हरि शंकर गोयल

Romance

5.0  

हरि शंकर गोयल

Romance

दुविधा

दुविधा

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सरिता की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे । आंसुओं से पूरा तकिया भीग गया था । मुंह से रह रह कर हिलकियां निकल रही थीं । पूरे बदन में कंपकंपी हो रही थी । मुंह से कोई बोल नहीं फूट रहा था । उसके हाथ बार बार अपने चेहरे पर जाते थे । जैसे वह अपने चेहरे को अपने हाथों से ढकने का प्रयास कर रही हो । बहुत कष्ट में लग रही थी सरिता । किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है ? ऐसा कौन सा दुख है या बात है जो सरिता को मन ही मन कचोट रही है । वह अपना यह दुख किसी से कह क्यों नहीं रही है ? आखिर उसका कष्ट क्या है ?

सरिता की बहू रमा उसके पैरों की ओर बैठी थी । उसने अपनी सास की भरपूर सेवा की थी और अब भी लगातार कर रही है । आज के जमाने में ऐसी बहुएं मिलती ही कहां हैं । सरिता खुद को बहुत सौभाग्यशाली समझती थी कि उसे रमा जैसी बहू मिली । सरिता की बेटी निशा उसका सिर लगातार सहलाए जा रही थी और उसे सांत्वना दे रही थी "मम्मा, आप चिंता मत करो । आप बिल्कुल ठीक हो जाओगी । पापा हैं न , वो सब संभाल लेंगे । वो दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं मम्मा । उनके रहते आपको कुछ नहीं होगा मम्मा" । 

सरिता इसी बात से तो परेशान थी । वह भी जानती थी कि उसके पति दीपक नाम के ही दीपक नहीं हैं बल्कि वास्तव में कुल दीपक हैं । कोई आदमी दीपक जैसा भी हो सकता है यह सरिता ने केवल कहानियों में ही पढा था । लेकिन जैसे जैसे वह दीपक को जानती गई उसका प्रेम उसकी भक्ति में बदलता चला गया । 

वह अपनी जिंदगी के उन क्रूर क्षणों को कैसे भूल सकती है जब नियति के क्रूर हाथों ने उसका पहला प्यार , पहले पति गिरीश को शादी के महज 5 साल बाद ही छीन लिया था । कितना प्यार करते थे गिरीश उसे । उसे यह याद नहीं है कि कभी गिरीश ने उसका दिल दुखाया हो । न कभी शिकायत का मौका दिया और न कभी कोई शिकायत ही की । भगवान उस पर इतना मेहरबान होगा , उसने कभी सोचा नहीं था । वह अपनी छोटी सी जिंदगी में कितनी खुश थी ? तब निशा 2 साल की थी । लगता है कि उसकी खुद की नजर लग गई थी उसकी जिंदगी को, उसके परिवार को । तभी तो एक दिन वह "खबर" आई जिसकी कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठी थी । गिरीश मोटरसाइकिल से अपने ऑफिस जा रहे थे और पीछे से एक ट्रॉले ने उन्हें कुचल दिया था । उस दुर्दिन को वह कैसे भूल सकती है भला ? उस एक घटना से उसकी हंसती खेलती जिंदगी तबाह हो गई थी और उसकी गोद आंसुओं से भर गई थी । वह निशा को अपनी बांहों में भरकर न जाने कब तक रोती रही । बेचारी 2 साल की छोटी सी बच्ची समझ ही नहीं पाई कि उसकी मम्मा रो क्यों रही है । मम्मा को रोते देखकर वह भी जोर जोर से रोने लगी थी । 

साल भर बाद उसके ससुराल वाले और पीहर वाले दोनों ही परिवार के लोग उस पर दूसरी शादी का दवाब बनाने लगे थे । मगर सरिता गिरीश की यादों की छांव में ही अपना शेष जीवन गुजारना चाहती थी । उसके मन मंदिर का देवता गिरीश था जिसकी वह दिलोजान से पूजा करती थी । उसमें अब किसी और की प्रतिमा की स्थापना नहीं हो सकती थी । वह यह बात भली भांति जानती थी और उसने इस बात को दोनों घरवालों को बता भी दिया था । मगर निशा के भविष्य का वास्ता देकर और जमाने की निष्ठुरता का हवाला देकर उसे शादी के लिए बाध्य किया जा रहा था । 

