NOOR EY ISHAL

Comedy

3.8  

NOOR EY ISHAL

Comedy

प्यारी बिल्लो.. ड्रामा क्वीन

प्यारी बिल्लो.. ड्रामा क्वीन

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प्यारी बिल्लो सारे जहान का दर्द उसी के चेहरे पे दिखता है..बातें ऐसी ऊँची कि सातवें आसमान को छू रहीं होती है. सामने वाला बस बेवकूफ़ बना उन बातों पर यकीन कर रहा होता है. ख़ुद को सबसे क़ाबिल घोषित कर चुकी हैं. कुछ भी खो जाये मगर ख़ुद को कभी मत खोने देना.. उनकी मोटिवेशनल लाइनस् प्रतीत होती हैं.

बड़े नखरे उठाए जाते हैं प्यारी बिल्लो के.उनकी आँखों में गड्ढे पड़ जाएँ तो इंटरनेशनल ब्रेकिंग न्यूज हो जाती है. सर में दर्द हो तो पूरे खानदान की शामत आ जाती है कि प्यारी बिल्लो को सब फोन करके उनकी तबीयत पूछें.

जी, आप सही समझे मैं कौनसी बिल्लो की बात कर रहीं हूँ.

हर घर में या खानदान में या रिश्तेदारी में कहीं ना कहीं प्यारी बिल्लो का किरदार मौजूद होता है.

इस तरह नखरे उठवाये जाते हैं कि बस अल्लाह की पनाह. हर वक़्त ऐसा मुँह बना रहता है जैसे पूरी जहां की मुसीबत इन्हीं पर आन पडी हो.

उनके महफ़िल में आते ही शहनाज गिल का फेमस डायलॉग हम पर बिलकुल फिट बैठता है

"त्वाडा कुत्ता टॉमी साडा कुत्ता कुत्ता"

एक दिन प्यारी बिल्लो मेरे पास मौजूद थी और बता रही थी कि वो अपने पति का इन्तेज़ार कर रहीं है अभी तक नहीं आये खाना पकाने को देर हो रही है." मैंने बिल्कुल जानना चाहा कि वह ऐसा क्यूँ कह रहीं थीं मैंने उससे पूछा," क्या तुम्हारे पति को सब्जी लाना है?"

उसने कहा," नहीं पाँच किलो चावल का पैकेट नीचे से उठाकर ऊपर रखना है मैं तो नहीं उठा सकती हूँ. "

मैं कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे पायी क्यूँकी उस समय मैं प्यारी बिल्लो के हैंडबैग (पर्स) के बारे में सोच रहीं थीं जिसमें बीस किलो मेकअप का सामान होता है और प्यारी बिल्लो बस वहीं बैग खुशी खुशी उठा रही होती हैं

फिर मैं मुस्कराने लगी और बस ये लाइन ही याद आयी कि...

" फ़र्श ए मखमल से प्यारी बिल्लो के पाँव जले जाते हैं

 यहाँ बिल्लो की बातें सुन सुन हम बेहोश हुवे जाते हैं "

कभी कभी सफ़र के दौरान कुछ ऐसे लोगों से दो चार होना पड़ता है जिनको झेलना वाकई मिशन असंभव सा लगता है... और सफ़र भी ऐसा जिसकी मंज़िल प्यारी बिल्लो की नगरी हो तो रोमांच यात्रा से ही प्रारंभ हो जाता है..

रेलवे स्टेशन पर जहां हम बैठे थे वहीं थोड़ी दूर पर बैठी एक औरत बड़ी अजीब सी हरकतें कर रही थी... कभी अपनी सेल्फियां ले रही थी तो कभी बहुत बेबाकी से पूरे रेलवे स्टेशन के वीडियो बनाने लगती थी. उसको इतना भी ख्याल नहीं था कि कोई पैसेंजर उसका वीडियो बनाना पसंद करेगा या इस बात का बुरा मान जायेगा. कई बार उसने मेरी तरफ आकर भी वीडियो बनाने की कोशिश की...

ट्रेन आने तक ये ड्रामा चलता रहा... अब इसे प्यारी बिल्लो की नकारात्मक शक्तियों के साम्राज्य का असर कहेंगे... या फिर कुछ और कि वो अजीब व्यवहार करने वाली औरत मेरी ही सीट पर आकर बैठ गयी... मतलब साफ़ था कि अब ये सेल्फी क्वीन पूरे रास्ते वीडियो और सेल्फियां बनाते हुए जाने वाली हैं... औऱ उसने मेरी उम्मीद के मुताबिक सीट पर बैठते ही सेल्फियां लेना शुरू कर दी थीं .

काफी देर तक ये ड्रामा चलता रहा सेल्फी क्वीन मेरे और एक लड़के के बीच में बैठी थीं.. आधे घंटे तक हम दोनों ही सेल्फी क्वीन के सेल्फी हमलों से ख़ुद को बचाते रहे... पर शायद उस लड़के ने हार मान ली थी... उसने ट्रेन की खिड़की की तरफ मुँह करके अपनी कैप अपने मुँह पर रखी और सो गया...

सेल्फी क्वीन अपने काम में मस्त रहीं... आख़िरकार मुझे एक रास्ता सूझा...

मैंने उससे कहा, "सुनो इस ट्रेन में सेल्फी लेना मना है.. अगर तुम्हें सेल्फी या वीडियो बनाते हुए इस ट्रेन के स्टाफ ने देख लिया तो वो तुम्हारा फोन अपने पास रख लेंगे.. औऱ जब तुम ट्रेन से उतरोगी तब तुम्हारा फोन तुम्हें दिया जायेगा.

