sonu santosh bhatt

Romance Classics Thriller

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sonu santosh bhatt

Romance Classics Thriller

रेपिडो- एक सफर अनकहा सा

रेपिडो- एक सफर अनकहा सा

23 mins
342


तेजी से आकर एक बाइक रुकी और उसपर सवार लड़का अपने मोबाइल में देखकर सामने खड़े लड़के से बोला- "एक्सक्यूजमी प्लीज…. "

लड़का बिना किसी एक्सक्यूज का जवाब दिए पीछे आया और बाइक में बैठते हुए बोला- "चलो भैया"

"कैप्टन किंग, पान वाला…. ऐसा कैसा लोकेशन डाले हो भैया… कुछ अच्छा नही मिला"

"भैया सवाल जवाब नही आप फोन में लोकेशन देखो और जल्दी से छोड़ दो"

"शादी शुदा हो क्या?"

"क्यों?"

"हां या ना"

"हो गयी शादी, लेकिन ऐसा सवाल क्यो, आप पते पर ले जाओ ना,"

रेपीडो बॉय ने पीछे देखते हुए हँसते हुए कहा- "तभी इतनी जल्दी है"

"ठीक है ठीक है, आगे देख के चलाओ" लड़का बोला।

आगे………

"शादी शुदा हो क्या ?"

"हां…. हो गयी, लेकिन जल्दी जाने की वजह बीवी नही है"

"तो ?"

"इतने सवाल क्यो करते हो, चुपचाप नही चल सकते क्या ?"

आगे……

"बॉस अच्छा नही है…. हहहह होता है होता है, लेकिन एक बात तो सच है, अपना काम और दूसरे की गुलामी, धरती आसमान का फर्क है"

"नही नही! बॉस अच्छा है लेकिन स्टाफ वाले थोड़ा चालू किस्म के है"

"मुझे देखो, कोई टेंशन नही है, बस सुबह से शाम तक अलग अलग तरह के लोग मिलते है, कुछ तो गूंगे बिल्कुल, और कुछ अच्छे बिल्कुल आप जैसे"

"मुझे भी बात करना बहुत पसंद है लेकिन कुछ बाइक ड्राइवर ऐसे मिलते है कि बोलने नही देते, बोलते है ड्राइविंग पर ध्यान देने दो, ऐसे बोलो मत"

"हहहह…. लेकिन मैं परेशान कर देता हूँ, कुछ लोग तो आधे में ही उतर जाते है और बोलते है कि या बाइक चला लो या मुंह"

आगे.…….

"ओह माय गॉड, तुम इतने खतरनाक थे, लेकिन वहां नौकरी छोड़कर जेमेटो, उबेर इट्स और अब रेपीडो… कोई ढंग का काम क्यो नही करते"

"अरे भाई, हर तरह का काम जरूरी है, अगर मैं और मेरी तरह हर कोई आपकी तरह इस काम को बेढंगा समझने लगे तो आपकी इस सस्ती सी जरूरत को पूरी कौन करेगा"

"हां ये बात तो बिल्कुल सही कही आपने"

आगे....

"रोक दो भैया, रोक दो"

रपीडो बॉय रुका तो सवारी कस्टमर उतरकर बोला- "हांजी भैया, कितने हुए"

"160₹"

"इतने ज्यादा…. कम करो भैया, 120 ठीक है"

"अरे भाई, ये मैं थोड़ी कर रहा, ये देखो, मीटर बोल रहा है, और वैसे भी 41 किलोमीटर आये है, इतने में ऑटो या कैब 200 ले लेगी।"

"मैं तो 120 ही दूँगा, वैसे भी जो लिखा होता है वो थोड़ी माना जायेगा, हर कोई थोड़ा कम तो करते ही हैं"

"आप जूते नही खरीद रहे हो, ना मैं यहां कम्बल तौलिए बेच रहा हूँ, आपको 160 देने है तो दो नही तो रहने दो, मुझे नही चाहिए आपके 120 भी" लड़का अब थोड़ा गुस्सा करते हुए बोला।

"140₹" आदमी ने अगली बोली लगाते हुए जेब से पैसे निकालने के लिए हाथ जेब मे डाला।

रेपीडो बॉय ने बाइक स्टार्ट की और बोला- "आपके पैसे आपको मुबारक हो भ्राता, महल बना लेना इन पैसों से"

बाइक ने हल्का धुंआ छोड़ा और सड़क को पीछे छोड़ते हुए आगे चली गयी।

सवारी का मुंह खुला का खुला रह गया क्योकि बहुत एटीट्यूट के साथ लड़का वहां से निकला था।

थोड़ा ही आगे जाकर रेपीडो बॉय वापस आया और उसी आदमी के बगल में जाकर बाइक रोक ली।

"बड़े गुस्से में पैसे छोड़कर जा रहे थे, आ गए वापस लेने" आदमी ने कहा।

"नही मैं बस ये पुछने आया था कि आप शादीशुदा हो क्या?"

