Naresh Verma

Tragedy

5.0  

Naresh Verma

Tragedy

प्रेम-धाम

प्रेम-धाम

14 mins
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श्याम सुंदर अरोड़ा जी ने पुस्तक उठाई ही थी कि बजर बज उठा ।उन्होंने आँख उठाकर घड़ी की दिशा में देखा , दिन के बारह बज रहे थे ।उन्हें अब एलर्जी सी हो गई है इन आवाज़ों से ।और हो भी क्यों न क्योंकि पिछले पचास सालों से इन्हींबजर और हूटर की आवाज़ों ने ही तो उनकी दिनचर्या को नियंत्रित किया हुआ था ।

इंजीनियरिंग डिप्लोमा करने के पश्चात उन्होंने फ़ैक्ट्री में नियुक्ति पाई थी ।तब से फ़ैक्ट्री हूटर की आवाज़ के इर्द-गिर्द हीतो उनका जीवन घूमता रहा था ।प्रात: सात का हूटर ,प्रथम चेतावनी कि तैयार हो जाइए ।साढ़े सात का हूटर द्वितीयचेतावनी ।आठ का हूटर-आदेश कि फ़ैक्ट्री पहुँचिए।दोपहर एक बजे के हूटर पर लंच और दो बजे के हूटर पर लंच कीसमाप्ति ।शाम पाँच बजे छुट्टी के हूटर की आवाज़ ही दिल को सुकून देती थी ।फ़ैक्ट्री गेट से निकलने के बाद वह स्टैंड सेअपनी सायकल उठाते और जल्दी-जल्दी पैडल मारते दस मिनट में अपने फ़ैक्ट्री क्वार्टर में पहुँच जाते ।उनकी पत्नीशकुंतला भी जानती थी कि हूटर के बाद दस मिनट में अरोड़ा जी घर आ जायेंगे ।हाथ-मुँह धोकर चायपियेंगे……………….।

 बस अब तो उन दिनों की यादें ही रह गयी हैं ।अब न वह फ़ैक्ट्री क्वार्टर है ।और न ही शकुंतला अब इस संसार में।बेटा-बहू मुंबई में ,बेटी कानपुर में अपनी गृहस्थी के साथ ।और वह स्वयं इस प्रेम-धाम ओल्ड एज होम में ।यह बजर की आवाज़प्रेम धाम वासियों को लंच तैयार होने की सूचना का संदेश था ।

कुछ पेट भारी होने के कारण आज उनका लंच पर जाने का मन नहीं था।पुस्तक पढ़ने को उठाई थी ,किंतु पढ़ने का मूड भीनहीं बना।अपनी आराम कुर्सी पर अन्यमनस्क से बैठे सड़क की तरफ़ खुलने वाली खिड़की से बाहर देखते रहे।पास हीबच्चों का स्कूल था ।स्कूल की छुट्टी हो गयी थी ।बच्चों से लदे रिक्शे चले जा रहे थे।एक आदमी स्कूल से अपने बेटे कीअंगुली थामे जा रहा था ।

वह सोचने लगे कि समय कितनी तेज़ी से निकल जाता है ।आज यह आदमी अपने बेटे की अंगुली थामे है । किंतु कौनजानता है कि कल जब यह आदमी बूढ़ा हो जाएगा तो यह बेटा उसकी बूढ़ी अंगुली थामेगा ?

मन में विचार घुमड़ते रहे ………..।शकुंतला के देहांत के बाद वह मुंबई चले आए थे, अपने बेटे के पास ।बेटे के पासएक छोटा सा फ़्लैट था ,जिसमें बेटे का परिवार ही मुश्किल से एडजस्ट कर पा रहा था ।उपर से उनके पहुँचने से समस्या और विकट हो गई थी ।वह फुटबॉल की तरह कभी बालकोनी में ,कभी इधर ,कभी उधर एडजस्ट होने का प्रयास करते रहे।जैसे-तैसे उन्होंने इन परिस्थितियों में अपने को ढालने का प्रयास किया।किंतु उनके आने से पुत्रवधू की झुँझलाहट बढ़तीजा रही थी ।परिणाम स्वरूप पति-पत्नी में तकरार बढ़ने लगी थी ,जिसके लिए वह अपने को दोषी मानते थे ।