या फिर शायद फोन अपने ही पास रख लें.."आख़िरी लाइन मैंने बहुत ज़ोर देकर बोली ... क्यूँकी यही मुझे मेरा ब्रह्मास्त्र नजर आ रहा था...

सेल्फियों का हमला कुछ देर के लिए थम गया था.. बड़ी बड़ी आँखों से उसने मुझे हैरानी से घूरा.... फिर फौरन एक कॉल मिलाया, "हैलो, ट्रेन चलने वाली है मैं फोन अपने पर्स में रख रहीं हूँ... जो गलतियांँ हुई वो माफ़ कर देना."

उसने फोन काट दिया था... आखिरकार सेल्फी युद्ध में मैं विजयी हो गयी थी..

आज इस जीत का नशा कुछ अलग था.. ऐसा लग रहा था मानो ब्रहमांड की सबसे बड़ी ताकत को मैंने आज परास्त कर दिया है.उसकी फोन कॉल से मुझे अंदाजा हुआ कि वो ट्रेन में पहली बार बैठी है...

" क्या तुम पहली बार ट्रेन में बैठी हो." मैंने बगैर झिझक के उससे सवाल कर डाला

"जी, मैं अपनी बहन के यहाँ घूमने जा रहीं हूँ..." उसने बताया

ये भी बहुत ही अजीब इत्तेफ़ाक हो गया कि प्यारी बिल्लो की नगरी उसकी भी मंज़िल थी...

मतलब अब इस सफ़र का सेल्फी क्वीन के हाथों बाजा बजना तय था

" इंजीनियर हो??" दनदनाता उसका एक सवाल मेरे कानों से आ टकराया मैंने बड़ी मासूमियत से ना में गर्दन हिलायी.

"तो क्या हो" दूसरा सवाल पहले सवाल से ज़्यादा तेज़ी से आया

"लड़की हूँ" मैंने बेचारगी से कहा

"शादी हो गयी तुम्हारी" तीसरा सवाल दूसरे जवाब पर ध्यान दिये बिना ही दाग दिया गया था....

"हाँ,," मैंने कहा

"तो पति कहाँ है तुम्हारे?? अकेली जा रही हो? क्या वो तुम्हें स्टेशन पर लेने आएँगे??? इतनी स्पीड में कभी गन नहीं चल पायी होगी जिस तरह से मुझ पर सवालों की बौछार हो रही थी...

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या सेल्फी क्वीन से उसका फोन पर्स में रखवा कर मैंने सही किया????

हालाँकि मैंने उसके सारे सवालों के जवाब सही नहीं दिए थे .. वजह यही थी कि मेरे लिये वो भी अजनबी थी और इस तरह उसका बेबाकी से सवाल पूछना मुझे अजीब लग रहा था.

अब मैंने उसके सवालों से बचने के लिये उससे उसके बारे में ही पूछना शुरू कर दिया था.

एक बार फिर मुझे यहाँ सफलता मिली कि वो अपने बारे में ज्यादा बताना नहीं चाह रहीं थी तो चुप होकर बैठ गयी और थोड़ी देर बाद सो गयी.

मैंने राहत की साँस ली कि चलो कुछ देर के लिये ही सही सुकून हो गया था.

अब बात करते हैं कि मैं बिल्लो की नगरी क्यूँ जा रही थी.. इतना ज़रूरी क्या काम था जो मैंने बिल्लो की नगरी जाने का खतरा मोल ले लिया था.

ऐसा कोई जरूरी काम नहीं था मगर प्यारी बिल्लो के गुरुत्वाकर्षण का एक असर ये भी होता है कि वो चाहे कितना भी सितम कर लें शिकार सारे ज़ुल्म कुछ दिन में ही भूल जाता है और आपने वो कहावत सुनी होगी विनाश काले विपरीत बुद्धि.. बस ऐसा ही मेरे साथ हुआ कि प्यारी बिल्लो के गुरुत्वाकर्षण के दबाव में सब भूलकर उससे मिलने चल दी थी.

सेल्फी क्वीन से एनकाउंटर के बाद प्यारी बिल्लो का सम्मोहन टूटा तो समझ आ गया था कि अब रब ही मालिक है. अब कुछ नहीं हो सकता है... ट्रेन अपनी दुगनी स्पीड से प्यारी बिल्लो की नगरी पहुँचने को बेताब सी दौड़ी जा रही थी..

मैं भी आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगी.. मगर नींद कोसों दूर थी.

"चाय, कॉफी, चाय कॉफी" का शोर सुनकर मैंने कॉफी पीने का मन बनाया ही था कि सेल्फी क्वीन भी उठ गयीं.

"सुनो, क्या ये कॉफी पिलाने के पैसे लेगा..." उठते ही मेरी तरफ उसका सवाल उछल चुका था

"हाँ, शायद.. वैसे मुझे सही पता नहीं है" मुझे हँसी आ गयी थी

"मेरे लिये एक बोल दें... "मैंने कॉफी वाले को एक और कॉफी देने का कहकर उसको दोनों कॉफी के पैसे दे दिए थे.. क्यूँकी मुझे मालूम था कि सेल्फी क्वीन कॉफी तो पीना चाह रहीं हैं लेकिन अगर इनको पता चला कि कॉफी के पैसे देने होंगे तो ये कॉफी नहीं लेंगी.

तभी वो ल़डका भी उठ गया था और उसने एक चाय लेकर चाय का पैसा दे दिया..

