हरि शंकर गोयल

Comedy

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हरि शंकर गोयल

Comedy

कोरोना पास

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हमारे मौहल्ले में घसीटा राम जी रहते हैं ‌। जलदाय विभाग में हैंडपंप मिस्त्री हैं । आजकल हैंडपंप तो रहे नहीं । हैंडपंप रहे नहीं का मतलब यह नहीं है कि जो पहले के हैंडपंप लगे हुए थे उनको कोई चोर उचक्का उठा ले गया हो ? बल्कि इसका मतलब ये है कि आजकल पानी जमीन के अंदर इतना नीचे चला गया है कि वह हैंडपंप की रेंज से बाहर हो गया है । मतलब कि अब हैंडपंप से पानी नहीं निकलता है सिर्फ हवा निकलती है । काश ! यह व्यवस्था देश की छोटी बच्चियों के लिए भी होती कि वे भी बलात्कारियों की पहुंच से पानी की तरह कहीं इतनी दूर चलीं जातीं कि उनके हाथ ही नहीं आती और वे बच जातीं । मगर उन बच्चियों की ऐसी किस्मत कहां ? 


वैसे एक राज की बात बताऊं आपको ? आजकल पेट्रोल और डीजल के दाम जिस गति से बढ़ रहे हैं , उससे तो लगता है कि थोड़े दिन बाद ऐसी स्थिति आएगी कि लोग पेट्रोल और डीजल भराने नहीं बल्कि गाड़ी को पेट्रोल / डीजल सुंघाने पेट्रोल पंप पर जाएंगे और पंप से पेट्रोल के बजाय केवल हवा निकलेगी जिस तरह आजकल हैंडपंपों से निकलती है । 


तो , घसीटा राम जी पानी के महकमे में काम करते हैं । हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे मौहल्ले में रहते हैं । उनके इस मौहल्ले में रहने से हमारे नल चौबीसों घंटे आते हैं । इसके पीछे भी एक कहानी है । पहले जब घसीटा राम जी हमारे मौहल्ले में नहीं रहते थे तब दो दिन में एक बार नल से पानी आता था और वह भी केवल आधा घंटा । इस अवधि में इतना ही पानी आ पाता था कि वह पानी पीने , रसोई के लिए खाना बनाने और थोड़ा बहुत नहाने धोने के लिए होता था । इतना नहीं होता था कि सब लोग नहा लें । इसलिए हमने सबकी बंधी बांध दी थी । वैसे भी हमारे देश में "बंधी" का बहुत प्रचलन है । हर सरकारी विभाग में "बंधी" आवश्यक रूप से चलती है । बिना बंधी के ऐसा लगता ही नहीं हैं कि कोई सरकारी कर्मचारी / अधिकारी है । 


तो हमने दिल्ली सरकार की तरह "ऑड - ईवन" फार्मूला अपना लिया । दर असल इस फार्मूले की शुरुआत ही हमने की थी लेकिन हमारी हैसियत ऐसी है कि हमें हमारी श्रीमती जी भी नहीं गांठतीं हैं , औरों की तो क्या बात करूं ? घर के आधे सदस्य सम तारीखों पर और आधे विषम तारीखों पर नहाने लगे । हमारे फार्मूले को "सर जी" ले उड़े और अपना मौलिक बता "वाह वाही" लूट ले गए । वैसे भी "सर जी" लूटने में माहिर हैं , वाहवाही । 


हम सब लोग नहाते भी कुर्सी पर बैठकर ही थे । कुर्सी के नीचे परात रख देते थे जिसमें नहाने का पानी इकट्ठा हो जाता था । उस पानी से कपड़े धो लेते थे । कपड़े निचोड़ने के बाद जो पानी बचता , उस पानी को "संडास" में काम ले लेते थे ।

