हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Others

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Others

विश्वास का कत्ल - 3

विश्वास का कत्ल - 3

12 mins
23



उस घटना को व्यतीत हुए करीब एक वर्ष हो गया था । सवि को एक करोड़ रुपए मिल गये थे । उसकी मौज हो गई थी । दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा कर अपना जीवन यापन करने वाली औरत फिर से करोड़पति बन गई थी । उसे विश्वास नहीं हुआ था कि परेश इतनी आसानी से एक करोड़ रुपए उसे दे देगा । वह केवल पांच सात दिन ही तो रहा था जेल में । इतने में ही टूट गया था वह । सवि तो उसे बहुत बहादुर इंसान समझती थी लेकिन वह तो बड़ा डरपोक निकला । पर उसे क्या ? सवि के लिए तो वह सावन के बादल की तरह था । पैसों की मूसलाधार बारिश करने वाला । पहले भी वह तलाक के नाम पर उससे दो करोड़ रुपए हड़प चुकी थी । 

उसके होंठों पर एक कुटिल हंसी आ गई । व्यभिचार किया उसने और सजा पाई परेश ने । कलयुग में ऐसा ही होता है । करे कोई और भरे कोई । भाग्य भी उसके साथ है शायद । तभी तो ट्रेन में उसे अचानक परेश मिल गया था । पता नहीं अचानक उसके दिमाग में वह आइडिया कैसे आया और उसने अभिनय भी कमाल का किया था । रहा सहा काम जनता ने कर दिया था । ऐसे अवसरों पर जनता हाथ साफ करने के लिए तैयार ही रहती है ।

 एक झटके में ही एक करोड़ रुपए की लॉटरी लग गई थी उसकी । उसकी तकदीर फिर से बदल गई थी । इसका मतलब था कि भगवान भी उसके साथ हैं । उस प्लान को सोच सोचकर सवि बहुत खुश रहने लगी । उस घटना के बाद से उसकी कुटिलता और बढ़ गई थी । उसने कुटिलता का परिणाम देख लिया था । छोटा सा षड़यंत्र और ईनाम एक करोड़ रुपए । उसे संसार में जीवन जीने का मंत्र मिल गया था । जितना हो सके लोगों को मूर्ख बनाओ , षड़यंत्र करो, लूटो और मौज उड़ाओ । कलयुग में यह अमोघ मंत्र है । वह इस रास्ते पर चल पड़ी । 


इस बार भी उसने एक करोड़ रुपए में से पचास लाख रुपए का एक फ्लैट खरीदा और शेष पचास लाख रुपयों से एक छोटा सा डिपार्टमेंटल स्टोर खोल लिया । वह फुल टाइम उसे देने लगी । उसने दो तीन नौकर रख लिये । लेकिन इस बार उसने नौकरों से दूरी बना कर रखी थी । सुरजीत की बेवफ़ाई को वह भूली नहीं थी । 


एक दिन उसके डिपार्टमेंटल स्टोर में एक हैंडसम सा व्यक्ति आया । सवि को वह पहली नजर में ही पसंद आ गया । सुरजीत की बेवफ़ाई से वह मर्द के संग से वंचित हो गई थी । उस व्यक्ति को देखकर उसके मन में लड्डू फ़ूटने लगे । वह व्यक्ति डिपार्टमेंटल स्टोर में घूम घूमकर अपना सामान चुन रहा था । सवि की निगाहें उसी पर टिकी हुईं थीं । जब उसने अपना सामान चुन लिया तो वह पेमेंट काउंटर पर आ गया । अब सवि ने उसे भरपूर नजरों से देखा । गौर वर्ण , तीखे नाक नक्श, लंबा कद और स्लिम बॉडी । सवि के होंठों पर एक आकर्षक मुस्कान खेलने लगी । 

"आप पहली बार आए हैं यहां" ? सवि ने उससे नजदीकी बढ़ाने हेतु पहल की । 

"जी हां पहली बार ही आया हूं" उस व्यक्ति ने कहा 

"क्या इसी कॉलोनी में रहते हैं आप" ? 