"सुनो ये चायवाला तुमसे पैसे क्यूँ ले रहा है???" सेल्फी क्वीन ने लड़के से पूछा

"वो सबसे पैसे लेगा.. क्यूँकी वो चाय, कॉफी बेच रहा है" लड़का उसके सवाल से हैरान था

"मुझसे तो उसने कॉफी के पैसे नहीं लिए" सेल्फी क्वीन ने उसे बताया

"तुम पहली बार ट्रेन में बैठी हो ना इसीलिये तुम्हें कॉफी फ्री में दी गयी है "मैंने अपनी मुस्कराहट रोकते हुए कहा

 कॉफी पीने के बाद अचानक सेल्फी क्वीन फिर से ऐक्टिव हो गयी थी. पर्स से फोन निकाल कर उन्होंने सेल्फी अटैक एक बार फिर शुरू कर दिया था...वो लड़का दोबारा अपना मुँह कैप से कवर करके सो गया था.

मैंने भी एक किताब निकाल कर पढ़ने का मन बना लिया था.. बस कुछ ही देर गुज़री थी कि सेल्फी क्वीन ने उस लड़के को जगाकर कहा, "सुनो मेरे लिये खिड़की से बाहर का वीडियो बना दो"

लड़के ने मैडम से चुपचाप फोन ले लिया.. हमला इतना अप्रत्याशित था कि वो कोई बहाना बना ही नहीं पाया... मुझे बहुत हँसी आयी... बस अब ज़्यादा देर नहीं थी.. ट्रेन बिल्लो की नगरी पहुँचने ही वाली थी.. मगर मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई...

कुएं में तो पिछले कई घंटों से हमने एडजस्ट कर ही लिया था मगर अब जो खाई में गिरने की बारी आने वाली थी उसका क्या होगा???

ख़ैर अब जब जांबाज बनके अपने सुरक्षाचक्र से बाहर आ ही गये थे तो अब जो होगा देखा जायेगा...

लगभग आधे घंटे बाद हम बिल्लो की नगरी में उनके रेलवे स्टेशन पर खड़े थे....

उनके पति हमें लेने आये थे.सामान वगैरा सब रखकर हम उनके साथ गाड़ी में बैठ गये. रास्ते में वो हमसे सब घर की कुशल मंगल पूछ रहे थे और हमारी ये दशा थी कि समझ नहीं आ रहा था इनकी बातों के जवाब दें या फिर साँस लेने में ध्यान लगाएँ.. साँस लेना बहुत मुश्किल हो रहा था..

अब इस हाल की वजह प्यारी बिल्लो का नजदीक आता हुआ घर था या मास्क.. मुझे भी नहीं पता चल पाया. कुल मिलाकर स्तिथि जब असहनीय लगी तो मैंने प्यारी बिल्लो के पति से कहा, "सुनो, तुम्हारी बात पर ध्यान लगाऊँ या साँस लेने में."

वो बड़ी अदा से मुस्कुराया और बोला, "अभी तक आप शुद्ध हवा में रह रही थीं अब यहाँ हमारी नगरी के पॉल्यूशन का मज़ा लीजिये.. आज खतरनाक स्तर तक पॉल्यूशन बढ़ा हुआ है और उसकी वजह से आपको ऐसा लग रहा है. कोई बात नहीं एक दो दिन में आदत हो जाएगी. "

मन में सोचा...," वाह बिल्लो तो बिल्लो अब तो उनकी नगरी भी आँखें दिखाने लगी. "एक घंटे बाद हम प्यारी बिल्लो के आँगन में प्रवेश कर चुके थे.

प्यारी बिल्लो के बच्चों ने भी दौड़कर स्वागत किया..

पर प्यारी बिल्लो ना आयीं.. घर में जाकर बैठ गये पर प्यारी बिल्लो ना आयीं..

उनकी कामवाली चाय नाश्ता भी रख गयी पर प्यारी बिल्लो ना आयीं..

हमने चाय नाश्ता भी कर लिया पर प्यारी बिल्लो ना आयीं..

अब हम आराम करने के लिये जा रहे थे तब भी प्यारी बिल्लो ना आयीं...

यहाँ बिल्लो का ना आना इस तरह बताना मुझे जरूरी लगा कि आप सब भी जान सकें कि मुसीबत से मिलने के लिये भी इन्तेज़ार करना पड़ रहा था. बिल्लो घर में ही थी क्यूँकी दूर से कहीं उनके फोन पर बात करने की आवाजें आ रही थीं.

पाँच मिनट के और इन्तेज़ार के बाद प्यारी बिल्लो मुस्कराती हुई प्रकट हो ही गयीं..

बिना प्रेस के कपड़े.. उलझे रूखे से बाल.. चेहरा गुरूर से भरा हुआ... उनको इस हाल में देखकर मुझे अजीब तो लगा पर ख़ामोश रहने में ही खैरियत थी.

"क्या हाल हैं आपके... देख लीजिए...हम ऐसे ही मसरूफ रहते हैं.साँस लेने की फ़ुरसत नहीं है.. आप आयी है तो बड़ी मुश्किल से अभी टाइम निकाल कर आ पाएँ हैं."

प्यारी बिल्लो आते ही कुछ सेकंड मिलने आने का एहसान लाद चुकी थी.

"हूँ समझ सकती हूँ.. बहुत शुक्रिया आपका." मैंने बस इतना ही कहा या फिर प्यारी बिल्लो के गुरुत्वाकर्षण का दबाव शुरू हो गया था... मैं मासूम बस इतना ही कह पायी.

हमारे इलाके में किसी ने अगर ऐसा किया होता तो उसको उन कुछ सेकंड के एहसान का बदला उसी तरह का एहसान करके फौरन चुका देते.

