हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy

न्याय - अन्याय : भाग 4

न्याय - अन्याय : भाग 4

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पिछले अंक से आगे 


दीना राम के सरपंच बनते ही उसके घर में बहारें आ गयी । जिस घर में खाने को दाने नहीं हों, यदि वह व्यक्ति गांव का मुखिया बन जाये तो उसके लिए तो यह घटना अजूबे से कम नहीं है । कलयुग में गुणों की नहीं , पद , प्रतिष्ठा और दौलत की पूजा होती है । जब एक बार सरपंच का पद प्राप्त हो गया तो प्रतिष्ठा और दौलत दोनों दौड़े चले आते हैं । पद और पैसा मूर्खों को भी ज्ञानी बना देता है । 

गांव के लोग अब तक उसे दीन्या दीन्या कहते थे , लेकिन अब वह सरपंच साहब बन गया था । अब ग्राम पंचायत में वह सबसे पिछड़ा, दलित व्यक्ति नहीं रहा अपितु सबसे अधिक सम्मानित, सबसे बड़ा और सबसे प्रथम हो गया था । कहते हैं कि ईश्वर जब देता है , छप्पर फाड़कर देता है । दीना को भी ईश्वर ने छप्पर फाड़कर दिया था । न जाने कौन से जन्म के पुण्य काम आ गये थे उसके । उसकी झोंपड़ी अब लोगों से भरी रहती थी । वहां मेला सा लगा रहता था । जहां कभी मक्खियां भी नहीं भिनभिनाती थीं वहां आज चतुर सुजान , धनवान, गुणवान, बुद्धिमान लोग मंडराते रहते थे । वक्त ऐसे ही तकदीर बदल देता है । 

माया भी अब कोई बेगारी या मजदूर नहीं रह गयी थी । वह भी "सरपंचाइन जी" बन गई थी । गांव की औरतें अब माया को चारों ओर से घेरे रहती थीं । कोई उसे "मैडम" कहतीं तो कोई "भाभीजी भाभीजी" कहकर उसके आगे पीछे डोलती थीं । दीना राम और माया को अब तक अपशब्द सुनने की आदत थी । उन्होंने कभी "जी" संबोधन सुना नहीं था इसलिए शुरू में तो उन्हें "सरपंच जी" "सरपंच साहब" या "सरपंचाइन जी" सुनना बहुत अटपटा सा लगा । खासकर पंडित जी द्वारा "सरपंच साहब" कहकर बुलाना उसे बहुत अखरता था । दीना राम के मन में पंडित जी के लिए बहुत इज्जत थी । ये पंडित जी ही तो थे जिन्होंने उस पर तरस खाकर अपने मंदिर में पनाह दी थी । एक अछूत आदमी को मंदिर में शरण देना कोई छोटी बात नहीं है । एक तरह से उसे दुनिया की सबसे कीमती चीज दे दी थी । इज्जत से बड़ा क्या है इस संसार में । पंडित जी ने उसे वह दिया था जिसके बारे में उसने सोचा भी नहीं था । अपने खेत पर झोंपड़ी बनाकर उसे आश्रय प्रदान किया था । उन्होंने अपनी फसल में उसे बंटाईदार बनाकर उसके परिवार के पालन पोषण की व्यवस्था भी की थी । उसे सम्मानजनक जीवन जीने के लिए समस्त सुविधाएं उपलब्ध करवाईं थीं । और तो और, सरपंच बनाने का प्रस्ताव भी पंडित जी ने ही रखा था । चुनाव का फॉर्म भरने से लेकर प्रतिभूति राशि भी पंडित जी ने ही जमा करवाई थी । अगर पंडित जी ये सब नहीं करते तो क्या वह सरपंच बन पाता ? दीना राम इन सब बातों को कैसे भूल सकता है ? इसीलिए वह पंडित जी के गुण गाते गाते थकता नहीं था । 


शुरू शुरू में तो दीना राम सरपंची और काम के संबंध में कुछ जानता ही नहीं था इसलिए वह पंडित जी की छत्रछाया में चल रहा था । जहां पंडित जी कहते दस्तखत कर देता था । वह पंडित जी की उंगली पकड़ कर चल रहा था । इससे पंडित जी भी खुश थे और दीना राम भी खुश । किसी की खुशियां लोगों को कैसे बर्दाश्त हो सकती हैं । जहां लोग एक दूसरे को पटकनी देकर नीचे गिराने में ही लगे रहते हैं वहां दीना राम और पंडित जी के आनंद से चमचमाते हुए चेहरे देखकर लोगों के दिलों पर सांप लोटने लगते थे ।

पंडित जी के विरोधी लोगों ने पंडित जी को पटखनी देने के लिए पूरा षड़यंत्र किया । उन्होंने पंडित जी के विषय में अफवाहें फैलाना शुरू कर दिया । इस देश में आदमी चाहे भगवान पर विश्वास करे या नहीं लेकिन अफवाहों पर आंखें मूंदकर विश्वास करता है । तभी तो अफवाहें हवा से भी तेज गति से फैलती हैं । 


