महानगर में खोई लड़की
महानगर में खोई लड़की
ट्रेन का सिग्नल डाउन हो चुका था, मम्मी ,पापा और गुड्डु डिब्बे से उतरकर प्लेटफ़ॉर्म पर उसकी खिड़की के पास खड़े होगए थे मम्मी अंतिम बार उन्हीं बातों को दोहरा रही थीं जो वह ट्रेन के डिब्बे में कई बार कह चुकी थीं - कि पहुँचते ही फ़ोनकर देना ,सामान और पैसों का ध्यान रखना ।किसी अजनबी पर भरोसा नहीं करना….आदि..आदि ।पापा शान्त खड़े थे ।गुड्डु को आज क्रिकेट मैच में जाने की जल्दी थी, वह अपने बालों में उँगलियाँ फेर रहा था ।
ट्रेन ने सीटी दी ,पापा आँखों में तैर आए आंसुओं को छिपाने के लिए दूसरी तरफ़ देखने लगे थे और ट्रेन एक झटका ले चल दी थी ।प्लेटफ़ॉर्म पर विदा करने आए लोगों के हाथ हवा में लहरा रहे थे ।वह भी खिड़की से पीछे छूटते प्लेटफ़ॉर्म परखड़े मम्मी-पापा को तब तक बॉय-बॉय करती रही ,जब तक अपना जबलपुर का स्टेशन आँख से ओझल नहीं हो गया ।स्टेशन का केबिन, लाइन पर खड़े मालगाड़ी के डिब्बे तेज़ी से पीछे छूट रहे थे ।ट्रेन ने गति पकड़ ली थी ।रुचि शर्मा अपनीपहली नौकरी के लिए जा रही थी ।उसके लिए अनजाना शहर मुम्बई उसकी मंज़िल थी।
रुचि के एम॰ कॉम करने के बाद परिवार में इस प्रश्न पर काफ़ी मन्थन किया गया था कि अब क्या ? मम्मी ने जानपहचान के अच्छे लड़कों की लिस्ट बनानी आरंभ कर दी थी किंतु रुचि के सपनों की उड़ान ऊँची थी।उसके सपने कुछ और थे अभी से शादी की बेड़ियाँ उसे स्वीकार नहीं थीं।अपने पक्ष में पापा की मौन स्वीकृति ने उसका साहस बढ़ा दियाथा।उसका लक्ष्य तो किसी बड़े फ़ैशन शो की रैंप पर कैंट-वाक् करना था।किंतु इसी बीच एक राष्ट्रीय कृत बैंक मेंप्रोबेशनरी आफ़िसर के लिए उसने आवेदन कर दिया था ।लिखित परीक्षा उत्तीर्ण की और अन्ततोगत्वा प्रोबेशनरी ऑफ़िसरके लिए चुन ली गईं ।मुम्बई में उसे पोस्टिंग मिली।
माँ पुनः यहाँ स्पीड-ब्रेकर बन गईं थीं ।अकेली रहकर इतनी दूर लड़की का नौकरी करना उन्हें स्वीकार नहीं था ।इस बार पापा का सपोर्ट भी माँ की आशंकाओं का निवारण नहीं कर पा रहा था ।
इस नौकरी के लिए कई दिन तक घर में महाभारत मचा रहा था ।अंत में गांधी बाबा का फ़ार्मूला काम आया।उसने भूख-हड़ताल कर दी और अंत में माँ को हथियार डालने पड़े ।मुम्बई में पापा के दूर के कोई ममेरे या फुफेरे भाई रहते हैं।उनसे फ़ोन पर बात हो गई थी ।मुम्बई में जब तक कोई ठिकाना नहीं बन जाता तब तक कुछ दिन रुचि उन्हीं के घर रह लेगी।
