दस लघुकथाएं
दस लघुकथाएं
1. हीरो टाइप
गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं इसलिए ट्रेन में भीड़ होना स्वाभाविक ही था। किसी तरह मुझे बैठने के लिए जगह मिल गयी। मेरे सामने की सीट पर तीन 'हीरो टाइप' लड़के बैठे हुए थे जिन्होंने 4-5 लोगों की जगह घेर रखी थी। मेरे पीछे ही दो बुजुर्ग महिला पुरुष भी ट्रेन में चढ़े और उन लड़कों के बीच जगह खाली देखकर उन्होंने अनुरोध किया - 'बेटा हमको भी बैठने के लिये थोड़ी सी जगह दे दो, लड़के हंसकर बोले 'अंकल आप जैसे लोग सफर में बहुत मिलते हैं। आपको बैठाकर हमें खड़े होने का शौक नहीं चढा़ है। यह सुनकर आसपास बैठे कुछ बेशर्म लोग हंसने लगे तो बुजुर्ग थोड़ा झेंपकर आगे जगह ढूँढने निकल गये। अगले स्टेशन पर एक युवती अपनी मां के साथ ट्रेन में चढी़ और लड़कों के पास कुछ जगह देखकर बोली -'प्लीज मेरी मां के लिये थोड़ी सी जगह दे दीजिये।' लड़कों में से एक हीरो टाइप उठा और बोला - जरूर मैडम, पहले आप यहां मेरी सीट पर बैठिये। मैं आपकी मां को भी बैठाता हूं।' यह कहते हुए उसने लड़की को अपनी जगह बैठा दिया और सामने की सीट पर बैठे हुए लड़के को हाथ पकड़कर उठाते हुये बोला - 'अबे शर्म नहीं आती तेरी मां जैसी औरत खड़ी है और तू आराम से सीट पर बैठा है।' लड़का चाहकर भी विरोध नहीं कर पाया और उठ गया। युवती की मां को बैठाकर 'हीरो टाइप' युवती के पास आया और बोला 'यदि आपको कष्ट ना हो तो मैं भी बैठ जाऊं और 'हीरो टाइप' युवती के बगल में बैठ गया। अब तीनों लड़कों ने मिलकर युवती से बैठने की जगह देने की कीमत वसूलने का अभियान शुरू कर दिया और उनके बीच में बैठी युवती कसमसाने के अलावा और कुछ नहीं कर पा रही थी ।
2. मन और आत्मा
वह ऑफिस जाने के लिये समय पर तैयार होकर निकला। गली पार करने के बाद वह अभी पहले चौक पर ही पहुंचा ही था कि एक कार ट्रैफिक सिग्नल तोड़ती हुई एक वृद्ध साइकिल सवार को ठोकर मारती हुई निकल गई। वृद्ध साइकिल सहित दूर तक घिसट गया, उसे जानलेवा चोट तो नहीं लगी पर शायद उसके हाथ और पैर में चोट ज्यादा आ गई थी क्योंकि वह उठ कर बैठ भी नहीं पा रहा था। यह दृश्य देखकर उसकी आत्मा ने कहा - 'इस वृद्ध की मदद करनी चाहिये। इसे कम से कम हास्पिटल तक तो पहुंचाना ही चाहिए। तभी उसके मन ने टोकते हुये कहा - 'तुझे इस झमेले में पड़ने की क्या जरूरत है। तू ऑफिस जा। इस वृद्ध को कोई ना कोई तो हास्पिटल पहुंचा ही देगा। वह मन की बात मानकर आफिस के लिये निकल गया।
इस घटना के एक सप्ताह बाद ही वह एक दिन ऑफिस जा रहा था कि चौक के पास ही सिग्नल छूटते समय जल्दी से आगे निकलने के चक्कर में एक स्कूटी सवार लड़की दूसरे वाहनों में उलझ कर गिर गई। हालांकि उस लड़की को कोई चोट नहीं लगी पर उसके मन ने कहा - 'हीरो बनने का मौका अच्छा है। जा उस लड़की को उठा। वह फौरन अपनी बाइक को स्टैंड पर लगा कर लड़की को उठाते हुए बोला - 'अरे मैडम आपको लगी तो नहीं! ये साले गाड़ी वाले तो अंधे होकर चलाते हैं। लड़की उठकर स्कूटी में बैठते हुए बोली - 'नहीं मुझे कुछ नहीं हुआ, हेल्प करने के लिये थैंक्यू!। आसपास जमा कुछ लोग बोले - 'कितना अच्छा लड़का है जो किसी की मदद करने के लिये अपना काम छोड़कर रुक गया। यह सब देख-सुनकर उसका मन आज बहुत खुश हो रहा था पर उसकी आत्मा पिछले सप्ताह की बात याद करके आज काफी उदास लग रही थी।