एक सुबह जब वह सैर के लिए निकले तो रास्ते में अचानक उनकी फ़ैक्ट्री से ही सेवानिवृत्त पुराने सहकर्मी रानाडे जी मिल गए।मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई ।पुराने दिनों की यादें ताज़ा की गईं ।तदुपरांत रानाडे ने उनसे पूछा-“ भई ,यहाँ मुम्बई में कैसे ? “ उन्होंने बतलाया कि पत्नी के देहांत के बाद यहाँ बेटे के परिवार के साथ रह रहे हैं ।किंतु……….।उनकी बात काटते हुए रानाडे ने सुझाव दिया कि चलो कहीं बैठकर एक-एक कप चाय पी जाये।वह पास के ही एक रेस्टोरेंट में चलेगए ।वहाँ कुछ अपनी कुछ जग की चर्चा के मध्य उन्होंने बेटे के साथ एडजस्ट न कर पाने की समस्या बतलाई।रानाडे ने मुस्कुराते हुए कहा था-“ अरोड़ा जी ,मैं तो पहले ही ताड़ गया था ।इसीलिए चाय के बहाने तुम्हें यहाँ ले आया।अब खुलकर बातें हो सकेंगी।

अरोड़ा जी ने बात सँभालते हुए कहा-“ नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ।बेटा-बहू तो मेरा सम्मान करते हैं ,पर मकान इतना छोटा है……….।

रानाडे ने बात काटते हुए कहा-“ अरोड़ा , कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है ।मैं सब समझता हूँ ।” फिर उसने चाय का प्याला रखते हुए कहा-“ अरोड़ा अगर चाहते हो कि तुम्हारा सम्मान बना रहे तो अपना कोई अलग ठिकाना ढूँढ लो।तजुर्बे की बात है कि बाप के पास कई बेटे तो रह सकते हैं , किंतु बेटों के पास एक बाप नहीं रह पाता।

अरोड़ा जी ने लाचारी से कहा-“ पर जाऊँ तो जाऊँ कहाँ ?”

रानाडे ने उनकी आँखों में देखते हुए कहा-“ यार तुम्हें अच्छी पेंशन मिलती है ।फंड-ग्रेच्युटी इत्यादि का रुपया भी मिला होगा।फिर क्या चिन्ता है, किसी ओल्ड एज होम में ठिकाना बना लो।”

अरोड़ा जी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा-“ ओल्ड एज होम ? क्या कह रहे हो ?”

इस पर रानाडे ने उत्तर दिया-“ अरे भाई, मैं ऐसे होम की बात नहीं कर रहा जो किसी चैरिटी से चलता हो।जहाँ बूढ़े दूसरों की दया पर निर्भर हों।आजकल तो फ़ाइव-स्टार ओल्ड एज होम भी हैं , जहां मेडिकल से लेकर मनोरंजन तक कीं समस्त सुविधाएँ हैं।यहाँ बेटे बहू के ताने क्यों सुनो ,वहाँ ठाट से स्वतंत्र जीवन जियो।जब मन करे दीवाली दशहरे पर बच्चों से मिल जाओ।”

अरोड़ा जी ने थोड़ा असमंजस में कहा-“ किन्तु कहाँ ढूँढूँगा मैं ऐसा ओल्ड एज होम जो मेरी जेब के अनुरूप हो और सुविधाजनक शहर में भी हो ।”

 रानाडे ने हंसते हुए कहा-“ कौन सी दुनिया में रहते हो ? इंटरनेट से तो दुनिया भर की जानकारी मिल जाती है ।तो होम ढूँढना कौन कठिन है ।”


