जेल बाई का मुजरा
जेल बाई का मुजरा
आज सुबह सुबह जैसे ही हमने अखबार खोला तो उसमें एक इश्तहार देखकर हम चौंक गये। बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था "मनोरंजन का खजाना। जेल बाई का मुजरा देखने आ जाना। ना टिकट ना पास। ये मुजरा होगा बड़ा खास। अतिथि होंगे हत्यारे , बलात्कारी। मुख्य अतिथि बनेंगे कट्टर भ्रष्टाचारी"।
इश्तहार देखकर हमारा माथा घूम गया। "आजकल अखबार वाले भी बेवकूफ बनाने लग गये हैं क्या ? कैसे कैसे इश्तहार निकालने लगे हैं ये लोग" ? हम मन में सोचने लगे। ये काम भी कभी कभी कर लेते हैं हम"।
पास में बैठे हमारे घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी कहने लगे "इन अखबार वालों की बड़ी बुरी हालत है आजकल"। एक जोर की आह निकल गई उनके दिल से।
"क्यों क्या हुआ" ?
"होना क्या है , आजकल यू ट्यूबर्स इतने हो गये हैं कि उहोंने इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया की बैंड बजा रखी है। इसलिए ये बेचारे अखबार वाले धंधे का कोई तो जुगाड़ करेंगे ? लोग न अखबार पढ़ते हैं न टीवी देखते हैं। तो फिर अखबार चलेगा कैसे ? ऐसे इश्तहार जैसे उल्टे-सीधे कामों से इन्हें कुछ पैसा मिल जाता है जिससे इनका पेट भर जाता है"।
"तुमने वो इश्तहार देखा ? कितना वाहियात है वह" ?
"क्या, आप जेल बाई के मुजरे के बारे में बोल रहे हैं" ?
"हां, उसी के बारे में बोल रहे हैं। सोचकर ताज्जुब होता है कि कोई व्यक्ति अपने बच्चों के नाम जेल बाई भी रखेगा" ? आश्चर्य मिश्रित हंसी हंसते हुए वे बोले
"इसमें हैरानी की क्या है ? सभी तरह के लोग हैं इस दुनिया में। पर ये जेल बाई मुजरा बड़ा शानदार करती है। चलो आज चलते हैं देखने"।
मुफ्त में अगर कुछ मिल रहा हो तो उसे लपक लेते हैं सब लोग। आजकल मुफ्तखोरी का जमाना है। जो दल जितना मुफ्त में देता है जनता उसको उतना ही पसंद करती हैं फिर वह चाहे देश को लूटे या देश तोड़े, हमें क्या ? हम भी हंसमुख लाल जी के साथ मुजरा देखने चल दिये।
गजब की भीड़ थी। हर कोई था वहां पर। बच्चे, बूढ़े, जवान सभी। यहां तक कि औरतें भीं ! शराब के दो सिप लगाने वाली एक महिला से इस बारे में पूछा कि वे मुजरा देखने क्यों आईं ? तपाक से बोली "हम लड़कों से पीछे बिल्कुल नहीं हैं उनसे चार कदम आगे हैं। जब वे देख सकते हैं तो हम क्यों नहीं" ?
बिल्कुल सही कहा था उसने। मुजरे के सभी शौकीन हैं यहां। औरतों के लिए रुपए कमाने का आसान तरीका भी है मुजरा। आजकल तो लड़कियां/ औरतें यू ट्यूब पर कैसे कैसे वीडियो बनाकर डालती हैं ? उन्हें देखकर बेचारी मुजरे वाली भी शर्म से पानी मांगने लग जायें। जब पैसा ही एकमात्र उद्देश्य हो जाये तो फिर कैसी लाज और कैसी मर्यादा ?
जेल बाई का मुजरा चालू हो गया। मंच पर जेल बाई के साथ कुछ मुस्टंडे, कुछ लोफर टाइप के लड़के , कुछ जेबकतरे , कुछ भ्रष्टाचारी भी डांस कर रहे थे। जेल बाई हंस हंस कर मुजरा कर रही थी और ये लफंगे लोग उसके मजे ले रहे थे। जेल बाई को उस स्थिति में देखना हमें अच्छा नहीं लगा और हम उठकर चल दिए। जेल बाई ने हमें जाते हुए देख लिया। उन्होंने एक आदमी भेजकर हमें एक जगह अलग से बैठा दिया। हम हतप्रभ से वहां बैठे रहे।
मुजरा खत्म करके जेल बाई हमारे पास आई और कहने लगी "मुजरा पसंद नहीं आया क्या हुजूर" ?