तभी दीपक के घरवालों की ओर से शादी का प्रस्ताव आया था । दीपक सिविल इंजीनियर था और सार्वजनिक निर्माण विभाग में जे ई एन था । हंसमुख स्वभाव का लड़का था । उसकी शादी रेखा से हुई थी । एक बेटा लोकेश था जो तीन साल का हो गया था । दीपक की पत्नी रेखा का शादी से पहले एक लड़के से चक्कर चल रहा था । लड़का थोड़ा उचक्का टाइप का था । रेखा जिद पर अड़ी रही कि वह उसी लड़के से शादी करेगी मगर घरवाले उस बदमाश प्रवृति के लड़के से शादी करके उसकी जिंदगी बर्बाद होते नहीं देखना चाहते थे । दीपक उनका जाना पहचाना था और उसकी शालीनता और उसके मधुर व्यवहार के कारण वह पूरे परिवार को पसंद था, मगर रेखा को नहीं । रेखा को शरीफ आदमी पसंद नहीं थे , उच्छ्रंखल, उद्दंड, शैतान टाइप के आदमी पसंद थे । रेखा के घरवालों ने उसकी शादी दीपक से कर दी । शादी के बाद भी रेखा अपने प्रेमी से मिलती रही । खुद रेखा को पता नहीं था कि लोकेश दीपक का है या उसके प्रेमी का ? वह तो सपनों की दुनिया में ही रहना चाहती थी और अपने जीवन में फिल्मी स्टाइल का रोमांस चाहती थी । दीपक एक कुलीन लड़का था जो अपनी हदों को जानता था । अपनी ओर से दीपक ने रेखा को सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया था मगर जिन्हें नाले में लोट लगाने में आनंद आता हो उन्हें "गंगा" जी में डुबकी लगाने में कैसे आनंद आएगा ? 

एक दिन मालूम चला कि रेखा अपने 3 साल के बच्चे लोकेश को छोड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई थी । घर में रखे सब गहने और नकदी भी ले गई थी अपने साथ । दीपक के लिए यह आघात मौत से भी भयंकर था । वह समझ ही नहीं पाया कि उसके प्यार में कहां कमी रह गई थी ? उसे यह भी याद नहीं आया कि कभी उन दोनों की लड़ाई हुई हो ? यद्यपि एक दो बार रेखा ने कहा भी था कि तुम मुझसे लड़ते क्यों नहीं हो ? इसके लिए रेखा ने प्रयास भी खूब किये थे कि वह लड़ाई करे तो इसी का बहाना बनाकर वह घर से भाग जाये । मगर दीपक पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ था कि वह कभी नहीं लड़ा । यहां तक कि जब रेखा ने उसके मम्मी पापा से अलग होने की बात जान-बूझकर की तब भी वह चुपचाप अलग हो गया था मम्मी पापा की इच्छा के विपरीत । इससे रेखा बहुत अपसेट भी हुई थी क्योंकि इससे उसका काम तो नहीं बना ना ?  

वह खाने में जानबूझकर नमक कम या ज्यादा डाल देती थी जिससे दीपक कुछ कहे । मगर दीपक बिना शिकायत के खाना खा लेता था । रेखा को बड़ा अफसोस था कि दीपक उसे भागने का ना तो कोई बहाना दे रहा था और ना ही कोई मौका । इस पूरे समय में वह अपने प्रेमी से भी मिलती रही और "फिजीकल" भी होती रही । लोगों ने दीपक को यह बात बता भी दी थी । खुद रेखा ने किसी को कहते हुए सुन भी लिया था । मगर दीपक ने न कोई रिएक्शन दिया और न ही उससे कुछ कहा था । उस दिन वह कितनी निराश हुई थी ? अब इससे ज्यादा गंदी बात तो और कुछ हो भी नहीं सकती थी । मगर दीपक फिर भी खामोश बना रहा था । अब तो भागने के सारे रास्ते भी बंद हो गये थे । 

लोकेश तीन साल का हो गया था । दीपक की इच्छा थी कि एक बेटी पैदा हो जाये तो परिवार पूरा हो जाये । मगर रेखा उसकी बात कैसे मान लेती ? उसे चिढाने के लिए वह अभी इसे टालना चाहती थी । हालांकि दीपक ने कोई जोर जबरदस्ती कभी की ही नहीं थी मगर रेखा को यह बहाना जरूर मिल गया था भागने का । और वह एक दिन भाग निकली । 

दीपक की दुनिया उजड़ गई थी । जिसकी बीवी अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है ऐसे आदमी का क्या हश्र होता है यह कोई दीपक से समझे । ऐसा आदमी एक जिंदा लाश बनकर रह जाता है । लोग उसे जगह जगह से कचोटते हैं । उसकी खाल उधेड़ लेते हैं । जख्मों पर नमक छिड़कने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं । दीपक भी एक जिंदा लाश की तरह जी रहा था अपने बेटे लोकेश के लिए । 