"जी नहीं, पास वाली कॉलोनी में" 

"अच्छा, तिलक नगर में रहते हैं" ? 

"नहीं, सुभाष नगर में" 

"ओह ! वह भी पास में ही है । वैसे क्या करते हैं आप" ? 

"एक कंपनी में जॉब करता हूं । अच्छा, इनका कितना हुआ" ? 

"2145 ₹ मात्र । आप ऐसा कीजिए, 2000 ही दे दीजिए बाकी डिस्काउंट समझ लीजिए । पहली बार जो आये हैं आप हमारे डिपार्टमेंटल स्टोर में । आया कीजिए सर । बहुत बढ़िया माल बहुत रीजनेबल रेट पर मिलता है यहां । मैं तो बस टाइमपास करने के लिए चला रही हूं यह स्टोर, कोई प्रॉफिट के लिए नहीं" । सवि ने अपनी वाणी में मिसरी घोलते हुए कहा । 

"जी, धन्यवाद आपका डिस्काउंट के लिए" । और वह युवक जाने लगा । 

"ठहरिये सर , क्या आप अपना नाम पता इस रजिस्टर में लिखना पसंद करेंगे ? वो क्या है ना कि हम अपने वैल्युएबल कस्टमर की पूरी केयर करते हैं इसलिए उनका पता और मोबाइल नंबर रिकॉर्ड में रख लेते हैं । कभी अर्जेंसी में माल घर भी भिजवा देते हैं" । सवि उसके नजदीक आकर उसके शरीर से सटने की कोशिश करने लगी । 

"जी बेहतर है" । कहकर उस व्यक्ति ने अपना नाम और पता रजिस्टर में लिख दिया । मोबाइल नंबर भी लिख दिये । सुशांत नाम था उसका । सवि के दिल में सुशांत की छवि बस गई थी । उसकी इच्छा तो थी कि वह उससे बातें करती रहे करती रहे । लेकिन एक तो वह अजनबी था दूसरे नौकर भी थे वहां । इसलिए वह खामोश हो गई और उसने आंखों से ही उसे विदा किया । 

उसके दिल की घंटी बज गई थी । उसकी आंखों में सुशांत की ही छवि घूमने लगी । होंठों पर उसी का नाम था और दिल तो उसके तराने गा ही रहा था । रात में उसे नींद ही नहीं आई थी । 

अगले दिन वह अपने डिपार्टमेंटल स्टोर में फिर से सुशांत का इंतजार करने लगी लेकिन रोज रोज कौन आता है ? पांच दिन निकल गये थे लेकिन सुशांत नहीं आया । सवि का खिला हुआ चेहरा फिर से मुरझाने लगा था । आस का पंछी दम तोड़ने को था । वह अनमनी सी रहने लगी । कई बार उसके मन में आया कि वह उसे फोन करे लेकिन वह लाज के मारे रुक जाती थी । "पता नहीं क्या सोचेगा वह ? थोड़ा सब्र से काम लें सवि" । उसके दिल से आवाज आती 

"कितना सब्र करूं ? पूरे पांच दिन हो गए" 

"सब्र का फल मीठा होता है" । वह मन मसोस कर रह जाती । 


शाम को वह बोर हो रही थी इसलिए सुभाष नगर में स्थित सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने चली गई । संयोग की बात कि वहां उसे सुशांत मिल गया । 

"अरे सर आप यहां" ? 

सुशांत उसे पहचानने की कोशिश करने लगा पर पहचान नहीं पाया 

"लगता है कि आपने मुझे पहचाना नहीं । मैं सवि हूं डिपार्टमेंटल स्टोर वाली । पांच छः दिन पहले आप आये थे ना हमारे डिपार्टमेंटल स्टोर में । अब याद आया कुछ" ? सवि चहक उठी। 

"हां हां, याद आया । कैसी हैं आप" ? 

"मैं अच्छी हूं और आप" ? 

