लघुकथा - आदत
लघुकथा - आदत
एक बड़े साहब के कक्ष में बैठा था।समय मिलने पर उनसे कहा,"सर! आप को देखने से लगता है,आप सफाई पसंद इन्सान के साथ, समस्याओं के तह में जाकर इत्मिनान से छोटी छोटी बातों पर भी बिना किसी जल्दबाजी और ऊब के सुलझाने मे महारथ हासिल है।"
वो आत्ममुग्ध हो,अपने चिर परिचित कार्य मे तल्लीन हो, स्वीकारोक्ति में सर हिला हामी भर रहे थे।
"सर! आपको बङे और कठिन समस्याओं के जङ से, छोटे छोटे टुकड़ों मे बाँटने में, असीम आनंद की अनुभूति होती है, यह आपके चेहरे एवं मुखमंडल पर बनने वाले क्षणिक भावों से स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है , इसमे किसी को भी शंशय नहीं।
कभी ,कभी आप अत्यंत सुक्ष्म पर गहरे समस्याओं तक पहुँचने में अपने आँखों को दस दस मिनटो तक हल्के से ऐसे बन्द रखते है जैसे गहन अन्वेषण मे डूबे हों और समाधान के करीब पहूचने वाले हों।"
मुख्य अभियंता महोदय अपनी उसी अवस्था में रहते हुए बोले कि "आप बहुत पारखी नजर वाले है।"
मैं- "नहीं सर ऐसी बात नहीं है।मै रोज आपको देखता था, पर कह नहीं पाता था। खुद ही देखें, बारी बारी से लगभग दोनों हाथों की दसों ऊंगलियों से आप नाक एवं कान के सफाई एवं खुदाई मे ना केवल प्रयुक्त किए हैं अपितु उत्खनन से निकले बहुमूल्य सामाग्रियों को छोटे छोटे गोले मे परिवर्तित कर टेबल एवं उसके चारों ओर संधारित किया गया है।इसी साक्ष्य एवं तथ्यों के आधार पर मै कुछ कहा हूँ ।"