विश्वास का कत्ल - 4
विश्वास का कत्ल - 4
58. विश्वास का कत्ल - 4
गतांक से आगे
अगले दिन सवि का नौकर रामू सुबह 6 बजे आया । वह रोज ही सुबह 6 बजे आता है तब तक सवि जाग जाती थी लेकिन उस दिन उसका मकान बंद था । रामू ने कई बार आवाज लगाई मगर अंदर से कोई जवाब नहीं आया । उसने आसपास के लोगों को इकठ्ठा किया । सबने मिलकर खूब आवाजें लगाईं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ । किसी ने 100 नंबर पर फोन कर दिया और थोड़ी देर में पुलिस आ गई ।
पुलिस ने दरवाजा तोड़ दिया । घर में सब कुछ व्यवस्थित था । जिस कमरे में सवि सोती थी उस कमरे में जैसे ही पुलिस पहुंची उसके होश फाख्ता हो गये । बिस्तर पर सवि पूर्ण रूपेण नग्न थी और वह खून से लथपथ थी । जगह जगह पर काटने के निशान बने हुए थे । चेहरा नोंचा हुआ था । वह बेहोश पड़ी थी ।
पुलिस ने तत्काल ऐम्बुलेंस बुलवाई और उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया । डॉक्टरों ने उसका चैक अप किया । उसकी सांसें अभी चल रही थी । यह जानकर कि वह अभी जिंदा है सबने चैन की सांस ली । उसका इलाज प्रारंभ हो गया और पुलिस ने अपनी तफ्तीश शुरू कर दी ।
सबसे पहले रामू के ही बयान लिये गये लेकिन उससे कोई क्लू नहीं मिला । घर से फिंगर प्रिंट कलेक्ट किये गये । खून के नमूने लिए गये । सवि को देखकर यह अहसास हुआ कि उसे किसी जानवर ने काटा है इसलिए पशु चिकित्सक को बुलवाया गया । उसने घावों को देखकर बता दिया कि ये निशान किसी कुत्ते के काटने के हैं । पुलिस को एक क्लू मिल गया लेकिन सवि के यहां कोई कुत्ता नहीं था तो फिर कुत्ता आया कहां से ?
प्रश्न बहुत गंभीर था । घर का दरवाजा अंदर से बंद था इसलिए पुलिस को तोड़ना पड़ा था । इसका मतलब है कि कुत्ता दरवाजा लॉक करके गया था ? क्या कुत्ता ऐसा कर सकता है ? यानि कुत्ते के साथ कोई आदमी भी था , यह अनुमान लगाया गया ।
सवि के सभी नौकरों के बयान लिये गये । सवि का फोन भी खंगाला गया लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ ।
डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई और सवि ठीक होने लगी । 10 दिनों की मशक्कत के बाद सवि बयान दर्ज कराने की स्थिति में आ गई थी । सवि अंदर से टूट गई थी । उस रात का स्मरण होते ही वह चीखने लग जाती थी । उसके चेहरे से मौत का खौफ झलकता था । उसे समझ में नहीं आया कि उसके साथ ऐसा कौन कर सकता है ? तीन नाम बारी बारी से उसके जेहन में कौंधने लगे । परेश, हजारी और सुरजीत । ये तीन आदमी ही तो उसकी जिंदगी में आये थे । तभी उसे याद आया कि यह काम तो सुशांत का है । पर सुशांत को वह ज्यादा जानती नहीं थी । वह तो पहली नजर में ही उसकी दीवानी हो गई थी इसलिए उसने और कुछ जानने की जरूरत ही नहीं समझी ।
उसके कुटिल मस्तिष्क में फिर से एक षड्यंत्र बनने लगा । यदि वह सुशांत का नाम लेगी तो उसे कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि वह खुद उसके बारे में कुछ नहीं जानती थी । लेकिन यदि वह परेश का नाम लेगी तो उसे फिर से करोड़ दो करोड़ रुपए मिल सकते हैं । यह सोचकर ही ऐसी दर्द भरी स्थिति में भी उसके अधरों पर एक मुस्कान आ गई । कहीं से कुछ मिलने की आस बंध जाये तब दर्द में भी सुकून खोज लेता है इंसान । परेश मोटी मुर्गी था । उसमें से कितना ही मांस नोंच लो , उस पर क्या फर्क पड़ने वाला था ? वह पहले भी उससे एक बार दो करोड़ और दूसरी बार एक करोड़ रुपए वसूल चुकी है । इस बार पता नहीं कितने मिलेंगे ? सवि का दिमाग दौड़ने लगा ।
उसने अपने बयानों में परेश का नाम ले दिया और कहा कि वह उसे फिर से पत्नी बनाना चाहता था इसलिए उससे बात करने आया था । वह अपने साथ एक जर्मन शेफर्ड कुत्ता भी लाया था और उस कुत्ते ने उसका यह हाल कर दिया । उसने तलाक का बदला इस तरह से ले लिया
पुलिस के पास सवि का बयान था । इस बयान के आधार पर उसने परेश को उठा लिया । परेश लाख दुहाई देता रहा गया कि वह सवि से मिला ही नहीं मगर पुलिस कहां सुनती है ? उठाकर लॉक अप में बंद कर दिया ।