यह सब दो वर्ष पहले की बातें हैं ।रानाडे के सुझाये समाधान पर उन्होंने गहनता से विचार किया था ।रानाडे ने सच हीतो कहा था कि स्वयं के जीवन को दूसरों की दया का मोहताज क्यों किया जाए।और एक महीने बाद ही वह मुंबई से इस प्रेम-धाम में आ गये थे ।यहाँ प्रेमधाम का कमरा नंबर १४ उनका अपना था ।किंतु कब तक ? अब तक न जाने कितने अपनेविगत में खो गए ।फ़ैक्ट्री क्वार्टर को भी वह अपना कहते थे ।अब क्या मालूम वह किसका अपना है।यह कमरा पहले भीकिसी का अपना रहा होगा ।कमरा ही क्यों ,यह संसार भी तो एक सराय है ।सराय में कुछ मुसाफ़िर ज़्यादा रुकते हैं, कुछ जल्दी चले जाते हैं ।शकुंतला भी तो इस सराय में उन्हें अकेला छोड़ गई।

मन में स्मृतियों की पुस्तक पर्त-दर-पर्त खुलने लगी थी ।बेटे की आठवीं बर्थडे थी ।साहिबज़ादे अड़ गए कि यदि सायकल नहीं दी गई तो वह बर्थडे नहीं मनायेंगे ।बहुत गुणा-भाग किया,पर हज़ार रुपये का जुगाड़ नहीं हो पा रहा था ।बच्चे का दिल भी तो नहीं तोड़ा जा सकता।रात में सोने से पहले भी यही उधेड़बुन रही।फ़ैक्ट्री में भी मस्तिष्क में सायकल ही छायी रही।

शाम को फ़ैक्ट्री से घर आने पर उन्होंने आश्चर्य से देखा कि बरामदे में एक नई चमचमाती सायकल खड़ी थी ।औरसाहिबज़ादे उसकी घंटी टुन-टुना रहे थे ।शकुंतला ने भतीजे की शादी में नयी साड़ी ख़रीदने के लिए रुपये जोड़े थे ।वही रुपये सायकल की भेंट चढ़ गए थे।

  

अचानक किसी बच्चे की हँसी की आवाज़ से यादों के तार टूट गए ।उन्हें लगा कि शायद उनकी सोच की प्रतिध्वनि कानों मेंबज रही है ।किंतु पुनः बच्चे कि हँसी और उसके साथ ही कुछ परिचित आवाज़ों से लगा कि बाहर कुछ हलचल है ।

वह कमरे से उठ कर बाहर बरामदे में आ गये ।उन्होंने देखा कि बरामदे से लगे लॉन में एक छ: साल की बच्ची और उसकेसाथ एक युवक एवं युवती थे ,जो संभवतः बच्ची के माता-पिता थे।उनके साथ सक्सेना जी ,नेगी जी एवं भल्ला जी भी थे ।यह सब लोग बच्ची के साथ फिजवी खेल रहे थे ।प्लास्टिक की डिस्क हवा में उछाली जा रही थी ।एक हाथ से दूसरे हाथमें।यदि किसी की पकड़ से वह डिस्क छूट जाती तो बच्ची की किलकारी के साथ लोगों का शोर वातावरण में गूंज जाता।हँसी और उल्लास की आवाज़ों से प्रेम धाम का लॉन जीवन्त हो गया था ।

घुंघराले काले केशों के बीच गुलाबी पन लिए हुए गोरे अंडाकार चेहरे पर भूरी आँखें ।गुलाबी रंग की वरमूडा पेंट पर लालफूलों की प्रिंट की क़मीज़ ।आभास होता था कि लॉन में कोई फूल अठखेलियाँ कर रहा है ।उन्हें बरामदे में खड़ा देख करसक्सेना जी ने उत्साह से कहा-“ आइये अरोड़ा जी आप भी खेल का लुत्फ़ उठाइये।”

प्रेम धाम निवासी सक्सेना जी का पुत्र, पुत्र-वधू एवं पौत्री उनसे मिलने आए थे ।वास्तविकता तो यह थी कि पुत्र को आफिस का कोई काम यहाँ निबटाना था ,तो एक पंथ दो काज हो गए थे।लॉन में खेल रही बच्ची सक्सेना जी की पौत्री थी।बच्ची का नाम कुशी था।

