शस्त्र और शास्त्र पूजा का पर्व : विजयदशमी
शस्त्र और शास्त्र पूजा का पर्व : विजयदशमी


अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की तिथि दशमी के दिन सेठ हरि नारायण पूजा की तैयारियां करा रहे थे । उनके घर में भगवान श्रीराम का बड़ा भव्य दरबार सजाया गया था । अस्त्र , शस्त्र जैसे तलवार , छुरा , कटार , रिवॉल्वर, बंदूक , गोलियां सब करीने से सजा कर रखी गईं थीं । उन्हीं के साथ वेद , पुराण , उपनिषद, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता की प्रति भी उनके आकार के क्रम में सजा कर रख दीं गई थीं । पूजन की सामग्री एक चांदी के थाल में क्रमबद्ध तरीके से रख दी गई थी । पूजा कराने के लिए पंडित जी भी आ गये थे और यज्ञ के लिए वेदी भी तैयार हो गई थी । घर के सब लोग नये वस्त्र पहन कर पूजा के लिए पूजाघर में आ गये थे । इस पूजा के लिए मनु अमरीका से और वैदेही बैंगलोर से आये थे । दादाजी हरि नारायण ने उन्हें विशेष रूप से बुलवाया था । बच्चे आधुनिक शिक्षा लें ये तो ठीक है पर अपने संस्कारों से भी जोड़े रखने के लिए उन्हें ऐसे कार्यक्रम में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए । मनु के मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे लेकिन वह संकोच वश पूछने का साहस नहीं जुटा पा रहा था । दादाजी ने उसके चेहरे के भावों को ताड़ लिया और बोले "कुछ पूछना चाहते हो मनु" ?
मनु तो इस अवसर का इंतजार ही कर रहा था , बोला "आप नाराज तो नहीं होंगे ना दादाजी" ?
"तुम्हारे प्रश्न पूछने पर मुझे प्रसन्नता होगी मनु ! हमारी संस्कृति की यही तो विशेषता है जो हर किसी को अपनी बात निर्भीकता से कहने की स्वतंत्रता प्रदान करती है । पूछो, क्या पूछना चाहते हो" ?
"ये विजय दशमी का पर्व हम क्यों मनाते हैं दादाजी" ?
"अनेक कारण हैं पुत्र ! इस दिन मां कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया था इसलिए इसे विजय दशमी कहते हैं । यह पर्व त्रेता युग में भी मनाया जाता था । त्रेता युग में भगवान विष्णु ने राक्षसों का वध करने के लिए "राम" के रूप में अवतार लिया था । इसी विजय दशमी के दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था इसलिए अब हम इस पर्व को अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाते हैं । भगवान शिव की पत्नी माता सती ने इसी दिन अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान देखकर योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर लिया था तब भगवान शिव के गणों ने वीरभद्र के सेनापतित्व में यज्ञ विध्वंस कर दिया था और दक्ष का वध कर दिया था । महाभारत काल में इसी दिन पांडव द्यूत में अपना राज्य गंवाकर 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञानतावस के लिए चले गए थे और अज्ञातवास की समाप्ति पर इसी दिन अर्जुन ने शमी (खेजड़ी) वृक्ष से अपने शस्त्र उतार कर कौरवों से विराटनगर में युद्ध किया था और उन्हें परास्त किया था"
"ओह ! इतने सारे कारण तो आज पहली बार पता चले हैं" । वैदेही भी कूद पड़ी थी इस वार्तालाप में ।
"हमने शास्त्रों को पढ़ना बंद कर दिया है ना, इसलिए" ।
"क्या यह पर्व हमारे शहर में ही मनाया जाता है या पूरे देश में" ? मनु का अगला प्रश्न था ।
