कवि हरि शंकर गोयल

Comedy

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कवि हरि शंकर गोयल

Comedy

कौन सुनना चाहता है, सच

कौन सुनना चाहता है, सच

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अभी कुछ लोगों ने मेरी रचनाओं में मेरे द्वारा गढ़े गए पात्र हंसमुख लाल जी , छमिया भाभी , खैराती लाल जी वगैरह के बारे में जिस तरह से उनसे स्नेह प्रदर्शित किया है, उससे में हैरान हूं । मैंने मजे मजे में इन पात्रों की रचना कर दी थी । मगर अब ये पात्र मेरे लेखन की पहचान बन गए हैं । अब तो किसी रचना में अगर इनका उल्लेख नहीं होता है तो लोग कहने लगते हैं कि हंसमुख लाल जी कहां चले गए ? और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारी छमिया भाभी के दीवानों की तो बहुत लंबी लाइन लगी हुई है । पहले हम यही समझते थे कि छमिया भाभी के दीवाने हम अकेले ही हैं। अब पता चला कि पुरुष ही नहीं महिलाएं भी उनकी दीवानी हैं । मुझे लगा कि छमिया भाभी तो केवल मर्दों की चहेती होंगी लेकिन हमारी यह धारणा एक झटके में टूट गई जब बहुत सारी महिलाओं ने आज की रचना "श्रेष्ठ लेखन" में छमिया भाभी को नहीं देखा तो उन्हें बड़ा बुरा लगा और छमिया भाभी की डिमांड कर डाली।

तब मुझे भी लगने लगा कि अगर कोई पात्र इतनी प्रसिद्धि पा जाए तो लेखनी कृतार्थ हो जाती है । कुछ कुछ ऐसे जैसे चाचा चौधरी, मोटू पतलू , मोगली वगैरह पात्र अमर हो गए । काश , हमारी छमिया भाभी भी अमर हो जाएं ।


लॉकडाउन लगने के बाद छमिया भाभी के तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए थे । हम तो पतंग उड़ाने के बहाने से ही सही , छत पर जाते थे कि क्या पता भाभीजी के दर्शन हो जाएं और हमारी बैटरी रीचार्ज हो जाए ? मगर हम ऐसे बदकिस्मत इंसान हैं कि वे एक बार भी ऊपर नहीं आईं इस दौरान । एक दो बार हमने फ़ोन पर इशारों में कहा भी था कि भाभीजी कपड़े ऊपर धूप में सुखाया करो । ऊपर छत पर कपड़े सुखाने से उनके कीटाणु मर जाते हैं । मगर वो कहती थीं , ऊपर बहुत तेज धूप पड़ती है , उनका बदन धूप में "काला" हो जाएगा ! और इस चक्कर में पूरे दो महीने निकल गए । 


अब जब लॉकडाउन हट गया है और पार्क भी खुलने लग गए हैं तो हमने एक और प्रयास किया । इस बार तीर निशाने पर लगा और भाभीजी ने सुबह आने की सहमति दे दी । 


उत्साह के कारण हमें रात में नींद ही नहीं आई । आंखों के सामने भाभी का चेहरा ही रहता था हरदम । छमिया भाभी का नाम रटते रटते बड़ी मुश्किल से रात कटी । सुबह सुबह पांच बजे ही पार्क में पहुंच गए और भाभीजी का इंतजार करने लगे । छः बज गए । एक घंटे में पार्क के दस चक्कर लगा लिए हमने । जैसे ही छः बजे , सामने से छमिया भाभी आतीं दिखाई दे गई । क्या वर्णन करूं उस दृश्य का जब छमिया भाभी हिरनी की तरह लचकती , मटकती , आंखों से मधुशाला बहाती हुई पार्क की ओर आ रही थीं ।वह दृश्य अवर्णनीय था । हमें बहुत सुकून मिला उन्हें इस मोहिनी रूप में देखकर ।