"मैं भी ठीक हूं । आप सब्जी लेने यहां आती हैं" ? 

"वैसे तो नौकर ले आते हैं पर आज मैं खुद आ गई । आप उस दिन के बाद हमारे डिपार्टमेंटल स्टोर में आये ही नहीं । क्या हमारा सामान पसंद नहीं आया आपको" ? सवि शिकायत करते हुए बोली 

"नहीं, ऐसा नहीं है । आपके यहां तो बहुत अच्छी क्वालिटी का सामान मिलता है , पसंद क्यों नहीं आयेगा" ? मुस्कुराते हुए सुशांत ने कहा । मुस्कुराते हुए कितना सोणा लग रहा था सुशांत ! सवि के यदि वश में होता तो वह उसे उसी वक्त कच्चा चबा जाती । पर हाय हाय ये मजबूरी । 

"आप यहीं आसपास ही रहते हैं" ? 

"हां, बिल्कुल सामने ही" । सुशांत ने उंगली के इशारे से उसे अपना मकान बताया । 

"फिर तो आप बहुत पास में रहते हैं" 

"हां, चलिए ना घर पर । चाय साथ पियेंगे" । 

"आपकी मिसेज हैं घर पर" ? 

इस पर सुशांत हंस पड़ा । मैंने शादी नहीं की है मैम" । 

"ओह , सॉरी" । यह सुनकर सवि मन ही मन बहुत खुश हुई । लेकिन दुनिया दिखाने के लिए बोली 

"क्या मेरा आपके घर चलना ठीक होगा" ? 

"क्यों नहीं । मुझ पर भरोसा कर सकती हैं आप ! मैं कुंवारा जरूर हूं पर हूं एक शरीफ आदमी" । उसने शरारती अंदाज से कहा 

"वो तो दिख रहा है" सवि हंस पड़ी । 

"तो फिर चलें" सुशांत ने कहा 

"बस , पांच मिनट के लिए" । 

"ओके" । और दोनों सुशांत के घर आ गये । 

सुशांत उसके लिए पानी लाया और एक प्लेट में कुछ फल ले आया । सवि फल खाने लगी । 

"आप भी लीजिए ना" 

"मैं चाय बना लाता हूं, आप लीजिए" 

"चाय मैं बना दूंगी , आप तो मुझे किचन बता दीजिए"

"कैसी बातें कर रहीं हैं आप ? आप बनायेंगीं चाय ? आज आप मेरे हाथ की चाय पीयेंगी तो फिर अपनी भूल जायेगीं । मैं बस अभी गया और अभी आया" । एक झटके से वह चला गया । 


सवि ने उसके जाने के बाद उसके घर में निगाह दौड़ाई । घर काफी करीने से सजा हुआ था । इससे सवि सुशांत से और अधिक इंप्रेस हुई । "बीवी नहीं है फिर भी घर चकाचक हो रहा है वरना अकेले मर्दों का घर कबाड़खाना बना रहता है" सवि मन में सोचने लगी । 

इतने में सुशांत चाय ले आया । 

"आप तो वाकई कमाल के हैं । इतनी जल्दी चाय भी ले आये । बहुत खूब" । 

"चाय बनाने में कितनी सी देर लगती है मैम" । 

"ऊं हूं, मैम नहीं , सवि कह सकते हो" सवि ने नजर तिरछी करते हुए कहा । औरतें सबसे पहले इसी अस्त्र का प्रयोग करती हैं । उन नजरों से प्रेम की अथाह बारिश हो रही थी । 

"मैं आपका नाम कैसे ले सकता हूं मैम ? आप तो मुझसे बड़ी हैं" सुशांत झेंपते हुए बोला 

"थोड़ी सी ही तो बड़ी हूं । साल दो साल में क्या फर्क पड़ता है" ? 

