन सा कोई काम ढंग से आता है झूठ बोलने के अलावा।

शिवम- नहीं आता तो….नहीं भी आता तो कुछ दिन सिखाकर रख सकते है नौकरी में….ये थोड़ी की मैं उनके ऑफिस वालो को चाय पानी पिलाऊँ….

राधा- चाय पानी पिलाने की बात नहीं हुई थी शिवम! फ़ाइल वगेरा का काम था, प्रिंट निकलवाना, पीडीएफ बनाना, इन सब कामों में कैसी शर्म।

शिवम- मैं वाकिफ हूँ ऐसे हेल्परगिरी कामों से, काम कुछ बताते है, करवाते कुछ है।

राधा- अभी मिल रही नौकरी तो कर दो मना, कल को किसी के यहां पोछा भी लगाना पड़ेगा।

शिवम- पोछा? और मैं? हुँह पोछा मैने कभी अपने घर पर नहीं लगाया।

राधा- मैंने कौन सा लगाया था, लेकिन पांच महीनों से कर रही हूँ न एडजस्ट, मम्मी जी को पता है मुझसे खाना नहीं बनता, मैं सीख रही हूँ, पहली बार झाड़ू मैंने यहां आकर पकड़ा, क्यो??? क्योकि मैं सोच रही थी कि घर पर रहना है तो थोड़ा बहुत काम करना पडेगा, जिंदगी जीने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। और मैं सब सह रही थी क्योकि तुम्हे मैंने खुद चुना था, तुम्हारे झुठी बातो पर यकीन करके

पापासे झगड़ी थी सिर्फ तुम्हारे लिए, मैं तुमसे प्यार करती थी। लेकिन सिर्फ प्यार से कुछ नहीं होता, प्यार जिंदगी है लेकिन जिंदा रहने के लिए खाना पीना भी जरूरी है।

शिवम- तुम्हे कब खाना नहीं मिला…. बार बार ऐसे बोल रही हो जैसे चार पांच दिन से कुछ खाया नहीं है।

राधा- मैं तुम्हे नहीं समझा सकती, प्लीज मुझे माफ़ करो, मैं अब इस घर मे नहीं रह सकती,

(राधा ने कहा और गुस्से में अंदर कमरे की तरफ चले गयी) 

वर्तमान

शिवम- हमारा तलाक उसी दिन हो गया था शब्दो से, हां कोर्ट में अभी केश चल रहा है, तलाक हो गया बस एक दिन और पेशी होगी और दोनो से अच्छी तरह से कन्फर्म करके तलाक भी कर देंगे। कानूनी तौर पर तलाक भी हो जाएगा।

बुजुर्ग- तुम चाहते हो उसे तलाक देना।

शिवम- मेरे चाहने ना चाहने से क्या होता है।

बुजुर्ग- तुम उसे चाहते थे तो तुम्हारे चाहने से उससे शादी हुई थी ना, और दोनो एक दूसरे से प्यार करते हो, इस हिसाब से तलाक की वजह तो साफ है।

शिवम- वो क्या ?

बुजुर्ग- तुम्हारी नौकरी पर नहीं होना, तुम अगर दिल से ठान लो कि तुमने कैसी भी मर्जी , जैसी भी मिले वैसी नौकरी करनी है तो शायद कोई नौकरी मिल ही जाएगी,

वो तुम्हारे साथ कम पैसो में खुश रह लेगी लेकिन इज्जत से रहेगी, और बार बार मायके से पैसे मांगने पड़े तो वो मायके ही रह लेगी, उसने तुम्हे और तुम्हारी माँ को पालने के लिए शादी तो की नहीं होगी।

(शिवम बिना कुछ कहे उठ गया और चल पड़ा, बुजुर्ग को लगा शायद उसे उसकी बात का बुरा लग गया है । लेकिन शिवम के मन मे अलग ही उम्मीद और उसकी समस्या का हल निकल आया था उसकी बातों बुजुर्ग की बातो से, शिवम ने ठान लिया कि अगली पेशी तक वो किसी ना किसी नौकरी पर लग जायेगा, क्योकि काम काबिलियत देखकर मिलता है, सर्टिफिकेट देखकर तो पोस्ट बढ़ती है, वो भी उनकी जो उस काम मे पारंगत है, सर्टिफिकेट का मतलब ये नहीं की सीधे किसी ऑफिस में मैनेजर बना देंगे, ऊपर की सीढ़ियों में चढ़ने के लिए सबसे निचली सीढ़ी में पैर रखना ही पड़ता है। और शिवम ने ठान लिया था कि वो जो काम भी मिलेगा वो कर लेगा, तो शायद इस बार वो नौकरी में जरूर लग जायेगा, राधा लौट के आये या ना आये, लेकिन अपनी माँ को तो पाल ही सकता है, और खुद का पेट ही भर लेगा तो लोगो के आगे हाथ भी नहीं फैलाने पड़ेंगे, लेकिन उम्मीद तो अपनी राधा को वापस पाने की भी थी, जो आंखों के बंद होते ही उसे नजर आने लगती थी, जिसके प्यार को वो कभी समझा ही नहीं, उसे आज समझ आया था कि शादी के बाद भी वो पांच महीने तक सब सहती रही ये और कुछ नहीं उसका प्यार ही था।

 शिवम बंधे से कदमों की जंजीरों को खोलते हुए बड़ी तेजी से चलते हुए उस मॉल के अंदर की तरफ वापस जा रहा था, कुछ भी नौकरी चाहिए थी, और उस कुछ भी की तलाश इस बहुत बड़े मॉल से ही शुरू कर दिया।


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