पास आने पर हमने लगभग दोहरे होते हुए नमस्कार किया । भाभीजी जब मुस्कुरा कर नमस्कार करतीं हैं तब ऐसा मन करता है कि ये धरती यहीं पर रुक जाए और भाभीजी की यह अद्भुत मुस्कान "मोनालिसा" की मुस्कान से भी ज्यादा प्रसिद्ध हो जाए । उस मुस्कान पर न जाने कितने रसिकलाल फिदा हो गए थे अब तक। 


महिला का स्वागत केवल नमस्कार से ही नहीं किया जाता है बल्कि "स्वागत शब्दों" से भी करना पड़ता है । वे "स्वागत शब्द" हैं "आज तो आप कमाल लग रहीं हैं , भाभीजी ! आपके स्वागत में सारी कायनात बिछी हुई है" । 

इन शब्दों का असर कैसा होता है , यह जानने के लिए हिम्मत के घोड़े दौड़ाने पड़ते हैं और सिर को मजबूत बनाना पड़ता है कि अगर सैंडल पड़ने लगें तो कम से कम उसका सिर टूटने से तो बच जाए ? 


भाभीजी मुस्कुराते हुए बोलीं " आपकी तो तारीफों के पुल बांधने की आदत है , भाईसाहब । सच्ची मुच्ची में बताओ कि क्या वाकई हम बहुत सुंदर लग रहे हैं" ? 


महिलाओं की इस अदा पर कौन ना हो जाए कुर्बान ? हाय, जिस तरह से कहा उन्होंने , हमारा दिल तो ऐसे उछलने लगा जैसे बेताबी के कारण अभी बाहर निकल कर भाभीजी के कदमों पर ही गिर पड़ेगा । हमने भी दांत दिखाते हुए कहा "कसम से भाभीजी , आज तो आप ऐसी लग रही हैं जैसे आसमान से कोई अप्सरा उतर आई हो जमीं पर । ऐसा लग रहा है कि आपके बदन की महक से पूरा पार्क महक रहा है । जैसे कि भोर की एक अलसाई किरण आकर अपने जलवे बिखेर रही हो । और ... " 


हम कुछ और कहते कि इतने में उन्होंने हमें हाथ के इशारे से रोकते हुए कहा "वैसे तो हम जानते हैं कि आप कभी झूठ नहीं बोलते । मगर क्या है कि "मर्द" बिरादरी की आदत है "मस्का" मारने की । इसलिए मुझे छूकर , मेरी कसम खाकर सच सच बताओ कि हम अप्सरा लग रहे हैं क्या" ? 


उन्होंने हमें जो छूने के लिए कहा था तो हमारी इच्छा जाग उठी उन्हें छूने की । मगर साथ साथ यह भी कह दिया कि सच सच बताना । अब छमिया भाभी को छूकर हम ये सब बात कैसे कह दें ? ये सब कोई सच तो नहीं है न । लेकिन भाभी से कुछ देर बातचीत करने का , हंसी-मजाक करने का और "दर्शन" सुख लेने का यही एक तरीका है । ऐसा हर कोई मर्द करता है हर औरत से बातचीत करते हुए । लेकिन छमिया भाभी की झूठी कसम हम नहीं खा सकते थे । इसलिए हम बड़ी दुविधा में पड़ गए । 


हमें दुविधा में देखकर भाभीजी थोड़ी चिंतित हुईं और कहा "कहिए न भाईसाहब हमें छूकर ? हमें तभी विश्वास आयेगा , नहीं तो हम समझेंगे कि आप भी झूठी तारीफें करते हो " । 


अब मैं गंभीर हो गया । कहने लगा " किसको सच सुनना है भाभीजी , यहां पर ? कौन है ऐसा जो सच का कड़वा घूंट पीना चाहता है ? सच रूपी "विष" को अपने गले में कौन लटकाना चाहता है ? सबको उसके मन माफिक बात सुननी है । वह चाहे कितनी ही असत्य क्यों न हो ? सबको चाशनी से भी ज्यादा मीठी और फूलों से भी ज्यादा सुंदर बात सुननी है लेकिन सत्य नहीं । यहां पर सत्य का ग्राहक कोई नहीं है भाभीजी । सब "ठकुरसुहाती" चाहते हैं । इसलिए आप यह कसम वसम का चक्कर रहने दीजिए " । हमने नजरें फिराते हुए कहा । 