सुशांत खामोश रह गया कुछ बोला नहीं । इतने में चाय समाप्त हो गई । सुशांत कप प्लेट उठाकर ले गया । सवि ने अपना पर्स जानबूझकर वहां छोड़ दिया और उससे विदा लेकर आ गई । 

अगले दिन सुबह सुबह नौ बजे सुशांत उसके डिपार्टमेंटल स्टोर में आ गया । उसके हाथ में सवि का पर्स लटक रहा था । सवि को पहले से ही पता था इसलिए वह आज नौ बजे ही यहां आ गई वरना वह दस बजे तक आती थी । 

"कल इसे आप वहीं छोड़ आई थीं" । सुशांत उसे पकड़ाते हुए बोला 

"ओह ! ये आपके यहां रह गया था क्या ? मैं इसे घर में ढूंढते ढूंढते पागल हो गई थी । अरे हां, याद आया । मैंने आपको कल रात में फोन लगाया था लेकिन आपने उसे रिसीव ही नहीं किया" ? 

"सॉरी मैम ! मैं अजनबी नंबर वाला फोन रिसीव ही नहीं करता हूं" 

"पर हम अब अजनबी कहां रहे हैं ? मैं भी यहां पास में रहती हूं । संडे को आइए ना खाने पर । आप भी अकेले और हम भी अकेले । इस बहाने दो अकेले गपशप करेंगे" । सवि चहकते हुए बोली । 

"सॉरी मैम , मैं इस संडे को बाहर जा रहा हूं कंपनी के काम से । फिर कभी लेंगे साथ में लंच" । कहकर सुशांत जाने लगा । 

"आपका वह सामान खत्म नहीं हुआ अभी तक" ? सवि अभी और साथ चाहती थी उसका 

"कुछ हो गया है , कुछ और भी खरीदना है मगर मैं अभी जल्दी में हूं । शाम को आता हूं" । सुशांत तीर की तरह निकल गया । 


सवि के दिल में गहरी उथल पुथल मचने लगी । उसके अंदर की कामाग्नि प्रज्ज्वलित हो चुकी थी । उसकी लपटें उसके चेहरे पर दिखने लगी थीं । सवि की सांसें तेज हो गई थी । पर उसे धैर्य तो रखना ही पड़ेगा । उसने अपने मन को समझाया । 

सवि ने पांच बजे ही डिपार्टमेंटल स्टोर बंद कर दिया और घर आ गई । घर से थोड़ा तैयार होकर और थोड़े ट्रांसपेरेंट आउटफिट पहन कर डिपार्टमेंटल स्टोर में फिर से आ गई थी सवि । ऐसा करने के दो कारण थे । एक तो नौकरों को वहां से दूर करना और दूसरा कारण था खुद को और अधिक उत्तेजक दिखाना । दोनों ही मकसद में वह सफल हो गई थी । सुशांत की नजरें इस बात की गवाही दे रहीं थीं । सुशांत की नजरों का उसके अंगों पर ठहराव उसे भला लग रहा था । वह अपने मकसद में कामयाब होती जा रही थी । एक थरमस में घर से चाय बनाकर लाई थी वह । दोनों ने फिर से चाय साथ पी । इसी बहाने वह सुशांत से सटकर बैठ गई । शरीर शरीर से बातें करने लगे और दोनों रोमांचित होने लगे । 

"संडे को क्या कर रहे हो" ? सवि बोली

"कुछ खास नहीं" 

"तो , आ जाओ ना ? लंच साथ ही करेंगे" । सवि की आंखों में आमंत्रण था । सुशांत उन नजरों को पढ़ने का प्रयास कर रहा था । एक मोहक मुस्कान के साथ बोला 

"लंच नहीं डिनर करेंगे" । उसकी आंखें भी अर्थपूर्ण भाषा व्यक्त कर रही थी । सवि उसका आशय समझकर शरमा गई । उसे इतनी जल्दी उम्मीद नहीं थी कि सुशांत लंच के बजाय सीधे "डिनर" पर आ जायेगा ! उसने शरमा कर नजरें झुका लीं और मौन सहमति दे दी । 

"पर हां, मेरा डॉगी भी साथ आयेगा" 

"क्या डॉगी खरीदा है ? उस दिन तो नहीं था घर में" ? 