जब दीपक के पास सरिता का प्रस्ताव आया था तो उसने अपने बेटे लोकेश के भविष्य को ध्यान में रखकर सरिता से मिलने का मन बनाया । किसी परिचित के घर दोनों की मुलाकात करवाई गई । सरिता को वह प्रथम मुलाकात अच्छी तरह याद है जब दीपक ने कहा था "सरिता जी, मैं यह विवाह अपने लिए नहीं कर रहा हूं बल्कि अपने बेटे के लिए कर रहा हूं । मुझे एक पत्नी की नहीं , मेरे बेटे के लिए एक मां की जरूरत है । मेरी पत्नी मुझे छोड़कर जा चुकी है इससे आप अंदाजा लगा सकती हैं कि मैं एक अच्छा पति साबित नहीं हुआ हूं । आप इस बिन्दु पर अच्छी तरह सोच समझकर ही अपनी राय प्रकट करना । मेरे घरवाले मेरी तारीफों के पुल बांधेंगे जो उनका कर्तव्य भी है । सभी के घरवाले ऐसा करते हैं । इसमें गलत कुछ भी नहीं है । मगर आप उस जाल में मत फंस जाना । सोचने के लिए पूरा वक्त लेना । हां , दो बातों का मैं विश्वास अवश्य दिला सकता हूं आपको, यदि आप मुझ पर विश्वास कर सकती हैं तो । एक बात तो यह कि मैं अपने पति होने का कभी हक नहीं जताऊंगा और दूसरी बात यह कि मैं लोकेश और निशा में कभी भेदभाव नहीं करूंगा । दोनों की परवरिश में कोई अंतर नहीं होगा । अब फैसला आपको लेना है" । 

सरिता जो अपने मन मंदिर में गिरीश की मूर्ति को लिए लिए घूम रही थी , दीपक की बातों से इतनी प्रभावित हो गई कि उसने उसी दिन ही हां कह दी थी । उसने दीपक की आंखों में सच्चाई, भोलापन , मासूमियत, ईमानदारी देख ली थी । उसे लगा कि निशा को अब एक पिता की छत्रछाया मिल जाएगी । और सबसे बड़ी बात कि दीपक पति होने का कभी हक भी नहीं जताएगा, यह बात उसके मन को छू गई थी । 

दोनों की शादी हो गई । दोनों बच्चों को अब मम्मी पापा मिल गये थे । सरिता शुरू शुरू में सहमी सहमी सी रहती थी और संकोच भी करती थी । लेकिन दीपक के निर्मल व्यवहार ने उसकी सारी शंकाएं निर्मूल कर दी थीं । धीरे धीरे सरिता के मन में दीपक के लिए प्यार उमड़ने लगा था । वह अपने दोनों बच्चों पर भरपूर ममत्व लुटा रही थी । दोनों बच्चे उसी के साथ सोते थे । 

दोनों की शादी को पांच साल हो गये थे । एक दिन दीपक अपने कमरे में सोने के लिए गया तो वहां पर बिस्तर लगा नहीं देखकर उसका माथा ठनका । "भूल गई होगी" यह सोचकर वह खुद ही बिस्तर लगाने लगा । सरिता पीछे ही खड़ी हुई थी । लपक कर सामने आई और उसके हाथ से बिस्तर छीन कर बोली "आज से आप यहां नहीं सोएंगे । अब इस कमरे में लोकेश और निशा सोएंगे । देखते नहीं , कितने बड़े हो गए हैं ये दोनों ? लोकेश 8 साल के और निशा 7 साल की हो गई है । अब वे दोनों अलग सो सकते हैं" । 

अचानक दीपक को लगा कि यह बात उसके दिमाग में क्यों नहीं आई ? सरिता कितना ध्यान रखती है लोकेश का । ऐसा कहीं से भी नहीं लगता है कि सरिता लोकेश की सौतेली मां है । पहले तो वह भी शंकित था एक सौतेली मां को घर में लाकर । मगर जिस तरह से सरिता ने लोकेश को अपने बेटे से भी बढकर प्यार दिया तो उसका सारा डर जाता रहा । वह भी निशा को अपनी बेटी की तरह ही प्यार करता था । दोनों बच्चे भाई बहन की तरह हिलमिल कर रहते थे ।

"अरे हां , मैं तो भूल ही गया था । देखा, कितना भुलक्कड़ हो गया हूं आजकल ? ठीक है दोनों बच्चे इस कमरे में सो जाएंगे और मैं अपना बिस्तर बाहर बरामदे में लगा लेता हूं" । 

और वह अपना बिस्तर बाहर ले जाने लगा । सरिता उसके सामने इस तरह खड़ी हो गई कि वह चाहकर भी बाहर नहीं जा सकता था । दीपक की आंखों में सीधे झांकते हुए सरिता बोली 