3. बासी खाने का पुण्य
कल खन्ना जी के यहां शानदार पार्टी थी, जिसमें शहर के जाने-माने लोग शामिल हुए। पार्टी में देशी-विदेशी व्यंजनों की भरमार थी जिसका पार्टी में आये हुए मेहमानों ने जमकर आनंद उठाया। पार्टी के दूसरे दिन सुबह नौकर ने आकर मिसेज खन्ना से पूछा - 'मैडम कल की पार्टी का बहुत सारा खाना बचा हुआ है, उसका क्या करें'? वहीं पर खन्नाजी भी खड़े थे। वह नौकर से बोले - 'अरे कल का बासी खाना किस काम का ! अब तक तो पूरी तरह खराब हो चुका होगा, उसे नगर निगम के कूड़ादान में डलवा दो '। तभी मिसेज खन्ना ने टोकते हुये कहा - 'रुको मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है, खाना अभी पूरी तरह से खराब नहीं हुआ होगा। ऐसा करते हैं, पास में ही एक मंदिर है जहां पर भिखारियों की भारी भीड़ लगती है। वहीं पर ले जाकर सारा खाना हमारे नाम से बंटवा देते हैं। इस तरह से खाना भी बर्बाद नहीं होगा और हमारा नाम भी हो जायेगा और एक बात और है कि भिखारियों को खिलाने से हमें पुण्य भी मिलेगा। है ना कमाल का आइडिया मेरा! यह सुनकर खन्नाजी और नौकर भी मिसेज खन्ना की बुद्धिमत्ता पर चकित रह गये कि मिसेज खन्ना ने कैसे एक तीर से कई निशाने लगा लिये थे!
4. नेताजी का भाषण
नेताजी एक सभा को संबोधित कर रहे थे। उनके भाषण का विषय था- भ्रष्टाचार, बढ़ती रिश्वतखोरी, अनैतिकता आदि। उनका कहना था कि मैं इन सब बुराइयों को अपने समाज से जड़ से मिटाने के लिये कृतसंकल्प हूँ और इस काम के लिये मुझे अपनी जान की बाजी भी लगानी पड़ी तो मैं पीछे नहीं हटूंगा और मेरा एक निवेदन है आप लोगों से कि मैंने जो विदेशी हटाओ स्वदेशी लाओ आंदोलन चलाया है उसमें आप लोग भी मेरा सहयोग करें। विदेशी वस्तुओं को पराई स्त्री जैसी समझें और उनकी तरफ आंख उठा कर भी ना देखें व अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करें। गर्मी का मौसम था नेताजी पसीने से तर-बतर हो रहे थे और प्यास से उनका गला भी सूख रहा था अतः: उन्होंने अंत में सब का आभार व्यक्त करते हुए (अपनी सभा को सफल बनाने के लिये) माइक अपने जूनियर नेताजी को पकडा़ दिया और वहां से निकलकर सीधे अपनी वातानुकूलित वैन में पहुंचे जो सर्व सुविधा युक्त थी सबसे पहले उन्होंने विदेशी ब्राण्ड का ठंडा कोल्ड्रिंक पीकर अपना गला तर किया और वैन में उपलब्ध अन्य सुविधाओं का आनंद लेते हुए वह एक पंच सितारा होटल पहुंचे जहां पर कुछ बिज़नेसमैन पहले से ही उनका इंतज़ार कर रहे थे, नेताजी ने उनसे किसी फैक्ट्री के लाइसेंस वगैरह के बारे में बात की और उन्हें आश्वस्त किया कि उनका काम हो जायेगा फिर उनके द्वारा दिये हुये दोनों सूटकेस चेक किये। इसके बाद सबने मिलकर विदेशी ब्रांड की शराब के साथ पार्टी की और जब नशे ने कुछ असर दिखाना शुरू किया तो नेताजी ने उन्हें कुछ याद दिलाया तब वह व्यक्ति बाहर गये और कुछ देर में उन्होंने किसी को कमरे में अंदर धकेला और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया। अंदर नेताजी अपने भाषण में बताये गये नैतिक आदर्शों की धज्जियां उड़ाने में व्यस्त हो गये।