"हमें आपका यूं हंस हंस कर मुजरा करना पसंद नहीं आया और वो भी इन लफंगों के साथ" ? हमने सच सच बात बोल दी।
"हुजूर , एक बात कहूं बुरा तो नहीं मानोगे ? आप भी तो एक मर्द ही हैं ना ! आप जैसे मर्दों को हम औरतों की जरा सी भी खुशी बर्दाश्त नहीं होती है ना ? आप लोग चाहते हैं कि हम औरतें जिंदगी भर सड़ती रहें, रोती रहें, घुटती रहें और आप लोग हमें घुटते देखकर अट्टहास करते रहो , जाम पर जाम छलकाते रहो , भांगड़ा करते रहो ! क्यों यही चाहते हो ना ? पर अब जमाना बदल गया है साहब ! आज की औरत दर्द सहकर भी खुश रहना जानती है। मैं भी वही कर रही हूं।
कोई जमाना था जब जेल में स्वतंत्रता सेनानी आते थे। तब हम जेलें उनका दिल खोलकर स्वागत सत्कार करती थीं। उन्हें अपनी ममता से भर देती थीं। वे लोग अभावों में भी प्रसन्न रहते थे। उनके जेल में रहने से हमें हमारा होना बहुत अच्छा लगता था। इसी बहाने कम से कम हम जेलें भी राष्ट्र की सेवा कर रहीं थीं।
फिर वह दौर खत्म हुआ तो हमारे दर पर लुच्चे लफंगे , चोर डकैत , हत्यारे , बलात्कारी आने लगे। उन्हें देख देखकर हमें बहुत दर्द होता था। ये अपराधी लोग जेलों से ही अपना काम करते थे। जेलों में भी अपराध कर लेते थे। उन्हें देखकर हमें कितना दुख होता होगा , कभी सोचा है आपने ? और तो और हमने अनेक आतंकवादियों, नक्सलवादियों, अराजकतावादियों को भी झेला है। उनसे मिलने आने वाले सफेदपोशों को भी झेला है। इन लोगों ने हमारे साथ क्या क्या किया है , कोई जानता है क्या ? इनसे हमारी प्रतिष्ठा एक "कोठे वाली" जैसी हो गई थी। कहां तो स्वतंत्रता सेनानी और कहां ये आतंकी ? हम जार जार रोते थे अपनी हालत पर। पागल से हो गये थे हम। क्या कभी आप जैसे लोगों ने हमारे जख्म देखे हैं ?
लेकिन समय हर किसी का बदलता है जनाब ! हमारा भी बदला। अब जेल में बड़े बड़े नेता आने लगे। कोई मंत्री तो कोई मुख्यमंत्री। कोई विधायक तो कोई सांसद। कोई IAS कोई IPS । मजे की बात यह है कि पहले लोग अपना इस्तीफा सौंप कर मेरे दर पे आते थे लेकिन अब इनकी बेशर्मी देखो , आजकल ये लोग इस्तीफा नहीं देते हैं बल्कि जेल से ही सरकार चलाते हैं। कितनी खुशी मिलती है जब हमारे आंगन में कोई "कट्टर ईमानदार" आता है। आजकल ईमानदार लोग मिलते ही कहां हैं ? उस पर यदि कट्टर ईमानदार लोग थोक में जेलों में आ जायें तो क्या हमारा खुश होना गलत है ? ऐसे "देवताओं" की चरण रज से हम जेलें "पवित्र" हो गई हैं।
अब तो हमारे ही किसी एक कमरे में केबीनेट की मीटिंग होती है और सरकार चलाने की सारी योजनाएं भी यहीं से बनती हैं तो खुशी के कारण हमारा मुजरा करना ग़लत है क्या ? एक साथ में इतने ईमानदार लोगों को देखकर कोई भी आदमी पागल नहीं हो जायेगा क्या ? हमारी हालत भी वैसी ही हो रही है। इसलिए हम अपनी खुशी का प्रदर्शन मुजरा कर के कर रहे हैं। हम तो चाहती हैं कि ये कट्टर ईमानदार जैसी पवित्र आत्माएं हमेशा के लिए हमारे यहां ही रहें लेकिन नसीब का क्या भरोसा ? कब अदालत से फरमान आ जाये और कब ये लोग यहां से चले जायें ? पर जब तक ये लोग यहां पर हैं , हम रोज मुजरा करेंगे। हमको भी खुश रहने का अधिकार है"।
मुझे उसकी बातें बिल्कुल ठीक लगी। जेल बाई को भी अपनी जिंदगी जीने का हक है। वह अगर ऐसे जीना चाहती है तो ऐसे ही सही, किसी को क्या फर्क पड़ता है ? जेल बाई की सोच और समझ हमें बहुत अच्छी लगीं और हम उसके पैर छूकर आ गये।