जबलपुर बहुत पीछे छूट गया था।उसने खिड़की से देखा ट्रेन के बाहर गहरा अंधेरा घिर आया था ।ट्रेन की गति से भी तेज़थी उसके मन में घुमड़ते विचारों की गति ।क्या उसका सपना बैंक की नौकरी करना मात्र था ? नहीं, यह मुम्बई में प्रवेश काबस एक ज़रिया भर है ।मुम्बई एक महानगर है….. सपनों का शहर …शोहरत और पैसों का शहर ।उसके मन के किसीकोने में छिपा था एक मॉडल बनने का सपना ।उसके इस सपने को पंख लगाए थे उसकी सहेलियों ने और कुछ स्थानीयफ़ोटोग्राफ़रों ने।उन सब का कहना था कि उसका यह पाँच फुट आठ इंच का क़द , साँचे में ढला शरीर , रसीली गहरी भूरीआँखों युक्त आकर्षक चेहरा तो फ़िल्म नगरी में तहलका मचा सकता है ।मॉडल बनने के बाद तो फ़िल्मों में , दूरदर्शन में घुसने का रास्ता सहज हो जाता है ।
चाय … चाय… की आवाज़ों से उसकी विचार- श्रृंखला टूट गई थी।ट्रेन इटारसी स्टेशन पर रुकी थी ।घिरती रात के साथउसकी पलकें बोझिल होने लगी थीं।उसने स्लीपिंग बैग निकाला और अपनी बर्थ पर लेट गई।प्रातः उसकी आँख खुली तो ट्रेन कल्यान स्टेशन पर खड़ी थी ।मुम्बई ज़्यादा दूर नहीं ।फ़्रेश होने के बाद उसने अपना सामान व्यवस्थित कर लिया ।
ट्रेन मुंबई वी॰टी॰ स्टेशन पर आ लगी थी ।प्लेटफ़ॉर्म पर उमड़ते जन सैलाब के बीच से निकलती वह टैक्सी स्टैंड पर आगई।सर्वप्रथम उसने अपने मोबाइल से रमेश शर्मा के घर ,अपने पहुँचने की सूचना दी ,तत्पश्चात् पर्स से रमेश अंकल केपते का काग़ज़ निकाला- बी-३५ ,घाटकोपर वेस्ट ,गणपति मंदिर के सामने ।पते का काग़ज़ उसने टैक्सी वाले को दियाऔर टैक्सी में बैठ गई।
गणपति मंदिर के पास आकर टैक्सी रुक गई ।दो मकानों के बाद एक छोटे से गेट पर नेम प्लेट लगी थी- रमेश शर्मा , प्रापर्टी डीलर।रुचि ने घंटी दबाई तो एक अधेड़ व्यक्ति, उम्र ५५-५७ के आसपास ने गेट खोला।रुचि ने हाथ जोड़करअभिवादन करके अपना परिचय दिया ।यही थे उसके पिता के दूर के रिश्ते के भाई रमेश अंकल।रमेश जी ने नीचे से उपरउसे गहरी नज़रों से तोला।उनकी शरीर बेधती नज़रों में कुछ ऐसा था जो रुचि को अच्छा नहीं लगा।रमेश जी ने रुचि काबैग उठाते हुए मुस्कुरा कर कहा-“ जितेन्द्र जी की बेटी हो , जबलपुर से आई हो।तुम जब बहुत छोटी थीं , तब तुम्हें देखा था।”
रुचि अंकल जी के पीछे चलकर घर में प्रवेश कर गई थी ।दो कमरों का छोटा घर था ।अंदर जा कर रुचि को लगा किजबलपुर के खुले हवादार घर की अपेक्षा यहाँ कितनी घुटन सी है ।इतने में रसोई घर से गृहस्वामिनी भी निकल आयी थीं।रुचि को देखकर उन्होंने औपचारिकता से पूछा-“ आने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई ।” उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना हीउन्होंने एक स्टोर नुमा कमरा जो बरामदे के कोने में था, की ओर इंगित करते हुए कहा-“ इस कमरे को तुम्हारे लिए तैयार किया है ।वहीं अपना सामान रख कर फ़्रेश हो लो।” कमरे में एक तख़्त था ,जिस पर बिस्तर लगा था ।दीवार पर एक बिनापल्लों की खुली आलमारी थी ।कोने में एक प्लास्टिक की कुर्सी रखी थी ।