गांव में अफवाहों और कानाफूसियों का दौर चल निकला । लोग दोनों के बारे में तरह तरह की बातें बनाते रहते थे । वे बातें एक की दस होकर उन तक पहुंचती थीं । लोगों ने दोनों का चरित्र हनन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । कुछ लोग तो इतने महान थे कि उन्होंने यहां तक कह दिया "पंडित जी पूरे रसिया हैं । दीना राम को अपने मंदिर में ऐसे ही शरण थोड़ी ना दी है , इसकी पूरी कीमत वसूल की है पंडित जी ने । अरे भई , दीना की औरत कितनी जवान और सुंदर है, कभी इस पर गौर किया ? पंडित जी उसी के आगे पीछे भंवरे की तरह घूमते रहते हैं । दासी को रानी बनाकर रखा है पंडित जी ने" । जब इस तरह की बातें सामने आने लगी तो इससे दोनों के मन में कड़वाहट आने लगी थी । 

लोग दीना राम से पंडित के बारे में कहते 

"सरपंच साहब, जरा सावधान रहना ! आप बड़े भोले हो लेकिन पंडित जी आपकी तरह भोले नहीं हैं , बहुत चंट चालाक हैं । वे आपसे न जाने कहां कहां दस्तखत करवा लेते हैं । मैं तो आपको अपना खास आदमी समझ कर यह बात बता रहा हूं । मेरी बात को ध्यान से सुनना और पंडित जी पर पूरी निगरानी रखना । वे गबन करके आपको जेल भिजवा देंगे । इतिहास गवाह है कि अब तक जितने भी धोखे हुए हैं वे सब अपनों ने ही किये हैं । बाकी आप समझदार हैं" । आग लगाने के लिए इतना मसाला काफी था । 


उधर लोग पंडित जी को कहते "आप ने इनके लिए क्या क्या नहीं किया ! जिसकी परछाई से भी लोग स्वयं को अपवित्र मान लेते हैं , ऐसे आदमी को आपने अपने घर में बैठाकर खाना खिलाया है । उसका सब काम किया । उसे सरपंच बना दिया । और अब ! अब वह खुद "साहब" बन बैठा है और आपको अपना गुलाम बना लिया । छि: , धिक्कार है दीना राम पर" । 

कहते कहते लोग दीना राम के नाम पर थूक देते थे । इन सब बातों से पंडित जी भी आवेश में आ जाते थे । पर वे कहते कुछ नहीं थे, बस उनकी बातें सुनकर खामोश रह जाते थे । 


इस तरह तीन चार महीना निकल गये । ग्राम पंचायत का सचिव सरपंच को भ्रष्टाचार करने के लिए उकसाने लगा । सचिव बगैर "ऊपरी कमाई" के कैसे रह सकता था ? वह तो सचिव बना ही भ्रष्टाचार करने के लिए था । उसने बड़ी मुश्किल से दो तीन महीने सब्र रखा था जैसे कोई मजबूरी में एकादशी व्रत रखता हो । ऐसा व्यक्ति प्रत्यक्षतः खाता कुछ नहीं है , लेकिन मानसिक रूप से 56 प्रकार के व्यंजनों का रसास्वादन करता रहता है, यानी उसका ध्यान सदैव भोजन में लगा रहता है । 

सचिव की स्थिति ऐसी ही थी । सरपंच उसे "खाने" नहीं देता और सचिव बिना खाये रह नहीं सकता था । अजीब पहेली थी । एक संत बना बैठा था और दूसरा पूरा बगुला भगत । सचिव सरपंच को समझा समझा कर हार गया था । आखिर में सरपंच संघ के अध्यक्ष ने एक दिन दीना राम को समझाया 