मगर इस बार परेश पहले से तैयार था । उसने अपने दोस्त हर्ष को सब चीजें पहले ही बता दी थीं इसलिए वह पुलिस के सामने आ गया । वह पेशे से वकील था । वह परेश से मिलने थाने गया और कहा कि जिस रात वह घटना घटी थी उस रात परेश यहां था ही नहीं, वह तो दिल्ली गया हुआ था । उसने परेश की फ्लाइट के टिकिट और दिल्ली में होटल ओरिएंटल की बुकिंग और बिल के कागजात पेश कर दिये । उन्हें देखकर पुलिस को भी आश्चर्य हुआ । तब पुलिस को लगा कि परेश ने फ्लाइट और होटल के बिल फर्जी तैयार करवाए हैं । तब हर्ष ने कहा
"आप एयरपोर्ट के और होटल के सीसीटीवी कैमरे चैक कर सकते हैं" ।
पुलिस ने दोनों जगह के सीसीटीवी कैमरे देखे तो उनमें परेश दिखाई दिया । अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी । मगर सवि क्यों झूठ बोल रही थी ? इसके बारे में परेश ने पिछली दोनों घटनाएं बता दीं । पुलिस को परेश निर्दोष लगा और उसने उसे छोड़ दिया । फिर सवि से सख्ती से पूछताछ की गई तो उसने कहा कि सुशांत नाम के लड़के ने यह सब किया अवश्य है लेकिन इसके पीछे परेश ही है । उसी ने इसकी साजिश रची है । उसने दावे से कहा ।
घूम फिरकर बात वापस परेश पर आ गई । परेश ने कहा दिया कि वह सुशांत को जानता ही नहीं है । परेश के यहां कोई डॉग भी नहीं मिला । अब पुलिस को सुशांत की तलाश करनी थी । सवि से सुशांत का हुलिया बताने को कहा गया । सवि ने सुशांत का हुलिया बताया जिसके आधार पर सुशांत का एक स्केच तैयार किया गया । सवि ने उस स्केच को देखकर कहा "हूबहू ऐसा ही था सुशांत" । पुलिस ने उसकी तलाश आरंभ कर दी ।
तब सवि को ध्यान आया कि एक दिन वह सब्जी वाले के यहां पर मिला था और वहां से वह उसे अपने घर भी लेकर गया था । सवि को सब्जी वाले के पास ले जाया गया लेकिन उसने सवि को और सुशांत को पहचानने से इंकार कर दिया । उसका यह प्रयास भी निष्फल हो गया तो वह पुलिस को लेकर सुशांत के घर में गई । दरवाजा एक 20-25 साल के युवक ने खोला । पुलिस ने उससे पूछताछ आरंभ कर दी
"यहां सुशांत नाम का आदमी रहता है" ?
"नहीं तो , यहां तो केवल केवल मैं ही रहता हूं"
सवि ने कहा कि सुशांत उसे इसी मकान में लाया था और उसने चाय भी बनाकर पिलाई थी । पुलिस ने पूरे मकान की तलाशी ली मगर उसमें चाय बनाने की केतली भी नहीं मिली । चाय की पत्ती और चीनी भी नहीं थी वहां । उस घर में रहने वाले देवा ने कहा
"वह चाय कॉफी कुछ नहीं पीता है । पिछले तीन महीनों से वह यहां रह रहा है । उसने एग्रीमेंट की कॉपी दी और किराये की रसीदें भी पुलिस को दे दी । देवा ने भी कह दिया कि वह किसी सुशांत को नहीं जानता है । मामला पेचीदा हो गया था ।
पुलिस को कोई भी क्लू नहीं मिला तो उसने केस में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दी जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया । उस दिन कोर्ट में सवि और परेश दोनों मौजूद थे । सवि के चेहरे पर पहली बार परेश ने हार , खीझ, निराशा के भाव देखे थे । एक तो उसका चेहरा ऐसा हो गया था कि यदि कोई उसे रात में देख ले तो डर के मारे दम तोड़ दें । सौंदर्य की देवी को एक चुड़ैल के रूप में बदलते हुए देखने पर परेश को बहुत दुख हो रहा था । उस पर उसका विक्षिप्तों की तरह व्यवहार करना उसे बहुत परेशान कर रहा था । आखिर उसने हृदय के गहनतम तल से प्रेम किया था सवि से ।
लेकिन सवि ही बेवफा निकल गई तो वह क्या कर सकता था ! शायद भगवान ने उसके पापों का दंड दे दिया था । इलाज के लिए पैसों की जरूरत थी तो उसे दुकान बेचनी पड़ गई । अब उसके पास फ्लैट के अलावा कुछ नहीं बचा था । अब वह काम करने लायक भी नहीं रही थी और कोई उसे काम दे भी नहीं सकता था क्योंकि उसका चेहरा इतना भयंकर लगता था कि कोई उसके पास आने की हिम्मत भी नहीं करता था । उस दिन कोर्ट में सवि और परेश का आमना-सामना हुआ तो पहली बार परेश की आंखों में जीत की चमक और सवि की आंखों में हार की खीझ थी ।
उसके एक महीने बाद परेश स्विट्जरलैंड चला गया था घूमने के लिए । इतने दिनों बाद अब जाकर उसकी जिंदगी से सवि नामक राहु का ग्रहण समाप्त हुआ था । वह प्रफुल्लित था और अपने कमरे में टीवी देख रहा था कि इतने में उसके चार पांच दोस्त आ गये । सब एक दूसरे से लिपट गये । परेश एक एक से बोला "अरे, तू कब आया सुशांत" ?