रुचि ने अपना बैग और अटैची एक कोने में रख दिया, और तख़्त पर बैठ गई ।सफ़र की थकान से उसका मन था कि कुछ देर लेट ले। किंतु उसी समय रमेश अंकल आए और कुर्सी पर बैठते हुए बोले -“ रुचि इसे अपना घर समझना ।कोई भी ज़रूरत हो तो बिना झिझक बोल देना ।” यहकहते हुए अंकल की नज़रें उसके शरीर के उभारों पर फिसलती रही थीं।रुचि को लगा कि उसके शरीर पर चींटियाँ सी रेंग रही हैं ।रुचि का दिल धड़क उठा ।कहाँ आकर फँस गई ,जल्दी ही उसे कोई कमरा खोजना होगा।
अगले दिन कोलाबा में स्थित बैंक में रुचि ने अपनी ज्वाइनिंग दी।बैंक के ही एक स्टाफ़ अभिनव वर्मा जो कि कटनी के रहने वाले थे , से मिलकर रुचि को बड़ी प्रसन्नता हुई ।पैंतीस वर्षीय अभिनव का व्यक्तित्व उसे सौम्य एवं सहयोगी लगा।और सबसे बड़ी बात कि वह उसके जबलपुर के पड़ौसी शहर कटनी से था ।कटनी तथा जबलपुर शहरों की चर्चा के बीचरुचि ने अभिनव को अपनी निवास की समस्या भी बतलाई।
अभिनव ने हँस कर कहा-“ मुम्बई में सब कुछ मिल सकता है पर घर नहीं ।” सुनकर रुचि के चेहरे पर उदासी घिर आई ।उसी समय अभिनव को जैसे अचानक कुछ याद हो आया हो।उसने पुनः कहा-“ हमारे बैंक की क्लाइंट हैं मिस सोनालीघोष ,वह वर्किंग वुमैन होस्टल में रहती हैं।आजकल उनकी रूम पार्टनर तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए बंगलौर गयी हुई हैं।यदि आप चाहें तो मैं उनके साथ आपके अस्थायी रहने की बात कर सकता हूँ ।”
रुचि के पास कोई और विकल्प था भी नहीं ,कम से कम अंकल की कामुक नज़रों से तो मुक्ति मिलेगी ।रुचि नेफ़िलहाल इस प्रस्ताव पर स्वीकृति दे दी।अगले दिन सुबह जब रुचि बाथरूम से नहा कर निकली तो अंकल पेपर पढ़ने केबहाने बाहर बैठे थे ।गीली नाइटी से चिपके शरीर पर नज़रों के तीर चुभने लगे थे ।रुचि ने तेज चलते हुए कमरे में जाकरदरवाज़ा बंद कर लिया ।मोबाइल उठा कर सोनाली से बात की और कहा कि वह आज ही शाम सात बजे उसके साथ रहने आ रही है।
उस शाम , रमेश अंकल के घर से चिड़िया उड़ चुकी थी एक नए आशियाने की ओर।टैक्सी में बैठी रुचि सोच रही थी कि कुछ बनने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ता है ।आज जो सितारे बालीवुड के सरताज बने विदेशी गाड़ियों में घूम रहे हैं , उन्होंने भी कभी बसों में धक्के खाये थे ।उसका यह संघर्ष तो मंज़िल तक पहुँचने का एक पड़ाव मात्र है ।घुमड़ते बादलों कीतरह मन में विचार आ जा रहे थे ।पता नहीं कैसी होगी यह सोनाली घोष ? क्या उनके साथ उसकी पटरी बैठ पाएगी ?
……एक झटके से टैक्सी रुक गई ।” मेम सांब हॉस्टल आ गया।”- ड्राइवर ने कहा ।हॉस्टल गेट पर वाचमैन से उसने सी- ब्लॉक,रूम नंबर ३१ का पता किया । वाचमैन ने पूछा-“ क्या आप ही रुचि शर्मा हैं ?"
