आधुनिकता
आधुनिकता
चुंगी तिराहे पर बजाज ढाबे के सामने, नीम के पेड़ के पास बस रुकी तो लगा आज से तीन बरस पहले का समय लौट आया है। हाथों में किताबें और बैग लिए लड़के - लड़कियां आज भी वहाँ खड़े बस का इंतजार कर रहे थे। ये वही जगह थी जहाँ से रोज मैं यूनिवर्सिटी जाने के लिए बस पकड़ता था। पता नहीं क्या सूझा और बस रुकते ही उनमें खुद की परछाई तलाशता मैं छात्र समूह की तरफ यूँ ही बढ़ता चला गया कि कंडक्टर की आवाज आई - " भाई साहब आपके पैसे ?"
मैं ठिठका और जेब से टिकट निकाल उसे दिया, उसने रुपये वापस किये और उन्हें जेब में रख मैं पुनः नीम के पेड़ की तरफ बढ़ गया। इस बार पीछे से जो आवाज आई वो तनिक कर्कश थी - " बैग कब उतारोगे ? बस चली जायेगी तब ?"
पत्नी थी, दो बैग उसने खुद उतार लिए थे बड़ा वाला बस में ही रह गया था। मैं सरपट बस में चढ़ा, बैग नीचे उतारा और ढाबे के टेबल पर समान टिका कर पत्नी को वहीं बैठाने के बाद चाय का ऑर्डर दे दिया। बस जा चुकी थी, प्रतीक्षा में खड़े विद्यार्थी भी। चाय की घूँट लेते मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी, उसके ब्रेसलेट से चेन के सहारे लटकते दिल की आकृति देख किसी का खयाल आया और आई हँसी भी। वर्तमान में अतीत को तलाशने के मेरे पागलपन पर भगवान को भी शायद मजा आ रहा था क्योंकि अगले पल जिस हैंडबैग पर नजर गई वो भी जाना पहचाना सा लगा। कद - काठी, चेहरा तो नहीं दिख रहा था लेकिन हाथों का दूधिया रंग भी किसी खास के होने की गवाही दे रहा था। पत्नी ने मुझे घूरते ताड़ लिया - " कहो तो बुला दूँ ? सामने से देख लो !"
झेंप तो गया ही था लेकिन बात बनाई -"अरे कैसी बातें करती हो ? कुछ सोच रहा था तो नजर वहां टिक गई "
भतीजा मोटरसाइकिल लेकर आ गया था, पत्नी से कहा - " पहले ये दोनों बैग लेकर तुम घर चली जाओ, इसके बाद ये आकर मुझे लेता जाएगा "
हालाँकि घर जाने का इससे बेहतर समाधान नहीं था फिर भी पत्नी ने जिस तरह देखा मानो कह रही हो मैं सब समझती हूँ। खैर ! वो चली गई। चाय खत्म हो चुकी थी मैं सामने जाने में हिचक रहा था। गया तो क्या कहूँगा ? बात की शुरुआत कैसे होगी ?,
" बुड्ढी हो गई हो तुम " हाँ परिहास के साथ यह अच्छा वाक्य रहेगा वार्ता की शुरुआत करने के लिए। हालाँकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ था कि जिससे बात करने की तैयारी कर रहा हूँ ये वही है। अभी ये स्पष्ट नहीं था कि ये वही है जिसको इम्प्रेस करने के लिए मैंने इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स जॉइन किया था, ये वही है जिसके पास से गुजरने पर उसके बालों से फैलती सुगन्ध के मुकाबिल आज तक कुछ नहीं लगा, ये वही है जिसके हाथ की ब्रेसलेट में एक छोटी सी चेन के सहारे लटकते दिल की आकृति में मैं अपनी धड़कन महसूस करता था।
यहीं मिला करती थी रोज। कॉलेज अलग - अलग थे लेकिन बस एक थी। अक्सर मैं उसके लिए सीट का जुगाड़ कर देता था, या यूँ कहें कि मेरी तरह और भी लड़के थे जो उसके लिए सीट छोड़ दिया करते थे लेकिन मैं अपने को उस दिन विशेष समझने लगा जब साथ वाली सवारी के उतरने के बाद उसने मुझे बैठने को कहा। उसके बाद तो इश्क की गाड़ी आगे बढ़ाने का लाइसेंस मिल गया हो जैसे।
वैलेंटाइन का चलन देश में शुरू हो गया होगा किन्तु उस छोटे से कस्बे में यह अब भी दूर की कौड़ी थी। फूल देना ढिठाई लगी तो एक दिन पान पसन्द की टॉफी बढ़ाई जिसके रैपर पर पान के पत्ते बने थे, उसने मुस्कुराते हुए ले लिया और बोली - " मैं नहीं खाती मनोज को दे दूँगी "
इसके बाद अगले दिन उसने चॉकलेट देते हुए पूछा - " चॉकलेट खाते हो ?"