"हां दो बच्चे भी है"

रेपीडो वाले लड़के ने अपना पर्स निकाला और उसमे से बीस रुपये का नया चमकीला नोट निकालकर उसे जबरदस्ती थमा दिया और कहा- "ये लो उनके लिए कुरकुरे ले जाना"

इतना कहकर वो दोबारा फरार हो गया।

आगे………

बाइक एक घर्षण के साथ रुकी, और हमारे रेपीडो बॉय यानी मोहित… हां नाम भी मोहित था और उनके शरीर की बनावट और सुडौल शरीर, चेहरे में हँसते हुए पढ़ने वाले गढ्ढे और छोटे छोटे दांतो की एक समान बराबर पट्टी के बाद भी एक दांत हल्का सा दूसरे दांत के ऊपर चढ़ा हुआ। जो उनके मुंह खोलने पर अलग सा आकर्षण देता था, मतलब उनकी खूबसूरती को बढ़ाता था। काम आप जानते हो इनका सुबह से शाम तक बस बाइक में सिंगल लोगो को ढोना।

मोहित को बातें करना बहुत पसंद था, और हर कस्टमर से लगभग दोस्ती हो ही जाती थी। तो कुछ मोलभाव वाले कस्टमरों की बहुत ही इज्जत से बेईज्जत्ति करने के चक्कर मे मोहित खुद का नुकसान भी कर बैठता था।

इस बार एक कॉल को उठाने के लिए उसने बाइक रोकी और कहा- "बस पहुंच रहा हूँ, आपके पास, 3 मिनट दूर हो आप मुझसे"

”ओके"

*************************

 पौने तीन मिनट बाद

मोहित ने बाइक रोकने के लिए ब्रेक दबाया और उस लोकेशन के पास खड़े होकर आस पास देखने लगा लेकिन उसे सवारी नही दिखा जिसने बुक किया था, हां एक सुंदर सी लड़की वहां खड़ी थी लेकिन फोन पर एक भारीभरकम आवाज आई थी, और वैसे भी आज तक हमेशा ही सिर्फ लड़के ही रेपीडो बाइक बुक करते थे। इसलिए उसे यकीन नही हुआ, और थोड़ा सा यकीन इसलिए भी नही हुआ क्योकि वो लड़की बहुत ही खूबसूरत नजर आ रही थी।

"काश की वो सवारी ये ही हो" मोहित ने मन मे लड्डू को पटक पटक के फोड़ने की कोशिश करते हुए कहा। लेकिन जब तक कन्फर्म ना हो जाये कि यही वो सवारी है तब तक कहाँ लड्डू फूटने वाला था।

लड़की ने देखा कि मोबाइल में बाइक का लोकेशन उसके पास ही है और फिर उसने नम्बर प्लेट पर नजर घुमाई और कन्फर्म होने के बाद आगे बढ़ी और बोली- "एक्सक्यूजमी…."

"आपने बुक की है क्या?" मोहित ने कहा।

"हांजी…. "

"ये हेलमेट" मोहित ने हेलमेट उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।

लड़की ने हेलमेट पहना और फिर बाइक पर चढ़ते हुए बोली- "भैया थोड़ी तेज ले जाना, थोड़ा जल्दी है"

"मन मे जो लड्डू फूटने वाला था वो मानो वनस्पति घी (डाल्डा) से बना हो, और चार दिन से फ्रिज में होने की वजह से जम गया हो, फूटा ही नही।

"ठीक से बैठ गए ना" मोहित ने कहा।

"हाँ हाँ चलो आप" लड़की बोली।

आज शायद मोहित मुँह में ताला लगाए था, क्योकि एक लड़की से बात करना उसे ठीक नही लगा, वो गलत समझेगी। इसलिए मोहित ने सिर्फ ड्राइविंग पर ध्यान दिया।

"एक बात पूछूं" लड़की स्वयम बोली।

लेकिन हेलमेट की वजह से कुछ साफ सुनाई नही दिया मोहित को लगा फोन पर बात कर रही होगी।

"ओ हेलो, ड्राइवर साहब, एक बात पूछनी है" लड़की थोड़ा कॉन्फिडेंस से जोर से बोली।

"हूँ…… कुछ कहा" मोहित ने हेलमेट का शीशा हटाते हुए कहा

"हजारीबाग जाने से पहले बीच मे रुकना है एक जगह, बस दो मिनट के लिए, रोक तो लोगे ना"

"हां, कोई बात नही पांच मिनट के लिए रुक जाना"

"नही बस एक मिनट या दो मिनट, उससे ज्यादा नही"

"ठीक है" मोहित बोला।

"मेरा नाम तन्वी है, तन्वी मेहरा, आपका नाम क्या है?"

"जी मेरा…. मेरा नाम मोहित, लेकिन ये सब मुझे क्यो बता रही हो" मोहित ने कहा।

"जान पहचान होनी चाहिए, मैं किसी अनजान के साथ इतने दूर तक नही जा सकती ना"

"नाम बताने से अनजान भी अपना हो जाता है क्या?" मोहित ने सवाल किया।

"नही, लेकिन अनजान भी नही रहता, अच्छा आप यही चलाते हो दिन भर, या कोई और काम भी"

"जी, मैं यही चलाता हूँ, और काम होता तो ये क्यो चलाता"

"फिर तो बहुत लड़कियों को घुमाते होंगे, हिहिहि…… सॉरी……मेरा मतलब बहुत लोगो को" तन्वी ने कहा।

"एक बात बताओ, आप भी तो बहुत लड़को के साथ घूमते होंगे, रेपीडो बुक कर करके, एक सलाह दूँगा बुरा ना मानना आपको कैब करनी चाहिए थी।" 

"क्यों, इसमे क्या बुराई है, और आज पहली बार ही बुक किया है, वो मेरी स्कूटी खराब हो गयी थी, इसलिए मजबूरी में, जाना भी जरूरी था" तन्वी बोली।

"थोड़ा जोर से बोलो, आवाज कम सुनाई दे रही" मोहित ने कहा।

"स्कूटी खराब है इसलिए आयी, आज पहली बार, और कितनी जोर से बोलूं" तन्वी लगभग चिल्लाते हुए बोली।

"आज मेरे उसमे भी पहली बार लड़की बैठी, व्हट अ संयोग"

"लड़कियां ज्यादा यूज करती है, और वैसे भी इसमें संजोग वाली क्या बात है, कोई नयी बात तो है नहीं" तन्वी बोली।

"मेरी किस्मत मे नहीं थी ना, मतलब लड़कियों को घुमाने का मौका कहाँ मिला आज तक.... आपकी स्कूटी ना ख़राब होती तो आज शायद किसी आदमी को ही ले जाता" मोहित बोल पड़ा।

मोहित को बाइक चलाते चलाते हलके हलके झटके महसूस हो रहे थे, रेस ठीक से नहीं दी जा रही थी, मोहित ने धीरे धीरे जगह देखते हुए बाइक एक किनारे रोक ली

"आई ऍम सॉरी, बट कोई गड़बड़ लग रही है"

"क्या गड़बड़ हो गयी, उतरूँ क्या?" तन्वी बोली।

"लगता है फ्यूल नही है, पेट्रोल ख़त्म लग रहा" मोहित ने कहा।

तन्वी बाइक से उतरते हुए बोली - "क्या यार तुम भी, अब कैसे जाउंगी मैं, वैसे ही पहले मैं लेट हो गयी थी"

"सॉरी, मुझे तो धकेलकर ले जाना होगा अब ये, पेट्रोल पम्प तक, आप एक काम कीजिये दोबारा से बुक कर लिजिए, यहां से " मोहित ने कहा।

"अरे! बदल बदल के जाना होता तो ऑटो ना ले लेती में, हद है यार, क्या करूँ अब मैं " तन्वी बोली।

मोहित भी बाइक से उतरा और टंकी का ढक्कन खोलकर थोड़ा हिलाकर देखा की पेट्रोल कितना है, उसे टंकी में पेट्रोल काफ़ी नजर आ रहा था।

"पेट्रोल तो काफ़ी है यार, फिर ये रुकी क्यों " कहते हुए मोहित ने दोबारा से किक मारी तो बाइक स्टार्ट हो गयी।

मोहित खुश होते हुए बोला - "हो गयी स्टार्ट, चलो आ जाओ"

मोहित ने बाइक स्टार्ट की और तेजी से उसे उसके बताये पते की तरफ ले जाने लगा।

"थोड़ी सी दूर जो पार्क है ना, जापानीज पार्क है ना, वहां बस एक मिनट के लिए रुकना है, मेन गेट के पास, बस दो मिनट के लिए" तन्वी ने कहा।

"ठीक है " कहते हुए मोहित ने बाइक जापानिज पार्क के गेट के पास जाकर रोक दी।

तन्वी उतरी और गेट के पास खड़े छोले कुलचे वाले को पर्स से निकाल कर पचास का नोट देते हुए कहा - "अंकल ये लो उस दिन के पैसे, सॉरी उस दिन के बाद इधर को आना ही नही हो पाया"

"अरे कोई बात नही बेटा, कोई बात नही" कहते हुए उसनें पैसे पकड़ लिए और गल्ले में डालते हुए दस का सिक्का तन्वी को दे दिया।

"थैंक्यू " तन्वी ने कहा और वापस आकर बाइक पर बैठ गयी।

मोहित ने बाइक स्टार्ट किया और आगे के सफर में चल दिया।

तन्वी के फोन की घंटी बजी - "आ रही हूँ ना, बस पहुँचने वाली हूँ"

"थोड़ा तेज चला लो ड्राइवर साहब, किसी के प्राण सूखे जा रहे है" तन्वी ने फोन काटने के बाद मोहित से कहा।

मोहित ने स्पीड बढ़ाई ही थी की तन्वी फिर चिल्लाई - "अरे रुको रूको, एक मिनट "

तन्वी की नजर सडक के किनारे एक शोरूम पर पड़ी जहाँ फूलो के गुलदस्ते बनाकर सजाये हुए थे।

मोहित ने ब्रेक लगाते हुए पूछा -"क्या हुआ? यही तक आना था क्या? "

"अरे नही, आगे जाना है, आज मेरी बेस्टी स्वाति का बर्थडे है, सोच रही एक बुके ले जाऊंगा उसके लिए, सब लोग कुछ ना कुछ लाये होंगे, गिफ्ट तो मैंने उसे दिला दिया था, कपड़े दिलवाये थे, लेकिन आज दिखाने के लिए भी कुछ होना चहिये, है की नही" तन्वी ने कहा।

मोहित ने कुछ सोचा और फिर कहा - "सही बात है, दुनिया दिखावे पर ही चलती है, जाओ ले आओ, मैं यही पर हूँ "

"नही नही.... मुझे ये सब खरीदना नही आता, चलो तुम भी, मेरी पसंद अजीब है इस मामले में" तन्वी ने कहा।

मोहित ने सोचा की जल्दी से कोई सा भी पसंद करके निपटा देने में फायदा है वरना आज पूरा दिन एक ही सवारी में निकल जायेगा।

मोहित भी तन्वी के पीछे पीछे उस फूलों की दूकान पर जा पहुंचा।

"स्वाति की उम्र क्या है?, और उसे कौन सा कलर पसंद है?" मोहित ने सवाल किया।

"दूसरा सवाल तो जायज है, लेकिन पहले सवाल का उसकी पसंद से क्या लेना देना, मेरी दोस्त है तो मेरी ही उम्र की होगी" तन्वी बोली।

"हाँ तो यही तो जानने की कोशिश कर रहा था" कहते हुए मोहित मुस्कराया और फिर लाल गुलाब के साथ सफ़ेद सफ़ेद छोटे छोटे फूल वाला गुलदस्ता उठाया, और कहा - "आप सारे दुकान के गुलदस्तो को देखने के बाद इसे ही उठाओगे, क्योंकि ये वाकई में खूबसूरत है"

"हाँ लग तो अच्छा रहा, इसे होल्ड पर रखो, हो सकता है इससे बेहतर कोई मिल जाये" तन्वी बोली।

"बेहद खूबसूरत की तलाश में इसे भी खो ना दो कहीं, देखो ग्राहक और आ रहे, ये एक ही पीस है, बाकि सारे चार चार, इसका मतलब ये बहुत लोगो को पसंद आया होगा इसलिए बिक गए " मोहित ने कहा।

दुकानदार बोला - "ये किसी किसी को ही पसंद आता, इसलिए हम कम ही बनाते है"

"फिर तो ये मेरी तरह ही है" कहते हुए मोहित ने वो नीचे रख दिया और कहा, जो भी पसंद करना हो आप कर लो।

तन्वी ने एक लाल पीले और गुलाबी फूलो का कॉम्बो पैक उठाते हुए कहा - "ये कैसा है?"

"बहुत अच्छा है, इसी को फाइनल कर लो " मोहित ने कहा।

"लेकिन इसमें रंग बिरंगा ज्यादा ही हो गया, पत्ते बहुत कम है, थोड़ा बहुत हरापन भी होना चाहिये।" तन्वी बोली।

"स्वाति अकेले है वहाँ, जल्दी से कर लो पसंद " मोहित ने कहा।

" कितने का है भैया ये? " तन्वी ने दुकानदार से कहा।

"साधे सात सौ का है सात सौ का लगा देंगे" दुकानदार बोला।

"लगा देंगे मतलब, सही सही बताओ, लास्ट कितने का लगेगा " मोहित बोल पड़ा।

"अरे लगा लगा के भी ये महंगा ही पड़ेगा, कोई दो ढाई सौ की रेंज का दिखाओ, अच्छा वो जो बहुत कम बिकता है वो कितने का है" तन्वी बोली

"वो साढे चार सौ का, लास्ट है, सही सही लगा के" दुकानदार बोला ही था की तन्वी को फिर से फोन आ गया।

"तुझे आना है की नही, हम लोग जाये क्या? और एक और बात, मैंने कहा था ना मेरा बॉयफ्रेंड भी आ रहा है, वो भी आ गया, हमने मूवी का प्लान बनाया है, दीक्षा तो मिल चुकी थी उससे पहले भी, तुझे मिलवाना था उससे" स्वाति बोली।

"अच्छा, तभी इतनी जल्दी हो रही है, बस पांच मिनट और इंतजार कर ले बहन, बस आ गयी मैं, बताया तो तुझे की स्कूटी ख़राब हो गयी थी, फिर मोहित से कहा की मुझे ड्राप कर दे।" तन्वी बोली।

"जल्दी आजा फिर" स्वाति बोली।

तन्वी ने फोन काटते हुए कहा - "उसे चार सौ का लगाओगे तो ले लुंगी।

"पागल हो क्या, परसो प्रियंका दीदी मेरी यही से यही वाला 300 का ले गए, तभी तो मैंने यही उठाया, इसे लो और तीन सौ दो इन्हे, ज्यादा चक्कर में मत पड़ो" मोहित ने पुरे आत्मविश्वास के साथ कहा।

दुकानदार ने उसकी तरफ देखा और फिर कुछ सोचते हुए हुए कहा -" तीन सौ तो नही लगाया होगा, या फिर मैं नही मेरा लड़का होगा दुकान पर, सीधा साधा है वो, उसे क्या पता रेट का "

"लेकिन लेके तो गए ना, चलो आप दे दो तीन सौ, मैं ले गया इसे " कहते हुए मोहित बाइक की तरफ चल दिया।