उसके ‘ हाँ ‘ कहने पर वाचमैन ने वहीं काम कर रहे लड़के को पुकार कर कहा -“ हरी …. इन मेमसाहेब का सामान सी- ब्लाक के इक्तीस नंबर में पहुँचा दो ।” इसके पश्चात वाचमैन ने जेब से चाभी निकाल कर उसे देते हुए कहा-“घोषमेमसाहेब तो शाम को आयेंगी , आप को चाभी देने को बोल गई हैं ।”
सेकेंड फ़्लोर पर स्थित रूम ३१ का ताला खोल वह अंदर प्रविष्ट कर गई।कमरे में दो बेड थे।प्रत्येक बेड के साथ लगा वार्डरोव था।कमरे के साथ लगा एक छोटा किचन और एक बाथकम टॉयलेट था।एक बेड अस्त व्यस्त सा था।उस पर कुछ अंडर गारमेन्ट्स पड़े थे ,कुछ पत्रिकाएँ पड़ी थीं। तकिये के पास एक ऐशट्रे रखा था जिसमें सिगरेट के टुकड़े ठूँसें थे।
दूसरा बेड व्यवस्थित था।उसके तकिये के पास चिट रखी थी, जिस पर अंग्रेज़ी में लिखा था- वैलकम ।प्लीज़ एडजस्ट योरसेल्फ कम्फरटेबिली-सोनाली घोष ।रुचि ने अपना सामान रखा ।जल्दी-जल्दी तैयार होकर बैंक के लिए निकल गई।जाते जाते चाभी वाचमैन को दे गई।
सायं छ: बजे रुचि होस्टल वापिस आ गई।सोनाली अभी भी नहीं आई थी ।रुचि ने कमरा खोला और पड़ गई पलंग पर।शरीर इतना थक गया था कि उसे चेंज करने का मन नहीं हुआ ।क्या यही है सपनों का शहर महानगर मुंबई ? यहाँ जिनके सपने पूरे हुए उन्हीं की कहानियाँ हमने जानी हैं।किंतु उन हज़ारों सपनों की कहानियाँ जो इस महानगर में दम तोड़ चुकीउन्हें किसने जाना है ।वह कहानियाँ तो उन्हीं के साथ दफ़्न हो गई ,जिनके सपने कभी पूरे नहीं हुए ।कमरे के सूनेपन से उसेघर की याद आने लगी थी ।
क्यों पड़ी वह जीवन में कुछ करने के चक्कर में।क्या मम्मी का बतलाया रास्ता आसान नहीं था ? शादी करो….बच्चे जनों…अच्छी साड़ियाँ पहनो , गहने पहनो ….किटी पार्टियाँ करो।छोटा परिवार सुखी परिवार ।
बरामदे में सैंडिलों की खट-खट की आवाज़ से उसकी विचार धारा टूटी।आवाज़ उसके कमरे पर आकर थम गई ।औरदूसरे ही क्षण ३०-३२ वर्षीय युवती ने कमरे में प्रवेश किया ।गहरे नीले रंग की फेडेड जीन्स में कमर और कूल्हे से उभराशरीर विद्रोह सा करता प्रतीत होता था ।औसत से बड़ा वक्ष ,नीली क़मीज़ की नेकलाइन का सीमा उल्लंघन कर रहा था ।साँवले रंग के लम्बोतरे चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखें ,भरे-भरे होंठ ,बॉब कट केश व्यक्तित्व को मार्डन बना रहे थे।यही थींकमरे की किराए दार सोनाली घोष ।उनके प्रवेश करते ही रुचि अचकचा कर पलंग से उठ गई थी ।उसे उठते देख सोनालीने रुचि को बैठे रहने का संकेत करते हुए कहा-“ रुचि शर्मा ।यही नाम है न तुम्हारा ?