यहाँ सर्वशक्तिमान अपनी ख़ुद की ही आन बान शान प्यारी बिल्लो महान के इलाके में आप अपने होश बाकी रख लें वही काफी था.

आँखें बंद हो रही थीं.. दिमाग की शक्ति सीमित होती महसूस हो रही थी.. क्या ये थकान थी या प्यारी बिल्लो की काली शक्तियों का साम्राज्य मुझे अपना गुलाम बनाने की प्रक्रिया शुरू कर चुका था.

गुलाम नही कमीज़.. माफ़ कीजियेगा कनीज़ बनाने की प्रकिया शुरू कर चुका था.

अब आप अंदाजा लगा लीजिये कि मैं नन्ही सी जान प्यारी बिल्लो को लिखते हुए भी वो गुरुत्वाकर्षण साफ़ महसूस कर सकती हूँ तो उस समय उनके इलाके में मेरा क्या हश्र हुआ होगा??

चलें आगे बढ़ते हैं.. बस मैं अपने बदलते हाल पर गौर कर रही थी कि मुझे ये क्या होने लगा तभी प्यारी बिल्लो के क्रोधित रूप के दर्शन भी हो गये इस रूप के दर्शन बहुत दुर्लभ होते हैं क्यूँकी प्यारी बिल्लो हर समय इतराहट और अच्छा बनने का खोल चढ़ाकर रहती हैं तो इसीलिये इस रूप के दर्शन हम दो चार दिन को गये मेहमान कभी देख नहीं पाते हैं.

वो अपने बच्चे पर चिल्ला रही थी, "कितनी बार तुमसे कहा है बाहर का दरवाजा बंद रखा करो पाॅल्युशन घर में आ जाता है और फिर गले में खराश होने लगती है.. ज़ुकाम हो जाता है.. दरवाजा बंद करो फौरन."

पाॅल्युशन से प्यारी बिल्लो काफी खौफ़ में थीं जिसकी वजह से इतराहट और बनावट की परतों के नीचे से उनका रौद्र रूप भूल से हम मेहमानों के सामने भी झलक आया था.

उनकी नगरी में अपने दिमाग के सीमित होने की प्रक्रिया होते हुए भी एक सवाल आ ही गया "ये पाॅल्युशन है या मच्छर?? क्या प्यारी बिल्लो की नगरी में पाॅल्युशन दिखायी देता है?? हमने पर्यावरण सुरक्षा पोस्टरों में पाॅल्युशन को राक्षस रूप में बहुत बार देखा है तो क्या वो सही में पाॅल्युशन की तस्वीरें थीं?"

मुँह खोलने की हिम्मत नहीं थी इस बात पे हँसने की तो जुर्रत वहाँ रहने वाले उनके अपने नहीं कर पाये तो हम क्या चीज़ थे

 प्यारी बिल्लो एक्सक्यूज़ करके जा चुकी थीं.. मुझे भी बहुत थकान हो रही थी.. सेल्फी क्वीन ने रास्तेभर चैन नहीं लेने दिया था... पूरे रास्ते बॉर्डर पर तैनात चौकस फौजी जैसा ख़ुद को महसूस होता रहा था.

प्यारी बिल्लो एक छोटे कद की पतली दुबली स्मार्ट महिला हैं.. रंग गेहुंआ है..डाइटीशियन हैं..एक हेल्थ एंड फिटनेस सेंटर में सीनियर डाइटीशियन हैं... माय वे इज़ हाई वे उनका ऐटिटूड है.. जो वक़्त के साथ और बढ़ता जा रहा है. वर्क फ्रॉम होम ने इस ऐटिटूड में चार चाँद लगा दिये हैं.

दिनभर क्लाइंट्स के फोन कॉल आते हैं उनकी समस्याओं को सुनती हैं और उनको सलाह देती हैं.. अब ये व्यवहार उनके निजी जीवन में भी झलकने लगा है.. हर समय इसी तरह बात करने लगीं हैं जैसे वो अपने क्लाइंट से बात करती हैं.

मैं सोने चली गयी थी क्यूँकी प्यारी बिल्लो के जलवों को बर्दाश्त करने के लिये ऊर्जा की बहुत जरूरत पड़ने वाली थी.

तीन चार घंटों की नींद लेने के बाद मैं फ्रेश महसूस कर रही थी. बिल्लो भी अपने काम से फ्री हो गयी थी तो मेरे लिये चाय बनाकर ले आयीं. मैंने अपने आप को तैयार कर लिया था कि अब प्यारी बिल्लो की कहानियों को सुनने का समय शुरू हो गया है...

नहीं तो प्यारी बिल्लो किसी के लिये खुशी से चाय बना लाएँ.... नहीं... इतना प्यारा उनके बारे में मैं कभी नहीं सोच सकती हूँ.

"जानती हैं कैसे मैनेज करती हूँ पूरा दिन.. घर बच्चे, पति और अपना काम जिससे रात के नौ बजे तक फ़ुरसत नहीं मिलती है..

ऊपर से सारे रिश्तेदार यहीं जमा हैं आसपास ..तो संडे को कोई ना कोई धमक पड़ता है.ये समझ लीजिये कि मेरी जगह कोई और होता तो कब का सब छोड़ कर भाग गया होता. "

मैंने अपना सारा ध्यान चाय पीने पर लगा लिया था.. मुझे लोगों की बुराइयाँ सुनने में दिलचस्पी नहीं थी.

बिल्लो की कहानी वही थी जो कई साल से मैं सुन रहीं थी.. कुछ नया नहीं था बस दिन बा दिन ख़ुद की तारीफें उन कहानियों में बढ़ती जा रही थीं.


