अंधेर नगरी चौपट न्याय
अंधेर नगरी चौपट न्याय
मन बड़ा बावरा है । न जाने कहां कहां भटकता फिरता है । वैसे तो मन पर नियंत्रण रखने के लिए विवेक होता है लेकिन मन इतना शक्तिशाली है कि यह विवेक को भी अपनी गोद में बैठाकर उड़न छू हो जाता है और विवेक मन की गोदी में बैठा बैठा उड़ान के आनंद लेने लगता है । जब खुली आंखों से मन की उड़ान पूरी नहीं होती है तो वह सपनों के माध्यम से उड़ान भर लेता है । सपनों पर किसी का वश नहीं चलता है । सपने देखने पर कोई प्रतिबंध भी नहीं है । सपना तो कुछ भी देखा जा सकता है । लेकिन सपने भी मनपसंद से थोड़ी ना देख सकते हैं । ये तो मन की उड़ान है जो हमें सपनों की दुनिया में ले जाती है ।
तो हुआ यूं कि हम एक हास्य व्यंग्य की रचना पूरी करके वहीं सोफे पर लेट गये थे और आंखें बंद कर अगली रचना के बारे में सोचने लगे थे । एक साहित्यकार की दुनिया उसका साहित्य ही तो है । एक रचना पूरी हुई नहीं कि दूसरी रचना पर काम शुरू हो जाता है । तो लेटे लेटे हमें कब नींद आ गई पता ही नहीं चला ।
जब हमें नींद आ गई तो मन ने भी उड़ान भरनी शुरू कर दी । मन एक ऐसा 'पायलट' है जो हर मौसम में उड़ान भर सकता है । आंधी तूफान मन की उड़ान में कोई रोड़े नहीं डाल सकते हैं । जब मन उड़ान भरना शुरू करता है तो सपनों में भांति भांति की दुनिया दिखाई देने लगती है ।
हमारे साथ भी यही हुआ । सपनों की दुनिया में खो गये हम । सपनों में रात का समय था और हम अपनी श्रीमती जी के साथ सो रहे थे । दरवाजा खुला हुआ था । दरवाजे पर केवल पर्दा लटका हुआ था । इतने में एक चोर हमारे दरवाजे से पर्दे हटाते हुए कमरे के अंदर दाखिल हुआ । उसने अपना चेहरा छुपाने के लिए मुंह पर एक कपड़ा डाल रखा था । वह मेरी ओर बढ़ने लगा । इतने में हमारी नींद खुल गई । वह जैसे ही मेरे नजदीक आया , मैंने जोर से घुमाकर अपनी दायीं लात चलाई जिससे उसका मुंह तोड़ सकूं । "फटाक" की आवाज के साथ मेरी नींद खुल गई और मैं पैर पकड़कर चीखने लगा । मेरे पैर से खून बहने लगा । मैं समझ ही नहीं पाया कि आखिर हुआ क्या था ? पैर में चोट कैसे लगी ?