5.ट्रक ड्राइवर
जब फैक्ट्री से उसका ट्रक माल भरकर बाहर निकला तो खुशी उसके चेहरे पर साफ-साफ झलक रही थी। इसका कारण भी साफ था कि उसका नंबर लग जाने से ट्रक आज ही लोड हो गया जिसका फायदा यह हुआ कि होली का त्यौहार मनाने वह अपने घर पहुंच सकता था। वह था तो ट्रक ड्राइवर मगर स्वभाव से काफी सात्विक था यानी कि ड्राइवरों की आम बुराई जैसे कि नशाखोरी वगैरह से काफी दूर था और गाड़ी भी बहुत संभाल कर चलाता था।
वह फैक्ट्री से अपना ट्रक लेकर निकला। आगे एक भीड़-भाड़ वाले इलाके से वह गुजर रहा था कि पीछे से एक मोटरसाइकिल सवार आ रहा था जो कि जगह काफी कम होने के बाद भी आगे निकलना चाहता था मगर अनियंत्रित हो जाने के कारण वह गिर पड़ा जिससे उसे कुछ चोट लग गई। इसमें हालांकि ट्रक ड्राइवर की कोई गलती नहीं थी मगर मोटरसाइकिल सवार के चीखने-चिल्लाने से भीड़ ने ट्रक को घेर लिया। उसमें से कुछ लोग चिल्लाने लगे कि मारो साले को, ये ट्रक ड्राइवर ऐसे ही होते हैं साले शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं और ट्रक ड्राइवर के बहुत सफाई देने के बाद भी भीड़ ने उसे ट्रक के बाहर खींच लिया और मार-मार कर अधमरा कर दिया। ट्रक ड्राइवर अब होली मनाने घर पहुंचने के बजाय हॉस्पिटल पहुंच गया।
6.सुधार गृह
सब-इंस्पेक्टर शुक्
ला को सहसा विश्वास ही नहीं कि 6 महीने की सज़ा काटकर पिछले महीने ही रिहा हुआ यह वही राकेश है जिसे एक व्यक्ति की पिटाई करने के आरोप में पकड़ा गया था और 6 महीने कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। असल में हुआ यह था कि राकेश अपने दोस्तों के साथ शाम के समय चौराहे पर स्थित पान ठेले पर बैठा हुआ था कि तभी कुछ बाहरी लड़के आये और पान ठेले से सिगरेट लेकर वहीँ पर पीने लगे और सिगरेट के धुएं का छल्ला बनाकर उड़ाने लगे तभी राकेश के एक दोस्त ने उन लड़कों को मना किया कि सिगरेट का धुआं हमारे तरफ मत उड़ाओ मगर वह लड़के नहीं माने और बात बढ़ते-बढ़ते मारपीट तक की नौबत आ गई। राकेश के दोस्त लोग ज़्यादा संख्या में वहां पर थे अतः सिगरेट का धुआं उड़ाने वाले 2 लड़कों की राकेश के दोस्तों ने पिटाई कर दी बाद में पता चला कि वह किसी बड़े अधिकारी के लड़के थे। उन लड़कों ने पुलिस में शिकायत कर दी और पुलिस राकेश को भी उसके दोस्तों के साथ उठा कर थाने ले गई। राकेश और उसके दोस्तों पर सरेआम गुंडागर्दी करने का आरोप लगा और न्यायालय से उन्हें 6 माह के कारावास की सज़ा सुनाई गई। राकेश तो शरीफ था मगर अपने दोस्तों के साथ वह भी फंस गया था। 6 महीने जेल में रहने के दौरान राकेश के अन्दर भी कई बुराइयाँ आ गई और वह भी अपराधी प्रवृत्ति का हो गया। जेल में अन्य कैदियों के साथ रहकर इन लोगों ने अपराध करने के नए-नए तरीके सीखे जिन्हें उन्होंने जेल से बाहर निकलने के बाद आज़माया भी। जेल से निकलकर राकेश ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक व्यापारी के बेटे के अपहरण की योजना बनाई और मौका देखकर उसका अपहरण कर लिया और लाखों की फिरौती मांगी। राकेश और उसके दोस्त कोई पेशेवर मुजरिम तो थे नहीं अतः जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में आ गए। सब-इंस्पेक्टर शुक्ला