"पूरे देश में मनाया जाता है यह पर्व । विजय दशमी से पूर्व नवदुर्गा का पर्व"नवरात्र" मनाया जाता है जिसका समापन विजया दशमी के पर्व के रूप में होता है । बंगाल, असम और उड़ीसा में यह दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है । इसमें नवरात्रों की षष्ठी से माता दुर्गा की प्रतिमा प्रतिष्ठित की जाती है । अष्टमी के दिन महा उत्सव होता है और दशमी के दिन यह पर्व पूर्ण होता है । बंगाल में माता को सिंदूर लगाती हैं स्त्रियां और एक दूसरे को भी सिंदूर लगाकर बधाई देती हैं । इसे "सिंदूर खेला" कहते हैं । गुजरात में नौ दिनों तक "डांडिया रास" होता है जिसमें गरबा खेला जाता है । अब तो यह गरबा लगभग पूरे देश में खेला जाने लगा है । दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है । हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर और कर्नाटक के मैसूर का दशहरा तो विश्व प्रसिद्ध है । राजस्थान में भी कोटा शहर में "राष्ट्रीय दशहरा मेला" लगता है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं । पूरे उत्तरी भारत में यह पर्व पूरे जोश खरोश के साथ मनाया जाता है । महाराष्ट्र में भी इसे धूमधाम से मनाते हैं"
"दादाजी , क्या नवरात्र पर्व और विजय दशमी पर्व आपस में जुड़े हुए हैं" ? वैदेही ने पूछ लिया ।
"नवरात्रि पर्व"शक्ति" की पूजा का पर्व है और विजय दशमी अधर्म पर धर्म की विजय का पर्व है । अधर्म पर धर्म की विजय बिना "शक्ति" अर्थात मां दुर्गा की कृपा के कैसे संभव है । यह सृष्टि प्रकृति और पुरुष के संयोग से चलती है । प्रकृति पुरुष यानि परमात्म तत्त्व के अधीन रहकर ही कार्य करती है लेकिन वह सहायक तो है ना ! इसीलिए भगवान श्रीराम ने किष्किंधा से रवाना होने से पहले नवरात्रों में मां दुर्गा की पूजा करके उन्हें प्रसन्न किया था । अतः ये दोनों पर्व आपस में जुड़े हुए हैं । सभी पर्वों का अंतिम लक्ष्य है परमात्म तत्त्व की प्राप्ति । ये पर्व भी उसी उद्देश्य के लिए मनाये जाते हैं" ।
"नवरात्रों में नव दुर्गा की पूजा क्यों करते हैं , दादाजी" ?
"मां दुर्गा अथवा भगवती प्रकृति का प्रतिरूप है जो स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व करती हैं । क्या स्त्री के बिना संतति संभव है ? बिना संतति के सृष्टि आगे कैसे बढ़ेगी ? इसलिए सृष्टि में स्त्री की विशेष भूमिका है । इसी को रेखांकित करने के लिए मां दुर्गा , भगवती या अंबा , गौरी के रूप में स्त्री जाति की पूजा की जाती है । स्त्री सदैव पूजनीया रही है । हमारे शास्त्रों में लिखा है
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता ।
यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वांस्तत्राफला : क्रिया : । ।
इसका तात्पर्य है कि जहां स्त्रियों की पूजा (आदर सम्मान) होती है वहां देवता निवास करते हैं लेकिन जहां उनका सम्मान नहीं होता वहां उनके समस्त कर्म निष्फल हो जाते हैं ।
नवरात्रि पर्व मातृशक्ति के सम्मान का पर्व है । साथ ही मातृशक्ति को यह अहसास कराने का पर्व भी है कि वह अबला नहीं है , वह दुर्गा, रणचंडी, कात्यायनी, काली का अवतार भी है । सभी देवी देवताओं के हाथ में शस्त्र होने का एक ही मतलब है कि जो लोग (दुष्ट) शास्त्र से नहीं मानते उन्हें शस्त्र से जीता जाना चाहिए"
"शस्त्र और शास्त्र पूजा एक साथ कैसे कर सकते हैं दादाजी" ?
"शास्त्रों की रक्षा करने के लिए ही तो शस्त्र उठाया जाता है । याद है जब एक राक्षस वेदों को चुराकर पाताल लोक में ले गया था तब भगवान विष्णु ने शास्त्रों को बचाने के लिए मत्स्य अवतार लिया था । यह कथा विष्णु पुराण में लिखी है । जब हिरण्याक्ष पृथ्वी को डुबोने के लिए पाताल लोक में ले गया था तब श्री हरि ने "वराह अवतार" लेकर पृथ्वी की रक्षा की थी । यदि पृथ्वी नष्ट हो जाती तो शास्त्र भी नष्ट हो जाते । शास्त्र हमें जीवन पद्धति सिखलाते हैं । जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के यूज करने की मैथेडोलॉजी उसके मैन्युअल में लिखी रहती है उसी तरह मनुष्य जीवन को जीने की मैथेडोलॉजी हमारे शास्त्रों में लिखी हुई है इसलिए शस्त्र और शास्त्र दोनों की पूजा की जाती है हमारे यहां" ।
"दादाजी, कहते हैं कि रावण के दस सिर थे , क्या यह सही है" ?
