दिल के तार
दिल के तार
"अरे यार जल्दी रोक न गाड़ी"
"क्या हुआ अब ?"
"अरे क्या हुआ होगा ?, वही इसका फोटोग्राफी का कीड़ा"
"देख तू मेरी फोटोग्राफी के बारे में कुछ मत बोल हाँ, और फिर ज़रा बाहर देख, क्या हसीन नज़ारा है। तुम लोगों को आना है तो आओ वरना मैं चला कुछ अच्छी पिक्चर्स क्लिक करने"
"हां हां ठीक है, लेकिन जल्दी आना। हम यहीं इंतजार करेंगे"
"ओके"
वो गाड़ी से उतरकर अपने कैमरा में उस वादी के नज़ारों को कैद करने में मशगुल हो गया। बहुत ही सुहावना मौसम था उस वक्त मनाली में, हल्की-हल्की बर्फबारी भी शुरू हो चुकी थी। वो अपने काम में इतना खोया हुआ था कि उसे पता ही न चला कि वो कब गाड़ी से दूर निकल आया। तभी तस्वीर लेते हुए अचानक उसे वो दिखाई पड़ी।
वो रोड़ के दूसरी तरफ खड़ी थी, खाई की ओर चेहरा किए। यूँ एक लड़की का इस तरह खड़े होना कोई अनोखी बात नहीं थी, लेकिन फिर भी वो अपना ध्यान उस पर से हटा नहीं पाया।
वो न ही हिल रही थी और ऐसा लग रहा था कि कोई सख्ती से उसे वहां खड़े रहने की सज़ा दे गया हो। वो अपने ख्यालों में इतनी गुम थी कि उसे पता ही न चला कि कब उसकी बगल वाले पेड़ ने उखड़ना शुरू कर दिया और फिर अचानक से किसी ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया। 'धड़ाममम्म' की आवाज़ के साथ वो पेड़ करीब आधी बर्फ को रौंदता हुआ नीचे खाई में जा गिरा। एक पल के लिए जैसे वहां सन्नाटा पसर गया।
उसे एहसास ही नहीं हुआ कि कब उसने उस लड़की का हाथ अपनी ओर खींचा और अब वो उसके सीने से लगी हुई थी।
वो सहम गया था इस डर से कि अगर उसने अपना हाथ न बढ़ाया होता तो वो लड़की इस वक्त खाई में होती।
उस लड़की ने एक पल के लिए खुद को देखा और फिर उसे पर उन आँखों में इस बात का ज़रा भी खौफ़ नहीं था कि अभी कुछ देर पहले उसकी जान भी जा सकती थी। डर की जगह उन आँखों में उसे एक दर्द दिखाई दिया। एक गहरा उदास दर्द।
"आप ठीक तो हैं ?"
"हाँ वो मुझे पता ही नहीं चला कब वो पेड़ मेरी जान बचाने के लिए शुक्रिया" इतना कहकर वो मुड़कर जाने लगी।
उसने उसे रोकना चाहा, शायद पूछना चाहता था कि आखिर कोई अपनी जान के लिए इतना लापरवाह कैसे हो सकता है ? लेकिन कैसे पूछता, वो थी तो उसके लिए एक अजनबी !
तभी उसकी नज़र ज़मीन पर गिरे एक कागज़ पर पड़ी। वो कागज़ शायद उस लड़की के पास से गिरा था वहां। उसने वो कागज़ उठाकर खोला कि तभी
"अरे विशाल ! क्या हुआ था ? तू ठीक तो है न ? हमने वहां से कुछ गिरने का शोर सुना" ये उसके दोस्त अनंत की आवाज़ थी।
"हाँ कुछ नहीं हुआ सब ठीक है"
"लेकिन वो लड़की कौन थी ?" उसके दूसरे दोस्त युवराज़ ने पुछा।
"पता नहीं" उसने बड़ी लापरवाही से बात को टालते हुए कहा।
"चल अभी बहुत ले ली तस्वीरें, मौसम खराब हो रहा है, हमें वापिस होटल चलना चाहिए" ये कहकर उसके दोस्त गाड़ी की तरफ बढने लगे।
उसने एक बार मुड़कर पीछे देखा और फिर उस कागज़ के टुकड़े को और मोड़कर अपनी ज़ेब में रख लिया।
उस शाम मौसम में 'तूफ़ान' की शुरुआत हो चुकी थी।
वो एक 5 स्टार होटल का आलीशान कमरा था।
"हैलो पापा"
"हैलो विशाल बेटा कैसे हो तुम ? कैसी चल रही है तुम्हारी वेकेशन ?" दूसरी तरफ से आवाज़ आई।
"मैं एकदम ठीक हूँ पापा, आप और माँ कैसे हैं ?"
"हम बिलकुल ठीक है, तुम्हारी माँ तुम्हें याद कर रही थी। लेकिन तुम ये बताओ कि तुम लोग वापिस कब आ रहे हो ?"
"क्या पापा अभी यहाँ आये हमें तीन दिन भी नहीं हुए हैं और ये सवाल आप दुसरी बार पूछ रहे हैं" उसने दिखावटी नाराज़गी जताते हुए कहा।
"क्या करूं बेटा कभी तुम्हें खुद से दूर नहीं भेजा न"
"पर पापा अब मैं बड़ा हो चुका हूँ"
"हाँ-हाँ पता है, तभी तो तुम्हें रोका नहीं। तुम्हारा जब तक मन करे घुमो, एन्जॉय करो। आराम से वापिस आना, कोई जल्दी नहीं ओके ?"
"थैंक यू पापा, बाय"
[ये है विशाल अग्निहोत्री, दिल्ली शहर के जाने-माने बिजनेसमैन वरदान अग्निहोत्री का इकलौता बेटा। दिखने में तो ये जनाब किसी हैंडसम हंक से कम नहीं है और फ़िलहाल अपने दो दोस्तों के साथ छुट्टियाँ बिताने मनाली आये हैं। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अपने पिता के बिजनेस से ज्यादा इनकी रूचि म्यूजिक और फोटोग्राफी में है।]
विशाल आया तो यहाँ एक 'मुसाफ़िर' बन कर है लेकिन उसे ये नहीं पता कि किस्मत उसे उसकी जिंदगी की कौन-सी हकीकत से रु-ब-रु करवाने वाली है !
वो एक बड़ा सा अँधेरा कमरा था जिसके बीच में मेज़ पर एक धीमी रोशनी वाला स्टडी लैंप जल रहा था। उस कमरे में ज्यादा कुछ नहीं बस एक बैड, किताबों से भरी अलमारी, दीवारों पर बड़ी-बड़ी पेंटिंग्स और एक स्टडी टेबल थी जिस पर वो चुपचाप बैठी अपने ख्यालों में गुम थी। काले घने बाल, गहरी भूरी आंखे, एक सुंदर लेकिन उदास और ख़ामोश चेहरा।
"यही दिन था वो वो मनहूस शाम। काश ! कि ये दिन उसकी ज़िंदगी में कभी आया ही न होता। काश ! कि वो उसे कभी खुद से दूर होने ही नहीं देती। काश ! कि वो उसे बचा पाती" ये सोचते-सोचते उसकी आँखों में उदासी की जगह आँसुओं ने ले ली।
"अरे यार विशाल तूने अंकल को बोल दिया न कि अभी हम कुछ दिन और यहां रहने वाले हैं"
"हां मेरी बात हो गयी है उनसे, उन्होंने कहा है कि जब तक हमारा मन करे हम यहां रह सकते हैं"
"बढ़िया तो अब हम लोगों को सोना चाहिए"
"नहीं यार तुम लोग सो जाओ, मैं अभी अपने आज के पिक्चर्स का कलेक्शन चेक करूँगा"
"ठीक है जैसी तेरी मर्ज़ी, चल युवी"
"गुड़ नाइट"
अनंत और युवराज़ के कमरे से जाने के बाद विशाल ने अपना कैमरा उठाया और बैड पर आराम से पसरकर क्लिक की हुई तस्वीरें देखने लगा। तस्वीरों को स्वैप करते हुए उसके सामने उस लड़की की तस्वीर आ पहुंची 'घने काले लम्बे बाल और ब्लैक कलर का ओवरकोट जो उसने ब्लू कलर की जीन के साथ डाला हुआ था' इस से ज्यादा उस तस्वीर में और कुछ नहीं दिखा उस से जुड़ा।
तभी अचानक एक ख्याल उसके दिमाग में कौंधा और उसने फटाफट उठकर अलमारी से अपनी जैकेट निकाली जो सुबह उसने पहनी थी और फिर उसकी ज़ेब में कुछ ढूंढने लगा।
और आख़िर वो मिल गया वो कागज़ का टुकड़ा जो सुबह उस 'ट्रैजिक गर्ल' के पास से गिरा था।
उसने वो कागज़ खोल कर देखा। उस पर एक बहुत ही प्यारी शायरी जैसी कविता लिखी हुई थी।
"जो तेरा साया किसी जिस्म से सहम जाए
तो मुझे याद करना
जो तेरी नींद आधी रात में ही उड़ जाए
तो मुझे याद करना
जो तेरे हालात कभी तेरी समझ मे न आएं
तो मुझे याद करना
जो भीड़ में भी तेरी तन्हाई तुझे सताए
तो मुझे याद करना
जो तेरी रूह का परिंदा आसमां में भी छटपटाए
तो मुझे याद करना
जो तेरी ख्वाहिशों का चिराग़ कभी डगमगाए
तो मुझे याद करना
जो तेरी अपनी परछाई भी तुझे अधूरा छोड़ जाए
तो मुझे याद करना
मैं तो हूं तेरे आस पास, बेशक ये तुझे नज़र न आए
पर फिर भी कभी अगर मेरी कमी तुझे रुलाए
तो बस तू मुझे याद करना
मुझे याद करना ! !"