मौहल्ले में पहले एक हैंडपंप हुआ करता था जब उसमें से हवा नहीं पानी निकलता था । तब हमने उस हैंडपंप पर गजब की "कुश्ती प्रतियोगिता" , बॉक्सिंग , लात घूंसा प्रतियोगिता और कपड़े फ़ाड़ प्रतियोगिताएं देखी थीं । उन दिनों उस हैंडपंप पर मेला सा लगा रहता था । उस हैंडपंप की बदौलत दो चार लोगों की जोड़ी बन गई थी जो शादी में तब्दील भी हो गई थी । वे लोग अपनी शादी की सालगिरह पर उस हैंडपंप की पूजा जरूर करते हैं । वो हैंडपंप ही तो था जिसने उन्हें मिलवाया था । अगर कभी हैंडपंपों के योगदान पर कोई शोध करेगा तो ऐसी बहुत सारी कहानियां भी सामने आएंगी जो चुपके चुपके अभी भी चल रहीं हैं, हैंडपंपों के आसपास । 


और एक दिन घसीटा राम जी हमारे मौहल्ले में आ गए । बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया था उनका । आखिर पानी वाले विभाग में जो थे । हमारे जैसे फालतू के अधिकारियों को कौन पूछे ? घसीटा राम जी के यहां दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती थी । उनके आठ बच्चे हैं इसलिए सारी तनख्वाह उनकी रोटी पानी, कपड़े में ही पूरी हो जाती है । घर का बाकी सामान कैसे आए ? घसीटा राम जी के लिए पानी का समय बढ़ाकर दो घंटे कर दिया गया । घसीटा राम जी के पास न तो तमेड़ी और ना बाल्टी थी । आखिर पानी किस में भर कर रखते ? इसलिए उन्होंने अपने विभाग में कहा कि मेरे पास पानी स्टोर करने के लिए कोई बर्तन नहीं है , इसलिए पानी का टाइम बढ़ा दो । बस, फिर क्या था । पानी विभाग ने घसीटा राम जी की खातिर हमारे मौहल्ले में पानी की आपूर्ति चौबीसों घंटे कर दीं । बस, तब से ही हम रोज प्रार्थना के समय भगवान से यही मांगते हैं कि "प्रभु , चाहे कुछ भी दंड दे देना , मगर घसीटा राम जी को हमारे मौहल्ले से अलग मत करना" । प्रभु की कृपा अभी तक बरकरार है ।


घसीटा राम जी की सेवानिवृत्ति इसी साल अगस्त महीने में ही है । राजकीय सेवा में थोड़ी देर से आए थे । दर असल हुआ यों कि "घूस सिंह" जे ई एन साहब अपनी साइट पर पानी के पाइप डलवा रहे थे । उसके लिए मिट्टी खुदवा रहे थे । तब घसीटा राम जी एक बेलदार के रूप में उस साइट पर रोज मिट्टी खोदा करते थे । घसीटा राम जी बड़े शांत स्वभाव के हैं । घूस सिंह जी को घसीटा राम जी पसंद आ गए और वे उन्हें अपने घर का काम करवाने के लिए अपने घर ले आये । घसीटा राम जी को पैसा सरकार देती थी बेलदार के रूप में लेकिन काम जे ई एन साहब के घर करते थे । 


जब घसीटा राम जी को जे ई एन साहब के घर काम करते करते कई साल हो गए तब एक दिन घसीटा राम जी ने कहा "हुजूर , आपकी खिदमत करते करते इतना समय गुजार दिया । अगर कोई बंदोबस्त हो जाए तो हमें भी सरकारी नौकरी दिलवा दो ना । सेवा आपकी करेंगे और तनख्वाह सरकार से लेंगे "। 


घूस सिंह जे ई एन को बात जम गई । उसने एस ई साहब से बात की । एस ई साहब ने पूछा "घसीटा राम का कोई भाई वाई नहीं है क्या" ? 

घूस सिंह जी हैरत में पड़ गए कि साहब उसके भाई में क्यों रुचि ले रहे हैं ? उनकी मनोदशा को एस ई साहब तुरंत ताड़ गए और बोले "तुम अकेले अकेले ही नौकर रखोगे क्या ? हम किस मर्ज की दवा हैं ? आखिर तुम्हारे बॉस हैं । नौकर पर पहला अधिकार हमारा है । पहले हमारे यहां लगेगा नौकर , फिर तुम्हारे यहां " ।


घूस सिंह जे ई एन साहब का इशारा समझ गया । बोला " साहब इसके तीन भाई और हैं , फेंकू राम , खेंचू राम और झगड़ा राम । बताएं , कौन सा चाहिए आपको" । 


कुछ सोचते हुए एस ई साहब बोले "ऐसा करो , घसीटा राम को तुम रख लेना और बाकी तीनों मेरे घर में काम कर लेंगे । तुम्हारे बॉस की बीवी भी खुश , बॉस भी खुश और तुम भी खुश । ठीक है ? आज ही ऑर्डर लेकर जाना । पर हां एक बात है , नौकरी पक्की तभी होगी जब ये दसवीं पास कर लेंगे और प्रमोशन तब होगा जब बारहवीं कक्षा पास कर लेंगे । समझ में आ गया" ?

"जी साहब" ।


घूस सिंह को तो अपने काम से मतलब था । घसीटा राम मिल गया उसे ,और क्या चाहिए ? साहब अपने घर तीन नौकर रखें या दस , हमें क्या" ? 


और इस प्रकार से घसीटा राम जी सरकारी नौकरी में आ गए । अब नौकरी में तो आ गए मगर परमानेंट होने के लिए दसवीं कक्षा पास करना जरूरी था । घसीटा राम जी और उनके भाइयों ने हर साल परीक्षा देना शुरू कर दिया । घूस सिंह जी ने उसे एक दो "फंडे" भी दिए पास होने के । जैसे कॉपी खाली छोड़कर मत आना । कुछ न कुछ जरूर लिख कर आना । अगर कुछ भी नहीं आए तो हनुमान चालीसा ही लिख आना । वह तो याद होगा ? और घसीटा राम जी को अचूक अस्त्र मिल गया था । बस, कॉपी में हनुमान चालीसा ही लिख कर आ जाते । कॉपी कभी भी खाली छोड़कर नहीं आते थे ।


ऐसा करते करते कई साल गुजर गए , मगर घसीटा राम जी पर बजरंग बली की कृपा दृष्टि नहीं हुई । वैसे बजरंग बली जी कृपा अवश्य करते हैं अपने भक्तों पर । जब कई साल हो गए परीक्षा देते देते तो एक साल ऐसा हुआ कि अध्यापकों ने हड़ताल कर दी । परीक्षाएं लेने से मना कर दिया । सरकार ने उनकी मांगे नहीं मानी । अब बोर्ड की परीक्षा कौन करवाए ? बड़ा गंभीर संकट था ।


सरकार में एक ही रामबाण औषधि है "कलेक्टर" । वह सारे मर्ज का पक्का इलाज है । कलेक्टरों ने बाबू , चपड़ासी और NCC के बड़े बच्चों के माध्यम से परीक्षा करवा ली । घसीटा राम जी उस साल दसवीं की परीक्षा दे रहे थे । बजरंग बली की कृपा से इनके कमरे में एक ऐसे चपड़ासी की ड्यूटी लग गई जिसने भी बहुत बार दसवीं की परीक्षा दी थी लेकिन वह कभी पास नहीं हुआ था । इसलिए वह इस दर्द को समझता था । दुखी आत्मा ही दूसरी दुखी आत्मा का दर्द समझ सकती है । उसने घसीटा राम जी की मदद की । घसीटा राम जी को कुंजी , पास बुक , किताब से नकल करने की छूट दे दी गई । 


कहते हैं कि नकल के लिए भी अकल चाहिए और अकल कोई बाजार में तो मिलती है नहीं कि घसीटा राम जी बाज़ार जाकर खरीद लाएं ? प्रश्नों के उत्तर कहां पर हैं पासबुक में , यह कौन बताए ? पर कहते हैं कि जब खुदा मेहरबान तो गधा पहलवान । घसीटा राम जी पर बजरंग बली जी की पूरी कृपा थी इसलिए वीक्षक के रूप में तैनात चपड़ासी महोदय ने घसीटा राम जी की यहां भी मदद की । वैसे तो उनकी स्थिति भी घसीटा राम जी जैसी ही थी । उन्हें भी आता जाता कुछ नहीं था लेकिन उन्हें "प्रैक्टिकल ज्ञान" बहुत ज्यादा था । इसलिए उन्होंने घसीटा राम जी को कहा " आप तो इस पासबुक में से कोई सा भी जवाब लिख दो । उस पर प्रश्न संख्या मत लिखना । कॉपी चैक करने वाला अपने आप देखेगा कि यह कौन से सवाल का जवाब है । और जब उसे खुद समझ नहीं आएगा तो झख मारकर उसे नंबर देने ही पड़ेंगे" । 


घसीटा राम जी ने उसके पैर पकड़ लिए और कहा "आज तो बजरंग बली साक्षात मेरे सामने अवतरित हो गए हैं आपके वेश में । आज मैं धन्य हो गया" । 


यह युक्ति काम कर गई । जब कॉपी चैक करने के लिए अध्यापक के पास गई तो अध्यापक भी चक्कर में पड़ गया । जवाब तो लिखे हुए थे मगर किस प्रश्न के हैं यह नहीं पता । प्रश्न का नंबर नहीं लिखने का उसने एक एक ऩबर काट लिया और पूरे नंबर दे दिए । घसीटा राम जी को 80% अंक मिल गए । "डिस्टिंक्शन नंबर" से पास हो गए घसीटा राम जी । 'विश्वास होना चाहिए , वरदान जरूर मिलता है ', घसीटा राम जी ने यह सिद्ध कर दिया। 


दसवीं पास होते ही घसीटा राम जी की नौकरी पक्की हो गई । एक बार पक्का होने के बाद नौकरी से अब कोई नहीं निकाल सकता है । यह बात घसीटा राम जी को पता थी इसलिए घसीटा राम जी ने घूस सिंह के घर काम करना बंद कर दिया । कहा "साहब , अब मैं पक्का हो गया हूं अब आप मुझे नौकरी से नहीं निकाल सकते हैं। इसलिए आगे से घर में काम नहीं करूंगा " । घूस सिंह जी उसका मुंह देखते ही रह गए। 


उसके बाद उन्होंने बारहवीं की परीक्षा देना शुरू कर दिया । मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात । घसीटा राम जी अब बजरंग बली के और भी पक्के भक्त बन गए थे । वे रोजाना बजरंग बली के मंदिर जाते , पूजा करते लेकिन पढ़ाई बिल्कुल नहीं करते थे । बजरंग बली पर उन्हें पूरा विश्वास था, अपने दिमाग पर नहीं । इतनी पूजा की लेकिन सफलता मिल नहीं रही थी । 


एक दिन वे उदास से बैठे थे मंदिर में तो पुजारी ने कारण पूछा । उन्होंने अपनी दुख भरी कहानी सुना दी । पुजारी ने कहा "अध्यापक लोग थोड़े संवेदनशील होते हैं । आप ऐसा करना , कॉपी के अंत में एक मार्मिक अपील लिख देना कि इस परीक्षा के कारण उसकी पदोन्नति रुकी हुई है । अगर आप मेहरबानी करके पास कर देंगे तो मेरा प्रमोशन हो जाएगा" । 


घसीटा राम जी ने ऐसा ही किया । एक एक्सपर्ट से एक मार्मिक अपील तैयार करवाई और कॉपी में पहले हनुमान चालीसा लिखते फिर अपील लिखकर आ जाते । मगर जब परिणाम आया तो वही ढाक के तीन पात ! वे फिर से अनुत्तीर्ण पाए गए । घसीटा राम जी निराश हो गए तब पुजारी ने उसे समझाया "तुमने कौए की कहानी सुनी होगी जो प्यासा था और एक एक कंकड़ घड़े में डालकर उसने अपनी प्यास बुझाई थी । वो खरगोश और कछुए की कहानी भी याद होगी कि किस तरह कछुआ लगातार चलता रहा और जीत गया ‌‌इसलिए तुम भी प्रयास करते रहो । फिर बजरंग बली तो हैं ही ना । इस बार ऐसा करो कि तुम कॉपी में एक पांच सौ का नोट रख देना । अध्यापक जी की चाय पानी का जुगाड हो जाएगा तो उनको भी कुछ दया आ जाएगी" । 


घसीटा राम जी को बात जम गई ‌‌‌‌। उन्होंने हर कॉपी में एक एक पांच सौ का नोट रख दिया । अब वे आश्वस्त थे कि इस बार तो वे पास हो ही जाएंगे । मगर जब परिणाम आया तो ढाक के फिर वही तीन पात । समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ ? उसने मन में सोचा कि मास्साब ने पैसे भी रख लिए और काम भी नहीं किया ? ये तो बड़ी नाइंसाफी है । 


पुजारी ने कहा "ऐसा करो , पुनर्मूल्यांकन का फॉर्म भर दो और कॉपी चैक करो कि उसमें वो पांच सौ का नोट है या नहीं" ? बात जम गई घसीटा राम जी को । जब उन्होंने कॉपी देखी तो बड़े खुश हुए । पांच सौ का नोट लगा हुआ था ज्यों का त्यों । मास्साब की ईमानदारी पर शक नहीं करना । पर ये क्या ? पांच सौ के नोट के नीचे एक "नोट" भी लगा हुआ था । शायद यह "नोट" मास्साब ने ही लिखा था ।


" कौन जमाने में रह रहे हो भैया ? पांच सौ में ना तो मुर्गा आता है और ना ही इंग्लिश दारू । पैसे दो तो जरा सोच समझ कर दिया करो । समझे " ? 


अब बात समझ में आ गई । अगले साल हर कॉपी में दो हजार का नोट रखा । मगर इस बार भी काम नहीं हुआ । फिर से कॉपी देखी तो फिर से एक नोट मिला "हर अध्यापक मुर्गा नहीं खाता और इंग्लिश नहीं पीता । कुछ ईमानदार भी होते हैं । इस बार तो छोड़ रहा हूं , आगे ध्यान रखना " । दो हजार का नोट सही सलामत लगा हुआ था वहां पर । 


घसीटा राम जी बड़े निराश हुए । अब तो एक ही साल बचा है । अगर इस बार भी पास नहीं हुए तो इसी पद से सेवानिवृत्त हो जाएंगे । कैसा लगेगा ? आखिर बजरंग बली की शरण में पहुंचे । 


आखिर बजरंग बली ने उनकी लाज रख ली । आज ही सरकार ने घोषणा कर दी कि कोरोना के कारण बोर्ड की परीक्षाएं नहीं होंगी और सबको बिना परीक्षा के ही पास कर दिया जाएगा । 


घसीटा राम जी ने पूरे मौहल्ले में मिठाई बांटी । आखिर बजरंग बली ने उसकी प्रार्थना सुन ली । अब वह बारहवीं पास कहलाएंगे और सेवानिवृत्ति से पहले उन्हें पदोन्नति भी मिल जाएगी । 


कोरोना ने बहुत कष्ट दिए हैं लोगों को लेकिन घसीटा राम जी जैसों का भला भी बहुत किया है इसने । घसीटा राम जी ने पुजारी से पूछ कर बजरंग बली जी के बगल में "कोरोना देवता" की एक छोटी सी प्रतिमा स्थापित करवा दी और अब वह दोनों देवताओं की रोजाना पूजा करते हैं । उनकी पदोन्नति हो गई और वे "बड़े बाबू" बन गए।  


अपने गेट पर लगी नेम प्लेट भी बदलवा दी है उन्होंने । अब उन्होंने उस पर लिखवाया है "घसीटा राम , कोरोना पास, बड़े बाबू , पानी विभाग" । धन्य हो कोरोना देवता जिसने घसीटा राम जैसों को पास करवा दिया ।


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