प्यारी बिल्लो इतनी गहरी हैं कि अगर मेरी और आपकी समझ में आ जाएँ तो वो प्यारी बिल्लो नहीं रह जाएँगी...

और हर बार ये बात समझ आ जाती है लेकिन प्यारी बिल्लो का सम्मोहन सारे तजुर्बे इसी नगरी में भुला देता है.

अब इत्तेफ़ाक ये हुआ कि मेरे वहाँ पहुँचने के अगले दिन बिल्लो के जेठ और जेठानी भी वहाँ कुछ दिन रहने के लिये पहुँच गए.

रब को इस बार मुझ पर तरस आ गया था... बिल्लो के सबसे बड़े प्रतिद्वंदियों को मेरे साथ उसके यहाँ भेज दिया. बिल्लो के जेठ जेठानी बहुत नेक,शरीफ और सबको अपनापन देने वाले बेहद शानदार शख्सियत के मालिक थे. बिल्लो को उनकी अच्छाईयाँ बहुत खटकती थी.

ख़ैर बिल्लो तो बिल्लो हैं अपने सिवा किसी को वैसे भी वो कहाँ पसंद करती हैं.

घर के कामों से बचने के लिये बिल्लो ने दो दो कामवालियांँ रखी हुई थी और अपने बिजी रहने का शोर भी इसीलिये मचाया हुआ था जिससे घर में कोई काम ना करना पड़े और मेहमान भी सोच-समझ कर आएँ.

मगर उनका दुर्भाग्य यही था कि उनकी नगरी ऐसी जगह थी कि ना चाहते हुए भी सबको आवन जावन बिल्लो को सलाम ठोक कर जाना पड़ता था.

मजबूरी यही थी कि प्यारी बिल्लो के पति सबके दुलारे थे और वो भी सबसे उसी तरह दिल से प्यार करता था. उसका कहना था कि घर में जगह हो ना हो मगर दिल में जगह होनी चाहिये..

और उसने साबित भी किया था कि उसके अपनों के लिये उसके घर और दिल में बहुत जगह थी. अब मसला तो हम जैसे गरीबों के लिये हो गया कि उसकी मोहब्बत देखें या प्यारी बिल्लो की गहराइयों को नापें..

मैंने इस बात का ख़्याल रखा था कि बिल्लो पर मेरे आने का कोई लोड ना पड़े..मगर बिल्लो को उनके लिये किसी का किया दिखता कहाँ है..

एक बस वहीं हैं जो सबके लिये जान हाजिर रखती है... अब चाहे जान दूसरों की ही क्यूँ ना हो..

बिल्लो को कोई गिफ्ट देता है तो बिल्लो उसी के मुँह पर कह देती हैं कि एक और दान आ गया..

बिल्लो की महिमा अपरंपार है.. बिल्लो के जेठ जेठानी के आने की सुबह सब नाश्ता कामवाली ने लगाया.. उसकी जेठानी भी किचन में जाकर काम में लग गयी थी.मुझे कुछ काम से जाना था तो मैं तैयार हो रही थी.. नाश्ता भी मैं बाहर ही करने वाली थी.. उनके किचन के बाहर आईना लगा था जहां मैं खड़ी थी.

"शीबा, कोई भी काम हो तुम मुझे बिना किसी तकल्लुफ के बता देना.. मुझे यहाँ ऐसे कोई काम समझ नहीं आयेगा.. तुम बिजी रहती हो ऐसा ना हो कि तुम डिस्टर्ब हो जाओ. मैं फ्री हूँ मैं सब सम्भाल लूँगी."

प्यारी बिल्लो की भाभी ने उनसे किचन में आते हुए कहा तो वो मुझे भी आराम से सुनायी दे गया था.

 "चलो अच्छा हुआ भाभी ने खुद आगे बढ़कर प्यारी बिल्लो को

तसल्ली दे दी.. नहीं तो जान को आ जाती मैडम." मैंने रब का शुक्र करते हुए अपने मन में सोचा

बस इसी तरह तीन दिन निकल गये.. प्यारी बिल्लो के जलवे, मसरूफियत के बहाने, सर्वेसर्वा होने का गुरूर सातवें आसमान पर था. चौथे दिन की दोपहर मैं भी अपने काम से फ़ुरसत पा चुकी थी और उसी दिन शाम को मुझे जाना भी था इसीलिये मैं घर पर ही थी. बिल्लो के जेठ जेठानी अगले दिन सुबह जा रहे थे.

दोपहर में मैं बिल्लो की रसोई के दरवाज़े पर थी और बिल्लो के जेठ जेठानी डायनिंग रूम में बैठे थे.. रसोई से उस रूम तक आवाजें साफ़ सुनायी देती थी. बिल्लो की बहन का फोन आया तो पता नहीं क्यूँ बिल्लो ने फोन स्पीकर पर डाल दिया

"और चले गये मेहमान तुम्हारे?"बहन ने बड़े जहरीले अंदाज़ में बिल्लो से पूछा.. बिल्लो एकदम सकपका गयीं.. उनको समझ नहीं आया कि कैसे इस बात को सम्भाले... हर वक़्त बूँदी के लड्डू बने रहने की अनजाने में ही पोल खुल रही थी. खैर किसी तरह बिल्लो ने इशारा करके उसको चुप होने को कहा मगर तब तक हम सब ये सुन चुके थे.

हममें से कोई कुछ नहीं बोला पर सब अपनी अपनी जगह चालाक बिल्लो को लेकर सोच में थे.

