चीरहरण
चीरहरण
शहर में कोई मेला लगा था। मेला नहीं फेस्ट, मेला बोलना तो आजकल के हिसाब से गवार भाषा है। इस मेले में.... सॉरी फेस्ट में तीन पत्ती, रमी स्कॉयर, आई पी एल सट्टा आदि नामों से जुए की कई दुकानें लगीं थीं। मेले में 'मैं भी जुबा कैंसरी' वाले कई कलाकार बुलाए गए थे। (केसरी नहीं कैंसरी लिखा है ध्यान से पढ़े)। शहर के सभी लोग विशेषकर आजकल का डूबा वर्ग (युवावर्ग) अपना स्टेटस दिखाने के लिए इस मेले में आ रहा था। । अपने को हाई सोसायटी का दिखाने के लिए युवतियाँ व किशोरियाँ ही नहीं बल्कि अधेड़ व कई उम्रदराज महिलाएं भी बेस्टर्न ड्रेस पहन कर यहाँ पहुँच रहीं थीं।
ड्रोप डी (द्रौपदी) भी अपने स्कूल से सीधे इस फेस्ट में पहुँची थी। उसने स्कूल की पार्किंग से अपना वाहन निकाला, फिर उसने आव देखा न ताव और ध्वनि की गति से उसे दौड़ा दिया। उसे अपने ऊपर गर्व हो रहा था कि उसने इस रेस (आधुनिकता की दौड़) में कई लड़कों को भी पीछे छोड़ दिया है।
वहाँ फेस्ट में उसके पाँचों बॉयफ्रेंड पहले ही पहुँच चुके थे। अब स्कूल कॉलेज में बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रैंड की संख्या से ही यूथ की हैसियत देख
ी जाती है। फेस्ट में पहुँच कर द्रोपदी ने सबसे पहले अपनी स्कूल की ड्रेस उतारी और शॉर्ट व स्लीवलेस टॉप में आ गयी। टॉप को भी उसने मोड़कर कमर के ऊपर उर्स (बाँध) लिया।
इस मेले में उसके पड़ोसी भीष्म भी आये हुए थे। उनकी नजर द्रोपदी पर पड़ गयी, जो सार्वजनिक सभा में स्वयं अपने हाथों अपना चीरहरण कर रही थी। उन्होंने द्रोपदी को टोका तो उसके पाँचों बॉयफ्रेंड भीष्म पर चिपक गये। बुढऊ अपने काम से काम रखो। हमें सीख मत दो, हमें अपनी लाईफ इंजॉय करने दो। ओल्ड मैन आज दुनियाँ कहाँ से कहाँ जा रही है और तुम वही पुरानी बातों का रोना रोते रहते हो। इस पर भी भीष्म ने द्रोपदी को समझाने की कोशिश की तो द्रोपदी भड़क गयी," मैं क्या पहनू, क्या न पहनू, कहाँ जाऊँ, किसके साथ जाऊँ, इससे आपको क्या...??
भीष्म इस पीढ़ी की शिकायत करते भी तो किससे करते। द्रोपदी के पिता धृतराष्ट्र बेटी के प्यार में अँधे थे। उन्हें बेटी का बुरा-भला कुछ नहीं दिखता था। उन्हें तो बस अपनी बेटी को समाज में हर काम में आगे रखना था और माँ गांधारी ने तो पहले ही अपनी आँखों पर आधुनिकता की पट्टी बाँध ली थी।