Ashutosh Atharv

Drama Tragedy

4.0  

Ashutosh Atharv

Drama Tragedy

कुलदीपक

कुलदीपक

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रमेश बाबू अभी अस्पताल में बेड पर लेटे लेटे पुरानी बातों को याद कर रहे थे। परिवार वालों के रोकने के बाद भी बाहर जा कर गलती की या कंपनी वालों की बात मान ड्यूटी करते रहे, गलती क्या थी? समझ नहीं पा रहे थे। और करते क्या? अगर कमाते नहीं तो परिवार का पेट कैसे भरते? कोई एक दिन का तो था नहीं। पॉजिटिव हुए आठ दिन और भर्ती हुए चार दिन हो गए। कभी oxygen कभी आई.सी.यू समझ नहीं आ रहा क्या होगा?

तभी डॉक्टर के साथ मालती आयी रोते हुए कहने लगी क्या जरूरत थी नौकरी करने की, अपने भी पॉजिटिव हुए और सबको कर दिए। कुलदीप की भी हालत गंभीर है, कोई अस्पताल भर्ती नहीं ले रहा है। कुलदीप के बारे में सुन रमेश बाबू गश खा गए। हाथ जोड़ डाक्टर से बोले आप ठीक कर दे साहब कुलदीप को। गलती मेरी है, पैथ लैब के लिए सैंपल लाते लाते हम पॉजिटिव हुए फिर पूरा घर। किसी तरह कुलदीप को भर्ती कर इलाज कर ठीक कर दे साहब। हम बर्बाद हो गए।

डॉक्टर बेड अनुपलब्धता का रोना रोने लगे, कोई उपाय नहीं है, मैं घर के लिए ही दवा लिख देता हूं, भगवान की कृपा से ठीक हो जायेगा। हिम्मत रखे।

मालती - क्या हिम्मत रखे (और फूट फूट कर रोने लगी) सांस लेने में दिक्कत हो रही है दम फूल रहा है और पैर पर गिर गई।

रमेश - आप मेरा नाम अस्पताल से काट कर उसे भर्ती कर ले साहब।

डॉक्टर - बीच में नाम नहीं काट सकते। मरीज ठीक होकर घर जायेगा तभी नाम कट सकता है या...

रमेश - संघर्ष में ही सही पर हम जिंदगी जी लिए है साहब। पर कुलदीपक जलते रहना चाहिए।



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