सोनाली ने अपना पर्स , गोगल आदि वार्डरोव में रखते हुए पुनः कहा-“ भई तुम तो बहुत यंग लगती हो ।मैंने तो सोचा थाकि आँखों में मोटा चश्मा लगाए कोई बैंक वाली होगी।……उफ़ मुंबई में कितनी गर्मी है ।”- कहते हुए रुचि के सामने हीसोनाली ने अपनी शर्ट उतार दी।उसके मांसल जिस्म पर कसी हुई ब्रा ऐसी लग रही थी जैसे बहेलिये के जाल में फँसे दो कबूतर हों।अधनंगे शरीर को देखकर रुचि ने नज़रें झुका लीं।
रुचि की झिझक भरी नज़रों को लक्ष्य करके सोनाली ने ज़ोर का ठहाका लगाते हुए कहा-“ डरो नहीं जीन्स आदि बाथरूममें ही चेन्ज करूँगी ।”- कहते हुए वह बाथरूम में घुस गई।रुचि सोचने लगी कि कितनी बिंदास है यह बंगाली युवती ।
एक दूसरे के औपचारिक परिचय के बाद दोनों हॉस्टल के मैस में चली गयीं।सोने से पहले बातों-बातों में रुचि ने अपने मॉडल बनने के सपने के विषय में बतलाया ।सोनाली ने आश्चर्य से पूछा-“ किंतु तुमने तो बैंक ज्वाइन किया है ? “
“हाँ । मुम्बई में रहने के लिए पैसा भी तो चाहिए, बैंक तो सपने की पूर्ति का एक साधन भर है ।”
कमरे के बाहर से आता ट्रैफ़िक का शोर कुछ कम हो गया था ।रुचि की पलकें झपकनें लगी थीं ।……..रमेशअंकल…..यह नया कमरा ….जबलपुर.. इन सब के विषय में सोचते हुए रुचि सो गई।
अगला दिन ।बैंक गई , बैंक के बाद कुछ आवश्यक सामान ख़रीदा । कमरे में आकर ताला खोला…..सोनाली नहीं आई थी । रात दस बजे सोनाली आयी।आते ही पलंग पर तकिये के सहारे बैठते हुए उसने पूछा-“ तुमने डिनर कर लिया ?”
“हाँ ।”- रुचि ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
“आज एक पार्टी थी , वहीं खाना-वाना हो गया था।”- कहते हुए उसने पर्स से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली। धुँआ छोड़ते हुए ,उसने जैसे अपने आप से कहा हो-“ यह साले पैसे वाले अपने आप को न जाने क्या समझते हैं ।दो पैसे क्या आगए ,समझते हैं जैसे हर लड़की ख़रीदी जा सकती है ।आई हेट दैम ।उनसे क्या मैं सारे पुरुषों से नफ़रत करती हूँ ।”
रुचि को लगा जैसे सोनाली इस नफ़रत की आग को सिगरेट के धुएँ से बुझाना चाहती हो।रात गहरा गई थी ।रुचि चादरओढ़ कर लेट गई ।कल रविवार है सुबह देर तक सोएगी ।
गहराती रात की खामोशी में ………सपने तैर आए थे…….उसने सपना देखा कि सोनाली उसके साथ सो रही है…….और सोनाली के हाथ उसे सहला रहे थे ।….संवेदनशीलता का अतिक्रमण ….अंदर तक कंपकंपाती सी सिहरन दौड़ गईथी…….और अचानक रुचि की आँख खुल गई ।यह कोई सपना नहीं था…..वास्तविकता थी।सोनाली सच में उसके साथ लेटी हुई थी ।पहले तो रुचि को कुछ समझ नहीं आया किंतु अगले ही पल उसे स्थिति का ज्ञान होने लगा था ।सोनाली की पुरुषों से नफ़रत का राज स्पष्ट होने लगा था ।किंतु भय और शर्म से वह सोने का नाटक करती रही थी ।
