उड़ान
उड़ान
✈️ उड़ान
🤪 इंडिगो की दादागिरी, डीजीसीए और सरकार के निकम्मेपन पर करारा व्यंग्य 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️ 7.12.2025
देश के आसमान में इन दिनों हवाई जहाज़ कम,
यात्रियों की किस्मत ज़्यादा उड़ रही है।
इंडिगो ने ऐसी सामूहिक “कैंसलेशन लीला” रची है कि अब लगने लगा है —
यह एयरलाइन नहीं, कोई आकाशीय मनमानी प्राधिकरण है,
जिसे न यात्रियों का दर्द दिखता है,
न उनकी तकलीफें…
दिखता है तो केवल मुनाफ़ा।
पिछले तीन दिनों में जैसी दादागिरी इंडिगो ने दिखाई है,
वैसी तो कई पत्नियाँ भी सालों में नहीं दिखा पातीं।
एयरपोर्ट के दरवाज़े पर
कुछ लोग बरात लेकर खड़े हैं —
दुल्हन मेकअप में लथपथ बैठी है,
दूल्हा तनाव में सिर धुन रहा है,
बाराती व्यंजनों की जगह धक्के खा रहे हैं,
और इंडिगो कह रहा है —
“क्षमा करें, आपकी उड़ान तकनीकी कारणों से अचानक रद्द कर दी गई है।”
अब ये तकनीकी कारण कौन सा है?
पायलट बीमार है?
जहाज़ थका हुआ है?
या कंपनी का ज़मीर ही क्रैश कर गया?
इसका खुलासा कभी नहीं होता।
किसी के हाथ में माँ की अस्थियाँ हैं,
किसी को पिता की अर्थी को मुखाग्नि देनी है।
किसी को हरिद्वार बुला रहा है —
और यहाँ इंडिगो कह रहा है —
“अंतिम संस्कार अगले हफ्ते संभव है।”
अगले हफ्ते?
तब तक अर्थी को क्या
एयरपोर्ट के लगेज बेल्ट पर घुमाते रहें?
किसी की जीवन बदल देने वाली व्यावसायिक मीटिंग थी,
किसी का हनीमून था —
कहीं सपनों की पहली उड़ान,
तो कहीं ज़िम्मेदारियों की अंतिम यात्रा।
सब एक लाइन में खड़े हैं —
और इंडिगो का काउंटर किसी
सरकारी अस्पताल की खिड़की जैसा है —
न सुनवाई, न संवेदना,
केवल दादागिरी
और सरकार की कमजोरी का मखौल।
🛫 इंडिगो की दादागिरी — “उड़ेंगे… जब मन होगा”
इंडिगो अब एयरलाइन नहीं रही,
यह एक आकाशीय ज़मींदार बन चुकी है —
जहाँ जहाज़ उड़ेंगे या नहीं,
यह मौसम नहीं,
कंपनी की मर्ज़ी तय करती है।
न सूचना समय पर,
न वैकल्पिक व्यवस्था,
न होटल, न भोजन,
और जब यात्री पूछे —
तो उत्तर ऐसा ठंडा,
जैसे बर्फ़ से बना हुआ कस्टमर केयर।
“सर, आपकी फ्लाइट रद्द है।”
“क्यों?”
“सर, टेक्निकल इश्यू।”
“कौन सा?”
“सर, वही… जो हर फ्लाइट में होता है।”
🏢 डीजीसीए — देश का ‘दीपक’ जो खुद अँधेरे में है
अब ज़रा डीजीसीए को देखिए —
देश का विमानन नियामक,
या कहिए — निकम्मेपन की पराकाष्ठा।
लोग परेशान हैं,
और यह नाकारा विभाग
टुकुर-टुकुर देख रहा है बस,
जैसे उसका पेट
जनता से नहीं, रिश्वत से भरा हो।
जब सैकड़ों उड़ानें रद्द होती हैं,
हज़ारों यात्री सड़क-फुटपाथ जैसी एयरपोर्ट फ़र्श पर पड़े होते हैं,
बच्चे रोते हैं, बूढ़े तड़पते हैं —
तब डीजीसीए वही घिसे-पिटे जुमले उछालता है —
👉 “रिपोर्ट माँगी जाएगी।”
👉 “हम स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं।”
👉 “कंपनी से स्पष्टीकरण तलब किया गया है।”
वाह!
यात्री आसमान से ज़मीन पर आ गिरा,
और विभाग अब भी
काग़ज़ी पैराशूट खोल रहा है।
न जुर्माना,
न लाइसेंस पर ख़तरा,
न सार्वजनिक फटकार —
क्योंकि इंडिगो अब एयरलाइन नहीं,
सिस्टम का स्थायी सदस्य बन चुकी है।
🏛️ सरकार का समर्पण — “आप परेशान हैं, हमें खेद है”
अब बची सरकार।
वह तो रूस की अगवानी में व्यस्त है —
उसे जनता की तकलीफ़ें कम,
और रक्षा सौदे अधिक दिखाई दे रहे हैं।
सरकार ने भी बड़ा करुण स्वर अपनाया है —
“यात्रियों की परेशानी दुर्भाग्यपूर्ण है।”
वाह!
जैसे बाढ़ में बहती लाशों पर
कोई नेता कहे —
“यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।”
न इमरजेंसी निर्देश,
न कड़ा आदेश,
न जवाबदेही।
बस वही पुराना मंत्र —
हम देख रहे हैं, जाँच चल रही है, कार्यवाही होगी।
कब होगी?
जब यात्री पूरी तरह टूट चुका होगा।
😡 यात्री आज ग्राहक नहीं, बंधक है
आज यात्री ग्राहक नहीं रहा,
वह इंडिगो का बंधक है।
जिसका किराया पहले वसूला जाता है,
और सेवा बाद में —
वह भी भाग्य से।
कोई बारात के बिना मंडप में खड़ा है,
कोई अस्थियों के साथ एयरपोर्ट पर बैठा है,
कोई शादी टूटने की कगार पर है,
कोई जीवन की आख़िरी रस्म अधूरी किए।
और कंपनी कहती है —
“हम असुविधा के लिए खेद प्रकट करते हैं।”
खेद नहीं चाहिए साहब,
खोया हुआ समय, टूटी उम्मीदें
और रौंदे गए सपने लौटा दो।
✍️ अंतिम कटाक्ष
इस पूरे तमाशे में —
इंडिगो उड़ान नहीं, यात्री उड़ाता है
डीजीसीए नियम नहीं, फाइलें उड़ाता है
और सरकार ज़िम्मेदारी नहीं, बयान उड़ाती है
और ज़मीन पर
यात्री बैठा है —
अपनी उड़ान नहीं,
अपनी बारी का इंतज़ार करता है।