मायरा
मायरा
उसे अचानक ऐसा लग जैसे किसी ने उसे पुकारा हो। उसने नज़र उठाकर इधर उधर देखा, कमरे में कोई नहीं था।
"क्या ये उसकी आवाज़ थी ? नहीं ये नहीं हो सकता वो तो जा चुका था हमेशा के लिए।
लेकिन ये एहसास ऐसा क्यों लग रहा था कि वो यहीं आस पास है" उसने सोचते हुए खिड़की के पास जाकर देखा। वहाँ बस मीलों दूर तक फैला हुआ अंधेरा था और तेज़ चलती हवा जो कि उस तूफ़ान से कम ही लग रही थी जो उसकी जिंदगी में आया था।
तभी किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"और कितना कोसोगी खुद को ? दो साल हो गए हैं उसे गए हुए और तुम आज भी उस दिन से आगे नहीं बढ़ पाई हो। कब तक तकलीफ़ दोगी खुद को ? भूल जाओ बेटी सब" ये उसकी नानी थी जो उसके दिल और ज़िंदगी के हालात से बखूबी वाक़िफ़ थी।
"नहीं नानी माँ, मैं मर भी जाऊं तो भी खुद को इस इल्ज़ाम से रिहा नहीं कर सकती कि जो कुछ भी हुआ वो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा दोष था। मैं जिम्मेवार हूं उस अनहोनी के लिए जिसने मेरी ज़िन्दगी तबाह कर दी" उसने अपने आंसुओ पर मुश्किल से काबू पाते हुए कहा।
"नहीं मायरा, ऐसा नहीं है जो कुछ भी हुआ वो भगवान की मर्ज़ी थी।"
"कैसी मर्ज़ी नानी माँ ? बचपन में मेरे माँ-पापा मुझसे छीन लिए और जब ज़िंदगी में किसी को अपना माना तो मेरा प्यार भी मुझसे छीन लिया। ये कैसी मर्ज़ी है भगवान की और अगर यही उसकी मर्ज़ी है तो फिर उसने ये रिश्ते मुझे दिए ही क्यों ? क्यों मुझे सपने देखने पर मजबूर किया ? क्यों उसे मेरी ज़िन्दगी में भेजा" और ये कहते-कहते वो फूट-फूटकर रो पड़ी।
"नहीं मेरे बच्चे, भगवान इतना कठोर नहीं है। जरूर उसने तेरी ज़िंदगी के लिए भी कुछ अच्छा सोचा होगा। और तू तो मेरी बहादुर बेटी है, तू ऐसे हार नहीं मान सकती" नानी ने कहा जबकि वो भी जानती थी कि मायरा के घावों पर इस तरह की बातें कोई असर नहीं करने वाली थी।
अगले दिन सुबह विशाल अपने दोस्तों के साथ घूमने निकल गया। सारा दिन पहाड़ों की सैर में वक़्त का कुछ पता ही न चला।
वापिस आते-आते तीनों थक चुके थे। तभी रास्ते में अनंत ने गाड़ी रोकी।
"अरे यार वो देख कैफ़े चल वहां चलके थोड़ी थकान उतारें वैसे भी होटल कुछ दूर ही रह गया है"
"ठीक है लेकिन ज्यादा देर नहीं" विशाल ने बोला।
"हां ठीक है"
तीनों उतरकर कैफ़े "सीज़न" की ओर चल पड़े। ये उसी रास्ते पर था जहां कल विशाल को वो लड़की दिखाई दी थी।
तीनों जाकर एक टेबल पर बैठ गए।
"जी सर कहिए आपको क्या चाहिए ?" पहाड़ी सा दिखने वाला एक वेटर उनके पास आकर बोला।
"तीन कॉफी" युवराज़ ने ऑर्डर दिया।
विशाल इधर उधर नज़रें घूमने लगा। वो लकड़ी से बना एक विंटेज लुक वाला छोटा मगर खूबसूरत सा कैफ़े था जिसके पिछली तरफ़ बड़े आराम से बर्फीले पहाड़ों को देखने का लुत्फ़ लिया जा सकता था। वो ये सब नोटिस कर ही रह था कि तभी उसे पीछे की तरफ लास्ट टेबल पर बैठी हुई वो दिख गई।
उसके दिल में अचानक से एक बिजली कौंधी।
"क्या ये सिर्फ़ एक इतेफाक़ है ? कल ही तो नहीं नहीं, वैसे भी ये एक छोटा शहर है और यहां कैफ़े ही कितने हैं। ये एक इतेफाक़ ही है" उसने मन ही मन सोचा।
"ओए तू किधर गुम हो गया ?" अनंत ने उसके सामने चुटकी बजाई।
"कुछ नहीं मैं अभी आया, बस दो मिनट" कहकर विशाल टेबल से उठ गया।
"ओह हेलो किधर चले" युवराज ने आवाज़ लगाई।
"छोड़ जाने दे उसे, आ जाएगा" अंनत ने उसे रोका।
विशाल सीधे उस कैफ़े के मालिक के पास गया जो एक 70 साल का बुजुर्ग व्यक्ति था।
"नमस्ते काका, कैसे हैं ?" उसने बोला
"नमस्ते बेटा, तुम कौन ?" उस व्यक्ति ने कांपती आवाज़ में पूछा।
"अरे बस इधर घूमने आए थे, अच्छा काका आप उस लड़की को जानते हैं ? वो वो लास्ट टेबल वाली" विशाल ने बिना वक़्त गवाए उस लड़की की तरफ इशारा कर के पूछा।
"वो बिटिया वो तो सालों से यहां रोज़ आती है। कुछ बोलती नहीं बस चुपचाप उस खिड़की के पास बैठ कर कुछ लिखती रहती है। मगर तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो ?"
"कुछ नहीं बस उसकी शक्ल मेरी एक दोस्त से मिलती है न इसलिए पूछा" विशाल ने बहाना बनाते हुए कहा। "अच्छा ठीक है काका थैंक्स" वो वहां से खिसकता हुआ बोला।
"हे, हाय कैसी हो ?" उसने लास्ट वाली टेबल पर जाकर बोला।
वो अभी भी कुछ लिख रही थी। उसने सिर उठाकर देखा।
"पहचाना ? हम कल मिले थे पेड़ मैंने तुम्हारी जान " इस से पहले की वो बात पूरी करता वो बोल पड़ी।
"मैंने कल उसके लिए आपको शुक्रिया बोल दिया था और अगर वो कम था तो अगेन थैंक्स वेरी मच"
उसने बोला।
"अरे नहीं नहीं ! थैंक्स वेंकस की बात नहीं है। मैं तो आपको ये वापिस करने आया था" विशाल ने वो कागज़ का टुकड़ा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा जो उसे कल गिरा हुआ मिला था।
"ये आपको कहाँ से मिला ?" उसने हैरानी से पूछा।
"ये वहीं से जहां आप मिलीं, आई मीन ये कल गिर गया था आपके पास से शायद तो मैंने उठा लिया कि अगर आप दोबारा मिलीं तो वापिस कर सकूं। वैसे आप काफ़ी अच्छा लिखती हैं मायरा जी"
"आपको मेरा नाम " फिर उसे ध्यान आया कि वो अपनी कविता के नीचे अक्सर अपना नाम लिखती है।
"शुक्रिया ये मुझे लौटाने के लिए ये वाकई बहुत ज़रूरी था" मायरा ने उस कागज़ की तऱफ देखते हुए बोला जैसे वो उसकी कोई बहुत बड़ी पूंजी थी।
"अरे शुक्रिया कैसा ? मैंने तो बस किसी की खोई हुई चीज़ उसे वापिस दी है। वैसे मेरा नाम विशाल है" उसने बैठते हुए कहा।
मायरा ने एक ठंडी मुस्कान के साथ उसकी तरफ देखा जैसे उसे उसका नाम जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
"तो आप एक राइटर हैं ?" उसने सामने रखी डायरी, पेन और किताबों को देखते हुए पूछा।
"जी हां, बस यूं ही थोड़ा बहुत लिख लेती हूं"
"अच्छा वैसे एक तरीका है, जिससे आप अपना शुक्रिया भी अदा कर सकती हैं और आपके दिल पर कोई बोझ भी नहीं रहेगा कि मैंने आपकी जान बचाई" विशाल ने मुस्कुराते हुए हीरो वाले अंदाज में कहा।
"मैं कुछ समझी नहीं, आप क्या कहना चाहते हैं ?" मायरा ने हैरत भरी नज़रों से उस शख्स से पूछा जो अभी भी उसके लिए एक अजनबी ही था।
"देखिए आप लिखती हैं और जाहिर है कि आपके पास बहुत सी किताबें भी होंगी और मैं ठहरा किताबों का शौकीन। तो अगर आपको कोई एतराज़ न हो तो आप मुझे अपने कॉलेक्शन में से कुछ किताबें दे सकती हैं ? पढ़ने के लिए। मैं पक्का उन्हें लौट दूंगा"
"हां लेकिन " मायरा को समझ नहीं आ रहा था वो क्या बोले।
"अरे इसमें सोचना क्या आप मुझे रोज़ एक किताब दे दिया कीजिए और मैं उसे पढ़ कर अगले ही दिन लौट दूंगा। आप वैसे भी रोज़ यहां आती है ना मेरा मतलब है हम रोज़ यहीं मिल लिया करेंगे" विशाल ने बहुत ही चालाकी से बात बदलते हुए कहा ताकि मायरा को इसकी भनक न लगे कि उसे कैफ़े मालिक ने बताया है कि वो यहां रोज़ आती है।
"ठीक है फिलहाल आप इसे ले जाइए" मायरा ने थोड़ा सोचते एक किताब उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।
"ओके, तो ठीक है कल इसी वक्त फिर मिलेंगे यहीं" विशाल ने कहा।
मायरा ने एक फीकी मुस्कान के साथ हां में सिर हिला दिया।
"ओ हीरो कहां गायब हो गया था ?" गाड़ी के पास इंतज़ार करते हुए उसके दोस्तों ने पूछा।
"अरे कुछ नहीं है, तुम लोग ऐसे ही सवाल करते रहते हो"
"देख विशाल तू हमसे कुछ नहीं छिपाता, कल भी तूने ऐसे ही टाल दिया। चल अब बता क्या बात है ?"
अनंत ने गम्भीर लहज़े में पूछा।
"और तू कबसे ये किताबें पढ़ने लग गया ?, हां ?" युवराज़ ने उसके हाथ में किताब देखकर कहा।
"ओ ये ये तो फाइन ! चलो मैं गाड़ी में बताता हूँ सब तुम लोगों को" विशाल ने बोला क्योंकि अब उसे भी लगा था कि छिपाने का कोई फायदा नहीं।
"अच्छा तो ये बात है और तू हमें अब बता रहा है"
"लेकिन यार तू बच के रह, ये पहाड़ी लोगों का न कुछ पता नहीं होता। मैंने तो सुना है ये लोग जादू-टोना भी जानते हैं" युवराज़ ने कहा तो दोनों ज़ोर से हंसने लगे।
"क्या युवी तू भी न"
"नहीं यार वो ऐसी नहीं है, इन्फेक्ट मुझे ये लगा कि उसे लोगों से ज्यादा मिलना या बात करना पसंद नहीं है। मैं गया तो उसे सिर्फ वो कागज़ का टुकड़ा वापिस करने था लेकिन उस से मिल के मुझे ऐसा लगा जैसे न जाने कितने वक्त से मैं उस से बात करना चाहता था" विशाल ने कहा।
"वेल अगर ऐसा है तो कैरी ऑन ब्रो" अनंत ने उसकी तरफ देखकर हंसते हुए कहा।
"क्या हुआ, तुम कुछ परेशान लग रही हो" नानी ने कमरे में आकर मायरा से पूछा।
"कुछ नहीं नानी माँ, बस ऐसे ही"
"अच्छा अब मुझे भी नहीं बताओगी ?"
"ऐसा नहीं है, एक आप ही तो हैं जो मुझे समझती हैं" और मायरा ने उन्हें सब बता दिया जो कुछ उसके साथ इन दो दिनों में हुआ।
"अरे फिर क्या हुआ ? किताबें ही तो मांगी है पढ़ने के लिए, इसमें इतना सोचने वाली कौनसी बात है ?" नानी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"पर नानी माँ आप जानती हैं, मुझे किसी से मिलना अच्छा नहीं लगता और फिर यूँ रोज़-रोज़ मैं तो उसे जानती तक भी नहीं"
"नहीं जानती तो जान जाओगी, हर इन्सान बुरा नहीं होता मायरा। मुझे लगता है तुम्हें बिना जाने उसके बारे में सही या गलत राय नहीं बनानी चाहिए"
"ठीक है, अगर आप कहती हैं तो मान लेती हूँ" मायरा ने बिना किसी भाव के कहा।
अगले दिन विशाल कैफे पहुंचा तो उसने देखा कि मायरा वहीं उसी टेबल पर बैठी अपनी डायरी में लिख रही है। उसे देखते ही उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल गई।
"हाय, मैंने आने में ज्यादा देर तो नहीं की ?"