छमिया भाभी भी अब गंभीर हो गईं । मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोलीं "भाईसाहब , अगर आप ही सच नहीं बोलोगे तो कौन बोलेगा ? आप केवल सच ही बोलिए , मैं सुनने को तैयार हूं । चाहे वह कितना भी कड़वा क्यों ना हो" ? 


"भाभीजी , इस दुनिया में सब लोग नाटक करते हैं सच बोलने का और सच सुनने का । बोलने वाला भी जानता है कि वह झूठ बोल रहा है और सुनने वाला भी जानता है कि वह झूठ सुन रहा है । मगर फिर भी झूठ ही बोला जाता है और झूठ ही सुना जाता है । उस झूठ पर खुश होकर ताली भी बजाई जाती है और मिठाई भी खिलाई जाती है । झूठ से सब लोग खुश हैं । फिर सच की आवश्यकता किसे है ? और सच बोला ही क्यों जाये" ? 


छमिया भाभी ने बड़े प्रेम से कहा "कोई जरूरी तो नहीं है किसी की झूठी प्रशंसा करना । नहीं करनी चाहिए झूठी प्रशंसा किसी की । जो सच बात हो वही कहनी चाहिए" । 


यह सुनकर मुझे बहुत तेज हंसी आ गई । मैंने कहा "भाभीजी , अगर मैं कहूं कि आप "भैड़दा" (कुरुप जिसने बेढंगा मेकअप कर रखा हो) लग रही हो । आपसे ज्यादा सुंदर तो हमारी कामवाली बाई है । तो क्या आपको यह सब अच्छा लगेगा " ? 


तीर सीधा निशाने पर जाकर लगा । उन्होंने एक झटके से मेरा हाथ छोड़ दिया और सरक कर थोड़ा दूर हो गई । बोलीं " कभी कुछ कहते हो , कभी कुछ कहते हो । कभी स्वर्ग में बैठा देते हो तो कभी कुंभीपाक नर्क में भेज देते हो । हमारी समझ में नहीं आती हैं आपकी बातें" । वे खफा होकर बोलीं । 


उन्हें इस रूप में देखकर हमें फिर से हंसी आ गई । कहने लगे "एक ही सच में आप तो बिल्कुल "चित्त" हो गई, भाभीजी । महिला चाहे कैसी भी क्यों न हो , वह यही चाहती है कि उसके रूप सौंदर्य की खूब प्रशंसा की जाए । एक बार नहीं , सौ बार नहीं , बार बार की जाये । जब कोई पुरुष किसी सामान्य सी महिला को यह कहता है "आप बहुत सुंदर लग रही हैं" तब क्या उस महिला को पता नहीं है कि वह सुंदर है या यह "लंपट" मस्का लगा रहा है । मगर वह महिला भी वही शब्द सुनना चाहती है । पतियों को अपनी पत्नियों से दिन में चार बार क्यों कहना पड़ता है कि आज तो तुम "गजब" ढा रही हो । आज तो तुम बड़ी "कातिल" लग रही हो । आज ही सारी "बिजलियां" गिरा दोगी क्या ? हाय, आज तो मार ही डालोगी ! 


क्या पत्नी ने कभी अपना चेहरा नहीं देखा आईने में ? मगर वह सपनों की दुनिया में जीना चाहती है । सपने तो सपने होते हैं , हकीकत नहीं । लेकिन वह कुछ देर उस झूठी दुनिया में विचरण करना चाहती है , और अपने आपको अप्सरा मानकर प्रसन्न होना चाहती है । 


जब एक प्रेमिका अपने प्रेमी से पूछती है "तुम मुझे कितना प्यार करते हो ? तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो "? 