ने राकेश को जब हथकड़ी पहने हुए ठाणे में देखा और उसके अपराध के बारे में मालूम हुआ तो उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही सीधा-सादा और शरीफ राकेश है जो निर्दोष होते हुए भी अपने दोस्तों के साथ जेल गया था। “जेल” जिसे सुधार गृह माना जाता है वहां से यह शरीफ आदमी अपराधों की ट्रेनिंग लेकर निकला और अपराधी बन गया! फिर जेल की क्या उपयोगिता रह गई? जहाँ पर आकर लोग सुधरना तो दूर की बात उलटे बड़े अपराधी बनकर निकलते हैं! सब-इंस्पेक्टर शुक्ला यह सब सोच ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर उसे कहा कि आपको साहब बुला रहे हैं और वह अनमने क़दमों से साहब के केबिन की तरफ बढ़ गया।
7. वो
नवविवाहित पति, पत्नी बाज़ार से कुछ सामान खरीदकर हाथ में आइसक्रीम लिए बस स्टैंड आकर खाली पड़ी कुर्सियों में बैठ गए और बातें करने लगे। उनकी बातें सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें घर में खुलकर बातें करने को समय न मिल पाता हो। पत्नी और पति के बाजू में “वो” भी आकर बस का इन्तज़ार करते हुए बैठ गया और अनचाहे ही उनकी बातें सुनने लगा। पति, पत्नी बातें करने में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने अपने गंतव्य को जाने वाली 2 बसें भी छोड़ दी थी। पत्नी भी सुन्दर नाक-नक्श और आकर्षक व्यक्तित्व वाली थी और पति भी मग्न होकर उसकी बातें सुन रहा था। इसी बीच पति को अचानक महसूस हुआ की पीछे से “वो” उसकी पत्नी को देखने का प्रयास कर रहा है और पत्नी की नजरें भी कई बार पति के पीछे बैठे “वो” की तरफ जाती हुई दिखीं। अब माहौल प्रेममय न रहकर शंकामय हो चुका था। पति सहन न कर पाया और पत्नी और “वो” के बीच में कुछ इस तरह से बैठने की कोशिश करने लगा जिससे उनकी नजरें आपस में न टकरायें। उसकी यह हरकत देखकर पत्नी और “वो” सहित वहां पर बैठे कई लोगों के चेहरे पर शरारती मुस्कान आ गई जिसे देखकर पति की स्थिति हास्यमय हो चुकी थी।
8.बड़े भाई
सण्डे की सुबह-सुबह घंटी बजने पर पत्नी ने दरवाज़ा खोला तो सामने हाथ में एक बैग लिए पति देव के बड़े भाई खड़े थे। पत्नी ने अनमने भाव से उन्हें प्रणाम किया और सामने कमरे में ही उन्हें बैठाकर वापस बेडरूम पहुंची तो पति ने ऊंघते हुए पूछा “कौन है इतनी सुबह-सुबह?”
“और कौन होगा! आपके बड़े भाई साहब ही हैं। हर महीने आपसे मिलने चले आते हैं”।
“अब हमारी आज की पिकनिक का क्या होगा!”
पति भी सोच में पड़ गया। आज महीनों के बाद पिकनिक जाने की तैयारी बनी थी और बड़े भाई ने आकर पूरा प्लान ही चौपट कर दिया। मगर बड़े भाई भी क्या करें भाभी 2 साल पहले ही गुज़र चुकी हैं, दोनों बेटे अपनी नौकरी में ही व्यस्त रहते हैं। बहुएं भी उनका ध्यान नहीं रखती हैं इसलिए महीने में 1-2 दिन के लिए यहाँ पर आ जाते हैं। पत्नी थोडा भुनभुनाती जरूर है मगर पति संभाल लेता है। पति भी उठकर बड़े भाई के पास गया। पांव छुए और हाल-चाल पूछने लगा। 1 घंटे के बाद फिर से दरवाजे की घंटी बजी। पति ने दरवाजा खोला तो सामने पत्नी के बड़े भाई सपरिवार खड़े थे। सब लोग अन्दर आये और हाल-चाल होने लगा। पति ने थोडा मौका मिलते ही पत्नी से पूछा “क्यों जी अब हमारी पिकनिक का क्या होगा!”