अगले दिन जब खिड़की से छन कर धूप आने लगी तो रुचि की आँख खुल गई ।रात में घटित हुआ एक-एक पल उसकी स्मृति में पुनः घटित होने लगा ।सोनाली बेसुध सोई पड़ी थी।रुचि का मन हुआ कि इस समलैंगिक स्त्री को ऐसे ही सोता छोड़कर कहीं और चली जाए।पर कहाँ जाएगी वह ? यह महानगर भरा पड़ा है कंक्रीट के जंगलों से ।बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ हैं……स्काई स्क्रैपर हैं……अनगिनत झोपड़पट्टी हैं ।किंतु इस शहर में उसके लिए कोई ठिकाना नहीं ।मन कराकि छोड़ दें सब और वापिस चली जाए अपने जबलपुर को।….दूसरे ही क्षण उसका मस्तिष्क उपहास सा करता कह रहाथा- बस इतने से ही फ़ुस्स हो गया कुछ कर गुजरने का जोश ।…..नहीं वह लड़ेगी, सब सहेगी पर लौट कर नहीं जाएगी ।
सोनाली की पलकें भी खुल गई और वह अलसाई सी अंगड़ाई लेती उठ गई।उठकर वह सीधे किचन में गई ।कुछ देर बादवह ट्रे में दो कप चाय बना कर ले आई।चाय का कप उसे देते हुए उसने कहा-“ रुचि आई एम सॉरी ।कल रात पार्टी केबाद मैं बहुत अपसेट थी।” सोनाली के चेहरे पर घिर आए लाचारी, पश्चाताप और अपराध-बोध के भावों को लक्षित कररुचि को उस पर दया सी हो आई।महानगर की भीड़ में रहकर भी कितना अकेला है यहाँ इंसान ।
चाय की चुस्की के बीच सोनाली ने कहा-“ रुचि तुम मॉडल बनना चाहती थी न , मैं इस प्रोफ़ेशन से जुड़े एक एजेंट कोजानती हूँ ।दोपहर हम बाहर ही लंच करेंगे और बाद में उस एजेंट से मिलेंगे ।
सायं चार बजे रुचि और सोनाली मॉडल प्रोमोटिंग एजेंट के अंधेरी स्थित ऑफिस में पहुँचे ।जयंत जसवानी नाम थाउसका ।ऑफिस की दीवारों पर कुछ प्रसिद्ध मॉडलों के फ़ोटोग्राफ लगे थे ।कोने में एक बड़ी काँसे की खजुराहो भंगिमाकी मूर्ति रखी थी ।
मेज़ के सामने लगी कुर्सियों पर बैठते हुए सोनाली ने रुचि का परिचय जसवानी से करवाते हुए कहा-“ यही है रुचि शर्मा जिसके विषय में मैंने आप से फ़ोन पर बात की थी।”
जसवानी ने रुचि को भरपूर नज़रों से देखा।उसकी आँखों की एक्स-रे किरणें रुचि के आवरण को भेद उसके अंगों केअनुपात का आकलन कर रही थीं।जसवानी ने कुछ संतुष्टि के भाव से कहा-“ लड़की की फ़िगर तों चोखी है , किंतु सहीनिर्णय तो कैमरे का लैंस करेगा ।” जसवानी ने मेज़ की दराज से कार्ड निकालकर सोनाली को देते हुए कहा-“ आप इसपते पर हमारे फ़ोटोग्राफ़र विनय सूद से मिल लें।लड़की का चेहरा कितना फोटोजनिक है , यह तो फ़ोटोग्राफ़र हीबतलाएगा । फ़ोटो सेशन के बाद ही अगले कार्यक्रम का निर्णय होगा।”