"नहीं-नहीं ऐसा कुछ नहीं है, बैठिए" मायरा ने एक ठंडा सा जवाब दिया।
"सो आज आप कौन-सी किताब लेकर आई हैं मेरे लिए ? और ये रही आपकी कल वाली किताब, मैंने पूरी रात जागकर इसे पढ़ा काफी अच्छी कहानी है"
"जी, लेकिन आपको अगली किताब देने से पहले मेरी एक शर्त है"
"कैसी शर्त ?"
"ये कि जब भी हम मिलेंगे तो आप मुझसे ज्यादा बात करने की कोशिश नहीं करेंगे और न ही कभी ऐसा कोई सवाल करेंगे जो मेरी निजी जिंदगी से जुड़ा हो, क्योंकि मैं यहाँ सिर्फ अपनी कहानियों को समय देने आती हूँ। बोलिए मंजूर है ?"
"हाँ मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, बस आपसे एक रिक्वेस्ट है"
"कैसी रिक्वेस्ट ?"
"कि आप भले ही मुझसे कोई बात न करें लेकिन अगर किसी किताब या कहानी से जुड़ा कोई भी सवाल होगा तो आप मेरी मदद करेंगी। बोलिए मंजूर है ?" विशाल ने ठीक मायरा के लहज़े में ही कहा।
"ठीक है" मायरा ने हामी भरते हुए बोला।
"तो फिर मेरी किताब ?" विशाल ने हाथ बढ़ाते हुए कहा।
"ये रही"
तो इस तरह शुरू हुआ विशाल और मायरा की मुलाकात का सिलसिला।
हालाँकि मायरा की शर्त के हिसाब से उनके बीच कोई बात नहीं होती थी मगर विशाल हमेशा किताब में से उसके लिए ढूंढ-ढूंढ कर सवाल निकलता या यूँ कह लीजिए कि मायरा से बात करने का ये उसका नया तरीका था जिसे वो मना नहीं कर सकती थी और वो भी उसके सवालों का बिना कुछ कहे जवाब दे देती थी।
कुछ दिन यूँ ही बीत गए और फिर एक दिन विशाल को ऐसे ही बाज़ार में घूमते हुए मायरा दिखाई दी। उसने देखा कि कुछ टूरिस्ट लड़के उसे परेशान कर रहे थे।
"अरे मायरा तुम यहाँ हो, मैं तुम्हें कब से पूरी मार्किट में ढूंढ रहा हूँ, देर हो गई है चलो घर चलते हैं" विशाल ने मायरा का हाथ पकड़ कर चलते हुए कहा। ये देखकर वो सभी साइड हट गए।
बात को समझते हुए मायरा भी चुपचाप उसके साथ चल दी।
"वो " मायरा इस से पहले कुछ बोलती विशाल बोल पड़ा।
"नहीं नहीं, थैंक्स कहने की जरूरत नहीं है, ये तो मेरा फर्ज़ था"
"थैंक्स नहीं पर मैं ये कहना चाहती थी कि आई कुड हैंडल देम"
"हाँ मैं जनता हूँ लेकिन आपको ऐसी सिचुएशन में देखकर मुझसे रहा नहीं गया"
"लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि आप हर जगह कैसे पहुँच जाते हैं ?" मायरा ने थोड़े सख्त लहज़े में कहा।
तभी विशाल ने उसे पकडकर अपनी तरफ़ खींच लिया मायरा एक पल के लिए चौंक गई पर उसे ध्यान आया कि अभी-अभी एक तेज़ गाडी लगभग उसे छू कर निकली है।
"अब ये तो मुझे भी नहीं मालूम कि जब आप मुसीबत में होती हैं तो मै वहां कैसे आ जाता हूँ" विशाल ने अपनें दोनों हाथ उठाते हुए मासूमियत भरे लहज़े में कहा जिसे सुनकर मायरा अचानक से हंस पड़ी।
उसे इस तरह हंसते विशाल ने पहली बार देखा था और मायरा खुद बहुत सालों बाद इस तरह से हंसी थी।
"अब तो वाकई में मैं आपके एहसानों तले दब चुकी हूँ" मायरा ने हंसते हुए कहा।
"लेकिन आप अभी के अभी ये एहसान उतार सकती हैं" विशाल ने कहा।
"अच्छा, वो कैसे ?"
"क्या है कि घर का खाना खाए बहुत दिन हो गए हैं तो अगर आप अपने हाथ का बना कुछ खिला सकें तो"
"अच्छा ठीक है, तो फिर घर चलिए मेरी नानी माँ बहुत ही टेस्टी खाना बनाती हैं" मायरा ने कुछ सोचते हुए मुस्कुराकर कहा।
"तो क्या आज से हम दोस्त बन सकते हैं ?, आइ स्वेअर मैं आपको बिलकुल परेशान नहीं करूंगा"
"मंजूर, पर शायद अभी तक हमारा ठीक से इंट्रोडक्शन भी नहीं हुआ है"
"कोई बात नहीं अभी कर लेते हैं हेलो आई ऍम विशाल, विशाल अग्निहोत्री| तो मिस मायरा "
"मायरा श्रीवास्तव"
"ओह तो मायरा श्रीवास्तव क्या आप मुझसे दोस्ती करेंगी ?" विशाल ने अपना हाथ आगे बढाते हुए कहा।
"श्योर" मायरा ने भी हाथ मिलाते हुए बोला।
"तो आप क्या करते हैं ? मिस्टर विशाल अग्निहोत्री"
"बेसिकली मैं दिल्ली से हूँ और हाल ही में मैंने अपना फोटोग्राफी का कोर्स पूरा किया है। इसके अलावा मैं म्यूजिक का स्टूडेंट रह चुका हूँ"
"म्यूजिक" ये सुनते ही मायरा के चेहरे पर मुस्कान की जगह उदासी ने ले ली।
"क्यों आपको म्यूजिक पसंद नहीं ?"
"नहीं ऐसा नहीं है और कौन-कौन है आपके घर में ?" मायरा ने बात बदलते हुए कहा।
"पापा और माँ और आपकी फ़ैमिली में ?"
"मैं और मेरी नानी माँ"
"और आपके पेरेंट्स ?"
"मेरे माँ-पापा बचपन में ही गुजर गए थे"
"ओह सॉरी ऍम रियली सॉरी"
"इट्स ओके लीजिए घर आ गया" मायरा ने घर की तरफ इशारा करते हुए कहा।
"कौन आया है मायरा ?" नानी ने पूछा|
"नानी माँ ये विशाल है, मैंने बताया था न"
"अच्छा-अच्छा वही जिसे किताबें पढने का शौंक है" नानी ने विशाल की तरफ देख कर उसे छेड़ते हुए कहा।
"नमस्ते नानी"
"खुश रहो पर मुझे समझ नहीं आ रहा ये लड़की तुम्हें घर तक कैसे ले आई इसे तो तुमसे बात करना भी पसंद नहीं" नानी ने हंसते हुए कहा।
"ओफ्फो नानी माँ ये सब मैं आपको बाद में बता दूंगी अभी आप खाने के लिए कुछ अच्छा सा बना दीजिए" मायरा ने बात काटते हुए कहा।
"अच्छा ठीक है तुम लोग बैठो मैं आती हूँ"
विशाल के जाने के बाद मायरा अपने कमरे में गई और उसने अपने बैड के निचे से एक बॉक्स बाहर निकाला उस बॉक्स में एक खुबसूरत गिटार था। उसने उस गिटार को निकला और प्यार से सहलाने लगी।
"उसे भी तो म्यूजिक से कितना प्यार था ये गिटार वो उसे उसके जन्मदिन पर गिफ्ट करना चाहती थी, मगर जिंदगी ने तो उसे इतना भी मौका नहीं दिया। उस से पहले ही उसे छीन लिया"
ये सब याद कर उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे।
और उस दिन के बाद से मायरा और विशाल में दोस्ती हो गई। विशाल रोज मिलने पर अब भी उससे पहले की तरह ही सवाल करता लेकिन फ़र्क ये था कि अब उसके सवाल मायरा को परेशान नहीं करते थे। इस तरह विशाल को मनाली में करीब बीस दिन से भी ज्यादा हो गए थे।
एक दिन रोज की तरह ही वो दोनों कैफ़े में आमने-सामने बैठे थे। मायरा अपनी किसी नई कहानी का क्लाइमेक्स लिख रही थी और विशाल चुपचाप किताब पढ़ रहा था या फिर ये कहें कि नजरें बचाकर मायरा को देखने के लिए ये एक बहाना था उसका।
तभी विशाल के मोबाइल पर अनंत का कॉल आया।
"यार विशाल और कितनी देर लगेगी ? हम यहाँ बाहर तेरा वेट कर रहे हैं"
"हाँ ठीक है आता हूँ" कह कर विशाल ने फोन रख दिया।
"मायरा मुझे अब चलना चाहिए बाहर मेरे दोस्त इंतजार कर रहे हैं हम कल मिलते हैं"
"ठीक है"
"बाय" कह कर विशाल चल गया।
उसके जाने के बाद मायरा ने देखा कि वो अपना कैमरा अपनी सीट पर ही भूल गया है। उसने कैमरा उठाया और उसे देने के लिए विशाल के पीछे बाहर निकल गई। पार्किंग एरिया में पहुँच कर उसने देखा कि विशाल अपने दोस्तों से बात कर रहा था।
"अरे यार जब तू उसे इतना पसंद करता है तो किस बात का इंतजार कर रहा है ? अब बोल भी दे उसे कि तुझे उस से प्यार हो गया है आई ऍम 100% श्योर कि वो तुझे मना नहीं करेगी" अनंत ने उसे समझाते हुए कहा।
"नहीं यार मुझे लगता है कि अभी जल्दी होगा बहुत"
"तू बेकार में इतना सोच रहा है अभी नहीं तो कभी नहीं और फिर देख खुद को इतने हेंडसम लड़के को कौन लड़की मना करेगी ?" युवराज़ ने आँख दबाते हुए कहा।
"नहीं युवी वो ऐसी नहीं है और मुझे लगता है कि अभी ये सब बताना सही नहीं है अब तुम लोग बताओ मैं क्या करूं ?" विशाल ने पुछा लेकिन उन दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया।
"तुम लोग कुछ बोल क्यों नहीं रहे और मुझे ऐसे घूर क्यूँ रहे हो" विशाल ने हैरानी से बोला।
युवी ने उसे इशारे से पीछे की और मुड़ने को कहा।
जैसे ही विशाल ने पीछे मुड़कर देखा तो मायरा ठीक उसके पिछे खड़ी थी और उसका चेहरा गुस्से से लाल था। विशाल ये देखकर घबरा गया।
"मायरा मेरी बात सुनो"
"चुप एकदम चुप" मायरा ने गुस्से से कहा।
"तुम मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे सकते हो ?, मैंने तुम्हें अपना दोस्त समझा और तुम मुझसे ये उम्मीद कर रहे हो देखो विशाल मैं एक बात तुम्हें अच्छी तरह से बता देना चाहती हूं कि मेरी ज़िंदगी में प्यार के लिए कोई जगह नहीं है और तुम अपने दिमाग में ये बात अच्छी तरह से बिठा लो। और दूसरी बात कि आज के बाद मैं तुमसे नहीं मिलना चाहती कभी भी और तुम भी ऐसी कोई कोशिश मत करना। इसे हमारी आखिरी मुलाकात समझो"
इतना कह कर मायरा विशाल के हाथ में कैमरा दे कर गुस्से से चली गई।
"मायरा मायरा मेरी बात तो सुनो" विशाल ने उसे आवाज़ लगाई लेकिन उसने नहीं सुना।
तकरीबन दस दिन बीत चुके थे। विशाल और मायरा के बीच बातचीत हुए। हालांकि शुरू में एक-दो दिन विशाल ने उस से बात करने की कोशिश की लेकिन वो कोई जवाब नहीं देती थी। कैफ़े में भी विशाल को देखकर वो वहां से चली जाती थी और फिर उसने वहां आना ही बंद कर दिया लेकिन विशाल वहां हर रोज जाता था मायरा के इंतज़ार में।
और फिर एक दिन रात के नौ बजे उसके मोबाइल पर एक कॉल आया।
"हैलो विशाल बेटा, मैं मायरा की नानी बोल रही हूं"
दूसरी तरफ़ से आवाज़ आई।
"जी नानी, बोलिए इतनी रात को आपने कॉल किया। सब ठीक तो है न ?" विशाल ने थोड़ा घबराहट से पूछा।
"नहीं बेटा, वो मायरा कहीं चली गई है। मेरा मतलब है कि वो सुबह से कहीं गई है और अब तक घर नहीं लौटी" नानी की आवाज़ में चिंता साफ दिख रही थी।
"अभी तक घर नहीं आई ?, कहाँ गयी होगी वो ?, आपने उसे फोन किया ?"