मिलती ही कहाँ थी हमें चॉकलेट ? झट से ले ली, खोलते हुए कहा - " तुम भी लो !"
वो फिर मुस्कुराई - " मैं नहीं खाती, मनोज ने दिया है "
-"ये मनोज कौन है ?" लगातार दूसरी बाद उसका नाम सुनने के बाद मैंने पूछ लिया।
बिना मुस्कुराए उसकी बात ही शुरू नहीं होती थी - " है कोई ! किसी दिन मिलवा दूँगी।"
अभी उसने ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी जिसे मैं इश्क समझता, फिर ये मनोज का नाम आना मेरे मन में कई आशंकाओं को जन्म दे गया। एक दिन रुपये जुटाए और गोरखनाथ मेले में ले ली वैसी ही ब्रेसलेट जो हमेशा वो पहनती थी। दिया तो खुशी से चहकी - " वॉव ! मुझे इससे बेहतर कुछ नहीं लगता "
फिर मेरी तरफ देखा, चेहरे पर बोल्ड लेटर में इश्क लिखा पढ़ लिया उसने शायद, मुस्कुराहट गुम हो गई। बस आ चुकी थी, संयोग से दो सीट खाली थी। खुद बैठने के बाद मुझे भी बैठने का इशारा कर संजीदा होकर बोली - " मनोज और हम शादी करने वाले हैं, तुमको कोई गलतफहमी हो तो प्लीज मुझे माफ़ करना, वी आर जस्ट फ्रेंड "
दिल की क्या हालत हुई थी, बताने की आवश्यकता नहीं है लेकिन इस भाव को चेहरे पर आने से रोकने की जी तोड़ कोशिश करते हुए बोला - " अरे वाह ! ये तो खुशी की बात है, मुझे कोई गलतफहमी नहीं है, ये ब्रेसलेट तो एक दोस्त होने की हैसियत से दिया है तुम्हें "
वो मुस्कुरा दी, मैं भी, जबरदस्ती। अब भी हम साथ जाते थे, औपचारिकता में सीट ऑफर अब भी कर देता था लेकिन उपहार देना बंद कर दिया हालांकि उसकी तरफ से चॉकलेट और अन्य महंगी खाद्य वस्तुएं मुझे मिलती रहतीं, ये कहते हुए कि "मनोज ने दिया है "।
गर्मियों की छुट्टी थी। मेरे दोस्त सुनील की तिलक में मैं अन्य दोस्तों के साथ दोपहर में ही पहुँच गया था। एक कमरे में सभी जाने - अनजाने दोस्त इकट्ठे होकर हँसी - ठहाका कर रहे थे। सुनील बड़े घर का लड़का था अतः मधुप्रेमी दोस्तों को निराश नहीं किया था उसने। उसी कमरे में एक किनारे बियर के दौर भी चल रहे थे। सुनील के एक दोस्त राहुल ने जिसे मैं नहीं जानता था, एक बीयर पी रहे लड़के से बोला - "सुनील के तिलक में तो खूब अय्याशी कर ले रहा है साले ! अपनी शादी में व्यवस्था नहीं की तो उल्टा टांग कर मारेंगे "
बीयर पी रहा लड़का बोला - " कैसी टुच्ची बातें करता है बे ! मेरी शादी में ऐसे गिनती के केन नहीं मिलेंगे, बीयर शॉप खुलवा दूँगा कमीनों, पहले ढंग की लड़की तो मिलने दो "
राहुल - " शादी तो तय ही है तुम्हारी, जरा दिखा तो वो तस्वीर उस लड़की के साथ वाली।"
वो लड़का चहका, जेब से मोबाइल निकाल सुनील के दोस्त को पकड़ा दी, वो उसे लहरा कर सबको दिखाने लगा - " देख लो भाइयों ये अपने मनोज की होने वाली दुल्हन है "