दिन भर लोकल ट्रेन और बसों के सफ़र से थकान हो गई थी ।रात के दस बज चुके थे ।सोनाली सो गई थी ।सोती हुई सोनाली को न जाने क्यों रुचि देखती रही थी ।सोनाली की नाइटी घुटने के ऊपर तक सरक गई थी ,उसकी साँसों के साथउठता-गिरता वक्ष , बिना मेकअप के ढलान लेता चेहरा।शान्त सोती हुई बिंदास सोनाली ।और कल रात की अनियंत्रित साँसों के साथ उत्तेजित सोनाली ,कितना अंतर है ।रुचि ने कल रात सोनाली को एक अलग रूप में देखा था।और आज वहदिन भर उसी के लिए तो दौड़ती रही थी, एक संरक्षक बड़ी बहन के रूप में ।
रुचि के अगले कुछ दिन बहुत व्यस्तता में बीते।आज विनय सूद के यहाँ रुचि का फ़ोटो सेशन होना है ।बैंगनी और सफ़ेदसलवार-क़मीज़ के साथ मैचिंग चुन्नी उस पर खूब फब रही थी ।चलते-चलते उसने दर्पण में अपनी छवि को अंतिम बारनिहारा।हाँ सब ठीक है-के भाव से रुचि निकल पड़ी अपने मिशन के प्रथम पड़ाव पर।जाते-जाते उसने अपनी पुरानी फ़ोटूफ़ाइल भी रख ली।
विनय सूद का स्टूडियो ढूँढने में उसे ज़्यादा कठिनाई नहीं हुई ।धड़कते ह्रदय से उसने स्टूडियो में प्रवेश किया।
कन्धे तक लंबे खिचड़ी केश।अमिताभ-कट दाढ़ी ,नाक के किनारे पर टिका चश्मा।नीली फेडेड जीन्स के ऊपर घुटनों तकका ढीला कुर्ता।यही था विनय सूद - मॉडल फ़ोटोग्राफ़र ।वह फ़ोटोग्राफ़र की अपेक्षा फिलॉसफर ज़्यादा लगता था ।रुचिने अपने परिचय के बाद आने का उद्देश्य बतलाया ।
विनय सूद ने उसे उचटती नज़र से देखा ।पास रखी कुर्सी पर उसे बैठने का संकेत किया ,तत्पश्चात् अपने डार्क रूम मेंघुस गया ।
रुचि को वहाँ बैठे आधा घंटे से ऊपर हो गया था ।ऐसा लगता था कि उसे वहाँ बिठाकर वह फिलॉसफर कमफ़ोटोग्राफ़र शायद उसे भूल गया हो।रुचि को अब इस उपेक्षापूर्ण व्यवहार का एक-एक पल भारी लग रहा था ।मन कराकि उठ कर भाग जाए कि उसी समय सूद महाशय प्रगट हुए।फ़ोटो प्रिंटों में उलझते उन्होंने उसे बिना देखे कहा-“ तो तुममॉडल बनना चाहती हो ? ( रुचि ने झल्लाते हुए मन में सोचा कि इतनी देर से बैठी क्या मैं यूँ ही झख मार रही हूँ ) आजकल जिसे देखो चला आ रहा है मुम्बई…अभिनेत्री बनना है….मॉडल बनना है ।”-सूद बड़बड़ा रहा था ।
रुचि ने झल्लाकर बात काटते हुए तीव्रता से कहा-“ मैं बैठूँ या चली जाऊँ ?”
रुचि की तीखी आवाज़ से चौंकते हुए सूद ने पहली बार उसे ऊपर से नीचे तक ऐसे देखा जैसे कसाई बकरे को देखता है ।सूद ने उसे नज़रों से तौलते हुए पूछा-“ पहला फ़ोटो सेशन है ?”
रुचि ने अपने जबलपुर वाले फ़ोटो सेशन की फ़ाईल पकड़ा दी।सूद ने सरसरी नज़र से एक-दो फ़ोटो देखे और फ़ाईलएक तरफ़ सरकाते हुए कहा-“ फ़ोटो अच्छे हैं ।तुम्हारी शादी के समय लड़के वालों के यहाँ भेजने के काम आयेंगे ।”
रुचि का धैर्य चुकने लगा था ।किंतु उसने सहजता ओढ़ते हुए कहा-“ मैं कुछ समझी नहीं ?”