"रावण कहने को तो बहुत ज्ञानी था लेकिन वह पापात्मा था । उसमें दस विकार भरे हुए थे जो इस प्रकार हैं - काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर (ईर्ष्या) , अहंकार, असत्य भाषण, हिंसा और दंभ । ये दस विकार ही उसके दस सिर थे । शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य के पतन के लिए एक विकार ही पर्याप्त है , रावण के अंदर तो दस दस विकार थे इसलिए उसका पतन निश्चित था"
"कहते हैं कि उसकी नाभि में अमृत था, क्या यह सही है" ?
"मनुष्य को जीवन मिलता है चित्त से । यदि मनुष्य का चित्त निर्मल है , सरल है , समभाव वाला है , ईश्वर में अनुरक्त है तो मनुष्य "अमरता" को प्राप्त कर लेता है अर्थात वह स्वयं को शरीर नहीं मानता बल्कि परमात्मा का अंश मानता है जो कि वह है । परमात्मा की तरह परमात्मा का अंश रूपी जीव भी अमर होता है , यही अमरता का सिद्धांत है । लेकिन उसके विकारों ने उसका जीवन नष्ट कर दिया" ।
"पापा , आजकल ऐसे मैसेज बहुत आते हैं कि रावण ने तो सीता को छुआ भी नहीं था फिर "बेचारे" रावण को क्यों मारा" ? मनु की मम्मी ने सवाल उठा दिया ।
"ये मैसेज कौन लोग भेज रहे हैं ? ये वही लोग हैं जो सनातन पर उंगली उठाते हैं , रामचरित मानस को जलाते हैं , भगवान श्रीराम के बारे में न जाने क्या क्या अनर्गल प्रलाप करते हैं । वास्तव में वे लोगों को दिग्भ्रमित करते हैं और लोग उनके प्रोपोगेंडा में आकर ऐसी बकवास को सही मान लेते हैं । उसने माता सीता का अपहरण क्यों किया ? क्या उनका पूजन करने के लिए ? यदि वह इतना ही देव तुल्य था तो भगवान श्रीराम ने जब अपने दूत के रूप में युवराज अंगद को लंका में भेजा था तब रावण ने माता सीता को अंगद के साथ क्यों नहीं भेज दिया ? दरअसल लोग सत्य को छुपाकर असत्य को स्थापित करना चाहते हैं । वे रावण को देवता और भगवान श्रीराम को गलत बताना चाहते हैं । रावण ने अपने भाई कुबेर की पुत्रवधू अप्सरा रंभा से बलात्कार किया था तब रंभा ने उसे श्राप दिया था कि वह किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध यदि छुएगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे । इसी भय के कारण उसने माता सीता का स्पर्श नहीं किया । जो दुष्ट अपने भाई की पुत्रवधू से बलात्कार कर सकता है वह किस स्त्री को छोड़ेगा" ?
"विजय दशमी पर क्या शस्त्र पूजा करने से हिंसा नहीं बढ़ेगी" । इस बार हरि नारायण के पुत्र बद्री नारायण ने पूछा था ।
हरि नारायण जी इस प्रश्न पर हंसे फिर उन्होंने कहा "क्या आत्मरक्षा करना हिंसा है ? ऐसा कौन सा कानून हैं जो आत्मरक्षा को अपराध बताता है । कानून का ज्ञान नहीं रखने वाले लोग इस तरह की बातें करते हैं । यदि पड़ौसी या दुश्मन देश हमारे देश पर आक्रमण कर दे तो क्या हम उसे बुद्ध के उपदेश सुनायें ? दुष्ट लोग शस्त्र की भाषा समझते हैं शास्त्र की नहीं । राजा के पास "दंड" होना चाहिए या नहीं ? क्या अपराधियों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए ? क्या उनको दंडित करना हिंसा है ? यदि रास्ते में कुछ गुंडे किसी लड़की को छेड़ें तो वह लड़की क्या उन गुंडों के सामने गिड़गिड़ाती रहे या फिर वह दुर्गा का अवतार बनकर उन बदमाशों की धुनाई करे ? नवरात्रि पर्व लड़कियों को दुर्गा बनने की प्रेरणा देता है । सौम्य और विनीत बनने की प्रेरणा भी देता है । जैसी परिस्थिति हो , वैसा ही व्यवहार करने की प्रेरणा देता है" ।
दादाजी के उत्तर से सब लोग बहुत प्रसन्न हुए । उनकी शंकाओं का समाधान हो गया । इसके बाद सबने शस्त्र और शास्त्रों का भलीभांति पूजन किया । आज की आवश्यकता है शस्त्र और शास्त्र दोनों का पूजन करने की । हमें अपने बच्चों को यह बात भली भांति समझानी चाहिए ।
आप सभी को विजयदशमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयां