पहेली : भाग 23
पहेली : भाग 23
डीजीपी साहब के घर से डिनर लेकर हरेंद्र सीधा सर्किट हाउस आ गया। ट्रेनिंग के दौरान सर्किट हाउस ही आई ए एस और आई पी एस अफसरों का ठिकाना रहता है। बढ़िया कमरा , बढ़िया खाना , बढ़िया सुविधाऐं . IAS, IPS को "नवाबों" की तरह ट्रीट किया जाता है इस देश में। अंग्रेज और नवाब तो चले गये लेकिन अपनी विरासत इन IAS , IPS में छोड़ गये। ये लोग खुद को अंग्रेजों और नवाबों की तरह बाकी भारतीयों से अलग "क्लास" मानते हैं। इनके दिमाग में यही भरा हुआ है कि असली शासक तो ये ही हैं। नेता तो पांच साल के लिए राजा हैं पर ये "आजीवन" राजा बने रहते हैं। इनका अहंकार सातवें आसमान पर होता है। हर किसी से सीधे मुंह बात नहीं करते हैं ये लोग। आजादी के 77 सालों के बाद भी इनके "मिजाज" में थोड़ा बहुत ही बदलाव हुआ है ज्यादा नहीं। हां, कुछ राज्यों में सत्ता की बागडोर पूरी तरह से नेताओं ने अपने हाथों में ले ली हैं। जैसे पश्चिमी बंगाल , केरल। वहां पर ये लोग "यस मैन" बनकर सत्ता की मलाई खा रहे हैं।
लेकिन हरेंद्र अभी ऐसा नहीं था। हो सकता है कि वह अभी उस कल्चर को नहीं जानता हो। इस "राज शाही" में आये हुए उसे अभी दिन ही कितने हुए हैं ? जैसे बच्चा बिल्कुल मासूम होता है वैसे ही नया नया अधिकारी भी बिल्कुल बच्चे जैसे मासूम होता है। छल कपट उसमें बाद में आने लगते हैं। कुछ वर्षों बाद तो वह पूरा "मंझा हुआ कलाकार" बन जाता है।
हरेंद्र को उबासी आने लगी। सुबह से एक मिनट को भी समय नहीं मिला था उसे। शरीर अकड़ गया था उसका। दिन भर की थकान के बाद बदन टूटने लगता है। काम भी कितना करना पड़ता है उसे ! अभी तो उसकी ट्रेनिंग ही चल रही है। यदि ट्रेनिंग में ये हाल है तो फिर एस पी बनने पर क्या होगा ? यह सोचकर ही उसकी रूह कांप गई। लेकिन जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसल की चोट से क्या डरना ? यह सोचकर उसके होंठ फिर से गोल गोल हो गये।
शॉवर लेने से थकान दूर हो जाती है , ऐसा सब लोग कहते हैं। थकान दूर करने के लिए हरेंद्र शॉवर लेने लगा। शॉवर लेने के बाद उसे ताजगी महसूस हुई। वह गुनगुनाने लगा
मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू
आई रुत मस्तानी कब आएगी तू
अब तो आ गई है जवानी कब आएगी तू
चली आ तू चली आ
गाना गुनगुनाते हुए उसे शर्म आ गई। फिर वह बिस्तर पर आ गया और नींद लेने की कोशिश की। रात के बारह बज चुके थे। वह थका हुआ भी बहुत था इसलिए उसने सोचा कि उसे जल्दी ही नींद आ जायेगी , लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जैसे जैसे वह नींद लेने की कोशिश करता वैसे वैसे नींद उससे कोसों दूर भागने लगती। नींद किसी अप्सरा सी दूर से उसे लुभा तो रही थी लेकिन पास आने में हिचकिचा रही थी। हरेंद्र उसके पास जाकर किसी पागल प्रेमी की तरह उसे बांहों में जकड़ने की कोशिश करता तो नींद किसी नटखट प्रेयसी की तरह फिसल कर उससे दूर छिटक जाती। दोनों के मध्य जैसे आंख मिचौली का खेल चल रहा हो।
लेटे लेटे हरेंद्र ने अपना चेहरा सीधा कर लिया और ऊपर छत को देखने लगा। न चाहते हुए भी उसकी आंखों के सामने रह रहकर जया का चेहरा आ रहा था। कितना सुन्दर, कितना सौम्य , कितना शांत , कितना सरल और कितना कान्तिमय चेहरा था जया का ! आज तक उसे किसी चेहरे ने अपनी ओर आकर्षित नहीं किया था लेकिन जया के चेहरे में वो कशिश थी कि वह उसके दिमाग से निकल ही नहीं रहा था। उसका जी चाह रहा था कि वह उसे देखता ही रहे। डीजीपी साहब के सामने वह उसे खुलकर देख भी नहीं पाया था। पता नहीं साहब क्या सोचेंगे ?
