विडंबना
विडंबना
वक्त के साथ एक और दिन गुजरा, जुम्मे की नमाज़ के बाद दुआ पूरी कर लौटते हुए देखा खुदा के किसी नेक बंदे के घर एक बच्चे ने जन्म लिया जिसका नाम था इस्माइल। नाना ने नवासे को गोदी में ले कर उसकी आँखों में खुदा का नूर पाया। वक़्त बदला इस्माइल बड़ा हुआ। छोटे से गाँव में पैदा हुआ इस्माइल ये नहीं जानता था उस गाँव के इकलौते पढे लिखे व्यक्ति के घर उसका जन्म हुआ है। उसके पिता का जीवन घोर अंधकार एवं कष्ट के साथ गुज़रा। 9 बच्चों में तीसरे उसके पिता थे जिनके माता-पिता ने उन्हें लावारिस बच्चों की तरह पाला। दरिद्रता और अवहेलनाओं के साथ उनका जीवन गुज़रा। बचपन से ही पढ़ने में होशियार इस्माइल के पिता ने कठिन डगर से मंज़िल पाई। बचपन से ही उन्हें गालियां, अपशब्दों से ही पुकारा जाता और अपमानित किया जाता। दोस्तों के साथ पढ़ने की इच्छा लिए इस्माइल के पिता ने बिना घर मे रहे जंगलों में फल खा कर, पेज को सिलाई कर नोट बना कर, कबाड़ी, आइसक्रीम बेच कर स्कूल की फीस भरी और इस तरह 10वीं तक पढ़ाई पूरी की। 11वीं कक्षा में प्रवेश पाने के लिए अपने पिता से उन्होने फीस भरने के लिए मिन्नतें की लेकिन उनके पिता ने उनकी एक न सुनी और इस्माइल के पिता ने रोते हुए अपना नसीब समझ कर आगे बढ्ने की ठानी। दोस्तों के कहने पर सुरक्षाबल की सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो कर इस्माइल के पिता को दिल्ली पुलिस में सिपाही की नौकरी मिली। उस नौकरी को पाने के लिए जो तप उसके पिता ने किया था वो हर किसी के बस की बात नहीं थी।
इसके साथ ही इस्माइल का जीवन भी परिवर्तित हुआ छोटे से गाँव में जन्मे इस्माइल ने भी कभी सोचा न होगा उसका नसीब कुछ ऐसा होगा। दो बहनों के बाद न चाहते हुए भी उसका जन्म हुआ। उसके माता पिता की ऐसी कोई मनोकामना नहीं थी जो बेटे के पैदा होने पर कभी किसी को होती है। फिर भी इस्माइल का जीवन वक़्त के साथ बढ़ता गया। 7वीं कक्षा में सरकारी स्कूल में दाखिले के बाद इस्माइल ने जाना दुनिया में अनुशासन ही सब कुछ नहीं। अनुशासनहीनता से भरे विद्यालय में बहुत से बच्चों ने उसे बिगाड़ने की कोशिश की लेकिन वह नहीं बिगड़ा। उसके कई उसूल थे जो कम उम्र में ही उसके मन मस्तिष्क में घर कर चुके थे। उसका मानना था जो बच्चे गालियां और बुरे काम करते है वह जिस दिन अपने माता-पिता के सामने ऐसे दुष्कर्म करेंगे मैं उनके जैसा हो जाऊंगा। उसकी इस बात का बहुत से विद्यार्थियों पर प्रभाव पड़ा जिससे उसने बच्चों को सुधारा और जो नहीं सुधरे उनसे दूरी बनाए रखी।
इसी तरह अच्छे अंकों के साथ कॉमर्स से 12वीं पास कर इस्माइल के सामने पहली विडम्बना आई जो थी आगे क्या किया जाये। हिन्दी में रुचि होने के कारण दिल्ली के प्रतिष्ठित महाविद्यालय में उसने दाखिला लिया। अच्छे सहपाठियों और गुरुओं के सानिध्य में अच्छे अंकों से परीक्षा में अंक हासिल कर उसने अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूर्ण की। अपनी इस पढ़ाई के दौरान एक ही अनुभव उसका हुनर बन कर उभरा वो था नाटक। 5 वर्षों तक नाटक पढ़ना, सिखाना उसके जीवन में एक क्रान्ति की तरह साबित हुए। इसी बीच एक नाटक सीखने वाली छात्रा को उससे प्रेम हुआ। जिसको शायरी के जरिये उसने कुछ इस प्रकार व्यक्त किया:
“मेरी नजर में रहती है एक ख्वाब सी लड़की,
जैसे सांस लेती हुई मेहताब सी लड़की,
मैं उससे फासला ना रखता तो और क्या करता,
मैं हवाओं सा पागल वो एक चिराग सी लड़की,
उसके सामने मैं बेज़ुबान सा हो जात हूँ,
कोई सवाल लिए वो एक जवाब सी लड़की।“
पिछली दो रिलेशनशिप के बाद ये तीसरा मामला उसके जीवन में क्रान्ति लाने वाला है इस बात का उसे कोई अंदाज़ा नहीं था। वक़्त के साथ उसने उस लड़की के प्रेम को समझ कर उस पर पूरा विश्वास जताया लेकिन वह नहीं जानता था यह विश्वास भी क्षण भर का छल ही होगा। पढ़ाई पूरी करने के बाद इस्माइल के जीवन से जैसे सब पूरा होने लगा। 4 साल तक चले संबंध को परिवार एवं धर्म के कारण लड़की ने जिस तरह उसके जीवन में बिना कहे प्रवेश किया था उसी प्रकार बिना कहे निकास भी किया। इस दुख को जताने के ओर किसी को बताने का उसमे सामर्थ्य नहीं रहा। आखिरी मुलाक़ात में सिर्फ इन पंक्तियों के साथ उसने उसे अलविदा कहा:
“चाँद तो निकला है मगर ये रात न है पहली सी,
मुलाकातें तो हुई बहुत मगर, ये मुलाक़ात न है पहली सी,
रंज कुछ कम तो हुआ आज तेरे मिलने से,
लेकिन ये अलग बात है कि ये बात न है पहली सी।“
हर शाम की तरह इस शाम भी अपने लूडो में समय गुजारता इस्माइल छल से जीत कर खुश न हुआ। ये छल उसके जीवन में कभी नहीं था, उसके जीवन के साथ हुए छल का परिणाम था जिसके कारण वह खुश नहीं रह पाता था। छल को वह संधि की तरह जीता और उसके विच्छेद से ही आराम पाता। समय ने उसके जीवन को ऐसा बदला जिसके गम को वह छल से जीने का प्रयास करता रहा। उसके अंतर्मन का ठहराव कभी उसे गलत काम करने न देता। अपने आज में भी वह गम छुपा कर मुस्कुराता, इसलिए नहीं कि वह मजबूत था, बल्कि इसलिए क्योंकि उसकी सकारात्मक इच्छाशक्ति उसे गिरने नहीं देती थी। आखिर ऐसा क्या था उसमें जो उसे लोगों में सबसे अलग और आकर्षक बनाता था। इस प्रश्न का उत्तर वह खुद से भी पूछता था।
एक दिन अपने मित्र से चर्चा करते हुए:
दो बार दिल टूटने के बाद भी तू मुस्कुरा रहा है ? (दीपक ने इस्माइल से पूछा)
हां भाई, वक्त सब का एक नहीं रहता। आज किसी ने मुझे छोडा कल कोई उसे छोडेगा। मुझे उसके जाने का क्या गम जिस दिन महशर में मुलाकात होगी उस दिन बात होगी। (इस्माइल ने मुस्कुराते हुए कहा)
“बडा मजा हो के महशर में करें हम शिकवा
वो मिन्नतों से कहें चुप रहो खुदा के लिए”