तब मुझे याद आया कि मैं तो एक सपना देख रहा था । वैसे मुझे सपने याद नहीं रहते हैं लेकिन यहां तो पैर टूटा पड़ा था इसलिए सपना भी याद आने लगा । फिर मैंने देखा कि मेरा पैर किससे टकराया था जिससे उसमें मोच आ गई ? तो मैंने देखा कि सोफ़ा के सामने एक सेन्टर टेबल रखी हुई थी । अब साफ हो गया कि सपने में मारी गई लात उस सेन्टर टेबल के कोने से टकराईं थी जिससे मेरा पैर लहूलुहान हो गया था । उस टेबल का तो कुछ नहीं बिगड़ा मगर मेरे पैर का सत्यानाश हो गया था । बड़ी मुश्किल से खून बहना बंद हुआ तो सोफ्रामाइसिन ऑइन्टमेन्ट लगाकर थोड़ी देर बैठा रहा ।
मेरे जीवन की इतनी बड़ी घटना घटी थी तो मैं उसे बताने के लिए उतावला हो गया । अपने खास दोस्त ही ऐसे में याद आते हैं । तो हमने हमारे घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी को फोन मिलाया और हमने उन्हें सारी बात बता दी ।
हंसमुख लाल जी तुरंत दौड़े दौड़े आये और अपने साथ अपने मित्र "खैराती लाल" जी को भी ले आये । खैराती लाल जी पत्रकार कम और पत्तलकार अधिक हैं । मतलब कि पैसे लेकर खबरें छापते हैं । तो जब हंसमुख लाल जी ने उन्हें हमारे सपने के बारे में बताया तो उन्हें यह खबर अंतर्राष्ट्रीय स्तर की महसूस हुई । आजकल ऐसी ही खबरें छपती हैं अखबारों में और न्यूज चैनलों में । उन्होंने बाकायदा हमारा साक्षात्कार लिया । हालांकि हमने खैराती लाल जी को साफ कह दिया कि हमारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है तो वे मुस्कुरा कर बोले "हम पत्तलकार लोग न जाने कहां कहां से माल कूट ही लेते हैं" । उनकी इस बात पर हमें कोई ऐतराज नहीं था । कोई दूसरा व्यक्ति लुटे तो इसमें हमें क्या ऐतराज़ हो सकता है ।
खैराती लाल जी ने अपने सब पत्तलकार मित्रों को वह खबर दे दी । सभी पत्तलकार ऐसा ही करते हैं । अपनी पेड स्टोरी को सबसे चलवाते हैं और अपना धंधा करते रहते हैं । तो सारे न्यूज़ चैनल्स पर यह खबर चलने लगी और साथ में हमारे साक्षात्कार के कुछ चुनिंदा अंश भी दिखाये जाने लगे । हमें एक सेलिब्रिटी की सी फीलिंग होने लगी । तब हमें पता चला कि हंसमुख लाल जी कितने महान व्यक्ति हैं ! जब तक किसी से हमें फायदा नहीं हो , तब तक उसकी महानता का पता हमें नहीं चलता है । आज हंसमुख लाल जी ने हमें अंतर्राष्ट्रीय शख्सियत बना दिया तो हम भी उनके मुरीद हो गये थे ।
हम सेलिब्रिटी होने का जश्न मनाने लगे । बच्चों ने किसी होटल में एक ग्रांड पार्टी का आयोजन रखा लिया । आजकल खुशियां मनाने का एक ही तरीका है । किसी बड़ी सी होटल में एक पार्टी रखी लो । खूब पीयो और पिलाओ , थोड़ा डांस वांस कर लो और एक केक काट लो । तो हमने भी ये सब किया ।
अभी केक काटने के बाद हम डांस फ्लोर पर आये ही थे कि हमारा मोबाइल बज उठा । एक अनजान नंबर था । हम अनजान नंबर उठाते नहीं हैं । आजकल अनजान व्यक्ति फोन के माध्यम से पता नहीं कैसे पूरा बैंक अकाउंट साफ कर जाते हैं या फिर विडियो कॉल से आपत्तिजनक फोटो लेकर ब्लैकमेल करते हैं । आठ दस कॉल आ गईं उस नंबर से । पार्टी का सारा मजा किरकिरा कर दिया था उस कॉल ने । लग रहा था कि कोई अर्जेंट कॉल है सो उठा लिया ।
उधर से घरघराती हुई भारी भरकम आवाज आई
"फोन इतनी देर से क्यों उठाया ? तन्नै पतो नी है कि पुलिस का फोन नहीं उठाने पर कै होबै सै" ?
पुलिस का नाम सुनकर मेरी घिग्घी बंध गई । इस देश में पुलिस का नाम सुनकर शरीफ लोगों की और गुंडों का नाम सुनकर पुलिस की घिग्घी बंधती है । मैंने हकलाते हुए कहा "मुझे कैसे पता चलेगा कि यह पुलिस का नंबर है" ?