पुत्र और पुत्रवधू तो शहर से संबंधित कार्य निबटाने चले गए ।कुशी प्रेम धाम में ही दादा के पास रुक गई ।लंच के समय डाइनिंग हॉल में एक कुशी और अनेक दादा , बाबा ,दादू ,दादी।बच्चों के सान्निध्य को तरसते बृद्धजनों के बीच कुशी क्या आई मानो सूखी धरती पर वर्षा की प्रथम फुहार पड़ गई हो।जितने दादा-दादी उससे कहीं ज़्यादा चॉकलेट और गिफ़्टकुशी को मिल गए थे ।

लंच के बाद कमरे में पहुँच कर कुशी ने सक्सेना जी से पूछा-“ दादा आप जयपुर में हमारे साथ क्यों नहीं रहते ?

सक्सेना जी सोच में पड़ गए कि पौत्री के इस सरल प्रश्न का क्या उत्तर दें।जब पुत्र एवं पुत्रवधू दोनों अपनी नौकरी परसुबह से शाम तक के लिए निकल जाते और कुशी स्कूल ,तो घर की दीवारों का सूनापन काटे नहीं कटता था।सूनेपन कोतो जैसे भी हो झेल लेते ,किंतु अपनेपन को तरसता मन उपेक्षा नहीं झेल पाया।अतः कुशी के प्रश्न पर सक्सेना जी नेमुस्करा कर कहा-“ इस बार दीपावली पर अवश्य आऊँगा ।”

कुशी ने दादा के सूखे केशों को देखते हुए कहा-“ दादा जी आपके बाल कितने सूखे हो रहे हैं ।लाइयेगा तेल डाल करचंपी कर दूँ ।छोटी बच्ची के प्रेम भरे आग्रह से सक्सेना जी भाव विह्वल हो गए ।छोटे-छोटे हाथों द्वारा दादा के सूखे बालोंपर तेल की चंपी होने लगी।पौत्री के स्नेहिल हाथों के स्पर्श से मन का बाँध टूट कर सूनी आँखों से होता हुआ गालों परबहने लगा ।

कुशी ने देखा तो आश्चर्य से पूछा-“दादा जी आप रो रहे हैं ? “ दादा ने रूँधे गले से कहा-“ नहीं बेटा तेल के तीखेपन सेआँखों में पानी आ गया है ।”

शाम सात बजे कुशी चली गयी ।प्रेम धाम के गलियारों का सूनापन और गहरा गया था ।कहीं-कहीं से उठती किसी वृद्धके खाँसने की आवाज़ ही इस सूनेपन को तोड़ रही थी ।

अगली सुबह आठ बजे नाश्ते का बजर बज रहा था ।कमरों के दरवाज़ों के बन्द होने की आवाज़ों ,चहलक़दमी कीआवाज़ों से प्रेम धाम के गलियारे जाग उठे थे ।आज नाश्ते के समय चर्चा के मुख्य विषय थे ब्लड प्रेशर ,डायबीटीज़, गठिया आदि , क्योंकि आज डाक्टर डे था ।प्रत्येक मंगलवार को सुबह नौ बजे से डाक्टर की साप्ताहिक विज़िट होती थी।डाक्टर रमेश बतरा अपने समय से आ गए थे ।कमरे के बाहर बरामदे में कुरसियाँ भर्ती जा रही थी ।

डाक्टर बतरा के कमरे में श्रीमती स्वामीनाथन की बाँह में ब्लड प्रेशर मशीन का पट्टा बँधा था ।”आपका ब्लड प्रेशर तोनॉरमल ही है ।”- डाक्टर ने कहा ।

“ किंतु मेरी साँस तो फूलती रहती है ।डिप्रेशन भी बढ़ रहा है ।”- श्रीमती स्वामीनाथन ने चिंतायुक्त स्वर में कहा ।

डाक्टर ने हँस कर कहा-“ कुछ दिन को अमेरिका में अपने बेटे के पास हो आइए ।सब ठीक हो जाएगा ।यह अकेलेपन का डिप्रेशन है ,और कुछ नहीं ।

