लालू राबड़ी लीला
लालू राबड़ी लीला
😛 “लालू–राबड़ी के कुकृत्यों का महामहोपाख्यान” 😛
✍️ श्री हरि
🗓️ 18.11.2025
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📚 अपराधशास्त्र विश्वविद्यालय : कुलपति–लालू, प्राचार्या–राबड़ी
अपराधशास्त्र की यदि कहीं “ओपन यूनिवर्सिटी” खोलनी होती तो मुख्यालय बिहार में ही बनता, और कुलपति की कुर्सी पर लालू जी विराजमान होते। उनकी निजी सचिव, उपकुलपति, परीक्षा नियंत्रक—सब पदों पर राबड़ी देवी ही बैठतीं।
पहले ही दिन छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए दो-टूक घोषणा होती—
“देखो बच्चा, अपराध करो पर मजाल है कि सबूत छोड़ो! अपराध करना हमसे सीखो—हमें हर तरह के अपराध का आजीवन अनुभव है।”
अब जनाब, चारा घोटाला तो बस उनका एम.फिल. प्रोजेक्ट था। पाँच-पाँच मामलों में सजा ऐसे मिली जैसे किसी मेधावी छात्र को पाँच-पाँच स्वर्ण-पदक मिलते हैं। बस फर्क इतना कि इधर मेडल गले में नहीं, गर्दन पर लटकता रहा—वह भी धारदार शर्म की तरह।
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👰♀️ राबड़ी : पतिव्रता का ‘अपराध-प्रसाद’ संस्करण
राबड़ी जी भी कम नहीं। वे हर अपराध में सह–भागीदार।
विवाह के सात फेरों में यदि कोई आठवाँ फेरा होता, तो उसमें यह वचन जोड़ा जाता—
“मैं हर पाप, हर अपराध में पति का पूरा साथ दूँगी।”
और मानना पड़ेगा—उन्होंने सावित्री, अनुसूया, अरुंधती, दमयंती, द्रौपदी—सबको पीछे छोड़ दिया।
इतनी समर्पित पत्नी पुराणों में भी दुर्लभ है।
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🏴☠️ अपहरण-उद्योग : बिहार का स्वर्णयुग
दोनों पति-पत्नी ने सत्ता मिलते ही प्रशासन को ऐसी अनुशासन-शिक्षा दी कि पूरा बिहार अपहरण-उद्योग में बदल गया।
गली-गली में लोग सलाह देते—
“काका, ट्यूशन छोड़ दीजिए, लड़का उठवाइए… फटाफट पैसा आता है।”
पुलिस वाले FIR नहीं लिखते थे; उलटे कहते—
“साहब, हम FIR फाड़ने, सबूत नष्ट करने और गवाहों को डराकर भगाने वाले विभाग में डेपुटेशन पर हैं!”
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🪓 उपकुलपति शहाबुद्दीन : तेजाब-प्रोफेसर
लालू राज के एकेडमिक को-ऑर्डिनेटर थे शहाबुद्दीन साहब।
जनता उन्हें “तेजाब-प्रोफेसर” कहती थी।
मानव-शरीर पर तेजाब के प्रभाव का वैज्ञानिक परीक्षण उन्होंने ही किया था—तीन निर्दोष लोगों को तेजाब से नहला कर।
ऐसी अनुसंधान-प्रतिभा पर नोबेल मिले तो भी कम है, परंतु मनुवादी, ब्राह्मणवादी, संघी ताकतें एक “होनहार वैज्ञानिक” को आगे बढ़ते नहीं देख सकतीं—इसलिए नामांकन ही नहीं गया (उनके समर्थकों के अनुसार!)
आज भी इस्लामिक आतंकी शहाबुद्दीन के शोधपत्र को श्रद्धांजलि में प्रयोग कर रहे हैं।
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🚗 मीसा की शादी : शोरूम शिफ्ट टू ‘मामा ऑफिस’
मीसा यादव की शादी आई तो मामा साधु यादव के अनुयायियों ने शहर के शोरूम में घुसकर कारें ऐसे उठाईं जैसे रावण सीता जी को उठा ले जाता था।
शोरूम मालिक ने घबराकर पूछा—“भाई, पैसे?”
उत्तर मिला—“काहे के पैसे? मुख्यमंत्री की बेटी है—आशीर्वाद दो!”