"अरे बावड़ी बूच ! इतनी कॉल या तो कोई बेशर्म व्यक्ति कर सकता है या फिर पुलिस" ।
उस दिन हमें पता चला कि बेशर्म व्यक्ति और पुलिस एक ही श्रेणी में आते हैं । हम घिघियाते हुए बोले "क्या आदेश है मालिक" ? पुलिस का एक अदना सा सिपाही हम जैसे लोगों के लिए "मालिक" जैसा ही है ।
"तेरे नाम सुप्रीम कोर्ट का सम्मन है । कल सुबह 10 बजे सुप्रीम कोर्ट आ जाना । समझ गया ना ! जे अगर कल सुबह सुप्रीम कोर्ट नी पहुंचा तो तेरे घर आकर तुझे कूटता हुआ लेकर जावांगा" ।
मैं हक्का बक्का हो गया । पुलिस और सुप्रीम कोर्ट के नाम से मुझे चक्कर आने लगे । मैं वहीं पर एक सोफे पर पसर गया । मेरी हालत देखकर सभी लोग मेरे इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गये । कोई पानी पिलाने लगा तो कोई मालिश करने लगा । एक समझदार आदमी हमारी नाक के पास अपना जूता ले आया और कहने लगा "मिरगी का दौरा है । जूता सुंघाते ही ठीक हो जायेंगे" ।
उस दिन पता चला कि वाकई जूते में बहुत ताकत होती है । जो काम सिफारिश से ना हो वह "जूते" से हो जाता है । अब ये अलग बात है कि जूता "सोने" का है या चमड़े का ।
जूता सूंघते ही हमारी अक्ल काम करने लगी । हमने सुप्रीम कोर्ट हाजिर होने की बात बताई तो हमारे एक परिचित वकील साहब आगे आये और कहने लगे "किसी सुप्रीम कोर्ट के वकील से बात करते हैं"
वे अपने साथियों से किसी सुप्रीम कोर्ट के वकील का नंबर लेने लगे । अंत में एक वकील सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित होने को राजी हो गया । मैंने उसकी फीस पूछी तो कहने लगा "अजी आपसे कोई ज्यादा पैसे थोड़ी ना लेंगे ? वैसे तो मेरी फीस एक पेशी की 25 लाख रुपए होती है पर आप तो मेरे मित्र के ताऊ के फूफा के दामाद हैं इसलिए आपसे ज्यादा क्या
लेना ? दस लाख रुपए दे देना बस" ।
कितना अहसान किया था उन्होंने मुझ पर । 25 लाख से सीधे 10 लाख पर आ गये थे वे । लेकिन मेरे जैसे इंसान के लिए तो 10 लाख भी ज्यादा लग रहे थे । पर मरता क्या न करता ? तो मन मसोस कर हमने स्वीकृति दे दी ।
अगले दिन सुबह 9 बजे ही हम हाजिर हो गये सुप्रीम कोर्ट में । हम कोई सर जी तो हैं नहीं जो कोर्ट में हाजिर नहीं होने के लिए विधान सभा में विश्वास प्रस्ताव रखकर अति व्यस्त होने का नाटक करें । हम तो आम आदमी हैं इसलिए हाजिर होना हमारी मजबूरी थी । हम चुपचाप वहां घूमते रहे और अपने वकील का इंतजार करते रहे ।
ठीक 10 बजे वकील साहब आ गये तो हमारी जान में जान आई । साढ़े दस बजे हम कोर्ट में हाजिर हो गये । बड़ी मुश्किल से हमें केस की कॉपी मिली । कॉपी को जब पढ़ा तो हमने अपना माथा पीट लिया । हमने सपने में किसी चोर के लात मारी थी इसके लिए किसी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका लगा दी थी और उसमें कहा गया था कि हमारे द्वारा लात मारना एक चोर के प्रति अपराध है , उसकी मानहानि है , उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन है । इसके लिए हमें कड़ी से कड़ी सजा दी जाये और हमारे ऊपर इतना जुर्माना लगाया जाये कि हमारी सात पुश्तें भी उसे चुका नहीं सकें ।
हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिस सुप्रीम कोर्ट में 76000 से अधिक मुकदमे पेंडिंग हैं उस सुप्रीम कोर्ट में ऐसी वाहियात सी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट तत्काल प्रभाव से सुनवाई करने को तैयार हो गया था और वह भी सात जजों की संवैधानिक पीठ में । हमें समझ में नहीं आया कि इसमें ऐसा क्या था जो यह मामला संवैधानिक पीठ में लगा ? इतनी अर्जेंसी क्या थी ?