आज के समय में लोग शोहरत कमाने के लिए कुछ भी लिख कर छपा देते हैं लेकिन इस्माइल को न जाने किस बात का डर था अच्छा शायरी लेखक होने के बाद भी अपना हुनर दुनिया से छुपा कर रखता था। इस्माइल को शायरी का शौक था। वह कोई प्रतिष्ठित या अनुभवी शायर तो नहीं था लेकिन अपने दिल की बात शायरी के जरिए निकाल कर अपना मन हल्का करता था। दोस्तों ने तो कहा था अपनी पुस्तक लिख, लेकिन वह नहीं माना क्योंकि वो अपने गमों की नुमाइश दुनिया के सामने नहीं करना चाहता था। 1500 से अधिक शायरी लिख कर न जाने कहाँ खो देता था दोस्तों को व्हाट्सएप्प या फेसबुक पर उनके हालातों के अनुसार लिख कर भेजता था। दोस्तों के लाख कहने के बाद भी उसने अपना हुनर नहीं दिखाया, अपने अंदर एक दुनिया ले कर जीता था जिसमें उसे खुशी मिलती थी, उसका एक ही उसूल था खुश रहो और खुश रखो। अपने परिवार का इकलौता चिराग उस अंधेरे से निकल कर आया था जिस अंधेरे में लोग अपनी परछाई ढूंढते थे। लेकिन अँधेरों का भी अपना उसूल है यह उसे बखूबी पता था।
कॉलेज में 5 साल पढ़ कर, अपनी मास्टर की पढ़ाई पूरी कर नौटंकी में उसे महारत हासिल थी। अपने जीवन के इन 4 वर्षों में उसने एक ही पूंजी कमाई थी वो था नाटक। नाटक पढ़ना, सिखाना और निर्देशन करना उसको बेहद पसंद थे। अपने खाली समय में खुद को व्यस्त करने के लिए नाटक ही उसका हथियार थे। नाटक से ही उसने अपने दुख को छुपाना सीखा था लेकिन एक शख्स के सामने वो अपनी इस प्रतिभा में भी हार जाता था वो थी उसकी माँ। अपनी माँ के दिल के करीब रह कर उसने जाना एक वही है जिनसे वो झूठ नहीं बोल पाता था न अपने गम छुपा पाता था।
वक़्त के साथ पढ़ाई पूरी करने के बाद एक ही परेशानी उभरकर आती है जो हर युवा की जिंदगी में परिवर्तन का कारण बनती है वो थी नौकरी। पिता के दबाव ओर अवहेलनाओं से परेशान हो कर इस्माइल के सामने एक ही परेशानी थी उसके पास कोई नौकरी नहीं थी। दोस्तों से मदद मांगता, दिन रात एक कर नौकरी की तलाश करता इस्माइल थक हार कर एक ही चीज़ अपने साथ लाता वो था REJECTION। 70-80 इंटरव्यू देने के बाद जा कर कहीं एक जगह अंग्रेज़ी पढ़ाने की नौकरी मिली जो उसके जीवन की पहली उपलब्धि के साथ हिन्दी में पढ़ाई कर अंग्रेज़ी पढ़ने तक के सफर को साझा करती थी। 9000/- रुपये प्रतिमाह की इस नौकरी से उसने अपने करियर की शुरुआत की। हर तरह के विद्याथियों को ज्ञान देने के बदले उसे राजनीतिक और मानसिक शोषण का शिकार बनना पड़ा। मानसिक शोषण को झेलने का अभ्यास उसे अपने स्कूल के समय से था इसलिए उसे लड़ने की शक्ति मिली।
वक़्त गुज़रता गया इस्माइल का विवाह हुआ और दो लड़के भी। कंधों का सहारा बनने वाले लड़कों ने उसे ज़मीन पर रखा और उसकी सारी पूंजी अपने नाम कर उसे बेसहारा छोड़ दिया। बाल मजदूरी करते हुए बच्चों के प्रति स्नेह के कारण इस्माइल को उन बाल मजदूरों ने सहारा दिया जिनका सहारा इस्माइल बना था। कूडे में पड़ी रोटियाँ खाने के कारण दोनों बाल मजदूर अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहे थे ऐसे में उन्हें सहारा इस्माइल ने ही दिया था। वो नहीं जानता था एक दिन उसके अपने उसे बेसहारा कर देंगे और पराये साथ देंगे।
“वक्त है झोंका हवा का, और हम पीले पत्ते,
न जाने अगले लम्हे, तुम कहां और हम कहां”
इसी विडम्बना भरे जीवन का अंत जुम्मे की नमाज़ के साथ “ ला इलाहा इल्लल्लाह” कहते हुए समाप्त हुआ।