"हां, आज ही खरीदा है पर उसे लाऊंगा कल । आज कुछ वैक्सीन के लिए उसे वहीं छोड़ दिया था" । 

"काटता तो नहीं है ना ? मुझे डॉगी से बहुत डर लगता है" । सवि डरते हुए बोली । 

"डरो नहीं , काटता नहीं है डॉगी । अच्छा अब मैं चलता हूं" । 

सुशांत चला गया और सवि का रोम रोम खिल गया । वह जो चाहती थी , उसे वह हासिल होने वाला था । लगता है कि ईश्वर उस पर पूरी तरह से मेहरबान है । उसने मन ही मन सोचा । वह सुशांत से मिलने की प्लानिंग करने लगी । 

रविवार को ठीक नौ बजे सुशांत आ गया । उसके साथ एक जर्मन शेफर्ड डॉगी भी था । शक्ल से ही बहुत खूंखार लग रहा था वह डॉगी । उसे देखकर सवि घबरा गई । 

"डोन्ट वरी बेबी । इट्स वैरी लवली । लव इट" । कहकर सुशांत सवि को पकड़कर डॉगी के पास लाने लगा । लेकिन सवि डर के मारे दूर हट गई । 

"प्लीज़, इसे हटा दीजिए ना । मुझे बहुत डर लग रहा है" वह डरते डरते बोली 

"ओके बेबी ! डोन्ट वरी" । सुशांत उसे वहां से ले गया और दूसरे कमरे में छोड़ आया । 

"अब ठीक है" ? 

"हां , अब ठीक है । अरे ये क्या हैं" ? एक पैकेट की ओर इशारा करके सवि बोली 

"इसमें क्रीम है । स्वीट क्रीम" । 

"स्वीट क्रीम ? किसलिए" ? सवि आश्चर्य से बोली 

"डिनर की समाप्ति डेजर्ट से होती है कि नहीं ? तो ये क्रीम डेजर्ट का काम करेगी" सुशांत अर्थपूर्ण मुद्रा में बोला 

"वो कैसे" ? 

"डिनर के बाद पता चल जाएगा । अभी तो पहले डिनर करते हैं" । 

दोनों डिनर करने लगे । सवि ने अवसर के अनुकूल वस्त्र पहन रखे थे जिनमें वह बहुत आकर्षक लग रही थी । डिनर के पश्चात सुशांत उसके वस्त्र ढीले करने लगा 

"ये क्या कर रहे हो तुम" ? 

"डेजर्ट की तैयारी" । हंसते हुए सुशांत बोला और उसने इशारे से उसे शांत रहने को कहा । सुशांत ने सवि के बदन पर क्रीम मल दी और कहा अब मैं पहले इसे खाऊंगा फिर तुम भी ऐसा ही करना । ओके" ? 

सुशांत के इस नये प्रयोग से सवि बहुत खुश हुई । उसे सुशांत का डेजर्ट बहुत पसंद आया । सुशांत अपने हाथ साफ करने बाहर चला गया और दूसरे कमरे में जाकर उसने डॉगी को आजाद कर दिया । डॉगी क्रीम की गंध से पागलों की तरह दौड़ा और सीधे सवि पर टूट पड़ा । सवि चिल्ला भी नहीं सकी थी क्योंकि उसके मुंह पर सुशांत ने पहले ही टेप चिपका दिया था । डॉगी ने सवि का पूरा बदन नोंच लिया था । सवि का दुर्भाग्य था कि वह चीख भी नहीं सकी थी । सुशांत उस दृश्य को बड़े मजे से देख रहा था । जब डॉगी ने उसे पूरी तरह नोंचकर रख दिया तो वह बेहोश हो गई । फिर सुशांत ने डॉगी को संभाला, उसे अच्छी तरह साफ किया और वहां से चला गया । 

शेष अगले अंक में 



Rate this content
Log in