तन्वी ने पैसे दिए और आ गयी।

बाइक के पास आने पर मोहित ने गुलदस्ता तन्वी को पकड़ाया और बाइक स्टार्ट करने लगा।

"आगे का रास्ता पता है ना, या फिर लोकेशन खोलूं" मोहित ने कहा।

"मैं बता दूंगी, लेकिन ये तो बताओ की जब तुम्हे इसका रेट पता था, और पसंद भी था तो पहले क्यों नही बोले " तन्वी बोली।

"मुझे नही पता कुछ, ना मैं किसी प्रियंका को जानता हूँ, बस ऐसे ही तुक्का लगाया था " मोहित ने कहा तो उसकी बात सुनकर तन्वी हँस पड़ी।

"अरे! बोले तो ऐसे थे जैसे सच ही बोल रहे हो, इतने अकड़ से बोले की लगा ही नही झूठ बोल रहे हो " तन्वी बोली।

"हाँ.... सच हमेशा अकड़ के चलता है, झूठ झुक झुक के " मोहित ने कहा और बाइक की स्पीड बढ़ाते हुए तेजी से मंजिल की तरफ बढ़ने लगा।

थोड़ी ही दूर जाकर तन्वी ने बताया की में मार्किट के बीच से होकर जो गली अंदर को जाती है, वहां एक नुक्कड़ नाम का ढाबा है, उसी के पास जाना है,

मोहित कहानुसार वही ढाबे के पास पहुँच गया और उसे उतारते हुए कहा - "ओके, आप लोग बनाओ बर्थडे, एन्जॉय करो "

"कितने हुए?" तन्वी बोली।

"एक सौ साठ " मोहित ने मोबाइल एप्प में बैलेंस दिखाते हुए कहा।

तन्वी ने पर्सन से दो सौ का नोट निकल के दिया और बोली - "ये रख लो, वैसे भी बहुत जगह तंग किया आपको, थैंक्स फॉर दिस"

मोहित ने तुरंत पर्स निक़ाला और दो सौ का नोट रखकर खुले चालीस निकाल लिए - "अरे नही नही, ऐसा कुछ नही है, चालीस रुपये कम नही होते, कुछ सवारी के सिर्फ बीस रुपये भी बनते है, तो क्या बीस को बीस ही समझ के छोड़ थोड़ी देंगे, ये लो पैसे, और आप तो पहली लेडीज कस्टमर हो मेरे, हमेशा याद रहोगे " कहते हुए मोहित ने बाइक स्टार्ट किया और जाने लगा।

"अरे, इसमें याद रहने वाली क्या बात है" कहते कहते ही तन्वी ने स्वाति को कॉल लगाई।

"आ गयी मैं इधर, अंदर है क्या तू" कहते हुए तन्वी अंदर की तरफ चल पड़ी।

"नही मैं तो आ गयी वहाँ से, हमने खाने पीने का सामान ले लिया है और इधर पार्क में आ गए जापानिज गार्डन में" स्वाति ने कहा।

"पागल है क्या? अगर वही आना था तो मुझे यहाँ क्यों बुला लिया, अब लेने भेज मुझे किसी को" कहते हुए तन्वी बाहर की तरफ आ गयी।

"अरे, तू जिसके साथ आयी, क्या नाम बताया था उसका, उसी को बोल दे ना" स्वाति ने कहा।

"मोहित.... वो तो चला गया मुझे यहाँ छोड़कर, मेरे साथ ही थोड़ी रहना है दिन भर, और भी सवारियां है" तन्वी बोली।

"सवारियां, मतलब, तू केब क़रके आयी थी क्या " स्वाति ने सवाल किया।

"हाँ हाँ, बस वही समझ ले" कहते हुए तन्वी बाहर आयी और आस पास ढूंढने लगी, शायद इधर ही कहीं खड़ा ना हो नेक्स्ट बुकिंग के इंतजार में, और उसका अंदाजा सही रहा, थोड़ी दूर खड़ा वो किसी से फोन पर बात कर रहा था, तन्वी तेज तेज चलके उसके पास गयी, और इंतजार करने लगी कॉल के कटने का ताकि वो अपनी बात उसके समक्ष रख सके।

"दवाई लेके रख ले ना तू, अच्छा एक काम कर जहाँ हम कार्ड की फोटोकॉपी करने गए थे ना, उसी के बगल में है केमिष्ट, वहां जो कंप्यूटर पर बिलिंग करती है उसको बोल देना वो निकल के रखेगी तब तक, मैं उसे व्हाट्सप्प पर ये पर्ची की फोटो भेज रहा हूँ, और वो टेस्ट की रिपोर्ट ले ली ना........... "

"हाँ हाँ मैं लेके आ रहा हूँ खाना, तू दवाई तो ले आ" मोहित बोला और फ़ोन रखते हुए बोला - "हांजी क्या भूल गए"

"एक्चुली मुझे फिर जापानिज पार्क जाना है, वो सब कमीने उधर चले गये, अब मुझे वहां फिर से जाना होगा " तन्वी बोली।

"हाँ तो आप बुक कर लो ना " मोहित बोला।

"बुक क्या करना, आप ले चलो, जितने पैसे एप्प दिखायेगा उतना मैं पेय कर दूंगी " तन्वी ने कहा।