फिर उसी शाम एक हादसा और हो गया... मेरी ट्रेन किसी टेक्निकल प्रॉब्लम की वजह से रद्द हो गयी और अब मैं सुबह ही जा सकती थी.. मेरे पास भी रुकने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था.

मैं और बिल्लो के पति ड्रॉइंगरूम में बैठकर बातें कर रहे थे कि अचानक बिल्लो मुँह बनाते हुए प्रकट हुई और अपने पति से बोलीं,

"सुनिए, क्या बनाऊँ इस वक़्त खाने में? पनीर भाई रात को खाते नहीं.."

मैं भी बिल्लो की तरफ देखने लगी तो जल्दी से उन्होंने अपना रोता हुआ मुँह सही कर लिया. मसला ये था कि इस शाम कामवाली नदारद थी.. पिछले सारे दिनों में जो काम हो रहे थे उसमें बिल्लो सिर्फ किचन में देखने जाती थी कि क्या हो रहा है और किचन से बाहर आकर हमें ऐसे दिखाती थी कि जैसे सारा खाना वही बना रहीं हैं

इस शाम भेड़िया आया भेड़िया आया वाली कहानी हो गयी और बिल्लो पर किचन में अकेले काम पड़ गया था.

"शीबा तुम परेशान ना हो तुम्हारे भाई वैसे भी सब्जी खाएंगे और मैं खुद बना लूँगी.. तुम अपना काम देख लो." उसकी जेठानी ने कहा

"अरे नहीं भाभी,, हो जायेगा हम सब कर लेते हैं दो मिनट लगते हैं हमें. आप बैठिए" बड़ी अदा से मेहमानों के यहाँ आने की चिढ़ को छुपाते हुए प्यारी बिल्लो नकली मुस्कराहट का खोल अपने चेहरे पर चढ़ाते हुए बोलीं.

आखिर अपने पति के सामने उनको सुर्खरू भी तो होना था.

मगर प्यारी बिल्लो ठहरी पूरी कामचोर... घर गृहस्थी के कामों में कभी जी नहीं लगता था. हमेशा घर को कबाड़ी वाले की दुकान बनाये रखती थीं.. कोई भी मेहमान आ जाये चला जाये.. घर ऐसे ही पड़ा रहता था.

हाँ बस मायके वालों की आमद पर या मनपसंद मेहमानों के आने पर थोड़ा बहुत हाथ पैर हिला लेती थी. लगभग सभी उन्हें सलीके समझाकर थक चुके थे...

जिसे बिल्लो अब फातेहाना अंदाज में बयान करती हैं कि मैंने किसी को भी अपने आप को बदलने नहीं दिया.

अब बिल्लो जी की महिमा बखान से बाहर है ये आप सब भी जान गये होंगे.

बिल्लो अब किचन में आ गयी थीं.दोपहर के सारे झूठे बर्तन भी पड़े हुए थे.. बिल्लो के होश उड़ गये क्यूँकी झूठे बर्तन को महिमामयी प्यारी बिल्लो कैसे धो सकती हैं..बिल्लो गुस्से में बर्तन पटक पटककर धोने लगी.. बर्तन पटकने की आवाज़ ने हम सभी का ध्यान किचन की तरफ खींच लिया था.

बिल्लो के जेठ जेठानी समझ चुके थे कि माजरा क्या है.. इसीलिए उसकी जेठानी उसकी मदद के लिए किचन में जाने लगीं और इत्तेफ़ाक ये हुआ कि मैं भी किचन में देखने आ रही थी कि प्यारी बिल्लो अचानक बूँदी के लड्डू से ज्वालामुखी कैसे बन गयीं वो भी तब जब घर में मेहमान मौजूद हैं.

मैं और उसकी जेठानी एक साथ किचन में जाने लगे तो हमने देखा कि बिल्लो अपनी कुकिंग गैस के पास से चाय का एक पतीला उठाकर बर्तन धोने वाले सिंक में फेंक रहीं थी.

मैं और भाभी अवाक से खड़े रह गये थे..मुझे प्यारी बिल्लो से इससे भी ज़्यादा ख़राब व्यवहार की उम्मीद हमेशा रहती है.. औऱ उसके यहाँ आने से पहले हम सब ख़ुद को इसी तरह तैयार रखते हैं कि प्यारी बिल्लो किसी भी वक़्त बहुत बुरा व्यवहार कर सकती हैं...

पर उसका अपनी जेठानी के सामने इस तरह व्यवहार करना मुझे शर्मिन्दा कर गया था.. आखिर मेरी कजिन थी. मुझसे उसकी जेठानी का सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही थी..

बहुत मुश्किल मैंने उनकी तरफ देखा.

वो शान्त रही पर बहुत गहरी सोच में दिखने लगी. वो किचन में गयीं और फिर अपने पति के लिये सब्जी बनाने लगी.. प्यारी बिल्लो बिलकुल लापरवाह अंदाज में खड़ी गुनगुनाते हुए बाकी खाना तैयार करने लगी.

मैं वापस ड्रॉइंगरूम में आ गयी थी. मुझे भाभी के लिये दुःख हो रहा था. तीन साल में कोई मेहमान अगर तीन दिन के लिये हमारे यहाँ आ जाये तो उसके लिये हमारा बस नहीं चलता कि क्या क्या खुशियाँ उसे दे डालें.

प्यारी बिल्लो एक डिश बनाकर अपना काम करने अपने रूम में जा चुकी थीं.. उस रात पूरा इंतजाम उसकी जेठानी ने किया..उन्होंने फिर मुझे भी कोई काम नहीं करने दिया.. मुझे पहली बार प्यारी बिल्लो की कजिन होने पर गुस्सा आ रहा था. मुझसे इस स्थिति का सामना नहीं किया जा रहा था.