पत्नी ने आँखें तरेरते हुए कहा “मैं खूब समझती हूँ तुम्हारे इशारे। ताने मत मारो, पंद्रह दिन के बाद तो मेरे भाई-भाभी यहाँ घूमने आये हैं और तुम्हें पिकनिक जाने की पड़ी है!” पति ने चैन की सांस ली कि आज का दिन अच्छा गुज़रेगा। पत्नी मेरे बड़े भाई को लेकर ताने तो नहीं मारेगी!
9. बजट
बस स्टैंड में अपने दो बच्चों को लेकर बैठी हुई माँ से आखिर नहीं रहा गया तो बचाकर रखे हुए बीस रुपये लेकर वह दुकान पहुंची जहाँ से कोल्ड्रिंक की दो बोतल लेकर आई और अपने दोनों बच्चों के हाथों में पकड़ा कर उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे उसने जग जीत लिया हो।
पिछले एक घंटे वह गाँव जाने के लिए बस का इन्तज़ार करती हुई बस स्टैंड में अपने बच्चों के साथ बैठी हुई थी। भीषण गर्मी से सबका हाल बेहाल था। हालाँकि बड़ी बखरी से मांग कर लाये हुए मट्ठे को वह खुद और बच्चों को पिलाकर घर से निकली थी मगर बस स्टैंड में कुछ नवधनाढ्यों के बच्चों को कभी चिप्स तो कभी कोल्ड्रिंक खाते-पीते देखकर उसके बच्चे मना करने पर भी नहीं मान रहे थे और कोल्ड्रिंक पीने की जिद पर अड़े थे। बच्चों के लिए कोल्ड्रिंक खरीद लेने पर उसका बजट किस बुरी तरह से प्रभावित होने वाला था यह सिर्फ उसे ही पता था। आखिर में उसका सब्र तब जवाब दे गया जब नवधनाढ्यों की टोली उसके बच्चों की तरफ देखकर हिकारत भरी हंसी हंस रहे थे। वह अचानक कुछ सोचकर उठी और अपनी चोटी को झटका देते हुये दुकान की तरफ बढ़ी और संभालकर रखे हुए पचास रुपयों में से बीस रुपये की दो कोल्ड्रिंक की बाटल खरीदकर आपने बच्चों के हाथ में दे दी।
10. जनरल वार्ड
जनरल वार्ड के बेड नं. 27 पर लेटे हुए 11 साल के लड़के से जब माँ ने पूछा कि “मैं काम पर जा रही हूँ बेटा। शाम को जल्दी आ जाऊंगी। तब तक तू अकेले रह लेगा न!”। यह सुनकर आस-पास के सभी लोगों सहित मैं भी चौंक पड़ा। पलट कर देखा तो फटे-पुराने कपडे पहने एक औरत अपने बेटे को दिलासा दे रही थी कि तू घबराना मत बेटे, मैं काम पर जाकर शाम तक जल्दी वापस आ जाऊंगी। अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था कि वह दिलासा अपने बेटे को दे रही है या खुद अपने को!
औरत से पूछने पर पता लगा कि कल रात उसके शराबी पति ने शराब के लिए रुपये न मिल पाने पर अपनी बीवी और बच्चे की पहले तो पिटाई की बाद में हताशा में अपनी ही झोपड़ी में आग लगा दी। वह औरत चाहकर भी झोपड़ी से अपना कुछ भी सामान नहीं निकल पाई और रोती-बिलखती रह गई। पति को तो पुलिस उठाकर ले गई और बच्चे की पिटाई और सदमे से तबियत बिगड़ गई जिसे लेकर वह सरकारी अस्पताल में आई थी जहाँ पर पर्ची कटवाने के लिए उसके पास 10 रुपये भी नहीं थे। अगले दिन सुबह काफी सोच-विचार कर उसने काम पर जाने का निर्णय लिया। उसके इस निर्णय पर अस्पताल में उपस्थित सभी लोग एक साथ हैरान और शर्मिंदा लग रहे थे।