असंभव
असंभव
यारों की गोष्ठी चल रही थी। जमकर ठहाके लगा रहे थे। इतने में हंसमुख लाल जी आ गये और उन्होंने एक शब्द उछाल दिया "असंभव"।
सभी दोस्त हंसमुख लाल जी पर टूट पड़े।
"असंभव नाम की कोई चीज है ही नहीं। बस, मन में ठान लो तो सब संभव है"
सब यार दोस्तों ने यही बात बार बार दुहराई। सबका मानना था कि इस दुनिया में सब कुछ संभव है इसलिए असंभव कुछ है ही नहीं।
सबकी बातें सुनकर हंसमुख लाल जी हंस पड़े और बोले
"ऐसा कौन है जिसकी बीवी उसके काबू में है ? जिसकी बीवी उसके काबू में हो, वह अपना हाथ ऊपर उठाये"।
इतना सुनते ही पूरी महफ़िल में एकदम से सन्नाटा छा गया। एक भी हाथ ऊपर नहीं उठा। सबके चेहरों पर मुर्दनी छा गई। सबकी नजरें और गर्दन दोनों नीची हो गई।
"बोलो बोलो, पुरुषार्थ का दम भरने वाले बहादुरो अब खामोश क्यों हो ? आपकी डिक्शनरी में जब "असंभव" नाम का कोई शब्द ही नहीं है तो फिर आप लोग अब तक अपनी बीवी को काबू में क्यों नहीं कर पाये ? जब अपनी बीवी को ही काबू में नहीं कर सके तो फिर बाकी को कैसे कर पाओगे" ?
हंसमुख लाल के अधर मंद मंद मुस्कान से आबाद हो रहे थे। उनके एक एक शब्द हथौड़े की तरह दिलों पर चोट कर रहे थे। उनकी बात पर सभी यार दोस्त हंसमुख लाल जी के चरणों में लेट गये और एक स्वर से कहने लगे
"हम चांद से चांदनी चुरा कर ला सकते हैं। सूरज से दो दो हाथ करके आ सकते हैं। बच्चों को तारों की बारात करा सकते हैं। हवा को पड़ोसन के आंचल में कैद कर सकते हैं। सागर को तैरकर पार कर सकते हैं। फलक को प्रेमिका के कदमों में डाल सकते हैं। हम सब कुछ कर सकते हैं मगर अपनी बीवी को काबू में नहीं कर सकते हैं। हमारे लिए सब कुछ संभव है मगर बीवी को काबू में कर पाना नितांत असंभव है। इस संबंध में हम हार मानते हैं पर अब आप बताइए कि क्या आपकी बीवी आपके काबू में है" ? सबने एक साथ पूछ लिया।
हंसमुख लाल जी इसका जवाब देते कि अचानक उनकी पत्नी और हमारी भाभीजी उन्हें ढूंढते ढूंढते वहां पर आ गईं। उन्हें वहां बैठे देखकर बोलीं
"इन निठल्लों के बीच में बैठकर यहां क्या कर रहे हो जी ? वहां "बंटू" ने पॉटी कर ली है उसे कौन साफ करेगा ? अभी बाई का भी फोन आ गया है कि आज वह अपने मर्द की "क्लास" लेने वाली हैं इसलिए वह नहीं आयेगी तो उसका सारा काम आपको ही करना होगा। मेरे सिर में भी बहुत तेज दर्द हो रहा है, थोड़ी मालिश कर देना ठीक हो जायेगा। आपके हाथों में बहुत "जान" है"।
इतना कहकर, हंसमुख लाल जी को तिरछी नजर से देखकर और एक मुस्कान उछाल कर वे कमर मटकाती हुईं चली गईं।
इस घटना से हंसमुख लाल जी का चेहरा शर्म से लाल सुर्ख हो गया। वे सबके सामने ही मुस्कुराने लगे। उन्हें इस तरह मुस्कुराते देखकर सब यार दोस्त आश्चर्य से उन्हें देखने लगे।
"ये कैसा बंदा है जो खुद का इतना कूड़ा होने के बाद भी मुस्कुरा रहा है"। सब लोग उन पर टूट पड़े
"कमाल के आदमी हो यार ! हम सबके सामने तुम्हारी बीवी तुम्हें सौ बातें सुनाकर तुम्हारी इज्जत का फालूदा बनाकर चली गई। फिर भी तुम यहां पर बैठे बैठे मुस्कुरा रहे हो ? बड़े बेगैरत इंसान हो यार" !
अबकी बार हंसमुख लाल जी अपने नाम के अनुरूप जोर जोर से हंसने लगे और बोले
"भाइयों, बीवी एक ऐसा प्राणी है जिसे स्वयं भगवान भी काबू में नहीं कर सके, हम इंसानों की तो बात ही क्या है ? बस, यही एक काम है जो इस दुनिया में हम मर्दों के लिए असंभव है। बाकी सब कुछ संभव है। इसलिए जो असंभव है उस पर क्या लज्जित होना ? तुमने देखा नहीं कि वो किस तरह नजरों से प्रेम का प्याला पिलाकर, अधरों पर मुस्कान सजाकर, मतवाली चाल से दीवाना बनाकर यहां से गई थी। क्या ये साधारण सी बात है ? बीवी के अधरों पर मुस्कान सजाने के लिए उतने ही प्रयत्न करने पड़ते हैं जितने एक बच्चे को चांद खिलौना दिलवाने के लिए करने पड़ते हैं, समझे बच्चू। मैंने ये संभव करके दिखा दिया ये कम बात है क्या" ? हंसमुख लाल जी के अधरों पर विजयी मुस्कान थी।
सब लोग हंसमुख लाल जी का लोहा मान गये और हंसमुख लाल जी अपनी ड्यूटी करने अपने घर चले गये।