डर”
डर”
एक मटमैले यूनिफार्म में आते देखा उस को ऊपर से नीचे खाकी रंग।
और उस ख़ाकी रंग में भी गन्दगी का पता चलना मतलब वाकई में कपड़े गन्दे थे ।
चेहरा भी बहुत साफ़ सुथरा नहीं था, रंग साँवला, बढ़ी हुई सफ़ेद दाढ़ी, बाल भी बढ़े हुए।
मन में सवाल आना लाज़मी था
अपने बच्चे को प्रीस्कूल में डाले हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है।
समय से पहले स्कूल पहुँच जाते हैं हम और वापसी में गेट पर मेरे बेटे की मम्मी ही सबसे पहले पहुँचती है उसे लेने।
छोटे बच्चों को एक एक कर के विदा किया जाता है ताकि कोई परेशानी न हो । मेरे बाद उस शख़्स का आना और इंतज़ार करना बच्चे के आने का ।उसे देख कर फिर मेरे मन में सवाल उठने लगते हैं कि कैसे मां बाप होंगे, अपने इतने छोटे से बच्चे को रिसीव करने ऑटो वाले को भेज दिया । वो भी थोड़ा ढंग का ऑटो वाला रहता तो एक बात थी। कितना डरावना दिख रहा है ये। मुझे नहीं लगता स्कूल वाले जाने देंगे इसके साथ बच्चे को।
बे
ल बजती है, छुट्टी हो गयी। पहले सबसे छोटे बच्चों को छोड़ा जाता है।
वो शख्स भी बेचैन है मेरी ही तरह, तभी एक मैम एक छोटे से बच्चे को ले कर आती है और मुस्कुराते हुए उस शख्स के हवाले कर देती है।
वो बच्चा खुशी से उस शख्स से लिपट जाता है।
वो शख्स अब बच्चे को गोदी में ले कर जूते पहनाता है। वो बच्चा अभी भी बड़े प्यार से उस शख्स को पकड़े हुए है। बच्चा बहुत ही साफ़ सुथरा है। कपड़े भी बहुत अच्छे हैं और जूते भी चमक रहे हैं।
मैं ध्यान से सुनना चाहती हूँ कि वो बच्चा क्या कह रहा है। वो उस शख्स को दादा दादा बोल रहा है और प्यार से लिपट कर उसे मिट्ठियाँ भी दे रहा है।
मेरा बेटा भी आ चुका है।अब मेरी बारी है उसे गोद मे उठा कर प्यार करने की और जूते पहनाने की। मैं बेटे को देख खुश भी हूँ और ऑटोवाले के पोते को देख अचम्भित भी क्योंकि उसे अपने दादा के गन्दे कपड़े नहीं दिख रहे हैं और उनके बेतरतीब सफ़ेद बालों से डर भी नहीं लग रहा है।
डर तो अब मेरा भी जाता रहा क्योंकि उस शख़्स ने अपने पोते के जूते की चमक को और चमकाने के लिए अपनी चप्पल में जो टांका लगवाया है वो मुझे दिख गया है।