मनोज नाम सुनकर मेरा ध्यान उस लड़के पर कुछ ज्यादा ही जम गया था, मैंने मोबाइल पर पुनः दृष्टि गड़ाई यह लड़की प्रिया नहीं थी। तब तक एक हाथ में बीयर की केन लिए मनोज उठ खड़ा हुआ - " सालों तेरा भाई इस काबिल है कि इस जैसी दर्जनों लड़कियों के साथ अपनी फोटो दिखा सकता है "....कहकर उसने मोबाइल झपट लिया। कुछ देर स्क्रॉल करने के बाद फिर एक तस्वीर दिखाई, सबके मुंह खुले रह गए, मैं क्रोध से आगबबूला था। तस्वीर में प्रिया उसके गालों पर चुम्बन दे रही थी। पूरा कमरा मनोज की प्रशंसा के गुण गा रहा था, कुछ और दिखाओ कुछ और दिखाओ की आवाज के बीच मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाया। मनोज ने मोबाइल जेब में रखा - " कुछ दिन इंतजार करो दोस्तों ! बहुत जल्द वीडियो दिखाऊंगा तुम्हें, एकदम तड़कता - भड़कता सा।
मुझे मनोज से नफरत सी हो गई थी साथ ही प्रिया पर गुस्सा भी आ रहा था, वो कैसे लड़के के चक्कर में पड़ी है ? तिलक के बाद घर आया। मेरे पास न तो मोबाइल था और न ही प्रिया से कभी उसका नम्बर लेने की कोशिश की थी। उसके घर तो नहीं गया लेकिन उस
नीम के नीचे रोज यह सोचकर बैठ जाया करता था कि हो सकता है किसी काम से इधर आये और मैं उसे मनोज के बारे में बता सकूं। ज्यादा दिन इंतजार नहीं करना पड़ा, तीसरे दिन ही वो दिख गई मगर जिस मोटरसाइकिल पर वो बैठी थी उसे मनोज ही चला रहा था। उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो खुशी से चीख पड़ी - " अरे गाड़ी रोको मनोज !"
उसने गाड़ी रोक दी तो उतर कर मेरे पास आई - " चलो आज तुम्हें मिलवा देती हूँ, ये ही है मनोज ! और मनोज ये है मेरा बहुत अच्छा दोस्त जिसके बारे में मैं तुमसे अक्सर बात किया करती थी।"
मनोज ने हाथ मिलाया, उसे सुनील की तिलक में मेरा मिलना याद नहीं था शायद - " अरे वाह दोस्त ! प्रिया बताती है कि तुम इसकी सीट का इंतजाम कर देते हो, इसके लिए शुक्रिया हाँ "
मैं मौन खड़ा रहा। प्रिया से उसने कुछ इशारा किया और कहीं चला गया, उसके जाने के बाद वो मुस्कुरा कर बोली - " रिजल्ट के बाद हम सगाई करने वाले हैं, तुम्हें इनविटेशन दूँ तो आओगे न ?"
मनोज किसी भी पल वापस आ सकता था, मैने उसकी सच्चाई बता दी - " प्रिया ! ये ठीक आदमी नहीं है, मुझे नहीं लगता कि ये तुमसे शादी करेगा।"
प्रिया की मुखाकृति एकदम से बदल गई - " मैं देख रही हूँ कि जबसे मैंने तुम्हें मनोज के बारे में बताया तभी से तुम्हारा व्यवहार बदलता जा रहा है। कहने को तो कहते हो कि इश्क जैसी कोई गलतफहमी नहीं है तुम्हें, लेकिन इस तरह की झूठी बातों को मैं जलन न मानूँ तो क्या मानूँ ?"