तब प्रेमी क्या कहता है " मैं तुम्हें समंदर की गहराइयों से भी ज्यादा प्यार करता हूं । जैसे कि उसने समंदर की गहराई नाप रखी हो । आसमान से भी ऊंची मेरे प्यार की उड़ान है । जैसे कि उसने आसमान को अपने कदमों से नाप रखा हो । वह कहता है "मैं तुम्हारे लिए चांद सितारे तोड़ कर ला सकता हूं । जैसे कि चांद सितारे तोड़ कर लाना किसी पेड़ से फल तोड़कर लाने से भी आसान काम है । मगर प्रेमिका वही सब झूठी बातें सुनना चाहती है । उसे भी पता है कि इसने समंदर केवल "गूगल" पर देखा है । आसमान केवल छत पर खड़े होकर देखा है । इसके वश में तो चार बेर तोड़कर लाना भी नहीं है लेकिन बातें तीसमार खां जैसी कर रहा है । फिर भी उसके ऐसा कहने पर वह क्या कहती है "सच, तुम मुझे सागर से भी ज्यादा प्यार करते हो" । उसे उसके गंदे इरादे नजर ही नहीं आते और वह उसके जाल में फंसकर अपनी जिंदगी तबाह कर लेती है । क्यों ? क्योंकि , वह सच सुनना चाहती ही नहीं है । अगर वो प्रेमी कह देता कि जैसे और लोग प्रेम करते हैं , वैसा ही मैं भी करता हूं , तो वह एक मिनट में भाग जाती और कह देती "तुम तो मुझसे नहीं , पता नहीं किससे प्रेम करते हो" । 


"इसी तरह जब कोई मोटी औरत आपसे पूछे कि क्या वह मोटी है ? तो आप क्या कहतीं हैं ? "अरे नहीं दी , आप कहां मोटी हैं ? आप तो एकदम स्लिम हैं । वो तो आपने कपड़े ऐसे पहने हैं जिससे ऐसा आभास हो रहा है जैसे गर्मियों में दूर सड़क पर देखने पर पानी का आभास होता हो" । 

"इसी तरह जब कोई आधुनिक लड़की एक ऐसी जींस पहन कर आती है जिसे जगह जगह से फाड़ रखा हो । जिस पर गंदे गंदे धब्बे बने हुए हों और कुछ जगह रगड़ लगने के निशान बने हों । और वह आकर पूछे कि मेरी जींस कैसी लग रही है ? आज ही खरीदी है पूरे दस हजार रुपए में । तब क्या आप यह कहने की हिम्मत कर पाएंगी कि "इस जींस में तू पूरी भिखारिन लग रही है । नहीं कह पाओगी ना ? क्योंकि सच वह भी जानती है लेकिन आधुनिक दिखने के चक्कर में एक आभासी दुनिया में घूमती रहती है वह । उसे सच सुनना बिल्कुल पसंद नहीं है" । 


जब कोई मेहमान आपके घर आता है और अपने बच्चे को कहता है कि "बेटा , पोयम सुनाओ । टैन तक टेबल सुनाओ "। वह बच्चा जैसे तैसे सुनाने लगता है । फिर वह मेहमान आपसे पूछता है " पढ़ने में कैसा है मेरा बेटा" ? तब आप क्या कहतीं हैं । "बहुत इंटेलीजेंट है आपका बेटा तो । यह तो बड़ा होकर आई ए एस बनेगा" । और बाद में पता चलता है कि वह तो बोर्ड परीक्षा में ही फेल हो गया था। तो क्या सच सुनना स्वीकार्य था उसे" ? 