"किया था लेकिन वो अपना फोन घर पर ही छोड़ गई है"
"ऐसे कैसे वो कहीं जा सकती है कुछ हुआ था क्या ? वो किसी बात से परेशान थी ?"
"दरअसल बेटा आज उसका जन्मदिन है और वो कई सालों से अपना जन्मदिन नहीं मानती। हमेशा वो अकेले ही कहीं चली जाती है ताकि कोई उसे जन्मदिन की बधाई न दे लेकिन शाम होते ही लौट आती है। मगर आज वो अब तक नहीं आई तो मुझे लगा कि मुझे तुम्हें बताना चाहिए"
"आपने बहुत अच्छा किया नानी, आप चिंता मत कीजिए मैं मायरा को ढूंढकर लाता हूं। आप बिलकुल भी स्ट्रेस मत लीजिए मैं उसे लेकर सीधे आपके पास ही आऊंगा"
"थैंक्स बेटे"
"ओके नानी अब मैं रखता हूं"
और फिर विशाल बिना अपने दोस्तों को बताए गाड़ी लेकर मायरा को ढूंढने निकल गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो इस वक़्त कहां गयी होगी ? उसने उन सभी रास्तों पर देखा जहाँ मिले थे या जहाँ मायरा के होने की संभावना थी। लेकिन कुछ पता नहीं चला। इतने में ही 1 घण्टे से ज्यादा बीत चुका था।
फिर अचानक से उसे याद आया कि इस वक़्त टूरिस्ट्स के ज्यादा आने से कैफ़े करीब 12 बजे तक खुले रहते हैं।
"ओह गॉड मैं ये कैसे भूल गया, सबसे इम्पोर्टेन्ट जगह" उसने फटाफट कैफ़े की तरफ गाड़ी घुमाई।
जब वो कैफ़े के नज़दीक पहुंचा तो बाहर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। उसे कुछ समझ नहीं आया।
उसने वहीं गाड़ी पार्क की और उतर कर तेज़ कदमों से कैफ़े की ओर बढ़ने लगा।
नज़दीक पहुंचने पर उसे एक तेज़ झटका लगा। पूरा कैफ़े आग की लपटों से घिरा हुआ था और लोग चिल्ला रहे थे।
एक पल के लिए विशाल को कुछ समझ में नहीं आया फिर उसने जल्दी से भीड़ में जाकर मायरा को तलाश करना शुरू किया लेकिन उसे वो कहीं नहीं दिखी। अचानक उसने कैफ़े के मालिक को देखा जो सदमे और दुख से रो रहा था। उसने जल्दी से उसके पास जाकर पूछा
"ये सब कैसे हुआ काका ?, ये आग"
"पता नहीं बेटा अचानक से कैसे ये सब " उसने बड़ी मुश्किल से कहा।
"अच्छा काका क्या मायरा यहां आई थी ? वो लड़की जो लास्ट वाली टेबल पर बैठती है। उसे देख आपने ?"
"पता नहीं बेटा हां वो आई तो थी तुम देखो यहीं कहीं होगी वो"
विशाल ने उनसे ज्यादा कुछ पूछना सही नहीं समझा। पर वो मायरा को सब जगह देख चुका था वो भीड़ में कहीं नहीं थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी उसकी नज़र कैफ़े के पिछले भाग में लगे कांच के शीशे पर पड़ी। उसने जल्दी से वहां पहुँचकर अंदर झांका।
उसने देखा कि मायरा वहीं टेबल के पास नीचे बेहोश पड़ी है। उसने जल्दी से चारों तरफ अंदर जाने का रास्ता ढूंढना शुरू किया। पीछे भीड़ में से लोग उसे वापिस आने के लिए बुला रहे थे। लेकिन उसके सिर पर तो जैसे जुनून सवार था।
किसी तरह बहुत कोशिश के बाद वो कैफ़े के दरवाजे से अंदर पहुंचने में कामयाब हो गया। लेकिन अभी भी मायरा उस से दूर थी। उसने एक अधजली चेयर को उठाया और उस से आग से बचते हुए वो किसी तरह उसके पास पहुँचा।
"मायरा उठो" उसने मायरा का चेहरा थपथपाते हुए कहा। लेकिन लगता था वो धुंए से पूरी तरह बेहोश हो चुकी थी।
विशाल ने तुरंत एक टेबल कवर में उसको लपेट और जैसे ही उसे उठाने लगा उसे मायरा की डायरी दिखी जो फर्श पर पड़ी थी। उसने जल्दी से उसे उठाया और मायरा को गोद मे लेकर बाहर आ गया।
"प्लीज़ कोई डॉक्टर को बुलाइए" उसने चिल्लाकर कहा।
वो उसे गाड़ी की तरफ ले गया। तभी फायर ब्रिगेड और एम्बुलेंस भी आ गई। दो लोग डॉक्टर को लेकर जल्दी से मायरा और विशाल के पास आए।
डॉक्टर ने मायरा का चेकअप किया।
"घबराने वाली कोई बात नहीं है बस धुंए से सांस अटक गई थी इस लिए बेहोशी आई है। अच्छा हुआ जो आप इन्हें वक्त रहते निकाल लाए। मैंने इंजेक्शन दे दिया है ये थोड़ी देर में होश में आ जाएंगी। आप इनका ख्याल रखिए"
"जी डॉक्टर, थैक्स" विशाल ने बोला।
उसने मायरा की तरफ़ देखा। आज तो वो बुरी तरह डर गया था कि अगर मायरा को सच में कुछ हो जाता तो इस ख्याल से ही उसकी आँखों में आंसू आ गए।
विशाल उसे लेकर तुरंत घर आ गया। उसे बेहोश देख कर नानी घबरा गई।
"ये सब क्या हुआ है विशाल, मायरा ऐसे बेहोश क्यों है ?"
"मैं सब बताता हूं नानी" विशाल ने मायरा को बैड पर लिटाते हुए कहा।
वो और नानी कमरे से बाहर आ गए और विशाल ने कैफ़े में जो कुछ भी हुआ वो नानी को बता दिया।
"अब बाकी के सवाल आप अपनी मायरा से पूछिएगा"
"मैं किस मुँह से तुम्हारा शुक्रिया करूँ बेटा, तुमने आज मेरे जीने के इकलौते सहारे को बचाया है। मैं हमेशा तुम्हारी एहसानमंद रहूंगी"
"ये तो गलत बात है नानी, वो क्या सिर्फ आपकी ही सबकुछ है, वो मेरी भी दोस्त है। तो अब आप रोना बन्द कीजिए। अब वो बिलकुल ठीक है"
"वो टेबल पर बैठी रोए जा रही थी। आज उसके आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसने खिड़की से बाहर देखकर अपना ध्यान बांटने की कोशिश की और तभी एक आवाज़ सुनाई दी।
'मायरा '
और उसने मुड़कर देखा तो वो उसके सामने खड़ा था। वैसी ही मुस्कान के साथ जैसे वो हर दिन उस से मिलता था। एक पल के लिए उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने उसे छूने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया वो उससे दूर जाने लगा और तभी एकाएक अंधेरा छाने लगा और लोगों में अफरातफरी मच गई और जब उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई तो देखा आग लगी हुई थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने उठने की कोशिश की लेकिन ऐसे लगा कि कोई उसका दम घोंट रहा है। उसने हाथ बढ़ाकर कर उसे आवाज़ लगानी चाही लेकिन तभी वो गायब हो गया।"
"नहीं " वो एक दम डर से चिल्लाई और जाग गयी।
आवाज़ सुनकर विशाल और नानी दौड़कर उसके कमरे में आए।
"मायरा क्या हुआ मेरी बच्ची ? तुम ठीक हो" कहकर नानी ने उसे गले लगा लिया।
वो कुछ नहीं बोल रही थी बस रोए जा रही थी।
फिर अचानक उसकी नज़र वहां खड़े विशाल पर पड़ी और उसने नानी की तरफ सवालिया नज़र से देखा।
"जब तू इतनी देर तक घर नहीं आई तो मैंने ही इसे फोन किया था और तुझे आग से भी इसी ने बचाया है" नानी ने बताया।
मायरा ने विशाल की तरफ इस नज़र से देखा जैसे ये सब उसका कुसूर था।
"अच्छा अब तुम लोग बात करो मैं कुछ खाने के लिए लाती हूं, मायरा को भूख लगी होगी। है न ?"
