Vishwa Priya

Drama

5.0  

Vishwa Priya

Drama

होली

होली

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आज जाने क्या बात हुई है, सुबह से बुलबुल आम के पेड़ में बैठ कर लगातार कुछ कह रही है आसमान भी रंग बदल बदल कर उसका साथ दे रहा है, जो आसमानी होता है आज थोड़ा पर्पल सा दिख रहा है। अरहुल के फूल हिलते हुए अपनी सहमती जता रहे हैं। शायद इन्हे भी बचपन वाली होली याद आ रही है।

मुझे तो याद आ रहा है। कोई 7-8 साल की थी जब

भाई ने नयी फ्रोक में रंग लगा दिया था

मम्मी ने खूब डांट लगाई थी उसे मेरी हैप्पी होली तो उसके डांट खाते ही शुरू हो गई थी।

गुलाल लगा कर तो हम बड़े होने के बाद खेलते हैं। पहले रंग भर पिचकारियों में भागा करते थे।

सुबह 7 बजे से इंतजार करते थे कि 8 कब बजेंगे। क्योंकि मम्मी ने कहा था कि 8 बजे से पहले घर से मत निकलना। मम्मी पुए बनाने में बिज़ी है मैं पिचकारी में पानी भर कर पौधों में डालती हूं। क्योंकि 8 तो बजे नहीं हैं और पिचकारी को इस्तेमाल न करो तो क्या पता वो बुरा मान जाए,उसे क्या पता 8 भी बजते हैं।

 07:50 में मेरा सब्र टूट जाता है, मैं खिड़की से ही दूर दिख रहे एक बच्चे को आवाज़ देती हूं वो सहमत हो जाता है। फिर तो मुझे मम्मी क्या नानी भी न रोक पाएं।

मैं पिचकारी और छोटी सी बाल्टी ले कर उड़ जाती हूं। 11-12 बजे तक हम रंग पानी में सराबोर हो कर भटकते हैं

मम्मी लोगों का झुंड आ रहा है होली खेलने। हम अपनी मम्मी को उनके डांटने के अंदाज़ से पहचानते हैं।

पापा लोगों का झुंड भी एक कोने में बैठ के रंग बिरंगा हो कर ठहाके लगा रहा है। मैं अपने पापा को उनके शेप से पहचानती हूं। सबसे लंबे और खाते पीते घर वाले ।

भाई जाने कहां दोस्तों के साथ नए टेक्नोलॉजी पर रिसर्च कर रहा है काले पीले दोस्त तो कंप्यूटर के तार जैसे दिख रहे हैं।

आज भी वही होली याद है, बचपन की होली। बचपन सबसे अच्छा समय होता है

आज हमारे बच्चे अपने सबसे अच्छे समय में हैं, चलिए उन्हें उनकी यादें बनाने में मदद करें।


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