"हम पीठ पीछे अपने बॉस की कितनी बुराई करते हैं । मगर उसके सामने क्या कहते हैं "सर, आपसे बेहतर प्रबंधक / प्रशासक न कभी हुआ है और न कभी होगा । ना भूतो ना भविष्यति । और बॉस कितना खुश रहता है यह सुनकर" । 


"जब चार मित्र एक साथ बैठकर 'अंगूर की बेटी की कुछ बूंदें हलक में डालकर और "चखने" से जीभ को रसास्वादन करवा कर अपने किसी ऐसे मित्र के बारे में बातें करते हैं जो उस समय वहां मौजूद नहीं है , तो उसके बारे में क्या बातें करते हैं ? उसका सात जन्मों का कच्चा चिट्ठा वहीं पर सुना देते हैं । और अगर वही मित्र वहां पर आ धमके तो ये ही मित्रगण उसकी प्रशंसा के पुल बांध देते हैं । क्योंकि सच वे ना तो कह सकते हैं और ना वो सुन सकता है" । 


"जितने भी बड़े बड़े पुरस्कार हैं वे किसी न किसी तिकड़म से हासिल किए गए हैं लेकिन ऐसे पुरस्कृत व्यक्ति की प्रशस्ति गान में उन्हें क्या क्या नहीं कहा जाता है ? सब जानते हैं कि नेता , अफसर कैसे होते हैं । मगर जब उन्हें मुख्य अतिथि बनाकर मंच पर सुशोभित किया जाता है तो उनकी ईमानदारी , सादगी, नेकनीयती , कर्तव्य परायणता , समय का पाबंद , महान चरित्रवान और न जाने क्या क्या कहते हैं । क्या कोई सच सुनना पसंद करता है " ? 


"लेखकगणों की तो पूछो ही मत । अपनी रचना लिखकर प्रकाशित करने के बाद उसकी ख्वाहिश होती है कि सब लोग उस रचना को पढ़ें और समीक्षा में उसका प्रशस्ति गान करें । मगर क्यों ? क्योंकि तारीफें सबको पसंद हैं " । 


"रही बात जनता की । जनता को भी पता है कि राजनीतिक दल कितने झूठे वादे करते हैं पर उन झूठे चुनावी घोषणापत्रों को सच मानकर वोट देते ही हैं । हम सब जानते हैं कि जो लोग "ईमानदारी की राजनीति" करने का वादा करके सत्ता में आये थे , वे आज सबसे बड़े भ्रष्ट सिद्ध हो गये हैं । मगर लोग उनको फिर भी चुन रहे हैं और वे बड़ी बेशर्मी से उस जनता का मखौल भी उड़ा रहे हैं" । 

"इसलिए भाभीजी आप खुद ही बताइए कि सच कौन सुनना पसंद करता है । धूर्त मक्कार का आजकल नाम "स्मार्ट" रख दिया है क्योंकि धूर्त मक्कार तो कह नहीं सकते इसलिए स्मार्ट कह देते हैं और वह सुनकर खुश भी रहता है । काले आदमी को काला कौन कहता है , सांवला कहते हैं और सांवले तो कृष्ण कन्हैया भी थे जिनकी सारी दुनिया दीवानी थी । अंधे को अंधा कहने की हिम्मत किसमें है ? सब लोग उसे "सूरदास" कहते हैं । इसी तरह काणे को "शुक्राचार्य" और नपुंसक को "वृहन्नला" कहते हैं । ये सब शब्दों की ही बाजीगरी है भाभीजी । यदि किसी औरत को "हत्यारिन" कह दो तो वह ऐसी पिटाई करेगी कि सात पुश्तें याद आ जायें मगर उसे आप "कातिल" कह दो तो खीर मालपुआ बनाकर खिला देगी" । 


हमारे इतने लंबे चौड़े व्याख्यान को छमिया भाभी गौर से सुन रहीं थीं । उन्हें सत्य का ज्ञान हो गया था । मगर वो भी आभासी दुनिया में ही जीना चाहती थीं । इसलिए मुस्कुरा कर बोली "आप सही कह रहे हो भाईसाहब । जो आप मुझे पहले कह रहे थे , परी, अप्सरा वगैरह , ऐसे फिर से कहो ना । मैं वैसा ही और सुनना चाहती हूं "। और वे जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी । 



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