"आपने हमें वचन दिया था कि आप कभी अपने पति होने का हक नहीं जताएंगे । मगर हमने तो आपसे कभी वादा नहीं किया कि हम कभी पत्नी होने का हक छोड़ेंगे" । और सरिता एक अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ दीपक के गले लग गई । उस दिन वे दोनों मुकम्मल पति पत्नी बने थे । 

दिन बीतते रहे और बच्चे बड़े होते रहे । श्राद्ध पक्ष में सरिता गिरीश का श्राद्ध रखती थी । दीपक ने ना तो कभी ऐतराज जताया और ना कभी गिरीश के लिए कुछ अपशब्द कहे । बल्कि जब जब भी उसे गिरीश के बारे में कहीं से कुछ सुनने को मिलता था तो वह उसकी प्रशंसा में चार चांद लगाकर ही बोलता था । सरिता के दिल में बैठी गिरीश की मूर्ति अब हिलने लगी थी । एक दिन वह आईने के सामने आई तो उसे महसूस हुआ कि उसके दिल में कोई दूसरी मूर्ति बैठी हुई है । उसने ध्यान से देखा तो पता चला कि यह तो दीपक की मूर्ति है । उसे अपने आप पर बड़ी ग्लानि हुई । जिस मूर्ति को वह इतने वर्षों से संभालती आई थी वह टूट गई थी । अब वहां पर स्वत : एक दूसरी मूर्ति विराजमान हो गई थी । और उसे पता भी नहीं चला ? वह अपने पहले प्यार को कैसे भुला सकती थी ? वह तो उसकी जान था, संबल था, विश्वास था । क्या वह झूठा था ? 

उसके दिल से आवाज आई "नहीं । वह प्यार सच्चा था, निश्चल था, सपने जैसा था मगर दीपक का प्यार अलौकिक है । गिरीश का प्यार डल झील की तरह था तो दीपक का प्यार हिन्द महासागर की तरह है । और इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है । वह है ही ऐसा कि उससे हर किसी को प्यार हो जाए । रेखा कितनी मूर्ख लड़की थी जो सूरज को छोड़कर एक जुगनू के पीछे पीछे भाग रही थी । मगर जो भी होता है अच्छे के लिए ही होता है । अगर रेखा नहीं भागती तो क्या यह "पारस" उसके हाथ लगता" ? 

आज जब सरिता अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रही है । डॉक्टर ने उसे ब्लड कैंसर बता दिया है और उसे बस चंद दिनों की मेहमान घोषित कर दिया है । तो वह आज अपने आराध्य श्रीकृष्ण भगवान से वरदान मांग रही थी कि अगले जनम में उसे ...... पति फिर से मिले । मगर वह निश्चय नहीं कर पा रही थी कि कौन सा पति मिले ? गिरीश या दीपक ? और इसीलिए वह उद्विग्न थी । आंसुओं में डूबी हुई थी । दुविधाग्रस्त थी । तय नहीं कर पा रही थी कि वह किसे ज्यादा चाहती है । गिरीश की या दीपक को ? इसीलिए वह लगातार रोये जा रही थी । 

तभी दीपक आया और उसका सिर अपनी गोद में रखकर बोला "ये क्या हाल बना लिया है सरिता तुमने ? ऊपर से जब गिरीश जी तुम्हें इस हाल में देखेंगे तो क्या सोचेंगे ? कहेंगे कि उनकी अमानत को मैंने संभाल कर नहीं रखा । मैं भी कैसा आदमी हूं जो इतना सा भी नहीं कर पाया ? मैं क्या जवाब दूंगा उन्हें , तुम्ही बतलाओ " ? 

दीपक इससे आगे बोल नहीं पाया था । उसका गला भर आया था । सरिता ने अपना हाथ उसके होठों पर रखते हुए कहा "आपने मेरी दुविधा मिटा दी है, नाध । मैं इतने सालों तक मृग मरीचिका की तरह भटकती रही । अपने भूत में ही जीती रही जबकि मेरा वर्तमान भूत से ज्यादा हसीन है और भविष्य और भी सुनहरा होने वाला है । मगर मैं अल्पबुद्धि नारी अपने"प्रभु" को पहचान ही नहीं पाई । आज मुझे मेरे प्रभु के दर्शन हो गये हैं । अब मेरे मन में कोई दुविधा नहीं है । अब मैं चैन से मर सकती हूं । बस, एक बार मुझे अपने चरण स्पर्श करने का अवसर दे दो । मैं हाथ जोड़कर आपसे विनती करती हूं कि मुझे अगले जनम में भी अपनी पत्नी होने का सौभाग्य प्रदान कर दो , स्वामी । यही मेरी अंतिम इच्छा है" । और सरिता दीपक के चरणों की ओर झुकी । चरण स्पर्श किये और वहीं लुढ़क गई । 


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