-"प्रिया यकीन करो, मेरे दोस्त सुनील की शादी में ये तुम्हारी और अपनी तस्वीरें दिखा कर रोब गांठता फिर रहा था।"
-"जानते हो उसके बारे में ? ब्लॉक प्रमुख हैं उसके पापा, उसके पूरे परिवार से मिल चुकी हूं। और दोस्तों को अपनी होने वाली पत्नी के साथ तस्वीरें दिखाना गुनाह है क्या ? तुम नहीं दिखाओगे ?"
मेरी समझ में नहीं आ रहा था - "प्रिया वैसी तस्वीरें कोई नहीं दिखाता, उस तस्वीर में तुम मनोज को चूम रही हो।"
प्रिया ने अट्टहास किया - " हे भगवान ! सचमुच के भोले भंडारी हो। जमाना चांद पर बसने की तैयारी कर रहा है और तुम किस करती तस्वीर के आधार पर किसी के चरित्र को लांछित करने में लगे हो ?, आधुनिक जीवनशैली में यह बहुत सामान्य बात है डियर।"
मैं क्या कहता ? मनोज भी आ चुका था, एक पैकेट मेरी तरफ बढ़ा कर बोला - " लीजिये भाई ! प्रिया बताती थी कि आपको चॉकलेट बहुत पसंद है, इसमें दस हैं, एन्जॉय करिये "
प्रिया उसके पीछे जाती हुई पलट कर मुस्कुराई थी।
आज तीन साल बाद वो दिखी थी। मैं कुर्सी से उठा, उसके सामने आता उसके पहले ही एक कार आकर रुकी, एक आदमी उतरा और उससे कार में बैठने की जिद करने लगा, उसने प्रतिकार किया तो दूसरा आदमी उतरा, शरीर काफी भारी हो गया था लेकिन मैं पहचान गया, यह मनोज था, आते ही उसने जोरदार थप्पड़ लगाया। अब मैं वहां पहुंच चुका था, ड्यूटी भले ही दूसरे जिले में थी लेकिन पुलिसिया रोब उतर आया, मनोज की बांह ऐंठ कर एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया उसके गाल पर। वह मुझे नहीं पहचान पाया, हतप्रभ होकर मेरी तरफ देखने लगा। उसकी कलाई अभी भी मेरी पकड़ में थी। प्रिया की तरफ देखा, वो सच में बुड्ढी हो गई थी, बालों में कई महीने पहले लगी मेहंदी अपनी रंगत खो चुकी थी, आँखें धंसी हुई, होंठों पर पपड़ी और चेहरे पर झुर्रियां, मुझे देख फफक पड़ी। इस बीच और भी लोग आ चुके थे, मनोज की कलाई पर मेरी पकड़ ढीली पड़ी तो भाग खड़ा हुआ। मैंने लोगों को हटाया और प्रिया की बाँह पकड़ कर कुर्सी पर बिठाया। चाय की कुछ चुस्कियां ली उसने और काँपते होठों के साथ रुलाई रोकने का उपक्रम करते हुए बोली - " तुम तो गायब ही हो गए थे एकदम से।"
"मेरी कोई भूमिका बची थी क्या तुम्हारी जिंदगी में ?"सोचा पूछूँ लेकिन कुछ और पूछा - " ये क्या हालत हो गई है तुम्हारी ? तुम्हें मार क्यों रहा था मनोज ?"
-"उसकी गिरफ्त से छूट जो चुकी हूँ।"
-" गिरफ्त ?"