जया को याद कर करके हरेंद्र बेचैन होने लगा। उसके दिल के धड़कने की गति बढ़ गई थी। हरेंद्र की बेचैनी देखकर जया जैसे मुस्कुरा रही थी। लड़कों को बेचैन करके लड़कियों को बड़ा मज़ा आता ह
ै। हरेंद्र ने जया का खयाल दिल से निकालने के लिए अपना चेहरा बांयी ओर घुमा लिया। लेकिन इधर भी उसे जया ही नजर आ रही थी। फिर उसने चेहरा दांयी ओर कर लिया पर जया यहां पर भी दिखाई दे रही थी। जिधर देखूं तेरी तस्वीर नजर आती है वाली बात हो रही थी उसके साथ।
"हे भगवान ! ये क्या हो रहा है मुझे ? पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था ? क्या उस पर जया का जादू चल गया है" ?
जया का चेहरा एक मिनट को भी उसकी आंखों से ओझल नहीं हो रहा था। उसकी बोलती हुई आंखें उसके दिल में धंसी जा रही थीं। उसकी मुस्कराहट हरेंद्र को किसी सागर में डुबो रही थी। जब जब जया मुस्कुराती थी हरेंद्र के दिल पर कुछ और जख्म कर जाती थी। आंखों और मुस्कुराहट के सम्मिलित वार ने उसे बुरी तरह घायल कर डाला था। दर्द के मारे हरेंद्र के मुंह से रह रहकर आह निकल जाती थी और वह अपने दिल को अपनी दोनों हथेलियों से थाम लेता था। लेकिन उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसका दिल उसी के हाथों से फिसला जा रहा हो। उसके होंठों से सीटी बजने लगी
"हाय मेरा दिल
चुरा के ले गई
चुराने वाली
मेरी कातिल"
हरेंद्र का दिल पहली बार किसी लड़की के लिए धड़कने लगा था। जब वह कॉलेज में पढ़ता था तब उसकी कॉलेज में बहुत सी लड़कियों ने उसे छेड़ा था लेकिन उसने किसी की ओर देखा तक नहीं था। थक हार कर उन लड़कियों ने उसका एक गंदा सा नाम रख दिया था। वो तो होली पर उसे पता चला जब लड़कियों ने लड़कों के और लड़कों ने लड़कियों के टाइटल हॉस्टल के गेट पर चस्पा कर दिये थे। टाइटल पढ़कर वह शर्म से गढ़ गया था। "नामर्द" ! ये भी कोई टाइटल है क्या ? इतना गंदा टाइटल ? सभी लड़के उसका मजाक उड़ाते थे इस टाइटिल से। पर लड़कियों से पंगा कौन मोल ले ? इसलिए वह खून का घूंट पीकर रह गया था। लड़कों की बड़ी समस्या है। लड़कियों को छेड़ो तो "बदमाश" कहलाओ और ना छेड़ो तो "नामर्द"। बेचारे लड़के ! दोनों ही तरफ मौत है उनकी। भई , करें तो क्या करें ?
हरेंद्र जैसे तैसे कॉलेज से निकला और आई ए एस की तैयारी करने लगा। उसे पता नहीं था कि कोचिंग क्लास की लड़कियां उसके बाजू वाली सीट पर बैठने के लिए झगड़ती थीं। यह राज एक दिन ऐसे खुला जब दो लड़कियों में इसके लिए मार कुटाई हो गई थी। दूसरी लड़कियों ने बीच बचाव किया था और उन्होंने ही उनकी सीट फिक्स कर दी थी। "तीन दिन रीना बैठेगी और तीन दिन मीना"। बेचारा हरेंद्र ! उससे पूछा तक नहीं गया। ये बहुत नाइंसाफी थी उसके साथ ! पर बेचारा क्या करता ? झेलता रहा उन्हें थोड़े दिन। वह न तो उनकी ओर देखता और न ही उनसे कुछ बात करता था। अंत में वे दोनों ही वहां से भाग खड़ी हुईं। "जान बची तो लाखों पाये , लौट के बुद्धू घर को आये"।
IAS अधिकारियों के ट्रेनिंग सेन्टर "मसूरी" में भी अनेक IAS और IPS लेडी अफसरों ने उस पर खूब डोरे डाले लेकिन वह जाल में नहीं फंसा था। लेकिन जया ने अपने नैनों से पता नहीं कैसी "गुगली" डाली थी कि हरेंद्र सीधा "क्लीन बोल्ड" हो गया था। वह जया की काली काली लंबी लंबी जुल्फों की गिरफ्त में आ गया था। मजे की बात यह थी कि पुलिस खुद गिरफ्तार हो गई। शिकारी खुद ब खुद शिकार हो गया। इसीलिए तो कहते हैं कि
हुस्न के जादू से कौन बच सका है श्री हरि
बड़े बड़े ऋषि मुनि भी फिसलते देखे हैं हमने
हरेंद्र जया के ख्वाबों में ऐसे घिर गया था जैसे कोई किश्ती भंवर में घिर जाती है। जया के बारे में सोचते सोचते न जाने कब उसे नींद आ गई। सुबह आठ बजे अटेंडेंट ने उसे चाय के लिए जगाया। "अरे बाप रे , आठ बजे गये। ओह ! आज तो कैलाश के बारे में छानबीन करने दीनबंधु चैरिटेबल अस्पताल भी जाना था उसे" ! वह फटाफट चाय पीने लगा।