मायरा नानी की तरफ देख कर मुस्कुरा दी।
उनके जाने के बाद मायरा ने विशाल की ओर देखा।
"देखो थैंक्स तो तुम बोलना भी मत और इस बार मुझसे कोई हमदर्दी की उम्मीद मत रखना। क्या समझती क्या हो तुम अपने आप को ? कौन सी दुनिया में खोई रहती हो कि अपने ऊपर आने वाली मुसीबत का ध्यान नहीं रहता। तुम्हें पता है नानी कितना घबरा गयीं थी तुम्हें इस हालत में देख कर। और अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या हो " विशाल गुस्से में बोलते-बोलते अचानक से रुक गया।
"मैं जानती हूं तुम मुझसे नाराज़ हो लेकिन जो कुछ भी हुआ उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी। और उस दिन जो कुछ भी मैंने तुम्हें बोला वो गुस्से में बोला था। उसके लिए आई एम रियली सॉरी" मायरा ने बड़ी मासूमियत से कहा।
तभी नानी कमरे में खाना और केक लेकर आई।
"देखो मायरा तुम अपना जन्मदिन नहीं मानती लेकिन फिर भी मैं हमेशा केक बनाती हूँ इस उम्मीद से कि कभी तो तुम इसे काटोगी। लेकिन आज मैं खुद चाहती हूं कि अपने दोस्त के लिए तुम इसे काटो। उसने तुम्हारी जान बचाई है इसके बदले तुम इतना तो कर ही सकती हो" नानी ने मायरा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"ठीक है नानी मां आप कहती हैं तो मैं जरूर करूंगी ये"
और इस तरह नानी विशाल के बहाने से मायरा का जन्मदिन मनाने में सफल हो गईं। उन्हें खुशी थी कि विशाल के आने से मायरा में कुछ तो बदलाव हुआ था।
"विशाल बेटा आज रात तुम यहीं रुक जाओ, सुबह चले जाना अभी वक़्त ज्यादा हो गया है और मैं जानती हूं कि तुम भी मेरी बात नहीं टालोगे"
"ठीक है नानी"
"चलो मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखाती हूं"
सुबह जब मायरा उठी तो उसे उसके दरवाजे पर एक कागज़ मिला। जिसमें लिखा था कि
"पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाओ और जो कुछ भी मैंने कहा उसके लिए मुझे माफ़ कर देना। मैं आज ही दिल्ली वापिस जा रहा हूँ"
ये पढ़कर मायरा के चेहरे पर उदासी छा गई। वो फिर से अकेली हो गई थी।
"विशाल चला गया ? बिना बताए" नानी ने चाय देते हुए पूछा।
"हां, हमेशा के लिए। वो तो यहां घूमने आया था, उसे तो जाना ही था। और अच्छा ही है कि मेरी मनहूस किस्मत से वो दूर चला गया" ये कहकर मायरा उठी और बाहर चली गयी।
विशाल को मनाली से आए हुए छः महीने बीत चुके थे। उसने बहुत कोशिश की मायरा को भुलाने की लेकिन वो उसे अपने दिल से निकाल ही नहीं पा रहा था। इस बीच उसने अपना ध्यान हटाने के लिए अपने पापा का बिजनेस भी जॉइन कर लिया था। मगर फिर भी वो कहीं न कहीं से उसके ख्यालों में आ ही जाती थी।
इधर मायरा ने फिर से अकेलेपन को अपना साथी बना लिया था क्योंकि उसका मानना था कि प्यार की अब उसकी जिंदगी में कोई जगह नहीं है और न ही उसे इसका हक़ है। हालांकि वो भी विशाल की बक-बक को बहुत मिस करती थी।
"विशाल बेटा क्या बात है ? मैं देख रहा हूँ जबसे तुम दिल्ली वापिस आए हो तुम उदास से रहते हो। आखिर बात क्या है ? अगर कोई प्रॉब्लम है तो बताओ मुझे" मि वरदान ने विशाल से पूछा।
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है पापा"
"मैं तुम्हारा बाप हूं, बचपन से जानता हूं तुम्हें। जब तक घर को अपनी बातों से सिर पे न उठा लो तुम्हें चैन नहीं आता। और आजकल तुम किसी से सही से बात भी नहीं कर रहे हो। देखो जो कुछ भी साफ साफ बताओ क्योंकि छिपाने से कोई फायदा नहीं"
ये सुनकर विशाल उनके गले लगकर रोने लगा और उन्हें सारी बात बता दी।
"ओह अब समझ में आया जनाब इश्क़ कर बैठे हैं। अरे लेकिन इसमें दुखी होने वाली कौनसी बात है ? तुम्हे तो खुश होना चाहिए"
"लेकिन पापा वो मुझसे प्यार नहीं करती इनफैक्ट वो तो ये कहती है कि वो अब किसी से प्यार नहीं कर सकती। अब आप ही बताइए मैं ऐसे में कैसे खुश हो सकता हूँ"
"हम्म्म्म बात तो सही है। मगर बेटा उसके ऐसा कहने के पीछे कोई बड़ी वजह भी तो हो सकती है। क्या तुमने कभी उस से पूछा ?"
"नहीं, दरअसल उसने शर्त रखी थी कि मैं उसकी पर्सनल लाइफ से जुड़ा कोई सवाल न करूं"
"तो कोई बात नहीं तुम फिक्र मत करो। तुम एक काम करो वापिस मनाली जाओ और उस से अपने दिल की बात बोल डालो। और अगर वो न करे तो उस से उसकी न कि वजह जानने की कोशिश करो। मुझे लगता है कि इतने सब के बाद वो तुम्हें जरूर बता देगी और फिर क्या पता तुमसे दूर रह कर उसने अपना इरादा बदल लिया हो। तुम एक बार कदम आगे बढ़ा कर तो देखो" पापा ने उसे समझाया।
"थैंक्स डैड, आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं" उसने खुशी से कहा।
अगले ही दिन विशाल मनाली जा पहुंचा। उसने होटल पहुंचकर मायरा को कॉल किया।
"हेलो मायरा" उसने हिचकिचाहट से कहा।
"विशाल ?" इतने दिनों बाद विशाल की आवाज़ सुनकर वो खुश भी थी और हैरान भी।
"वो मायरा मैं कहना चाहता था कि मैं तुमसे मिलना चाहता हूं बस एक बार तो क्या तुम प्लीज़"
"हां जरूर लेकिन तुम इस वक़्त हो कहाँ"
"मैं यहीं मनाली मैं हूँ"
"मनाली ? तुम यहाँ कब आए ?"
"आज ही और अब मैं बस तुमसे एक बार मिलना चाहता हूं"
"ठीक है बताओ कहां मिलना है ?"
"पुरानी लेक के पास आज शाम को मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा"
"ठीक है"
फोन रखने के बाद विशाल को ऐसा लग जैसे उसके दिल से कोई बोझ उतर गया हो वरना अब तक तो उसे यही डर था कि मायरा उस से मिलना चाहेगी भी या नहीं।
बहुत ही खूबसूरत नजारा था वहां का। सूरज लगभग डूब चुका था और हल्का-हल्का छाया अंधेरा उस शाम को और भी रंगीन बना रहा था।
उसने सब इंतेज़ाम कर लिया था। बस अब देर थी तो उसके आने की। वो इंतज़ार करने लगा।
अचानक उसके पीछे से आवाज़ आई
"विशाल"
विशाल ने पीछे मुड़कर देखा। वो आज हल्के आसमानी चूड़ीदार सूट में बेहद खूबसूरत लग रही थी। हवा में लहराते वही घने काले बाल। विशाल को लगा जैसे वो एक बार फिर यहीं अपना दिल खो बैठेगा।
"कहाँ खो गए ?" मायरा ने उसके चेहरे के सामने हाथ हिलाते हुए कहा।
"कहीं नहीं, बस यूं ही"
"तुम्हें यहां देखकर बहुत अच्छा लग रहा है" मायरा ने उसके गले लगते हुए कहा। वो दोनों इस तरह शायद पहली बार मिल रहे थे।
"उम्मीद तो मुझे भी नहीं थी कि मैं यहां आऊँगा" विशाल ने बोला।
"पर आ गए न"
"हां किस्मत हमें खींच ही लाती है तुम बैठो न" उसने उसे चेयर ऑफ़र करते हुए कहा।
"थैंक्स, वैसे पूछ सकती हूं कि इतने इतंजाम किस खुशी में ?"
"अरे नहीं अब तुमसे मिलने से बढ़ कर क्या हो सकता है तुम इतनी खास दोस्त हो मेरी"
"हां ये तो है लेकिन तुम उस दिन बिना बताए चले गए, इसके लिए मैं तुमसे नाराज़ हूं"
"हां मैं मानता हूं, मुझे ऐसे नहीं जाना चाहिए था। मुझे माफ़ कर दो"
"तो क्या प्लान है ? आगे का"
"प्लान कुछ नहीं बस तुम्हारे साथ वक़्त बिताना है और तुम्हें कुछ बताना है"
"अच्छा तो जल्दी से बताओ"
"समझ नहीं आ रहा तुमसे कैसे कहूँ ?"
"अरे इतना क्यों सोच रहे हो बोलो भी"
"ओके मायरा मैं जो तुमसे कहने जा रहा हूँ प्लीज़ उसे ध्यान से सुनना और समझने की कोशिश करना मैं मैं तुमसे प्यार करता हूँ बेहद प्यार और इस बात का मुझे तब एहसास हुआ जब मैं तुमसे दूर हुआ। हालांकि मैं शुरू से ही तुम्हें पसन्द करता था, तुम्हारी सादगी, तुम्हारी शायरी, तुम्हारी बातें। उस दिन जब तुमने कहा कि तुम किसी से प्यार नहीं कर सकती तो मैंने फैसला किया कि मैं अब कभी तुम्हें इस बात का एहसास नहीं होने दूंगा और इसीलिए मैं तुम्हें बिना बताए चला गया। लेकिन घर जाकर भी तुम मेरे ज़ेहन से एक पल के लिए दूर नहीं हुई। मैं जहां भी सोचता था सिर्फ़ तुम होती थी। जहां भी देखता था तुम होती थी। मैंने लाख कोशिश की तुम्हें भुलाने की लेकिन मैं नाकाम रहा। और बहुत हिम्मत करने के बाद मैं तुमसे यहां मिलने आ सका हूं। मैं नहीं जानता कि तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो मगर मैं जो भी कह रहा हूँ दिल से कह रहा हूँ और ये सब सच है। अब तुम्हारा जो भी फैसला होगा वो मुझे मंजूर है"
एक पल के लिए दोनों शांत हो गए। फिर मायरा ने खामोशी तोड़ी।
"विशाल मैं तुम्हारे इस एहसास की इज़्ज़त करती हूं क्योंकि मैं अब जानती हूं कि तुम कितने अच्छे इंसान हो। तुमने इतनी बार बिना किसी रिश्ते के मेरी जान बचाई है और तुम जैसा दोस्त किस्मत वालों को मिलता है। मैंने तुम्हारे आगे शर्त रखी थी कि तुम कभी मेरी ज़िंदगी से जुड़ा कोई सवाल नहीं पूछोगे क्योंकि तब मुझे लगा था कि तुम भी और लड़कों की तरह सिर्फ टाइम पास करने आए हो लेकिन अब जब मैं जानती हूं कि तुम एक खूबसूरत दिल रखते हो तो मुझे लगता है कि अब मुझे तुम्हें अपने इंकार की वजह बता देनी चाहिए"
"कैसी वजह ?"
मायरा मुस्कुरा दी।
" विहान विहान था उसका नाम। कॉलेज का सबसे पॉपुलर और हैंडसम दिखने वाला लड़का। वो म्यूजिक का स्टूडेंट था और मैंने लिटरेचर में एडमिशन लिया था। ये बात आज से 5 साल पहले की है जब मैंने दिल्ली के कॉलेज में ग्रैजुएशन के लिए कदम रखा। वो मुझसे एक साल सीनियर था। जितना अच्छा वो दिखने में था उतना ही म्यूजिक में भी। संगीत उसका पैशन था। कॉलेज की तकरीबन सारी लड़कियां उसपर फिदा थीं।
एक दिन किसी ने क्लास में आकर बताया कि सभी स्टूडेंट्स को हॉल में बुलाया गया है एक जरुरी मीटिंग के लिए। मुझे भी कुछ समझ नहीं आया और जब हॉल में पहुंचे तो देखा कि वहां एक लड़का स्टेज पर अपने म्यूजिक बैंड के साथ सबसे वाहवाही बटोर रहा है। हॉल में सब तरफ विहान विहान की आवाज़ें गूंज रही थी। और फिर उसने गाना शुरू किया। हालांकि उसकी आवाज़ बहुत ही सुरीली थी और कोई भी उस पर वाह वाह कर उठता लेकिन मुझे उस भीड़ में खड़े रहने से ज्यादा जरूरी अपना लेक्चर लगा। मैं अकेली ही वहां से निकल आई। और वो मेरी लाइफ का सबसे सही फैसला था" मायरा हंसने लगी।
"फिर ?"