ठंडी साँस लेते श्रीमती स्वामीनाथन ने कहा-“ काश: ऐसा हो पाता।यह सब इतना आसान नहीं है डाक्टर ।” डाक्टर ने पुनःकहा-“ वैसे तो सब नारमल है फिर भी कुछ दवाएँ लिख देता हूँ ।

अचानक श्रीमती स्वामिनाथन ने पूछा-“ डाक्टर आपके कितने बच्चे हैं ? डाक्टर ने उत्तर दिया-“ एक बेटी और एकबेटा।”

 “डाक्टर आप अपने बेटे के बड़े होने पर विदेश कभी नहीं भेजिएगा ।”-यह कहते हुए श्रीमती स्वामिनाथन कमरे से बाहरआ गई ।

बरामदे के बाहर अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में बैठे वृद्धाश्रम के बुजुर्गों का मुख्यतः एक ही रोग था ।अकेले पन का रोग।जिन बच्चों के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व लगा दिया था, वह बच्चे अब सयाने हो गए हैं ।

आश्रम के गेट पर थ्री व्हीलर के रुकने की आवाज़ से डाक्टर के बरामदे में बैठे आश्रमवासियों की आँखें उत्सुकता से गेटकी तरफ़ उठ जाती हैं ।एक ६०-६२ साल का मज़बूत क़द-काठी का व्यक्ति सूटकेस और बैग के साथ अंदर आता है औरमैनेजर के कमरे में प्रवेश कर जाता है ।उत्सुक आँखों में से एक ने कहा-“ लगता है प्रेमधाम की लिस्ट में एक नाम और जुड़रहा है ।


अगले दिन अरोड़ा जी अपने कमरे की कुर्सी पर बैठे खिड़की के बाहर देख रहे थे कि अचानक कमरे की घंटी बज उठी।उन्होंने उठकर दरवाज़ा खोला तो देखा प्रेमधाम का माली गनेश हाथ में एक काग़ज़ लिए खड़ा है ।अरोड़ा जी ने प्रश्नवाचकदृष्टि से गनेश को देखा।

“साहब इस काग़ज़ को पढ़कर दस्तख़त कर दीजिए ।”-गनेश ने कहा।

 उन्होंने देखा काग़ज़ एक सरकुलर था,जिसमें लिखा था-आज शाम पाँच बजे डाइनिंग हॉल में आप टी-पार्टी के लिए सादरआमंत्रित हैं ।नीचे निमंत्रण कर्ता का नाम बी॰बी॰अवस्थी लिखा था ।सरकुलर के साथ प्रेमधाम वासियों की लिस्ट थी ।उन्होंने अपने नाम के आगे हस्ताक्षर कर दिए और काग़ज़ गनेश को लौटा दिया ।

कौन हैं यह श्रीमान बी॰बी॰अवस्थी ? और क्यों दे रहे हैं यह टी पार्टी ? इन प्रश्नों की उत्सुकता में पाँच बजे प्रेमधाम केसमस्त बाशिंदे डाइनिंग हॉल में खिंचे चले आए ।मैस के काउंटर पर डिशेज सजी हुई थीं।थ्री व्हीलर से उतरने वालाव्यक्ति, साथ में गनेश एवं मैनेजर डिशेज को व्यवस्थित कर रहे थे ।

क्या यही है बी .बी .अवस्थी ? छ: फुट के आसपास का क़द , गोरा रंग ,चौड़ा ललाट, भूरी आँखें, पतली तलवार कट मूँछें।एक प्रभावशाली व्यक्तित्व ।

समस्त लोगों के बैठ जाने के पश्चात उस व्यक्ति ने प्रेमधाम वासियों को सम्बोधित करते हुए कहा-“ मेरा नामबी.बी.अवस्थी है ।प्रेमधाम परिवार से जुड़ने का मुझे सौभाग्य मिला है ।आज इस छोटी टी पार्टी के माध्यम से मैं आप सबसे परिचित होना चाहता हूँ ।जिस परिवार से जुड़ा हूँ उसके परिवारजनों को जानना चाहता हूँ । अकेलेपन से मुझे चिढ़ है ।मैं आप सब के साथ रहकर जीवन की ख़ुशियाँ बाँटना चाहता हूँ ।किसने हमारे साथ क्या किया उसका रोना बेमानी है ।जोवर्तमान है ,वही सत्य है और वही आनंद है ।”