बाद में लालू जी ने इसी ‘कार-अपहरण’ को अपहरण उद्योग नीति में शामिल कर लिया, और बिहार को अपराध-आधारित उद्यमिता में अग्रणी राज्य बना दिया।
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🩸 साधु यादव : वह हाजिर-जवाब अपराधी
साधु यादव तो वह प्रजाति थे जिनसे अपराध भी डरकर थाने में छुप जाता था।
माएँ बच्चों को धमकातीं—
“मत रो बचवा, नहीं तो साधु यादव आ जाएगा।”
बलात्कार, हत्या—शिल्पी जैन जैसी अनेक पीड़िताओं का दर्द उसके “गले के मेडल” का हिस्सा बन गया।
बस फर्क यह कि उसके मेडल चमकते नहीं थे—खून से सने थे।
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💔 रागिनी के प्रेमी की ‘दुर्घटनात्मक हत्या’
रागिनी यादव को एक मनुवादी पंडित लड़का पसंद था—यह उस दौर के सामाजिक न्याय के पुरोधाओं के गले नहीं उतर सकता था।
मतलब, पिछड़ों के मसीहा की बेटी मनुवादी से प्रेम करे? राजनीति में महापातक!
बस, लड़के की हत्या कर दी गई—और पुलिस संरक्षण में उसे “कार दुर्घटना” का रूप दे दिया गया।
कार के आगे नुकसान नहीं, पीछे नहीं, सड़क पर खून नहीं—पर रिपोर्ट साफ:
“दारू पीकर गिरा था, बुड़बक कहीं का।”
परिवार आज भी न्याय की चौखट का फर्श घिस रहा है।
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📦 यू.सी. बनर्जी आयोग : पंद्रह दिन में फास्ट-फूड फैसला
गोधरा में 60 कारसेवक जला दिए गए—लालू के वोट बैंक पर उंगली कैसे उठे?
रेल मंत्री रहते ही फौरन एक पालतू जज यू.सी. बनर्जी को आयोग सौंपा गया।
और जज साहब ने रिकॉर्ड तोड़ते हुए पंद्रह दिन में रिपोर्ट दे दी—
“डिब्बे में आग अंदर से लगी थी, कारसेवकों को ‘जौहर’ करने का शौक था।”
जनता हैरान—
“साहब, राशन कार्ड पंद्रह दिन में नहीं बनता और आपने जाँच भी खत्म कर दी?”
जज साहब मुस्कुराए—
“नमक का कर्ज चुकाना था।”
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🧅 अपराधी एमएलए, एमएलए अपराधी – कैरियर विकल्पों का महान युग
उस दौर में कैरियर विकल्प थे—
1. हत्या
2. अपहरण
3. फिरौती
4. घोटाला
एकदम सरकारी मान्यता प्राप्त “स्वयं-रोज़गार योजना”।
पूरे यादव और मजहबी वोट बैंक में उत्सव मनता था—
“देखो, हमारा लड़का उद्योगपति बन गया!”
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🏃♂️ महान पलायन : मजदूरों की विदेश यात्रा
उस शासनकाल में इतने लोग बिहार से भागे कि रेल मंत्रालय को बिहार पलायन एक्सप्रेस चलानी पड़ी।
टिकट पर चेतावनी—
“रास्ते में अपहरण का जोखिम यात्री की अपनी जिम्मेदारी पर।”
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🎭 न्यायालय का मौन, सबूतों का आत्मदाह
सबूत खुद-ब-खुद जल जाते थे।
पुलिस कहती—“जनता सब जानती है।”
जनता कहती—“पुलिस सब करती है।”
पुलिस कहती—“हमसे ज्यादा कौन? हम ही तो नष्ट करते हैं!”
जज साहब मौन रहते—उन्हें भी बिहार में ही रहना था।
गवाह इतने तेजी से गायब होते कि लगता आतंकवाद-रोधी स्क्वाड उनकी "सुरक्षा" कर रहा है।
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😄 निष्कर्ष : अपराध भी शर्मिंदा था
लालू–राबड़ी राज में अपराध इतना पेशेवर हो गया कि—
अपराध विभाग, गृह विभाग, वित्त विभाग, न्यायालय—सब एक ही परिवार की शाखाएँ लगीं।
बिहारवासी कहते थे—
“हमारे यहाँ हर काम विधि-विधान से होता है…
बस विधि का काम सबूत मिटाना
और विधान का काम अपराध करना होता है।”
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🙏 बिहारवासियों, धान्य हो
आपने उस युग का ‘द्वितीय संस्करण’ नहीं चुना—
वरना बिहार फिर से “अपराधशास्त्र विश्वविद्यालय” बन जाता।
आपने सचमुच बहुत बड़ा काम किया है।
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