"फिर जब शाम को मैं होस्टल जा रही थी तो रास्ते में एक गाड़ी आकर रुकी और आवाज़ आई
"ओह मैडम, गाना अच्छा नहीं लगा था तो बता देती यूं बीच मे छोड़कर बेज़्ज़ती तो मत करतीं आप"
मैंने जब देखा तो वो और कोई नहीं विहान ही था। मैंने कोई जवाब नहीं दिया और आगे चल दी। वो गाड़ी से उतरकर पीछे आ गया।
"अरे उस 2000 स्टूडेंट्स की भीड़ में से अकेली आप मेरी परफॉर्मेंस छोड़कर गयीं, अब ये तो बता दीजिए कि क्या कमी थी गाने में ?"
"देखिए मिस्टर"
"विहान सब मुझे विहान के नाम से जानते हैं" उसने मेरी बात काटकर कहा।
"देखिए आप जो भी हैं मुझे न तो आपके गाने में कोई इंटरेस्ट है और न ही आपकी बातों में। अब आप मेरा रास्ता छोड़िए"
"ठीक है छोड़ देते हैं लेकिन एक शर्त है। आपको मुझे बताना पड़ेगा कि आप वहां से क्यों गयी ?"
"अजीब आदमी हैं आप। मैं आपको कह रही हूं कि मुझे आपमें कोई इंटरेस्ट नहीं है और आप है कि वजह पूछ रहे हैं। तो सुनिए मैंने यहां एडमिशन अपनी पढ़ाई के लिए लिया है किसी की परफॉर्मेंस देखने के लिए नहीं"
"अरे आप तो गुस्सा कर गईं। मैंने तो सिर्फ इसलिए पूछा था ताकि मैं अपनी गलती को सुधार सकूँ"
मैंने उसे घूरकर देखा।
"अच्छा ठीक है आप मत सुनिए मेरा गाना। पर इतना तो बता सकती हैं कि आप किस स्ट्रीम की स्टूडेंट हैं ?"
"मुझे आपसे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं है और बेहतर होगा आप यहां से जाएं" क्योंकि चलते चलते हम काफ़ी दूर निकल आये थे।
"ठीक है अगर आप बात नहीं करना चाहती तो मैं चला जाता हूँ मगर याद रखिएगा एक दिन आप भी मेरा गाना जरूर पसन्द करेंगीं बाय"
उसके जाने के बाद मुझे बहुत गुस्सा आया।
"अगले दिन सुबह जैसे ही मैं कॉलेज में दाखिल हुए तो कुछ सीनियर लड़कों ने मुझपर तरह तरह के कमेंट करने शुरू कर दिए उनमें से कई ने मेरी रैगिंग करने की बात भी की। लेकिन फिर कुछ देर बाद ही वो सभी मेरे पीछे से मुड़कर वापिस चले गए।
जब मैंने सामने देखा तो विहान खड़ा था। मुझे लगा कि शायद ये कोई इतेफाक़ होगा मगर बाद में मुझे पता लगा कि कॉलेज के सभी लड़के विहान से डरते हैं क्योंकि वो कोई भी गलत हरकत बर्दाश्त नहीं करता है। ये सुनने के बाद मेरे दिल में उसके लिए कहीं न कहीं रीस्पेक्ट की जगह बन गयी थी।
अब वो मुझे उतना बुरा नहीं लगता था जितना पहले दिन लगा था। दरअसल वो बुरा था ही नहीं बस मैंने ही समझने में गलती कर दी थी। लेकिन मैं ये नहीं जानती थी कि उसके दिल में भी मेरे लिए एक खास जगह बन चुकी थी। क्योंकि मेरे ख्याल से तो उस के लिए कॉलेज में तमाम खूबसूरत लड़कियां मौजूद थीं।"
"और फ़िर एक दिन मेरे कुछ शरारती दोस्तों को मेरे साथ एक प्रेंक करने की सूझी। हालांकि उन्होंने अपनी पूरी तैयारी की थी लेकिन उन्हें नहीं मालूम था कि ये प्रेंक इतना सीरियस हो जाएगा।
उन्होंने मेरी आँखों पर पट्टी बंधी और बोला कि वो मुझे कुछ दिखाना चाहते हैं। मैंने भी कुछ नहीं कहा। और इस तरह वो मुझे कॉलेज की टैरेस पर ले गए और मुझे दीवार पर खड़ा कर दिया। उन्हें लगा था कि जब मैं ये देखूंगी तो डर जाऊंगी मगर इस से पहले वो लोग कुछ करते मैंने अपने पैर आगे टैरेस से नीचे बढ़ा दिए।"
"व्हाट ? ? ?" विशाल ने चौंकते हुए कहा।
"हां लेकिन मैं नीचे नहीं गिरी। जैसे ही मैंने अपनी आंखों से पट्टी उतारी तो देखा कि विहान ने मुझे गोद में उठा रखा है। जब मुझे सारा मामला समझ आया तो मैं खुद को इस तरह देख कर हड़बड़ाहट में नीचे उतर गई। इतने में मेरे सब दोस्त भी नीचे आ गए। पूरा कॉलेज इक्ट्ठा हो चुका था और उसके बाद विहान ने जो क्लास लगाई उन सबकी वो देखने लायक थी। उसे यूं उन सबको डांटते हुए देख मुझे यूं लगा जैसे कोई मेरा अपना मेरे लिए लड़ रहा हो। बचपन से कोई था ही नहीं जो इस तरह मेरे लिए रिएक्ट करता सिवाय मेरी नानी मां के।
"और आप मैडम" उसने मेरी तरफ देखते हए बोला।
"दूर रहिए ऐसे बेवकूफ़ दोस्तों से" उसने गुस्से में बोल तो मैंने चुपचाप सिर हिला दिया।
उस दिन के बाद वो हमेशा मुझे अपनी नज़र में रखता था। मैं कहीं छोटी सी मुसीबत में भी होती वो वहीं पहुंच जाता था। और इस तरह हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए।
जब से उसे पता चला था कि मुझे लिखने का शौंक है वो अपने लिखे हुए गाने सबसे पहले मुझे दिखाता और कहता कि मैं उन्हें चेक करूँ कि वो सही है या उसमें बदलाव की जरूरत है।
कभी-कभी वो मुझे कॉलेज से होस्टल छोड़ने भी जाता था और अब मुझे भी उसकी ये फिक्र अच्छी लगने लगी थी। सबके लिए हम भले ही दोस्त थे लेकिन हम दोनों ही एक दूसरे से मन ही मन प्यार करने लगे थे।"
उसे मुझे सरप्राइज देना पसन्द था। एक बार मेरे जन्मदिन पर उसने मुझे फुटबॉल ग्राउंड में बुलाया रात को। मुझे कुछ भी नहीं पता था कि उसने मुझे क्यों बुलाया है ? और जैसे ही मैं वहां पहुंची उसने मुझे अपने दोस्तों के साथ वहाँ लाइट्स, केक और म्यूजिक के साथ पहुंचकर चौंका दिया। मैं बहुत खुश थी और तभी उसने एक किताब मेरी और बढ़ाई और ये देखकर मेरी खुशी का ठिकाना न रह कि वो किताब मेरे नाम से पब्लिश हुई थी।
उसने मुझे बताया कि किस तरह उसने मेरी शायरी वाली डायरी चुराकर वो बुक पब्लिश करवाई।
और तब उसने मुझसे वादा लिया कि मैं कभी लिखना नहीं छोडूंगी।"
"और इस तरह डेढ़ साल बीत गया। मैं सेकेंड ईयर में हो चुकी थी और वो फाइनल ईयर में। अब हम ज्यादातर वक़्त एक दूसरे के साथ बिताते थे। मैं नानी से हमेशा विहान की बातें करती थी और उस से नानी के बारे में। नानी और विहान की बात भी अक्सर फोन पर होती थी। अब नानी भी उसे पसंद करने लगीं थीं।
और एक दिन वो मेरी आंखे बन्द कर के हॉल में ले गया। उसने बताया कि आज उसका जन्मदिन है। सभी स्टूडेंट्स उसका बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए वह मौजूद थे। और तभी उसने इन सबके सामने अपने घुटनों पर बैठकर मुझे प्रपोज़ कर दिया।
"मैं अपनी ज़िंदगी का हर साल अब से तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, क्या तुम मेरा साथ दोगी मायरा ?"
और चारों तरफ से 'से येस-से येस' की आवाज़ें आने लगीं। मैं हैरान थी ये सब देखकर, मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि ये सब सच है या एक सपना और फिर मैंने हाँ कर दी।
उसने रिंग मेरी उंगली में पहना दी। वो दिन मेरी ज़िन्दगी का सबसे ख़ुशनुमा दिन था।
उसके बाद से जैसे सब बदल गया। मैं कॉलेज में सबके लिए खास बन गई। विहान सब का चहेता था और मैं उसकी पसंद इसलिए अगर किसी कोई भी काम होता तो वो मुझसे सिफारिश के लिए आता।"
ये सोचकर मायरा हंसने लगी। लेकिन फिर एकाएक ख़ामोश हो गई।
"फिर क्या हुआ मायरा ?" विशाल ने उत्सुकता से पूछा।
"और मेरी खुशियों को नज़र लग गई। मेरी एक छोटी सी गलती मेरे लिए ज़िंदगी भर का नासूर बन गयी" और उसकी आँखों मे आंसू साफ झलक रहे थे।
"क्यों ऐसा क्या हुआ था ?"
"उस शाम मेरी दोस्त राधिका ने अपने घर पर एक पार्टी रखी थी और उसने मुझे कहा कि मैं भी आऊं। उसके बहुत ज़ोर देने पर मैं भी चली गयी। पार्टी में उसके और भी बहुत से फ्रेंड्स थे और उनमें से एक था अरनव जो विहान का बहुत अच्छा दोस्त था। वो एक बहुत अच्छा इंसान था और विहान की तरह ही मेरी भी बहुत इज़्ज़त करता था।
उस रात क़रीब पार्टी 1 बजे तक चली और फ़िर हम सब घर के लिए निकले। क्योंकि मैं होस्टलर थी और होस्टल राधिका के घर से काफी दूर था तो अरनव ने मुझे होस्टल तक छोड़ने के लिए पूछा। इतनी रात को अकेले जाने से अच्छा मुझे उसके साथ आना सही लगा और मैंने हां कर दी। उसने रास्ते में मुझे बताया कि वो राधिका से बहुत प्यार करता है लेकिन कभी उसे बोल नहीं पाया और इस मामले में मेरी मदद चाहता है। उसने बताया कि कल सुबह वो उसे प्रपोज़ करने वाला है और कहा कि अगर बात नहीं बनती है तो मैं सिचुएशन को संभाल लूं।
और इन सब में मैं ये भूल गयी कि मेरा फोन पिछली शाम से बैटरी न होने के कारण बन्द पड़ा है और बस यही भूल हो गई थी मुझसे।
हम लोग जैसे ही होस्टल के सामने पहुंचे मैंने देखा कि विहान अपनी गाड़ी के साथ वहां खड़ा था। उसे यूं इतनी रात को देखकर मैं हैरान हो गई।
मैं उतरकर उसके पास गई और पूछा।
"विहान तुम इस वक़्त यहां क्या कर रहे हो ?"
