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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Drama Fantasy

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Drama Fantasy

डर

डर

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😛 डर 😛 🤪 जीवन का अखिल भारतीय महाकाव्य 🤪 ✍️ श्री हरि 🗓️ 24.11.2025 हमारी ज़िंदगी असल में कोई दार्शनिक ग्रंथ नहीं है, यह तो “डर संहिता” है— जन्म से लेकर मृत्यु तक दर्जनों डर ऐसे पीछे पड़े रहते हैं जैसे समाज सेवा के लिए ही पैदा हुए हों। सबसे पहला डर—पिता की चप्पल का डर। अगर बच्चा थोड़ा आज्ञाकारी हुआ तो चप्पल हवा में ही घूमकर वापस पैरों में आ जाती। अगर नटखट हुआ तो चप्पल का जीपीएस मोड ऑन होकर सीधे लक्ष्य पर ही लैंड करता। यह विज्ञान अभी तक समझ नहीं पाया कि वह चप्पल लक्ष्य कैसे साधती थी, पर हर भारतीय बच्चा समझ गया कि डर का पहला अध्याय चप्पल-पुराण से शुरू होता है। उम्र थोड़ा बढ़ी—तो डर भी उन्नत हो गया। स्कूल में मास्टरजी का डर। मास्टरजी इतने तीखे स्वभाव के होते थे कि बच्चे उनसे सवाल नहीं पूछते थे, वे सवालों से ही डरे रहते थे— “कहीं मास्टरजी गुस्से में उत्तर ही न पूछ लें!” पर असली डर तो जवानी में आता है— जीवन का वह सुनहरा काल जहाँ इंसान को अपने आप से ज़्यादा दुनिया डराती है। सबसे पहले डर आता है—आयकर का नोटिस। आयकर विभाग का लिफाफा देखकर आदमी की हार्टबीट 72 से सीधे 172 हो जाती है। लोग कहते हैं प्यार में दिल धड़कता है— पर जिसने आयकर का नोटिस देखा हो, वह समझता है कि सबसे रोमांटिक धड़कन वही होती है जिसमें आदमी सोचे— “कहीं ये नोटिस गलती से तो नहीं आया? या पड़ोस वाले शर्मा जी का मेरे पते का इस्तेमाल करने का कमाल है?” इसके बाद आता है बुलडोज़र का डर। आजकल बुलडोज़र शब्द सुनते ही आधी आबादी अपनी नक्शे वाली फाइल खोजने लगती है। किसी ने पार्किंग में टीनशेड बढ़ा दिया हो, किसी ने छत पर एक कमरा बना लिया हो, सबको लगता है कि अचानक मोहल्ले में 'जेजेबीसी 500' का संगीत बजने वाला है और हल्की हवा में उड़ती धूल कहेगी— “कानूनी प्रक्रिया प्रारंभ!” उसी बीच टीवी खोलो— तो आतंकवादी हमले का डर याद आ जाता है। रिमोट उठाकर न्यूज़ देखी कि आज कौन-सा नया संगठन पैदा हुआ? कबीर के दोहे की तरह रोज़ नया संगठन प्रकट हो जाता है। और लोग कहते हैं—“आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता।” मगर डर का तो धर्म होता है— वैश्विक। ये किसी भी चैनल की ब्रेकिंग न्यूज़ देखकर सक्रिय हो जाता है। अब ज़रा घरेलू मोर्चे के डर देखिए— चोरी-डकैती का डर। भारत का हर आदमी इतना सजग है कि खिड़की में 4 की जगह 14 सलाखें लगवाता है, दरवाज़े पर डेढ इंच मोटा ताला, और बेड के नीचे क्रिकेट बैट रखता है ताकि चोर आए तो उसे बैट दिखाकर कह सके— “भाईसाब, बैट है मेरे पास… खेलोगे?” लेकिन इस सबके बीच, एक और डर दुनिया का सबसे मनोरंजक डर बन चुका है— ईवीएम हैक होने का डर। यह डर सिर्फ एक ही विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है— पप्पू खानदानी यूनिवर्सिटी ऑफ लॉजिकल इमैजिनेशन। पप्पूजी का मानना है कि जो वोट उन्हें मिले— वो जनादेश है। जो नहीं मिले— वह ईवीएम की साज़िश, सरकार की चाल, और ब्रह्मांड के ग्रहों की मिलीभगत है। मोहल्ले वाले कहते हैं— “देश बदले या ना बदले, पप्पू की शिकायतें कभी नहीं बदलेंगी!” अब आते हैं असली डर पर— ऑफिस के बॉस का डर। बॉस कोई व्यक्ति नहीं होता, वह एक संस्था होता है। और यह संस्था भारतीय कर्मचारी को प्रतिदिन यह एहसास दिलाती है कि नौकरी इतनी नाजुक है जितनी परीक्षा के दिन पेन की आखिरी स्याही। बॉस कभी तारीफ नहीं करता, क्योंकि HR मैनुअल में लिखा है— “अगर कर्मचारी खुश दिख जाए तो उसे काम बढ़ाकर दो।” कर्मचारी की हालत ऐसी होती है— नौकरी जाए नहीं और तनख्वाह बढ़े नहीं। बॉस का एक मेल— “Can we connect?” और आदमी के रोंगटे ऐसे खड़े हो जाते हैं जैसे देश पर आपातकाल लग गया हो। पर— इन सब डर के बीच सबसे भयंकर, सबसे मारक, सबसे ऐतिहासिक डर है—बीवी का डर। यह डर इतना शक्तिशाली है कि वैज्ञानिक इसे “डोमेस्टिक सुपरपावर-इफेक्ट” कहते हैं। बीवी की हँसी— आदमी को खुश भी करती है और डराती भी है। क्योंकि वह हँसी यह भी कह सकती है— “आज तुम बच गए!” बीवी की चुप्पी— घर का ‘साइलेंट मोड’ नहीं, ‘डेंजर मोड’ होता है। चुप्पी की अवधि जितनी लंबी, तूफान उतना भयंकर। बीवी की आँखें तरेरना— ये तो ऐसा “रेड अलर्ट” है जिसे देखकर आदमी अपने कर्मों पर नहीं, पर पड़ोसियों के कर्मों पर भी पछताता है। और अब तो ऊपर से नया डर आ गया है— नीले ड्रम का डर। आजकल पति-पत्नी का झगड़ा नहीं, पति-पत्नी का अस्तित्व संकट चलता है। हर दिन समाचार में कोई न कोई “ड्रम कांड” सुनने को मिल जाता है। इसी भयावह परंपरा को देखते हुए मैंने अपनी पत्नी से साफ बोल दिया— “देखो, यदि तुम्हें किसी और से प्रेम हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। प्यार स्वतंत्र है… पर मुझे नीले ड्रम में मत रखना। प्लीज़!” पत्नी ने कहा— “चिंता मत करो, तुम्हें ड्रम में नहीं रखूँगी… तुम्हें तो मैं सीधा बालकनी से फेंक दूँगी— क्योंकि ड्रम उठाने का झंझट मैं नहीं करती।” अब आप ही बताइए— इससे बड़ा डर कहाँ मिलेगा? ज़िंदगी में सौ डर आएंगे— कर, आतंक, मौसम, मंदी, बिक्री, बुलडोज़र, बॉस… पर असली डर वही है जो घर के भीतर रहता है और सोने से पहले आखिरी वाक्य में कहा जाता है— “जानू, कल सुबह उठकर बात करेंगे।” और भाईसाहब… उस कल सुबह से बड़ा कोई डर इस दुनिया में नहीं। 😄🙏  


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