"दर्शल मुझे अभी टाइम नही है, मैंने हॉस्पिटल जाना है" मोहित ने कहा।

"कोई बीमार है क्या? एडमिट है क्या?" तन्वी ने कहा।

"हाँ मम्मी की तबियत नही थी, दो दिन से बुखार है और कमजोरी बहुत आ गयी है, तो बहन है उसके साथ, तो सुबह से वो बेचारी भी भूखी है, आप कोई और ड्राइवर बुक कर लो, पैसे तो देने ही है ना " मोहित ने कहा।

तन्वी कुछ सोचते हुए - "ठीक है, ओके, आप ख्याल रखना मम्मी का"

तन्वी ने एप्प ऑन क़रके रिक्वेस्ट डाल दी, और मोहित बाइक को स्टेण्ड पर लगाकर ढाबे पर चले गया खाना पैक करवाने।

"आप बैठ जाओ, आपका खाना तैयार कर रहे है, बीस पच्चीस मिनट तो लग ही जायेंगे" ढाबे वाले ने कहा।

"इतना टाइम इतनी देर में तो मैं..... ओके, आप लोग पैक करो मैं आता हूँ अभी " कहते हुए मोहित बाहर की तरफ जाने लगा।

ढाबे वाले ने आवाज देते हुए कहा - "हेलो पैक करवाना है तो पेमेंट क़रके जाओ, कुछ लोग ऐसे ही आर्डर क़रके गायब हो जाते है, अगर पेमेंट करोगे तो ही बनवाएंगे"

मोहित लौट के आया और पूछा - "कितने?"

"एक सौ बीस"

मोहित ने दो सौ का नोट दिया।

"खुले तो अभी बीस ही है, एक काम करना, सामान जब लोगे तब ही ले लेना चेंज" एक ओरची में चालीस रुपये लिखते हुए दुकानदार ने उसे थमा दिया।

"पर्ची कमीज के ही जेब में रखते हुए मोहित बाइक के पास गया तो देखा तन्वी बाइक में ही बैठी थी।

"किया नही बुक अभी " मोहित ने सवाल किया।

"कर तो दिया, नौ मिनट लगेंगे आने में " तन्वी बोली।

"ओह अच्छा, आने दो फिर, मेरा खाना भी अभी तैयार नही, आधा घंटा तो लगाएंगे ही ये लोग बीस मिनट बोला है तो " मोहित ने कहा।

"ओके, तब तक, कोई सवारी? " तन्वी ने सवाल किया।

"सवारी का मूड नही है, सोचा था आपको छोड़ आऊंगा लेकिन अब तो बुक कर लिया " मोहित बोला।

"कोई ना मैं केंसल कर देती हूँ, आप आ रे तो चलो " तन्वी बोली।

"अरे नही, क्यों केंसल, मैं तो सोचा आपको इमरजेंसी है इसलिए आ गया, अब बुक कर लिया तो आने दो, आधे रास्ते तक आने के बाद केंसल होने का दुख समझता हूँ मैं भी" मोहित बोला।

तन्वी ने कहा - "सबके बारे में इतना अच्छा क्यों सोच लेते"

"बस आदत हो गयी है, वैसे स्कूटी कहाँ रखी है," मोहित बोला।

"वो ठीक कराने दी है यार" तन्वी बोली।

"और बर्थडे के बाद कहाँ का प्लान था, कितने दोस्तों की टोली है " मोहित ने कहा।

"अरे कोई ज्यादा नही, स्वाति, मैं, रितिका दीक्षा और पूर्वी हम चार लोग थे, फिर पूर्वी ने अपने बॉयफ्रेंड को भी बुला लिया, और स्वाति ने भी, तो छ लोग हो गए।" तन्वी बोली।

"तो आपने नही बुलाया बॉयफ्रेंड अपना, आप भी बुला लेते तो ऐसे सवारी बनके नही घूमना पड़ता" मोहित बोला।

"बॉयफ्रेंड! पापा जान से मार देंगे मुझे, उन्होंने साफ साफ बोला है कॉलेज कम्प्लीट होने तक कोई आवारागर्दी नही, इन लोगो के तो घरवाले कुछ नही कहते, स्वाति ने तो मम्मी को भी बताया है, उसकी मम्मी भी कुछ नही कहती" तन्वी ने कहा।

"लेकिन कभी किसी से प्यार हो गया तो पापा से पूछने जाओगी क्या? मैंने सुना है की इस उम्र में हर किसी को कोई ना कोई पसंद आ जाता" मोहित बोला।

"अरे सब मोह माया है, आजकल किसी को कोई एक नही बहुत सारे पसंद आ जाते, एक लड़का था विवेक, वो मुझे बहुत लाइक करता था, और बहुत बार उसनें जताया और बताया भी, मैंने साफ साफ मना कर दिया तो हमारे ही कॉलेज की एक लड़की उसे पसंद आ गयी, अब वो दोनी रिलेशनशिप में है, लेकिन जब वो मुझे लाइक करता था तो कहता था की तेरे अलावा मुझे कभी कोई पसंद ही नही आ सकती, मैं हमेशा सिर्फ तुझे चाहता रहूंगा, मेरी एक ना ने उसकी सोच बदल दी और उसे कोई और पसंद आ गयी, आजकल लड़को को लड़किया पसंद नही आती बल्कि जरूरत सी लगती है, इनको जो हाँ बोल दे उसी से प्यार हो जाता है" तन्वी ने कहा।