"कहां थी तुम ? और इस वक़्त अरनव के साथ कैसे ?"
"अरे वो मैं राधिका के घर पार्टी में थी और अरनव बस मुझे ड्राप करने आया था"
"क्या हुआ विहान सब ठीक है ?" अरनव ने पूछा तो विहान ने उसे हाथ से जाने का इशारा किया। वो अपनी गाड़ी लेकर चल गया।
"तुम्हारा फोन कहां है ?" उसने फिर से उसी सख़्त लहज़े में मुझसे पूछा।
"फोन तो वो तो बैटरी न होने के कारण ऑफ है, लेकिन बात क्या है विहान। तुम कुछ बताओ तो"
"बात थी लेकिन अब कोई बात नहीं है" उसके चेहरे पे गुस्सा साफ झलक रहा था।
"मतलब ?"
"मतलब ये कि मैं तुम्हें कल शाम से फोन लगा रहा हूँ लेकिन नहीं लग रहा है। जानती हो क्यों ? क्योंकि मैं तुम्हें घर ले जाकर मॉम-डैड से मिलवाना चाहता था। लेकिन तुम्हें तो कोई फिक्र ही नहीं है। एक बार किसी के फोन से मुझे बता भी सकती थी कि तुम राधिका के घर पर हो। कल शाम से मैं यहीं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ" उसका ये गुस्सा देखकर मैं डर गई।
"आई एम सॉरी मैं भूल गयी थी रियली सॉरी विहान, प्लीज़ तुम ऐसे गुस्सा मत करो"
"ठीक है, मैं गुस्सा नहीं करूंगा लेकिन अब मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है"
"विहान ये तुम क्या कह रहे हो ?" मैं विहान के उस तरह के बर्ताव से हैरान थी क्योंकि शायद ये पहली बार था जब वो ऐसे बात कर रहा था।
उसने गुस्से में मेरी कोई बात नहीं सुनी और वो वहां से चल गया। मुझे अंदर से बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन मुझे विश्वास था कि सुबह तक सब ठीक हो जाएगा।
इसकी मैं भी चुपचाप होस्टल चली गई।"
"अगली सुबह जब मैं कॉलेज पहुंची तो मेरी नज़रें विहान को ढूंढ रही थी और तभी एकदम से अरनव मेरे सामने गुलाब लेकर आ गया।
"ये सब क्या है अरनव" मैंने इर्रिटेट होते हुए बोला।
"अरे यार कल यूं ही बेवजह तुम्हारे और विहान के बीच अनबन हो गई। ये उसकी सोलुशन है। तुम जाकर उसे ये गुलाब दे दो और फिर देखो वो कैसे एक सेकेंड में मान जाता है"
"मुझे नहीं लगता"
"अरे ट्रस्ट मी उसका गुस्सा बहुत कम टाइम के लिए होता है और फिर तुम उसे फिल्मी अंदाज़ में ये गुलाब देना" उसने अपने घुटनों पर बैठते हुए प्रपोज़ करने की एक्टिंग करते हुए कहा।
और तभी मैंने देखा कि विहान हमें दूर से खड़ा गुस्से से देख रहा था। मुझे लगा कि बात और न बिगड़ जाए इसलिए मैं उसके पीछे भागी पर इस से पहले मैं उसके पास पहुंचती वो गाड़ी लेकर कॉलेज से बाहर निकल गया। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ ? फिर मैंने एक कागज पर कविता लिखी और उसके आने का इंतज़ार करने लगी। मुझे यकीन था कि जब मैं उसे ये दूंगी तो इसे पढ़कर वो अपना गुस्सा भूल जाएगा। मगर " कहते कहते मायरा रुक गई।
"मगर क्या ?"
"मैं शाम तक उसका इंतजार करती रही लेकिन वो नहीं आया। उसका इंतजार करते-करते 9 बज गए और गेटकीपर ने मुझसे कहा कि अब मैं जाऊं क्योंकि अब गेट बन्द करने पड़ेगा। मैं वहां से होस्टल आ गई। लेकिन न ही उसका कोई फोन आया न ही कोई मैसेज। और तो और उसका फोन भी बंद था। मैं अंदर ही अंदर घबरा गई थी। इंतज़ार करते करते रात के 2 बज गए। तभी मेरे फोन पर एक अननोन नम्बर से कॉल आया। वो फोन सिटी हॉस्पिटल से था। फोन करने वाले ने बताया कि उन्हें कार एक्सीडेंट में एक आदमी की लाश मिली है। कार का नम्बर सुनकर मेरे होश उड़ गए। वो विहान की ही कार थी"
मुझे लगा कि जैसे मेरी सारी दुनिया एक पल में तबाह हो गई। मुझे मेरे कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने जल्दी से वॉर्डन को सब बताया और हॉस्पिटल के लिए निकल गयी।
मैं जब हॉस्पिटल पहुंची तो वहां विहान के मॉम डैड पोस्टमार्टम रूम के बाहर बैठे थे। उन्हें देख कर मैं बुरी तरह डर गई। जब उसकी मां ने मुझे देखा तो वो गुस्से से पागल हो गईं।
"तुम्हीं हो न वो जिसने मेरे बेटे को मुझसे छीना है क्या चाहती थी तुम क्या लेने आई हो अब यहां मर चुका है वो सुना तुमने मर चुका है वो" उनके ये शब्द सुनकर मैं सुन्न रह गई।"
मायरा की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे।
"वो बोलती रहीं उनकी नज़र में मैं उनके बेटे की मौत की जिम्मेवार थी और एक मायने में ये सच ही था।
"तुमने मेरे बेटे को मारा है अब चली जाओ इस से पहले की मैं कुछ कर बैठूं"
"आंटी प्लीज़ मुझे एक बार विहान को देख लेने दीजिए प्लीज़ आण्टी" मैं उनके सामने गिड़गिड़ाते हुए घुटनों पर बैठ गई।
"खबरदार जो अब मेरे बेटे के नज़दीक भी गयी जीते जी उसे छोड़ा नहीं अब मरने के बाद भी तू उसके पास जाए ये मैं नहीं होने दूंगी। तुझे कोई हक नहीं है उसका चेहरा देखने का। और अगर तुझे जरा सा भी उस से प्यार था तो अभी के अभी यहां से चली जा। मुझे तेरी शक्ल भी नहीं देखनी।" और मेरे लाख मिन्नतें करने के बाद भी वो नहीं मानी। मुझे मुझे विहान की लाश तक देखने को नहीं मिली"
ये कहते हुए मायरा फूट-फूट कर रोने लगी।
विशाल ने उठकर उसे गले से लगा लिया। उसकी आंखें भी नम हो चुकीं थीं।
"विहान की मौत के बाद मैं पूरी तरह टूट चुकी थी। मेरे दिल में हमेशा विहान की मौत का बोझ रहता था। मैं ना कॉलेज जाती थी और न किसी से मिलती थी। ज़िंदगी जैसे ख़त्म हो गई थी मेरे लिए। इस हादसे को एक महीना बीत चुका था। तभी मुझे मेरी दोस्त ने बताया कि बाहर विहान के कुछ दोस्त मुझसे मिलने आए हैं।
मैं बड़े बेमन से उनसे मिलने गई। उनमें अरनव भी शामिल था।
"मायरा जो कुछ भी हुआ हम सब जानते हैं कि उसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है लेकिन तुम खुद के साथ ऐसा कर के विहान को धोखा दे रही हो। क्या विहान खुद कभी चाहेगा कि तुम अपनी ज़िंदगी ऐसे जिओ ?"
मैंने खामोश चेहरे से उन सबकी ओर देखा।
"मायरा पूरा कॉलेज तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है क्योंकि सब जानते हैं कि अगर तुम आओगी तो कहीं न कहीं उन्हें विहान अपने बीच दोबारा से मिल जाएगा। प्लीज़ मायरा अगर तुम सच में हमे अपना दोस्त मानती हो तो फिर से कॉलेज आना शुरू कर दो"
मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था लेकिन उन सबके ज़ोर देने पर मैंने हां कर दी।
और जब मैं कॉलेज गयी तो मैं ये देखकर हैरान थी कि सभी ने मुझे वैसे ही प्यार और इज़्ज़त दी जैसे वो विहान को देते थे। सब मेरा हर वक़्त ख्याल रखते थे। और जब मैंने कॉलेज छोड़ा उस दिन सभी की आंखे नम थी।"
"और उसके बाद मैं वापिस मनाली आ गई और यहीं एक कॉलेज में लिटरेचर पढ़ाना शुरू कर दिया। हालांकि मैंने विहान को किए वायदे को निभाया, कभी लिखना नहीं छोड़ा। वो कागज़ जो तुमने मुझे उस दिन वापिस किया था उसपर वही कविता लिखी थी जो मैं उसे देना चाहती थी लेकिन ज़िंदगी ने मुझे इतना भी मौका नहीं दिया और तब से उसे मैं हमेशा अपने साथ रखती हूं इससे मुझे ऐसा लगता है कि वो हमेशा मेरे साथ है"
कुछ पल के लए वहां एक ख़ामोशी ने जगह ले ली।
"अब मैं क्या कहूँ तुम सच में बहुत मज़बूत हो। इतने वक़्त तक ये बोझ अपने दिल पर लेकर जीती रही और किसी से एक शब्द भी नहीं कहा। मैं सच मे बहुत खुशकिस्मत हूं कि मैंने तुमसे प्यार किया। और मैं तुम्हें आज एक वादा करता हूँ कि चाहे तुम मुझे प्यार करो या न करो, चाहे तुम मुझे मिलो या न मिलो मैं तुम्हें हमेशा यूँ ही प्यार करता रहूंगा"
"वो तो ठीक है लेकिन अब आगे क्या करना है ?" मायरा ने सवाल किया।
"करना क्या है, चूँकि अब मैं तुम्हारी न की वजह जानता हूँ तो कभी भी दोबारा तुमसे इस बारे में कुछ नहीं पूछुंगा और अब जिस काम के लिए आया था वो तो हुआ नहीं तो कल ही वापिस जा रहा हूं। लेकिन जाने से पहले मुझे तुमसे कुछ चाहिए"
"क्या ?"
"एक वादा कि चाहे कुछ भी हो जाये तुम अपने होठों पर यूं ही मुस्कान रखोगी हमेशा। इसे कभी गुम नहीं होने दोगी। बोलो मंजूर ?"
मायरा ने हां में सिर हिला दिया
विशाल मनाली से खाली हाथ ही वापिस आ गया था लेकिन इस बार उसके दिल में एक सुकून था। और अब उसके दिल मे मायरा के लिए प्यार और इज्ज़त दोनों ही और बढ़ गए थे।
घर पहुंचकर उसने सोचा कि पापा से इस बारे में बात करे पर वो काफ़ी बिज़ी थे। फिर एक दिन उन्होंने खुद ही उस से इस बारे में पूछा।
"तो बरखुर्दार बात कहां तक पहुंची ?, मायरा ने हां की या नहीं ?"
