चिड़िया(का)घर
चिड़िया(का)घर
कल चिड़ियाघर देखने गए। सोचा था यह चिड़िया का घर होगा। पर वहाँ तो जानवर भी थे। रंगा सियार था, टेडी पूछ वाला कुत्ता था जो न घर का रहा था न घाट का इसलिए चिड़ियाघर में आ गया था। उसे वहम हो गया था कि उसके बिना बैलगाड़ी नहीं खिंचेगी। पर ये सोच आ बैल मुझे मार वाली थी जो किसी को कोल्हू का बैल भी बना सकती है।
एक हाथी था जिसके दाँत दिखाने के और खाने के कुछ और थे। हाथी की बात हो चींटी की न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि एक चींटी हाथी को भी मार सकती है। ऐसी बातों पर इतरा कर ही शायद चीटियों के भी पर निकल आते हैं। पर समय ऐसी चीज है जिसे किसी के पर कुतरने में वक्त नहीं लगता।
एक ऊँट था जिसके मुँह में जीरा था और जिसकी चोरी हिलोरे-हिलोरे (छुपके-छुपके) करके जहाँ पर लाया गया था
एक बन्दर था जिसके सिर पर तबेले की बला रख दी गई थी। क्योंकि उसे अदरक का स्वाद नहीं मालूम था। इसके साथ एक बूढ़ा बन्दर भी था जिसने अब तक गुलाटी मरना नहीं छोड़ा था।
एक भीगी बिल्ली थी। जिस पर कुछ लोगों ने अपना रास्ता काटने का आरोप लगा दिया था इसलिए वो खिसिया कर खम्भा नोच रही थी। क्योंकि अब तक उसके भाग्य से छीका नहीं टूटा था इसलिए वह नौ सौ चूहे खाकर हज जाने की सोच रही थी। चूहे निकालने के लिए पहाड़ खोदने की जरूरत नहीं होती पर हाँ उस पहाड़ के नीचे ऊँट जरूर आ जाता है। फिर वह किस करवट बैठेगा सोच भी नहीं पाता। लेकिन जब वक्त खराब हो तो ऊँट बैठे भी कुत्ता खा जाता है। और कई बार अन्धी पीसती है और कुत्ता खाता है। (नोट:-इस लाइन का हमारे नेता और वोटरों से कुछ लेना देना नहीं है) कुत्ते को घी भले ही हज्म न हो पर वो अपनी गली का शेर होता है। ऐसे कई शेर भी भौंके तो हाथी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
एक शेर था जिसका मुँह कोई धो नहीं पाया था इसलिए कुछ लोग उसे मिट्टी का शेर समझ रहे थे पर असल में था वो शेर दिल। इसकी मौसी वही पहले वाली बिल्ली थी। उसने इसे पेड़ पर चढ़ना नहीं सिखाया था इसलिए ये शेर अब तक सवा शेर नहीं बन पाया था।
एक गधा था जो काबूल का नहीं था। वह इंतजार कर रहा था कि किसी को कोई जरूरत पड़े और उसे अपना बाप बनाने आ जाये पर जरूरत ऐसे गायब हो गई थी जैसे उसके खुद के सिर से सींग लेकिन जरूरत इसलिए गायब थी क्योंकि जो भी उसे नोन (नमक) देता वो उसी पर अपनी आँख फोड़ने का आरोप मढ़ देता।
वहाँ एक बकरा भी था। जिसे अब तक बलि का बकरा नहीं बनाया गया था इसलिए उसकी अम्मा अब तक खैर बना रही थी।
साँप की एक बांबी भी वहाँ पर थी। जिसे लोग पूजने आ रहे थे पर वह घर आये साँप को नहीं पूजते थे। शायद वह उसे आस्तीन का साँप समझते होंगे जो कलेजे पर लोटने लगता है। अगर कोई आस्तीन का साँप निकल आये तो आस्तीन के साँप को ऐसे मारना चाहिए कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। नहीं तो साँप निकल जायेगा और लोग लकीर पीटते रह जायेंगे और फिर एक दिन दूसरे को कहते रहेंगे, "जैसे साँपनाथ वैसे नागनाथ"।
वहाँ एक भैंस भी थी जिसके सामने भीड़ लगी थी। और लोग उसके सामने अपनी बीन बजा रहे थे। पर वो खड़ी-खड़ी पंगुरा रही थी क्योंकि वो जानती थी कि इनके लिए काला अक्षर मेरे बराबर है। इन्हें नहीं पता कि मैं बड़ी हूँ या इनकी अक्ल। शायद इन सभी की अक्ल घास चरने चली गई है या उसमें भूसा भरा है। पर लठ्ठ बुद्धियों में भैंस उसी की होती है जिस पर लाठी हो, नहीं तो उन्हें ऐसा लगता है जैसे किसी ने उनकी भैंस खोल ली हो।
वहाँ पर एक कीड़ा भी था जिसे हर बख्त कोई न कोई कीड़ा काटता रहता था। वह अपने को किताबी कीड़ा समझता था पर असल में था वो गूलर का कीड़ा। जिसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी, न ही वो अपनी नाक पर मक्खी बैठने देता था इसलिए वो गेहूँ के साथ घुन की तरह पिस जाता था।
वहाँ एक कुँए में बरसाती मेढ़क भी थे। जो और सभी जानवरों को घर की मुर्गी समझते थे। वो गिरगिट की तरह रंग बदल कर अपना उल्लू सीधा करते थे और फिर खुद ही अपने मुँह मिया मिठ्ठू बने घूमते थे। एक दिन इन अंधों के हाथ बटेर लग गया फिर तो वो मगरमच्छ से भी बैर लेने को तैयार रहने लगे और छोटी मछलियों को निगलना शुरू कर दिया।
एक मोर था। जिसे जिसे जंगल में नाचने का शौक था। पर उसे किसी ने नाचते हुए नहीं देखा था। चिड़ियाघर में कोई चिड़िया नहीं दिख रही थी, शायद वो खेत चुगकर जा चुकीं थीं।