-"उसकी बीबी ने वीडियो नष्ट कर डाले।"
- "मैं समझा नहीं।"
- " उस साल सगाई तो नहीं की मनोज ने लेकिन अपने बाबूजी से कहकर ब्लॉक में संविदा पर क्लर्क के पद पर नियुक्त अवश्य करवा दिया, इस आश्वासन के साथ कि बाद में यह पद स्थायी हो जाएगा । उसके पिता भी मुझसे स्नेह रखते थे। इस बीच मेरा मनोज प्रति विश्वास बढ़ता ही जा रहा था , और अब तो हमारी नजदीकियां भी सारी सीमाएं पार कर चुकी थी। एक दिन कस्बे के बाहर वाले मकान पर उसने मुझे बुलाया, एक आदमी से परिचय कराया जो बड़ा अधिकारी था। मनोज के अनुसार उसी के कहने से मेरी नौकरी स्थाई हो सकती थी। बातें होती रहीं, मनोज किसी काम से बाहर गया तो उस अधिकारी ने जबरदस्ती ....." कहते कहते प्रिया की घिघ्घी बंध गई।
मैंने शांत कराते हुए पूछा - " मनोज को ये बात बताई तुमने ?"
कुछ देर बाद सामान्य अवस्था में आकर बोली - " मनोज वापस आया तो उससे सारा हाल कह सुनाया और पुलिस स्टेशन चलने को कहा। इस पर उसकी प्रतिक्रिया आश्चर्य में डालने वाली थी - " अब तो जो होना है हो चुका प्रिया ! पुलिस के पास जाकर तुम्हारी बदनामी तो होगी ही, इसके साथ - साथ नौकरी भी हाथ से जाएगी " मुझे नौकरी की चिंता नहीं थी। मैंने स्कूटी उठाई और पुलिस चौकी पर चली गई, इंचार्ज ने पूरी बात सुनी उसके बाद बोला - " उस आदमी ने नौकरी पक्का करने से मना तो नहीं किया ना ? अगर बात से मुकर जाय तो उसकी गलती मानूँगा " मैं हतप्रभ थी - " कैसी बात कर रहे हैं आप, उसने मेरे साथ दुष्कर्म किया है "
इंचार्ज कुटिलता पूर्वक मुस्कुराया - " मनोज के साथ आपके सुकर्म का वीडियो देखे हैं हम, क्रान्ति मचाने से पहले एक बार मनोज से मिल लीजिये "
मेरे पाँव के नीचे से तो जैसे जमीन ही खिसक गई। बेहोश होकर गिर पड़ी। महीनों अवसाद में रही, मां - बाबूजी पूछते रहे लेकिन क्या बताती ? हालाँकि ये बातें फैलते फैलते उन लोगों के कान तक पहुंच ही गई। कुछ दिन और बीत गए, पता चला कि मनोज की शादी तय हो गई। यही नहीं जिस आदमी ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी पता चला कि वो मनोज के बाबूजी के खिलाफ बैठाई गई किसी जांच समिति का अध्यक्ष था। उस जाँच में वो बाइज्जत बरी हुए थे। ".....कहकर मेरी तरफ बेजान आँखों से देखते हुये मरी हुई मुस्कुराहट बिखेरी उसने।
-" फिर ?"
- " एक दिन उसकी पत्नी का फोन आया, उसके हाथ वो वीडियो लग गई थी। सबसे पहले तो उसने उसका घर छोड़ा और उसके बाद मुझसे केस दर्ज कराने की बात कही। मेरे माँ - बाप पहले ही शर्म से मरे जा रहे थे, मैं नहीं चाहती थी कि कानूनी पचड़े में उनका और उपहास उड़े। मैंने उसकी पत्नी से केस न करने और वीडियो डिलीट करने का आग्रह किया। वो इसके लिए तो मान गई, लेकिन मनोज को तलाक का नोटिस भेज दिया, बड़े घर की लड़की है, मनोज के पिता ने यह सम्बन्ध अपने राजनैतिक और व्यावसायिक हितों के लिए बनाया था, उसे चकनाचूर होता देख यह आगबबूला है।"
-" अब आगे क्या सोचा है ?"
वो मुस्कुराई - " मेरी तो अपनी सारी इच्छाएं मर चुकी हैं, बाबूजी ने कहीं शादी तय कर दी है।"
एक बस आ कर लग चुकी थी, वो उठी और बस में चढ़ने लगी, मैं भी पीछे - पीछे चढा एक सीट दिला दी उसे। भतीजा वापस आ चुका था। मैंने अपना नम्बर देने के बाद बस से उतरते हुए कहा - " ये फिर परेशान करे तो बताना !" वो फिर मुस्कुरा दी।