"नहीं पापा, उसका जवाब नहीं बदला लेकिन हां अब मैं उसके इनकार की वजह जनता हूं और सच कहिए अब मुझे उसकी न से कोई एतराज नहीं है"
"अच्छा ज़रा मुझे भी बताओगे, उसने ऐसा क्या कहा। हम वादा करते हैं कि ये बात सिर्फ हम दोनों के बीच रहेगी"
और फिर विशाल ने उन्हें सब बता दिया जो कुछ मायरा के साथ हुआ। ये सब सुनकर मिस्टर वरदान किसी सोच में डूब गए।
"क्या हुआ पापा, आप कहां खो गए ?"
"कुछ नहीं बेटा, अच्छा तुम्हारे पास उस लड़के विहान की कोई फोटो है या मायरा ने तुम्हें कभी दिखाई हो"
"हां एक मिनट रुकिए" विशाल ने कुछ सोचकर कहा क्योंकि उस याद आया कि विहान की एक फोटो मायरा की उस डायरी में थी जो उस आग वाले हादसे के दिन उसके साथ ही उसके सामान में आ गई थी। लेकिन मायरा को लगता था कि वो डायरी जल चुकी है।
विशाल ने वो फोटो लाकर अपने पापा को दिखाई।
उसे देखते ही उन्हें एक बड़ा झटका लगा।
"ओह गॉड ये नहीं हो सकता" उनके मुंह से निकला।
"क्यों आप ऐसा क्यों कह रहे हैं क्या नहीं हो सकता ? बोलिए पापा बताइए"
और फिर उन्होंने जो बताया वो विशाल के लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उसकी जिंदगी की इतनी बड़ी हकीकत जिससे वो इतने वक़्त से अनजान था आज उसके सामने खड़ी थी। और वो हकीकत कुछ ऐसी थी।
"आज से 2 साल पहले की बात है बेटा जब डॉक्टरों ने कह दिया था कि तुम अब ऐसे दिल के साथ नहीं जी सकते जिसमें एक छेद है। उन्होंने कहा कि अब कोई रास्ता नहीं है सिवाय इसके कि कोई तुम्हें अपना दिल ट्रांसप्लांट के लिए दे। मैं और हमारे जानकार डॉक्टर्स ने बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा कोई नहीं मिला। और फिर एक दिन तुम्हारी हालात गम्भीर हो गई और हमें तुम्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा"
"हां पापा मुझे अच्छे से याद है लेकिन मेरी सर्जरी का इन सबसे क्या लेना-देना"
"उस रात तुम बेहोश थे और हमें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। डॉक्टर्स जवाब दे चुके थे कि अगर कोई दिल मिला तो ठीक वरना हम तुम्हें खो देंगे। मैं उस वक़्त तुम्हें बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। और तभी मुझे पता चला कि हॉस्पिटल में एक एक्सीडेंट केस आया है और उस लड़के की हालत बहुत गम्भीर है। मैंने डॉक्टर से उसके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि एक्सीडेंट बहुत बुरा था और उसके बचने के आसार कम हैं। उन्होंने बताया कि अब तक कोई भी उस लड़के के घर से नहीं या है। मैं वहीं इंतज़ार करने लगा। थोड़ी देर में ही मालूम हुआ कि वो लड़का मर चुका है। डॉक्टर्स उसे लावारिस लाश समझकर ले जा ही रहे थे कि तभी मैंने उनसे गुजारिश की की वो उसका हार्ट तुम्हें ट्रांसप्लांट कर दें। मेरे ज़ोर देने पर वो लोग मान गए।
और उस लड़के का दिल सर्जरी से तुम्हारे अंदर ट्रांसप्लांट कर दिया गया। लेकिन बाद में मैंने देखा कि उसके मां-बाप भी आ गए थे। हालांकि मैंने और डॉक्टर्स ने उन्हें सब बता दिया था। उसके बाप ने कहा कि अब उनका बेटा तो रहा नहीं कम से कम उसकी वजह से मेरा बेटा तो ज़िंदा है।
और वो लड़का कोई और नहीं विहान ही था"
ये कहकर वो चुप हो गए।
"विहान ! ! !" विशाल इस सच को सुनकर दंग रह गया। जिस लड़के ने उसे दिल देकर उसकी जान बचाई और जिसे मायरा इतना प्यार करती थी वो दोनों एक ही थे उसके सीने में इस वक़्त विहान का दिल धड़क रहा था।
धीरे-धीरे उसके सामने सब आने लगा। कैसे वो तब उस से पहली बार मिला और उसकी जान बचाई। कैसे जब वो उस से बात करने गया तो ऐसा लगा कि जैसे वो उसे बहुत पहले से जनता है। जब भी वो उसे देखता था उसे लगता था कि वो दोनों एक-दूसरे से हमेशा से जुड़े थे। उसे मायरा की वो सब बातें याद आने लगी जो उसने विहान के बारे में कही थी।
वो सोच रहा था कि "अगर मायरा को इस बात का पता चलेगा तो उसे कैसा लगेगा। क्या सोचेगी वो उसके बारे में ?"
इसी कशमकश में तीन दिन बीत गए।
अगली शाम उसके पास नानी का फोन आया।
"हेलो विशाल बेटा कैसे हो तुम ?"
"मैं ठीक हूं नानी, आप कैसी हैं ? और मायरा वो कैसी है ?"
"मैं ठीक हूं लेकिन बेटा तुम मायरा को रोक लो। वो मेरी बात नहीं सुन रही है"
"आप क्या कह रही हैं, साफ-साफ बताओ
"मायरा ने अमेरिका की किसी यूनिवर्सिटी में अप्लाई किया था और वो अप्रूव हो गया है। वो कल ही जा रही है बेटा। उसने मुझे भी आज ही बताया है। बेटा उसे रोकलो। एक तुम ही हो जो फिर से उसे जिंदगी जीना सीख सकते हो। तुम ही उसे इस अंधेरे से बाहर निकल रखते हो मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ उसे रोक लो बेटा"
"नानी आप फ़िक्र मत कीजिए मैं अभी आ रहा हूँ वहां" कह कर विशाल ने फोन रख दिया।
उसने अपने माँ-पापा को सब बताया तो उन्होंने भी उसे जाने की इजाज़त दे दी।
वो उसी वक़्त मनाली के लिए निकल पड़ा। लेकिन दुर्भाग्यवश उस रात मौसम कुछ ज्यादा ही खराब हो गया और रास्ते में भारी बारिश और पहाड़ी रास्ता होने के कारण विशाल की गाड़ी एक पेड़ से जा टकराई। उसे बुरी तरह चोट आई थी। वो तो वहां से गुजर रहे लोगों ने उसे वक्त से हॉस्पिटल पहुंचा दिया।
बहुत तेज़ बारिश हो रही थी आज और फिर अचानक से तड़ाक की आवाज़ के साथ एक के बाद एक दीवार पर लगी दो तस्वीरें नीचे गिर कर चूर हो गईं। कमरे में इतना सारा टूटा कांच देखकर मायरा एकदम डर गई।
"ये सिर्फ तूफान के कारण था या कोई अनहोनी का इशारा ?" उसने बाहर जाकर देखा नानी अपने कमरे में सो रहीं थी।
उसने विशाल को फोन मिलाया लेकिन वो भी बंद था। उसे बेहद घबराहट होने लगी ठीक ऐसे ही जैसे उस दिन विहान के न आने पर हुई थी। वो सुबह होने का इंतजार करने लगी।
सुबह उसके फोन पर रिंग बजी। उसने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई
"हेलो मायरा बेटा मैं विशाल का डैड बोल रहा हूँ। तुम जल्दी से हॉस्पिटल आ जाओ कल रात विशाल का एक्सीडेंट हो गया है। तुम जल्दी से आ जाओ"
ये सुनकर मायरा बेहोश होते-होते बची। उसने रोते हुए सब नानी को बताया और उन्हें लेकर तुंरत हॉस्पिटल पहुंची। वहां विशाल के मां पापा पहले से ही मौजूद थे।
उसे देखते ही विशाल की माँ ने उसे गले से लगा लिया।
"बेटा हमें माफ कर दो हम भी तुम्हारे गुनाहगार हैं"
"ये आप क्या कह रहीं है आंटी ?, विशाल कैसा है ?" मायरा ने हैरान होते हुए पूछा।
"वो ठीक है बेटा अभी खतरे से बाहर है। लेकिन उस से पहले कि तुम उस से मिलो मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं"
और फिर विशाल के डैड ने मायरा को विशाल और विहान से जुड़ी सारी सच्चाई बता दी जिसे सुनकर मायरा को एक और झटका लगा।
"बेटा हमें माफ करदो"
"माफी किसलिए अंकल जो कुछ भी मेरी और विहान किस्मत में लिखा था वो तो होना ही था। उसमें आप लोगों का क्या कुसूर। आपने तो एक बाप के नाते उस वक़्त जो सही था वही किया"
मायरा ने उन्हें समझाते हुए कहा।
"क्या मैं उस से मिल सकती हूं ?"
"हां बिल्कुल"
और मायरा उस कमरे की तरफ बढ़ने लगी जिसमें विशाल था। उसे एक-एक कर के सब याद आ रहा था कि किस तरह विहान के जैसे ही उसने हर बार उसकी जान बचाई थी। क्यों वो हर वक़्त ये महसूस करती थी कि विहान उसके साथ है जब भी विशाल उसके साथ होता था।
वो धीरे से कमरे में दाखिल हुई। विशाल आंखे बंद किए हुए लेटा था। उसने धीरे से जाकर उसे पुकारा।
"विशाल"
उसने आंखे खोली तो देखा सामने मायरा खड़ी थी। उसके होठों पर एक सुकून वाली मुस्कान थी।
"तुम कब आईं ?"
"शशशशशशश " मायरा ने उसके मुंह पर उंगली रखते हुए कहा।
"तुम्हें क्या लगा था कि तुम मुझे नहीं बताओगे तो मुझे पता नहीं चलेगा"
"क्या"
"यही की ये जो खूबसूरत सा दिल तुम लिए फिरते हो ये किसी और का नहीं बल्कि उसका है जिस से मैं बहुत प्यार करती हूं" कहते हुए उसकी आँखों मे आंसू आ गए।
"लेकिन मायरा मैंने तुम्हारे प्यार का दिल चुराया है सज़ा तो मुझे मिलनी चाहिए थी"
"हां और इसी वजह से तुम यहाँ हॉस्पिटल में आ गए है न ? लेकिन मैं तुम्हें इसके लिए माफ नहीं करूंगी" मायरा ने झुठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"ये क्या बात हुई ? नाराज़ तो मुझे तुमसे होना चाहिए। तुम इस दिल और मुझे दोनों को छोडकर जा रही थी। ये कहां का इंसाफ है ?"
"हां मैं जा रही थी लेकिन अब नहीं जा रही हूं क्योंकि मैं एक बार अपना प्यार खो चुकी हूं दोबारा नहीं खोना चाहती" मायरा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
"तो क्या तुम सच में मेरा साथ दोगी ?"
"हां अब मेरी अमानत जो तुम्हारे पास है" कहते हुए मायरा हंस पड़ी।
बाहर खिड़की से देखते हुए नानी खुश थी कि भगवान के खेल ने एक बार फिर से दो 'दिलों के तार' को मिला ही दिया था।