STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Inspirational

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Classics Inspirational

एक चाय वाला

एक चाय वाला

4 mins
9

☕ एक चाय वाला ☕
🤪 एक तीखा हास्य व्यंग्य 🤪
✍️ श्री हरि
🗓️ 10.12.2025


इस देश में एक दिन बड़ी अजीब दुर्घटना घट गई। लोकतंत्र की दुकान पर एक "चाय वाला" आया—और देखते-ही-देखते उसने उन लोगों की नींद उड़ा दी, जो पीढ़ियों से सत्ता को खानदानी जागीर समझकर सोते-जागते रहे थे। जिनके यहाँ प्रधानमंत्री बनना जन्मकुंडली से तय होता था, वहाँ अचानक जनता ने चाय की केतली से सत्ता परोस दी।

देश जो बरसों तक एक ही खानदान के चारों ओर ऐसे घूमता रहा जैसे पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, उस धुरी को इस चाय वाले ने सीधा जनता की हथेली पर रख दिया। जो लोग वोट चोरी की सीढ़ी लगाकर सरदार पटेल का हक मारकर इस देश के “राजा” , नीति निर्धारक बने थे, जिन्हें लोकतंत्र कभी केवल औपचारिक सजावट लगती थी, वे अचानक लोकतंत्र के असली अर्थ से टकरा गए—और टकराते ही घिसटकर सड़क पर आ गए।

जो खानदान आपातकाल लगाकर पूरे देश को ड्रॉइंग रूम में बंद कर सकता था, वही आज संविधान की प्रति हाथ में लेकर चिल्ला रहा है कि “लोकतंत्र खतरे में है”। जिन्होंने सैकड़ों बार निर्वाचित सरकारों को राष्ट्रपति शासन की कैंची से काटा, वे आज संघीय ढांचे पर हमले का आरोप लगा रहे हैं—इतिहास खामोशी से मुस्करा रहा है।

इस चाय वाले ने संसद की दीवारों के भीतर वह बातें भी रख दीं, जिन पर बरसों तक गांधी टोपी की छाया पड़ी रही। उसने बताया कि कैसे बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के ‘वंदे मातरम्’ को इस डर से काट-छांट कर छोटा कर दिया गया कि कहीं एक खास तबका नाराज़ न हो जाए। देश दशकों तक आधा गीत गाता रहा और आज भी वही तबका पूरे स्वर में उसे स्वीकार करने से बचता है, मगर संविधान की आड़ में नैतिकता का ठेका ज़रूर लेता है।

उसी चाय वाले ने यह भी उजागर किया कि किस तरह भारत को संयुक्त राष्ट्र की सीढ़ियों पर बरसों खड़ा रखा गया और सुरक्षा परिषद में चीन को स्थायी कुर्सी दिला दी गई। आज जो लोग चोरी-चोरी चीन के राजदूत से मिलते हैं, परदे के पीछे एमओयू पर दस्तख़त करते हैं, वही खुले मंच से “नरेंद्र सरेंडर” जैसे नारे लगाते हैं। जनता अब चाय का घूंट लेकर पूछती है—“पहले एम ओ यू वाला कप नीचे रखो, फिर देशभक्ति का पाठ पढ़ाना।”

इसी चाय वाले ने बिहार में जंगलराज के संरक्षकों को लोकतंत्र के ड्राइंग रूम से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उत्तर प्रदेश में आतंक के पैरोकारों और हिस्ट्रीशीटरों के आकाओं की लंका लगा दी। महाराष्ट्र में दाऊद के संरक्षकों को राजनीतिक निर्वस्त्र कर दिया। और कश्मीर में धारा 370 हटाकर उस फ़ाइल को ही बंद कर दिया जिसे दशकों से “संवेदनशील” कहकर विशेष दर्जा प्रदान कर रखा गया था।

जिस देश में श्रीराम को काल्पनिक बताकर उन्हें केवल चुनावी पोस्टर बना दिया था, उसी देश में इसी चाय वाले के काल में अयोध्या जी में एक भव्य राम मंदिर पत्थर और श्रद्धा दोनों से खड़ा हो गया। जिस देश को कभी अंतरिक्ष में देखने के लिए विदेशी दूरबीन चाहिए होती थी, वही देश चंद्रमा की सतह पर तिरंगा गाड़ कर लौट आया।

नोटबंदी हुई तो अर्थशास्त्री टीवी स्टूडियो में बेसुध हो गए, लेकिन काले धन की नसों में दौड़ती कई अवैध नदियाँ अचानक सूख गईं। कोविड आया तो व्यवस्था हाँफी, विपक्ष चिल्लाया, मीडिया चीखी—लेकिन देश रुका नहीं। देश के तथाकथित महान अर्थशास्त्री के समय जब यह देश भ्रष्टाचार का महासागर बन गया था तब इसी चाय वाले ने बताया कि अर्थशास्त्र क्या होता है ! राफेल आया तो ऐसा शोर मचा जैसे लड़ाकू विमान नहीं, खानदानी राजनीति की रीढ़ टूटने का प्रमाण उतर आया हो। "चौकीदार चोर है" का नारा लगाने वालों को इसी चाय वाले ने माफी मांगने पर मजबूर कर दिया।

आज हालत यह है कि सारे खानदानी नेता इस चाय वाले से ठुक पिट कर एक ही टेबल पर आ बैठे हैं। किसी को लोकतंत्र बचाना है, किसी को वंश। कभी Gen Z को भड़काया जाता है, कभी कहा जाता है कि भारत श्रीलंका बन जाएगा, नेपाल बन जाएगा, बांग्लादेश बन जाएगा। जनता अब डरती नहीं, हँसकर पूछती है—“और आप लोग क्या बनेंगे? ‘पूर्व शासक’, बेरोजगार या दोनों ?”

विदेश नीति में भी इसी चाय वाले ने आज पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया है, चीन से आंखों में आंखें डालकर बात कर रहा है और अमेरिका से बराबरी की टक्कर ले रहा है। जो देश कभी अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ‘लाइन में लगाइए’ पर चलता था, वह आज अपनी बात मनवा रहा है—यही बात सबसे ज़्यादा चुभती है।

असल डर यह नहीं है कि चाय वाला सत्ता में है। असली डर यह है कि चाय वाला यह सिद्ध कर चुका है कि सत्ता किसी खानदान की बपौती नहीं होती। यही डर आज विरासत की राजनीति की नींव हिला रहा है। इसलिए कभी साज़िश, कभी अफ़वाह, कभी विदेशी डरावने उदाहरण—सब आजमाए जा रहे हैं।

वह आदमी आज भी चाय वाला ही है। फर्क सिर्फ़ इतना है कि पहले वह अदरक वाली चाय पिलाकर लोगों की थकान उतारता था, अब वह खानदानी राजनीति की अकड़ उतार रहा है। पहले वह केतली में पानी उबालता था, अब वह दिमाग में बैठे खानदानी भूत को बाहर निकाल रहा है।

और यही बात उन सब को सबसे ज़्यादा खलती है—कि एक साधारण चाय वाला असाधारण होकर उनके पूरे राजनीतिक वंश को लोकतंत्र के आईने में खड़ा कर चुका है।

ऐसे चाय वाले को शत-शत नमन।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Comedy