"साले, मेरा नाम सुशांत नहीं अमर है । दो चार दिन सुशांत क्या बना मेरा नाम ही बदल दिया तूने" ! अमर परेश के गले लगता हुआ बोला । "और देवा , कैसा है रे तू" ?
"भैया अब तो मेरा असली नाम ऋषि लेकर बुलाया करो" ।
"क्यों ? रामू क्यों नहीं" ? परेश उसे आंख मारते हुए बोला
"ठीक है । मैं ही रामू था और मैं ही देवा था मगर मैं सही में ऋषि हूं" ।
"असली हीरो तो ये नटवर लाल है । क्यों है ना संदीप" ? परेश ने संदीप की पीठ पर थाप मारते हुए कहा ।
"हां यार । सारा कमाल संदीप का ही है" अमर संदीप की पीठ थपथपाते हुए बोला "यदि ये मेकअप से मुझे सुशांत नहीं बनाता और ऋषि को देवा तथा रामू नहीं बनाता तो उस दुष्ट औरत को सबक कैसे मिलता"
"पर ये सारा प्लान तो तेरा ही था अमर । एक पुलिस वाला होकर भी तूने इतना बड़ा प्लान बनाया और सुशांत की भूमिका भी अदा कर दी । इसे कहते हैं दिलेरी । हैट्स ऑफ टू यू अमर" । कहकर परेश की आंखों में आंसू आ गये ।
"अपना एक और हीरो "टाइगर" कहां है" ? संदीप बोला
"उसे मारना पड़ा यार" । महीपाल ने प्रवेश करते हुए कहा "वही सबसे बड़ा सबूत था इसलिए उसे मारकर अपने बंगले में दफनाना पड़ा यार । टाइगर मेरी जान था परेश" । महीपाल परेश के कंधे पर सिर टिका कर बोला ।
"तेरी ही क्यों, हम सबकी जान था टाइगर । पर नेक काम में किसी न किसी को तो बलि देनी ही पड़ती है ना ! अब सवि जैसी मक्कार औरतें फिर ऐसा नहीं कर पायेंगी" । परेश बोला
"नहीं यार ऐसा नहीं होता । हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के अंत के बाद रावण और कुंभकर्ण भी तो हुए थे । उनके अंत के पश्चात कंस , जरासंध, दुर्योधन, शिशुपाल वगैरह भी हुए थे ना ? ये सिलसिला चलता रहा है और आगे भी चलता ही रहेगा । दाऊद इब्राहिम, अतीक अहमद , मुख्तार अंसारी, सैयद शहाबुद्दीन, शुक्ला, हरिशंकर तिवारी जैसे लोग भी तो हुए हैं । प्रकृति का नियम है कि एक दुष्ट मरता है तो दस जन्म ले लेते हैं । एक सवि को सबक मिला है लेकिन पता नहीं कितनी और सवि अभी बैठीं हैं और खून चूस रही हैं । आज के सिस्टम में सजा कितनों को मिलती है ? यदि समय पर सजा मिल जाती तो अतीक और मुख्तार माननीय नहीं कहलाते ? लेकिन इतना जरूर है कि इन दुष्टों के मरने के दस पांच साल तक शांति जरुर मिल जाती है आम लोगों को । तो चलो , छोड़ो ये बातें और आज की शाम सेलीब्रेट करते हैं परेश के नाम" । और सबके सब डी जे की धुन पर झूमने लग गये ।
समाप्त