“ इसमें समझने को क्या है ? इन फ़ोटो में तुम्हारे कपड़े ही दीख रहे हैं , तुम तो कहीं नज़र ही नहीं आ रहीं ।”
रुचि चुप रही।सूद ने अपनी बात चालू रखते हुए कहा-“ मॉडल के फ़ोटो में मॉडल के शरीर का आकर्षण झलकना चाहिए ।फ़ोटो ऐसा हो जो शरीर की गोलाइयों को उसके उभारों को सही अनुपात में दर्शा सके ।” सूद ने नाक पर सरकआए चश्में को ठीक करते हुए कहा- रुचि शरीर का वह सही अनुपात तुम में है ।सामने आलमारी में डेनिम का शॉर्ट औरपिंक टी शर्ट रखी है ।उठो और उन कपड़ों को पहन लो।हम फ़ोटो सेशन आरंभ करते हैं ।
रुचि झिझकते हुए उठी।
उसके असमंजस को भाँपते हुए सूद ने हँसते हुए कहा-“ भई फ़ोटोग्राफ़र के सामने क्या शर्माना ।जैसे हलवाई को मिठाई का आकर्षण नहीं होता ऐसे ही मॉडल फ़ोटोग्राफ़र को नारी अंगों का आकर्षण नहीं होता ।
डार्क रूम ,लैंस के पीछे सिद्धहस्त आँखें ,लाइट एंड शेड……शरीर को उभारती उत्तेजक भंगिमाओं के साथ फ़ोटो सेशनसमाप्त हुआ ।सेशन के बाद गर्मा-गर्म कॉफी आ गई थी ।कॉफी पीते हुए सूद ने कहा-“ रुचि एक मॉडल में जो चाहिए वो सब तुम में है ।किंतु बहुत आशावान नहीं रहना ,क्योंकि यह एक काँटों भरा प्रोफ़ेशन है ।बाहर से जितनी चमक दिखती है अंदर उससे भी ज़्यादा अंधेरे छिपे हैं।यहाँ सब जीतना चाहते हैं ।पर सच यह है कि जीतने के लिए कपड़े हारने पड़ते हैं।मैं तुम्हें हतोत्साहित नहीं कर रहा। तुम्हें सावधान भर कर रहा हूँ ।”
उस रात देर तक नींद रुचि की आँखों से रूठी रही थी ।रह-रह कर सूद के शब्द कानों में गूंजते रहे थे……… जीतने केलिए कपड़े हारने पड़ते हैं ।उसे लगा कि महानगर के रास्ते गुम हो गए हैं…… जैसे हर रास्ता किसी अंधी बन्द गली तक जाता हो।घर छोड़ते समय मन में स्वप्नों के इन्द्र धनुष थे।अब लग रहा है कि इन्द्र धनुष के रंग बिखर रहे हैं ।मन में मरघट का सूनापन घिर आया है ।काश: इस सूनेपन में कोई अपना होता ।
कमरे में नाइट लैंप की हल्की नीली रोशनी का धुँधलका है ।छत पर स्पीड से सीलिंग फ़ैन घूम रहा है ।साथ के पलंग परझीनी नाइटी में सोनाली अपने बिंदास रूप में सोईं है ।उस रात का एक एक लम्हा जब सोनाली उसके पलंग पर आई थी,रुचि के स्मृति पटल पर चलचित्र की भाँति तरंगित हो उठा।पुनः उन गर्म साँसों की उष्णता का अहसास उसे होने लगा था ।
रीते मन में किसी के होने की चाहत लिए रुचि हौले से उठी ।नाइट लैंप की बत्ती बुझाई ।धड़कते ह्रदय और उफनती साँसों के साथ नि:शब्द सोनाली के पलंग पर हौले से चढ़ी……..और लेट गई सोनाली के साथ ।
सोनाली नींद में कुनमुनाई पर उसे अहसास हो गया कि वह अकेली नहीं है ।महानगर की भीड़ में भले ही इंसान अकेला होपर क्या कुछ पल रुचि के रीते मन को सुकून मिल पाएगा ?