 भाभी ने उस रात खाना भी नहीं खाया था और सुबह भी बग़ैर नाश्ता किये चली गयी.. कितनी समझदार थी वो.. अगर चाहती तो एक बड़ा हंगामा खड़ा कर सकती थी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि बिल्लो के जेठ भी बिल्कुल नॉर्मल थे

इसका मतलब तो यही हुआ कि भाभी ने उनको भी कुछ नहीं बताया था. और प्यारी बिल्लो ढिठाई के सारे तबक रौशन करके ऐसे घूम रहीं थीं कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं.

प्यारी बिल्लो के पति काफी हैरान परेशान से थे कि उनकी भाभी बगैर कुछ खाये पिये चली गयी हैं... वो सही में अपनी भाभी की तबियत को लेकर परेशान था.

सही बताऊँ तो नाश्ता करने का मेरा दिल भी नहीं कर रहा था मगर प्यारी बिल्लो के पति की परेशानी और ना बढ़े इसीलिये मैं चुपचाप नाश्ता करने बैठ गयी.

कुछ सेकेंड बाद प्यारी बिल्लो अदाएं बिखराती हुई मासूम बनती हुई मेरे सामने वाली कुर्सी पर नाश्ता करने आ बैठी थी.. मैं चुपचाप चाय पी रही थी.. बिल्लो ने वहाँ की खामोशी तोड़ी

"भाई, भाभी से बहुत काम लेते हैं.. बहुत क़ानून हैं उनके.. भाभी बेचारी भाई के काम कर करके थक जाती है.. इसीलिये उनकी तबियत ख़राब होने लगी है"

मैं हैरान सी बस यही सोच रही थी कि देश को कूटनीतिक मामलों में इससे सलाह ले लेनी चाहिये ऐसी ऐसी हरकतें और उपाय सुझायेगी कि दुनिया दंग रह जायेगी.

मेरा उससे बात करने का बिल्कुल मन नहीं था मैं कुछ नहीं बोली..

मुझे सिर्फ भाभी का उदास चेहरा याद आ रहा था और कल रात से उन्होंने खाना भी नहीं खाया था. कोई आम हालात होते तो समझ भी आता... Corona के तबाही वाले समय से तीन साल बाद खुशी खुशी सबसे मिलने आयी थी और प्यारी बिल्लो साढ़े तीन दिन भी उनकी खुशी बाकी ना रख सकी.

कितनी स्वार्थी थी ये इसका मुझे अब सही अंदाजा हो गया था.

मैं भी जल्दी ही उसके घर से निकल आयी.. ट्रेन आने में समय था पर मुझे आज स्टेशन पर बैठकर ट्रेन का इंतज़ार करना ज़्यादा सही लगा. उसे मेरे मूड ख़राब होने का पता चल गया था लेकिन कुछ बोली नहीं.

ट्रेन सही समय पर आ गयी थी और देर रात तक मैं घर वापस आ चुकी थी. सुबह नाश्ते पर मैंने माँ को सब कुछ बता दिया.

माँ भी उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा हुई और बोली,

"बहुत कमअक्ल लड़की है"

"माँ, आगे से उसके घर बिलकुल नहीं जाऊँगी चाहे काम से दो दिन के लिये वहाँ जाना पड़े या दस दिन के लिये. अभी से आपको बताये देती हूँ.. बाद में उसकी मोहब्बत में पिघलकर उसके घर रुकने को नहीं कहियेगा" मुझे अभी भी उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था

और सबसे ज़्यादा खुशी इस बात की थी कि आज माँ ने भी उस पर गुस्सा किया नहीं तो प्यारी बिल्लो के गुरुत्वाकर्षण में इतनी शक्ति होती है कि सामने वाला सही गलत में कोई फैसला नहीं कर पाता है. बस अभी ये खुशी पूरी तरह में मना भी नहीं पायी थी कि माँ की आवाज़ कानों में पडी,

"तुम भी बस करो.. कुछ ज्यादा ही पीछे पडी रहती हो उसके.. किसी को भी दूसरे के घर के हाल मालूम नहीं होते हैं.. क्या पता उसे क्या परेशानी है और क्यूँ वो ऐसी हो गयी है. तुम्हें तो उसकी कमी गिनाने का मौक़ा चाहिये. बस अब घर में किसी और से ये सब दोहराने की जरूरत नहीं है. भूल जाओ सब. "

मैं सुन्न सी बैठी हुई माँ को सुन रही थी.. कमाल है उस ऊपर वाले का जिस पे मेहरबान हो जाये तो क्या मजाल कोई उसका बाल भी बाँका कर दे.

जय हो प्यारी बिल्लो... मेरी ही माता श्री तुम्हारे पाले में जा खड़ी हुईं. सिर्फ़ सोचती ही रह गयी.. आपको क्या लगता है वहाँ बोलने के लिये कुछ बचा था क्या ????..

नहीं.. बस वहाँ से नाश्ता करके उठ आयी. छत पर आकर आसमान में उड़ती हुई पतंगों को देखने लगी.. आज पता नहीं क्यूँ हर उड़ती लहराती पतंग प्यारी बिल्लो की शक्ल में दिख रही थी.. औऱ मानो मुझे मुँह चिढाकर और ज्यादा इतराने और इठलाने लग जाती थी.