एक ख़ुशनुमा वातावरण में पार्टी चलती रही और साथ ही परिचय का आदान-प्रदान भी।रह-रह कर अवस्थी के ठहाकों सेहॉल गूँज जाता था ।अपने कमरे में आने के बाद अरोड़ा जी सोचने लगे कि कितना खुल कर हँसता है यह अवस्थी ।सम्भवतः अवस्थी ने अपने जीवन ने कभी कोई दुख झेला ही न हो।किंतु जो भी हो उसकी उन्मुक्त हँसी ने घिरती शाम कासूनापन अवश्य मिटा दिया था ।

सच है कि हँसी स्वयं के मन को ही आनंदित नहीं करती ,वरन आसपास के लोगों को भी आनंदित कर जाती है।दो दिन केबाद लोगों ने देखा कि गनेश पुनः एक सरकुलर प्रेमधाम में घुमा रहा है ।सरकुलर में लिखा था-आप प्रात: छ: बजे बाहरलॉन में आमंत्रित हैं— बी.बी.अवस्थी ।

प्रथम सरकुलर के परिणाम से प्रभावित लोग लॉन में इकट्ठे होने लगे।लॉन में अवस्थी हल्के नीले रंग की टी शर्ट, सफ़ेदनिकर एवं सफ़ेद जूतों में जागिंग कर रहा था ।लोगों के पहुँचने पर अवस्थी ने सबका मुस्कान से स्वागत करते हुए कहा-“ मेरा आप सब के सम्मुख यह विनीत प्रस्ताव है कि हम यहाँ एक लाफिंग क्लब की स्थापना करते हैं ।यदि आप मेरे प्रस्तावसे सहमत हैं तो हम आज से ही इसका शुभारंभ कर देते हैं ।

सबकी सहमति मिलने के पश्चात अवस्थी ने कहा-“ आप सब लोग मेरे साथ हँसना आरंभ कीजिए ।शुरू में तो यह हँसीकृत्रिम होगी ,किंतु सम्मिलित हँसी की गूंज से यह वास्तविक हँसी में परिणत होती जायेगी । इस हँसने कि क्रिया सेफेफड़ों की कसरत के साथ-साथ एक ख़ुशनुमा दिन की शुरुआत भी होगी।

इसके साथ ही प्रेमधाम का लॉन पहले धीमी और फिर उन्मुक्त हँसी के ठहाकों से गूँजने लगा ।

उस प्रात: बेला में जैसे-जैसे उगते सूर्य की किरणें रात्रि के अंधकार को निगल रही थी, वैसे-वैसे हँसी के सम्मिलित स्वरवृद्ध जनों के ह्रदय में छिपे सूनेपन को भी निगल रहे थे ।

प्रेमधाम का माहौल बदल रहा था ।अपनों से उपेक्षित नियति के हाथों छले गये यह वरिष्ठ नागरिक अपनी परिस्थितियोंके बीच जीना सीख रहे थे ।हम में से प्रत्येक को एक न एक दिन मरना है ,किंतु मुट्ठी भर ही हैं जो जीना जानते हैं ।पहलेप्रेमधाम के मनोरंजन रूम में कम लोग ही जाते थे ।किंतु वहाँ अब प्रत्येक रविवार को हाउजी होती थी, ताश के खेल चलतेथे ।इन सब मनोरंजन गतिविधियों के पक्ष में अवस्थी का मत था कि जीवन को जीना ही नहीं है ,वरन जीवन एकसेलिब्रेशन है ।हर दिन एक उत्सव है ।

 दिन तेज़ी से गुजर रहे थे ।अवस्थी को प्रेमधाम में आये छ: महीने हो गए थे ।और एक दिन गनेश पुन: प्रेमधाम वासियोंके मध्य एक सरकुलर घुमा रहा था , जिसमें लिखा था-आज शाम ५ बजे आप सब टी पार्टी के लिए सादर आमंत्रित हैं ।