"दीना राम जी ! ये सरपंची हमेशा रहने वाली चीज नहीं है । इस बार लॉटरी में अनुसूचित जाति की ग्राम पंचायत होने से ये आपको मिल गई । अगली बार फिर से अनुसूचित जाति की लॉटरी लगने वाली नहीं है । इस बार ये समझ लो कि आपकी लॉटरी लग गई है । आप भविष्य में सरपंच बनेंगे इसकी संभावना लगभग नहीं के बराबर है । अतः इन पांच सालों में आप जितना माल खींच सकते हो, उतना खींच लो । यह मौका फिर नहीं मिलेगा । और हां , अपने क्षेत्र के विधायक जी, सांसद जी और मंत्री महोदय को पटा कर के रखना । सरकारी माल खूब जमकर खाना और इनको भी खूब खिलाना । फिर तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा । अकेले अकेले खाने वाला जल्दी मर जाता है, मिल बांटकर खाने वाला सदैव जीवित रहता है । सरकार की तो नीति ही यही है "खाओ और खाने दो" । हर मंत्री, सांसद , विधायक, प्रमुख, प्रधान , सरपंच, चेयरमैन सभी लोग गले तक अपना पेट भर रहे हैं तो आप अकेले ही "एकादशी व्रत" क्यों कर रहे हो ? समय के साथ चलो और मौज करो । राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते जाओ और धन संग्रह करते जाओ । आज सरपंच बने हों , कल विधायक बनना और परसों मंत्री । राजनीति एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें शून्य निवेश करने पर भी करोड़ों रुपए का रिटर्न मिलता है । ऐसा कोई और व्यवसाय नहीं है । पांच साल में तो एक सरपंच करोड़पति हो ही जाता है । सोच लो ! हमारे साथ रहोगे तो खाने कमाने के सारे तौर तरीके हम बता देंगे । बस , हम लोग भ्रष्टाचार सिखाने के लिए ज्यादा नहीं केवल दो लाख रुपए ही लेते हैं । नहीं पकड़े जाने के नुस्खे फ्री में सिखाते हैं । अच्छी तरह सोच लेना । यदि जंचे तो कल से क्लास में आ जाना । यदि फीस अभी नहीं हो तुम्हारे पास , तो कोर्स की समाप्त पर दे देना । समझ गये" ? 


दीना राम की आंखें खुल गईं । उसे ऐसा लगा कि जैसे वह एक दूसरी दुनिया में आ गया है । यह दुनिया चकाचौंध की दुनिया है । इस दुनिया में रिश्ते नाते कोई मायने नहीं रखते हैं । इंसानियत के लिए यहां जगह ही नहीं है । यहां पर चारों ओर स्वार्थ नंगा नाच करता हैं । भोग विलास की नदियां बहती हैं । धन के पहाड़ खड़े हुए हैं । हर एक के हाथ में मतलब की छुरी छुपी हुई है । सबने षड़यंत्र की कटार अपनी आस्तीन में छुपाकर रखी हुई है । सबने भलमनसाहत का मुखौटा पहन रखा है और सबके मुंह से लालच की लार टपक रही है । लोग दौलत के लिए अपनों का खून करने से भी गुरेज नहीं करते हैं । काम वासना की ज्वाला में न केवल तरुणियां झुलस रही हैं अपितु छोटी छोटी बच्चियों को भी शिकार बनाया जा रहा है । ये भगवान की बनाई हुई दुनिया नहीं है । इसे तो शैतान ने बनाया है शायद । दीना राम को इस दुनिया की चमक दमक बहुत पसंद आई और वह इसी दुनिया का होकर रह गया । 


एक दिन वह अपने क्षेत्र के विधायक जी के पास मिलने के लिए चला गया । बड़े आदमी के घर खाली हाथ नहीं जाना चाहिए इसलिए वह अपने साथ शुद्ध घी, दूध , दही , अनाज आदि लें गया । उसके पास जो कुछ था उसके पास , वही वह लेकर गया था । विधायक जी उस सामान को देखकर बड़े जोर से हंसे । वे दीना राम की मासूमियत पर फिसल गये । विधायक जी ने दीना राम को अपनी मंडली में शामिल कर लिया । वे दीना राम को लेकर मंत्री महोदय से मिलने चले आये । मंत्री महोदय विधायक जी की जाति के ही थे । दीना राम भी उसी जाति का था इसलिए तीन तिलंगो की जोड़ी खूब जमीं । मंत्री महोदय और विधायक जी का संरक्षण पाकर दीना राम जमकर भ्रष्टाचार करने लगा । अब उसकी रंगत हीं बदल गई थी । साल भर में ही वह लखपति बन गया था । 


एक दिन विधायक जी उसे लेकर एक ऑफिस में गये । वह "दलित उत्थान मंच" का कार्यालय था । शॉर्ट में उसे "DUM" कहा जाता था । विधायक जी ने दीना राम को एक व्यक्ति से मिलवाया 

"दीना राम जी ! इनसे मिलिए ! ये हैं शुक्र रावण । दलित उत्थान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं ! बहुत बड़े आदमी हैं । बहुत रुतबा है इनका । राष्ट्रीय दलों के लोग इनके दरवाजे पर जाकर नाक रगड़ते हैं तब जाकर ये अपने दलित भाइयों से उस पार्टी के पक्ष में मतदान करने की अपील करते हैं । इनसे सारे लोग डरते हैं । इनके पास ऐसे ऐसे हथकंडे हैं कि इनके आगे अच्छे अच्छे मनुवादी पानी मांगने लगते हैं । लोग इन्हें दलितों का मसीहा कहते हैं । रात और दिन 24 x 7 समाज सेवा में लगे रहते हैं । आप भी इनसे बढ़िया सा प्रशिक्षण ले लेना" । फिर उन्होंने शुक्र रावण से कहा "ये दीना राम जी हैं । घरोंदा पंचायत के सदस्य हैं । इन्हें भी कुछ "फंडे" सिखा देना" । 



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