"ठीक है प्यारी बिल्लो, उड़ लो जितना उड़ना है.. वक़्त अच्छे अच्छों की शक्तियां हर लेता है.मगर सवाल यही है कि क्या समय प्यारी बिल्लो के गुरुत्वाकर्षण से बच पायेगा..

मेरे आने के बाद से पिछले तीन दिन में प्यारी बिल्लो के कई फोन आ चुके थे. सारे घर से खूब बातें कर रहीं हैं. मुझे कोई हैरानी नहीं है. प्यारी बिल्लो का काटा पानी माँग ही नहीं सकता है.

मैंने प्यारी बिल्लो के टॉपिक से ध्यान हटाने के लिये अपनी सहेली को फोन किया मगर उसने भी फोन उठाते ही महिमा मयी प्यारी बिल्लो के हाल सुनने चाहे.

"मैडम आजकल खूब फोन कर रहीं हैं मेरे यहाँ.. मुझे पता है क्यूँ फोन आ रहे हैं.. मेरे यहाँ सब लोग उनसे नॉर्मल हैं या नहीं बस इतना जानना है.

नहीं तो प्यारी बिल्लो कोल्ड ब्लडेड प्राणियों की श्रेणी में आती है अक़्सर शीतनिद्रा में ही रहती हैं.. कोल्ड ब्लडेड प्राणी फिर भी गर्मी में बाहर आ जाते है ये उनसे थोड़ी सी अलग है ये सिर्फ अपने मतलब से बाहर आती हैं."मैंने उसे बताया..

और जानती हो मुझसे क्या कह रही थी एक दिन मैंने थोड़ा साँस लेते हुए अपनी सहेली को बताया... मैडम कह रहीं थीं कि..

"हमने तो अपने पति से कह दिया तुम्हें जहाँ जाना है जाओ.. जिससे चाहे दोस्ती करो.. जिससे चाहे इश्क़ लडाओ... हम इतना कमा लेते हैं कि अपने बच्चों को आराम से पाल सकते हैं "

"हाय रब्बा.. कितनी साहसी है ये प्यारी बिल्लो."

"साहसी नहीं दुस्साहसी कहो.ख़ैर छोड़ प्यारी बिल्लो को.. कुछ और बात करते हैं.. मूड ख़राब हो जाता है मेरा."

मैंने चिढ़ते हुए कहा.

थोड़ी देर उससे बात करने के बाद में लॉन में कुर्सी पर आकर बैठ गयी.. प्यारी बिल्लो का गुरुत्वाकर्षण मेरे दिमाग में भी अपना असर करने लगा था.

वैसे देखा जाये तो माँ सही हैं.. हर किसी को अपना जीवन जीने का पूरा अधिकार है.. अगर प्यारी बिल्लो अपनी मर्जी से अपना जीवन जीना चाहती हैं तो लोग क्यूँ उनके पीछे पड़े रहते हैं..

क्यूँ उनके घर जाते हैं.. वो तो कभी किसी के घर नहीं जाती हैं.. फिर उनसे ही सारी उम्मीदें क्यूँ.. वो जितना कर दें उतना ही बहुत है. सारे गलतफहमी के बादल छंटने लगे थे.. मैं हैरान थी कि मुझे क्यूँ प्यारी बिल्लो से इतनी चिढ़ हो गयी थी.. मैं तो कभी किसी के बारे में गलत नहीं सोचती तो फिर क्यूँ बेचारी बिल्लो को मैंने बेकार में गलत ठहराया.

मैं प्यारी बिल्लो के प्रति अपने व्यवहार पर कुछ शर्मिन्दा सी थी...मैंने उसे कोल्ड ब्लडेड कहा लेकिन क्या ये सही था... आजकल सभी ज्यादातर अपने मतलब से मिलते हैं तो प्यारी बिल्लो से इस तरह की उम्मीद क्यूँ ना की जाये.. आखिर वो भी इसी दुनिया का हिस्सा हैं.

अभी ये सोच ही रही थी कि सामने बहुत तेज़ रौशनी होती प्रतीत हुई... मैं उस तेज रौशनी में कुछ भी नहीं देख पा रही हूँ... मैंने बहुत कोशिश करके रौशनी की तरफ देखना जारी रखा तो देखा उस रौशनी में प्यारी बिल्लो.. ड्रामा क्वीन अपने पूरे तेज के साथ जलवागर थी. और ये चकाचौंध उनके अंदर से निकलने वाले तेज के कारण ही थी. हम सभी प्यारी बिल्लो के पैर के नीचे दबे हुए थे और उन्होंने अपनी प्यारी मीठी मीठी बातों के तारों से हम सबको जकड़ा हुआ था. "

"नूर... नूर.. जाओ अपने कमरे में जाकर आराम से सो जाओ.. यहां लॉन में कुर्सी पर बैठकर क्यूँ सो रही हो." माँ ने मुझे जगाते हुए कहा

".. ना रौशनी थी.. ना प्यारी बिल्लो का तेज था.. उफ्फ्फ.. क्या सपना था.." मैंने थोड़ा घबराते हुए खुद से ही कहा

"हो ना हो... प्यारी बिल्लो के बारे में अनाप शनाप बातें फ़ैलाने का प्रकोप था ये.. तभी तो साक्षात प्यारी बिल्लो.. ड्रामा क्वीन मेरे सपने में अपने असली रूप के दर्शन करा गयीं.

मैंने मुस्कराते हुए फोन उठाया और प्यारी बिल्लो का नंबर डायल कर दिया.. तीन दिन से वो मुझसे बात करने की कोशिश में थी... उनसे पंगा लेना ठीक नहीं था यही सोचकर इस एपिसोड का अंत करना ही मुझे सही लग रहा था.


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