तब हमारे वकील साहब ने हमें समझाया कि सुप्रीम कोर्ट जेहादी, टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्यों, आतंकवादियों, नक्सलियों और विपक्षी दलों के केस रात में भी सुनने को तैयार हो जाता है । बाकी का तो नंबर ही नहीं आता है बरसों तक । अभी हाल में ही बंगाल के संदेशखाली गांव में आदिवासी हिन्दू महिलाओं के साथ हुए नृशंस दुष्कर्म के मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया क्योंकि वहां दीदी की सरकार है लेकिन उसी सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर की घटनाओं पर न केवल स्वत: संज्ञान लिया अपितु अनेक टिप्पणियां भी की थी क्योंकि वहां भाजपा समर्थित सरकार है ।
सुप्रीम कोर्ट ने आजकल विपक्ष की भूमिका अपना ली है क्योंकि वैसे तो विपक्ष नाम की कोई चीज बची नहीं है अब इस देश में । तो एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है । ऐसे में विपक्ष अपनी भूमिका चाहे भूल जाये लेकिन सुप्रीम कोर्ट अपनी भूमिका नहीं भूल सकता है । कोई तो विपक्ष का काम करेगा ? "जब कोई नहीं हो मैदान में तो सुप्रीम कोर्ट खड़ा होगा विपक्ष के सम्मान में" ।
इसलिए चंडीगढ़ के छोटे से मेयर के चुनाव पर सुप्रीम कोर्ट तत्काल सुनवाई करके याचिका में मांगे गये अनुतोष से अधिक देने को तैयार हो जाता है लेकिन पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के नाम पर होने वाली नौटंकी पर अपनी आंख , कान , मुंह सब बंद कर लेता है ।
हमारे वकील ने बहस शुरू की
"मी लॉर्ड ! जिस घटना का जिक्र जनहित याचिका में किया गया है वह घटना एक सपने में घटी थी , हकीकत में नहीं और सपने में घटी घटना पर संज्ञान नहीं लिया जा सकता है" ?
हमारे वकील की बात पर सुप्रीम कोर्ट के सात जजों की बेंच उखड़ गई और चिल्लाते हुए बोली "किस पर संज्ञान लेना है और किस पर नहीं , यह हमारा एकाधिकार है समझे ! हम सुप्रीम कोर्ट हैं और सबसे सुप्रीम हैं । हम खुद ही जज बनाते हैं और खुद ही संसद के फैसले पलट देते हैं । हमारे सामने न संसद टिकती है और न कार्यपालिका । आपको शायद मालूम नहीं है कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र ने सपने में अपना राज्य ऋषि विश्वामित्र को दान में दे दिया था । क्या राजा हरिश्चंद्र ने उस सपने को मानकर अपना राज्य विश्वामित्र जी को नहीं दिया था ? दिया था ना ? तो इससे सिद्ध होता है कि सपने में किये गये कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है ।
आपको पता होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट इस घोर कलयुग में सतयुग की स्थापना करने का कार्य कर रहा है और आप कहते हैं कि हमें इस घटना पर संज्ञान नहीं लेना चाहिए । आप अपने शब्द वापस लीजिए नहीं तो हम आपको सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करना भुला देंगे" ।
आदमी को चाहे कुछ भी कह लो । गाली चाहे हजार दे लो इससे उसे कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता । लेकिन यदि उसके पेट पर लात मार दो तो वह तुरंत नत मस्तक हो जाता है । हमारे वकील की जब प्रैक्टिस बंद करने की बात आई तब उसने डर के मारे जजों के पैर पकड़ लिए और माफी मांगकर केस छोड़कर भाग गया । हम अकेले अपराधी बनकर वहीं खड़े रहे । तब सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज हम पर अपने ज्ञान की वर्षा करने लगे
"तुम्हें पता है कि तुमने कितना बड़ा अपराध किया है ? एक व्यक्ति को लात मारी है"
हमने हाथ जोड़कर कहा "माई बाप वह व्यक्ति एक चोर था"
"उस व्यक्ति के चोर होने का कोई सबूत है आपके पास" ?