"प्यार असली वही जो सब्र और इंतजार कर सके, है ना " मोहित बोला।

"अरे लेकिन वो हफ्ता दस दिन तो रुक जाता, सच कहूं तो जब उसे रिजेक्ट किया मुझे खुद बहुत बुरा लग रहा था, मैंने पापा के डर से मना किया, अब वो मुझे इतना पसंद करता था की मुझे भी लगता था ओ मुझे खुश रखेगा मेरी ख़ुशी को अपनी ख़ुशी से ज्यादा संभालने की कोशिश करेगा, उसे मना करने के बाद उसके उदास चेहरे पर काफी दया आयी मगर खुद को ये सोच के पथ्थर का कर दिया की कॉलेज ख़त्म होने तक ये इंतजार कर लेगा फिर मैं इसे हाँ बोल दूंगी, लेकिन वो तो... अच्छा हुआ मैंने अगले ही दिन सॉरी बोलने वाला अपना ही फैसला ठुकरा दिया, मैं तो अगले दिन बोलने वाली थी की कॉलेज ख़त्म होने तक इंतजार कर, मगर मैंने सोचा की वो सच्चा दीवाना लगता है, कर लेगा " कहते हुए तन्वी मुस्कराई और मोहित कि तरफ देखते हुए बोली- "तुम्हारी है कोई गर्लफ्रेंड "

"मेरी..... हीही मेरी कहाँ यार, एक बड़ी मुश्किल से बन रही थी तो उसे पता लग गया मैं क्या काम करता, और सच बोलू तो हम मिडिल क्लास लोग एक वक्त पर एक ही काम कर पाएंगे, या घर की जरूरत पूरी या फिर अपने शौक पुरे, और मुझे मेरे शौक से ज्यादा घर की जरूरत पूरा करना पसन्द है, ये कहो की मेरा शौक ही घर की जरूरत पूरी करना है। ऐसे में अपना खर्चा कौन बढ़ाये " मोहित ने कहा।

तभी तन्वी के मोबाइल में नोटिफिकेशन आ गया।

"धत्त, हमने उसके बारे में इतना सोचा, देखो उसी ने केंसल कर दिया।" तन्वी बोली ही थी की ढाबे के बाहर से एक आदमी चलता हुआ आया और चालीस रुपये और खाना पैक किया हुआ लिफाफा उसे पकड़ा गया।

"अरे आपको पता था कि मैं अभी यहीं पर रुका हूं" मोहित ने उसे आदमी से कहा।

मोहित की बात सुनकर वह आदमी बोला- "मालिक ने देख लिया था गपशप मारते हुए तो भिजवा दिया "

इतना कहकर वह आदमी वहां से चला गया।

"अच्छा उसनें केंसल कर दिया क्या, अब तो मैं भी कैसे आऊं बताओ जरा, चलो एक काम करता आपको वही से छोड़ते हुए हॉस्पिटल चला जाऊंगा, पांच मिनट का ही फर्क लगेगा।" कहते हुए मोहित ने तन्वी को बाइक पर बिठाया और चल पड़ा।

दोनों जापानिज पार्क के पास पहुंचे, मोहित ने गेट के पास ही बाइक रोकी और तन्वी से कहा - "पूछ लो यही है की यहाँ से भी निकल लिए "

तन्वी ने स्वाति को कॉल करते हुए मोबाइल कान पर लगाया।

"हाँ, कहाँ हो तुम लोग "

"अंदर ही है पार्क के, आजा " स्वाति बोली।

"ठीक है, आ रही हूँ" तन्वी ने कहा और फ़ोन काटते हुए बोली।

"यही है, अंदर" तन्वी ने कहा।

मोहित ने बाइक स्टार्ट की और वहां से निकल गया। तन्वी को भी याद नही रहा पैसे देने की, उसने उसे जाते हुए देखा और वापस मुड़के पार्क के अंदर को चली गयी।

अभी गेट के अंदर घुसी ही थी की उसे याद आया - "ओह तेरी, वो पागल बिना पैसो के चले गया, मैं भी पागल पैसे देना भूल गयी। मेरे पास नंबर भी नही उसका, पापा ने ही बुक किया था घर के पास से, तब अपने मोबाइल से बुक कर लेती तो ज्यादा अच्छा रहता। "

इसी सोच विचार के साथ तन्वी अंदर पार्क में स्वाति उनको ढूंढ़ते हुए उनके पास चली गयी।

"जिस दिन जल्दी बुलाओ उसी दिन लेट होती है तू" स्वाति बोली।

"अरे सॉरी याऱ, स्कूटी ख़राब हो गयी तो क्या करता, मज़बूरी हो गयी। वो तो शुक्र कर आ गयी" तन्वी बोली।

"हैप्पी बर्थडे टू यू " तन्वी ने स्वाति के गले लगते हुए कहा ।

उसके बाद एक एक क़रके सबसे हाथ मिलाया। स्वाति उसका परिचय करवाने लगी।

मोहित हॉस्पिटल पहुंचा और जिस रूम में मम्मी थी वहां जा पहुंचा, मम्मी की तबियत पहले से काफ़ी हद तक ठीक हो चुकी थी।

"दिव्या कहाँ है, ये उसका खाना था " मोहित ने कहा।

"डॉक्टर ने छुट्टी दे दी है, अब बस घर को जाना है, वो फाइल लेने गयी है, तू जा ऑटो देख के आ, बुक कर दे कोई ऑटो तब तक" बैग की तरफ इशारा करते हुए कहा - "ये बैग ले जा, बाकी हम लेके आ रहे "

"मोहित मोबाइल हाथ में निकालते हुए बोला - "कैब बुक कर लेते, ऑटो का चक्कर क्यों? "

"जो मर्जी कर ले, जो सस्ता होगा वो कऱ लेना " मम्मी बोली।

मोहित ने कैब बुक करी और उन सबको घर की तरफ रवाना कर दिया और खुद हॉस्पिटल के बाहर ही अगली सवारी का इंतजार करने लगा।

आगे.......

"भैया पालिका बाजार से पहले जो चौराहा आता है ना, उसी के पास जाना है, लोकेशन इसमें पालिका बाजार की है लेकिन आप पहले रुक जाना " सवारी बोला।

मोहित ने बस "हम्म्म..." में जवाब दिया। और बाइक चलाने लगा।

"भैया वैसे कितनी कमाई हो जाती इसमें" सवारी ने कहा।

"क्यों, तुम क्यों इतना हिसाब किताब रख रहे, जितनी भी हो रही हो" मोहित बोला।

"अरे मेरा भांजा है ना, बेल्ला है कुछ दिन से, ऊपर से किश्तो में बाइक ले ली, अब किश्त भी कैसे चुकाये, हर महीने फ़ोन आ जाता की मामा दो हजार भेज दो, मामा 3 हजार भेज दो, तो सोच रहा की नौकरी अभी कहाँ करेगा पढ़ाई के साथ साथ, लेकिन ये पार्ट टाइम कर लेगा तो किश्त तो निकल ही जाएगी " सवारी ने कहा।

"हाँ ठीक ही है, दो तीन हजार तो सुबह शाम एक एक घंटा भी करेगा तो भी निकल जायेगा" मोहित ने कहा।

" तुम अपने मालिक से बात करके उसको भी लगवा दो ना" सवारी ने कहा।

" अरे हमारे कोई मालिक नहीं होते बस मोबाइल में एक ऐप डाउनलोड करना है जिसका नाम है रैपीडो, या इसके आलावा भी बहुत एप है, वो कर लेगा, आप बोल देना" मोहित ने कहा।

"ठीक है" सवारी ने कहा।

आगे.....

"आपकी शादी हो गयी क्या?" मोहित ने कहा।

"क्यों? ऐसा क्यों पूछ रहे" आदमी बोला।

"आप बोल ही इतना ज्यादा रहे, जैसे घर में बोलने का मौका ना मिलता हो " हँसते हुए मोहित बोला।

"शादीशुदा लोगो की जिंदगी चुटकुलो में ही नरक होती है भाई, बीवी संस्कारी और समझदार हो तो जन्नत भी होती है जिंदगी, हाँ नरक तब हो जाती जब माँ बाप की सर चढ़ाई लड़की से शादी हो, क्योंकि वो ससुराल को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश करने लग जाती है, लेकिन जो लड़की माँ बाप का कहना मानती हो और उनसे डरती हो, वो ससुराल में खुद को ससुराल के हिसाब से ढाल लेती है और उसे ससुराल में भी प्यार मिलता है, झगडे कम होते है।" सवारी ने कहा और पूछा - "अच्छा कितने रुपये हुए?"

"डेढ़ सौ " मोहित बोला।

आदमी डेढ़ सौ रुपये देकर चला गया, मोहित अगली सवारी का इंतजार करने लगा, साथ में उसे याद आने लगी तन्वी की बाते - "बॉयफ्रेंड! पापा जान से मार देंगे मुझे, उन्होंने साफ साफ बोला है कॉलेज कम्प्लीट होने तक कोई आवारागर्दी नही, इन लोगो के तो घरवाले कुछ नही कहते, स्वाति ने तो मम्मी को भी बताया है, उसकी मम्मी भी कुछ नही कहती" तन्वी ने कहा था।

"आजकल लड़के लड़कियों से प्यार नही करते, लड़की एक जरूरत हो गयी है उनके लिए" तन्वी की कही बात सोचते हुए मोहित सोचने लगा - "मुझे भी जैसे जरूरत सी होने लगी हो, लेकिन पता है की अब दोबारा नही मिलेंगे हम, फिर भी तुम्हारे बारे में ही सोच रहा, ये जरूरत तो नही है ना, शायद ये मोहब्बत है, देखता हूँ कितने दिन तक याद आओगे, किस्मत में होगा तो फिर मिलेंगे।"


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