पार्टी के प्रयोजन से अनभिज्ञ लोगों के बैठ जाने के पश्चात अवस्थी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा-“दोस्तों , आजसे छह महीने पहले जब मैं इस ओल्ड एज होम में आया था, तो मैंने एक परिचय पार्टी दी थी ।और आज की पार्टी एकविदाई पार्टी है ।मेरे स्वयं की फ़ेयरवेल पार्टी ।कल मैं इस होम से जा रहा हूँ ।इन छह महीनों में आप सब से इतना जुड़ावहो गया है कि यहाँ से जाने में अत्यंत दुख हो रहा है ।किंतु मैं यहाँ जिस उद्देश्य से आया था वह पूरा हो गया है ।”

अवस्थी के जाने की बात से हॉल में आश्चर्य मिश्रित सुगबुगाहट के स्वर गूंज उठे थे।अपनी बात चालू रखते हुए अवस्थीने कहा-“ यह कटु सत्य है कि जीवन के संध्याकाल में जो भी व्यक्ति किसी ओल्ड एज होम में रहने का निर्णय लेता है , उसके पीछे कारण होता है उन अपनों की उपेक्षा जिनके लिए उसने अपना सर्वस्व लगा दिया होता है ।इन होमों में कितनीभी सुविधाएँ हों ,किंतु उपेक्षा का दंश चुभता रहता है ।और यह भी सच है कि हम परिस्थितियों को बदल नहीं सकते ।किंतुस्वयं को और स्वयं की सोच को अवश्य बदल सकते हैं । मैं भिन्न-भिन्न ओल्ड एज होमों में जाता हूँ ,कुछ महीने वहाँ रहताहूँ और यह संदेश देता हूँ कि परिस्थितियों का रोना छोड़ हमें प्रसन्न रहने की आदत डालनी होगी ।झुर्रियाँ हमारे चेहरे परपड़ती हैं ।किंतु उन्हें ह्रदय में मत पड़ने दो “


अगली सुबह प्रेमधाम के फाटक से थ्री व्हीलर की दूर होती आवाज़ के साथ लोगों को अहसास हुआ कि एक बार फिर उनका कोई अपना उनसे बिछुड़ गया है ।फाटक पर एकत्रित लोग अपने-अपने कमरों में जाने लगे थे ।किंतु अरोड़ा जी मैनेजर के पास ही रुक गए थे ।

अरोड़ा जी ने मैनेजर से कहा-“ कितना ज़िन्दा दिल इंसान था, यह अवस्थी ।

मैनेजर ने फाटक के बाहर दूर तक जाती सड़क को ताक़ते हुए कहा- “ हाँ आश्चर्य ही है कि सीने में इतने दर्द को छुपाये कोई कैसे इतना ज़िंदा-दिल रह पाता है ।”

अरोड़ा जी ने आश्चर्य से कहा-“ मैं कुछ समझा नहीं ।”

मैनेजर ने उत्तर दिया-“ आज से दो वर्ष पहले एक कार दुर्घटना में अवस्थी की पत्नी और पुत्र की मृत्यु हो गयी थी ।अवस्थी को भी बहुत चोटें आई थी ।अस्पताल में चार महीने मृत्यु से संघर्ष करते किसी तरह वह बच पाया था ।

अरोड़ा को सुनकर यकायक विश्वास नहीं हुआ कि क्या कोई इंसान ह्रदय में इतने आघात छिपाए हँस भी सकता है ।मैनेजर ने अरोड़ा के असमंजस को तोड़ते हुए कहा-“ संभवत: इसलिए अवस्थी इन ओल्ड एज होमों के बीच रहने वाले एकाकी लोगों को जीवन जीने की प्रेरणा देकर अपनी स्वयं की पीड़ा को भुलाना चाहता हो।”

आज प्रेमधाम के गलियारों में अवस्थी की हँसी कहीं खो गई है पर वह हम सब को हँसना अवश्य सिखला गया।


                      


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