"हुजूर , वह रात को बारह बजे हमारे मकान में घुसा था और उसने अपना चेहरा भी ढक रखा था"
"रात में मकान में घुसने से आपने कैसे समझ लिया कि वह एक चोर ही है । हो सकता है कि वह कोई मजदूर हो और प्यास लगने के कारण पानी की तलाश में आपके मकान में आ गया हो । आजकल सड़कों पर चेंपा बहुत हो रहा है इसलिए उससे बचने के लिए हो सकता है कि उसने अपने मुंह पर कपड़ा डाल लिया हो ।
"हुजूर ! जब आप इतने "हो सकता है" जैसी कल्पनायें कर रहे हैं जो कि सही हों यह आवश्यक नहीं है तो क्या इस आधार पर कोई सजा सुना सकते हैं ? और वह आदमी कौन था यह भी पता नहीं है फिर आप किस आधार पर हमें सजा सुनाना चाहते हैं" ? हमने हिम्मत करके कह दिया ।
इस पर सुप्रीम कोर्ट में तूफान आ गया और सब जज एक साथ मुझ पर चिल्लाने लगे । मुख्य न्यायाधीश जो कि उस बैंच की अध्यक्षता कर रहे थे कहने लगे "एक मिनट को हम मान लेते हैं कि वह व्यक्ति एक चोर था लेकिन चोरों को भी मारने का अधिकार आपको नहीं है । आपने उसे लात मारकर बहुत घृणित कार्य किया है । चोर भी एक मानव है और प्रत्येक मानव के मानवाधिकार होते हैं । आपको किसी के मानवाधिकारों का हनन करने का कोई अधिकार नहीं है । फिर उसने तो चोरी भी नहीं की थी । इसके बावजूद आपने उसे लात मारी । आपने बहुत जघन्य अपराध किया है । इसकी सजा अवश्य मिलेगी"
मैंने कहा "हुजूर , आप ट्रायल कोर्ट नहीं हैं । पहले ट्रायल तो होने दीजिए । चोर को गवाह तो पेश करने दीजिए उसके बाद ही तो आप मुझे सजा सुना सकते हैं । आप एक चोर के मानवाधिकारों के प्रति तो इतने संवेदनशील हैं लेकिन मेरे मानवाधिकारों का क्या होगा" ?
"एक आम आदमी इस देश में केवल टैक्स और वोट देने का अधिकार रखता है , इससे ज्यादा कुछ नहीं । तुम यह काम बदस्तूर करते रहो और सब कुछ झेलते रहो । भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी, किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, परिवारवाद, भाई भतीजावाद आदि आदि । तुम्हें इस अपराध की सजा जरूर मिलेगी" ।
और सुप्रीम कोर्ट ने मुझे दस साल के कठोर कारावास की सजा सुना दी । मेरे मुंह से अचानक निकल गया
अंधेर नगरी चौपट न्याय ।
बाड़ ही यहां पर खेत को खाय ।।